आर्थिकी नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि  राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक 

नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि  राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक 

कमलेश पांडेय मौजूदा नेक्स्टजेन जीएसटी सुधार केवल कर सुधार नहीं बल्कि राष्ट्र-निर्माण को तेज रफ्तार देने का परिचायक है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थ…

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पर्यावरण अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत

अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत

जयसिंह रावतजलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र में गड़बड़ी के कितने भयावह परिणाम निकल सकते हैं, इसका उदाहरण इस साल का मानसून है जो सितम्बर में भी…

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राजनीति निराशा से आशा की ओरः आत्महत्या के खिलाफ जंग

निराशा से आशा की ओरः आत्महत्या के खिलाफ जंग

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस – 10 सितम्बर, 2025 – ललित गर्ग – दुनिया में आत्महत्या आज एक गहरी एवं विडम्बनापूर्ण वैश्विक चुनौती बन चुकी है।…

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लेख अकेलेपन से आत्महत्या तक: मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का समय

अकेलेपन से आत्महत्या तक: मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने का समय

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) पर विशेषजीवन की रक्षा में संवाद ही सबसे बड़ा हथियार– योगेश कुमार गोयलविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से…

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राजनीति राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान धर्म और राजनीति से ऊपर होना चाहिए

राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान धर्म और राजनीति से ऊपर होना चाहिए

अशोक चक्र और तिरंगा हमारी आत्मा के प्रतीक हैं, इन्हें राजनीति का मोहरा न बनाया जाए भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक विविधता, सहिष्णुता और राष्ट्रीय…

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लेख सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है पंजाब की बाढ़

सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है पंजाब की बाढ़

राजेश कुमार पासी इस समय हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, राजस्थान और पंजाब-हरियाणा विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं । देखा जाए तो भारी बारिश ने पूरे उत्तर-भारत में तबाही मचाई हुई है । टीवी मीडिया और सोशल मीडिया में आने वाले भयानक दृश्य देखकर पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है । हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में  कई बार बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं जिसके कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है । इसके अलावा इन पहाड़ी प्रदेशों में सड़कों और पुलों की जबरदस्त तबाही हुई है । इन प्रदेशों में जो बुनियादी ढांचा बर्बाद हुआ है, उसे दोबारा बनाने में काफी समय लगने वाला है । हरियाणा में भी बाढ़ ने भयानक तबाही मचाई है लेकिन पंजाब की बर्बादी परेशान करने वाली है । पंजाब की लगभग तीन लाख एकड़ भूमि बाढ़ के पानी में डूब चुकी है जिसके कारण फसलों की पूरी बर्बादी हो गई है । इसके अलावा कृषि भूमि में नदियों की रेत इस तरह से भर गई है कि दोबारा खेती करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी । पंजाब के लगभग 2000 गांव बाढ़ में डूबने से भारी तबाही हुई है. मरे हुए मवेशियों की लाशें तैरती नजर आ रही हैं । इसके अलावा सैकड़ों मवेशी बाढ़ के पानी में बहकर पाकिस्तान जा चुके हैं । बाढ़ के कारण हजारों लोगों की अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है । हिमालय से निकलने वाली जीवनदायिनी नदियों ने अपनी ताकत का अहसास करवाया है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए जो बांध बनाए गए थे, वो अपना काम करने में नाकाम रहे हैं । इसके विपरीत इन बांधो ने भी इस समस्या को बढ़ाया है । इस पर विचार करने की जरूरत है कि जिन बांधों को बाढ़ से बचाव के लिए बनाया गया था, क्यों वो अपना काम नहीं कर पाए । पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है. इन नदियों के विकराल रूप ने न केवल भारतीय पंजाब बल्कि पाकिस्तान पंजाब को सहमा दिया है  । पंजाब में हुए विनाश को देखते हुए केंद्र सरकार से जनता दखल देने की मांग कर रही है । इस समय पंजाब के बाढ़ पीड़ितों को भोजन, दवाइयों और वित्तीय मदद की जरूरत है । पंजाब में क्रिकेटर, सिंगर, खिलाड़ी, अभिनेता और अन्य सेलिब्रिटी मदद के लिए आगे आए हैं जिससे राहत कार्य चल रहे हैं ।                    9 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी भी पंजाब का दौरा कर रहे हैं जबकि केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह पहले ही पंजाब का दौरा कर चुके हैं । उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के दौरे के बाद पंजाब के लिए केन्द्र सरकार द्वारा कोई राहत पैकेज घोषित किया जाए । केन्द्र सरकार की  समस्या यह है कि भारत के बड़े हिस्से में बाढ़ से तबाही हुई है और सभी उससे राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं । वैसे देखा जाए तो पंजाब की समस्या ज्यादा गंभीर दिखाई दे रही है इसलिए केन्द्र सरकार को इस पर ध्यान देना होगा । वैसे हमारे देश में हर मुद्दे पर राजनीति होती है, इसलिए ऐसे मामले सुलझाने में समस्या आती है । पंजाब में विपक्ष की सरकार है इसलिए केन्द्र सरकार से राहत पैकेज के नाम पर इतनी राशि मांगी जा रही है, जिससे राहत पैकेज के बाद राजनीति की जा सके । देखा जाए तो ऐसी विभीषिका से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना चाहिए लेकिन भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि देशहित से ऊपर दलहित हो गया है । इस विभीषिका के लिए केन्द्र और राज्य की सरकारों को दलगत हितों से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है ।  हमारे देश की विडम्बना है कि नौकरशाही और नेता बाढ़ जैसी आपदा को अपने लिए एक मौका मानते हैं । कौन नहीं जानता है कि भारत में ऐसी आपदाओं के राहत कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार होता है । राहत कार्यों का प्रचार तो जबरदस्त होता है लेकिन जनता का फायदा बहुत कम होता है । बाढ़ के समय जनता की शिकायत सामने आ रही है कि राज्य सरकार की मशीनरी दिखाई नहीं दे रही है । यही कारण है कि पंजाब की मदद के लिए सेलिब्रिटी सामने आए हैं । केन्द्र सरकार की आपदा एजेंसी एनडीआरएफ ने बहुत काम किया है और इसके अलावा सेना ने भी भारी मदद की है । वास्तविक समस्या बाढ़ का पानी उतरने के बाद सामने आने वाली है । पानी के जमाव के कारण बीमारियां फैलने का खतरा है । बाढ़ के कारण पंजाब के बुनियादी ढांचे को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना आसान होने वाला नहीं है । वास्तव में पंजाब की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब चल रही है, ऐसे में बाढ़ के कारण किसानों और पशुपालकों को हुए नुकसान की भरपाई करना राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है । पहले ही पंजाब भारी कर्ज से दबा हुआ है, इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ सकता है ।                 पंजाब में जो तबाही हुई है, उसे प्राकृतिक आपदा कहा जा सकता है लेकिन यह पूरा सच नहीं है । इस आपदा के लिए नौकरशाही, प्रशासन और जनता जिम्मेदार हैं । पिछले कई वर्षों से जीवन पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई दे रहा है । अत्याधिक गर्मी, वर्षा और ठंड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं । ग्लोबल तापमान बढ़ता जा रहा है । कई दिनों तक होने वाली बारिश कुछ ही घंटो में हो जाती है जिसके कारण पानी निकलना मुश्किल हो जाता है । पहाड़ो में बादल फटना आम बात हो गई है । बेशक पंजाब को पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता है लेकिन ऐसी बाढ़ का इतिहास बहुत कम है । पंजाब को बाढ़ से बचाने के लिए बांधों का निर्माण किया गया था लेकिन उनके प्रबंधन में हुई गलती का परिणाम भी पंजाब को भुगतना पड़ रहा है । इसके लिए पंजाब की राजनीति भी जिम्मेदार है । मानसून से पहले बांधों को खाली किया जाता है ताकि बारिश के अतिरिक्त पानी को रोककर उन्हें दोबारा भरा जा सके । इसके लिए बांध प्रबंधन भारतीय मौसम विभाग, यूरोपीय मौसम विभाग और ग्लोबल वेदर एजेंसी से डाटा लेता है जिसके अनुसार वो यह तय करता है कि कितना पानी बांध से निकालना है । इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई गई थी लेकिन बांध इतने खाली नहीं किए गए कि पंजाब को बाढ़ से बचाया जा सके ।  बांध से पानी छोड़ने के मामले में राजनीति भी देखने को मिली थी । यह जांच विषय है कि समय पर बांध से ज्यादा पानी नहीं छोड़ा गया जिसके कारण उसमें पानी धारण करने की क्षमता कम हो गई । बाढ़ के प्राकृतिक कारणों पर हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन मानवीय कारणों से निपटने की कोशिश होनी चाहिए । नदियों, नालों, और तालाबों पर अतिक्रमण आम बात हो गई है । नदियों के किनारे  बड़ी-बड़ी कलोनियां बन गई हैं और नालों को पाटकर उनपर मकान बना दिए गए हैं । गुड़गांव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां नालों को पाटकर पूरा शहर बसा दिया गया है । यही कारण है कि हर बार गुड़गांव पानी में डूब जाता है क्योंकि पानी के रास्ते में भवन, सड़के और फ्लाईओवर खड़े हुए हैं । पंजाब में भी रियल स्टेट सेक्टर ने नालों और तालाबों को पाटकर पानी निकलने के रास्ते बंद कर दिए हैं । इसके अलावा तालाबों को पाटकर खेती शुरू कर दी गई है जिसके कारण जल संग्रहण की क्षमता खत्म हो गई है और कृषि भूमि पानी से डूब रही है ।                 थोड़ी सी बरसात के बाद ही जलजमाव बड़ी समस्या बनती जा रही है जिसके कारण सड़कों पर जाम लग जाता है । सीवरेज की गंदगी नालों के जरिये नदियों में जा रही है, जिसके कारण नदियों में गाद जमा हो रही है । गाद के कारण नदियों की जल संग्रहण क्षमता बहुत कम होती जा रही है । सतलुज नदी की जल ग्रहण क्षमता तीन लाख क्यूसेक की है लेकिन गाद के कारण यह क्षमता घटकर सत्तर हजार रह गई है । अब यह तय होना चाहिए कि नदियों से गाद निकालना किसकी जिम्मेदारी थी । अगर यह जिम्मेदारी सही तरह से निभाई गई होती तो नदियां इस तरह नहीं उफनती और पंजाब इस तरह नहीं डूबता । क्या देश की जनता नहीं जानती कि गाद हटाने का काम सिर्फ एक खानापूरी बन गया है । कुछ दिनों बाद जनता फिर अपनी जिंदगी में मस्त हो जाएगी और व्यवस्था अपनी चाल से चलती रहेगी । बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए राजनीति से ऊपर उठकर केन्द्र और राज्य की सरकारों को मिलकर काम करने की जरूरत है । बाढ़ आने पर अल्पकालिक उपायों से कुछ होने वाला नहीं है बल्कि भविष्य को देखकर दीर्घकालिक योजनाएं बनाने की जरूरत है । बांधो के प्रबंधन में राजनीति का दखल नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे इंजीनियर अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें क्या करना है । वास्तव में राजनीति के कारण ही बांधों को इतना खाली नहीं किया गया कि वो सही तरीके से अपना काम नहीं कर सके । नदियों से गाद निकालना प्रशासन का काम है और इसके लिए उचित धनराशि उपलब्ध करवाई जानी चाहिए । सरकार और समाज को तालाबों को जीवित करने की जरूरत है ताकि वो अतिरिक्त पानी को जमा करके ऐसी समस्या से बचा सके । नालों की सफाई का ध्यान रखने की जरूरत है ताकि वो समय पर शहरों से पानी को बाहर निकाल सके । जलवायु परिवर्तन एक सच्चाई है और हमें इसकी कीमत चुकानी है । जनता को अपनी जिम्मेदारी समझने की भी जरूरत है ।  राजेश कुमार पासी

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सिनेमा ‘यशराज’ की अगली फिल्‍म में एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा

‘यशराज’ की अगली फिल्‍म में एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा

सुभाष शिरढोनकर फिल्‍म ‘सैयारा’ (2025) की कामयाबी से रातों रात स्‍टार बनी एक्‍ट्रेस अनीत पड्डा अब ‘बैंड बाजा बारात’ (2010) फेम डायरेक्टर मनीष शर्मा की…

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लेख जनसंख्या असंतुलन : खतरनाक स्थिति

जनसंख्या असंतुलन : खतरनाक स्थिति

डॉ. बालमुकुंद पांडे  जनसंख्या देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं क्योंकि यही राज्य का तत्व श्रम शक्ति, प्रतिभा एवं विकास की नींव होती है। जब…

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लेख प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये

प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये

चंद्र मोहन बाजार से खरीदारी करके घर लौटते सभी के हाथों मे छोटे बड़े प्लास्टिक के थैलों को हर कोई आसानी से देखता है. प्यास…

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खान-पान जनस्वास्थ्य: प्राकृतिक करौंदे का अचार, एक अनुकरणीय नवाचार

जनस्वास्थ्य: प्राकृतिक करौंदे का अचार, एक अनुकरणीय नवाचार

कमलेश पांडेय उत्तरप्रदेश में “दवा नहीं, प्राकृतिक करौंदे के अचार का सेवन” नामक एक अनुकरणीय नवाचार शुरू किया गया है जिसको नीति आयोग, नई दिल्ली…

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आर्थिकी जीएसटी 2.0 : आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक और कदम

जीएसटी 2.0 : आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक और कदम

प्रो. महेश चंद गुप्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर किए वादे को पूरा करते हुए दिवाली से पहले  सरकार ने जनता को जीएसटी सुधार के रूप में ऐसा तोहफा दिया है, जो न सिर्फ आम जन के  जीवन को सरल बनाएगा बल्कि 2047 तक विकसित भारत के सपने को और मजबूती से धरातल पर उतारेगा। जीएसटी 2.0 केवल टैक्स सुधार नहीं बल्कि भारत की अगली आर्थिक यात्रा का  मानचित्र है। जहां देशवासी खुश हैं, वहीं इस सुधार में गहरा अंतरराष्ट्रीय संदेश भी निहित है। यह सुधार अमेरिका द्वारा लगाए 50 प्रतिशत टैरिफ का उत्तर भारत ने अपनी आर्थिक मजबूती और आत्म निर्भरता के रूप में दिया है।  जीएसटी सुधार से किसान, महिला, युवा, मिडिल क्लास, छोटे व्यापारी और उपभोक्ता सभी  लाभान्वित होंगे। यह कदम केवल टैक्स प्रणाली को सरल बनाने का प्रयास मात्र नहीं है बल्कि  भारत को एक तेज, सशक्त और आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था में बदलने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। यह सुधार जितना घरेलू स्तर पर आम लोगों को राहत देगा, उतना ही अंतरराष्ट्रीय स्तर  पर भारत की सशक्त छवि को भी मजबूत करेगा।  बदलावों की जरूरत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेखांकित किया है। मोदी ने कहा है कि अगर भारत को वैश्विक परिदृश्य में उचित स्थान दिलाना है तो समय-समय पर बदलाव बेहद जरूरी हैं। यह सुधार देश को सपोर्ट और ग्रोथ की डबल डोज देंगे। गरीब, मध्यम वर्ग, महिलाओं, छात्रों, किसानों और नौजवानों को इसका सीधा फायदा होगा। प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया है कि यह सुधार सिर्फ टैक्स में बदलाव नहीं है, बल्कि आत्म निर्भर भारत के लिए अगली पीढ़ी का सुधार है।                                                           सरकार ने आनन-फानन में यह फैसला नहीं किया है बल्कि उसने इस सुधार में सामाजिक संतुलन का विशेष ध्यान रखा है। तम्बाकू उत्पादों, सिगरेट, शराब, महंगी कारों, विमान आदि पर 40 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है पर इसका सीधा असर अमीर वर्ग पर पड़ेगा जबकि गरीब और मध्यम वर्ग को सस्ती आवश्यक  वस्तुएं मिलेंगी। जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा असर यह होगा कि उपभोक्ताओं को सस्ता सामान मिलेगा और घरेलू खपत में इजाफा होगा। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब खपत बढ़ेगी तो उत्पादन और व्यापार का दायरा भी बढ़ेगा। कंपनियां अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करने की स्थिति में होंगी जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस प्रकार जीएसटी सुधार और प्रधानमंत्री  विकसित भारत रोजगार योजना मिलकर अर्थव्यवस्था को गति देंगे। उपभोक्ता को सस्ता  सामान मिलेगा और युवा पीढ़ी को रोजगार के अवसर मिलेंगे। यह संतुलन अल्पकालिक राहत  और दीर्घकालिक विकास दोनों को साथ लेकर चलेगा। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)  स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। इसने 17 केंद्रीय और राज्य करों को हटा कर  ‘एक राष्ट्र एक कर’ लागू कर देश में सामान्य राष्ट्रीय बाजार का निर्माण किया। आठ वर्षों में जीएसटी लगातार विकसित हुआ है और अब डिजिटलीकरण तथा दर युक्तिकरण के जरिये यह  भारतीय कर व्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलते स्वरूप को देखते हुए  टैक्स प्रणाली को सरल और व्यवहारिक बनाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने इसी जरूरत को समझते हुए जीएसटी 2.0 के रूप में एक ऐसा सुधार सामने रखा है जो व्यापक दृष्टिकोण से सोचा-समझा और जन हितैषी है।  जीएसटी 2.0 में सबसे बड़ा परिवर्तन टैक्स स्लैब की संख्या घटाना है। पहले चार प्रमुख दरें थीं यानी 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। अब इन्हें घटाकर सिर्फ दो कर दिया गया है। जरूरी सामानों पर 5  प्रतिशत और सामान्य वस्तुओं पर 18 प्रतिशत टैक्स लगेगा। इससे उपभोक्ताओं को सीधी राहत मिलेगी। किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विशेष ध्यान में रखते हुए ट्रैक्टर, खेती के औजार, हस्तशिल्प और मार्बल पर टैक्स 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इसका  असर दूरगामी होगा क्योंकि कृषि की लागत कम होगी जिससे ग्रामीण बाजारों में रौनक बढ़ेगी।   सरकार ने कुछ वस्तुओं को टैक्स के दायरे से बाहर ही रखा है। इसका उद्देश्य है कि आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी बुनियादी जरूरत वाली चीजें और सस्ती हों और उनका बोझ आम आदमी की जेब पर न बढ़े।  जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को होगा। जब जरूरी सामान सस्ते होंगे तो आम परिवारों की मासिक बचत बढ़ेगी। किसान को कम लागत में उपकरण मिलेंगे तो  उत्पादन बढ़ेगा। छोटे व्यापारी और दुकानदारों को टैक्स की जटिलता से मुक्ति मिलेगी जिससे  उनका कारोबार सहज होगा। जीवन एवं स्वास्थ्य बीमा को टैक्स फ्री करना बड़ा कदम है। कैंसर  सहित 33 जीवन रक्षक दवाइयों पर टैक्स घटाना भी सराहनीय है। महिलाओं को घरेलू जरूरतों की चीजें कम कीमत पर उपलब्ध होंगी। युवाओं के लिए रोजगार के  नए अवसर पैदा होंगे, क्योंकि बढ़ती खपत उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी। इस तरह यह सुधार केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि हर वर्ग के जीवन में सकारात्मक  बदलाव लाएगा। यह सुधार उस समय आया है जब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगा रखा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इन टैरिफों को अपने राष्ट्रीय हित में सही ठहराया है परंतु भारत ने इसका जवाब किसी राजनीतिक बयानबाजी से नहीं बल्कि ठोस आर्थिक सुधार से दिया है। जीएसटी 2.0 इस बात का प्रतीक है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने की राह पर है। यह कदम वैश्विक समुदाय के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि भारत चुनौतियों से घबराने वाला नहीं बल्कि उन्हें अवसर में बदलने वाला देश है। अमेरिकी टैरिफ से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई घरेलू खपत को मजबूत बनाकर की जा सकती है। यही रणनीति भारत को आर्थिक रूप से और सुदृढ़ बनाएगी।  भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का सपना देख रहा है। उस दिशा में जीएसटी 2.0 एक अहम कड़ी है। यह सुधार केवल टैक्स दरों का नहीं बल्कि सोच का बदलाव है। यह ऐसी सोच है जो आम आदमी को केंद्र में रखती है और साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारत को  तैयार भी करती है। दुनिया की तेजी से बदलती आर्थिक परिस्थितियों में भारत को अपनी नीति  और दृष्टि दोनों को अपडेट रखना होगा। जीएसटी 2.0 इस दिशा में एक ठोस शुरुआत है जिसका  परिणाम आने वाले सालों में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाए रखने में अहम  भूमिका निभाएगा। जीएसटी सुधारों से सरकार ने साफ कर दिया है कि अब लक्ष्य केवल नीति बनाना नहीं  बल्कि उसे जमीन पर उतारकर परिणाम दिखाना है। यह सुधार किसानों से लेकर शहरी उपभोक्ताओं तक, छोटे दुकानदार से लेकर बड़े उद्योगों तक, हर किसी के लिए मायने रखता है। यह  केवल टैक्स सुधार नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता का नया अध्याय है। हालांकि इन सुधारों से सरकार को 47,700 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व नुकसान होगा मगर  बाजारों में बूम आने की संभावना से इसकी भरपाई के प्रति हर कोई आश्वस्त है। माना जा रहा है कि टैक्स दरें संतुलित होने से जहां टैक्स ज्यादा आएगा, वहीं टैक्स चोरी रुकेगी। एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि टैक्स कटौती की वजह से खरीदारी बढ़ेगी और इकॉनमी में 1.98 लाख करोड़ रुपये तक की खपत का इजाफा होगा। देश के प्रमुख उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह सुधार भारत की आर्थिक रफ्तार को और तेज करेगा। इससे भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8  प्रतिशत से ऊपर जा सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मांग को बढ़ाने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के लिए एकदम सही पॉलिसी है। भारत अब दिखाएगा कि डेड इकॉनमी कैसी  दिखती है। ट्रंप ने भारत को डेड इकॉनमी बताया था।  सरकार का भी यही दावा है कि सरल टैक्स  प्रणाली से लोग ज्यादा टैक्स देंगे जिससे राजस्व बढ़ेगा। जब राजस्व बढ़ेगा तो सरकार के पास  विकास परियोजनाओं पर खर्च करने के लिए अधिक संसाधन होंगे। स्वदेशी की मांग बढऩे का भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मोदी ने भी स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है हालांकि, यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि जीएसटी सुधारों की घोषणा मात्र से ही सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।  असली चुनौती इसके प्रभावी क्रियान्वयन की है। राज्य सरकारों की सहमति, प्रशासनिक तंत्र की  दक्षता और टैक्स चोरी रोकने पर नियंत्रण से ही पता चलेगा कि यह सुधार कितना सफल होता है। अपेक्षित नतीजे आने में कम से कम छह महीने तो लगेंगे ही।

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राजनीति कनाडा की स्वीकारोक्ति और खालिस्तानी चुनौती

कनाडा की स्वीकारोक्ति और खालिस्तानी चुनौती

 भारत वर्षों से यह कहता रहा है कि कनाडा की धरती पर खालिस्तान समर्थक तत्व सक्रिय हैं और उन्हें वहां की सरकार से प्रत्यक्ष या…

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