चिंतन जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है : स्वामीयज्ञमुनि

जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है : स्वामीयज्ञमुनि

-मनमोहन कुमार आर्य                स्वामी यज्ञमुनि जी ने श्रोताओं को स्मरण कराते हुए कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा है कि हम सर्वदा आनन्द में…

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पर्यावरण अधिकांश भारतीय ग्लोबल वार्मिंग पर चिंतित, करते हैं प्रधानमंत्री मोदी के मिशन लाइफ का समर्थन

अधिकांश भारतीय ग्लोबल वार्मिंग पर चिंतित, करते हैं प्रधानमंत्री मोदी के मिशन लाइफ का समर्थन

येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीवोटर इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग…

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लेख खपरैल मकानों से कंक्रीट भवनो में गुम होता इंसान!

खपरैल मकानों से कंक्रीट भवनो में गुम होता इंसान!

                          – आत्‍माराम यादव पीव                 खपरैल शब्द आते ही एक ऐसे कमरे-मकान का स्वरूप हमारे सामने आ जाता है जो हमारी मोलिक सांस्कृतिक धरोहर है जिसे देश…

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कविता अकेलेपन की दुनिया में

अकेलेपन की दुनिया में

अकेलेपन की दुनिया मेंआनंद नहीं होताअकेलेपन की दुनियाबिखर जाती है क्षण भर में हीअकेलेपन की दुनियाहमें चिंतन का स्वाद देता हैअकेलेपन की दुनियाचिर आनंद देता…

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लेख सैंकड़ों मंदिरों का पुनर्धार कराने वाली महारानी थी अहिल्याबाई होलकर

सैंकड़ों मंदिरों का पुनर्धार कराने वाली महारानी थी अहिल्याबाई होलकर

अरब देशों से भारत आए आक्रांता शुरू में तो केवल भारत में लूट खसोट करने के उद्देश्य से ही आए थे, क्योंकि उन्होंने सुन रखा था…

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प्रवक्ता न्यूज़ होली भजन

होली भजन

(तर्ज- होली खेले रघुवीरा) होली खेलै गिरधारी (बनवारी) बृज में, (होली खेलै गिरधारी-2)होली खेले गिरधारी (बनवारी) बृज में………. बरसाने की गोपियाँ (सखियाँ) सारी, भर-भर ये…

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व्यंग्य अस्त्र के रूप में लात का चिंतन !

अस्त्र के रूप में लात का चिंतन !

आत्माराम यादव पीव        आज लात मारना आम बात हो गई है ओर लात का प्रयोग एक अस्त्र की तरह हो रहा है ओर चारों युगों…

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कविता क्यों सुने समाज के ताने?

क्यों सुने समाज के ताने?

श्रुतिकन्यालीकोट, उत्तराखंड क्यों सुने समाज के ताने?लड़ झगड़ कर बढ़ते आगे,जहां लड़के भी कुछ न पाएं,लड़कियां बढ़ती जाएं आगे,शिक्षा है उम्मीद की चाह,जिसने दिखाई एक…

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लेख माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग 

माँ के चरणों में मिलता है स्वर्ग 

(मातृ दिवस 12 मई 2024 पर विशेष आलेख) आज मातृ दिवस है, एक ऐसा दिन जिस दिन हमें संसार की समस्त माताओं का सम्मान और सलाम करना चाहिये। वैसे माँ किसी के सम्मान की मोहताज नहीं होती, माँ शब्द ही सम्मान के बराबर होता है, मातृ दिवस मनाने का उद्देश्य पुत्र के उत्थान में उनकी महान भूमिका को सलाम करना है। श्रीमद भागवत गीता में कहा गया है कि माँ की सेवा से मिला आशीर्वाद सात जन्म के पापों को नष्ट करता है। यही माँ शब्द की महिमा है। असल में कहा जाए तो माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे देती है यही माँ शब्द की शक्ति को दर्शाता है, वह माँ ही होती है पीड़ा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। ‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का बोध होता है। जिसके उच्चारण मात्र से ही हर दुख दर्द का अंत हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  रामायण में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है। जिस घर में माँ का सम्मान नहीं किया जाता है वो घर नरक से भी बदतर होता है, भगवान श्रीराम माँ शब्द को स्वर्ग से बढ़कर मानते थे क्योंकि संसार में माँ नहीं होगी तो संतान भी नहीं होगी और संसार भी आगे नहीं बढ़ पाएगा। संसार में माँ के समान कोई छाया नहीं है। संसार में माँ के समान कोई सहारा नहीं है। संसार में माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। एक माँ अपने पुत्र के लिए छाया, सहारा, रक्षक का काम करती है। माँ के रहते कोई भी बुरी शक्ति उसके जीवित रहते उसकी संतान को छू नहीं सकती। इसलिए एक माँ ही अपनी संतान की सबसे बडी रक्षक है। दुनिया में अगर कहीं स्वर्ग मिलता है तो वो माँ के चरणों में मिलता है। जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहाँ कभी देवता वास नहीं करते। एक माँ ही होती है जो बच्चे कि हर गलती को माफ कर गले से लगा लेती है। यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई। बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। दुनिया की हर नारी में मातृत्व वास करता है। बेशक उसने संतान को जन्म दिया हो या न दिया हो। नारी इस संसार और प्रकृति की ‘जननी’ है। नारी के बिना तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की मूल पहचान माँ होती है। अगर माँ न हो तो संतान भी नहीं होगी और न ही सृष्टि आगे बढ पाएगी। इस संसार में जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपनी संतानों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां अपनी संतान के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पुत्री कुपुत्री हो सकती है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। एक संतान माँ को घर से निकाल सकती है लेकिन माँ हमेशा अपनी संतान को आश्रय देती है। एक माँ ही है जो अपनी संतान का पेट भरने के लिए खुद भूखी सो जाती है और उसका हर दुख दर्द खुद सहन करती है। लेकिन आज के समय में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने मात-पिता को बोझ समझते हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करते हैं। ऐसे लोगों को आज के दिन अपनी गलतियों का पश्चाताप कर अपने माता-पिताओं को जो वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं उनको घर लाने के लिए अपना कदम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं होता। माता के बारे में कहा जाए तो जिस घर में माँ नहीं होती या माँ का सम्मान नहीं किया जाता वहाँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का वास नहीं होता। हम नदियों और अपनी भाषा को माता का दर्जा दे सकते हैं तो अपनी माँ से वो हक क्यों छीन रहे हैं। और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने को मजबूर कर रहे है। यह सोचने वाली बात है। माता के सम्मान का एक दिन नहीं होता। माता का सम्मान हमें 365 दिन करना चाहिए। लेकिन क्यों न हम इस मातृ दिवस से अपनी गलतियों का पश्चाताप कर उनसे माफी मांगें। और माता की आज्ञा का पालन करने और अपने दुराचरण से माता को कष्ट न देने का संकल्प लेकर मातृ दिवस को सार्थक बनाएं। 

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व्यंग्य वकालत की शुरुआत ओर वकील की पैदाइश कब हुई ? 

वकालत की शुरुआत ओर वकील की पैदाइश कब हुई ? 

                        आत्माराम यादव पीव         जगत के सभी धर्म शास्त्र, पुराण ओर वेद उपनिषद आदि में…

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राजनीति भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024  में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे  60 प्रतिशत का योगदान

भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024  में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे  60 प्रतिशत का योगदान

वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है।  भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना बन रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं।  आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार तेज वृद्धि आंकी जा रही है, जिससे भारत के वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम हो रहा है और भारत पूंजीगत खर्चों के साथ ही गरीब वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के लिए वित्त की व्यवस्था आसानी से कर पा रहा है। केंद्र सरकार के बजट में न केवल वित्तीय घाटा कम हो रहा है बल्कि आने वाले समय में केंद्र सरकार को अपने सामान्य खर्च चलाने के लिए ऋण लेने की आवश्यकता भी कम पड़ने लगेगी। दूसरे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत लगातार स्थिर बनी हुई है, जिससे विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास भी बढ़ रहा है और भारत में विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ता जा रहा है। तीसरे, भारत में मुद्रा स्फीति पर भी तुलनात्मक रूप से नियंत्रण पाने में सफलता मिली है। अन्य देश अभी भी मुद्रा स्फीति की समस्या से जूझ रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में उक्त कारकों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावनाएं बनी रहेंगी। इसके ठीक विपरीत, जापान एवं जर्मनी की आर्थिक विकास दर या तो मंदी के दौर से गुजर रहीं हैं अथवा विकास दर बहुत कम अर्थात एक-दो प्रतिशत से भी कम बनी हुई है।      भारत के स्टील उद्योग, सिमेंट उद्योग एवं ऑटोमोबाइल निर्माण के क्षेत्र ने 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल कर ली है। डिजिटल आधारभूत ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में तो भारत विश्व गुरु बन गया है और इससे आज भारत में 13400 करोड़ से अधिक के डिजिटल व्यवहार हो रहे हैं जो पूरे विश्व के डिजिटल व्यवहारों का 46 प्रतिशत है। जन-धन योजना के अंतर्गत खोले गए 50 करोड़ से अधिक बैंक खातों में आज 2.32 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा हो चुकी है, जो देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रही है। वर्ष 2013-14 से वर्ष 2022-23 के दौरान मुद्रा स्फीति की औसत दर 5 प्रतिशत की रही है जो वर्ष 2003-04 से वर्ष 2013-14 के दौरान औसत 8.2 प्रतिशत की रही थी। मुद्रा स्फीति कम रहने का सीधा लाभ देश के गरीब वर्ग को मिलता है।  साथ ही, अब तो आर्थिक विकास के साथ ही भारत में रोजगार के भी पर्याप्त अवसर निर्मित होने लगे हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत में वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के दौरान 51.4 करोड़ व्यक्ति वर्ष के नए रोजगार निर्मित हुए हैं। इसमें केंद्र सरकार द्वारा किये गए सीधे प्रयासों के चलते 19.79 करोड़ व्यक्ति वर्ष के रोजगार के अवसर भी शामिल हैं। शेष 31.61 करोड़ व्यक्ति वर्ष रोजगार के अवसर अपने व्यवसाय प्रारम्भ करने के उद्देश्य से बैंकों से लिए गए ऋण के चलते निर्मित हुए हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा उक्त प्रतिवेदन 80 संस्थानों पर की गई रिसर्च (केस स्टडी) के आधार पर जारी किया गया है। सूक्ष्म एवं लघु स्तर के ऋण लेने वाले व्यक्तियों ने रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित किए हैं। इस प्रतिवेदन के अनुसार औसतन प्रत्येक सूक्ष्म संस्थान 6.6 रोजगार के नए अवसर निर्मित करता है।   अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक के बाद अब मूडीज ने भी भारत में आर्थिक विकास के संदर्भ में बताया है कि आने वाले कुछ वर्षों तक भारत की आर्थिक विकास दर विश्व में सबसे अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावना बनी रहेगी। इस प्रकार, एक के बाद एक विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थान भारत में आर्थिक विकास दर के मामले में अपने अनुमानों को लगातार सुधारते/बढ़ाते जा रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान भी लगातार बढ़ता जाएगा और सम्भव है कि कालचक्र में ऐसा परिवर्तन हो कि भारत एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक योगदान को 32 प्रतिशत के स्तर तक वापिस ले जाने में सफल हो।     प्रहलाद सबनानी 

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राजनीति यादगार होगी स्मृति ईरानी की जीत!

यादगार होगी स्मृति ईरानी की जीत!

शिव शरण त्रिपाठी कभी कांग्रेस की खानदानी सीट मानी जाने वाली अमेठी से 2019 में पहले भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हारना और अब 2024…

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