Home Blog Page 2509

किसान आंदोलन को कुचलने की अदानी पेंच पावर लिमि0 की खूनी साजिश

डॉ0 सुनीलम्, पूर्व विधायक

म0प्र0 के छिन्दवाडा जिले में जिला मुख्यालय से 14 कि0मी0 दूर 22 मई शाम 5.30 बजे दो बार प्रयास के बाद मुझे तीन बुलेरो गाडि़यो में सवार 15 अदानी पेंच पावर लिमि0 के कमलनाथ से जुडे कांग्रेसी ठेकेदार गुण्डो ने मेरी जीप के कॉच तोड़कर लाठियों से हमलाकर दोनों हाथ तोड दिए, सिर में चोट आई। अदानी प्रोजेक्ट तथा पेंच व्यपवर्धन परियोजना के प्रभावित किसानों का आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे एड0 आराधना भार्गव को लाठियों से पीटे जाने के चलते सिर में 10 टांके लगे तथा एक हाथ फैक्चर हो गया। हम छिन्दवाड़ा जिले के भूलामोहगांव से 28 से 31 मई के बीच दोनो प्रोजेक्ट के विरोध में पदयात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर लौट रहे थे।

जब हमला हुआ तभी एड0 आराधना भार्गव ने पुलिस अधीक्षक छिन्दवाडा को फोन कर हमला करने वालो तथा गाडि़यों के नम्बर की जानकारी दी, मेरी बात भी कराई। लेकिन म0प्र0 पुलिस को 14 कि0मी0 की दूरी तय करने में ढ़ाई घंटा लगा। पुलिस द्वारा हत्या का प्रयास का मुकदमा दर्ज कराने के बजाय धारा 323 साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज किया।

घटना की जानकारी होते ही जन संसद की कोर कमेटी के नेता छिन्दवाड़ा पहुंचे, विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। गांव का दौरा किया और मुख्यमंत्री तथा पर्यावरण मंत्री को ज्ञापन सौंपा। डॉ0 बनवारीलाल शर्मा, मनोज त्यागी, विवेकानन्द माथने, अमरनाथ भाई तथा जयंत वर्मा ने मुख्यमंत्री से हमलावरो को गिरफ्तार कराने तथा किसानो की जमीने वापस करने की मांग की।

दो दिनों तक छिन्दवाड़ा जिला चिकित्सालय में मैंने अनशन किया, जिलाधीश द्वारा अदानी का काम रोके जाने तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा द्वारा हमलावरों को गिरफ्तार किए जाने के आश्‍वासन के बाद मैंने ग्रामवासियों के हाथो अनशन तोडा तथा हाथ के ईलाज के लिए 2 दिन हमीदिया अस्पताल में ईलाज कराकर पदयात्रा के लिए वापस छिन्दवाडा पहुंच गया।

28 से 31 मई चिलचिलाती धूप में पदयात्रा की, गांव में सभाऐ लेकर आंदोलन के मद्दो के बारे में ग्रामीणो को समझाया। यात्रा के छिन्दवाडा पहुंचने पर 5 हजार से अधिक किसान, जमीन बचाओ खेती बचाओ, रैली में शामिल हुए। डॉ0 बी0डी0 शर्मा, किशोर तिवारी तथा अन्य संगठनों के नेताओं ने रैली को सम्बोधित किया तथा मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जी को जिलाधीश के माध्यम से ज्ञापन सौंपा।

इस बीच देशभर में जनसंगठनो तथा समाजवादी संगठन द्वारा विरोध प्रदर्शन किये गये। आश्‍चर्यजनक तौर पर म0प्र0 के मुख्य दोनों दलों द्वारा हमले की घटना की न तो निन्दा की गई न ही अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमि0 तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई।

1986-87 में म0प्र0 बिजली बोर्ड (एमपीईबी) द्वारा 5 गांव के किसानो की जमीने ढेड हजार रूपए से 10 हजार प्रति एकड़ की दर पर जनहित की आड में अधिग्रहित की गई। किसानों के हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, निशुल्क बिजली देने तथा पूरे म0प्र0 के किसानों को लागत मुल्य पर बिजली उपलब्ध कराने के लिए 3 वर्ष में ताप विद्युत गृह निर्माण करने का वायदा तत्कालिन कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री दिग्विजसिंह द्वारा किया गया था। लेकिन न तो थर्मल पावर बना न ही किसान परिवार को रोजगार मिला। जमीने किसानो के पास ही रहीं। वे पूर्वत: खेती करते रहे। हाल ही में म0प्र0 सरकार द्वारा 13.50 लाख रूपए प्रति एकड़ की दर से जमीने अदानी पेंच पावर लिमि0 कम्पनी को बेच दी गई लेकिन किसानो ने कब्जा नही छोड़ा।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 6 नवम्बर 2010 को चौसरा में जनसुनवाई की गई। बड़ी संख्या में किसानो ने जनसुनवाई में पहुंचकर जमीन किसी कीमत पर न देने तथा कब्जा नही छोड़ने का ऐलान किया। कांग्रेस ने प्रभावित क्षेत्र से बाहर के किसानो को लाकर जनसुनवाई की खानापूर्ति करना चाही। लेकिन क्षेत्र के किसानों ने उन्हें खदेड़ दिया। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियो द्वारा जनसुनवाई अदानी कार्यालय में आयोजित किया जाना बतलता है कि जनसुनवाई महज नाटक थी। वैकल्पिक जनसुनवाई किसान संघर्ष समिति की पहल पर हयूमन राईटस लॉ नेटवर्क द्वारा आयोजित की गई। जिसमें अदानी के गुण्डो द्वारा शराब पीकर गडबडी फैलाने का प्रयास किया गया। अदानी कम्पनी के कार्यालय में शराब पिलाकर एसडीएम और एसडीओपी के उपस्थिति में गुण्डागर्दी कराई गई। महिलाओं और बच्चो ने कार्यालय में घुसकर शराब की बोतले फोड़ीं।

किसानो का आन्दोलन चलता रहा लेकिन प्रशासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नहीं की गई। जितने भी ज्ञापन सौंपे गए किसी भी स्तर पर कोई जवाब नहीं दिया गया। केवल अदानी कम्पनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोशिश की गई। मुझसे भी अदानी के एक उच्च अधिकारी ने अलग अलग तरीके से बिना समय लिए या जानकारी दिए मुलाकात की। एक बार मेरे भोपाल निवास पर अचानक अदानी कम्पनी का पीआरओ पहुंचा दूसरी बार जब मैं अपने मित्र के साथ एक होटल में खाना खा रहा था तब वही व्यक्ति फिर मिला। किसानों के साथ समझौता कराने के लिए 10 करोड़ रूपए देने की पेशकश की, मैंने उसे धमकाकर भगा दिया। शायद उसी दिन से अदानी ग्रूप ने हमला कराने की योजना बनानी शुरू कर दी होगी जिसका क्रियान्वयन 22 मई को हुआ।

अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट के लिए पानी पेंच व्यपवर्धन परियोजना के अन्तर्गत बन रहे दो बांधों से दिया जाने वाला है जबकि 31 गांवो की जमीनो का भूअर्जन जनहित में किसानों को सिंचाई का पानी देने के उद्देष्य से किया जा रहा है। क्षेत्र के किसानो को यह तथ्य हाल ही में तब पता चला जब भूअर्जन का विरोध कर रहे किसानों ने फर्जी एफडीआर पर माचागोरा बांध निर्माण का ठेका लेने वाले एस0के0 जैन का ठेका निरस्त कराया और वह ठेका अदानी ने अपनी हैदराबाद स्थित कम्पनी को दिलवा दिया। नई परिस्थिति में पेंच परियोजना में भूअर्जन का विरोध कर रहे किसानो तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट से अपनी जमीन वापस लेने की लडाई लड रहे किसानो ने एका बना लिया।

किसान आंदोलन के दौरान विभिन्न विशेषज्ञों ने आकर किसानों को जानकारी दी कि आसपास के लगभग डेढ सौ गांव ताप विद्युत गृह से निकलने वाली राखड, राखड बहाने वाले पानी तथा ऐसडेम से प्रभावित होंगे। इस जानकारी से आस पास के गांव में किसानो के बीच असंतोष फैलना शुरू हो गया।

इस बीच अदानी कम्पनी द्वारा बिना पर्यावरण मंजूरी के बाऊण्ड्रीवाल बना ली गई, बिना जमीनो पर कब्जा प्राप्त हुए जगह जगह पर गढ्ढे करा लिए गए। जिलाधीश द्वारा किसान नेताओ को काम बंद कराने का आष्वासन देने के बावजूद निर्माण कार्य जारी रखा गया। प्रशासन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पर्यावरण मंत्रालय चुप रहा। जबकि किसानों द्वारा पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को उनके कार्यालय में मेधा पाटकर एवं एनएपीएम के नेताओं द्वारा मेरी उपस्थिति में ज्ञापन देने के बाद कहा गया था कि अदानी प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मंजूरी नही दी गई है।

कांग्रेस और भाजपा मदद के लिए कम्पनी के साथ खडी हुई है। प्रभावित किसान लड़ रहे है।

किसानों के सामने तीन विकल्प हैं? किसानों की जमीने तीन वर्ष में थर्मल पावर स्टेशन बनाने के लिए जनहित में अधिग्रहित की गई थीं। अब जमीनें राज्य सरकार ने मुनाफा कमाने के लिए बेच दी है। जनहित में जमीने अधिग्रहित किया जाना तथा मुनाफे के लिए बेचे जाना अवैधानिक है। किसानों का कब्जा जमीनो पर कायम है। कानून के नजर में 1986 से पहले और बाद में आज तक जिसका कब्जा है वही जमीन का मालिक है। किसान न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते है? इस उम्मीद के साथ की जिस तरह दादरी में उच्च न्यायालय ने किसानो की जमीने वापस करने के निर्देश दिए वैसे ही निर्देश किसान न्यायालय के माध्यम से हासिल कर सकेंगे।

बिना पर्यावरण अनुमति के निर्माण कार्य शुरू हो गया और चल रहा है। दूसरे विकल्प के तौर पर किसान पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर किसी भी परिस्थिति में पावर प्लांट बनाने की अनुमति न देने तथा अब तक किए गए निर्माण कार्य को ध्वस्त करने का निर्देश मंत्री जयराम रमेश से कराने की कोषिश कर सकते है ? इस उम्मीद के साथ कि मंत्रालय में लेनदेन के बाद अनुमति प्रदान नही की जायेगी। किसानों के सामने तीसरा विकल्प है कि वे स्वंय आगे बढ़कर अब तक किए गए निर्माण कार्यों को खुद ध्वस्त कर दें तथा कुछ दिनो बाद बोनी के समय अपने खेत पर जाकर बोनी करने की कोषिश करे ऐसी स्थिति में भीषण टकराव हो सकता है। अदानी के गुण्डो द्वारा या पुलिस द्वारा किसानो को लाठी या गोली की दम पर रोकने की कोषिश की जा सकती है। बड़े पैमाने पर किसानो पर फर्जी मुकदमे लगाये जा सकते है तथा अदानी का मददगार पुलिस प्रशासन किसान नेताओ की गिरफ्तारी भी कर सकता है।

किसान यह देखकर अत्यंत दुखी है कि उन्होंने जिन्हें सरपंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, विधायक अथवा सांसद बनाया उनमें से कोई भी जनप्रतिनिधि उन्हें साथ देने को तैयार नहीं है। वे यह समझने को तैयार नही कि जनप्रतिनिधियो का अपना कोई विचार नही होता वे पार्टी के विचार से गुलाम की तरह बंधे रहते है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तथा उनकी केन्द्र और राज्य सरकारे प्रोजेक्ट बनाने के पक्ष में है। इस कारण जनप्रतिनिधि भी अदानी के साथ खुलकर खडे हुए है।

अदानी ने क्षेत्र के सभी दबंग परिवारों और नेताओं को प्रोजेक्ट के ठेकों से जोडकर उनके आर्थिक स्वार्थ पैदा कर दिए है। यही कारण है कि गांव के अधिकतर किसानों तथा मजदूरों के पावर के प्रोजेक्ट के विरोध में होने के बावजूद दबंगाई के आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं पड़ रही है। लेकिन 31 मई की छिन्दवाडा खेती बचाओ जमीन बचाओ पदयात्रा में किसानों ने बडी संख्या में शामिल होकर यह तो साफ कर दिया है कि वे दबंगाई से डरकर घर बैठने वाले नहीं है। 31 मई की सभा के दौरान किसानो ने हाथ खडा कर अपनी जमीनों पर खेती करने तथा अदानी पावर प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग को लेकर हजारो की संख्या में जेल भरो चलाने का ऐलान किया है।

अब तक सरकार द्वारा किसानो के नेतृत्व से बातचीत का कोई सिलसिला शुरू नहीं किया गया है। जबकि छिन्दवाड़ा के पडौस में मुलताई किसान आंदोलन में 24 किसानों के शहीद हो जाने तथा 250 किसानो को गोली लगने के बाद जब न्यायिक जॉच आयोग ने रिपोर्ट सौपी थी तब स्पष्ट तौर पर कहा था कि संवादहीनता के कारण ही गोली चालन की परिस्थिति बनी। लेकिन लगता है म0प्र0 सरकार मुलताई से सबक सीखने को तैयार नही है तथा सरकार की मंशा दमन करने की है।

उ0प्र0 के किसान आंदोलन की स्थिति से अलग छिन्दवाडा के चौसरा क्षेत्र में चल रहे किसान आन्दोलन को कांग्रेस विपक्ष के तौर पर साथ देने की बजाय कुचलने के लिए नेताओं पर हमला तक करा रहा है। उ0प्र0 में कांग्रेस और भाजपा दोनों किसानों के सवालों को उठा रहे है। कांग्रेस की ओर से राहुल बाबा तथा दिग्विजयसिंह मैदान में डटे हुए है। भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह जगह-जगह आंदोलनों को समर्थन देने पहुंच रहे है। तथा कलराज मिश्र किसान यात्रा निकाल रहे है। छिन्दवाडा में दोनों पार्टियों द्वारा अदानी का साथ देने से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि दोनों पार्टियों की भूअधिग्रहण तथा औद्योगिकरण के सम्बन्ध में कोई एक राष्ट्रीय नीति नहीं है। दोनों पार्टियां राजनीतिक लाभ लेने के लिए उ0प्र0 में किसान आंदोलन का समर्थन कर रही हैं। समाजवादी पार्टी जरूर उ0प्र0 से लेकर म0प्र0 तक किसानो के साथ खडी दिखलाई पडती है।

अदानी कम्पनी के साथ किसानों का भीषण टकराव मुझे सामने दिखलाई पड रहा है जिन लोगो ने मुझ पर हमला किया उनका मनोबल राजनैतिक, प्रशासनिक एवं पुलिसिया संरक्षण के चलते बढ़ा हुआ है वे फिर से कभी भी हमला कर मेरी जान ले सकते है। पूर्व में मुझ पर हुए जानलेवा हमले के बाद राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा मुहैया कराई गई थी जो ढाई वर्ष पहले हटा ली गई।

 

कहानी/क्षुद्रता की प्रतियोगिया

गंगानन्द झा

श्री विक्रमादित्य झा और प्रो. जीवनलाल मिश्र मिथिला के निम्न-मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से थे, अपने अपने परिवारों के पहली पीढ़ी तथा तथा अभी तक के एकमात्र सदस्य, जो परम्परागत पृष्ठभूमि से उभड़कर आधुनिकता के परिवेश में जगह बनाने के अवसर के लाभ ले रहे थे। श्री विक्रमादित्य झा (बैंक के अधिकारी) अपनी भतीजी के विवाह के लिए शर्मा जी (क़ॉलेज के प्रोफेसर) के बेटे के प्रति इच्छुक थे। हम कई एक, जो उभय पक्ष के शुभचिन्तक समझे जाते थे, विक्रमादित्यजी के साथ शर्मा जी के आवास पर गए और उनकी भतीजी के लिए मिश्रजी के बेटे के सम्बन्ध का औपचारिक प्रस्ताव रखा। मिश्रजी ने सहजता के साथ अपनी सहर्ष रजामन्दी जाहिर की। लेन-देन की बात पर मिश्रजी ने बड़ी उदारता और सहजता से कहा कि मेरी कोई भी माँग नहीं है। हम सबके लिए स्वस्तिकर स्थिति बन गई। विक्रमादित्य जी ने तुरत ठण्डा पेय लाकर इस प्रगति को औपचारिक मोहर लगाई। इस तरह विवाह- प्रसंग की शुरुआत हुई।

कुछ दिन बीते। विक्रमादित्य झा अपने एक सहकर्मी के साथ मिश्रजी के आवास पर आए और मिश्रजी से विवाह समारोह के आयोजन के खाका तय करने की बात होने लगी। मिश्रजी ने अपनी उदारता जारी रखते हुए कहा, “मुझे तो कुछ भी नहीं चाहिए; बस विवाह के मद में मैं व्यय करने में असमर्थ हूँ, तीन बेटियों की शादियों में तो खर्च किया ही, अब बेटे की शादी में भी मैं ही खर्च करूँ !” विक्रमादित्यजी ने कहा, —–‘’एकदम वाजिब बात है।‘’

मिश्रजी ने बात आगे बढ़ाई, —“लड़के की माँ का कहना है कि अपनी तीन बेटियों को हमने दस दस तोले सोने के जेवर दिए हैं, तो हमारी बहु को उतने के जेवर तो होने ही चाहिए।‘’

विक्रमादित्य जी ने कहा ——‘’उनकी बात वाजिब है।‘’

फिर अन्त में मिश्रजी ने कहा कि इसके अलावे लड़का ठाने हुए है कि विवाह में उसे एक मोटरसायकिल अवश्य चाहिए। श्री विक्रमादित्य जी ने कहा कि यह भी ठीक ही है, लड़के की भी तो कुछ साध होती है। फिर सामान्य चाय-पान के बाद पुनः मिलने की बात पर सभा विसर्जित हुई।

यह बातें हमें कुछ दिनों के बाद मालूम हुई, जब मिश्रजी ने शिकायत करते हुए कहा कि वे परेशान हैं, विक्रमादित्य जी ने फिर सम्पर्क ही नहीं किया। हमसे मिश्रजी की अपेक्षा थी कि चूँकि कथा का सूत्रपात करने में हमारा योगदान था, इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम विक्रमादित्य जी से सम्पर्क करें और उन्हें प्रेरित करें कि वे बात आगे बढ़ावें। विक्रमादित्य जी से भेंट होने पर उन्हौंने व्यस्तता का हवाला दिया। फिर कुछ दिन और भी बीत गए।

मिश्रजी की बेचैनी बढ़ रही थी। विक्रमादित्य जी से हमने तगादा किया; विक्रमादित्य बाबू ने अब कहा,——-‘’मिश्रजी की माँग कुल जितने की होती है उसमें कोई औचित्य आपको दिखता है ?’’ उनका लड़का बी.ए. में पढ़ता है. इस क्लास के वर की कीमत दस हजार रुपए होती है अगर कोई पैतृक सम्पत्ति न हो। मिश्रजी को दस बीघा खेत है. उनके इस लड़के के हिस्से में ढाई बीघा आएगा। ढाई बीघा खेतवाला अनपढ़ वर दस हजार में मिलेगा। मिश्रजी प्रोफेसर हैं, यद्यपि संस्कृत के, तो भी चलो, प्रोफेसर के बेटे के कारण दस हजार और होगा। अर्थात् कुल तीस हजार। जबकि उनकी कल माँग पचास हजार से भी अधिक की होती है। बाजार में जिसका जो दाम हो उतना ही दिया जाएगा न. मैं परवल खरीदूँगा तो परवल की कीमत दूँगा, सहजन खरीदूँगा तो सहजन की ; सहजन खरीदूँ तो परवल की कीमत क्यों दूँ ?आप ही बताइए, मैं गलत कहता हूँ क्या ? आप को भी तो बेटी की शादी करनी होगी, आप कितना देंगे और क्या आप ऐसा लड़का दामाद करेंगे?’’ हमारे लिए एक अभिनव अनुभव था यह तर्क।

हमने उनसे कहा कि आप मिश्रजी से बात कर लीजिए। पर उनकी मुलाकात नहीं होती । मिश्रजी भी बेचैन। जनता को नैतिक कर्तव्य याद दिलाते कि जो लोग कथा के सूत्रपात में सक्रिय थे, उन्हें गतिरोध दूर करना चाहिए ; उनकी भर्त्सना करते। जब मैंने मिश्रजी से कहा कि चूँकि सम्बन्ध उन्हें निबाहना है, इसलिए उन्हें सम्बन्ध करने या न करने के बारे में स्वयम् स्वतन्त्र रुप से निर्णय लेना चाहिए, तो वे प्रसन्न नहीं हुए। उनका मानना था कि जनता का नैतिक दायित्व है कि इस सम्बन्ध को परिणति तक पँहुचाए, क्येंकि जनता ने सूत्रपात करने में सक्रिय योगदान किया था। जनता की निरपेक्षता अनैतिक लग रही थी उन्हें। पर विक्रमादित्य जी भी अपनी जगह पर स्थिर, अडिग। मजे की बात थी कि कोई भी पक्ष सम्बन्ध भंग करने की बात नहीं करता। हममें से ही कुछ को लगने लगा था कि मिश्रजी यह सम्बन्ध नहीं करेंगे, विशेषकर परवल और सहजन की उपमा की खबर मिश्रजी को हो जाने की बात हमें मालूम हुई। गुत्थी बहुत बाद में सुलझी जब मिश्रजी ने खुलासा किया। वैवाहिक सम्बन्ध का औपचारिक प्रस्ताव मिलने के काफी पहले से विक्रमादित्य जी से परिचय और मेलजोल था। विक्रमादित्यजी जब भी मिलते, आग्रहपूर्वक खातिर करते, कुछ न कुछ खिलाते-पिलाते। कई एक बार मिश्रजी को अपने घर पर निमन्त्रण दे चुके थे। मिश्रजी की धारणा थी कि जो व्यक्ति परायों पर इतना खर्च करता है, वह कुटुम्ब के लिए कृपण हो नहीं सकता। फिर उनको अपने कौशल पर विश्वास और भरोसा धा कि आनुषंगिक तौर पर वे प्राप्ति करते रह पाएँगे।

फिर सबों को चौंकाते हुए विवाह के निमन्त्रण-पत्र हस्तगत हुए। कौतूहल से भरे हुए थे हम सब। यज्ञ सम्पन्न पर वे लोग लौटे तब वृतान्त मालूम हुआ। हुआ यह था कि ग्रीष्मावकाश के लिए कॉलेज बन्द होने के दो दिन पहले झा जी ने मिश्रजी से भेंट की तथा अपने साथ अपने आवास पर ले गए अपनी भतीजी से प्रणाम करवाया तथा प्रेम से भोजन कराया। उन्हौंने तय किया कि लड़की के पिता से भेंट करके बात को अन्तिम रुप से तय कर लिया जाए। उल्लेखनीय है कि वे दोनों ही दरभंगा के बासिन्दे थे, वे दरभंगा आए, यहाँ पर लड़की के पिता की उपस्थिति में सारी बातें सचमुच तय हो गई। विक्रमादित्य जी ने प्रस्ताव दिया कि अभी सुरेश विद्यार्थी हैं, बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करें, मोटर सायकिल उन्हें अवश्य दिया जाएगा। अभी मोटरसायकिल लेने से पढ़ाई में बाधा होगी, फिर पेट्रोल का खर्च के बारे भी तो सोचना चाहिए। जेवर के विकल्प में तय हुआ कि लड़के-लड़की के संयुक्त खाते में पच्चीस हजार रुपए फिक्स्ड डिपोजिट कर दिए जाएँगे, जब तक पढ़ाई पूरी होगी, रकम पचास हजार की हो जाएगी। विवाह के व्यय के मद में मिश्रजी को दस हजार रुपए दे दिए गए। यज्ञ आयोजित हुआ, सम्पन्न भी हो गया। मिश्रजी बैंक का फॉर्म ले गए थे कि जमा की जानेवाली रकम ले लें। पर विक्रमादित्य बाबू ने एक तकनीकी दिक्कत बताई. संयुक्त खाते का खुलना विवाह सम्पन्न होने के पहले तो हो नहीं सकता था; इसलिए इसे स्थगित करना मानना पड़ा।

अब प्रहसन का दूसरा अंक प्रारम्भ हुआ। बैंक के खाता खोलने के लिए मिश्रजी जितने ही आतुर हो रहे थे, विक्रमादित्य जी उतने ही निश्चिन्त। मिश्रजी ने जनता को उसकार् कत्तव्य याद दिलाने का अभियान छेड़ा हुआ था; विक्रमादित्य जी का कहना था कि विवाह हो गया, अब ये सारी बातें अप्रासंगिक हैं।’ विवाह जैसे आयाजन में झूठ-फूस तो बोलना ही पड़ता है। अगर सारी बातें मान ही ली जानी हों तो फिर और घर की और लड़कियों की शादियाँ कैसे हों।’ कुछ उसी अन्दाज में जैसे आधुनिक लोग कहते हैं, —–Everything is fair in love and war.

अन्ततोगत्वा विक्रमादित्य जी जनता को आश्वस्त करते हुए रुपए जमा करने को सहमत हुए। पर एक दिक्कत पेश आई। उन्हौंने कहा कि मिश्रजी चार हजार रुपए दें तो पचीस हजार की रकम जमा होगी। अपनी बात की व्याख्या करते हुए उन्हौंने बताया कि विवाह के आयोजन के कुछ दिन पूर्व मिश्रजी ने अपने बेटे को विक्रमादित्य जी के नाम एक पत्र देकर भेजा कि लिस्ट के अनुसार सामग्री खरीदवा दें। मिश्रजी ने आश्वासन दिया था कि कीमत की रकम वे विक्रमादित्य जी को बाद में दे देंगे। वह रकम चार हजार की थी। विक्रमादित्यजी ने वह पत्र सँभाल कर रखा हुआ था, जिसे अब प्रमाण के रुप में पेश किया जा रहा था। मिश्रजी को आपत्ति थी। दो पृथक् बातों को मिलाया जाना अस्वीकार्य था उन्हें। फिक्स्ड डिपोजिट में पचीस हजार जमा कर दिए जाएँ, और फिर शर्मा जी चार हजार रुपए देंगे। जनता को अंश-दान करने का सुनहरा अवसर अभी भी था। आखिर काफी जिद्दो-जेहद के बाद इस प्रकरण की शुभ समाप्ति हुई। मिश्रजी ने चार हजार और विक्रमादित्य जी ने इक्कीस हजार रुपए एक साथ मिलाए और वर-बधू का संयुक्त खाता खुल गया।

किन्तु कहानी अभी खत्म नहीं हुई। अब विक्रमादित्यजी का आग्रह लड़की की विदाई के लिए था। पर मिश्रजी का कहना था कि द्विरागमन सम्पन्न हुए बगैर विदाई का सवाल नहीं उठता। विक्रमादित्यजी के अनुसार द्विरागमन की रस्म विवाह के साथ ही सम्पन्न हो चुकी थी जब कि मिश्रजी का कहना था कि सारा पावना बाकी था। करार था कि द्विरागमन के अवसर पर एक पारम्परिक वस्तुओं के साथ एक भैंस दी जाएगी। विक्रमादित्यजी का कहना था कि मिश्रजी के दरवाजे पर एक बकरी तक नहीं है, वे भैंस केसे पाल पाएँगे।

गतिरोध बना रहा; जनता की अदालत में बयानबाजी चलती रही। मिश्रजी धमकी देते कि बेटे का दूसरा विवाह कराएँगे। विक्रमादित्य जी कहते कि लड़का तो हमारे घर आता ही रहता है, दूसरा विवाह कैसे कराएँगे, फिर हम पुलिस में दहेज की माँग का मामला भी कर देंगे। मिश्रजी विदाई नहीं करा कर अपने घर का व्यय-भार कम कर रहे हैं। शादी के बाद बेटी के ऊपर का खर्च बचता है, पर यहाँ तो बेटी के साथ दामाद का और अब नाती का भी बोझ ढोना पड़ रहा है। हमारी तो जग-हँसाई हो गई, गाँव में लोग कहते हैं कि कैसी शादी हुई है कि लड़की मायके में ही पड़ी हुई है, लोगों को तो इसपर भी शक होने लगा है कि हमारे समधी प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर कहीं ऐसा करता है ! नेरी भतीजी कहती है, —–‘’काका, जब बूढ़ा असमर्थ हो जाएगा तब तो मैं ही सब सँभालूँगी . तब देख लूँगी।‘’

इसके बाद की कहानी हम आधिकारिक तौर पर नहीं कह सकते, क्योंकि मिश्रजी सेवा-निवृत हो गए और विक्रमादित्य झा जी का तबादला हो गया। निर्भर-योग्य सूत्रों के हवाले से ज्ञात हुआ है कि मिश्रजी की बहू, जो श्री विक्रमादित्य झा की भतीजी है, सासु, ससुर और पति के साथ ‘दूधों नहाओ, पूतों फलो’ वाली गृहस्थी कर रही है।

पर्यावरण पर पाँच कविताएँ

1.

पेड़

फूलों को मत तोड़ो

छिन जायेगी मेरी ममता

हरियाली को मत हरो

हो जायेंगे मेरे चेहरे स्याह

मेरी बाहों को मत काटो

बन जाऊँगा मैं अपंग

कहने दो बाबा को

नीम तले कथा-कहानी

झूलने दो अमराई में

बच्चों को झूला

मत छांटो मेरे सपने

मेरी खुशियाँ लुट जायेंगी।

2.

नदियाँ

हजार-हजार

दु:ख उठाकर

जन्म लिया है मैंने

फिर भी औरों की तरह

मेरी सांसों की डोर भी

कच्चे महीन धागे से बंधी है

लेकिन

इसे कौन समझाए इंसान को

जिसने बना दिया है

मुझे एक कूड़ादान।

3.

हवा

मैं थी

अल्हड़-अलमस्त

विचरती थी

स्वछंद

फिरती थी

कभी वन-उपवन में

तो कभी लताकुंज में

मेरे स्पर्श से

नाचते थे मोर

विहंसते थे खेत-खलिहान

किन्तु

इन मानवों ने

कर दिया कलुषित मुझे

अब नहीं आते वसंत-बहार

खो गई है

मौसम की खुशबू भी।

4.

पहाड़

चाहता था

मैं भी जीना स्वछंद

थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी

पर अचानक!

किसी ने कर दिया

मुझे निर्वस्त्र

तो किसी ने खल्वाट

तब से चल रहा है

सिलसिला यह अनवरत

और इस तरह

होते जा रहे हैं

मेरे जीवन के रंग, बदरंग

 

5.

इंसान

आंखें बंद हैं

कान भी बंद है

और मर रहे हैं चुपचाप

पेड़, पहाड़, नदी और हवा

बस

आनंद ही आनंद है।

 

-सतीश सिंह

क्या वाकई मर गया ओसामा!

लिमटी खरे

अमेरिका को दुनिया का चौधरी यूं ही नहीं कहा जाता है, अमेरिका का हर कदम बहुत ही सोचा समझा और दूरंदेशी वाला होता है। कहते हैं कि अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति जब भी विदेश दौरे पर होते हैं तो उनके साथ उनका लाव लश्कर पहले ही जाकर स्थिति को भांपकर उनके मुताबिक सुरक्षा तंत्र मजबूत करता है। इतना ही नहीं महामहिम की विष्ठा (मल मूत्र) तक सुखाकर उनके सुरक्षा कर्मी अपने साथ ले जाते हैं, ताकि महामहिम के बारे में ज्यादा पता साजी न की जा सके। अमेरिका ने कहा कि ओसामा मारा गया, उसे समुद्र में कहीं दफन कर दिया गया, उधर ओसामा की कथित बेवा का कहना है कि ओसामा को जिंदा ही पकड़ा गया था। हो सकता है अमेरिका ने ओसामा को जिन्दा ही पकड़ लिया हो और फिर उसे पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाया गया हो, बाद में अगर ओसामा को मार दिया जाता है या मर भी जाता है तो विश्व के सामने यही कहानी सामने आएगी कि ओसामा को तो एटमाबाद में ही मार गिराया गया था।

दुनिया भर में आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन की दहशत अब समाप्त हो चुकी है। दुनिया के चैधरी अमेरिका का दावा है कि ओसामा को एटमाबाद में मार गिराया गया है। पाकिस्तान में ओसामा जिस स्थान पर निवासरत था वह पाकिस्तान के एटमाबाद का हाई सिक्यूरिटी जोन है। कोई परिवार एक घर में बिना बिजली पानी फोन कनेक्शन के सालों साल से रह रहा हो और उस देश या उस शहर के निवासियों आस पड़ोस के लोगों को पता भी न चले यह बात गले नहीं उतरती है। हाई सिक्यूरिटी जोन में वैसे भी हर घर पर खुफिया एजेंसी की नजर होती है। बावजूद इसके दहशतगर्दी के सरगना ओसामा बिन लादेन ने वहां सालों साल गुजार दिए।

एक घर को चलाने के लिए पानी और राशन की आवश्यक्ता होती है। कोई तो होगा जो इस घर में पानी और राशन पहुंचाता होगा। मोहल्ले का बनिया हर घर के बारे में जानता है। अगर आप कहीं जाएं और किसी का पता न मिले तो मोहल्ले के धोबी, मोची, परचून की दुकान, पान वाले से पता पूछा जा सकता है। अमूमन होता भी यही है कि एकदम सही और सटीक पता ये ही बता पाते हैं। क्या एटमाबाद में ओसामा के बारे में मोहल्ले के इन जासूसों को पता नहीं होगा?

अगर यह संभव नहीं है तो फिर अमेरिका ने ओसामा का पता आखिर कैसे निकाल लिया। दूसरी सबसे आपत्तिजनक बात तो यह है कि अमेरिका ने पाकिस्तान में जाकर इस तरह की कार्यवाही की। यह तो वही बात हुई कि कोई बाहरी आदमी आपके घर के अंदर आकर धमाल मचाकर किसी को पकड़कर साथ ले जाए और आपको पता भी न चले। यह तो सरासर गुण्डागर्दी हुई। वैसे अमेरिका की कार्यवाही एक तरह से सही ही मानी जाएगी, क्योंकि ओसामा ने कहर ही बरपा रखा था दुनिया भर में। आज पाकिस्तान हाथ मलकर ही रह गया है। वह अमेरिका के सामने कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान की नापाक हरकतों के कारण दुनिया के अन्य देश उसकी मदद को आगे नहीं आ रहे हैं।

इस मामले में सबसे अधिक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि पाकिस्तान के साथ अमेरिका ने ‘जबरा मारे रोन न दे‘ की कहावत चरितार्थ की है। अर्थात एक जोरदार झन्नाटेदार झापड़ रसीद करने के बाद ताकीद किया कि रोना नहीं, वरना और पिटोगे। अब पाकिस्तान अंदर ही अंदर कसमसाकर रह गया है। दूसरी तरफ आर्थिक और सैन्य मदद उपलब्ध कराकर अमेरिका पाकिस्तान की पीठ पर हाथ भी फेरता जा रहा है, जिसकी विश्व भर में निंदा होना चाहिए।

देखा जाए तो आज विश्व की महाशक्ति बनने के लिए अमेरिका और चीन दोनों ही में गलाकाट प्रतिस्पर्धा जारी है। यह बात भी उतनी ही सच है जितनी की दिन और रात कि दोनों ही देशों को भारत के समर्थन की दरकार है। इस बात को पता नहीं भारत के नीति निर्धारक समझ क्यों नहीं पा रहे हैं या फिर समझ कर भी समझना नहीं चाह रहे हैं। एक तरफ अमेरिका अपना दवाब भारत पर बना रहा है। विकीलिक्स के खुलासे मंे साफ हो गया है कि भारत गणराज्य में सरकार किसी की भी बने पर मंत्रीपद का फरमान अमेरिका के द्वारा ही दिया जाता है। अमेरिका की पसंद से ही देश में लाल बत्ती का निर्धारण होता है।

वहीं दूसरी ओर चीन द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के मानिंद देश की अर्थ व्यवस्था में सेंध लगाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। सस्ते और गैर टिकाऊ चीनी उत्पादों की धूम इस समय देश भर में है। चायनीज सामान का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। चीन ने सबसे पहले अपनी सोची समझी रणनीति के तहत कुटीर उद्योग पर हलमा कर उसके हाथ काट दिए हैं। आज दिए, खिलोने, झालर, इलेक्ट्रानिक सामान यहां तक कि जूते चप्पल भी चायनीज आ गए हैं।

बहरहाल अमेरिका को दुनिया का चैधरी यूं ही नहीं कहा जाता है, अमेरिका का हर कदम और फैसला बहुत ही सोचा समझा और दूरंदेशी वाला होता है। कहते हैं अमरिका अपनी चालें इस कदर चलता है कि किसी को आने वाले कदमों की आहट तक नहीं मिल पाती है। कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति जब भी विदेश दौरे पर होते हैं तो उनके साथ उनका लाव लश्कर पहले ही जाकर स्थिति को भांपकर उनके मुताबिक सुरक्षा तंत्र मजबूत करता है। इतना ही नहीं महामहिम की विष्ठा (मल मूत्र) तक सुखाकर उनके सुरक्षा कर्मी अपने साथ ले जाते हैं, ताकि महामहिम के स्वास्थ्य आदि के बारे मंे ज्यादा मालुमात न की जा सके।

लादेन को पकड़ने की योजना को गुप्त तौर पर अंजाम दिया गया। यहां तक कि पाकिस्तान की सरजमीं पर हुए इस आपरेशन की भनक पाकिस्तान को भी नहीं लग सकी। अमेरिका ने कहा कि ओसामा मारा गया, अमेरिका का एक हेलीकाप्टर इसमें खराब हो गया। अमरिका ने उस हेलीकाप्टर को नष्ट कर दिया। ओसामा के पास क्या क्या मिला इस बारे में भी कोई ठोस बयान अब तक नहीं आया है।

अमरिका का कहना है कि ओसामा को समुद्र में कहीं दफन कर दिया गया, क्योंकि आशंका थी कि अगर उसे दफनाया गया तो लोग उसकी मझार पर जाकर सजदा करना आरंभ कर देंगे। उधर ओसामा की कथित बेवा का कहना है कि ओसामा को जिंदा ही पकड़ा गया था। हो सकता है अमेरिका ने ओसामा को जिन्दा ही पकड़ लिया हो और फिर उसे पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाया गया हो, बाद में अगर ओसामा को मार दिया जाता है या मर भी जाता है तो विश्व के सामने यही कहानी सामने आएगी कि ओसामा को तो एटमाबाद में ही मार गिराया गया था।

अमेरिका कुछ भी कर सकता है। एक किंवदंती के मुताबिक अमरिका में ‘‘एरिया 65‘‘ नामक एक स्थान है, जहां आम नागरिक नहीं पहुंच सकते हैं। वहां काम करने वालों को विशेष विमान हवाई पट्टी से उठाकर एरिया 65 तक ले जाते हैं और साल में एक बार मिलने वाली छुट्टी में वे घर उसी तरह गुमनाम जगह से वापस आते हैं। इस स्थान के बारे में अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों और हवाई जहाज के पायलट्स को ही पता होता है।

इस जगह काम करने वालों को साल भर न तो अपने परिवार से बात करने मिलती है और ना ही वे उस स्थान, वहां के क्रिया कलाप के बारे में ही किसी से कुछ कह सकते हैं। वहां केमरा ले जाना भी मना है। कहते हैं कि एक कर्मचारी ने सालों पहले वहां अपने साथ छुपाकर केमरा ले जाया गया था, अपनी सेवानिवृत्ति के उपरांत उसने वहां खीचीं फोटो को इंटरनेट पर डाल दिया। इसके बाद उसी अधार पर ‘‘इंडिपेंस डे‘‘ नामक चलचित बनाया था वालीवुड ने। जिसमें एलियन्स पर अमरीकी शोध को दर्शाया गया था।

इसी आधार पर यह आशंका उपजती है कि हो सकता है अमेरिका ने आतंक के पर्याय ओसामा बिन लादेन को जिंदा पकड़कर ले जाया गया हो, फिर उससे गहरी पूछताछ की जा रही हो। जो पटकथा इस पूरे नाटक के लेखक ने लिखी होगी वही पटकथा अमेरिका द्वारा दुनिया के सामने लाई जा रही है। हो सकता है ओसामा का समुद्र में अंतिम संस्कार इसी का एक हिस्सा हो। वास्तव में अमेरिका द्वारा ओसामा से गहन पूछताछ जारी हो।

अमेरिका ओसामा को इस कदर जल्दबाजी में मार दे यह बात गले नहीं उतरती। कभी कहा गया कि ओसामा निहत्था था, अगर यह सच है तो अमेरिका को उसे जिन्दा पकड़ लिए जाने की आशंकाएं और बलवती होती हैं। अगर यह बात उजागर कर दी जाती कि उसे जिन्दा पकड़ लिया गया है तो निश्चिित तौर पर जेहादी संगठनों की नालें अपने आका ओसामा को छुड़ाने अमेरिका की ओर मुड़ जाती। अगर वाकई ओसामा बिन लादेन को बराक ओबामा की टीम ने मार गिराया है तो फिर ओसामा के फोटो जारी करने उसे समुद्र में दफनाए जाने के चित्र आखिर सार्वजनिक क्यों नहीं किए जा रहे हैं?

हाल ही में खबर मिली है कि सीआईए की एक टीम ने एटमाबाद में अलकायदा क सरगना ओसामा बिन लादेन की हवेली की गहन तलाशी ली है। पाकिस्तान के अखबार ‘डान‘ के अनुसार सीआईए की टीम हेलीकाप्टर से वहां पहुंची और एटमाबाद में ओसामा की हवेली की छः घंटे से अधिक समय तक तलाशी ली। कहा जा रहा है कि इसमें एक तहखाना भी मिला है जिसमें भविष्य के हमले की योजनाओं के बारे में पता लगाया जा रहा है। ओसामा के कथित तौर पर मरने के लगभग एक माह बाद दुबारा अमेरिका की दिलचस्पी एटमाबाद की ओसामा की हवेली में होना आश्चर्यजनक है। हो सकता है ओसामा के साथ पूछताछ में सीआईए के हाथ कुछ एसे संकेत लगे हों जिससे उसे दुबारा ओसामा की हवेली खंगालना जरूरी लग रहा हो।

9/11 में वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ। इसमें कितनी जाने गईं, अमेरिका द्वारा इसकी सूची तक जारी नहीं की गई। यह है अमेरिका का अपना नेटवर्क और सिस्टम। घर के अंदर क्या हो रहा है यह बात अमेरिका द्वारा कतई सार्वजनिक नहीं की जाती है। यही हादसा अगर किसी और देश में हुआ होता तो मुआवजे के लोभ में मारे गए लोगों की तादाद से तीन चार गुना लोगों की फेहरिस्त जारी हो गई होती, इतना ही नहीं मीडिया भी चीख पुकार कर सूची जारी करने की बात पर आमदा हो जाता। पर अमेरिका का मीडिया देशभक्त है, उसे अपने देश से प्यार है, सो अमेरिकन मीडिया ने सरकार की नीति का ही अनुसरण किया। आखिर क्यों न करे, अमेरिकन सरकार में बैठे लोग भला भारत के जनसेवकों के मानिंद अपनी शाखाओं को थोडे़ ही कुतर कर खा रहे हैं।

ओसामा बिन लादेन ने भारत में भी दहशतगर्द चेहरों को तबाही मचाने पाबंद किया था, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए भारत सहित समूची दुनिया को चाहिए कि वह अमेरिका पर यह दबाव बनाए कि ओसामा के मारे जाने और उसे समुद्र में दफनाए जाने के चित्र और वीडियो जारी करे ताकि दुनिया भर में यह संदेश जा सके कि मानवता के खिलाफ दहशतगर्दी फैलाने के लिए जिम्मेवार लोगों का हश्र कितना भयानक होता है।

एक तिहाई महिला आरक्षण की बहस कब तक चलेगी?

एक तिहाई महिला आरक्षण की भारतीय समाज में महिला के इतिहास के किसी भी दौर की तुलना में वर्तमान जयादा प्रभावशाली मुद्रा में नजर आ रही है। नि:संदेश हम यह मानसिक रूप से महिला आरक्षण और उसकी नेतृत्व क्षमता को बेहतर मान कर जीवन यापन करने लगे है, लेकिन यह हमारी विडंबनाएं थी, है एवं रहेगी। स्वतंत्रता से पुर्व सावित्रीबाई फुले, छात्रपति शिवाजी महाराज, डाँं बाबा साहेब अंबेडकर, साहु महाराज को सामने रखकर राजनीति करने वाले महाराष्ट्र राज्य की सोच ऐसा लगता है कि किनारों को तोड़ने को राजी नहीं है। यहां महिला राजनेता तो हैं लेकिन कमान थमाने के मूड कोई अगुवा नहीं दिखाता।

भारतीय संविधान में पुरूषों और महिलाओं को समान स्थान प्रदान किया गया है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्तर की दृष्टि से महिलाओं को अभी भी पुरूषो पीछे है। यह कहना अशयोक्ति नहीं होगी कि महिलाएं अभी भी विकास व राजनीतिक सहभागिता से कोसों दूर है। भारतीय समाज में महिला आज भी कमजोर वर्गों में शामिल है। राजनीतिक सहभागिता कि क्षेत्र में पुरूष और महिलाओं की स्थिति में काफी अंतर दिखता है। इस अंतर को कम करने के लिए प्रति वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूपमें मनाया जाता है। इस अवसर को वृहत रूप देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2000 में विश्व महिला वर्ष की घोषणा की, किन्तु भारत ने इसे और अधिक महत्व देते हुए वर्ष 2001 को राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय किया। इस दरम्यान शासकीय एवं अशासकीय स्तर पर महिलाओं को मजबूत एवं अधिकार संपन्न बनाने के लिए अनेको योजनाएं बनाई है।

स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण : सर्व प्रथम 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति को श्रेय जाता है। पंचायती राज योजना से संबंधित मेहता समिति ने अपना प्रतिवेदन नवम्बर 1957 में प्रस्तुत किया। इस समिति ने महिलाओं व ब्रच्चो से संबंधित कार्यक्रमों कि्रयान्वयन को देखने के लिए जिला परिषद मे दो महिलाओं के समावेश की अनुशंसा की थी। “भारत में महिलाओं की स्थिति’’ विषय पर अध्ययन करने के लिए गठित समिति ने 1974 में अनुसंशा की थी कि ऐसे पंचायतें बनाई जाय, जिसमें केवल महिलाएं ही हो। 1978 में अशोक मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा अनुसंशा की गई कि जिन दो महिलाओं को सर्वाधिक मत प्राप्त हो उसे जिला परिषद का सदस्य बनाया जाए। कर्नाटक पंचायत अधिनियम में महिलाओं के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। वैसा ही हिमाचल प्रदेश के पंचायत अधिनियम में व्यवस्था थी। “नॅश्नल पर्सपेक्टिव प्लान फॉर द विमेन 1988’’ ने ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक 30 प्रतिशत सीटों के आरक्षण की अनुशंसा की। मध्यप्रदेश में 1990 के पंचायत अधिनियम में ग्राम पंचायत में महिलाओं के लिए 20 प्रतिशत, जनपद व जिला पंचायत में 10 प्रतिशत का प्रावधान था। महाराष्ट पंचायत अधिनियम में 30 प्रतिशत एवं उड़ीसा पंचायत अधिनियम में 1/3 आरक्षण का प्रावधान 73 वां संविधान संशोधन से पूर्व ही था। यह 73 व 74 संविधान संशोधन 1993 में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रावधान किया गया लेकिन उच्च निकायों यानी विधान सभा एवं लोकसभा व राज्य सभा में महिलाएं आरक्षण अभी भी संघर्ष कर रहा है और न जाने यह संघर्ष कब तक चलेगा ? स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण की व्यवस्था के लिए संसद ने हरी झंडी दे दी है। इतना ही नहीं कुछ राज्य जैसे मध्यप्रदेश, छत्तीसग़, बिहार, उत्तराखंड एवं राजस्थान राज्य में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर चुका है। कुछ प्रदेशों में निर्वाचन प्रकि्रया भी पूरी की जा चुकी है।

उच्च निकायों में महिला आरक्षण : उच्च निकायों में महिला आरक्षण के लिए 1974 में सर्वप्रथम शिक्षा व समाज कल्याण मंत्रालय में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। 12 सितम्बर 1996, 11 वीं लोकसभा में एच. डी. देवगौड़ा सरकार ने 81 वां संविधान संशोधन विधेयक संसद में रखा। 9 दिसम्बर 1996 में संयुक्त संसदीय समिति की अध्यक्षा गीता मुखर्जी ने लोक सभा मे “प्रस्तुत किया। 26 जून 1998 को 12 वीं लोक सभा में 84 वां संविधान संशोधन में भाजपा सरकारने भी प्रयास किया। 13 वीं लोकसभा 22 नवम्बर 1999 , मई 2004 में कुछ इसी प्रकार का प्रयास किया गया 6 मई 2008 को राज्यसभा में न्याय व कानून की स्थाई समिति में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। 17 दिसम्बर 2009 में स्थाई समिति में यह विधेयक प्रस्तुत 22 फरवरी 2010 को राष्ट्रपमि प्रतिभा सिह पाटिल ने इस विधेयक को पारित करवाने का घोषणा की थी 25 फरवरी 2010 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में महिला आरक्षण की स्वीकृति के लिए प्रस्तृत किया गया और पारित भी हुआ लेकिन 8 मार्च 2010 को राज्य सभा में लंबी बहस के बावजूद भी राज्य सभा में अटका पड़ा है न जाने यह कब पारित होगा।

स्थानीय निकायों एवं उच्च निकायों में महिला आरक्षण के संर्घष एवं बहस के आधार पर महाराष्ट्र के संदर्भ में देखा जाय तो इस प्रदेश में 48 विधान सभा की सींटे है जिसमें आधे दर्जन भी महिलाएं नहीं है। राज्य सभा की 19 सीटों में महिलाओं की संख्या शून्य हैं ठीक उसी प्रकार विधान सभा में भी स्थिति कुछ खास नहीं है। 288 सीटों में 11 सीटें महिलाओं के खाते में है। विधान परिषद की 78 स्थानों में इनकी संख्या 6 है।

महाराष्ट्र के गठन को लगभग 50 वर्ष पूरे हो चुके है लेकिन राजनीतिक संत्ता के गलियारे में महिलाओं की भागीदारी एवं सहभागिता की स्थिति उंगलियों में गिनी जा सकती है। इसके अलावा कुछ बाते स्वागत के योग्य भी हैं। महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में अभी हाल ही में 2011 में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत के सथान पर 50 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पारित किया जा चुका है। इस राज्य में इस घोषणा को सुनकर कुछ व्यक्तियों के पैर के नीचे की जमीन ही खिसक गई है और हायतोबा मची हुई है। ऐसा सोचने वालों को शायद इस बात का अनुमान नहीं है कि इस समय महाराष्ट्र राज्य में विधान सभा एवं संसद में महिलाओं की संख्या नगण्य है।

महाराष्ट्र राज्य के विदर्भ को उदाहणार्थ देखा जाय तो वर्ष 2009 में संपन्न विधान सभा निर्वाचन परिणाम की 62 सीटों में केवल 1 महिला ही विधायक बन पाई है और संसद की 10 सीटों में 1 ही महिला संसद मे पहुचीं हैं। पूरे महाराष्ट्र राज्य में 3 महिलाएं संसद के रूप में अपना पताखा फहराया है। उच्च निकायों के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल से पारित विधेयक यदि राज्य सभा से पारित होता है तो महाराष्ट्र राज्य में लोक सभा की 48 सीटों में लगभग 16 सीटें तथा विधान सभा में 288 सीटों में 95 सीटें निर्वाचन के लिए आरक्षित हो जाएगी। विदर्भ की 10 लोक सभा सीट में 3 एवं विधान सभा की 62 में से 20 सीटें आरक्षण के दायरे में आ जाएगी।

निष्कर्षतः यह काहा जा सकता है कि महिला आरक्षण एवं राजनीति में महिलाओं की शक्ति के संदर्भ में अध्ययन से ज्ञात होता है कि भारत में कोई भी दल महिलाओं को चुनाव में उतारने के लिए गंभीरता से नही लिया है और उच्च निकायों में महिलाओं को आरक्षण पारित करवाने का प्रयास नहीं किया है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल व राज्य सभा में महिला आरक्षण विधेयक को रखना पुरूष प्रधान राजनीति का ोंग है ताकि हमारी सरकार चलती रहे और झोली भरती रहे। कांग्रेस की सरकार प्रमुख सोनिया गांधी एवं राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल के कार्य काल में यह विधेयक यदि पारित नहीं हो सका है तो शायद कभी ऐसा संभव होगा कि यह विधेयक पारित होगा जिससे महिलाओं को उच्च निकायों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त होगा।

इस आरक्षण विधेयक को पारित करवाने में केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्वयं सेवी संगठनों, महिला संगठनों को सकि्रयता से प्रयास करने की आवश्यकता है अन्यथा यह विधेयक एक कहानी बनकार रह सकता है और महिलाओं के राजनैतिक समानता का सपना सपना ही रहेगा।

संदर्भ:-

1ण्सावलिया बिहारी, एम एल सोनी व संजीव गुप्ता माहिला जागृति और शसक्तीकरण अविश्कार पब्लियशर्स जयपुर 2005

2ण्रमा शर्मा व एम. के. मिश्रा महिला विकास, अर्जुन पब्लिशंग हाउस, दिल्ली 2010

3ण्महिला आरक्षण के संदर्भ में पुरूषों की मानसिकता का एक अध्ययन प्रकृति नागपुर सितम्बर 2009

4ण्दैनिक भास्कर नागपुर संस्करण 1 मई 2011

5. Times of India20 Aug. 2009

6. Daily Dainiik Bhaskar Nagpur Publication

7. Daily LlokmatMarathi  Nagpur Publication  19 aug 2009

8. Sachin Mardikar Nagpur & Angha Mahajan Mumbai – Impact study of programme for promoting of women III,

आधुनिक बच्चों का टूट रहा है कुदरत से नाता…

जैव विविधता को बचाने के काम को वे बच्चे और मुश्किल बना रहे हैं जो टेलीविजन, इंटरनेट, विडियोगेम्स या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक मनोरंजन की गिरफ्त में हैं. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि ये सब प्रकृति को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा है कि ज्यादातर नौजवान शहरों में रहते हैं और कुदरत से उनका नाता टूटा हुआ है, इसलिए वे ईकोसिस्टम और प्रजातियों की सुरक्षा की अहमियत नहीं समझते. जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी सचिव अहमद जोगलाफ ने कहा, “हमारे बच्चे कंप्यूटरों से चिपके रहते हैं. वे एस.एम.एस. विडियोगेम्स और टीवी की गिरफ्त में हैं. वे एक आभासी दुनिया में जी रहे हैं. हमें उन्हें दोबारा कुदरत से जोड़ना होगा.”

मनीला में दक्षिणपूर्वी एशियाई जैव विविधता फोरम में बोलते हुए जोगलाफ ने कहा, “वे नहीं देखते कि आलू कैसे उगाया जाता है. वे तो बस आलू को सुपरमार्केट में ही रखा देखते हैं.

जोगलाफ ने कई सर्वेक्षणों के हवाले से कहा कि विकसित देशों में 95 फीसदी बच्चे अपना खाली वक्त टीवी या कंप्यूटर के सामने बिताते हैं और सिर्फ पांच फीसदी बच्चे बाहर जाते हैं. एक अन्य सर्वे के मुताबिक 20 फीसदी अमेरिकी बच्चे कभी पेड़ पर नहीं चढ़े.

जोगलाफ का कहना है कि शिक्षा की कमी कुदरत के संरक्षण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है. उन्होंने यूरोप में 2009 में हुए एक सर्वे का जिक्र किया, जिसमें पता चला कि 60 फीसदी जनता को जैव विविधता शब्द के मायने ही नहीं पता थे. उन्होंने पूछा, “जिस चीज को आप जानते ही नहीं, उसकी रक्षा कैसे करोगे? आप उस चीज की रक्षा कैसे करोगे जिसे आपने कभी देखा ही नहीं”

 

न बादल होता न बरसात होती

न बादल होता न बरसात होती

न बादल होता न बरसात होती

दिन अगर न होता न रात होती।

गम ही न होता अगर जिंदगी में

बहार से भी न मुलाक़ात होती।

नए लोगों की जो आमद न होती

रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती।

लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते

मुहब्बत में हमें फिर मात होती।

अच्छा है रही न कोई भी तलब

मिटती हुई उमीदें-हालात होती।

खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी

मिल जाती कुछ और बात होती।

जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती

हुज्ज़त की न कोई बात होती।

अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता

बरसात की अगर यह रात होती।

आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे

आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे

पहलू में नई शय उभर जाने दे।

तेरी रज़ा में ही मैं ढल जाऊँगा

कतरा बनके मुझे बिखर जाने दे।

बहुत शोर मचा है जिंदगी में तो

तन्हाई में भी तूफ़ान भर जाने दे।

यादों का आना जाना लगा रहेगा

सीने में कुछ देर दर्द ठहर जाने दे।

अँधेरे की फितरत से वाकिफ हूँ

आँगन में बस सहर उतर जाने दे।

आसमां जमीं पर ही उतर आएगा

फलक को तह दर तह भर जाने दे।

मुर्दे में भी जान आ ही जाएगी

एहसास से जरा उसे भर जाने दे।

आवाज़ देकर बुला लेना कभी भी

इस वक़्त मुझे पार उतर जाने दे।

मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी

मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी

आँखों की तमाम हसरतें लिख दी।

रंग जो हवा में बिखर गये थे

ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी।

अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर

तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी।

खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम

बहार की सब नर्मआहटें लिख दी।

चमकते जुगनुओं की कतार में

ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी।

किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं

अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी।

तुझे खबर नहीं दी अपने होने की

फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी।

 

मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी

आँखों की तमाम हसरतें लिख दी।

रंग जो हवा में बिखर गये थे

ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी।

अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर

तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी।

खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम

बहार की सब नर्मआहटें लिख दी।

चमकते जुगनुओं की कतार में

ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी।

किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं

अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी।

तुझे खबर नहीं दी अपने होने की

फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी।

नैतिक बल का पर्याय है, बाबा का हठयोग

प्रमोद भार्गव

कानून व व्यवस्था में अमूलचूल बदलाव के लिए बाबा का हठयोग इसलिए दृढ़ संकल्प का पर्याय बन रहा है, क्योंकि उनके साथ नैतिकता और ईमानदारी का बल भी है। वैसे भी हठी और जिद्दी लोग ही कुछ नया करने और अपने लक्ष्य को हासिल करने की ताकत रखते हैं। बाबा को व्यापारी कहकर उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर हमला बोला जा रहा है। लेकिन यहां गौरतलब है कि बाबा ने योग और आयुर्वेद दवाओं से पहले पैसा कमाया और वे यह धन देश की राजनीति और नौकरशाही का शुध्दीकरण कर उसे पुनर्जन्म देने की कोशिशों में लगा रहे हैं तो इसमें खोट कहां है ? हमारे विधायक, सांसद और मंत्री तो सत्ताा हासिल करने के बाद भ्रष्ट आचरण से पैसा कमाते हैं और फिर लोक छवि बनी रहे यह प्रदर्शित करने के लिए व्यापार की ओट लेते हैं। ये काम भी ऐसे करते हैं जो गोरखधंधों और प्राकृतिक संपदा की अंधाधुंध लूट से जुड़े होते हैं। बाबा ईमानदारी से आय और विक्रयकर भी जमा करते हैं। यदि वे ऐसा नहीं कर रहे होते तो उन्हें अब तक आयकर के घेरे में ले लिया गया होता अथवा सीबीआई ने उनके गले में आर्थिक अपराध का फंदा डाल दिया होता। बाबा ने व्यापार करते हुए जनता से रिश्ता मजबूत किया, जबकि हमारे जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के बाद आम आदमी से दूरी बढ़ाने लगते हैं। इन्हीं कारणों के चलते बदलाव की आंधी जोर पकड़ रही है और देश की जनता अण्णा हजारे व बाबा रामदेव जैसे निश्चल व ईमानदार गैर राजनीतिक शख्सियतों में नायकत्व खोज उनकी ओर आकर्षित हो रही है।

अण्णा हजारे के बाद बाबा के अनशन से परेशान केंद्र सरकार के प्रकट हालातों ने तय कर दिया है कि देश मे ंनागरिक समाज की ताकत मजबूत हो रही है। इससे यह भी साबित होता है कि जनता का राजनीतिक नेतृत्वों से भरोसा उठता जा रहा है। विपक्षी नेतृत्व पर भी जनता को भरोसा नहीं है। अलबत्ताा अण्णा और बाबा के भ्रष्टाचार से छुटकारे से जुड़े एसे आंदोलन ऐसे अवसर हैं, जिन्हें बिहार, ओडीसा, बंगाल और तमिलनाडू की सरकारें सामने ये कर अपना समर्थन दे सकती थीं। भ्रष्टाचार के मुद्देपर वामपंथ को भी इन ईमानदार पहलों का समर्थन करना चाहिए। लेकिन बंगाल की हार के बाद वे अपने जख्म ही सहलाने में लगे हैं। अन्य मठाधीश बाबाओं के भी करोड़ों चेले व भक्त हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इन्हें अपनी कुण्डली तोड़कर रामदेव और अण्णा के साथ आकर नागरिक समाज की ताकत मजबूत करने में अपना महत्ताी योगदान देना चाहिए। 1964 में हजारों नगा साधुओं ने गोहत्या के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन छेड़ा था। दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और महार्षि अरबिन्द जैसे दिग्गज संतों ने भी आजादी की लड़ाई में अपनी पुनीत आहुतियां दी थीं। क्योंकि अण्णा और बाबा जिन मुद्दों के क्रियान्वयन के लिए लड़ रहें हैं, उनमें गैरबाजिव मुद्दा कोई नहीं है। इसलिए सामंतवादी और पूंजीादी राजनीति की शक्ल बदलनी है तो यह एक ऐसा सुनहरा अवसर है जिसमें प्रत्येक राष्ट्रीय दायित्व के प्रति चिंतित व्यक्ति को अपना सक्रिय समर्थन देने की जरूरत है।

जनता यदि गरम लोहे पर चोट करने से चूक गई तो तय है, जिस तरह से लोकपाल के मुद्दे पर वादाखिलाफी करते हुए केंद्र सरकार इसे एक कमजोर लोकपाल विधेयक बनाने में जुट गई है, उसी तरह बाबा की मांगों पर भी वादा करने के बाद कुठाराघात कर सकती है। यदि ऐसा होता है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ वजनदार संस्थाएं खड़ी करने का स्वप्न दरक जाएगा। मजबूत इच्छाशक्ति सामने न आने की वजह से ही लोकपाल विधेयक बयालीस साल से लटका है। और अब पूरे विधेयक को ही खटाई में डालने की कवायद शुरू हो गई है। लोकपाल का जो पहला मसौदा सामने आया था, उसमें प्रधानमंत्री पद को भी प्रस्तावित कानून में शामिल किया जाना था। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस पद को लोकपाल के अंतर्गत लाने की वकालात सार्वजनिक मंचों से कई मर्तबा कर चुके हैं। लेकिन समिति में शामिल मंत्रियों की दलील है कि प्रधानमंत्री को भी जांच के दायरे में ले लिया गया तो सरकार का कामकाज प्रभावित होगा। उसकी क्रियाशीलता बाधित होगी।

इसी तर्ज पर सांसद और विधायकों को भी इस विधेयक से बाहर रखने की पैरवी करते हुए कहा जा रहा है कि विधायिका को केंद्र में रखते हुए निर्वाचित प्रतिनिधियों के आचरण पर कोई कानूनी कार्रवाई करना अनुचित है। लेकिन यहां सवाल राजनीति या कानून बनाने संबंधी फैसले न होकर, पैसा लेकर सवाल पूछने जैसे मुद्दों अथवा रिश्वत लेकर विधायक व सांसद निधि को मंजूर करने जैसे मसलों, और विश्वास मत के दौरान खुद बोली लगवाकर बिक जाने जैसे संविधान विरोधी कृत्यों से है। कदाचरण के ऐसे वाक्यात सामने आने के बावजूद प्रतिनिधियों को दोष मुक्त रहने दिया जाता है तो राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगेगा ? इसी तरह सरकार संयुक्त सचिव से ऊपर के नौकरशाहों, रक्षा अधिकारियों और उच्च न्यायपालिका के न्यायाधाीशों को भी लोकपाल से बाहर रखना चाहती है। अण्णा की तरह बाबा रामदेव भी एक सक्षम लोकपाल चाहते हैं।

अण्णा हजारे की तो एकमात्र मांग थी सक्षम व समर्थ लोकपाल, जिसे सरकार अक्षम व असमर्थ बनाने की कोशिश में लगी है। बाबा रामदेव विदेशी बैंकों में भारतीयों के जमा कालेधन को भी भारत लाकर राष्ट्रीय संपत्तिा घोषित करवाना चाहते हैं। यदि यह धन एक बार देश में आ जाता है तो देश की समृध्दि और विकास का पर्याय तो बनेगा ही, आगे से लोग देश के धन को विदेशी बैंकों में जमा करना बंद कर देंगे। हालांकि कालाधन वापिसी का मामला दोहरे कराधान से जुड़ा होने के कारण पेचीदा जरूर है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार मजबूत इच्छा शक्ति जताए और धन वापिसी का सिलसिला शुरू हो ही न ? बाबा की दूसरी बड़ी मांग हजार और पांच सौ के नोटों को बंद करने की है। ये नोट बंद हो जाते हैं तो निश्चित ही ‘ब्लेक मनी’ को सुरक्षित व गोपनीय बनाए रखने और काले कारोबार को अंजाम देने के नजरिये से जो आदन-प्रदान की सुविधा बनी हुई, उस पर असर पड़ेगा। नतीजतन काले कारोबार में कमी आएगी। सरकार यदि काले धंधों पर अंकुश लगाने की थोड़ी बहुत भी इच्छाशक्ति रख रही होती तो वह एक हजार के नोट तो तत्काल बंद करके यह संदेश दे सकती थी कि उसमें भ्रष्टाचार पर रोकथाम लगाने का जज्बा पैदा हो रहा है।

बाबा रामदेव ‘लोक सेवा प्रदाय गारंटी विधेयक’ बनाने की मांग भी कर रहे हैं। जिससे सरकारी अमला तय समय सीमा में मामले निपटाने के लिए बाध्यकारी हो। समझ नहीं आता कि इस कानून को लागू करने में क्या दिक्कत है। बिहार और मध्यप्रदेश की सरकारें इस कानून को लागू भी कर चुकी हैं। मध्यप्रदेश में तो नहीं, बिहार में इसके अच्छे नतीजे देखने में आने लगे हैं। इस कानून को यदि कारगर हथियार के रूप में पेश किया जाता है तो जनता को राहत देने वाला यह एक श्रेष्ठ कानून साबित होगा। ऐसे कानून को विधेयक के रूप में सामने लाने में सरकार को विरोधाभासी हालातें का भी सामना कमोबेश नहीं करना पड़ेगा। प्रशासन को जवाबदेह बनाना किसी भी सरकार का नैतिक दायित्व है।

बाबा की महत्वपूर्ण मांग अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म करना है। इसमें कोई दो राय नहीं अंग्रेजी ने असमानता बढ़ाने का काम तो पिछले 63 सालों में किया ही है, अब वह अपारदर्शिता का पर्याय बनकर मंत्री और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का भी सबब बन रही है। बीते एक-डेढ़ साल में भ्रष्टाचार के जितने बड़े मुद्दे सामने आए हैं, उन्हें अंग्रेजीदां लोगों ने ही अंजाम दिया है। पर्यावरण संबंधी मामलों में अंग्रेजी एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रही है। जैतापुर परमाणु बिजली परिर्याजना के बाबत 1200 पृष्ठ की जो रिपोर्ट है, वह अंग्रेजी में है और सरकार कहती है कि हमने इस परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगों को शर्तों और विधानों से अवगत करा दिया है। अब कम पढ़े-लिखे ग्रामीण इस रिपोर्ट को तब न बांच पाते जब यह मराठी, कोंकणी अथवा हिन्दी में होती ? लेकिन फिर स्थानीय लोग इस परियोजना की हकीकत से वाकिफ न हो जाते ? बहरहाल रामदेव के सत्याग्रही अनुष्ठान की मांगे उचित होने के साथ जन सरकारों से जुड़ी हैं। इस अनुष्ठान की निष्ठा खटाई में न पड़े इसलिए इन मांगों की पूर्ति के लिए सरकार समझौते के लिए सामने आती है तो उन्हें समय व चरणबध्द शर्तों के आधार पर माना जाए।

बाबा रामदेव का लोककारी हठयोग

राजीव रंजन प्रसाद

भारत पर बाबा रामदेव की असीम कृपा है। देश की जनता उनकी अनन्य भक्त है। दैनिक योग-प्रक्रिया के अनुपालन से बाबा रामदेव ने गरीबों को असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाई है। आधे दशक से भी कम समय में भारत रोगमुक्त और लाइलाज बीमारियों के प्रकोप से निजात पा चुका है। ऐसा औरों का नहीं बाबा रामदेव का खुद ही मानना है। अपनी संपति को लोक-संपति घोषित कर चुके बाबा रामदेव पूँजी के अनावश्यक एकत्रण के सख्त खिलाफ हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ हालिया अभियान इसी का प्रमाण है। वे कहते हैं-‘विदेश ले जाए गए काले धन को राष्ट्रीय सम्पति घोषित किया जाना चाहिए और काला धन रखने को राजद्रोह के समान समझा जाना चाहिए।’

योगगुरु का उसूल है कि जो देने योग्य है उससे अधिकतम वसूल करो। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे कारोबारी हैं या कि योग-साधना को ‘व्यापार’ की तरह ‘हैण्डल’ करते हैं; जैसा कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने ताजा बयान में कहा है। बड़बोलेपन के आदी कांग्रेस महासचिव यह क्यों भूल जाते हैं कि अमीर लोग मुफ्त-सेवा या चिकित्सा के बूते कभी ठीक ही नहीं हो सकते हैं। धनाढ्य वर्ग के लोग शुगर फ्री एक कप चाय के लिए जबतक 100 रुपए की तुल्य कीमत न चुकता कर दें; उनके ‘पसर्नल इगो’ को संतुष्टि नहीं मिलती है। ‘फ्री ट्रिटमेंट’ से तो उनकी गरिमा को ही ठेस पहुँचता है।

लिहाजा, बाबा रामदेव ने इसका सर्वमान्य हल यह निकाला है कि आगे की पंक्ति में बैठने वाले 50 हजार रुपए दें तो उसके पीछे बैठने वाले 30 हजार और एकदम आखिर में बैठ समान रूप से लाभान्वित हो रहे व्यक्ति सिर्फ एक हजार रुपए देकर अपनी तमाम बीमारियों से छुटकारा पा जाएँ।

दरअसल, बाबा रामदेव अपने सर्ववर्गसमभाव के जिस नीति को बढ़ावा दे रहे हैं, उसे देशवासियों द्वारा हाथोंहाथ लिए जाने का सीधा अर्थ है कि देश में उनके चहेते खूब हैं। दूसरी बात यह है कि उनकी लोकप्रियता का कारण स्वाभाव से मुखर होना है। वे पद-रुतबा और सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं देखते हैं; बल्कि जन-स्वाभिमान के लिए आला मंत्री-हुक्मरानों की भी आलोचना करने से नहीं चूकते हैं। बाबा रामदेव का गणवेष भी अनुपम है। वह वस्त्र का उतना ही टुकड़ा ग्रहण करते हैं जिससे समाज की मर्यादा बनी रहे। बाद बाकी उन्हें किसी तरह के धन-वैभव के प्रति कोई मोह नहीं है। जनसेवा में अहर्निश जुटे बाबा रामदेव का उदात्त भाव देशवासियों के लिए अनूठा आदर्श है जिसके पास होने को तो करोड़ों-अरबों हैं पर उसमें उनका मालिकाना हक शून्य है।

पतांजलि योगपीठ को वह देश की सामूहिक संपति कहते हैं। उनके कार्यों की सुभाषितानी से देश का मंगल अपरिहार्य है। उनके संसर्ग में आए लोग मनुष्यता के अप्रतिम मूरत हैं। संवेदना की खान हैं। उनके भीतर मानवीयता के जो लक्षण विद्यमान है उससे पूरा भारत दीप्त हो रहा है। ये ऐसी ईमानदार टोली है जिसमें बेईमानी का शतांश कण भी नहीं देखा जा सकता है। ये करोड़ो-करोड़ लोग मानव भीतर नवमानव(इसको थोड़ा ठीक-ठीक परिभाषित किए जाने की जरूरत है) को गढ़ रहे हैं। लोगों को लोक-परम्परा और संस्कृति से जोड़ रहे हैं। वे ‘स्व’ के स्वार्थी भाव को त्यागने की कला सिखा रहे हैं।

आमोख़ास सभी बाबा के मुरीद है। वे चर्चा में जरूर रहते हैं, लेकिन आत्मप्रचार उन्हें सुहाता नहीं है। आज देश योगगुरु को प्राणायाम कर रहा है। राष्ट्र-राज्य, समाज, संस्कृति, राजनीति, लोकतंत्र एवं संप्रभुता के चितेरे बाबा रामदेव का कारवाँ थम या रूक जाए, इसके दूर-दूर तक कोई आसार नहीं है। वे देश में आमूल बदलाव चाहते हैं। और अब यह हो कर ही रहेगा।

एयरपोर्ट पर आगवानी में आये कांग्रेस के वरिष्ठतम मंत्री प्रणब मुखर्जी को बाबा रामदेव ने बैरंग वापिस कर अपना नेक-इरादा जतला दिया है। दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव ‘याचना नहीं अब रण होगा’ वाले मुड में हैं। हठयोग के मर्मज्ञ बाबा रामदेव अनशन-अभियान में कबतक डटे रहेंगे, यह तो कोई नहीं बता सकता है; लेकिन एक बात तो तय है कि बाबा रामदेव अपने इस अभियान को सरकारी बाज़ार नहीं बनने देंगे जहाँ लोक-कार्य और लोक-अभियान को भी मोलभाव के तराजू पर तौलने का ‘ट्रेण्ड’ विकसित हो चुका है।

अस्तु, वैसे यह मेरी व्यक्तिगत पत्रकारीय उम्मीद कव सीमाकंन है जिसके अलख-नियंता बाबा रामदेव जून महीने के प्रथम पखवाड़े से देशव्यापी आन्दोलन और मुहिम खड़ा करने वाले हैं। जिनके साथ में अण्णा हजारे हैं तो आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर भी हैं। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने बाबा के इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया है। और भी अनगिनत लोग हैं जो देश को सच्चे मन से आगे ले जाना चाहते हैं। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के ‘विजन-2020’ को साकार करना चाहते हैं। शायद ‘मिशन-2012’ वाले राहुल गाँधी भी इस मुहिम में शरीक हों क्योंकि अभी तक ऐसा कोई भी मौका नहीं आया है जहाँ राहुल गाँधी मौका-ए-वारदात पर प्रकट न हों। किसानों और आदिवासियों के हितचिन्तक राहुल गाँधी का बाबा रामदेव के आन्दोलन में शामिल होना कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। देश की युवा-पीढ़ी जिसे हाल के दिनों में राहुल गाँधी ने अपने ऐतिहासिक दौरों, भाषणों एवं क्रियाकलापों से वैकल्पिक सोच एवं राजनीति की भूमि तैयार करने हेतु जागरूक(?) किया है; वह इस अभियान में भला क्यों नहीं शामिल होंगे? आमीन!

कांग्रेस सावरकर के बारे में अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे

लालकृष्ण आडवाणी

गत् रविवार यानी 28 मई को वीर सावरकर की जयन्ती थी। यह महान क्रांतिकारी सन् 1883 में महाराष्ट्र के नासिक के निकट भगुर गांव में जन्मे थे।

जन्मजात मेधावी सावरकर की पद्य में असाधारण प्रतिभा थी और जब वह मुश्किल से 10 वर्ष के रहे होंगे तभी उनकी कविताएं समाचारपत्रों में छपने लगी थीं। जब वह मात्र 16 वर्ष के थे तब सावरकर ने अभिनव भारत संस्था बनाई जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने और देश को पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाना था।

मैं जब 15 वर्ष का था और हाई स्कूल से निकला ही था कि लाहौर गए मेरे एक मित्र मेरे लिए सावरकर की पुस्तक ‘दि फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस‘ की पुरानी प्रति लेकर आए। पुस्तक की कीमत 28 रूपये पड़ी जो कि उस समय एक बड़ी राशि हुआ करती थी।

अपने स्कूली दिनों से ही मैं उत्साही पुस्तक प्रेमी रहा हूं। यदि कोई मुझसे उन दो पुस्तकों के नाम पूछता है जिनका मेरे जीवन पर निर्णायक प्रभाव पड़ा तो मैं तुरंत दो पुस्तकों को गिनाता हूं जिन्हें मैंने एक युवा होने के नाते पढ़ीं – एक जब मैं 14 वर्ष का था – डेल कारनेगी की ‘कैसे दोस्तों को जीता जाए और लोगों को प्रभावित किया जाए‘ और दूसरी जो मैंने उसके अगले वर्ष पढ़ी – सावरकर द्वारा लिखित अत्यन्त प्रेरणादायक पुस्तक, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है।

अविभाजित भारत में सिंध बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। अत: 1947 तक सिंध के लिए अलग से कोई विश्वविद्यालय नहीं था। प्रोविन्स के सभी कॉलेज बॉम्बे विश्वविद्यालय से सम्बध्द थे।

अपने जीवन में मैं पहली बार बॉम्बे (अब मुंबई) स्वतंत्रता प्राप्ति और कराची से विस्थापित होने के बाद 1947 में गया था। मैं दो दिनों के लिए मुम्बई गया था। वहां मैं जिस मित्र के साथ ठहरा हुआ था, उसने मुझसे पूछा कि ‘तुम यहां कोई विशेष स्थल देखने को इच्छुक हो!‘ मैंने कहा, ”मुझे वीर सावरकार के घर ले चलो।” जब मैं उनके शिवाजी पार्क स्थित आवास पर उनकी चुम्बकीय उपस्थिति में बैठा हुआ था तो उन्होंने सिंध में हिन्दुओं की स्थिति के बारे में मुझसे पूछा।

ब्रिटिश सरकार ने सावरकर की पुस्तक को ‘राजविद्रोही‘ करार दिया। एक निर्दयी औपनिवेशिक सत्ता द्वारा इस तरह की निंदात्मक उपाधि देना वास्तव में एक सम्मान है, जिससे वह इतना भयभीत थे कि उन्होंने पुस्तक के प्रकाशन से पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया। अंग्रेजों ने इस पुस्तक से घबराकार उसके वास्तविक प्रकाशन से पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस पुस्तक की पांडुलिपि की भारत से इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड और वापस भारत तक की यात्रा की कहानी और छिपे तौर पर प्रकाशन के बाद इसके द्वारा क्रांतिकारियों को प्रेरित करने हेतु निभाई गई भूमिका 1857 में लड़ी गई लड़ाई की ही तरह रोमांचकारी है।

सावरकर ने यह पुस्तक लंदन में लिखी थी जहां वे कानून की पढ़ाई करने के लिए गये थे लेकिन वे शीघ्र ही केवल 25 वर्ष की आयु में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गये। पुस्तक का मराठी में मूल पाठ 1857 की 50वीं वर्षगांठ को प्रतिबिम्बित करते हुए 1907 में पूरा हो गया था और उसे गुप्त रूप से भारत भेज दिया गया। लेकिन भारत में इसे छपवाया नहीं जा सका क्योंकि अंग्रेजी अधिकारियों जिन्हें इस पुस्तक की जानकारी थी, ने प्रिटिंग प्रेस पर छापे डलवा दिए थे।

चमत्कारिक ढंग से पांडुलिपि बचा ली गई और उसे वापिस सावरकर के पास पेरिस भिजवा दिया गया। उनके साथी क्रांतिकारियों ने इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया लेकिन इंग्लैंड और फ्रांस में कोई भी प्रकाशक इसे छापने के लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में, इसे 1909 में हॉलैंड में छापा गया और इसकी प्रतियां छिपाकर भारत भेज दी गईं। लेकिन पुस्तक के लेखक को राजद्रोह के आरोप में 1910 में लंदन में गिरफ्तार करके भारत भेज दिया गया। उन्हें दो आजीवन कारावासों के लिए दोषी ठहराया गया और ”काला पानी” अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में भयानक सेल्युलर जेल भेज दिया गया। यह वही जेल थी जहां अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह में भाग लेने वाले हजारों देशभक्तों को भेजा हुआ था। वीर सावरकर ने अंधेरी और गंदी कोठरी में एकान्तवासी कैद में रहते हुए 11 वर्ष बिताए। उस जगह ऊपर से फांसी का तख्ता दिखाई देता था जहां कैदियों को रोजना फांसी पर लटकाया जाता था।

यद्यपि पुस्तक पर प्रतिबंध था इसके बावजूद इस पुस्तक का कई बार प्रकाशन हुआ। मैडम कामा ने यूरोप में इस पुस्तक का दूसरा संस्करण प्रकाशित कराया। क्रांतिकारी गदर पार्टी के नेता लाला हरदयाल ने अमेरिका में एक संस्करण् निकाला। इस पुस्तक को भारत में पहली बार सन् 1928 में भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा प्रकाशित कराया गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और रास बिहारी बोस ने इसे सन् 1944 में जापान में प्रकाशित कराया और यह पुस्तक इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिकों के लिए लगभग एक पाठय-पुस्तक बन गई। सन् 1947 में पुस्तक से प्रतिबंध हटा लिए जाने से पहले ही सावरकर की पुस्तक भूमिगत नेटवर्क में कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो चुकी थी। इस प्रकार, यह कोई ऐसी पुस्तक नहीं थी जिसे एक सामान्य इतिहासकार ने अपने आराम, सुरक्षा और शैक्षिक सहायता का सहारा लेकर लिखी हो। बल्कि यह पुस्तक एक ऐसे क्रांतिकारी द्वारा लिखी गई थी जिसे अपनी गतिविधियों के लिए अकल्पनीय मुसीबतें झेलनी पड़ी थी और जिसने भारत को अंग्रेजों के चुंगल से मुक्त करने के सामूहिक उद्देश्य वाले अन्य अनगिनत क्रांतिकारियों को प्रेरित किया था।

***

संसद के सेंट्रल हॉल के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए वहां महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नेताओं के छायाचित्र सजाए गए हैं।

हॉल के भीतर जो रास्ता इसे राज्य सभा चेम्बर से जोड़ता है, वहां एक स्थायी मंच बना हुआ है; और उसके ऊपर मेहराब पर मंच की ओर देखता हुआ महात्मा गांधी का छायाचित्र है।

मंच के ऊपर की इस मेहराब के दायीं और बायीं दिशा में सी. राजगोपालाचारी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के चित्र लगे हैं। इसके अलावा हाल में लकड़ियों के पेनल में सुरक्षित आयताकार 20 छायाचित्र और टंगे हैं जो अन्य राष्ट्रीय नेताओं के हैं। इन में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, पण्डित मोतीलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, चित्तरंजन दास, डा. बी.आर. अम्बेडकर, मोरारजी देसाई, रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरोजिनी नायडू, चौधरी चरण सिंह, डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, डा.राजेन्द्र प्रसाद, डा. राममनोहर लोहिया, लाल बहादुर शास्त्री, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित मदन मोहन मालवीय और दादाभाई नारौजी-के चित्र शामिल हैं। मंच के ठीक सामने वाले मेहराब पर स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का छायाचित्र है।

***

संसद के सेंट्रल हॉल में जिन नेताओं के छायाचित्र टंगे हैं, उनके मामले में लोकसभा सचिवालय उनकी जयन्ती और पुण्य तिथि पर श्रध्दांजलि देने के लिए सांसदों को संसद भवन बुलाना कभी नहीं भूलता। गत् शनिवार के निमंत्रण भी सभी सांसदों को भेजे गए थे। लोकसभा के बुलेटिन के पार्ट-प्प् में नोटिस भी प्रकाशित किया गया था। कुछ सांसद वहां उपस्थित थे। लेकिन कांग्रेस से एकमात्र सांसद उपस्थित थीं तो वे थीं सम्मानीय स्पीकर श्रीमती मीरा कुमार। फरवरी, 2003 में जब सेंट्रल हॉल में स्वातंत्र्यवीर सावरकर का छायाचित्र लगाया गया और तत्कालीन राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम द्वारा इसका अनावरण किया गया तब से कांग्रेस पार्टी इस छायाचित्र से जुड़े सभी कार्यक्रमों का बहिष्कार करती रही है, जिसमें वह पहला कार्यक्रम भी शामिल है जिसमें स्वयं राष्ट्रपति महोदय मौजूद थे!

यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं कांग्रेस पार्टी से इस सम्बन्ध में अपने रूख पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करता हूं।

1966 में जब सावरकर ने अंतिम सांस ली तो इंदिरा गांधी ने उन्हें श्रध्दांजलि देते हुए आधुनिक भारत की एक महान विभूति बताया जिनका नाम साहस और देशभक्ति का पर्याय बन चुका था। श्रीमती गांधी ने कहा कि वे उत्कृष्ट श्रेणी के क्रांतिकारी थे और अनगिनत लोगों ने उनसे प्रेरणा ली। तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन ने अपने शोक संदेश में कहा: ”एक महान क्रांतिकारी के रूप में उन्होंने अनेक युवाओं को मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के काम में लगने की प्रेरणा दी।”

मुझे स्मरण आता है कि एनडीए के दिनों में जब भी सावरकार से सम्बन्धित कोई कार्यक्रम होता था तो वसंत साठे निरपवाद रूप से उपस्थित रहते थे। उन्होंने मुझे बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्री के उनके कार्यकाल में सावरकर पर एक वृत्तचित्र की योजना बनी और कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति उठाई। श्रीमती गांधी की सलाह पर उन्होंने इन आपत्तियों को दरकिनार कर वृत्तचित्र बनवाया।

मुझे याद आता है कि एनडीए के शासन के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से डा. बी.आर. अम्बेडकर पर एक फीचर फिल्म बनाने का अनुरोध किया गया। सीरीफोर्ट सभागार में हुए इस फिल्म के शुरूआती कार्यक्रम में मैं भी उपस्थित था। मेरे साथ फिल्म के निदेशक जब्बार पटेल बैठे थे, ज़िनसे मेरा संक्षिप्त तर्क-वितर्क हुआ।

मेरा उनसे अनुरोध था: डॉ. अम्बेडकर को महान दिखाने क्रम में क्या गांधी को पाखंडी के रुप में प्रस्तुत करना वाकई जरूरी है? आखिरकार, देश में लाखों लोगों के लिए दोनों ही नायक हैं। क्यों नहीं दोनों के सकारात्मक पक्षों को दिखाया जाए? और मैंने उन्हें गांधी और उनके पुत्र हरीलाल पर बनी फिल्म का वर्णन किया जो मैंने देखी थी, जिसमें उनका पुत्र अपने पिता की सख्ती से जिद्दी बन गया। पिता और पुत्र के बीच संबंध इतने कटु थे कि इन दोनों पर स्क्रिप्ट लिखना आसान काम नहीं था। तब भी चन्द्रलाल दलाल और नीलम भाई पारेख जिन्होंने मूल पुस्तक लिखी है और फिरोज अब्बास खान जिन्होंने फिल्म तथा नाटक का निर्देशन किया है, ने इसे इतने सुंदर ढ्रंग से किया है कि दर्शक इससे बहुत अच्छे तथा सहानुभूतिपूर्वक जुड़ा महसूस करते हैं जो दिल को छू लेता है। फिल्म का नाम था: ”गांधी मॉय फादर।” नाटक का शीर्षक था ”महात्मा बनाम गांधी।”

4 जून से स्‍वामी रामदेव का अनशन, सत्‍याग्रह क्‍यों?

4 जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वामी रामदेव जी स्वयं अनिश्चित कालीन उपवास (आमरण अनशन ) पर बैठेंगे ।

राष्ट्रहित में तीन माँगे

1. लगभग चार सौ लाख करोड़ रुपये का काला धन जो की राष्ट्रीय संपत्ति है यह देश को मिलना चाहिए ।

2. सक्षम लोकपाल का कठोर कानून बनाकर भ्रष्टाचार पर पूर्ण अंकुश लगाना ।

3. स्वतंत्र भारत में चल रहा विदेशी तंत्र (ब्रिटिश रूल ) खत्म होना चाहिए जिससे कि सबको आर्थिक व सामाजिक न्याय मिले ।

राष्‍ट्रधर्म- बाबा रामदेव

।। इदं राष्ट्राय इदन्न मम ।। 

योगाभ्यास के साथ-साथ प्रतिदिन 5 से 10 मिनट राष्ट्र-शक्ति व हमारे राष्ट्रधर्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें लोगों को बताना तथा लोगों को समझाना कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं। इन बिन्दुओं को पहले संक्षिप्त रूप में तथा बाद में विस्तारपूर्वक प्रत्येक ग्रामवासी व राष्ट्रवासी को समझायें।

  1. राष्ट्र की शक्ति : हमारे देश भारत में 89 प्रकार की भूसम्पदाएं हैं-लोहा, कोयला, ताम्बा, सोना, चांदी, हीरा, एल्यूमिनियम आदि धतुएँ तथा गैस व पेट्रोल से लेकर बहुत से मिनरल्स हैं इन सबके ज्ञात भण्डार (रिजर्वस) का यदि आर्थिक मूल्यांकन किया जाए तो यह करीब 10 हजार लाख करोड़ रुपये होते है। इसमें अकेला कोयला ही (केवल ज्ञात भण्डार) 276.81 बिलियन टन है जिसका मूल्य लगभग 950 लाख करोड़ है तथा लोहे के ज्ञात भण्डार लगभग 15.15 बिलियन टन है। ऐसी ही अन्य बहुत सी बेशकीमती चीजें भारत माता के गर्भ में छिपी हैं। यदि हमने इन बेईमान लोगों को नही हटाया तो ये सब देश की सभी सम्पदाओं को लूट लेंगे। भूसम्पदाओं के अतिरिक्त जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी व अन्य राष्ट्रीय सम्पदाओं के साथ-साथ बौद्धिक, आर्थिक, चारित्रकि व आध्यात्मिक दृष्टि से भी भारत दुनियाँ का सबसे बलवान व धनवान देश है।
  2. महाशक्ति भारत : हमारे देश में जर्मनी, जापान और प्रफांस जैसे देशों से कम से कम 50 गुणा अधिक शक्तिशाली है। जिस दिन भ्रष्टाचार मिट जायेगा उस दिन भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा। दुनियाँ की पाँच बड़ी संस्थाएं आई.एम.एफ., वर्ल्ड बैंक, डब्लू.एच.ओ., यू.एन.ओ., डब्लू. टी.ओ., सब यहींं से हम संचालित कर सकेंगे। हम वल्र्ड सुपर पॉवर होंगे, हम दुनियाँ की सबसे बड़ी आर्थिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक महाशक्ति होंगे और यह सब हमारे लिए बड़े गर्व की बात होगी।
  3. क्या देश स्वतन्त्र है – 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया, यह देश के इतिहास में पढ़ाया जाता है तथा नेताओं द्वारा बताया जाता है कि हम आज स्वतन्त्र हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दुर्भाग्य से 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन प्रधनमंत्री तथा अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि माउंटबेटन ने एक बहुत बड़ा शर्मसार समझौता कर लिया और उसका नाम है ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट (सत्ता के हस्तांतरण का समझौता)। इस एग्रीमेंट के तहत आज भी स्वतन्त्र भारत में विदेशी तंत्र चलता है। न तो हम भाषा की दृष्टि से आजाद हो पाये हैं और न ही व्यवस्थाओं की दृष्टि से, जैसे अंग्रेज सरकार भारत को चलाती थी, ठीक वैसे ही भारत सरकार भारत को चलाती है। टी.बी. मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था, जिसमें संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों को पूरी तरह निकाल दिया गया है; अंग्रेजी चिकित्सा-व्यवस्था जिसमें भारतीय चिकित्सा-व्यवस्था-योग, आयुर्वेद व प्राकृतिक-चिकित्सा आदि को हाशिये पर रख दिया है; अंग्रेजी कानून-व्यवस्था, जिसमें 34735 कानून जो अंग्रेजों ने भारत को लूटने के लिए बनाए थे, वह आज भी लागू हैं। अंग्रेजी अर्थव्यवस्था, जिसमें पूँजी का विकेन्द्रीकरण न होकर गाँव, गरीब व भारत का शोषण हो रहा है। इसी तरह आज आजादी के नाम पर हम अंग्रेजी गुलामी में जी रहे हैं। महात्मा गाँधी व सभी क्रान्तिकारियों का निविदमववादित रूप से स्पष्ट मानना था कि भारत आजाद होते ही सभी अंग्रेजी व्यवस्थाओं का हमें स्वदेशीकरण करना होगा, जो दुर्भाग्य से नहीं हुआ। अब इस आधी अधूरी आजादी के स्थान पर हमें पूरी आजादी लानी है। आज हम अन्याय के खिलाफ बोल सकते हैं तथा सरकार बदल सकते हैं। इसका हमें पूरा लाभ उठाना है। आज जब किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र में विदेशी तंत्र व विदेशी भाषा नहीं चलती, तब स्वतन्त्र होते हुए भी विदेशी तन्त्र व विदेशी भाषा को ढोना यह हमारे लिए कितने शर्म व अपमान की बात है।
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेशी नीति – जिस तरह से चीन ने पूर्वोत्तर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक सड़कों व रेल आदि का जाल बिछा दिया है तथा अपनी लगभग 31 लाख सेना का अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र प्रोद्यौगिकी के साथ तीव्र गति से आधुनिकीकरण कर रहा है और साथ ही चीन सरकार के नियन्त्रण में चलने वाले प्रचार-प्रसारों के माध्यम से भारत को 20-30 भागों में विखंडित करने की जो बात कही जा रही है, यह बहुत ही चिन्ताजनक है। अत: हमें अपनी सेनाओं के तीव्र गति से आधुनिकीकरण एवं अन्य ढांचागत सुविधओं के लिए तुरन्त प्रभावी कदम उठाने चाहिए तथा अपनी विदेश-नीति में भी हमको व्यापकता, दूरदर्शिता एवं रहस्यमय कूटनीति को अपनाना पड़ेगा। हमें वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूत स्थिति में लाना पड़ेगा। चीन के साथ-साथ पाकिस्तान के नापाक इरादों व बंग्लादेशी घुसपैठ को भी प्रभावी तरीके से रोकने की आवश्यकता है। भारत-हित को सर्वोपरि रखकर हमें अन्य देशों के साथ अपनी व्यापार-नीति व विदेश-नीति बनानी होगी। हमें उदारीकरण, वैश्वीकरण व डब्लू.टी.ओ. की नीतियों, सन्धियों व कानूनों का देश को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने में उपयोग नहीं होने देना, अपितु अपने उत्पादन एवं निर्यात को बढ़ाकर राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में उपयोग करना है। राष्ट्रीय सुरक्षा (बाह्य सुरक्षा) के साथ-साथ हमारी आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था में भी नक्सलवाद, माओवाद व अन्य घरेलू हिंसा भी बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं। इनके भी निर्णायक समाधन के लिए हमें स्पष्ट रणनीति बनानी होगी।
  5. विदेशी हस्तक्षेप :- हमारे देश में, हमारे देश के नीति-निर्धरण से लेकर प्रधनमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री आदि महत्वपूर्ण पदों पर कौन व्यक्ति होने चाहिए, इसमें विदेशी सरकारों, उनकी अगेंसियों व विदेशी कम्पनियों का बहुत बड़ा हस्तक्षेप रहता है। इसके लिए मीडिया मेनेजमेन्ट और सम्बन्धित व्यक्तियों के महिमा मण्डन से लेकर सम्बन्ध पार्टी या सम्बन्धित व्यक्ति के लिए फुन्डिंग (Funding-धन) भी विदेशी सरकारें, एजेसियाँ व कम्पनियाँ करवाती है तथा कई बार तो सीधे तौर पर ही विदेशी सरकारों या एजेंसियों के एम.एल.ए., एम.पी. चुनाव लड़कर विधनसभा एवं लोकसभा तक पहुँचते हैं। विदेशी हस्तक्षेप द्वारा परोक्ष रूप से देश की सरकारें विदेशी ताकतों से संचालित होती हैं। यह देश के लिए बहुत खतरनाक है। राजनैतिक हस्तक्षेप के अलावा सामाजिक, धमिर्क, आर्थिक, चारित्रकि व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी विदेशी हस्तक्षेप बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है।
  6. गरीब का अपमान क्यों :- हम यह भूल जाते हैं कि जिन मकानों में हम रहते हैं, जिन मन्दिरों में पूजा करते हैं, जिन अस्पतालों में हम इलाज करवाते हैं, जिन विद्यालयों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं तथा जिन सड़कों पर हम अपनी गाड़ियाँ चलाते हैं। देश का ये सारा निर्माण देश के गरीब-मजदूर व कारीगरों ने किया है। मजदूर व कारीगर तथा 120 करोड़ लोगों का अन्नदाता किसान, इन दोनों का ही सत्ता व कुछ समर्थ लोगों द्वारा अपमान हो रहा है। देश के निर्माता व अन्नदाता का यह अपमान तुरन्त बन्द होना चाहिए। उनके श्रम का पूरा मूल्यांकन होना चाहिए और सत्ता व सब समर्थ लोगों को भी इनका सम्मान करना चाहिए। विलासिता की चीजें उपलब्ध करवाने वालों का तो सम्मान हो रहा है तथा जो मूलभूत विकास करने वाले मजदूर-कारीगर और जीवनदाता व अन्नदाता है उनका अपमान हो रहा है।
  7. कितना दुर्भाग्य – चीन, जापान, अमेरिका व प्रफांस आदि देशों में देशभक्ति की बात करना स्वाभिमान, सम्मान, गौरव की बात मानी जाती है लेकिन हिन्दुस्तान में जो लोग देशभक्ति की बात करते हैं, देश के लिए काम करते हैं, भ्रष्टाचार, कालेधन, भ्रष्ट-व्यवस्था का विरोध करते हैं तो उनको गुनाहगार, अपराधी की तरह देखा जाता है यह कितनी शर्म की बात है।
  8. जनसंख्या – वर्तमान में देश में 120 करोड़ लोग हैं उनको भी आज तक सरकारें न्याय नहीं दे पाई हैं। प्रतिवर्ष 2 करोड़, 38 लाख, 39 हजार, 945 नये बच्चों का पैदा होना बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है तथा अभी तक तीन से चार करोड़ अवैध रूप से बंग्लादेशी घुसपैठिये घुस चुकें हैं तथा प्रतिदिन लाखों घुसपैठियों का घुसना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
  9. सामाजिक न्याय – आज आजादी के 64 वर्षों बाद भी 3 करोड़ 33 लाख 5 हजार 845 मामले देश की विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जे.एस. वर्मा के अनुसार इन लम्बित मामलों को निपटाने में लगभग 350 वर्ष लगेंगे। यह न्याय के नाम पर कितना बड़ा अन्याय है और हमारे ईमानदार जज भी कई बार अंग्रेजों द्वारा बनाये गये गलत कानूनों के कारण न्याय की अपेक्षा मात्र फैसला ही दे पाते हैं। भोपाल गैस काण्ड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हमें न्याय-व्यवस्था की सत्य के आधर पर पुन: रचना करनी होगी। जिससे न्यायालयों में फैसले नहीं बल्कि न्याय मिल सके। नये न्यायालयों, फास्ट ट्रैक कोर्ट व नये जजों की नियुक्ति करनी होगी।
  10. देश की आर्थिक लूट के दो बड़े स्रोत :- देश का धन देश से बाहर जाए तो देश शक्तिहीन होता है। अत: जो विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करके देश का धन लूट रही हैं तथा भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार करके देश को लूट रहे हैं, अब हमें स्वदेशी को अपनाकर तथा विदेशी व्यापार व भ्रष्टाचार को मिटाकर देश को बचाना है। विदेशी-व्यापार व भ्रष्टाचार दोनों ही देश के सबसे बड़े शत्रु हैं, अधिकांश लोग अन्जाने में ही विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय पाप के भागीदार बन रहे हैं और इससे बहुत बड़ा देशाघात हो रहा है।
  11. 64 वर्षों में कितना विकास या कितनी लूट व विनाश –सत्ताओं पर आसीन सरकारों ने विकास के रूप में अब तक जो बजट बनाया उसका लगभग 80 से 90 प्रतिशत भ्रष्टाचार करके लूट लिया तथा मात्र 10 से 20 प्रतिशत ही धन देश के विकास में लगा है। इसके अलावा अवैध-खनन, रिश्वतखोरी व टैक्स इत्यादि चोरी करके जो देश लूटा है। वह देश के साथ बहुत बड़ा अन्याय व धोखा हुआ है। जब केन्द्र-सरकार व अन्य सरकारें विकास का श्रेय (क्रेडिट) लेती है तो उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के रूप में हुये 80 से 90 प्रतिशत विनाश की जिम्मेदारी (रेस्पोंसिबिलिटी) भी उनको लेनी पड़ेगी। हकीकत यह है कि देश का विकास देश के लोगों की मेहनत से हुआ है तथा सरकारें भी जिस विकास का श्रेय लेती हैं उसके लिये भी धन देश के मेहनत करने वाले लोगों ने टैक्स के रूप में दिया है अत: अब तक की अधिकांश सरकारों ने इस देश को विकास के नाम पर लूटा है तथा इस देश में जो कुछ भी विकास हुआ है अथवा अच्छा नजर आ रहा है, वह सच्चे, अच्छे व ईमानदार नागरिकों, गाँव के किसानों, गरीबों व मजदूरों की मेहनत का परिणाम है।
  12. भ्रष्ट-आचरण – बिना मेहनत किए धन, सम्पत्ति अजिदमवत करना यही भ्रष्टाचार है। ऐसे लोगों को वेद में दस्यु या राक्षस कहा गया है अकर्मा दस्यु: – वेद । सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरी में समय से न जाना, नौकरी में पूरा काम न करना, बिना मेहनत किए वेतन लेना तथा विवाह में दहेज लेना व अन्य सामाजिक बुराइयाँ भी नैतिक रूप से भ्रष्ट-आचरण है। इस आर्थिक व राजनैतिक-भ्रष्टाचार के लिए मुख्य रूप से राज्य-व्यवस्था जिम्मेदार है व नैतिक भ्रष्ट-आचरण के लिए जनता स्वयं जिम्मेदार है। राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र-निर्माण ही इस नैतिक भ्रष्टाचार का एकमात्र समाधन है। इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही ऊँचे संस्कार देने होंगे तथा शिक्षा व्यवस्था में संस्कार व आध्यात्मिक मूल्यों का सम्मिलित करने से लेकर पूरी सामाजिक संरचना में सकारात्मक-परिवर्तन लाना होगा और इस काम को हम पूरी दृढ़ता से कर रहे हैं।
  13. भ्रष्टाचार :- भ्रष्टाचार एक सामाजिक समस्या नहीं है अपितु ये एक विशुद्ध रूप से राजनैतिक समस्या है। संवैधनिक पदों पर बैठे लोग ही अपने अधिकारों व शक्तियों का दुरुपयोग करके या तो भ्रष्टाचार खुद करते हैं या फरि दूसरों से करवाते हैं। इस देश का आम आदमी मेहनत करके कमाता है व ईमानदारी से जीने में विश्वास रखता है।
  14. भ्रष्टाचार का स्थाई समाधान :-
    1. कठोर कानून।
    2. लोगों के जीवन में सच्चाई, उच्च नैतिक मूल्य तथा गाँव, गरीब व राष्ट्र से प्रेम। जो लोग सच्चे व ईमानदार हैं, वे कभी बेईमान नहीं हो सकते, दुनियाँ सच्चाई से ही चल रही है तथा फरि भी यदि कोई ईमानदार भी बेईमान हो जाए अथवा बेईमान व्यक्ति भ्रष्टाचार करे तो उसके लिए कठोर से कठोर दण्ड होना चाहिए।
  15. देश से ममता –
    1. जैसे हमें अपने शरीर, घर, धन, दौलत से प्रेम होता है और उसको हम लुटने व नष्ट होने नहीं देते हैं वैसे ही हमें अपने देश, देश की भूसम्पदाओं, जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटियों व जवानों से प्रेम होना चाहिए तथा किसी भी कीमत पर देश को लुटने व बरबाद नहीं होने देना चाहिए।
    2. जैसे हमारे घर में यदि 400 रुपये से लेकर 4 लाख रुपये की भी चोरी हो जाती है तो हम चोरों का पता लगाते हैं तथा पूरी ताकत लगाकर अपना धन वापस लेते हैं। क्योंकि वह हमारी मेहनत का पैसा है वैसे ही देश के 120 करोड़ लोगों की टैक्स के रूप में दी गई मेहनत की कमाई व अन्य स्रोतों से लूटा गया देश का लगभग ये 400 लाख करोड़ रुपये हमें वापस लेना है क्योंकि ये देश एवं देश का धन हमारा है।
    3. जैसे-हमारे घर में एक भी बच्चा भूखा सोता है, अनपढ़ रहता है या अभाव व अपमान में जिदंगी जीता है तो माता-पिता की आँखों में आँसु आ जाते हैं और वे चैन से सो नहीं पाते हैं, वैसे ही इस देश के 84 करोड़ लोगों की भूख, अशिक्षा व अपमान से हमें आहत होना चाहिए, हमारी आँखों में संवदना के रूप में आँसु होने चाहिए। क्यांकि ये हमारे हैं और जब तक हम इनको इनका अधिकार नही दिलवा देते तब तक न तो चैन से बैठगे न ही चैन से सोयग।
  16. नेता व पाटिदमवयाँ कठोर कानून क्यों नहीं बनातेदेश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे किसी केबिनेट मंत्री या अन्य नेताओं की माँ, बहन व बेटियों के साथ न तो बलात्कार होता है, न ही उनके परिवार वालों को खाने-पीने की मिलावटी चीजों का सामना करना पड़ता है तथा भ्रष्टाचार में भी नेताओं व पाटिदमवयों का धन नही लुटता। देश की महिलाओं के साथ बलात्कार होता है व लगभग देश के 120 करोड़ लोगों को मिलावटी सामान मिलता है जिससे वे बीमार होकर मरते हैं। भ्रष्टाचार से देश का धन लुटता है तथा इन अधिकांश भ्रष्ट नेताओं का भ्रष्टाचार से घर भरता है। देश से इनको कोई ममता, प्रेम या मोहब्बत नही है। अत: ये अधिकांश नेता व पाटिदमवयाँ-भ्रष्टाचार, बलात्कार व मिलावट के खिलाफ आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड का कठोर कानून नहीं बनाते; भ्रष्टाचार के खिलाफ रिकवरी (वसूली) का कानून भी नही बनाते, ऐसा करने से इन भ्रष्टाचारियों से कालाधन छिनेगा तथा देश को धन मिलेगा।
  17. अखण्ड भारत – भ्रष्टाचार व कालेधन के समाप् त होते ही भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 20 हजार लाख करोड़ रुपये की हो जाएगी। भारत के आर्थिक महाशक्ति बनते ही समय के साथ अलग हुए सभी राष्ट्र पुन: भारत में विलीन हो जायेंगे। अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक तथा कैलाश मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा भारत अखण्ड होगा और एक शक्तिशाली व आध्यात्मिक भारत के उदय से नये विश्व का उदय होगा।
  18. सेवा का सिद्धांत – सम्पूर्ण सृष्टि या ब्रह्माण्ड सेवा, श्रम या कर्म के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है। सूर्य, चन्द्र, धरती, वृक्ष व जड़ी-बूटियाँ आदि सब दूसरों के लिए जी रहे हैं। बदले में कुछ भी नहीं ले रहे हैं। हम भी इन सबसे निःस्वार्थ सेवा, श्रम व कर्म करना सीखें। देखो ! इन सबमें कोई स्वार्थ, प्रतिक्रिया व प्रमाद आदि नहीं है।
  19. राष्ट्रसेवा : देश को अच्छा, शक्तिशाली बनाने के लिए तथा राष्ट्र सेवा के लिए आत्मानुशासन में रहकर आत्मविश्वास व साहस के साथ अपने कर्म को अपना धर्म मानकर, श्रमपूर्वक अपने राष्ट्र की समृद्धि करना, यह हमारी व्यक्तिगत रूप से सबसे बड़ी राष्ट्रसेवा है। जिस दिन हर किसान, हर जवान, हर अध्यापक, विद्यार्थी, राजनेता, डॉक्टर, इन्जीनियर, साधु, संन्यासी, योगी, माताएँ, बहनें व बेटियाँ आदि सब अपना-अपना काम अपनी पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करने लगेंगे, उस दिन देश जरूर महान~ बनेगा। जापान, अमेरिका व चीन आदि देश ईमानदारी से मेहनत करके ही ऐसे ही आगे बढ़े है।
  20. राष्ट्र-निर्माण – कुछ लोग घर बनाने में, कुछ लोग भवनों के निर्माण में, कुछ लोग सड़के बनाने में, कुछ लोग गाड़ियाँ बनाने में, कुछ लोग औद्योगिक क्षेत्र में, इस तरह से राष्ट्र-निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में लगे सभी लोगों की हम हृदय से प्रशंसा करते हैं। कुछ लोग इसी तरह से एक से दो घण्टा अथवा पूरा जीवन व्यक्ति-निर्माण, ग्राम-निर्माण व राष्ट्र-निर्माण में जीवन को लगा दें तो इससे बड़ा जीवन का सौभाग्य कुछ और नहीं हो सकता एवं यह जीवन की सबसे बड़ी उपयोगिता होगी।
  21. योग-सेवागरीब-अमीर सब व्यक्तियों, समाज, राष्ट्र व विश्व की सेवा का सर्वश्रेष्ठ व सम्पूर्ण साधन या माध्यम है- योग। व्यक्ति व समाज में बहुत से रोग, विचार, दु:ख व बुराइयाँ है – योगसेवा इन सबका समाधन है। अब अलग-अलग अभियान (कम्पियन) न चलाकर, सब लोग योग-कम्पियन ही चलायेंगे। इससे रोग, नशा, हिंसा, अज्ञान व अन्य सब बुराईयों से मुक्त समाज तो बनेगा ही साथ ही योग से हम सब संगठित होकर करॅप् शन, कैरॅप् ट पोलिटिकल सिस्टम व ब्लैक मनी के अगेंस्ट भी कम्पियन को सार्थक, निर्णायक व निःस्वार्थ भाव से चला पायेंगे। योग आत्मोन्नति, राष्ट्रोन्नति, आत्मनिर्माण, ग्राम-निर्माण व राष्ट्र निर्माण का, आत्मकल्याण व विश्वकल्याण का सर्वश्रेष्ठ, सार्थक, परिणामकारी, सार्वभौमिक, वैज्ञानिक, शाश्वत व सात्विक माध्यम या साधन है। जैसे अतीत में यज्ञ, स्वाध्याय, शास्त्रार्थ, मठ, मन्दिर, कथा व शाखाएं व्यक्ति-निर्माण, राष्ट्र-निर्माण व युग-निर्माण आदि की माध्यम बनी व आज भी इन सबकी प्रासंगिकता है लेकिन योग-सेवा समय, काल परिस्थिति के अनुसार सर्वश्रेष्ठ सेवा का रूप ले चुकी है।
  22. योग संन्यास या सेवा संन्यास- प्राचीन काल में हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था के तहत सोलह संस्कार व चतुर्वर्णाश्रम की रचना की थी। भारत के सामाजिक, आध्यात्मिक, आर्थिक व राजनैतिक पतन के कारण वह व्यवस्था क्षीण हुई है। अब कम से कम योग संस्कार व योग संन्यास से हम अपने प्राचीन आध्यात्मिक वैभव को बचा सकते हैं। जितने भी वरिष्ठ नागरिक हैं अथवा समर्थ लोग हैं वे बाहर से संसार में रहते हुए भी भीतर से अर्थात् कर्म या आचरण से संन्यासी बनें। इनमें से कुछ आंशिक रूप से तो कुछ पूर्णरूप से योग-संन्यास अथवा सेवा-संन्यास का व्रत या दीक्षा लें कि अब हम अपने सम्पूर्ण जीवन को इस श्रेष्ठतम कार्य में लगायेंगे। शीघ्र ही योग-संन्यास अथवा सेवा-संन्यास की श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के सान्निध्य में पंजीकरण की व्यवस्था भी की जायेगी।
  23. व्यक्ति व राजनीति की शुद्धि में समय –प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत दोषों को दूर करने का अवसर प्रतिदिन व प्रतिपल मिलता है। अत: हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम आज से तथा इसी क्षण से अपने दोषों को स्वीकार कर स्वयं में सुधर करेंगे। दृढ़-संकल्प, योग, प्राणायाम व ध्यानादि से जीवन को पूर्ण-पवित्र बनायेगें। राजनैतिक दोषों को दूर कर भारतीय राजनीति का पुनर्जन्म करने का अवसर पाँच वर्ष में एक बार अथवा चुनाव के समय ही मिलता है लेकिन इस एक दिन में हम निष्कलंक लोगों को एक-एक वोट करके इस राजनीति की पूरी खोट को दूर कर सकते हैं और भ्रष्टाचार, कालाधन व भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था जिसके कारण पूरा देश नरक बना हुआ है उसको बदल कर इस देश को स्वर्ग व सुखी बना सकते हैं। राजनीति का शुद्धिकरण या पुनर्जन्म तो हमारे 1 प्रतिशत ध्येय के अन्तर्गत आता है जोकि चुनाव के समय लोकतन्त्र के महाकुम्भ पर निष्कलंक (नॉन-करेप् ट) लोगों को हम वैसे ही वोट करके व दूसरों को प्रेरित कर वोट करवाकर प्राप् त कर लेंगे। 99 प्रतिशत तो हमारा ध्येय प्रतिदिन साधना व सेवा करके चरित्र-निर्माण करना ही है।
  24. भारत स्वाभिमान का ध्येय-रोग, नशा व विदेशी कम्पनियों की लूट के षड्यंत्र से देश को बचाकर भ्रष्टाचार, कालाधन व भ्रष्ट व्यवस्थाओं से मुक्त एक महाशक्तिशाली, वैभवशाली भारत का निर्माण करना तथा भारत को एक आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठापित करना भारत स्वाभिमान का ध्येय है।
  25. भारत स्वाभिमान के मुख्य सिद्धांत व आदर्श –
    1. चारित्रकि, आर्थिक व आपराधिक दोषों से मुक्त रहना।
    2. वाणी व व्यवहार के दोषों से मुक्त रहना।
    3. अपमान, उपेक्षा व विरोध आदि से विचलित न होकर अपने कर्त्तव्यपथ पर निरन्तर आगे बढ़ना, चरैवेति-चरैवेति।
    4. गीता के अनुसार एक आदर्श कार्यकर्त्ता होना -मुक्तसग्ङोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:। सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकर:कर्ता सात्विक उच्यते।। (गीता 18/26)- लालच व अंहकार से मुक्त, धैर्य व उत्साह से युक्त रहकर परिणाम की परवाह किये बिना, फलासक्ति से रहित रहकर योगधर्म व राष्ट्रधर्म को निष्ठापूर्वक निभाना।
    5. गुरु को केन्द्र में रखकर संगठन के अनुशासन व मर्यादा में रहकर पूर्ण समपिदमवत भाव से प्रतिदिन सेवा करना।
  26. हमारी संगठन-शक्ति व्यक्ति निर्माण से ग्राम-निर्माण व राष्ट्र-निर्माण के लिए तथा भ्रष्टाचार व कालाधन आदि को खत्म करने के लिए और व्यवस्था परिर्वतन हेतु सत्ता आदि परिर्वतन के लिए आज हमारे पास देश के सभी प्रान्तां, सभी जिलो, सभी तहसीलों व लाखों गाँवों में एक मजबूत संगठन है तथा वर्ष 2011 के अन्त तक सभी गाँवों में भी 100 प्रतिशत भारत स्वाभिमान का संगठन खड़ा हो जायेगा।
  27. सफलता :- सही दिशा व पूर्ण पुरुषार्थ सफलता के मुख्य साधन है। आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से बड़े परिवर्तन के लिए पाँच आधर-भूत साधन है –
    1. व्यापक मजबूत व अनुशासित संगठन,
    2. निरन्तर निःस्वार्थ सेवा
    3. पूर्ण-पवित्रता
    4. आर्थिक सामथ्र्य
    5. व्यापक लोकप्रियता व विश्वसनीयता। हमारे संगठन में ये पाँचों शक्तियाँ हैं एवं इनको और अधिक बढ़ाना है तथा हमें 100 प्रतिशत सफल होना है।
  28. भारत स्वाभिमान आन्दोलन से देश को क्या मिलेगा –
    1. रोग में देश का प्रतिवर्ष लगभग दस लाख करोड़ रुपये, नशों में लगभग दस लाख करोड़ रुपये तथा विदेशी कम्पनियाँ भी व्यापार के नाम पर जो लूट कर रही हैं। उससे देश का प्रतिवर्ष 5 लाख लाख करोड़ रुपये से अधिक धन विदेशों में चला जाता है। योग व भारत स्वाभिमान अभियान से, प्रतिवर्ष हो रही इस लगभग 25 लाख करोड़ रुपये की लूट से देश को हम बचा रहे हैं और आगे पूरी तरह से बचायेंगे ।
    2. भ्रष्टाचार करके अब तक जो 400 लाख करोड़ रुपये लूटे गएं हैं। वह देश व देशवासियों का धन तो देश को वापस दिलायेंगे ही, साथ ही आगे से लगभग 10 हजार लाख करोड़ रुपये से भी अधिक जो हमारी राष्ट्रीय सम्पदायें हैं उनकी लूट न हो ऐसा प्रबन्ध करेंगे तथा भ्रष्टाचार के सभी मुख्य पाँच स्रोतों को बन्द करके प्रतिदिन हो रहे हजारों करोड़ रुपये के घोटालों से देश को बचायेंगे। साथ ही स्वतन्त्र भारत में चल रहे अंग्रेजी तंत्र के स्थान पर समस्त व्यवस्थाओं का भारतीयकरण व आध्यात्मीकरण करेंगे।
    3. भारत की आर्थिक समृद्धि इतनी अधिक होगी कि हमारा एक रुपया अर्थात् एक भारतीय मुद्रा अमेरिका के 50 डॉलर के बराबर होगी अर्थात् एक रुपये देने पर हमको 50 अमेरिकी डॉलर मिलेंगे। दुर्भाग्‍य से आज 50 रुपये देने पर हमको एक अमेरिकी डॉलर मिलता है।
    4. गरीब-अमीर सब को समान रूप से संस्कारों के साथ नि:शुल्क शिक्षा मिलेगी तथा पढ़ाई करने के बाद एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं रहेगा।
    5. जैसे आज भारतीय नागरिक डॉलर व पौण्ड आदि विदेशी मुद्रा के लिये विदेशों में कार्य करते हैं, खासकर वहाँ के पेट्रोल पम्प, रेस्टोरेन्ट व एयरपोर्ट आदि पर, वैसे ही आने वालों 10 से 25 वर्षों में ब्रिटेन, अमेरिका व अन्य यूरोप आदि देशों के लोग सशक्त भारतीय मुद्रा के लोभ में हमारे देश में, एयरपोर्ट, पेट्रोल-पम्प, होटलों व अन्य कर्मचारियों के रूप में काम करेंगे तथा उनके बॉस के रुप में बड़े अधिकारी भारतीय लोग होंगे।
  29. वोट – एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में उठता है कि भारत स्वाभिमान आंदोलन की सभाओं में आने वाले लोग या वैचारिक रूप से हमसे जुड़े हुए लोग क्या भारत स्वाभिमान के आह्वान पर चुनाव के समय ईमानदार, निष्कलंक (नॉन-करप्ट) व योग्य व्यक्तियों को वोट देंगे? तो हमारा उत्तर है-हाँ, क्योंकि श्रद्धेय स्वामी जी जब लोगों से पूछते हैं “क्या आप लोग चुनाव के समय संगठन के आह्वान पर वोट देंगे”-तो लोग कहते हैं कि “बाबा जी वोट देंगे, औरों से भी दिलवायेंगे तथा संगठन के काम के लिए दान (नोट) भी देंगे तथा जरूरत पड़ी तो जान भी कुर्बान करने से पीछे नहीं हटेंगे”। दरअसल ये बात राजनैतिक पाटिदमवयों के विषय में बिल्कुल उल्टी होती है क्योंकि उनकी रैलीयों में लोगों को पैसे देकर बुलाया जाता है। अत: उस भीड़ का वोट में बदलना एक बहुत बड़ा प्रश्न होता है। यहाँ तो श्रद्धेय स्वामी जी महाराज के कार्यक्रमों में आने वाले लोग श्रद्धापूर्वक अत: प्रेरणा से आते हैं। वैचारिक रूप से हमसे जुड़े 100 करोड़ से अधिक लोग, अब इस भ्रष्टाचार, कालेधन व भ्रष्ट-व्यवस्था को समाप् त करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं जन-साधरण को केवल अगले चुनाव का इंतजार है।
  30. हमारी भावी विकास योजना:-
    1. जल प्रबन्धन की राष्ट्रव्यापी नीति बनाना, जो देश को बाढ़ व सूखे से बचाए तथा करीब 50 करोड़ एकड़ भूमि के ऊपर लगभग 50 लाख करोड़ रुपये की प्रतिवर्ष सालाना उपज लेना। इससे भारत के गरीब, मजदूर व किसान को समृद्ध बनाना।
    2. प्रत्येक जिले के विकास योजनाओं का स्वरूप एक राष्ट्र की तरह बनाना। गाँव से लेकर शहर तक औद्योगिक, सेवागत व कृषिगत विकास में एक संतुलन बनाना। आजादी के बाद अधिकांश सरकारों की गलत आर्थिक नीतियों के कारण से जो विषमताएं पैदा हुई हैं उनको समाप् त करना व विकास के विकेन्द्रीकरण की नीतियों को पूरी ईमानदारी के साथ क्रियान्वित करके विकास का संतुलन बनाना।
    3. आयुर्वेद के विकास से कॉस्मेटिक, स्वास्थय-वर्धक आहार व अन्य नित्य-प्रयोग की वस्तुओं में जड़ी-बूटियों के प्रयोग को प्रोत्साहन देकर 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाते हुए कम से कम 50 प्रतिशत तक ले जाना।
    4. देश की जनसंख्या का उपयोग देश के उत्पादन को बढ़ाने में तथा विकास करने में करना। अनुत्पादक व दिशाहीन श्रम से देश को मुक्ित दिलाना। सभी नागरिकों को शिक्षा देकर व समृद्ध बनाकर जनसंख्या को व्यवहारिक तथा ताकिदमवक रूप से नियन्त्रति करना। यदि हम राष्ट्र की श्रम शक्ति का पूरा उपयोग करें तो 100 से 200 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आर्थिक समृद्धि हासिल हो सकती है। अनुत्पादक-श्रम देश के वर्तमान शासकों की अदूरदर्शिता व मू[र्ाता का बहुत बड़ा उदाहरण है।
    5. दुर्भाग्य से हमारे देश में विश्व-स्तरीय शोध व अनुसंधन-संस्थान, विश्व-विद्यालय एवं अन्य सम्पूर्ण विकास का ढाँचा जितना होना चाहिए, उतना नहीं है। हम इसे खड़ा करेंगे तथा विज्ञान व तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अन्तरिक्ष-विद्या, भूगर्भ-विद्या आदि से हर क्षेत्र में भारत को सर्वोच्च स्थान पर लेकर जायेंगे, जैसे कि प्राचीन काल में भारत ने हर क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व किया था और हमने ही विश्व को सबसे पहली भाषा, संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, कृषि व अर्थ-व्यवस्था आदि दी थी।
  31. इतनी जल्दी क्यों –योग व अध्यात्म से जब देश ठीक हो जायेगा तो सब कुछ अपने आप ठीक हो जायेगा, फरि भारत स्वाभिमान आन्दोलन की जरूरत व इतनी जल्दी क्यों ? यह प्रश्न बहुत से लोग करते हैं पहली बात ये भ्रष्ट-बेईमान व चोर लोग न योग करते है, न अध्यात्म व भगवान को मानते हैं। अत: इनको सुधरने के लिए तो भारत स्वाभिमान जरूरी है ही, साथ ही पहले जो 400 लाख करोड़ रुपये लूटा गया सो तो लूटा गया, आगे से राष्ट्रीय सम्पदाओं के रूप में लगभग दस हजार लाख करोड़ रुपये लूटने का खतरा बना हुआ है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क के अनुसार दुनियाँ के भ्रष्ट लोग प्रतिवर्ष 1.6 ट्रिलियन डॉलर अर्थात् लगभग 72 लाख करोड़ रुपये क्रोस बोर्डर ब्लैक मनी जमा करते हैं इसमें भारत से भी लगभग 20 लाख करोड़ रुपये की प्रतिवर्ष लूट होती है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रतिमाह लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये तथा प्रतिदिन लगभग 5 हजार करोड़ रुपये भारत से ये बेइमान लोग लूट कर रहे है। अत: एक दिन भी इन भ्रष्ट लोगों का सत्ता में बना रहना भी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
  32. राजनैतिक हस्तक्षेप क्यों? :- हम देश को अच्छा देखना चाहते हैं। हम देखना चाहते हैं, कि हमारे देश में भी अमेरिका, जापान व इंग्लैण्ड आदि की तरह अच्छी सड़के हों, सबके लिए नि:शुल्क समान शिक्षा हो, शिक्षा के साथ संस्कार व उच्च आध्यात्मिक मूल्य व आदर्श हों, अच्छी स्वास्थ्य सुविधएं हों, कानून अच्छे हों, जिससे अपराधियों को दण्ड मिले व सब लोगों को सुरक्षा मिलें। क्योंकि देश कानून से ही चलता है नेता व सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। भूमि अधिग्रहण व गोहत्या जैसे काले कानून खत्म हों। भ्रष्टाचार, बलात्कार व मिलावट के खिलाफ मृत्युदण्ड का कानून बने तथा गोहत्या-निषेध का कानून बने, पशुधन आधरित विष-मुक्त कृषि हो जिससे किसान व सब देशवासी स्वस्थ व समृद्ध बनें, देश में सर्वत्र आध्यात्मिकता व ईमानदारी हो आदि-आदि। परन्तु हम भूल जाते हैं कि देश में लोकतान्त्रकि शासन प्रणाली में सर्वोच्च शक्ति चुनी हुई सरकार के पास होती है। सरकार चाहे तो ये सब काम एक दिन में कर सकती है। देश की सभी व्यवस्थाएं (पूरा सिस्टम) सभी सेनाएं व देश की आधे से ज्यादा जमीनें तथा सभी भूसम्पदाएं सरकार के अधिकार मे हैं। देश के जल, जमीन, जंगल, जड़ी-बूटियाँ, जवानों का वर्तमान व भविष्य सब कुछ सरकार के हाथों में है। अत: सरकार का अच्छा व ईमानदार होना बहुत ही जरूरी है। यदि देश, भारत माता गलत लोगों के हाथों में होगी तो वे उसे लूटेंगे, बेचेंगे, नोचेंगे, खा जायेंगे और अधिकांशत: यही हो रहा है। अत: हम चुनी हुई सरकारों पर अपना संवैधनिक कर्तव्य निभाने के लिए दबाव डालेंगे और यदि वे पूरे सिस्टम को ठीक नहीं रखती हैं, तो इस देश को बचाने के लिए हमारे संविधन ने एक बहुत बड़ी शक्ति हमें दी है कि हम पाँच साल में अथवा जब भी चुनाव हो, तो एक दिन में अपने एक-एक वोट से भ्रष्ट सरकारों को बदलकर अच्छे लोगों को चुनकर देश को बचा सकते हैं।
    यदि हमने देश को नहीं बचाया तो हम भी उतने ही गुनाहगार होंगे जितना ये देश को लूटने वाले भ्रष्टाचारी। अत: यह राजनैतिक हस्तक्षेप हमारा राष्ट्रधर्म है, यह हमारा देश के प्रति संवैधनिक कर्त्तव्य है, यह पाप नहीं पुण्य है, राजनीति का शुद्धिकरण या पुनर्जन्म करना यह नफरत, घृणा, उपेक्षा या तिरस्कार की बात नहीं अपितु यह देश के लिए बहुत बड़ा धर्म व पुण्य का काम है। यह राजनैतिक हस्तक्षेप राष्ट्रसेवा है, राष्ट्रधर्म है, यह राष्ट्रप्रेम है।
  33. हमारे विरोधी कौन – गाँव, गरीब व भारत विरोधी भ्रष्ट लोग अपने निहित स्वार्थों के चलते हमारा विरोध करते रहे हैं तथा आगे भी करेंगे। विरोध के मुख्य चार कारण होते है:- स्वार्थ, अज्ञान, आग्रह व अहंकार। जो अज्ञान, आग्रह व अहंकार-वश हमारा विरोध कर रहे हैं। हम उनको विनम्रतापूर्वक समझाकर समाप् त कर लेगें व अपनी बात पूरी बताकर अपना समर्थक बना लेंगे, लेकिन स्वार्थी तत्व व भ्रष्ट लोग तो सदा ही विरोधी रहेंगे।
  34. पाप व अन्याय का विरोध – राष्ट्रहित में ज्ञानपूर्वक शालीनता के साथ पाप व अन्याय का विरोध करना अनुचित नहीं अपितु उचित है, धर्म व पुण्य है। पाप का तो विरोध हमारे पूर्वजों ने सदा से ही किया है तथा वेद में भी कहा है-मा व स्तेनऽ ईशत: (यजु0 1.1) अर्थात् भ्रष्ट व चोर लोग हम पर शासन न करें। अत: पाप का विरोध करना अपराध या गुनाह नहीं अपितु पाप का विरोध न करने वाले अपराधी, पापी व गुनहगार है।
  35. परिवर्तन –जैसे लगभग 2 या 3 हजार वर्ष पूर्व वैदिक धर्म के साथ अन्य धर्म-सम्प्रदायों के रूप में धमिर्क परिवर्तन हुआ, जैसे 100 साल पहले पूरे विश्व में राजतंत्र से प्रजातंत्र के रूप में शासन व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन हुआ है। वैसा ही अब इस देश में एक बड़ा सामाजिक, आध्यामिक, आर्थिक, राजनैतिक-परिर्वतन अवश्यंभावी है। यदि हमने व अन्य संगठनों, सात्विक लोगों ने यह परिवर्तन नहीं किया, तो भी यह तो होना ही है। परिवर्तन संसार का वैसा ही अटल सत्य है जैसा बचपन के बाद यौवन। यदि हम सब संगठित होकर इस परिवर्तन को सही दिशा में लायेंगे तो यह राष्ट्र व संसार के लिए शुभ , हितकर व कल्याणकारी होगा।
  36. सत्य या उचित-अनुचित क्या है – कोई भी नेता अथवा तथाकथति बड़ा व्यक्ति किसी भी संदर्भ में मीडिया में कोई बयान देता है तो वह सत्य व उचित नहीं हो जाता अपितु तथ्य, तर्क व प्रमाणों से ही उचित-अनुचित, सत्य अथवा झूठ का निर्णय होता है।
  37. मूलत: हम सब ग्रामवासी – हम सबके पूर्वज मूलत: गाँव में ही पैदा हुये हैं। शहरी संस्कृति तो बहुत ही अर्वाचीन है। हमारे बड़े-बुजुर्ग व ऋषि-मुनि अरण्यों (वनों) व गाँवों में वास करते थे। अत: हम सबका यह कर्तव्य है कि अपने पूर्वजों की जन्मभूमि गाँव व गाँव के गरीब, मजदूर व किसानों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए ग्राम-इकाईयाँ गठित करके योजनाबद्ध व चरणबद्ध तरीके हम सब मिलकर प्रयास करें। इससे एक ओर जहाँ गाँव में खुशहाली आयेगी तथा गरीबों व किसानों के चेहरों पर मुस्कान आयेगी वहीं हमारे पूर्वजों की आत्मा को भी शान्ति मिलेगी।
  38. हम किसके साथ – हम देश, सत्य व न्याय के साथ हैं तथा गाँव, गरीब व भारत के हितैषी सदा हमारे साथ थे, हैं और रहेगें तथा जो लोग पूरी ईमानदारी व सच्चाई से पहले अपने भीतर के (जीवन या पार्टी के) पाप को साफ करके देश से भ्रष्टाचार, भ्रष्ट-व्यवस्था को मिटाने व कालेधन को देश को वापिस दिलाने के लिये सहमत हैं, वे भी हमारे साथ होंगे। हम अपने तप व करोड़ों लोगों के विश्वास को देश के लिए तो दाँव पर लगायेंगे, भ्रष्ट लोगों के लिए नहीं।
  39. हम कौन हैं :- हम सब आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर की सन्तान हैं, कुल वंंश, परम्परा से हम ऋषि पुत्र हैं तथा भौतिक रूप से मूल में भारत माता की सन्तान हैं। क्योंकि प्रथम पिता यह राष्ट्ररूपी पिता है तथा प्रथम माता यह धरती-माता या मातृभूमि है -माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: (अथर्ववेद 12.1.12)। अत: हमारा कर्त्तव्य है हम सब मिलकर भगवान~ का साम्राज्य अर्थात स्वर्ग धरती पर लाएं। हम ऋषियों के वंशज हैं, अत: भारत को ऋषि भूमि बनाएं तथा भारत माता की सन्तान होने का धर्म निभाते हुए भारत को विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनाएं।
  40. आत्म-स्वरूप या स्वभाव अहिंसा, सत्य, अस्तेय, सदाचार, प्रेम, करूणा, सेवा, सद~भावना, आनन्द, शान्ति, ज्ञान, शौर्य, साहस, धैर्य, सहजता, कर्मशीलता ये हमारे स्वभाव, धर्म या स्वरूप हैं। स्वभाव उसको कहते हैं जिसमें हम 24 घण्टे जीतें हैं। सहज प्रेम व सत्य आदि में हम 24 घण्टे जीते हैं अथवा जीना चाहते हैं अत: ये हमारे स्वभाव हैं। लेकिन काम, क्रोध व अहंकार आदि, यदि एक क्षण के लिए भी हमारे मन में उठते हैं तो हमें कष्ट देते हैं। अत: अविद्या आदि पाँच क्लेश व अज्ञान-मूलक काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकारादि पाँच विकार इन्द्रियों का व मन का मिथ्यारूप बोध ये हमारे स्वभाव, स्वधर्म व स्वरूप नहीं हैं।
  41. व्यक्ति की शक्ति – भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को प्रथम होने की शक्ति, सामथ्र्य व ज्ञान दिया है। जो क्षमता सृष्टि के आदिकाल से अब तक विश्व के महान~ आदर्श महापुरूषों में थी वही सम्पूर्ण क्षमता हम सब में है। अत: हमें जीवन के हर श्रेष्ठ क्षेत्र में प्रथम बनना है तथा अपने देश को भी प्रथम बनाना है। हमारे राष्ट्र में भी विश्व के प्रथम राष्ट्र होने की सम्पूर्ण क्षमता है।
  42. विचार की शक्ति – जीवनव मन एक खेत की तरह है तथा विचार बीज की तरह। जीवन व चित्त-रूपी भूमि में जैसे विचारों के बीज डालेंगे वैसा ही हमारा जीवन, आचरण व चरित्र हो जायेगा। हम जो कुछ भी हैं सदाचारी-दुराचारी, हिंसक-अहिंसक, शाकाहारी-मांसाहारी, सुखी-दु:खी, सफल-असफल, शांत-अशांत, आस्तिक-नास्तिक, ईमानदार-बेईमान, अच्छे या बुरे आदि सब कुछ हमारे विचारों के कारण से हैं। अत: ऊँचे व श्रेष्ठ विचार ही महान् जीवन के आधर होते हैं।
  43. जीवन-प्रबन्धन – प्रतिदिन 1 घन्टा योग, 8 से 16 घन्टे कर्मयोग, 6 घन्टे निद्रा व 2 घन्टे परिवार के साथ बैठना, यह जीवन प्रबन्धन का सिद्धांत है ।
  44. आदर्श की स्थापना –आदर्श-जीवन, आदर्श-परिवार, आदर्श-समाज, आदर्श-राष्ट्र व आदर्श-राज्य व्यवस्था हमारा लक्ष्य है। हम जीवन में सदा उच्च आदर्शों पर चलने में ही गौरवान्वित महसूस करते हैं तथा जिन्होंने उच्च आदर्शों से युक्त जीवन जीया उनको ही अपना आदर्श मानते हैं तथा स्वयं भी जीवन में उच्च आदर्शों की स्थापना करना चाहते हैं।
  45. ऊर्जा का सिद्धांत :- एक सैल (कोशिका) से लेकर पूरा पिण्ड (शरीर) व एक-एक परमाणु से लेकर पूरा ब्रह्माण्ड एनर्जी (ऊर्जा) के सिद्धांत पर कार्य करता है। योग, प्राणायाम, ध्यान, यज्ञ, जड़ी-बूटियों के सेवन से हमारे भीतर एक सकारात्मक शक्ति का सृजन होता है तथा रोग, नशा, समस्त अशुभ विचार, अज्ञान, अविद्या, क्लेश, शरीर, इन्द्रियों व मन आदि के सब दोष नष्ट हो जाते हैं और मानव महामानव बन जाता है। जैसे मोबाईल की बैटरी 30 मिनट में चार्ज होने के बाद, हम पूरा दिन मोबाईल पर बात कर सकते हैं वैसे ही प्रतिदिन योग, प्राणयाम, ध्यान द्वारा शरीर, मन व आत्मा को चार्ज कर सकते हैं।
  46. सत्यमेव-जयते जब भी कोई इंसान जीवन में कोई बड़ा निर्णय लेता है तो वह 99वें प्रतिशत अन्तरात्मा से उठ रही परमात्मा की प्रेरणा या संदेश के अनुरूप ही कार्य करता है और हर व्यक्ति की आत्मा व्यक्ति को गलत काम करने से रोकती है तथा उसको सच्चाई पर चलने के लिए प्रेरित करती है। अत: देश हमारे साथ खड़ा होगा क्योंकि हम सत्य व न्याय के पथ पर है।
  47. चित्र – चित्र देखकर हमें ऊँचे चरित्र की प्रेरणा मिलती है अत: हम अपने घरों में उन महापुरुषों के चित्र लगायें जिन्होंने सामाजिक, राष्ट्रीय व आध्यात्मिक जीवन के उच्च आदर्शों की स्थापना की है।
  48. कर्म – जो हम करते हैं वही हमको मिलता है तथा वह कई गुणा होकर मिलता है जैसे सरसों, तिल, बाजरा आदि जो कुछ भी हम जमीन में डालते हैं वह हमें फसल के रूप में कई गुणा होकर मिलता है। दान व सेवा में भी यही सिद्धांत लागू होता है।
  49. पाप-पुण्य –जिस काम को करने में आत्मा हमको रोके वह काम पाप है जैसे- हिंसा, झूठ, दुराचार, व्यभिचार इत्यादि। जिस काम को करने में आत्मा को सुख, शान्ति व तृप्ति मिले वह पुण्य है जैसे- योग, ध्यान, सेवा, दान इत्यादि।
  50. सरकारी कर्मचारी व अधिकारी – हम सभी सरकारी नौकरी करने वाले देशक्त कर्मचारियों व अधिकारियों का राष्ट्रहित में हृदय से आह्वान करते हैं कि आप किसी पार्टी के गुलाम नहीं, अत: किसी भी षड्यन्त्र व भ्रष्टाचार में भ्रष्ट-नेताओं का साथ न दें अपितु भ्रष्टाचार को मिटाने व कालाधन देश को दिलाने वाले काम में सहयोग करके अपना संवैधनिक दायित्व व राष्ट्रधर्म निभायें।
  51. प्रतिभा पलायन – हमें पढ़-लिखकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि विदेशों में नहीं जाना अपितु अपने देश को विदेशों से भी अच्छा बनना हैं तथा हमारे देश में हमें विश्व-स्तर के शोध,अनुसंधन-केन्द्र, विश्वविद्यालय व सम्पूर्ण विकास का एक आदर्श ढाँचा तैयार करना है। भ्रष्टाचार मिटाकर कालाधन देश को दिलाकर, हम भारत को अमेरिका से भी अधिक शक्तिशाली बनाना है।
  52. आरक्षण –भ्रष्टाचार व कालाधन खत्म होने से हमारे पास इतना धन होगा कि हम प्रत्येक जिले, तहसील में लाखों विद्यालय व हजारों विश्वविद्यालय बना सकेंगे तथा प्रत्येक गाँव में औद्योगिक व अन्य विकास के काम कर सकेंगे। हम अपने लोगों को पढ़ाने व रोजगार देने के साथ-साथ विश्व के अन्य लोगों को भी रोजगार दे सकेंगे। अत: भ्रष्टाचार के खत्म होने व विकास होने पर जब सबको आर्थिक व सामाजिक न्याय मिल जायेगा तो आर्थिक विषमतायें समाप् त हो जायेंगी। प्रारम्भ में आरक्षण का उद~देश्य था कि आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से जो पिछड़े हुए लोग थे उनको ऊपर उठाया जा सके। यह वैचारिक व व्यवहारिक रूप से तर्कसंगत भी था, परन्तु अब आरक्षण के नाम पर जिस तरह से घटिया राजनीति हो रही है वह चिन्ताजनक है। अत: सम्पूर्ण भारतवासियों को सामाजिक व आर्थिक न्याय पाने के लिए तथा समस्त विषमताओं को दूर करने के लिए भ्रष्टाचार व कालेधन के खिलाफ एक साथ खड़ा होना होगा। तभी सभी जातियों को समान रूप से न्याय मिल पायेगा।
  53. विकास का दर्शन – हम व्यवस्थाओं, पूँजी, उद्योग, सेवाओं व अधिकारों के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखते हैं। यही सवा±Äõीण विकास का आदर्श-दर्शन है। हम पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, उदारीकरण व वैश्वीकरण के नाम पर गाँव, गरीब व भारत की बलि नहीं चढ़ाना चाहते।
  54. मूलभूत सुविधाएं – रोटी, कपड़ा, मकान व शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा बिजली, पानी, सड़क ये नौ मूलभूत बुनियादी सुविधयें देश के सभी नागरिकों को बिना किसी पक्षपात तथा भेदभाव के उपलब्ध करवाना ये सरकार का नैतिक एवं संवैधनिक कर्तव्य है।
  55. युवा-शक्ति – भारत में करीब 50 करोड़ युवा व अन्य मजदूर व कारीगर आंशिक या पूर्ण रूप से बेरोजगार हैं यदि हम युवा-शक्ति का उपयोग उत्पादन बढ़ाने में करें तो हम 100 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का उत्पादन कर सकते हैं। आज चीन प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करता है जबकि हम प्रतिवर्ष मात्र 7 लाख करोड़ रुपये का ही निर्यात कर पाते हैं।
  56. चुनाव सुधार :-
    1. राजनीति में अपराध रोकने के लिए तथा चुनाव में बाहुबल, धनबल या कालेधन के दुरूपयोग पर अंकुश के लिए तथा आपराधिक तत्वों को राजनीति से दूर करने के लिए चुनाव सुधारों की नितान्त आवश्यकता है। इसके लिए स्टेट-फुन्डिंग (धन) इलैक्शन और चुनाव के नाम पर रैलियाँ और झूठे वादे न होकर एक स्थान पर ही सब पाटिदमवयों व अन्य प्रत्याशियों के लिए प्रचार की व्यवस्थाएं हों। सरकार के नियन्त्रण में सार्वजनिक सभाएं हों व जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया में स्थान सरकार अपने खर्च पर उपलब्ध करवाये। इसमें सरकार को राजनैतिक पाटिदमवयों से यदि खर्च में हिस्सेदारी लेनी हो तो, वह भी तर्क-संगत ढंग से की जा सकती है।
    2. प्रधनमंत्री किसी पार्टी, परिवार या व्यक्ति के प्रति वफादार व जिम्मेदार न होकर सीध देश के प्रति वफादार व जवाबदेह हो। इसके लिए प्रधनमंत्री का सीध जनता से चुनाव होना चाहिए।
    3. देश में अनिवार्य मतदान का कानून बनाना चाहिए, विश्व के 30 से भी ज्यादा देशों में अनिवार्य मतदान का कानून है और इससे वहाँ पर स्वस्थ्य लोकतन्त्र है। मतदान करना हमारा मात्र एक अधिकार ही नहीं अपितु लोकतान्त्रकि कर्त्तव्य व धर्म है। मतदान न करने वाले नागरिक को राष्ट्र के नागरिक होने के नाम पर प्राप् त होने वाली सुविधओं से वंचित या उनमें कटौती करने का प्रावधन होना चाहिए।
  57. देश के लोकतन्त्र व सरकारों के लिए सबसे बड़ी शर्म व अपमान की बात –
    1. देश में एक घण्टे में दो महिलाओं के साथ बलात्कार, तीन महिलाओं की दहेज के लिए हत्या। (नेशनल क्राइम ब्यूरों के अनुसार जो रिर्पोटिड केस हैं)
    2. देश में बड़ी संख्या में प्रतिदिन किसानों की आत्महत्या।
    3. देश में 84 करोड़ लोग 20 रुपये मात्र पर प्रतिदिन जीवन यापन कर रहे हैं और ये 84 करोड़ लोग मूलभूत सुविधओं से वंचित है। (प्रा0 अजुनसेन गुप् त व भारत सरकार के आर्थिक सवेक्षणों की रिपोट)
    4. देश में प्रतिदिन 20 हजार व प्रतिवर्ष 60 से 70 लाख लोग भूख से मरते हैं।
    5. देश की सम्पूर्ण आबादी में से 50 प्रतिशत पूरी तरह अनपढ़ तथा 90 प्रतिशत कम पढ़े-लिखे हैं।
    6. देश भ्रष्टाचार, बलात्कार, गंदगी, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा गरीबी में दुनियाँ का सर्वाधिक पिछड़ा देश है।
    7. देश में गलत आर्थिक नीतियों के चलते जहाँ एक ओर भारत में अमीर लोगों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है और वहाँ विश्व के सबसे बड़े 10 धनवानों में से 4 धनवान भारत के हैं। साथ ही भ्रष्टाचार के चलते हमारे देश के पैसे से आधी से ज्यादा दुनियाँ के देशों की अर्थ-व्यवस्था चल रही है। हमारे देश के पैसे से दुनियाँ के 100 से अधिक देश ऐशो-आराम कर रहे हैं तथा हमारे देश के लोग गरीबी से भूखे मर रहे हैं और यही कारण है कि इस देश में अमीर प्रतिदिन-प्रतिपल अधिक अमीर हो रहे हैं तथा गरीब प्रतिदिन-प्रतिपल अधिक गरीब होते जा रहे हैं तथा बेबसी में पशुओं से भी ज्यादा बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं।
  58. “उत्ष्ठित जाग्रत प्राप्य वरान~ निबोधत।” -(कठोपनिषद 3.14) उठो, जागो! और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रूको। सभी देशभक्त, नागरिक एक से दो घण्टे प्रात:काल का समय सोने में न गंवाकर योगसेवा में लगायें। सोने से स्वयं को व देश को कुछ भी नही मिलेगा, योग-साधना व योगसेवा करने से आपको व देश को सब कुछ मिलेगा। अत: स्वयं जागो व ओरों को जगाओ! तथा स्वयं को तथा देश को बचाओं!
  59. सुखस्य मूलं धर्म:। धर्मस्य: अर्थ:। अर्थस्यमूलं राज्यम्। राज्यस्य मूलमिन्द्रयिजय:। (चाणक्य-सूत्राणि) -सुख का मूल (आधर) अर्थ है, अर्थ का नियन्त्रक राज्य है, राज्यशक्ति, राजसत्ता का नियन्त्रण इन्द्रिय विजय अर्थात् जितेन्द्रियता का आधर योग व आध्यात्म है अत: आदर्श राज्य व्यवस्था का आधर भी योग व आध्यात्म ही है।
  60. तप से ऐश्वर्य :- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तप व त्याग से ही संचालित हो रहा है, जिनको कुछ चाहिए वो कुछ तो कर सकते हैं परन्तु सबकुछ नहीं कर सकते हैं। जिनको कुछ नहीं चाहिए, वो सबकुछ कर सकतें हैं। भारत स्वाभिमान आंदोलन के कार्यकर्त्ता नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्त्तव्य मानकर राष्ट्रसेवा, राष्ट्र-निर्माण व राष्ट्रधर्म में लगे हुए हैं। अत: देश के लिए सबकुछ करेंगे और हम सफल होंगे। वेद के इन परम वचनों के साथ हम अपनी बात का उपसंहार करते हैं – अकर्मा दस्यु: इस जगत में कर्महीन आलसी व्यक्ति दस्यु (लुटेरा) होता है तथा मा व स्तेनऽईशत माऽघशंस: (यजु0-1/1) चोर, डाकू, लुटेरे और इनके प्रशंसक तथा समर्थक हमारे ऊपर शासन न करें।

विशेष नोट :- इस प्रपत्र को पढ़ने के बाद योग व भारत-स्वाभिमान आन्दोलन से जुड़े सभी प्रश्नों, जिज्ञासाओं व शंकाओं का समाधन होगा तथा जो लोग अज्ञानवश मौन, उदासीन अथवा विरोध कर रहे हैं इस प्रपत्र को पढ़ने के बाद वे भी इस आंदोलन के प्रबल समर्थक बने बिना नही रूकेंगे।


विशेष –

  1. प्रतिदिन प्रात: 5 से 8 व सायंकाल 8 से 9.30 तक आस्था चैनल पर, 9 से 10 संस्कार चैनल तथा राष्ट्रीय चैनल (डी. डी.-1, दूरदर्शन) पर प्रात: 6.30 से 7.30 बजे तक पर “योग व आयुर्वेद कार्यक्रम” अवश्य देखें। इसके अतिरिक्त श्रद्धेय आचार्य प्रद्युमन जी महाराज का “वेद व दर्शन” पर आधरित कार्यक्रम प्रात: 4:00 बजे से 5:30 बजे तक संस्कार चैनल पर देखें।
  2. राष्ट्र-निर्माण के इस यज्ञ को आगे बढ़ाने के लिये इस पत्रक को राष्ट्रभाषा व अन्य भारतीय भाषाओं में छपवाकर दानस्वरूप गाँव-गाँव व घर-घर वितरित करें तथा वितरक के रूप में आप अपना या अपने संस्थान का नाम प्रकाशित कर सकते हैं।
  3. भारत स्वाभिमान आन्दोलन की नवीनतम जानकारी व जीवन दर्शन, व्यवस्था-परिवर्तन, अग्निपत्र पढ़ने व परम पूज्य स्वामी जी के प्रतिदिन के नये विचार जानने के लिये देखें हमारी हिन्दी वेब-साईट www.bharatswabhimantrust.org

 

निवेदक : भारत स्वाभिमान एवं पतंजलि योग समिति, सम्पर्क-सूत्र :……………………………………………..
सौजन्य से :………………………………………………………………………………………………………………………………………………
मुख्यालय पता: केन्द्रीय कार्यालय, पतंजलि योगपीठ, द्वितीय चरण, महर्षि दयानन्द ग्राम,
दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग, निकट बहादराबाद, हरिद्वार-249405,
Telephone: 01334-240008, 248888, 248999, 246737, Fax: 01334-244805, 240664
Website: www.bharatswabhimantrust.orgwww.divyayoga.com