अब के सावन में
Updated: July 7, 2025
अब के सावन मेंबूँदें सिर्फ़ पानी नहीं रहीं,वो सवाल बनकर गिरती हैंछतों, छायाओं और चेतना पर। अब के सावन मेंन कोई प्रेम पत्र भीगा,न कोई…
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सावन की सिसकी
Updated: July 7, 2025
भीग गया मन फिर चला, तेरी यादों की ओर,सावन ने फिर छेड़ दिया, वो भीगा सा शोर।टपक रही हर साँझ में, कुछ अधूरी बात,छत पर…
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सावन बोल पड़ा
Updated: July 7, 2025
सावन बोल पड़ा —“मैं वो साज़ हूँ, जो मन को छूता है।मैं वो गीत हूँ, जो बिन बोले गूंजता है।मैं भीगते बालकों की हँसी हूँ,और…
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बच्चों को स्कूल बचाएंगे मधुमेह से
Updated: July 7, 2025
डॉ घनश्याम बादल स्कूली बच्चों में बढ़ती हुई टाइप 2 शुगर की बीमारी को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई ने विद्यालयों में बच्चों को मधुमेह से बचने…
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भक्तों के फौजदारी मामले की सुनवाई करते हैं बाबा बासुकीनाथ
Updated: July 7, 2025
कुमार कृष्णन श्रावण माह भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव तो ‘संहारक’ है, सृजन कर्ता और ‘नव निर्माण कर्ता’ भी है। ‘शिव’ अर्थात कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक, सर्वश्रेयस्कर ‘कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’ है। जो हमेशा योगमुद्रा में विराजमान रहते है और हमें जीवन में योगस्थ, जीवंत और जागृत रहने की शिक्षा देते है। पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष के विनाशकारी प्रभावों से इस धरा को सुरक्षित रखने के लिये भगवान शिव में उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया और पूरी पृथ्वी को विषाक्त होने से; प्रदूषित होने से बचा लिया। भगवान शिव ने विष शमन करने के लिये अपने सिर पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा को धारण किया तथा सभी देवताओं ने माँ गंगा का पवित्र जल उनके मस्तक पर डाला ताकि उनका शरीर शीतल रहे तथा विष की उष्णता कम हो जाये। चूंकि ये घटना श्रावण मास के दौरान हुई थीं, इसलिए श्रावण में शिवजी को माँ गंगा का पवित्र जल अर्पित कर शिवाभिषेक किया जाता है, कांवड यात्रा इसी का प्रतीक है। शिवाभिषेक से तात्पर्य दिव्यता को आत्मसात कर आत्मा को प्रकाशित करना है। प्रतीकात्मक रूप से शिवलिंग पर पवित्र जल अर्पित करने का उद्देश्य है कि हमारे अन्दर की और वातावरण की नकारात्मकता दूर हो तथा सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में सकारात्मकता का समावेश हो। तीर्थ नगरी देवधर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग बाबा बैधनाथ और सुलतानगंज की उत्तर वाहिनी गंगा तट पर स्थित बाबा अजगैबीनाथ के साथ दुमका जिला में सुरभ्य वातावरण में स्थित बाबा बासुकीनाथ धाम की गणना बिहार और झारखंड ही नहीं, वरन् राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख शैव-स्थल के रूप में होती है। देवघर-दुमका मुख्य मार्ग पर स्थित इस पावन धाम में श्रावणी- मेला के दौरान केसरिया वस्त्रधारी कांवरिया तीर्थयात्रियों की खास चहल-पहल रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि बासुकीनाथ की पूजा के बिना बाबा बैद्यनाथ की पूजा अधूरी है। यही कारण है कि भक्तगण बाबा बैद्यनाथ की पूजा के साथ साथ यहां आकर नागेश ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात बाबा बासुकीनाथ की आराधना करते हैं। सावन के महीने में तो हजारों लाखों भक्तगण सुलतानगंज-अजगैबीनाथ से उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल अपने कांवरों में भरते हैं। फिर एक सौ किलोमीटर से भी अधिक पहाड़ी जंगली रास्ते पैदल पारकर इसे देवघर में बैधनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाते हैं। इसके बाद वे बासुकीनाथ आकर नागेश ज्योतिर्लिंग पर जल-अर्पण करते हैं। भगवान शिव औघड़दानी कहलाते हैं। भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर तुरंत वरदान देनेवाले। तभी तो शिवभक्तों की नजरों में यहां भगवान शंकर की अदालत लगती है। शिव-भक्त मानते हैं कि जहां (बैद्यनाथ धाम) भगवान शंकर की दीवानी अदालत है, वही बासुकीनाथ धाम उनकी फौजदारी अदालत है। बाबा बासुकीनाथ के दरबार में मांगी गयी मुरादों की तुरंत सुनवाई होती है। यही कारण है कि साल के बारहों महीने यहां देश के कोने-कोने से भक्तों का आवागमन जारी रहता है। प्राचीन काल में बासुकीनाथ घने जंगलों से घिरा था। उन दिनों यह क्षेत्र दारूक-वन कहलाता था। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दास्क-बन में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरूप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का निवास था। शिव पुराण में वर्णित है कि दारूक-बन दारूक नाम के असुर के अधीन था। कहते हैं, इसी दारूक-बन के नाम पर संताल परगना प्रमंडल के मुख्यालय दुमका का नाम पड़ा है। बासुकीनाथ शिवर्लिंग के आविर्भाव की कथा अत्यंत निराली है। एक बार की बात है- बासु नाम का एक व्यक्ति कंद की खोज में भूमि खोद रहा था। उसके शस्त्र से शिवलिंग पर चोट पड़ी। बस क्या था- उससे रक्त की धार बह चली। बासु यह दृश्य देखकर भयभीत हो गया। उसी क्षण भगवान शंकर ने उसे आकाशवाणी के द्वारा धीरज दिया – डरो मत, यहां मेरा निवास है। भगवान भोलेनाथ की वाणी सुन बासु श्रद्धा-भक्ति से अभिभूत हो गया और उसी समय से उस लिंग की मूर्ति्-पूजन करने लगा। बासु द्वारा पूजित होने के कारण उनका नाम बासुकीनाथ पड़ गया। उसी समय से यहां शिव-पूजन की जो परम्परा शुरू हुई, वो आज तक विद्यमान है। आज यहां भगवान भोले शंकर और माता पार्वती का विशाल मंदिर है। मुख्य मंदिर के बगल में शिव गंगा है जहां भक्तगण स्नान कर अपने आराध्य को बेल-पत्र, पुष्प और गंगाजल समर्पित करते हैं तथा अपने कष्ट क्लेशों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। यह माना जाता है कि वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई। हिंदुओं के कई ग्रंथों में सागर मंथन का वर्णन किया गया है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया था। बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास भी सागर मंथन से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को माध्यम बनाया गया था। इन्हीं वासुकी नाग ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। यही कारण है कि यहाँ विराजमान भगवान शिव को बासुकीनाथ कहा जाता है इसके अलावा मंदिर के विषय में एक स्थानीय मान्यता भी है। कहा जाता है कि यह स्थान कभी एक हरे-भरे वन क्षेत्र से आच्छादित था जिसे दारुक वन कहा जाता था। कुछ समय के बाद यहाँ मनुष्य बस गए जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दारुक वन पर निर्भर थे। ये मनुष्य कंदमूल की तलाश में वन क्षेत्र में आया करते थे। इसी क्रम में एक बार बासुकी नाम का एक व्यक्ति भी भोजन की तलाश में जंगल आया। उसने कंदमूल प्राप्त करने के लिए जमीन को खोदना शुरू किया। तभी अचानक एक स्थान से खून बहने लगा। बासुकी घबराकर वहाँ से जाने लगा तब आकाशवाणी हुई और बासुकी को यह आदेशित किया गया कि वह उस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना प्रारंभ करे। बासुकी ने जमीन से प्रकट हुए भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग की पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी, तब से यहाँ स्थित भगवान शिव बासुकीनाथ कहलाए। भगवान भोले शंकर की महिमा अपरंमपार है। वे देवों के देव महादेव कहलाते हैं। वे व्याघ्र चर्म धारण करते हैं, नंदी की सवारी करते हैं, शरीर में भूत-भभूत लगाते हैं, श्माशान में वास करते हैं, फिर भी औघड़दानी कहलाते हैं। दिल से जो कुछ भी मांगों, बाबा जरूर देगे। जैसे भगवान भोले शंकर, वैसे उनके भक्तगण! बाबा हैं कि उन्हें किसी प्रकार के साज-बाज से कोई मतलब नहीं, और भक्त हैं कि दुनिया के सारे आभूषण और अलंकार उनपर न्यौछावर करने के लिये तत्पर! अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिये! भक्त और भगवान की यह ठिठोली ही तो भारतीय धर्म और संस्कृति का वैशिष्ट्य है। श्रावण मास में शिव पूजन के अलावा यहां की महाश्रृगांरी भी अनुपम है। कहते हैं कि कलियुग में वसुधैव कुटुम्बकम तथा सर्वे भवंतु सुखिनः जैसी उक्तियों को प्रतिपादित करने के लिये शिव की उपासना से बढ़कर अन्य कोई मार्ग नहीं हैं! और, शिव की उपासना की सर्वोत्तम विधि है – महाश्रृगांर का आयोजन! गंगाजल घी, दूध दही, बेलपत्र आदि शिव की प्रिय वस्तुओं को अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का सबसे उत्तम उपाय। तभी तो साल के मांगलिक अवसरों पर भक्तगण बाबा बासुकीनाथ की महाश्रृगांरी और महामस्तकाभिषेक का आयोजन करते हैं। महाश्रृंगार के दिन बासुकीनाथ की शिव-नगरी नयी-नवेली दुलहन की तरह सज उठती है-मानों स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया हो। लगता है देव -लोक के सभी देवी— देवता पृथ्वी-लोक पर अवतरित हो गये हैं- भगवान भूतनाथ की रूप-सज्जा देखने के लिये। आये भी क्यों नहीं। देवों के देव महादेव की महाश्रृगांरी जो है। शिव का स्वरूप विराट् है किंतु इनकी आराधना अत्यंत सरल भी है और कठिन भी। इनकी महाश्रृंगारी तो और भी कठिन। आखिर जगत के स्वामी के महाश्रृगांर की जो बात है। इस हेतु साधन जुटायें भी तो कैसे पर, भगवान की लीला की तरह भक्तों की भक्ति भी न्यारी होती है। शिव की आराधना में उनके श्रृंगार हेतु भक्त मानों अपनी सारी निष्ठा ही लगा देते हैं और, शिव की स्रष्टि की श्रेष्टतम् सामग्रियां लाकर शिव को ही समर्पित करतें हैं। श्रावण माह प्रकृति और पर्यावरण की समृद्धि, नैसर्गिक सौन्द्रर्य के संवर्धन और संतुलित जीवन का संदेश देता है। नैसर्गिक सौन्द्रर्य के संवर्द्धन के लिये शिवाभिषेक के साथ धराभिषेक; धरती अभिषेक नितांत आवश्यक है। वास्तव में देखे तो श्रावण मास प्रकृति को सुनने, समझने और प्रकृतिमय जीवन जीने का संदेश देता है। बासुकीनाथ मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है जिसे वन गंगा या शिवगंगा भी कहा जाता है। इसका जल श्रद्धालुओं के लिए दुमका स्थित बासुकीनाथ मंदिर का इलाका पूरे सावन में बोल-बम के नारों से गुंजायमान रहता है। बासुकीनाथ पहुँचने के लिए निकटतम हवाईअड्डा देवघर है। यहां से 54 किलोमीटर की दूरी है। राँची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट है जो मंदिर से लगभग 280-300 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा कोलकाता का नेताजी सुभास चंद्र बोस हवाईअड्डा भी यहाँ से लगभग 320 किमी की दूरी पर है। बासुकीनाथ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दुमका है जो लगभग 25 किमी है और बासुकीनाथ से जसीडीह रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 50 किमी है। बासुकीनाथ, दुमका-देवघर राज्य राजमार्ग पर स्थित है। झारखंड के कई शहरों से बासुकीनाथ पहुँचने के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है। बासुकीनाथ, राँची से लगभग 294 किमी और धनबाद से लगभग 130 किमी की दूरी पर स्थित है। कुमार कृष्णन
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15 वें दलाई लामा की खोज के एलान पर आखिर चीन क्यों परेशान है!
Updated: July 7, 2025
रामस्वरूप रावतसरे तिब्बती बौद्ध समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा ने ऐलान किया है कि उनका पद उनके निर्वाण के बाद भी…
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जनगणना में जाति के निहितार्थ
Updated: July 7, 2025
डॉ घनश्याम बादल जनसंख्या दिवस पर चारों तरफ से एक जैसी ही आवाज़ें भारत में चारों तरफ़ से उठती हैं कि जैसे भी हो, सुरसा के मुख सी बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगे । बेशक, भारत में जनविस्फोट एक बड़ी समस्या है और बावजूद सारे उपाय के जनवृद्धि दर पर नियंत्रण दुष्कर सिद्ध हो रहा है । आज़ादी के बाद से ही जनसंख्या हैरतअंगेज तेजी से बढ़ी है। बेतहाशा बढ़ती हुई जनसंख्या ने अच्छी खासी विकास दर को भी बेमानी सिद्ध कर दिया है। अशिक्षा, गरीबी, रूढ़िवादिता, धार्मिक कट्टरता और अपने संप्रदाय विशेष को हावी करने की कुटिल इच्छा जैसे कितने ही कारण हैं जनसंख्या के निरंतर बढ़ते जाने के । 1947 में 36 करोड़ लोगों का देश महज 78 साल में ही 143 करोड़ जनसंख्या वाले राष्ट्र में बदल गया यानि आज़ादी के बाद भारत की जनसंख्या 3 गुना से भी ज़्यादा बढ़ी । प्रतिवर्ष न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की कुल जनसंख्या से भी ज़्यादा लोग हमारे देश की जनसंख्या में जुड़ रहे हैं । स्वाभाविक रूप से इससे खाने, पहनने और रहने की समस्याएं विकराल रूप लेती गईं। राष्ट्रीय सरकारों ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान तो दिया मगर जो प्रतिबद्धता चाहिए थी वह नज़र नहीं आई। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह रही देश के एक खास वर्ग का वोट पैकेज में तब्दील हो जाना। 1911 के बाद 1921 में होने वाली जनगणना चार साल पिछड़ चुकी है लेकिन जल्दी ही भारत में एक बार फिर से जनगणना शुरू होने वाली है । विपक्ष और बिहार में नीतीश कुमार द्वारा बार-बार की जाने वाली मांग के बाद केंद्र सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है कि इस बार इस जनगणना में लोगों का जातिगत ब्यौरा भी दर्ज किया जाएगा । जातिगत ब्यौरे का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल आशंकाएं हैं कि यदि इस आंकड़े का उपयोग राजनीतिक लक्ष्य साधना के लिए किया गया तो फिर ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा मुद्दा पीछे छूट जाएगा एवं जातिगत जनगणना एक राजनीतिक औजार बनकर रह जाएगी। राजनीति के एक खास वर्ग द्वारा लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि कभी धर्मग्रंथों का हवाला देकर तो कभी इस्लामिक स्टेट के सपने दिखाकर वर्ग विशेष के कट्टर धार्मिक नेता बरगलाते हैं और जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि जारी रहती है । हालांकि शिक्षा एवं जागरूकता बढ़ने के साथ जहां उच्च वर्गों में ‘हम दो हमारे दो’ के नारे से जन जागृति आई ,वहीं अब तो ‘बच्चा एक ही अच्छा’ के सिद्धांत पर एक बहुत बड़ा वर्ग चल रहा है. साफ सी बात है इस वर्ग ने जनसंख्या की वृद्धि पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया है हालांकि समाज के भी निचले तबकों में अभी वह जागृति देखने को नजर नहीं आती जो होनी चाहिए । जहां भारत क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया में सातवें नंबर पर है, वहीं जनसंख्या की दृष्टि से शिखर पर है। अब यह समय की मांग है कि सरकारों को निष्पक्ष तरीके से बिना डरे पूरी प्रतिबद्धता के साथ पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर ही देना चाहिए । बढ़ती हुई जनसंख्या के दृष्टिगत जनसंख्या नियंत्रण कानून के अंतर्गत इस प्रकार के प्रावधानों का होना आवश्यक हो कि एक सीमित संख्या तक परिवार बढ़ने पर ही लोगों को सब्सिडी, लोन या राशन आदि की सुविधा मिले। निर्धारित संख्या से ऊपर संतान उत्पत्ति पर प्रतिबंधात्मक प्रावधान हों । यह सच है कि ऐसी नीति एकदम लागू नहीं की जा सकती और इसमें धार्मिक एवं सामाजिक प्रतिरोध भी आड़े आएगा । तब जनसंख्या नियंत्रण कानून को चरण दर चरण लागू करने की नीति अपनाई जा सकती है । जिस प्रकार से कई दूसरे देशों में संतान उत्पत्ति के नियम हैं उसी प्रकार से देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकारों को भी ऐसे प्रावधान अस्तित्व में लाने ही चाहिएं। तार्किक तो यह होगा कि जबरदस्ती कानून थोपने के बजाय प्रेरक तरीके से जन जागरण अभियान चलाए जाएं खास तौर पर कम शिक्षित या अशिक्षित एवं धार्मिक अंधविश्वास से अधिक प्रभावित लोगों के लिए ऐसे धार्मिक संस्थानों की सहायता ली जा सकती है जो उन्हें बताएं कि संतान केवल ईश्वर की देन नहीं है अपितु यह एक शारीरिक प्रजनन क्षमता का परिणाम है। उन्हें यह समझाया जाए कि जितने अधिक बच्चे होंगे उसी अनुपात में उन्हें उतना ही कम खाना-पीना, पहनना एवं रहने का स्थान उपलब्ध हो पाएगा जिसके परिणाम स्वरूप उनका जीवन स्तर भी निम्न श्रेणी का ही रहेगा। स्कूलों एवं कॉलेजों तथा दूसरे प्रशिक्षण संस्थानों में भी विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से जन वृद्धि के दुष्परिणाम एवं उन्हें रोकने की व्यवहारिक उपायों की जानकारी दी जानी जरूरी है । यह कार्य केवल सरकारी स्कूलों वह कॉलेजों में ही नहीं अपितु धार्मिक स्कूलों व महाविद्यालय में भी लागू किया जाए । साथ ही साथ कम बच्चे पैदा करने वाले लोगों के लिए मुफ्त शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए इससे भी एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यदि सरकारों में प्रतिबद्धता हो तो बिजली, पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति वाली वस्तुओं की दरें भी एकल परिवारों के सदस्यों की संख्या के आधार पर तय करने में भी कोई बुराई नहीं है । यदि जनसंख्या नियंत्रण पर ढुलमुल नीति जारी रही और प्रतिबंधात्मक व नकारात्मक प्रेरणा देते उपाय नहीं किए गए तो देश में प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधन, रोटी, कपड़ा, मकान और क्रय क्षमता जैसी चीजों में हम नीचे की ओर खिसकते चले जाएंगे । यदि हमें गर्त में जाने से बचना है तो जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही होगा, कैसे भी और किसी भी तकनीक से, उसके लिए चाहे जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना पड़े या लोगों में जन जागरण करके एक चेतना लानी पड़े अथवा कुछ और करना पड़े । आज हम उस स्थिति में खड़े हैं जहां एक ओर देश को जहां जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना पड़ेगा, वहीं ऐसी नीतियां भी बनानी पड़ेगी जिसमें जनसंख्या एक बोझ नहीं बल्कि ताकत बनकर सामने आए. चीन का उदाहरण हमारे सामने है. हम इस प्रकार की योजनाएं चलाएं जिसमें देश का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी तरह से दक्षता पूर्वक देश के विकास एवं उन्नयन में निरंतर सहयोग दे सके तो जनसंख्या एक बोझ नहीं, ताकत बन जाएगी। बुद्धिमता इसी में है कि जो अभी दुनिया में हैं, उन्हें संभाला जाए, उनके जीवन स्तर को उच्च किया जाए, लोगों में नव चेतना एवं जागृति पैदा की जाए और जिन्हें दुनिया में आना है उनके आने को नियंत्रित करके उनके लिए एक बेहतर संसार और बेहतर देश बनाने की ओर कदम बढ़ाया जाए। साथ ही साथ सह भी तय करना होगा कि जहां जनगणना के आंकड़े यथार्थपरक हों, वहीं उसमें जाति का ब्यौरा जोड़ने के बाद इस बात की भी पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए कि इन आंकड़ों का उपयोग राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए नहीं किया जाएगा अन्यथा राजनीतिक दलों के हाथ में यह एक ऐसा हथियार लग जाएगा जो देश में विभेदीकरण को और अधिक बल देगा तथा इससे जाति संप्रदाय एवं धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर जनसंघर्ष बढ़ने की संभावनाएं भी बलवती होंगी। डॉ घनश्याम बादल
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देश में नशे के सौदागरों का बढ़ता जाल
Updated: July 7, 2025
भारत में नशे का संकट अब व्यक्तिगत बुराई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपदा बन चुका है। ड्रग माफिया, तस्करी, राजनीतिक संरक्षण और सामाजिक चुप्पी—सब मिलकर युवाओं…
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सावन मनभावन: भीगते मौसम में साहित्य और संवेदना की हरियाली
Updated: July 7, 2025
सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि भारतीय जीवन, साहित्य और संस्कृति में एक गहरी आत्मिक अनुभूति है। यह मौसम न केवल धरती को हरा करता…
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ब्रिक्स में भारत का बढ़ता वर्चस्व संतुलित दुनिया का आधार
Updated: July 7, 2025
-ललित गर्ग –ब्राजील के रियो डी जनेरियो में रविवार को हुए 17वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों ने 31 पेज और 126 पॉइंट वाला एक…
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लुप्त होता समाज भारतीय समाज
Updated: July 3, 2025
शिवानन्द मिश्रा सावधान हो जाइए ! भारत सहित पश्चिमी देशों में कुछ ही दशक बाद फैमिली सिस्टम का अंत निकट है। परिवार लगातार टूट रहे हैं , बिखर रहे हैं , समाप्त हो रहे हैं। इस समय फैमिली सिस्टम को बचाना पश्चिमी जगत का सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत के सनातनी समाज में भी फैमिली सिस्टम बड़ी तेजी से सिमट रहा है । फैमिली सिस्टम यूँ ही बिखरता रहा तो भविष्य खराब है । आज पश्चिमी समाज को तबाही का दृश्य दिखाई पड़ने लगा है । कल भारत भी इसी दौर से गुजरनेवाला है। मशहूर पश्चिमी लेखक डेविड सेलबोर्न की किताब ” loosing battle with islam ” में आँखें खोलने वाले खुलासे किए गए हैं । बताया गया है कि ईसाई जगत के समान सनातनी जगत के सामने भी ऐसा ही खतरा है। यहूदियों ने इस खतरे पर पार पा लिया है। डेविड के अनुसार इस्लाम के सशक्त फेमिली सिस्टम से पश्चिमी दुनिया हार रही है। पश्चिम में लोग शादी करना पसंद नहीं करते। समलैंगिकता , अवैध सम्बन्ध , लिव इन रिलेशनशिप आदि से फैमिली सिस्टम टूट गया है । पश्चिम में ऐसे बच्चों की तादाद बढ़ती जा रही है , जिन्हें अपने पिता का पता नहीं । मां बाप के साथ रहने का चलन पश्चिम पूरी तरह भूल चुका है । लोगों का बुढ़ापा ओल्ड एज होम्स में गुजर रहा है । नतीजा यह कि पश्चिमी बच्चे दादा दादी , नाना नानी , चाचा ताऊ जैसे रिश्तों के नाम भी भूल चुके हैं ।अब तो नो चाइल्ड लाइफ स्टाइल बहुत शीघ्र पश्चिम को बर्बाद कर देगा । आबादी घटने से उत्पन्न अकेलेपन के सबसे बड़े शिकार जापान और दक्षिण कोरिया हैं । कारण , खाओ पियो ऐश करो , नो चाइल्ड ऑनली प्लेजर, ऑनली मस्ती। गौर से देखने पर पता चल जाता है कि भारत का हिन्दू समाज भी उधर बढ़ चुका है जहां से पश्चिमी जगत के सामने अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है । सॉलिड फेमिली सिस्टम के कारण अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी और फ्रांस में इस्लाम की संख्या बढ़ती जा रही है। इस्लाम धर्म में परिवार वास्तव में मजबूत इकाई है । परिवार को जोड़े रखने की कला यहूदियों ने इस्लाम से सीखी है और अपनी आबादी बढ़ाई है। पश्चिम में अकेला होता जा रहा आदमी भयावह ऊब और घुटन का शिकार है। भारत के शहरों में ही नहीं , कस्बाई जीवन में भी अकेलापन प्रवेश कर चुका है । भारत में भी पाएंगे कि समाज में भी चाचा , भतीजा , बुआ , ताऊ , मामा , मौसी और यहां तक कि सगे भाई सगी बहन के रिश्ते भी धीरे धीरे समाज में खत्म हो रहे है । यह घोर चिन्ता का विषय है , दुर्भाग्य से इस पर चिंतन अभी शुरू भी नहीं हुआ है । इसका एक प्रमुख कारण विवाहित बेटियों का अपने मैके में दखल देना तथा बेटियों के मां को उनके ससुराल में दखलंदाजी है। विवाहित बहन भी अपनी उल्लू सीधा कर भाइयों को आपस में खूब लड़वाते हैं। याद कीजिए चीन ने वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर अपनी आबादी घटाई जो अब भारत से कम हो गई । वहां भी चीनी जनता ने जब वन चाइल्ड के बजाय नो चाइल्ड अपनाना शुरू किया तब चीन ने दो बच्चों की इजाजत दी । आज दुनिया के अनेक देशों में आबादी बढ़ाने के अभियान चल पड़े हैं । भारत में भी कुछ धार्मिक गुरु ज्यादा बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं । बहरहाल एक समस्या तो है जिसका समाधान खोजना पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है । समाज तभी बनता है जब परिवार हो। समाज की सबसे बड़ी ताकत संयुक्त परिवार थी जो अब लगभग मर चुका है । मैं , मेरी बीबी और मेरे बच्चे सिद्धांत ने परिवारों के बीच दीवारें खड़ी कर दी है। नारी को इस बाबत सबसे ज्यादा विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि वो जननी है उसको अपना स्वहित त्याग समाज हित को देखना होगा । अपना फिगर अपना कैरियर अपनी फ्री लाइफ अपने आनन्द से ऊपर उठ परिवार समाज व सनातन धर्म के लिये संकल्प लेना होगा। आप देखिए , पश्चिम में फैले अवसाद , अकेलापन और डिप्रेशन भारत में भी बहुत गहरे प्रवेश कर चुके है। इन्हें अब रोकना होगा रोकना होगा और यह कार्य भारतीय नारी ही कर सकती है। शिवानन्द मिश्रा
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भीगे मौसम का कड़वा सच : सावधानी नहीं तो संक्रमण तय
Updated: July 3, 2025
जब पहली बारिश की बूंदें ज़मीन से टकराती हैं, तो मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ एक उम्मीद जन्म लेती है। लगता है जैसे तपती…
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