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जितनी समस्या है विदेशी मजहब अपनाने से

—विनय कुमार विनायक
आज तमाम इस्लामी औ’ गैर-इस्लामी मुल्क में,
जितनी समस्याएं है विदेशी मजहब अपनाने से!

विदेशी मजहब मानने से, मानवता बदल जाती,
पराई आस्था संस्कृति परंपरा अपना ली जाती!

अपनी अच्छाई छोड़कर पराई बुराई पाई जाती,
कोमलता को त्यागकर क्रूरता ग्रहण की जाती!

हिन्दू बौद्ध संस्कृति के अफगानिस्तान की दशा,
इस्लाम ग्रहण करने के बाद हो गई ऐसी दुर्दशा!

आज वहां मुस्लिम ही मुस्लिम को मार रहा है,
विकृत तालीम वाले बर्वर बनकर संहार रहा है!

अफगान आज तबाह है तालिबानी आतंक से,
समान मजहबवाले मर रहे मजहबी विध्वंस से!

आज अफगानिस्तान के लिए एकमात्र निदान,
विदेशी धर्म छोड़ पैतृक धर्म को फिर ले मान!

चाहे हो अफगानी पाकिस्तानी बांग्लादेशीजन,
खून खराबे वाले मजहब पाकर हो गए निर्धन!

भारत से पाकिस्तान की दुश्मनी की है वजह,
दोनों हिन्दू मूल के हैं पर एक विदेशी मजहब!

पाकिस्तानी सच को स्वीकारते नहीं कि वे हैं
नस्ल से हिन्दू, अरबी हो सकते कदापि नहीं!

पाकिस्तानी अरबी शेख की नकल करके वे
बन गए शेखचिल्ली,लड़ पड़े बंगाली बंधु से!

बंगाली मुस्लिम जानते कि वे मूल रूप से हैं
बंगाली नस्ल के धर्मांतरित हिन्दू बौद्ध भाई!

आज पाकिस्तान के पंजाबी हिन्दी मुस्लिम,
हिन्दू सिख भाइयों के लिए बन गए कसाई!

वक्त की आवाज है कि विदेशी मजहब को
अविलंब त्यागके,करले पितृधर्म में वापसी!

सभी समस्या का निदान मिलेगा हिन्द और
पाक-बांग्लादेश मिलेगा, रिश्ता हो आपसी!

अफगानी पाकिस्तानी बंगाली मुस्लिम को,
अरबी कभी बराबर समझ अपनाएगा नहीं!

चाहे जितना रंग ढंग पहनावे नकल कर ले,
तुम अरबी नहीं भारतीय हिंदू जैसा दिखते!

विदेशी मजहब मानना बड़प्पन नहीं गुलामी,
अपने देश धर्म व संस्कृति की होती है हानि!

विदेशी मजहब में तर्क वितर्क की है मनाही,
तर्क वितर्क प्रयोग परीक्षण रीति विज्ञान की!

विज्ञान के बिना मनुज का जीवन होता दूभर,
विज्ञान है टैंक मिसाइल मोबाइल व कम्प्यूटर!

बिना विज्ञान कोई धर्म व मजहब टिकता नहीं,
विज्ञानहीन मनुज पशुभाव में भी बिकता नहीं!

धर्म मजहब के अंधविश्वास से उबरो रे मानव,
मजहबी उन्माद आतंक से मत बनो रे दानव!

दानव दानव में मेल मिलाप कभी होता नहीं,
एक दानव का दूसरे दानव से प्रेम होता नहीं!

मजहबी आतंकी दानव से मानव बन जाओ,
इंसान बनकर इंसान के निस्वार्थ काम आओ!
—विनय कुमार विनायक

डिजीटल अम्ब्रला के नीचे शासन और सरकार

मनोज कुमार

क्या आप इस बात पर यकीन कर सकते हैं कि पेपरलेस वर्क कर कोई विभाग कुछ महीनों में चार करोड़़ से अधिक की राशि बचा सकता है? सुनने में कुछ अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन यह सौफीसदी सच है कि ऐसा हुआ है. यह उपलब्धि जनसम्पर्क संचालनालय ने अपने हिस्से में ली है. हालांकि यहां स्मरण करना होगा कि खंडवा सहित कुछ जिला जनसम्पर्क कार्यालयों को पेपरलेस बना दिया गया था. तब इस पेपरलेस वर्क कल्चर से कितनी बचत हुई, इसका लेखाजोखा सामने नहीं आया था. कोरोना के कहर के बाद जनसम्पर्क संचालनालय ने सुध ली और पेपरलेस वर्क कल्चर को अमलीजामा पहनाकर खर्च में कटौती की तरफ अपना कदम बढ़ा दिया है. निश्चित रूप से इसे आप नवाचार कह सकते हैं. ऐसा भी नहीं है कि अन्य विभागों ने इस दिशा में कोई उपलब्धि हासिल नहीं की हो लेकिन उनकी ओर से ऐसे आंकड़े सार्वजनिक नहीं होने से आम आदमी को पता नहीं चल रहा है.
मध्यप्रदेश अपने नवाचार के लिए हमेशा चर्चा में रहा है लेकिन इस वक्त हम जिस नवाचार की बात कर रहे हैं, वह सुनियोजित नहीं है लेकिन अब वह दिनचर्या में शामिल हो गया है. नवाचार की यह कहानी शुरू होती है करीब दो वर्ष पहले कोरोना के धमकने के साथ. आरंभिक दिनों में सबकुछ वैसा ही चलता रहा और लगा कि बस थोड़े दिन की बात है लेकिन ऐसा था नहीं. कोरोना की दूसरी लहर ने जो कोहराम मचाया तो सब तरफ हडक़म्प मच गया. कोरोना के शिकार लोगों को इलाज, उनकी देखरेख और व्यवस्था बनाये रखने के लिए मुस्तैद अधिकारियों और कर्मचारियों को मोर्चे पर डटना मजबूरी थी. जिंदगी उनकी भी थी, डर उनके पास था. और इस डर ने एक संभावना को जन्म दिया. टेक्रालॉजी का यह नया दौर है और इस महामारी के पहले हम इस कोशिश में लगे थे कि पूरा तंत्र डिजीटल हो जाए लेकिन सौफीसदी करने में तब वैसी रूचि लोगों की नहीं थी. आज भी सौफीसदी डिजीटलीकरण नहीं हो पाया है लेकिन डर से उपजी संभावना में जो जहां है, वहीं रूक गया और हाथों में कोई मोबाइल लिये तो कोई आइपैड तो कोई घर पर रहकर लेपटॉप से अपने दायित्व को पूरा कर रहा था. इस तरह से जो काम बीस वर्ष में नहीं हो पाया था, वह दो वर्ष में हो गया. इस डिजीटल अम्ब्रला के नीचे पूरा शासन और सरकार आ गई है. बदलते जमाने के साथ हम अब चलने के लिए अब पूरी तरह से तैयार हैं बल्कि चलने लगे हैं.
इस डिजीटल सिस्टम ने पूरे तंत्र का चेहरा बदल दिया है. पेपरलेस जिस प्रक्रिया की बात हम करीब एक दशक से कर रहे थे लेकिन व्यवहार में संभव नहीं हो पा रहा था, जो अब संभव है. डिजीटलकरण के पश्चात एक और बड़ी पहल यह हुई है कि हर माह अलग अलग विभागोंं की बैठक में झाबुआ से लेकर मंडला जिले के अधिकारी कभी राजधानी मुख्यालय भोपाल आते थे तो कभी संभागीय मुख्यालय में उन्हें शामिल होना पड़ता था. शासकीय दस्तूर के मुताबिक बैठक का परिणाम भले शून्य हो लेकिन भौतिक उपस्थिति लाजिमी थी. इस आवन-जावन में सब मिलाकर लाखों रुपये के डीजल-पेट्रोल, भत्ता और अन्य खर्चे होतेे थे. साथ में अधिकारी के जिला मुख्यालय में नहीं रहने से कई अनिवार्य कार्य रूक जाते थे, या टल जाते थे. यही प्रक्रिया जिला मुख्यालय में भी होती थी और जिले के भीतर आने वाले अधिकारी-कर्मचारी शामिल होते थे. लेकिन अब प्रशासन का चेहरा-मोहरा बदलने लगा है. कोई कहीं नहीं आ जा रहा है, सब अपने ठिकाने पर मुस्तैद हैं. ऑनलाईन मीटिंग हो रही है. चर्चा और फैसले हो रहे हैं. खर्चों पर जैसे कोई ब्रेकर लग गया है. एक किस्म से इसे आप अनुपात्दक व्यय भी कह सकते हैं, जो नियंत्रण में आ गया है. स्वागत-सत्कार में भी होने वाले खर्च लगभग समाप्त हो गए हैं. राजधानी के मंत्रालय से लेकर जिला और तहसील मुख्यालय में ही सब काम निपट जा रहा है. यह अपने आप में नवाचार है क्योंंकि इससे होने वाली बचत का समुचित उपयोग किया जा सकेगा.
सरकार ने कोरोना महामारी के दरम्यान शासकीय कार्यालयों को पहले जुलाई तक पांच दिनी सप्ताह घोषित किया था, जिसे बढ़ाकर अब अक्टूबर 2021 तक कर दिया गया है. यह फैसला भी स्वागतयोग्य है. हालांकि कोरोना के पहले सरकार ने पांच दिवसीय कार्यालयीन सप्ताह के लिए सुझाव मांगे थे लेकिन अरूचि के चलते मामला ठंडे बस्ते में चला गया था लेकिन कोरोना ने एक पुरानी और सकरात्मक योजना को आरंभ कर दिया है. पहली नजर में यह पांच दिनी वर्किंग का कांसेप्ट थोड़ा ठीक नहीं लगता है लेकिन यह शासन और अधिकारी कर्मचारियों के लिए हितदायक है. तंत्र के स्तर पर देखें तो लगातार दो दिन कार्यालय बंद रहने से स्थापना व्यय में कमी आती है. संसाधनों की बचत होती है या कहें कि खर्च नियंत्रण में होता है. इन दो दिनों में अधिकारी-कर्मचारी अपने निजी कार्य पूर्ण कर सकते हैं और मानसिक रूप से रिलेक्स होते हैं. वैसे भी माह के दूसरे और तीसरे शनिवार को अवकाश होता ही है. तब केवल दो दिन की इसमें वृद्धि किया जाना अनुचित नहीं होता है. इन दो दिनों के कार्यदिवस में होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए कार्यालय का समय सुबह जल्दी और देर शाम तक कर पूर्ण किया जा सकता है. कई राज्यों में पहले से पांच कार्य दिवस प्रचलन में है.
इस तरह से हम मान सकते हैं कि कोरोना ने ना केवल आम आदमी की जिंदगी में परिवर्तन लाया बल्कि शासकीय तंत्र में भी बेहतर बदलाव की दिशा में प्रेरित किया है. यह तो निश्चित है कि आज नहीं तो कल, हमें डिजीटल दुनिया में सौफीसदी प्रवेश करना है तो आज से क्यों नहीं. कुछ लोगों का कहना है कि यह असुविधाजनक है. मान लिया तो जो खरीददारी आप इंटरनेट के माध्यम से करते हैं, रेल-बस का किराया अनेक तरह के एप के माध्यम से करते हैं, तब क्या आपके लिए यह असुविधाजनक नहीं है. एक बार कोशिश करके देख लीजिए राह आसान हो जाएगी. सबसे बड़ी बात यह है कि समूचे तंत्र में पारदर्शिता आ जाएगी क्योंकि वर्क रिर्पोट करने से लेकर बिल जमा करने और भुगतान पाने की सारी व्यवस्था ऑनलाईन है तो रिश्वतखोरी का कॉलम भी हाशिये पर चला जाएगा. इसलिए मध्यप्रदेश जिस तरह से डिजीटल अम्ब्रेला के नीचे आ गया है, वह सराहनीय है. अब जरूरत है कि अम्ब्रेला को ओपन कर सभी से कहा जाए आओ, थोड़ा थोड़ा डिजीटल हो जाएं.

ममता के विपक्षी एकता के प्रयासों की जमीन

  • ललित गर्ग –
    तृणमूल कांग्रेस की सुप्रिमो ममता बनर्जी इनदिनों दिल्ली में हैं और वे अभी से साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में विभिन्न राजनीतिक दलों को संगठित करने एवं महागठबंधन की संभावनाओं को तलाशने में जुटी हंै। माना जा रहा है कि वो ऐसे दलों को एक मंच पर साथ लाने की कोशिश में लगी हैं, जिनके समान विचार हैं, समान लक्ष्य हैं और जो नरेन्द्र मोदी सरकार को बेदखल करना चाहते हैं। विपक्षी एकता की संभावनाओं को आकार देेने एवं उससे भारत की राजनीति में बड़े बदलाव को देखने की आशा करते हुए ममता विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुखों से मिल रही हैं, उनके इन प्रयासों के गहरे राजनीतिक निहितार्थ है। लोकतन्त्र में राजनीतिक परिस्थितियां प्रायः बदलती रहती हैं, इन्हीं बदलाव की आहट को ममता शायद देख भी पा रही हैं और सुन भी पा रही हैं। भले विपक्षी एकता अभी दिवास्वप्न हो, असंभव प्रतीत हो, लेकिन लोकतंत्र में कुछ भी संभव है। यदि ऐसा संभव हुआ तो यह भारतीय जनता पार्टी की सशक्त जमीन में सेध लगाना होगा। लेकिन ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है, क्योंकि भाजपा की जमीन बहुत मजबूत हो चुकी है, बिना ठोस नीति एवं नीयत के नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह से मुकाबला करना आसान नहीं है।
    विपक्षी एकता को बल देने के इरादे से किये जा रहे प्रयासों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कितना सफल होंगी, यह समय ही बताएगा, लेकिन उन्हें जिस तरह विपक्षी दलों को गोलबंद करने वाली संभावित नेता के तौर पर देखा जा रहा है, वह कांग्रेस की दयनीय दशा को बयान करने के लिए पर्याप्त है। राष्ट्रीय दल होने के नाते विपक्षी एकता का जो काम कांग्रेस को करना चाहिए, वह यदि किसी क्षेत्रीय दल को करना पड़ रहा है तो इससे कांग्रेसी नेतृत्व की कमजोरी का ही पता चलता है। लोकतंत्र में राष्ट्रीय दल कांग्रेस का लगातार निस्तेज होते जाना शुभ नहीं है। क्या जो काम कांग्रेस नहीं कर सकी, उसे तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी कर सकेंगी? इस सवाल का जवाब बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वह राष्ट्रीय दृष्टिकोण का परिचय दे पाती हैं या नहीं?
    क्षेत्रीय दलों के नेताओं और विशेषतः ममता के साथ यह एक बुनियादी समस्या है कि वे अपने राज्य के आगे और कुछ देख ही नहीं पाती है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर उनका रवैया संकीर्णता से भरा और राष्ट्रहित की अनदेखी करने वाला है। ममता से जुड़ी एक और विडंबना है कि वह राष्ट्रीय नेता तो बनना चाहती हैं, साथ ही साथ बंगाल में बढ़ती हिंसा, अराजकता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के अवमूल्यन की घटनाओं से स्वयं को दोषमुक्त साबित करती रहती है। ममता बनर्जी की मानें तो बंगाल में चुनाव बाद कहीं कोई राजनीतिक हिंसा नहीं हुई और इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट फर्जी है। ममता चाहे जो दावा करें, लेकिन हिंसा एवं अराजकता की राजनीति से उनकी साख गिरी है, राजनीतिज्ञों की साख गिरेगी तो राजनीति की साख बचाना भी आसान नहीं होगा। हमारे पास राजनीति ही समाज की बेहतरी का भरोसेमंद रास्ता है इसकी साख गिराने वाले कारणों में हिंसा, अपराधीकरण एवं साम्प्रदायिकता के बाद बेवजह की कीचड़ उछाल का भी है। ये चारों ही राजनीति के औजार नहीं हैं, इसलिये राजनीति को तबाही की ओर ले जाते हैं। ममता बंगाल को जिस तरह संचालित कर रही हैं, उससे यह नहीं लगता कि वह राष्ट्रीय राजनीति को कोई सही दिशा एवं दशा दे सकेंगी।
    प्रांतीय राजनीति एवं केन्द्र की राजनीति का गणित भिन्न होता है। विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की शानदार जीत से उत्साहित तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में कुछ अनोखा घटित कर सकेगी, इस विश्वास के साथ उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी एकता का आह्वान किया है। लेकिन उनकी राजनीति सोच एवं दिशाओं में इतना दम दिखाई नहीं देता कि वे विपक्षी नेताओं से मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के वास्ते एकजुट होने और ’गठबंधन’ के गठन की दिशा में कुछ सार्थक कर सकने में सफल हो सके।
    जाहिर है, आज यदि तृणमूल कांग्रेस को मोदी और अमित शाह की बीजेपी का सामना करते हुए प्रभावी राष्ट्रीय स्थान पाना है तो उसे विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व तीनों स्तरों पर परिवर्तन करना होगा। इसमें नेतृत्व की भूमिका सर्वोपरि होगी। बड़ा प्रश्न है कि विपक्षी महागठबन्धन का नेतृत्व कौन करेगा? इस नेतृत्व के रूप में ऐसा व्यक्तित्व चाहिए, जो वर्तमान भारत की बदली हुई मनोदशा और मोदी के कारण पैदा हुई राजनीतिक परिस्थिति को समझे और उसके अनुरूप सभी स्तरों पर विपक्षी एकता का निर्माण करें। महागठबंधन में इतनी समझ हो कि योग्य और सक्षम व्यक्तियों का चयन कर सामूहिक नेतृत्व विकसित करे।
    वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विपक्षी एकता के मजबूत होने का अर्थ है लोकतंत्र का मजबूत होना। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्षी दलों का सशक्त होना जरूरी है, भारत दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय लोकतन्त्र कहलाता है, अतः इसमें जो भी बदलाव आता है वह जनता जनार्दन की इच्छा एवं अपेक्षाओं के वशीभूत ही होता है। जनता ही है जो राजनीतिक दलों की भूमिका बदलती रहती है। इसलिए ममता जो भी प्रयास कर रही हैं वह लोकतन्त्र में और अधिक जिम्मेदारी पैदा करने व जवाबदेह बनाने के लिए ही होने चाहिए। विपक्षी एकता तभी प्रभावी और सार्थक हो सकती है जब वह आम आदमी से जुड़े वास्तविक मुद्दों को उभार सके। आम जनता की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को मजबूती दे सके।
    पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने निश्चित रूप से ममता की ताकत को दिखाया है और उसी के बल पर विपक्षी खेमे का हौसला बढ़ा है। ममता अपने बल पर 2024 लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी और एनडीए को हराने का सपना यदि पालती है तो यह अतिश्योक्ति ही कही जायेगी। लोकसभा चुनाव से पहले यूपी एवं अन्य प्रांतों के विधानसभा चुनाव में खासी जोर-आजमाइश होगी और भविष्य की विपक्षी एकता की तस्वीर भी सामने आयेगी। विपक्षी दलों की ताकतें जो बीजेपी को सत्ता से बाहर देखना चाहती हैं, अगर आपस में संवाद और समन्वय के सूत्र मजबूत करने में जुटती हैं तो वे मिलकर भविष्य की राजनीति में बड़ा बदलाव करने का माध्यम बन जाये, इसमें आश्चर्य की कोई बात भले न हो, महत्वपूर्ण जरूर है।
    अक्सर ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों का बड़ा नतीजा निकलता आया है। दिक्कत बस यह है कि विपक्ष की एकजुटता या उनमें समन्वय का लक्ष्य महज बातचीत से हासिल नहीं होने वाला, उसके लिये त्याग, दूरगामी सोच, ठोस मुद्दे एवं राजनीतिक परिवक्वता जरूरी है। इस प्रक्रिया में शामिल तमाम छोटी-छोटी पार्टियां और नेता अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन का विस्तार करने एवं अपनी जमीन को मजबूत करने में जुटे रहने से यह लक्ष्य हासिल नहीं होगा। उन्हें विपक्षी एकता को मजबूती देने का मकसद भी साथ में लिए चलना होगा। एक मुख्य पहलु है कि विपक्षी एकता का रथ केन्द्र में सत्ता परिवर्तन कर सकता है तो वह है कांग्रेस को इस विपक्षी एकता का आधार बनाना। अन्यथा त्रिकोणात्मक राजनीति का लाभ भाजपा को ही मिलेगा।
    विपक्षी दलों के महागठबन्धन का नेतृत्व कांग्रेस यदि करती है तो वह अपनी खोयी जमीन को पुनः पा सकती है। असल में 2013 से कांग्रेस की पराजय का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो कभी थमा ही नहीं। सबसे लंबे समय तक देश का शासन चलाने वाली पार्टी को लगातार दो लोकसभा चुनावों में विपक्ष का नेता पद पाने लायक सीटें भी न मिलें तो हताशा स्वाभाविक है। इस हताशा एवं निराशा को दूर करने एवं विपक्षी एकता को सार्थक करने के लिये कांग्रेस को आगे आना चाहिए, ममता की तुलना में उसका नेतृत्व अधिक प्रभावी हो सकता है। महागठबंधन की सफलता इसी बात पर निर्भर है कि इसमें ठोस विकल्पों की जनता के सामने प्रभावी प्रस्तुति होनी चाहिए। ममता को महागठबंधन की संभावनाओं से पहले जनता से जुड़े ठोस मुद्दों की तलाश करनी चाहिए। यही वह राह है जिस पर चलकर विपक्षी एकता सफल भी हो सकती है और सार्थक भी। इसी से लोकतंत्र को मजबूती भी मिल सकती है।

ओलम्पिक में उम्मीद बंधाते भारतीय पहलवान

  • योगेश कुमार गोयल
    23 जुलाई को टोक्यो ओलम्पिक 2020 का आगाज हो चुका है, जिसमें भारत का नाम रोशन करने का जज्बा लिए भारत के भी 126 एथलीट पहुंचे हैं, जो 18 कुल विभिन्न खेलों में 85 पदकों के लिए दावेदारी पेश करेंगे। मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग में पहला रजत पदक देश के नाम कर चुकी हैं और अभी कुछ और खिलाडि़यों के अलावा भारतीय पहलवानों से भी देश को काफी उम्मीदें हैं। दरअसल ओलम्पिक में भारतीय एथलीटों ने हॉकी के बाद कुश्ती में ही सबसे ज्यादा पदक जीते हैं। इसीलिए भारत में खासकर कुश्ती के मुकाबलों का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। भारतीय कुश्ती इस समय अपने स्वर्णिम दौर में है और कुश्ती में पिछले तीन ओलम्पिक से भारत लगातार पदक जीत रहा है।
    कुश्ती भारत का एकमात्र ऐसा खेल है, जिसमें भारतीय पहलवान पिछले काफी समय से विश्व चैम्पियनशिप के साथ-साथ ओलम्पिक खेलों में भी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और पदक जीत रहे हैं। 2013 की विश्व चैम्पियनशिप में भारत ने सर्वाधिक तीन कांस्य पदक हासिल किए थे लेकिन 2019 में कजाकिस्तान में हुई विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में तो भारतीय पहलवानों का जलवा हर किसी ने देखा ही था। वह पहला ऐसा मौका था, जब भारतीय पहलवानों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए चैम्पियनशिप में पांच पदक अपने नाम कर विश्वभर में भारतीय कुश्ती का डंका बजाया था और टोक्यो ओलम्पिक खेलों के लिए नई उम्मीद बंधाई थी। रियो ओलम्पिक में भारत ने कुल दो पदक जीते थे, जिनमें से एक कुश्ती में ही मिला था और कई भारतीय पहलवान इस बार जिस फॉर्म में दिख रहे हैं, उसे देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि टोक्यो में हमारे ये पहलवान रियो के मुकाबले शानदार प्रदर्शन करते हुए ज्यादा पदक जीतने में सफल होंगे। कुल सात भारतीय पहलवानों ने इस बार ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया है, जिनमें से छह पहलवान पहली बार ओलम्पिक में हिस्सा ले रहे हैं।
    भारत के जो पहलवान ओलम्पिक में हिस्सा ले रहे हैं, उनमें एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता 26 वर्षीया विनेश फोगाट से सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं, जो टोक्यो ओलम्पिक के लिए कोटा हासिल करने वाली पहली भारतीय पहलवान बनी थी। हालांकि उन्होंने 2016 में रियो ओलम्पिक में डेब्यू किया था लेकिन पदक हासिल करने से चूक गई थी। विनेश ने 18 सितम्बर 2019 को विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में 53 किलोग्राम भार वर्ग में दो बार की विश्व कांस्य पदक विजेता मिस्र की मारिया प्रेवोलार्की को 4-1 से चित्त करते हुए कांस्य पदक पर कब्जा करते हुए अपना ओलम्पिक का टिकट पक्का किया था। उससे पहले वह पोलैंड ओपन कुश्ती टूर्नामेंट में महिलाओं के 53 किलोग्राम भार वर्ग में रियो ओलम्पिक की कांस्य पदक विजेता स्वीडन की सोफिया मैटसन को हराकर स्वर्ण पदक भी जीत चुकी हैं। इसके अलावा वह राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भी खिताबी जीत हासिल कर चुकी हैं। उत्तर कोरिया की यांग मी पाक को विनेश की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा था लेकिन उत्तर कोरिया के ओलम्पिक में हिस्सा नहीं लेने के कारण विनेश की राह आसान हो गई है।
    27 वर्षीय बजरंग पूनिया को भारतीय पहलवानों में ओलम्पिक में सफलता के लिए उम्मीदों का सबसे प्रमुख केन्द्र माना जाता है। भारतीय पुरूष पहलवानों में वे पदक के सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे हैं। बजरंग को ओलम्पिक में दूसरी वरीयता दी गई है और उनका मुकाबला विश्व चैम्पियन रूस के राशिदोव के साथ होगा, जिन्हें पहली वरीयता प्रदान की गई है। एशियाई स्वर्ण पदक विजेता और विश्व चैम्पियन रहे बजरंग पूनिया एकमात्र ऐसे भारतीय पहलवान हैं, जिन्होंने अभी तक विश्व चैम्पियनशिप में तीन बार पदक जीते हैं, पहली बार 2013 में कांस्य, 2018 में रजत और 2019 में कांस्य। उनसे पूरी उम्मीदें हैं कि पिछली विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाने की कसक वे ओलम्पिक में अवश्य पूरी करेंगे।
    86 किलोग्राम वर्ग में 22 वर्षीय पहलवान दीपक पूनिया को ओलम्पिक में पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। उनके बेहतरीन प्रदर्शन से 2019 की विश्व चैम्पियनशिप में हर किसी को स्वर्ण पदक की उम्मीदें थी लेकिन टखने में लगी चोट के कारण वे फाइनल नहीं खेल सके, फिर भी रजत पदक जीतकर उन्होंने टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतने को लेकर उम्मीदें बढ़ा दी थी। विश्व चैम्पियनशिप में दीपक को पहले राउंड में ही टखने में चोट लग गई थी लेकिन फिर भी जिस जोश और जज्बे के साथ उन्होंने चोटिल होने पर भी कुश्तियां लड़ी और लगातार जीत हासिल करते हुए फाइनल तक पहुंचे, वह बेमिसाल था। अगस्त 2019 में ही दीपक विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर सीनियर में पहुंचे थे और उसके बाद विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था। उन्होंने नूर सुल्तान टूर्नामेंट में अपना ओलम्पिक का टिकट हासिल कर लिया था। दीपक की वजह से ही भारत को 18 साल लंबे अंतराल बाद विश्व जूनियर चैम्पियनशिप का खिताब जीतने का अवसर मिला था।
    23 वर्षीय मुक्केबाज रवि कुमार दहिया ने जिस अंदाज में कुछ दिग्गज पहलवानों को हराते हुए टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था और कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में अपनी पहली ही 2019 विश्व रेसलिंग चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतने में सफल हुए थे, उसे देखते हुए उनसे भी ओलम्पिक में श्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीदें बढ़ गई हैं। विश्व चैम्पियनशिप में रवि दहिया ने 57 किलोग्राम वर्ग में कई शीर्ष पहलवानों को हराकर साबित कर दिया था कि उनमें कितना दम है। वह उसी छत्रसाल स्टेडियम की देन हैं, जहां से दो ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त निकले हैं। दो बार के एशियन चैम्पियन रह चुके रवि ओलम्पिक में 57 किलोग्राग फ्रीस्टाइल वर्ग में भारत की ओर से खेलेंगे।
    रियो ओलम्पिक में कांस्य पदक विजेता रही साक्षी मलिक को अप्रैल माह में अल्माटी में हुए एशियाई ओलम्पिक क्वालीफायर में 4-0 से पराजित कर सोनम मलिक रजत पदक जीतकर पहलवानों में बड़ा नाम बनकर उभरी थी। उस मुकाबले के बाद उन्होंने ग्रीष्मकालीन खेलों में 62 किलोग्राम वर्ग में अपनी जगह बनाई थी। विश्व जूनियर और कैडेट चैम्पियन रही 18 वर्षीया सोनम ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय पहलवान हैं, जो जूनियर से सीनियर तक के अब तक के अपने सफर में अपने प्रदर्शन से काफी चर्चित रही हैं। वह भी पदक की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। 29 वर्षीया सीमा बिस्ला ने एशियाई चैम्पियनशिप में अपनी बेहतरीन प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक जीता था। एशियन मीट में मिली जीत के बाद उन्हें बुल्गारिया में मई माह में विश्व ओलम्पिक क्वालीफायर के लिए भारतीय टीम में शामिल किया गया था, जहां सीमा ने स्वर्ण पदक जीतकर 50 किलोग्राम वर्ग में टोक्यो ओलम्पिक में जगह बनाई थी।
    19 वर्षीया अंशु मलिक ने अप्रैल माह में अल्माटी में हुए एशियाई ओलम्पिक क्वालीफायर में रजत पदक जीतकर ओलम्पिक में 57 किलोग्राम वर्ग में अपनी जगह पक्की की थी। उससे पहले एशियाई चैम्पियनशिप में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। गत वर्ष रोम में माटेओ पेलिकोन रैंकिंग सीरीज में अंशु ने सीनियर वर्ग में अपना डेब्यू किया था, जहां उन्होंने रजत पदक जीता था। उसके बाद अंशु ने एशियन चैम्पियनशिप में नई दिल्ली में कांस्य और बेलग्रेड में व्यक्तिगत विश्वकप में रजत पदक हासिल किया था। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय पहलवान पूरी दुनिया में अपना जो दम दिखा दिखा रहे हैं, उनका वही दम ओलम्पिक में भी सारी दुनिया देखेगी और भारत के खाते में कुश्ती में भी कुछ पदक दर्ज होंगे।

कोरोना है इम्तिहानों का दौर

लौट आयेगी सभी खुशियां,
अभी कुछ गमो का दौर है।
जरा संभल कर रहो अभी,
ये इम्तिहानों का दौर है।।

बुरा वक़्त ये आया है,
अच्छा वक़्त भी आयेगा।
विश्वास कर ऊपर वाले पर,
ये बुरा वक़्त भी टल जायेगा।।

कर इबादत ऊपर वाले की,
वहीं मदद तेरी कर पायेगा।
ये बुरा वक़्त है चंद महीनों का,
चन्द महीनों में कट जायेगा।।

पहले भी आई थी मुसीबतें,
इतिहास है इसका गवाह।
मत घबरा इस वक़्त तू,
न कर इसकी अब परवाह।।

आती हैं सभी पर मुसीबतें,
चाहे गरीब हो या शहनशाह।
अभिताभ पर आया बुरा वक़्त
जो है फिल्मों का शहनशाह।।

करे हिफ़ाज़त हम अपनी,
और अपने पूरे परिवार की।
घर से बाहर न निकले अभी,
यह दवा कोरोना के उपचार की।।

यह मुसीबत तेरे पर नहीं,
पड़ी है सारे संसार पर।
चन्द महीनों की बात है,
ऊपर वाले पर विश्वास कर।।

कोरोना है इम्तिहान का दौर,
यह भी ख़तम ही जायेगा।
लेते है भगवान परीक्षा सभी की,
इस परीक्षा मै पास हो जायेगा।।

आर के रस्तोगी

बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर महामारी का असर

  • ललित गर्ग-

कोरोना महामारी के कारण बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। ज्यादातर राज्यों में जहां सवा साल से स्कूल बंद पड़े हंै, वहीं अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के दबाव के कारण बच्चों का इलाज प्रभावित हुआ है, उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधाएं सुलभ नहीं हो पायी है। महामारी के दौरान दो करोड़ तीस लाख बच्चों को डीटीपी का टीका नहीं लग पाया है, जो चिंताजनक स्थिति है। छोटे बच्चों को डिप्थीरिया, टिटनेस और पर्टुसिस (काली खांसी) से बचाने के लिए ये टीके जीवन रक्षक हैं। डीटीपी टीकाकरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पोलियो, चेचक जैसी बीमारियों से बचाने वाले टीके हैं। दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा खासतौर से बच्चे पहले ही कुपोषण से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर बच्चे को जीवन रक्षक टीके नहीं लग पायेंगे तो बच्चे कैसे स्वस्थ कैसे जीयेंगे? महामारी ने बच्चों की जिन्दगी को बदलकर रख दिया है, स्वास्थ्य खतरों में धकेल दिया है।
पिछले सवा साल के दौरान न केवल लोगों की आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक जिन्दगी गहरे रूप में प्रभावित हुई है, बल्कि बच्चों पर इसका घातक असर भी पड़ा है। घर से पढ़ाई ने बच्चों पर काफी असर डाला है। पहली कक्षा से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई आॅनलाइन चलती रही। यह मजबूरी भी थी। हालांकि आॅनलाइन कक्षाओं और परीक्षाओं का प्रयोग बहुत सीमा तक कामयाब नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर लोगों के पास आॅनलाइन शिक्षा के बुनियादी साधन जैसे स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटाॅप और इंटरनेट आदि उपलब्ध ही नहीं थे। ऐसे में विद्यार्थियों का बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित भी रहा। ऐसे विद्यार्थियों की तादाद भी कम नहीं होगी जो आधे-अधूरे मन से आॅनलाइन व्यवस्था को अपनाने के लिए मजबूर हुए। जिन बच्चों ने पूरी तरह आनलाइन शिक्षा को अपनाया है, उन पर तरह-तरह के शारीरिक एवं मानसिक दबाव बने हैं। स्कूल बंद होने के कारण स्कूल जाने वाले 33 फीसदी बच्चे प्रभावित हुए हैं। यूनिसेफ के मुताबिक वैश्विक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, स्वच्छता या पानी की पहुंच के बिना गरीबी में रहने वाले बच्चों की संख्या में 15 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है।
एक सर्वे में खुलासा किया गया है कि ऑनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चों के देखने और सुनने की क्षमता प्रभावित हुई है। बच्चों को मोबाइल एडिक्शन हो रहा है। वो अब अकेले रहना अधिक पसंद कर रहे हैं, कुंठित है। बच्चों का रुझान अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स की ओर अधिक हो गया है। कोरोना काल में एक ओर जहां सभी को अपने रहने और काम करने की तरीकों में बदलाव करना पड़ रहा है तो वहीं बच्चों की पढ़ाई पर भी इस संकट का बहुत गहरा असर पड़ा है। बच्चों के हाथों में अब कॉपी किताब से अधिक फोन, आईपैड या कंप्यूटर होता है। बदले शिक्षा के स्वरूप ने न केवल बच्चों को बल्कि शिक्षकों को भी ऊब एवं नीरसता दी है।
अनेक राज्यों ने अब स्कूलों को खोलने का इरादा बना लिया है। कुछ राज्यों ने तो पहले ही बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों को स्कूल आने की अनुमति दे दी थी। कोरोना महामारी के मामले कम पड़ जाने के साथ ही राज्यों ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है। यह जरूरी भी था। राजस्थान, ओड़िशा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब आदि राज्यों में जल्दी ही स्कूली गतिविधियां प्रारंभ होने जा रही है। हरियाणा में बड़ी कक्षाएं तो पहले ही शुरू हो चुकी थीं, अब आठवीं तक की कक्षा के विद्यार्थियों के लिए भी स्कूल खोल दिए हैं। महाराष्ट्र में तो पंद्रह जुलाई से स्कूल खुल चुके हैं।
तीसरी लहर की संभावनाओं के बीच स्कूलों का खुलना पूर्णतः सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। फिर भी यह तो तय है कि जैसे ही स्कूल खुलेंगे, विद्यार्थियों की भीड़ बढ़ेगी। और इसी के साथ तीसरी लहर का खतरा भी मंडरायेगा। पूर्णबंदी खत्म होने के बाद चरणबद्ध तरीके से काफी हद तक प्रतिबंध हटाए जा चुके हैं। दफ्तरों से लेकर बाजार तक खुल गए हैं। जिम, सिनेमाघर, होटल, रेस्टोरंेट, पर्यटन स्थल भी चालू हो चुके हैं। ऐसे में स्कूलों को भी अब और लंबे वक्त तक बंद रखना न तो संभव है, न ही व्यावहारिक। हालांकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने प्राथमिक स्कूलों को पहले खोले जाने की सलाह दी है। इसके पीछे वैज्ञानिक दलील यह है कि कोरोना विषाणु जिस एस रिसेप्टर के जरिए कोशिकाओं से जुड़ता है, वह बच्चों में कम आता है। इससे छोटे बच्चों में कुदरती तौर पर खतरा कम रहता है। चैथे सीरो सर्वे से इसकी पुष्टि हुई है। जो हो, स्कूलों को खोलने से पहले बच्चों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए ताकि और बड़ा संकट खड़ा न हो जाए।
शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के इलाज को भी सुनिश्चित किया जाना अपेक्षित है। गौरतलब है कि सवा साल में महामारी ने दुनिया को हिला दिया। अभी भी इससे मुक्ति के आसार नहीं है। ऐसे में सभी देशों का जोर फिलहाल महामारी को नियंत्रित करने पर ही है। कई महीनों तक तो अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के कारण दूसरी गंभीर बीमारियों के इलाज भी नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में बच्चों के लिए दूसरे जरूरी टीकों का अभियान बुरी तरह से प्रभावित होना ही था। दरअसल किसी भी देश में टीकाकरण जैसे अभियान तभी सफल हो पाते हैं जब उसके पास पहले ही से स्वास्थ्य सेवाओं का मजबूत ढांचा हो। भारत जैसे देश में स्वास्थ्य सेवाएं कितनी बदहाल हैं, यह महामारी के दौरान उजागर हो चुका है। यह अपने आप में कम गंभीर बात नहीं है कि डीटीपी की पहली खुराक के मामले में दुनिया में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। पिछले साल भारत में तीस लाख से ज्यादा बच्चों को इस टीके की पहली खुराक नहीं मिली। 2019 में भी चैदह लाख बच्चे इस टीके से वंचित रह गए थे। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि 2019 में जब कोरोना नहीं था तब चैदह लाख बच्चों को डीटीपी का टीका क्यों नहीं लग पाया? दरअसल यह हमारी बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था का सबूत है।
यूनिसेफ ने कहा है कि स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने और महामारी के कारण गरीबी बढ़ने के साथ “एक पूरी पीढ़ी का भविष्य खतरे में है।“ एजेंसी ने सरकारों से बच्चों के लिए सेवाओं में सुधार करने के लिए और अधिक कदम उठाने का आग्रह किया है। यूनिसेफ ने कहा कि कोविड-19 महामारी दुनिया भर के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के लिए “अपरिवर्तनीय नुकसान“ का कारण बन सकती है। 140 देशों का सर्वेक्षण करने वाली एक रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग एक तिहाई देशों ने स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में कम से कम 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की है, जिनमें टीकाकरण और मातृ स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं। यूनिसेफ ने कहा कि अगर सेवाओं में रुकावट और कुपोषण का बढ़ना जारी रहता है तो इससे अगले 12 महीनों में 20 लाख अतिरिक्त बच्चों की मौत हो सकती है और 2 लाख मृत जन्म हो सकते हैं। एजेंसी ने पाया कि महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण सेवाओं में महामारी के कारण 135 देशों में 40 फीसदी की गिरावट देखी गई। वहीं एजेंसी ने बताया कि पांच साल से कम उम्र के 60-70 लाख अतिरिक्त बच्चे तीव्र कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।
दुनिया भर में शिक्षा पर महामारी के पड़ते प्रभाव को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक नया ट्रैकर जारी किया है जिसे जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, वल्र्ड बैंक और यूनिसेफ के आपसी सहयोगी से बनाया गया है। यदि पिछले एक साल की बात करें तो कोरोना महामारी के कारण 160 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा है। यदि शिक्षा पर संकट की बात करें तो वो इस महामारी से पहले भी काफी विकट था। इस महामारी से पहले भी दुनिया भर में शिक्षा की स्थिति बहुत ज्यादा बेहतर नहीं थी। बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा को पटरी पर लाने के लिये सरकारों को गंभीर एवं व्यापक कदम उठाने होंगे। अगर गहराई से विश्लेषण किया जाये तो बच्चों को भी सक्षम एवं स्वस्थ जीने का अधिकार है। देश में नये शब्द की रचना करो और उसी अनुरूप शासन व्यवस्थाएं स्थापित होे। वह शब्द है…. मंगल। सबका मंगल हो, बच्चों के जीवन में भी मंगल हो और उससे जुड़ी नीतियों में प्रामाणिकता का मंगलोदय हो।

गांवों में रोजगार की सुविधाएं होंगी तो पलायन रुकेगा

नेहा कुमारी

रांची, झारखंड

कोरोना के संक्रमण ने जिस तरह गांवों को प्रभावित किया था, उससे यह साफ अंदाजा हो गया था कि इसे लेकर अभी भी लोगों में जागरुकता का अभाव है। वहीं अभी भले ही आंकड़ों में कमी आई है और टीकाकरण की रफ्तार को बल दिया गया है मगर कोरोना के तीसरे लहर को लेकर लोगों में डर कायम है। ‘हाउ इंडिया लिव्स’ ने बीबीसी मॉनिटरिंग के शोध का आंकड़ा देते हुए बताया है कि दूसरी लहर के दौरान देश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना तेज़ी से अपना पैर पसारने में कामयाब रहा था। जिसके पीछे अनेक कारण थे। इनमें युवाओं के पास अपने ही इलाके में रोजगार नहीं होने के कारण उनका पलायन करना भी एक प्रमुख कारण था। रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों में गए युवा लॉकडाउन के कारण जब घर वापस आये, तो इनमें संक्रमितों की एक बड़ी संख्या थी। जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के प्रकोप को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

रोजगार का संकट कोई नया नहीं है बल्कि यह मुद्दा हमेशा से सामाजिक रूप से शिखर पर ही रहा है। रोजगार की कमी और पैसों के अभाव में लोग अपनी जड़ें छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही घटना राजस्थान के उगरियावास गांव की भी है। इस गांव की आबादी करीब 4000 है। लेकिन दुखद बात यह है कि गांव में रोजगार का कोई बड़ा साधन नहीं है, जिस कारण लोग सुबह ट्रेन पकड़कर जयपुर शहर जाते हैं और वहां दिनभर काम करने के बाद शाम के वक्त अपने को गांव लौट आते हैं। जिस कारण गांव वालों के दिल में डर बरकरार रहता था कि कहीं उनका रोजगार गांव में कोरोना के वायरस को बढ़ाने का कारण न बन जाए। गांव वालों से बातचीत में पता चला कि गांव में संक्रमण को रोकने की कोई भी मुकम्मल तैयारी नहीं थी। वहां के लोगों ने बताया कि जब उन्हें कोरोना वायरस की जानकारी मिली तो वह काफी डर गए थे लेकिन उन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि हमारे गांव में कोरोना वायरस का डर नहीं है।

वहीं युवाओं का तर्क था कि भले ही जयपुर में कोरोना वायरस का संक्रमण है, मगर रोजगार के लिए हम जयपुर जाना छोड़ नहीं सकते हैं। हमारे लिए इसके अलावा कोई पैसे कमाने का दूसरा जरिया नहीं है। गांव के लोगों की बातों से साफ है कि लोग रोजगार के कारण ही घर और अपनी जमीन से दूर होते हैं, अगर उनके गांव में ही रोजगार के साधन बना दिए जाएं तो बड़ी संख्या में पलायन रुक सकता है। इसके लिए गांवों में कारखाने लगाएं जा सकते हैं ताकि मजदूरी करने के लिए भी दूसरे शहर या राज्य ना जाना पड़े। शहरों की तरह गांवों में भी स्कूलों को उच्च मानक का बनाने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा की खातिर बच्चों का पलायन रुके। सबसे जरूरी बात कि गांवों में अस्पतालों को नए पैमाने पर निरीक्षण करते हुए उसे दोबारा नए तरीके से खड़ा किया जाना चाहिए ताकि गांव में ही रह कर ग्रामीणों को स्वास्थ्य से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध हो सके। इससे शहर के अस्पतालों पर भी बोझ कम पड़ेगा। ग्रामीण दुर्गा लाल ने बताया कि हमने अखबारों में पढ़ा था कि सर्दी-खांसी है तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए और 2 मीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए मगर गांव के स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाओं का अभाव है। जिसकी वजह से शहर के अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। ग्रामीणों के अनुसार गांव में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तो है, जहां तैनात डॉक्टर गांव वालों को कोरोना वायरस से बचने के उपाय तो बताती है, लेकिन किसी प्रकार की बीमारी होने पर दवाएं उपलब्ध नहीं है। ऐसे में लोग दवा के नाम पर आयुर्वेदिक और देसी इलाज करवाने पर मजबूर हैं।

वास्तव में भारत को कृषि प्रधान और गांव का देश कहा जाता है। ऐसे में अगर भारत के गांव सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भारत ही सुरक्षित नहीं रह पाएगा। कोरोना के इस खतरनाक दौर में यदि हम गांव को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में नाकाम रहे तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। देश ने कोरोना की दूसरी लहर की भयानक त्रासदी को देखा है। जिसमें ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की चरमराई सूरतेहाल सामने आई है। बड़ी संख्य में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से निपटने के इंतज़ाम की पोल खुल गई है। ऐसे में तीसरी लहर और उससे होने वाली किसी भी तबाही को समय से पहले रोकने की आवश्यकता है। ज़रूरत है समय रहते इससे सबक लेने और गांव गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की।

इसके साथ साथ सबसे बड़ी ज़रूरत गांव में रोज़गार उत्पन्न करने की है, ताकि युवाओं के पलायन को रोका जा सके। ग्रामीण युवाओं के हुनर से गांव की तकदीर को बदलना मुमकिन है। ज़रूरत केवल इच्छाशक्ति की है। केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें युवाओं के हुनर को निखारने के लिए कई प्रकार की योजनाएं चला रही हैं। यदि उन योजनाओं को ईमानदारी से धरातल पर उतारा जाये और युवाओं को उससे जोड़ा जाये तो न केवल पलायन जैसी समस्या पर काबू पाया जा सकता है बल्कि इससे कोरोना और उसकी जैसी फैलने वाली अन्य घातक बिमारियों को भी आसानी से रोका जा सकता है। गांव में हुनर की कमी नहीं है, कमी है तो उस हुनर को पहचानने और उसे रोज़गार से जोड़ने की। यही वो मंत्र है जो पलायन जैसी समस्या को रोक सकता है।

भारत का शिक्षा क्षेत्र में नहीं थी कोई शानी

—विनय कुमार विनायक
भारत का शिक्षा क्षेत्र में नहीं थी कोई शानी,
प्राचीन भारत में घर-घर में लोग होते ज्ञानी,
तक्षशिला, बिहार का नालंदा और बिक्रमशिला,
विश्वविद्यालय था पूरे विश्व में ख्यातनामी,
तक्षशिला विश्वविद्यालय अब क्षेत्र पाकिस्तानी!

छठी शताब्दी ई.पूर्व महावीर व बुद्ध काल से,
नालंदा महाविहार मगध क्षेत्र में अवस्थित था,
इस महाविहार को विश्वविद्यालय में ढाला था,
गुप्तसम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने पांचवीं सदी में,
जिसे ध्वस्त कर दिया विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी ने!

यह विश्वविद्यालय विश्वस्तरीय शिक्षाकेन्द्र था,
जहां चीन तिब्बत लंका कोरिया मंगोलिया और
अन्य मध्य एशियाई देशों के दस हजार छात्र थे
अध्ययनशील, जिसमें चीन के ह्वेनसांग भी थे,
चीन तिब्बत के छात्रों ने नकल कर ग्रंथों को रक्षित किए!

शीलभद,धर्मकीर्ति,नागार्जुन,आर्यदेव,वसुबंधु आदि
पंद्रह सौ आचार्य अध्यापन कार्य में लगे हुए थे,
यहां शिक्षा हेतु प्रवेश परीक्षा द्वारपंडित लेते थे,

सभी विद्यापीठ में छात्रों को निशुल्क शिक्षा थी,
भोजन वस्त्र व आवास की बेहतरीन व्यवस्था की गई थी!

ग्यारहवीं सदी तक बौद्ध और हिन्दू शासकों ने
नालंदा विश्वविद्यालय का रख-रखाव किया था,
गुप्तवंश के बाद हर्ष, पाल,सेन ने दान दिया था,
पर बारहवीं सदी में मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि
बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जला दिया था!

नालंदा विश्वविद्यालय अति विकसित केन्द्र था,
ह्वेनसांग के अनुसार वेधशालाएं इतनी ऊंची थी
कि दृष्टि काम नहीं करती थी, उसके ऊपर ऐसे
यंत्र स्थापित थे जो वायु वर्षा का ज्ञान देता था,
बौद्ध दर्शन सहित वेद पुराण उपनिषदीय शिक्षा दी जाती!

चीनी विद्वान इत्सिंग सहित थान-मि,ह्वैन-च्यू,
ताऊ-हि,हिव-निह,ताऊसि आदि चीन,कोरिया और
तिब्बत,तोखारा देशों के अध्येता विद्वान थे जो
धर्मयज्ञ पुस्तकालय में ग्रंथों के नकल बनाते थे,
उनके ही प्रयास से भारतीय ज्ञान विश्व में फैले!

नालंदा के निकट उदन्तपुरी महाविहार था यहां,
जिसे उद्दण्डपुर संप्रति बिहार शरीफ कहे जाते,
उदन्तपुरी पाल शासक गोपाल की राजधानी थी,
बख्तियार ने विजय उपलक्ष्य में नाम बदल दी,
हिन्दू संस्कृति को मिटाने हेतु स्थानों के नाम बदले गए!

आक्रांताओं में स्थान का नाम बदलने की बदनीयती ऐसी
कि अंग क्षेत्र की राजधानी भागलपुर के सभी हिन्दू बहुल
मुहल्ले का नाम आक्रांताओं ने अरबी फारसी में रख दिए,
अलीगंज,मिरजान हाट,मुंदी चक, उर्दू बाजार,इसाक चक
आज भी अति धर्म सहिष्णु हिन्दुओं के द्वारा पुकारे जाते!

पालवंशी गोपाल सुपुत्र धर्मपाल ने नवीं सदी में,
भागलपुर के निकट बिक्रमशिला स्थापित किया,
बिक्रमशिला विश्वविद्यालय भी अतिविख्यात था,
उदन्तपुरी विद्यापीठ के द्वारपंडित रत्नाकर को
बिक्रमशिला का द्वारपंडित नियुक्त किया गया!

रत्नाकर शांति कलिकालसर्वज्ञ वज्रयान के ज्ञानी
व अंगक्षेत्र के अतिश दीपंकर श्रीज्ञान प्रबंधक थे,
जो बौद्धधर्म प्रचारार्थ जावा सुमात्रा तिब्बत गए,
बिक्रमशिला तंत्रयान औ मंत्रयान विद्याकेन्द्र था,
पालवंशी राज में बिक्रमशिला अति विकसित था!

इस महाविहार में आठ महापंडित, छः द्वार पंडित,
औ’ एक सौ आठ पंडित आचार्य अध्यापन करते,
हिन्दी साहित्य के चौरासी सिद्धों में अधिकांशतः
बिक्रमशिला महाविहार के अंगिका भाषा भाषी थे,
अंगिका भाषा वेदों से निसृत लेकिन छली गई है!

इस चार विश्वविद्यालयों के अलावे पाटलिपुत्र था
मौर्य काल में संस्कृत विद्या का अति प्राचीन गढ़,
जहां शास्त्रकारों की परीक्षा प्रति वर्ष होती रही थी,
वर्ष,उपवर्ष, पाणिनि,पिंगल,व्याडि, वररुचि, पतंजलि
पाटलिपुत्र के संस्कृत आचार्य डिग्रीधारी विद्वान थे!
—विनय कुमार विनायक

वायु प्रदूषण मौसमी समस्या नहीं

देश के कई प्रमुख शहर वर्ष के अधिकांश भाग के लिए न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) बल्कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भी निर्धारित सीमा से ऊपर रहते हैं। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और झारखंड में पार्टिकुलेट मैटर के स्तरों की गहन जाँच से पता चलता है कि यहाँ समस्या सिर्फ मौसमी नहीं है।

अक्टूबर आते-आते, जैसे ही आसमान स्लेटी होने लगता है और विज़िब्लिटी कम होने लगती है, मीडिया हो या राजनीति, या फिर खाने की मेज़ पर होने वाली बातचीत- हर तरफ वायु प्रदूषण भी बातचीत का एक हॉट टॉपिक बन जाता है। लेकिन, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और झारखंड में पार्टिकुलेट मैटर के स्तरों की गहन जाँच से पता चलता है कि यहाँ समस्या सिर्फ मौसमी नहीं है।

शोध डाटा इंगित करता है कि देश के कई प्रमुख शहर वर्ष के अधिकांश भाग के लिए न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) बल्कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भी निर्धारित सीमा से ऊपर रहते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि उच्च प्रदूषण के स्तरों से लंबे समय तक संपर्क दुनिया भर में हजारों लोगों की अकाल मृत्यु का कारण है।

बात सिर्फ़ इन चार राज्यों की ही करें तो यहाँ की कुछ झलकियां इस प्रकार हैं

· जनवरी 2021 से अब तक शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से आठ शहर उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों से हैं। सभी शहरों में CPCB की 40 ug/m3 की अनुमेय सीमा से अधिक औसत PM 2.5 सांद्रता है

· पंजाब में, जनवरी और जून 2021 के बीच, भटिंडा और रूपनगर को छोड़कर, सभी मॉनिटर किये गए शहरों ने CPCB की अनुमेय सीमा से अधिक PM 2.5 की सांद्रता की सूचना दी। यह दर्शाता है कि प्रदूषण केवल उन महीनों की समस्या नहीं है जब राज्य में पराली जलाई जाती है

· राजस्थान के जोधपुर और भिवाड़ी में 2020 में, जब देश मार्च से जून तक पूरी तरह से लॉकडाउन (तालाबंदी) में था, एक बार भी प्रदूषण के स्तर अनुमेय सीमा के भीतर नहीं देखे गए

· हरियाणा में शीर्ष 10 प्रदूषित स्थानों में मासिक औसत PM 2.5 सांद्रता 81 ug/m3 और 98 ug/m3 के बीच दर्ज की गई

· देश की कोयला राजधानी झारखंड में केवल एक कंटीन्यूअस अम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन (निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन) (CAAQMS) और तीन मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशंस (दस्ती निगरानी स्टेशन) हैं। CAAQMS ने जुलाई 2020 से PM 2.5 डाटा रिकॉर्ड नहीं किया है

कुछ बात NCAP ट्रैकर की

NCAP ट्रैकर भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के कार्यान्वयन और प्रभाव की व्यापक समीक्षा है। NCAP के तहत, सरकार का लक्ष्य भारत के पार्टिकुलेट मैटर (PM) वायु प्रदूषण को 30% तक कम करना है, और डाटा संकलन और मूल्यांकन के विभिन्न स्तरों के माध्यम से NCAP ट्रैकर इसकी प्रगति पर नज़र रखने में सक्षम बनाता है। ट्रैकर का कंटीन्यूअस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग डैशबोर्ड CPCB से डाटा सोर्स करता है। NCAP ट्रैकर CarbonCopy (कार्बनकॉपी) और Respirer Living Sciences (रेस्पिरर लिविंग साइंसेज) द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की गई एक परियोजना है।

CAAQMS डैशबोर्ड का उपयोग करते हुए, पिछले कुछ महीनों और अधिक में देश और राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा और झारखंड में प्रदूषण के स्तर का यहाँ एक स्नैपशॉट है।

राष्ट्रीय स्तर पर जुलाई को देश के शीर्ष 10 प्रदूषित शहर

गुजरात का शहर नंदेसरी 11 जुलाई को औसत PM 2.5 (2.5 माइक्रोन से कम का पार्टिकुलेट मैटर) सांद्रता की मात्रा 104 ug/m3 (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) के साथ सबसे अधिक प्रदूषित था, देश के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में से छह (धारूहेड़ा, जींद, हिसार, रोहतक, फरीदाबाद, गुरुग्राम) हरियाणा के थे। सभी 10 शहरों ने 24 घंटे के औसत PM 2.5 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 25 ug/m3 के निर्धारित स्तर के दोगुने से अधिक बताया। शाम 7 बजे के आसपास नंदेसरी में PM 2.5 का स्तर 463 ug/m3 के चरम पर पहुंच गया, जो सभी शहरों में सबसे अधिक है। सबसे अपडेटेड दिन के आंकड़ों के लिए NCAP ट्रैकर पर जाएं।

इस वर्ष के शीर्ष 10 प्रदूषित शहर

2021 की पहली छमाही में, PM 10 (नीले रंग में चिह्नित) सांद्रता की मात्रा 266 ug/m3 और PM 2.5 सांद्रता (लाल रंग में चिह्नित) 115 ug/m3 की मात्रा के साथ, उत्तर प्रदेश का ग़ाज़ियाबाद देश का सबसे प्रदूषित शहर रहा है। गैर-लाभकारी संगठन लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (LIFE) का हालिया विश्लेषण से बताता है कि ग़ाज़ियाबाद और नोएडा के सिटी एक्शन प्लान्स (शहर की कार्य योजनाएं) समान हैं और शहर को साफ़ करने के लिए कोई भी मात्रात्मक लक्ष्य या व्यापक योजना नहीं रखते हैं।

हरियाणा और उत्तर प्रदेश के शहर सूची में सबसे अधिक विशेष रुप से प्रदर्शित थे। हरियाणा में नारनौल को PM 10 की सांद्रता 223 ug/m3 की मात्रा के साथ 10-वें सबसे प्रदूषित शहर के रूप में रैंक किया गया है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 60 ug/m3 की सुरक्षित सीमा से लगभग चार गुना अधिक है।राजस्थान के भिवाड़ी को भी 250 ug/m3 PM 10 सांद्रता के साथ सूची में शामिल किया गया है। सभी 10 शहरों में PM 2.5 के स्तर भी CPCB की 40 ug/m3 की सुरक्षित सीमा से ऊपर रहा।

राजस्थान

राजस्थान के आठ शहरों – अजमेर, भिवाड़ी, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, पाली और अलवर – में 10 CAAQMS लगे हैं। मॉनिटरों ने 70% अनिवार्य के मुकाबले 90% औसतन अपटाइम की सूचना दी। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ेज़ 2017 के अनुसार, राजस्थान में बाल मृत्यु दर की अधिकतम संख्या दर्ज की गई। वायु प्रदूषण से प्रति 1,00,000 में 126 बच्चों की मृत्यु हुई।

राजस्थान के शहरों में, केवल कुछ अपवादों के साथ, CPCB की सुरक्षित सीमा 40 ug/m3 से अधिक PM 2.5 सांद्रता दर्ज की गई है। कुछ अपवाद।

2020 में, जब देश मार्च से जून तक पूरी तरह से लॉकडाउन में था, जोधपुर और भिवाड़ी शहरों में एक बार भी अनुमेय सीमा के भीतर प्रदूषण का स्तर नहीं देखा गया।

इस वर्ष के पहले चार महीनों (जनवरी से अप्रैल) में भी, सभी मॉनिटर हुए शहरों – अजमेर, अलवर, भिवाड़ी, जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर और पाली – में PM 2.5 सांद्रता का स्तर 40 ug/m3 की सुरक्षित सीमा से अधिक और WHO की 10 ug/m3 की सीमा के तिगुने से अधिक देखा गया है। बाद के महीनों में, मई में केवल अपवाद अलवर (31 ug/m3) और उदयपुर (39.5 ug/m3) थे और जून में केवल अपवाद अलवर (34 ug/m3), अजमेर (31 ug/m3), उदयपुर (35 ug/m3) और कोटा (37 ug/m3) थे। इस साल जून तक किसी भी शहर में PM 10 सांद्रता ने 60 ug/m3 के सुरक्षा मानक से मेल नहीं खाया।

भिवाड़ी शहर, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है और स्टील मिलों और भट्टियों से लेकर ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण तक के बड़े, मध्यम और छोटे उद्योगों की एक श्रृंखला का केंद्र है, तीनों वर्षों (2019 – जून 2021) के दौरान उच्च PM 2.5, PM 10 और NO2 सांद्रता के साथ राज्य में सबसे प्रदूषित शहर है। उदाहरण के लिए, नवंबर 2020 में शहर की PM 2.5 सांद्रता 195 ug/m3 की पीक पर पहुंच गई। इस अवधि के दौरान, इसने अगस्त 2020 में PM 2.5 की मात्रा 34 ug/m3 दर्ज की गई, केवल एक बार जब ये CPCB की अनुमेय सीमा 40 ug/m से नीचे थी। नवंबर 2020 में, CPCB की 60 ug/m3 की सीमा के प्रतिकूल, भिवाड़ी में PM 10 की सांद्रता 358 ug/m3 को छू गई। NO2 का स्तर भी, मई से सितंबर को छोड़कर, 40 ug/m3 की अनुमेय सीमा से ऊपर रहा है।

राजस्थान में आपरेशनल CAAQMS में, भिवाड़ी में राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास और निवेश निगम में उच्चतम मासिक औसत PM 2.5 सांद्रता 103 ug/m3 दर्ज की गई थी। दिसंबर 2020 में CSE और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक आकलन के अनुसार, भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र का क्षेत्र के औद्योगिक प्रदूषण लोड (जयपुर-अलवर-भिवाड़ी एयर शेड) में लगभग 65% का योगदान है। भिवाड़ी में कुल 328 वायु प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग हैं।

10 स्थानों में से तीन – पुलिस कमिश्नरी, शास्त्री नगर और आदर्श नगर जयपुर शहर के हैं। 2018 में जारी किये गए WHO के ग्लोबल अर्बन एम्बिएंट एयर पॉल्यूशन डाटाबेस 2016 के अनुसार, जयपुर और जोधपुर को क्रमशः दुनिया के 12-वें और 14-वें सबसे प्रदूषित शहरों का स्थान दिया गया। जनवरी 2020 में जयपुर में IIT-कानपुर द्वारा किए गए एक सोर्स अपपोरशंमेंट (स्रोत प्रभाजन) अध्ययन से पता चला है कि जबकि PM 2.5 के 47% सड़क की धूल और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन से है, उद्योगों का योगदान क्रमशः 20% और 19% है।

पंजाब और चंडीगढ़

आठ मॉनिटर हैं – अमृतसर, भटिंडा, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, खन्ना, रूपनगर और मंडी गोबिंदगढ़ शहरों में एक-एक। मॉनिटर्स 89% के अपटाइम की रिपोर्ट करते हैं। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में 87% अपटाइम के साथ एक CAAQMS भी है।

अक्टूबर से जनवरी के महीनों में (तीनों वर्षों में) जब पराली जलाने और सर्दी की स्थिति अपने चरम पर होती है, पंजाब में मॉनिटर किए गए सभी आठ शहरों में उच्च PM 2.5 सांद्रता देखी गई, लेकिन प्रदूषण का स्तर बाक़ी साल में भी केवल थोड़ा ही बेहतर है। उदाहरण के लिए, जनवरी और जून 2021 के बीच, भटिंडा और रूपनगर को छोड़कर सभी शहरों ने CPCB की अनुमेय सीमा से अधिक PM 2.5 सांद्रता रिपोर्ट करी। 2020 में, मार्च, अप्रैल और अगस्त के लॉकडाउन महीनों में, जब राज्य में बारिश होती है, सभी शहरों ने PM 2.5 के स्टार को को 40 ug/m3 से नीचे पाया। 2019 के पूर्व-महामारी वर्ष में, केवल जुलाई से सितंबर के मानसून के महीनों में सभी आठ शहरों ने CPCB की अनुमेय सीमा के तहत PM 2.5 के स्तर दर्ज किये। अक्टूबर से प्रदूषण का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है जब खरीफ की फसल कटाई के लिए तैयार होती है।

इन्फ्लुएंस ऑफ़ एग्रीकल्चरल एक्टिविटीज़ ऑन एटमोस्फियरिक पॉल्यूशन ड्यूरिंग पोस्ट मॉनसून हार्वेस्टिंग सीज़न्स एैट अ रूरल लोकेशन ऑफ़ इंडो गैंजेटिक प्लेन (सिन्धु-गंगा के मैदान के एक ग्रामीण स्थान पर मानसून के बाद कटाई के मौसम के दौरान वायुमंडलीय प्रदूषण पर कृषि गतिविधियों का प्रभाव) शीर्षक वाला एक हालिया पेपर इस बात पर प्रकाश डालता है कि IGP क्षेत्र में मानसून के बाद के वायु प्रदूषण के लिए अकेले फ़सल अवशेष जलाने को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पेपर के लेखक और पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रोफेसर, स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ PGIMER, चंडीगढ़, रवींद्र खैवाल ने कहा, “क्षेत्र में वायु प्रदूषण को मिटिगेट करने के लिए, केवल फ़सल अवशेष जलाने पर अंकुश लगाने के बजाय, जो निस्संदेह एक प्रमुख स्रोत है, सभी कृषि उत्सर्जन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके अलावा, मौसम विज्ञान की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि मानसून के बाद के मौसम में वायु द्रव्यमान का 70-86% हिस्सा 500 km के भीतर उत्पन्न होता है, जहां ये कृषि गतिविधियां होती हैं।”

कई वर्षों में, मंडी गोबिंदगढ़ ने कुछ महीनों को छोड़कर मॉनिटर होने वाले शहरों में प्रदूषण का चरम स्तर दर्ज किया है। यह पंजाब के स्टील सिटी (इस्पात शहर) के रूप में भी जाना जाता है, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार उद्योगों द्वारा लगभग 50% प्रदूषण होता है। सभी रोलिंग मिल, कपोला भट्टियां और सिरेमिक इकाइयां अपनी भट्टियों में ईंधन के रूप में कोयले/भट्ठी के तेल का उपयोग करती हैं जिससे बड़ी मात्रा में कण पदार्थ, सल्फर डाइ-ऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड आदि उत्सर्जित होते हैं।

WHO के ग्लोबल अर्बन एम्बिएंट एयर पॉल्यूशन डाटाबेस ने 2018 में पटियाला को दुनिया के 13-वें सबसे प्रदूषित शहर का स्थान दिया। हालांकि साल दर साल तुलना (नीचे दिए गए चित्र में) से पता चलता है कि शहर में PM 2.5 की सांद्रता केवल बढ़ रही है। शहर की क्लाइमेट एक्शन प्लान (जलवायु कार्य योजना) के अनुसार, वाहनों से होने वाला उत्सर्जन प्रदूषण का 48% हिस्सा बनाता है।

2019 से 2021 तक के मासिक औसत के आधार पर पंजाब में सबसे प्रदूषित स्थान मंडी गोबिंदगढ़ शहर में पाया गया। 63 ug/m3 के PM 2.5 के स्तर के साथ, सांद्रता WHO के 10 ug/m3 के वार्षिक सुरक्षा दिशानिर्देश से छह गुना अधिक थी। यदि मौसमी औसत को ध्यान में रखा जाए, तो अक्टूबर से फरवरी के सर्दियों के महीनों के दौरान उसी स्थान पर PM 2.5 की सांद्रता 85 ug/m3 दर्ज की जाती है।

हरयाणा

हरियाणा में वायु गुणवत्ता की मॉनिटरिंग राज्य के 24 शहरों में फैले 30 CAAQMS के माध्यम से होती है। देश के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से चार (फरीदाबाद, सोनीपत, नारनौल और धारूहेड़ा) हरियाणा से हैं। नीचे उन शहरों और कुछ और में PM 2.5 के स्तर का स्नैपशॉट दिया गया है।

जबकि सर्दियों के दौरान उच्च प्रदूषण का स्तर स्पष्ट होता है, ऊपर बताए गए आठ शहरों में से अधिकांश में PM 2.5 की सांद्रता पूरे वर्ष में 40 ug/m3 की अनुमेय सीमा से अधिक है। नवंबर 2020 में PM 2.5 का स्तर चरम पर था जब फतेहाबाद ने 241ug/m3 की सांद्रता दर्ज की, जो कि अनुमेय सीमा से छह गुना है। 2019 में पूर्व-कोविड समय के दौरान शहरों ने केवल अगस्त और सितंबर के मानसून महीनों में सुरक्षित सीमा के भीतर PM 2.5 सांद्रता स्तर देखे। 2020 में, प्रदूषण का स्तर तुलनात्मक रूप से कम था (विज़-ए-विज़) अप्रैल में, संभवतः कोविड -19 लॉकडाउन के कारण और फिर अगस्त और सितंबर के मानसून के महीनों में। इस साल, सभी आठ शहरों में अब तक के सभी महीनों में PM 2.5 की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक दर्ज की गई है। अन्य शहरों के लिए अधिक विस्तृत डाटा NCAP ट्रैकर पर उपलब्ध है।

हरियाणा में शीर्ष 10 प्रदूषित स्थानों में मासिक औसत PM 2.5 सांद्रता 81 ug/m3 और 98 ug/m3 की रेंज में दर्ज की गई, जिसमें सेक्टर 51, गुरुग्राम तालिका में सबसे ऊपर है। उसी स्थान के लिए, सर्दियों के महीनों (अक्टूबर से फरवरी) में PM 2.5 की औसत सांद्रता 175 ug/m3 के स्तर पर लगभग दोगुनी है। मॉनसून के महीनों में भी, चरखी दादरी में मिनी सचिवालय के सबसे प्रदूषित स्थान में CPCB सुरक्षा दिशानिर्देशों से काफी ऊपर, 55 ug/m3 की औसत PM 2.5 सांद्रता दर्ज की गई।

झारखंड

कोयला खदानों, ताप विद्युत संयंत्रों और कई अन्य उद्योगों के उच्च घनत्व का केंद्र, झारखंड राज्य में धनबाद से लगभग 13 kms दूर जोरापोखर में केवल एक CAAQMS है और धनबाद में सिर्फ तीन मैनुअल मॉनिटर हैं। डैशबोर्ड ने जुलाई 2020 से PM 2.5 का स्तर दर्ज नहीं किया है क्योंकि मॉनिटरों ने शून्य के अपटाइम की सूचना दी है जो यह संकेत दे सकता है कि यह गैर-कार्यात्मक था।

ह्यूमन हेल्थ एंड एनवीरोंमेंटेल इम्पैटस ऑफ़ कोल कंबस्शन अब्द पोस्ट-कंबस्शन वेस्ट्स (कोयला दहन और दहन के बाद के कचरे के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव) शीर्षक वाले एक पेपर के अनुसार, कोयला दहन संयंत्रों में उत्पादित भारी धातु के ट्रेसेस त्वचा और फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग, पेट दर्द, जीन उत्परिवर्तन, ल्यूकेमिया और कोमा जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर पांचवें लैंसेट काउंटडाउन का अनुमान है कि भारत में 2018 में अकेले कोयले से जुड़े उत्सर्जन से 95,820 मौतें जुड़ी हैं।

2020 में देश भर में लॉकडाउन के बावजूद, झारखंड में PM 10 के स्तर अधिकांश वर्ष के लिए CPCB की 60 ug/m3 की अनुमेय सीमा से ऊपर रहे। यह केवल अगस्त और सितंबर के दौरान 60 ug/m3 से नीचे गया, जो लॉकडाउन के महीने नहीं थे और इसलिए यह मौसम प्रणालियों का परिणाम हो सकता है। ऐसा ही ट्रेंड 2019 में जुलाई, अगस्त और सितंबर में देखने को मिला था। अब तक 2021 के लिए भी PM 10 का स्तर अनुमेय सीमा से ऊपर रहा है।

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग कार्यक्रम (NAMP) के तहत धनबाद में स्थापित तीन मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशनों के डाटा से पता चलता है कि PM 10 की सांद्रता 2016 में 226 ug/m3 से बढ़कर 2018 में 263 ug/m3 हो गई। 2019 और 2020 का डाटा अभी तक उपलब्ध नहीं है।

मासूम शिव भक्त – एक सच्ची कहानी

शंकर एक अनाथ लड़का था। उसको जंगल में रहने वाले शिकारियों के एक गिरोह ने पाला था। उसके पास कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं थी – वह केवल एक चीज जानता था कि उसे कैसे जीवित रहना है। शिकार करना और उनको मारना तथा जंगल के फलों को खाना और नदी के पानी को पीकर अपने आप को जीवित रखना जानता था।

एक दिन वह अपना रास्ता भटक गया और उसने देखा कि कुछ लोग नदी के किनारे पर बने एक पत्थर की आकृति के चारो ओर जोर जोर से चिल्ला रहे हैं।कुछ लोग उसपर फूल, फल और नारियल चढ़ा रहे हैं।शायद उसने सोचा यह कोई मकान होगा जिसमे लोग रहते होगे। पर यह एक प्राचीन मंदिर था।लेकिन शंकर ने इसे पहले कभी नहीं देखा था पर इसके बारे में जानने के लिए वह काफी उत्सुक था।

उसने तब तक इंतजार किया जब तक कि लगभग सभी लोग उस मंदिर से नहीं चले गए। अंत में उसने एक युवा लड़के को पत्थर की इमारत से बाहर आते देखा और उससे बात करने का फैसला किया और शंकर ने उससे अपने मन में आए कई सवाल पूछे।

उसका पहला प्रश्न था,”इस इमारत को क्या कहा जाता है ? लोग अपने साथ क्या लाते है ? फिर उन चीजों को अंदर वाली इमारत में क्यों छोड़ कर वापिस आ जाते है?”

चीजों को अपने साथ लाना और उन्हें अंदर छोड़ कर वापिस चले जाने पर वह लड़का शंकर की अज्ञानता व मासूमियत पर बहुत ही हैरान था और उसके सवालों से चकित भी था, पर यह वह नहीं जानता था कि वह पास के जंगल में रहता है और शिकार करके ही अपना जीवन यापन करता है। लेकिन फिर भी उसने उसके सवालों के जवाब देने की पूरी कोशिश की। उसने शंकर को बताया, “यह भगवान शिव का मंदिर है। लोग यहां उन्हें फल और फूल चढ़ाने आते हैं। वे शिव भगवान से जो चाहते हैं वह मांगते हैं और शिव उनकी सभी की प्रार्थनाओं को सुनते हैं।”

यह सुनकर शंकर तुरंत मंदिर जाना चाहता था। लड़के ने उसे अंदर का रास्ता दिखाया और शिवलिंग के बारे में बताया। शंकर ने मासूमियत से लड़के से पूछा। “यह शिवलिंग क्या चीज है ? और हमें क्या देता है?” लड़के ने बताया “हम शिव से जो मांगते हैं, वह हमे दे देता है, हम सब ऐसा मानते हैं।” लड़के ने कहा “अब अंधेरा हो रहा है। अब मुझे घर जाना होगा।” और वह शंकर को वहीं अकेला छोड़कर चला गया।

शंकर ने झिझकते हुए मंदिर में फिर से प्रवेश किया । वह एक कोने में बैठ गया और सोचा, “एक पत्थर किसी को वह चीज कैसे दे सकता है जो वे चाहते हैं?” इसलिए उसने इसका परीक्षण करने का फैसला किया और उसने पत्थर की प्रतिमा से कहा, “हे शिव! कृपया मुझे पर्याप्त शिकार करने दें ताकि मैं भूखा न रहूं। मेरे पास आपको चढ़ाने के लिए कोई फल या फूल नहीं हैं, लेकिन यदि आप मुझे शिकार देते हैं, तो मैं उसे आपके साथ साझा करूंगा। मैं वादा करता हूँ कि मैं आपको धोखा नहीं दूंगा।” उसने घोषणा की ।

अगली सुबह शंकर शिकार करने गया। उसने पूरे दिन शिकार की तलाश की, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह भूख से तिलमिला रहा था। वह काफी निराश हो गया क्योंकि उसे कोई शिकार नहीं मिला था। दोपहर हो चुकी थी। अब उसे लगने लगा कि मंदिर के लड़के ने उससे झूठ बोला था फिर भी, उसने शिकार जारी रखा। जैसे ही शाम हुई, उसने दो खरगोशों को अपने बिल में से आते देखा। शंकर ने उन खरगोशो को मार डाला। चूंकि उसने शिव भगवान से वादा किया था कि वह अपने शिकार को साझा करेगा, वह मरे हुए खरगोशों में से एक के साथ मंदिर गया।

देर हो चुकी थी और मंदिर सुनसान था। शंकर ने मंदिर में प्रवेश किया और जोर से कहा,” कृपया आओ और अपना हिस्सा ले लो प्रभु। आप के लिए मै लाया हूं।”

वह वहां बैठ गया और अंधेरा होने तक प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन भगवान प्रकट नहीं हुए। शंकर को भूख और नींद आने लगी और उसने खरगोश को मंदिर में छोड़ने का फैसला किया।

अगली सुबह जब लोग मंदिर पहुंचे तो उन्हें शिवलिंग के सामने मरा हुआ खरगोश मिला। भक्त बहुत परेशान थे। “यह यहाँ कौन लाया है? उसने हमारे मंदिर को अपवित्र करने की हिम्मत कैसे की?” उन्होंने खरगोश को बाहर फेक दिया।

अगले दिन शंकर अपनी भूख मिटाने के लिए जंगल में शिकार करने गया। लेकिन इस बार उसकी किस्मत अच्छी नहीं थी और उसे शिकार भी नहीं मिला। उसने सोचा, “आज रात को मंदिर जाना चाहिए और शिव से पूछना चाहिए कि उनको खरगोश का भोजन कैसा लगा?” शंकर यह पूछने के लिए मंदिर गया। जब वह मंदिर पहुचा तो उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। उस रात मंदिर में लोगों की काफी भीड़ थी। शिवरात्रि की रात थी।, लेकिन अबोध शिकारी लड़के को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था।

शंकर ने चारों ओर देखा और उस युवा लड़के को देखा जिसने उसको मंदिर के अंदर शिव से प्रार्थना करने के लिए कहा था। चूंकि उसे इतने सारे लोगों के आसपास रहने की आदत नहीं थी, उसने वहीं रुकने का फैसला किया और पास के एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया। यह एक लंबा इंतजार था और समय बिताने के लिए उसने पेड़ से पत्ते तोड़कर जमीन पर फेंकना शुरू कर दिया। उसे अज्ञात, पेड़ के नीचे एक छोटा सा शिवलिंग था, जिसकी पूजा लंबे समय से नहीं की गई थी। शंकर के द्वारा फेके गए बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिरे। शंकर भजनों से मंत्रमुग्ध हो गया और धीरे-धीरे साथ गाना और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया।

रात भोर में बदल गई और सभी भक्त मंदिर से चले गए । शंकर पेड़ से उतरा और मंदिर में प्रवेश किया। उसने देखा कि शिवलिंग की आंखों पर लाल निशान थे। वे कुमकुम के थे जो लोगों ने लगाये थे, लेकिन शंकर को यकीन था कि शिव को उनकी आंखों में परेशानी हो रही है। उसने शिव की खेदजनक स्थिति के रूप में जो कुछ भी महसूस किया, उसके लिए उसे बहुत दुख हुआ। वह उनकी मदद करना चाहता था। उसने सोचा “शिव यहाँ अकेले रहते है और बीमार होने पर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जब तक भक्त उनसे मिलने नहीं आते, उन्हे भोजन भी नहीं मिलता।”
शंकर ने एक रात पहले भक्तों को शिवलिंग पर जल चढ़ाते देखा था। “प्रभु को ठंड लग रही होगी। शायद वे कांप रहे है,” उसने सोचा। “आखिरकार,वे केवल पत्तियों से ही ढके हुए है!”

तो उसने शिव से पूछा, “मेरे स्वामी, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? शायद कुछ खाना या दवा? मैं आपकी सेवा कैसे कर सकता हूँ?” शिव ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।

शंकर ने सोचा। “भगवान वास्तव में बहुत बीमार है क्योंकि वह अब उत्तर देने में भी असमर्थ हैं!”

वह तुरंत जंगल में गया, कुछ औषधीया जड़ी बूटियों को लाया और लाल निशान पर उनका लेप लगाया। लेकिन कुछ नहीं हुआ! उसने कहा “लगता है कि ये अंधे हो गए है! मुझे प्रभु को अपनी एक आंख देनी चाहिए ताकि वह ठीक हो जाए। यह निश्चित रूप से उन्हे खुश कर देगा!”

उसका दिल पवित्र था और उसने वहां शिव के हाथ में रखे त्रिशूल को उठाया और त्रिशूल को अपनी दाहिनी आंख की ओर ले गया और अपनी आंख को निकालने का प्रयत्न किया। शंकर अनपढ़ था, उसे मंत्रों या पूजा के उचित तरीकों का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उसकी भक्ति की कोई सीमा नहीं थी। जैसे ही वह अपनी आंख निकालने वाला था, शिव अपनी पत्नि पार्वती के साथ प्रकट हुए। उन्होंने पार्वती से कहा “इस भक्त शंकर ने अनजाने में शिवरात्रि पर उपवास किया, बेल के पत्तों से मेरी पूजा की और साबित किया कि उनका दिल बेदाग व पवित्र है। मै अपने इस भक्त पर काफी प्रसन्न हूं।”

शिव भगवान ने शंकर से कहा “तुमने मुझे अपनी मासूमियत के कारण जीत लिया है,” प्रभु ने मुस्कुराते हुए कहा,”लोग मुझसे हर समय झूठे वादे करते रहते हैं, और कुछ न कुछ मुझसे मांगते रहते है पर जैसे ही उन्हे मुझसे मांगी चीज मिल जाती है तो वे मुझे भूल जाते है। दूसरी ओर, तुमने मेरे साथ एक सच्चे इंसान की तरह व्यवहार किया, और यह वास्तव में बहुत ही दुर्लभ है। अब से तुम मेरे इस संसार में सबसे बड़े भक्त माने जाओगे और तुम्हारा नाम मेरे साथ सदा जुड़ा रहेगा। तुम कई सदियों तक जीवित रहोगे। इस बात को कहकर भगवान शिव व मां पार्वती अंतर्ध्यान हो गए। तभी से लोग शिव के साथ शंकर भी लगाने लगे।

राम कृष्ण रस्तोगी

प्रकृति से प्यार करो

—विनय कुमार विनायक
प्रकृति से प्यार करो, थोड़ा सा उसे दो,
औ अधिक से अधिक उससे से ले लो,
प्रकृति की जड़-चेतन,सुप्त-जागृत चीजें,
कभी भी इंसान सा कृतघ्न नहीं होती!

थोड़ी सी मिट्टी की निकासी गुड़ाई करो,
एक छोटा सा बीज भूमि में बोकर देखो,
एक नन्हा कोमल पौधा निकल आएगा,
उसे थोड़ा सा खाद, पानी, निगरानी दो!

जल्द ही एक बड़ा सा वृक्ष बढ़ आएगा,
वृक्ष कुलबुलाएगा फूल व फल दे करके,
तुम्हारे किए छोटा सा उपकार के बदले,
ये वृक्ष ताउम्र बड़ासा एहसान चुकाएगा!

आजीवन तुम्हें मीठा-मीठा फल खिलाएगा,
राह चलते तुम्हारी विरादरी को छांव देगा,
मरकर भी फर्नीचर बनकर शान दिखाएगा,
श्मशान में मृत संग लकड़ी धर्म निभाएगा!

अपने खेत में अन्न के दाने रोपकर तो देखो,
छोटे झाड़ीदार फसल लहलहाकर उग आएगा,
हर रोज का भोजन बनकर एहसान चुकाएगा!

यहां तक कि नागफनी कांटे को परवरिश दोगे,
तो वो भी घर में खूबसूरती बनकर उग आएगा,
या खेत की मेढ़ पर बार्डर बन हिफाजत करेगा,
या सरहद पर उगकर दुश्मन के पैर में चुभकर,
अजर-अमर भारतीय सैनिक का धर्म निभाएगा!

ये तो हुई फल, अन्न, बीज और कांटे की बातें,
आजीवन धर्म व एहसान चुकाने की सदप्रवृत्ति!

मगर सृष्टि के सर्वाधिक ज्ञानी-अभिमानी जीव
मनुष्य में पाई जाती एहसानमंद होने के साथ,
एहसान फरामोश हो जाने की दुष्टतापूर्ण वृत्ति!

तुम बेटा को अन्न भोजन खिलाकर बड़ा करो,
बुढ़ापे में जीते जी बेटा बांट लेगा पूरी संपत्ति!

तुम्हारा लड़का लड़ाई कर ले लेगा पूरी गृहस्थी,
मगर सपूत पुत्र होता लाख में कोई एक विरले,
जो पूर्वज सहित तुम्हें उबार देगा बड़े नर्क से!
—विनय कुमार विनायक

आदमी


कहीं खो गया है आभासी दुनिया में आदमी
झुंठलाने लगा है अपनी वास्तविकता को आदमी
परहित को भूलकर स्वहित में लगा है आदमी
मीठा बोलकर ,पीठ पर वार करता है आदमी
चलता जा रहा है सुबह शाम आदमी
पता नहीं किस मंजिल पर पहुँच रहा है आदमी
अपनी तरक्की की परवाह नहीं है
दूसरों की तरक्की से जल भुन रहा है आदमी
मन काला है ,पर ग्रंथों की बात करता है आदमी
दूसरों को सिखाता है ,खुद नहीं सीखता है आदमी
अपने अन्दर अहम को बढ़ा रहा है आदमी
पर सुव्यवहार की उम्मीद,दूसरों से कर रहा है आदमी
क्यूँ आज भीड़ के बावजूद ,हर कोई है अकेला
दिलों में बसा हुआ है तू मै का झमेला
बंट गयी है सारी ज़मीन ,ऊँची ऊँची इमारतों में
या फिर घिर गयी ज़मीन कोठियों की दीवारों में
‘प्रभात ‘सत्य है ,टूटे ख्वाबों की नीव पर खड़े ये ऊँचे महल
इस ऊंचाई को भी एक दिन जमीन पर सोना है
अपनी जरूरतों और इच्छाओं की मत सुन
सब कुछ पाने के बाद भी इसे खोना है
धर्म मजहब भी ये कहते हैं
हर एक प्राणी से तुम प्रेम करो
गीता ,ग्रन्थ ,कुरान में लिखा है
नेक चलो सब का भला करो
जिस शक्ति ने किया है पैदा
उसने भेद किसी से किया नहीं है
प्रेम ,संस्कारों के सिवाय रब ने कुछ लिया नहीँ है ||

प्रभात पाण्डेय