पर्यावरण तपती धरती, पिघलते ग्लेशियर: चिंता का सबब !

तपती धरती, पिघलते ग्लेशियर: चिंता का सबब !

सुनील कुमार महला धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। वास्तव में धरती का तापमान का लगातार बढ़ना कहीं न कहीं गंभीर ख़तरों का संकेत दे रहा है। आज मानव की जीवनशैली लगातार बदलती चली जा रही है और मानवीय गतिविधियों के कारण, अंधाधुंध विकास, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण, औधोगिकीकरण के कारण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को लगातार बढ़ावा मिल रहा है जिससे नीले ग्रह पर खतरा मंडराने लगा है। एक जानकारी के अनुसार मानवीय जीवनशैली के कारण इस सदी के अंत तक धरती का औसत तापमान 2.7°C बढ़ जाएगा। वास्तव में धरती के तापमान के इतना बढ़ने का सीधा सा मतलब यह है कि इस सदी के अंत तक धरती के ग्लेशियरों की बस एक चौथाई बर्फ़ ही बची रहेगी तथा बाकी तीन चौथाई बर्फ़ ख़त्म हो जाएगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि ग्लेशियर अब किताबों का ही हिस्सा बनकर रह जाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण  दुनिया के कई तटीय शहर डूब जाएंगे। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो भारत में मुंबई, चेन्नई, विशाखापट्टम जैसे कई तटीय शहरों का बड़ा इलाका क़रीब दो फुट तक पानी में डूब जाएगा। दरअसल यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में छपी एक ताज़ा रिसर्च में किया गया है। इस संदर्भ में ताज़ा उदाहरण स्विट्जरलैंड का है, जहां ऊंचे पहाड़ों से टूटे एक ग्लेशियर ने निचले इलाके में तबाही मचा दी। नीचे घाटी में बसे ब्लैटन गांव (नब्बे फीसदी गांव को) बर्च नाम के ग्लेशियर ने बर्बाद कर दिया।दरअसल,ग्लेशियरों के इस तरह टूटने के पीछे सबसे बड़ी वजह है धरती के औसत तापमान का बढ़ना। कहना ग़लत नहीं होगा कि तापमान में बढ़ोत्तरी भारी बारिश(अतिवृष्टि), तो कहीं सूखा(अनावृष्टि), कभी ग्लेशियरों की झीलों के फटने तो कभी बड़े तूफ़ानों जैसे अतिमौसमी बदलावों की शक्ल में हमारे सामने आ रहा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में छपी रिसर्च के मुताबिक दुनिया के ग्लेशियर मौजूदा अनुमान से कहीं ज़्यादा तेज़ी से पिघल रहे हैं और इस सदी के अंत तक अगर धरती का औसत तापमान अगर 2.7°C और बढ़ा तो दुनिया में मौजूद ग्लेशियरों में सिर्फ़ 24% बर्फ़ ही बची रह जाएगी, जो कि एक बड़ा और गंभीर खतरा है। जानकारी के अनुसार ग्लेशियरों की 76% बर्फ़ पिघल चुकी होगी। पाठकों को बताता चलूं कि पेरिस समझौते में ये तय हुआ था, कि दुनिया के तापमान को पूर्व औद्योगिक तापमान से 1.5°C से ज़्यादा नहीं बढ़ने देना है, लेकिन आज विकसित देश ही कार्बन उत्सर्जन के अधिक जिम्मेदार हैं और कोई भी ग्लोबल वार्मिंग को कम करने को लेकर जिम्मेदार नजर नहीं आते। साइंस पत्रिका में छपी रिसर्च के मुताबिक अगर दुनिया का औसत तापमान 1.5°C तक ही बढ़ा तो भी ग्लेशियरों की 46% बर्फ़ पिघल जाएगी, सिर्फ़ 54% बर्फ़ ही बची रहेगी, यह बहुत ही चिंताजनक है, क्योंकि ग्लेशियर पानी के बड़े स्रोत  होते हैं और जल ही जीवन है। शोध में सामने आया है कि अगर औसत तापमान बढ़ना बंद हो जाए और उतना ही रहे, जितना कि आज है, तो भी दुनिया के ग्लेशियरों की बर्फ़ 2020 के स्तर से 39% कम हो जाएगी। मतलब यह है कि आज भी तापमान कुछ कम नहीं है और यह नीले ग्रह को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।  शोध में पाया गया है कि यदि  दुनिया का औसत तापमान 2°C बढ़ा तो स्कैंडिनेवियन देशों यानी नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क के ग्लेशियरों की सारी बर्फ़ पिघल जाएगी। इतना ही नहीं, उत्तर अमेरिका की रॉकी पहाड़ियों, यूरोप के आल्प्स और आइसलैंड के ग्लेशियरों की क़रीब 90% बर्फ़ पिघल जाएगी।औसत तापमान में 2°C की बढ़ोतरी का भारी असर दक्षिण एशिया में हिंदूकुश हिमालय पर भी पड़ने की संभावनाएं जताई गईं हैं। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि हिंदू कुश हिमालय का ग्लेशियर दो अरब लोगों का भरण-पोषण करने वाली नदियों को पानी देता है, लेकिन सदी के अंत तक ये अपनी 75 प्रतिशत बर्फ खो सकता है, जिससे नदियों का पानी भी सूख सकता है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि अगर दुनिया के देश तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक पाते हैं (जैसा कि पेरिस समझौते में तय हुआ था), तो हिमालय और कॉकेशस पर्वत में ग्लेशियर की 40-45 प्रतिशत बर्फ बचाई जा सकती है। यानी अब भी कुछ किया जाए, तो हालात बहुत हद तक सुधर सकते हैं। वाकई यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि साल 2020 के मुक़ाबले हिंदूकुश हिमालय के ग्लेशियरों में महज़ 25% बर्फ़ ही रह जाएगी।  वास्तव में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदूकुश हिमालय से निकलने वाली नदियां जो गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र की घाटियों में बहती हैं वो क़रीब दो अरब आबादी के लिए अनाज, मनुष्य की आजीविका और पानी की गारंटी हैं। वास्तव में आज धरती का लगातार बढ़ता हुआ तापमान न केवल मनुष्य के लिए अपितु धरती के सभी जीवों, वनस्पतियों, हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संकट का सबब बनता चला जा रहा है। अंत में यही कहूंगा कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए हमें सामूहिक रूप से कदम उठाने होंगे और पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझना होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारे नीले ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना ही ग्लेशियरों के पिघलने की गति को धीमा करने का सबसे प्रभावी तरीका है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि धरती के तापमान में मामूली वृद्धि भी कहीं न कहीं मायने रखती है। मानव को समझने की जरूरत है कि विकास के नाम पर हमें प्रकृति से छेड़छाड़ और खिलवाड़ को बंद करना होगा। पर्यावरण के साथ संबंध स्थापित करते हुए भी विकास किया ही जा सकता है।एक जानकारी के अनुसार दुनिया में क़रीब पौने तीन लाख ग्लेशियर हैं। पाठकों को बताता चलूं कि पृथ्वी पर, 99% ग्लेशियल बर्फ ध्रुवीय क्षेत्रों में विशाल बर्फ की चादरों (जिन्हें “महाद्वीपीय ग्लेशियर” भी कहा जाता है) के भीतर समाहित है।  एक जानकारी के अनुसार ग्लेशियल बर्फ पृथ्वी पर ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है, जो बर्फ की चादरों के साथ दुनिया के ताजे पानी का लगभग 69 प्रतिशत रखता है।पृथ्वी के कुल जल का लगभग 2% भाग ग्लेशियरों में संग्रहीत है। इतना ही नहीं,ग्लेशियर अतीत की जलवायु के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। ये ग्लेशियर ही हैं, जिनसे कृषि, जल विद्युत एवं पेयजल हेतु जल मिलता है। समुद्र जल स्तर में ग्लेशियरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अंत में यही कहूंगा कि हमें ग्लेशियरों को संरक्षित करना होगा और जल प्रबंधन को बढ़ावा देना होगा, ताकि भविष्य में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

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पर्यावरण पर्यावरण के लिए बेहद घातक हैं प्लास्टिक

पर्यावरण के लिए बेहद घातक हैं प्लास्टिक

डॉ. बालमुकुंद पांडेय  प्लास्टिक मानव समाज के लिए आवश्यक आवश्यकता हो चुका हैं। प्लास्टिक मनुष्यों के दिनचर्या के लिए उपयोगी हो चुका हैं । मानवीय समाज के लिए इसकी उपादेयता  के साथ इसके हानिकारक प्रभाव भी हैं। भू – वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अनुसार ,प्लास्टिक बैग्स पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आते हैं तो उनसे ग्रीनहाउस गैस(GHG)निकलती है ,जो अत्यधिक मात्रा में हानिकारक एवं  अस्वास्थ्यप्रद हैं । प्लास्टिक एवं पॉलीथिन पालतू जानवरों, वन्यजीवों एवं समुद्रीजीवों के लिए अति खतरनाक एवं अत्यधिक हानिकारक हैं। प्लास्टिक बैग्स एवं प्लास्टिक खाने से प्रत्येक वर्ष लाखों जीव जंतुओं की मृत्यु हो जाती है. इन जानवरों में गाय, भैंस ,एवं दुधारू पशु हैं। प्लास्टिक समुद्री जीवों एवं जंतुओं के लिए भी हानिकारक होता है, इनके कारण बड़ी संख्या में व्हेल ,डॉल्फिन एवं कछुओं की मृत्यु होती है जो खाद्य पदार्थ  के साथ प्लास्टिक के बैग्स खा जाते हैं जिससे उनकी अकाल मृत्यु हो जाती है।  वैज्ञानिकों द्वारा अन्वेषित प्लास्टिक ने नागरिक समाज, नागरिक जीवन एवं पृथ्वी पर उपस्थित संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव डाला है। प्लास्टिक को विज्ञान ने हमारी आवश्यकताओं एवं सुविधाओं के लिए तैयार किया था लेकिन यह पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के शत्रु के रूप में उपादेयता प्रदान कर रहा हैं । भू – तल  से लेकर समुद्र तक ,गांव से लेकर कस्बा तक एवं मैदान से लेकर पहाड़ तक प्लास्टिक का व्यापक प्रदूषण प्रभाव हैं। प्लास्टिक का दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। पेयजल एवं खाद्य पदार्थों में प्लास्टिक का प्रभाव है जिससे मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक एवं प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लोग यात्रा एवं अन्य प्रयोजनों  में पॉलिथीन से बने लिफाफों एवं  पन्नियों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं। यह प्रक्रिया मानव स्वास्थ्य एवं प्रकृति के लिए नुकसानदायक हैं । प्लास्टिक एक ऐसा अवशिष्ट है जो अविनाशी हैं। इसके इसी विशिष्टता के कारण यह प्रत्येक जगह अनंत समय तक  बेतरतीब पड़ा रहता है एवं नष्ट नहीं होता हैं । यह  मिट्टी एवं जल में विघटित नहीं होता है एवं जलने पर पर्यावरण को अत्यधिक प्रदूषण का प्रसार करते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण में बहुत हानिकारक तत्व हैं । प्लास्टिक की थैलियां एवं प्लास्टिक बैग्स पानी में बहकर  चले जाते हैं जिससे जलीय जीवों  एवं जंतुओं को संक्रमित करते हैं एवं समुद्री जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा खतरा मंडरा रहा हैं। इससे संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में आ गया हैं । पारिस्थितिकी तंत्र में हुए इस खतरे से पर्यावरण को अत्यधिक खतरा हैं जिससे समुद्री वातावरण में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक मनुष्य के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा हैं । इसका चिंताजनक दुष्प्रभाव हैं कि यह मानव स्वास्थ्य पर निरंतर गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा हैं । मनुष्य पेयजल में भी प्लास्टिक मिश्रण वाला पानी पी रहे हैं, नमक में भी प्लास्टिक का मिश्रण खा रहे हैं। वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अध्ययन से यह  स्पष्ट हो रहा है कि हृदय रोग से होने वाली मृत्यु  के लिए प्लास्टिक में मौजूद ‘ थैलेटस ‘ के संपर्क में आने के कारण वर्ष 2020 में हृदय रोग से 7 लाख से अधिक मृत्यु हुआ था। इस मृत्यु से होने वालों की अवस्था क्रमशः 55 से 64 वर्ष के बीच थी। 7 लाख लोगों में लगभग तीन – चौथाई दक्षिण एशिया ,पश्चिम एशिया, पूर्वी एशिया, एवं उत्तरी अमेरिका में हुई थी । न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों एकेडमिक  विशेषज्ञों एवं शोधार्थियों के दल ने लगभग 201 देश एवं महाद्वीपीय क्षेत्रों  में ‘ थैलेटस ‘ के नकारात्मक प्रभाव के मूल्यांकन के लिए जनसंख्या सर्वेक्षणों से मनुष्य के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस अध्ययन में खास प्रकार के  थैलेट्स पर गौर किया गया जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों के कंटेनर जैसी वस्तुओं में प्लास्टिक को नरम बनाने के लिए किया जाता हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य को वृहद स्तर पर नुकसान एवं कठिनाई का सामना करना पड़ पड़ा था।  थैलेट्स मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके कार्बन मोनोऑक्साइड का निर्माण करके रक्तपरिशंचरण तंत्र  को दूषित कर देता है एवं मनुष्य के स्वास्थ्य को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक बैग्स को बनाने के लिए जिन तत्वों की प्रधानता होती हैं ,वह उच्च स्तरीय रसायन होता हैं ,जो खाद्य सामग्री को बहुत शीघ्र सड़ा देता हैं। प्लास्टिक के कारण कृषिभूमि की उर्वरता का क्षरण हो रहा हैं ,जिससे  भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। इसके कारण भू – जल स्रोत एवं जल स्रोत भी अत्यधिक मात्रा में दूषित हो रहे हैं जिससे  जल संक्रमित होता जा रहा हैं । प्लास्टिक गांव,  कस्बों,नगरों एवं महानगरों की जल निस्तारण प्रणाली को भी अवरुद्ध कर रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान प्लास्टिक के संपर्क में आने पर नवजात शिशु के स्वास्थ्य में जटिलताएं उत्पन्न हो जाते हैं जिससे वह मानसिक स्तर पर मंद एवं शारीरिक विषमताओं से जकड़ जाते हैं । प्लास्टिक के कारण  पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर एवं नपुंसकता  हो रही है।…

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राजनीति विकसित भारत : संकल्प का प्रथम कदम

विकसित भारत : संकल्प का प्रथम कदम

डॉ. नीरज भारद्वाज इतिहास के कुछ पन्ने हमें यह भी बताते हैं कि जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ तो पाश्चात्य  देश यह कहते थे कि भारतवर्ष स्वतंत्रता…

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राजनीति भारतीय राजनीति का सकारात्मक पक्ष सामने आया

भारतीय राजनीति का सकारात्मक पक्ष सामने आया

राजेश कुमार पासी राजनीति में सिर्फ नकारात्मकता ही बची है ऐसा लगता है लेकिन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने दिखाया है कि भारतीय राजनीति का एक सकारात्मक पहलू यह है कि जब भारत का नेता विदेश में जाता है तो वो सिर्फ भारतीय रह जाता है और उसके लिए अपनी दलगत राजनीति पीछे छूट जाती है । यह बात सभी के लिए नहीं कही जा सकती लेकिन इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में गए हुए विपक्षी नेताओं के लिए जरूर  कही जा सकती है । राजनीति में नकारात्मकता के पीछे भागने वाले समाज और मीडिया के लिए ये अंचभा है कि विपक्षी नेता विदेशी धरती से मोदी की भाषा बोल रहे हैं । सोशल मीडिया के लिए तो यह  ज्यादा परेशानी की बात है क्योंकि सोशल मीडिया में सिर्फ नकारात्मकता ही बची हुई है । वहां हर आदमी को अपने नेता और पार्टी के अलावा सब कुछ बुरा ही दिखाई देता है । सोशल मीडिया में कोई सच न तो देखता है और न ही समझता है । तर्क और तथ्य की बात सोशल मीडिया में करना बेमानी होता जा रहा है ।  ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान की ऐसी बुरी गत बना दी थी कि न तो वो अपनी रक्षा करने के काबिल रहा और न ही उसके पास भारत पर आक्रमण करने की क्षमता बची । इसके बावजूद आज भी सोशल मीडिया में ज्यादातर वामपंथी, सेकुलर और मुस्लिम बुद्धिजीवी भारत को पाकिस्तान का डर दिखा रहे हैं । जब विदेशी मीडिया और विदेशी रक्षा विशेषज्ञ भी मान चुके हैं कि इस युद्ध में भारत की एकतरफा जीत हुई है तो ये लोग सोशल मीडिया में बता रहे हैं कि चीन के युद्धक विमानों से पाकिस्तान ने भारत के कई राफेल मार गिराए हैं । ये लोग आज भी भारत को पाकिस्तान को मिले चीनी हथियारों का डर दिखा रहे हैं । चीन ने पाकिस्तान को अपने स्टेल्थ विमान देने की बात कही है, इससे यह लोग इतना डरे हुए हैं कि अगर यह विमान पाकिस्तान में आ जाते हैं तो भारत को तबाह कर देंगे । भारत ने पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली समाप्त कर दी थी और इसके बाद भारत का हर विमान स्टेल्थ हो गया था । जब आप किसी के आकाश पर कब्जा कर लेते हैं तो आपका हर विमान स्टेल्थ बन जाता है और भारत ने ऐसा ही किया था ।                जहां भारत में भारत-पाक युद्ध को लेकर अलग ही राग अलापा जा रहा है, वही दूसरी तरफ सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में विपक्षी नेताओं ने पूरी दुनिया में भारत का पक्ष इस मुखरता और निष्पक्षता के साथ रखा है कि दुनिया को सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं में अंतर समझना मुश्किल हो रहा है ।  ऐसा लगता है कि ये भूल गए हैं कि विपक्षी नेता हैं और उनकी पार्टी देश मे कुछ और ही लाइन पर चल रही है । विशेष तौर पर कांग्रेस के नेताओं के बारे में तो ऐसा कहा ही जा सकता है कि विदेशी धरती पर ये नेता अलग भाषा बोल रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस देश में अलग लाइन पर चल रही है ।  इन नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं है कि देश में उनकी पार्टी किस लाइन पर चल रही है । उनके बयानों से ऐसा लगता है कि वो अपने मन की बात बोल रहे हैं । ये अजीब है कि जब यही नेता भारत में बोलते हैं तो लगता है कि ये कुछ देखना नहीं चाहते, समझना नहीं चाहते या इन्हें समझ नहीं आ रहा है । विदेशी धरती पर इनके भाषणों को सुनकर महसूस होता है कि उनकी राजनीतिक समझ कहीं से भी कम नहीं है लेकिन घरेलू राजनीति इनकी वास्तविक समझ का बाहर नहीं आने देती, पार्टी के अनुशासन के कारण उन्हें वही बोलना होता है जो इन्हें पार्टी ने कहा होता है ।  मेरा मानना है कि बहुत मुश्किल हो रहा होगा इन नेताओं के लिए कि विदेशी धरती पर उन्हें अपनी पार्टी लाइन से विपरीत जाकर अपने देश की बात को रखना पड़ रहा है । ऐसी मुश्किल भाजपा और एनडीए के दूसरे नेताओं की नहीं है क्योंकि उन्हें वही बोलना पड़ रहा है जो उनकी पार्टी की लाइन है । यही कारण है कि विपक्षी नेताओं के बयानों की मीडिया में बहुत ज्यादा चर्चा हो रही है लेकिन भाजपा नेताओं की कोई बात भी नहीं कर रहा है । भाजपा नेता जब  वापिस आयेंगे तो उन्हें कोई समस्या नहीं आने वाली है लेकिन विपक्षी नेताओं को भारत आकर दोबारा अपनी बात से अलग हटकर बोलना मुश्किल होने वाला है । सवाल यह है कि क्या ये नेता यह नहीं जानते होंगे कि जो कुछ वो यहां बोल रहे हैं उन्हें इसके विपरीत जाकर देश में बोलना मुश्किल होगा । वास्तव में यह नेता जानते हैं कि विदेश में वो अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनके कंधों पर देश ने बड़ी जिम्मेदारी डाली हुई है । ये नेता अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए वही कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए ।              ये विदेशी मीडिया और जनता के लिए बड़ा अजीब है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के स्वर में कहीं भी विभिन्नता दिखाई नहीं दे रही है, सभी एक स्वर में अपनी बात रख रहे हैं। विदेशियों के लिए ये फर्क करना मुश्किल हो रहा है कि कौन सत्ता पक्ष से है और कौन विपक्ष से आया है । जहां भारत में मोदी सरकार की विदेश नीति को असफल करार दिया जा रहा है, वहीं ये नेता भारत की विदेश नीति को सफल बनाने का काम कर रहे हैं ।  देखा जाए तो ये नेता देश के लिए भी बड़ा मुश्किल काम कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान को भारत पर हुए आतंकवादी हमलों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराना इतना आसान काम नहीं है। जो लोग भारत की विदेश नीति को असफल करार दे रहे हैं उन्हें अहसास नहीं है कि अपने ही देश के आतंकियों द्वारा हमला करने पर किसी दूसरे देश की संप्रभुता को दरकिनार करके उसके इलाकों पर हमला किया गया है। जो लोग कहते हैं कि दुनिया भारत के साथ नहीं खड़ी हुई उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि पाकिस्तान पर हमला करने के बावजूद दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी नहीं हुई है । यही भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी सफलता है लेकिन कोई यह समझने को तैयार नहीं है । सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इसी काम को बेहतर तरीके से करने गया है कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला नहीं किया है उसने सिर्फ उन आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया है जहां से भारत  पर वर्षों पर हमला किया जा रहा है । भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो सैन्य कार्यवाही की है वो पाकिस्तानी हमले के जवाब में की गई है ।  जहां तक चीन, तुर्की और अजरबाइजान का सवाल है कि वो पाकिस्तान के साथ खड़े हैं तो भारत भी चीन के दुश्मन देशों के साथ पिछले कई वर्षों से खड़ा हुआ है और दूसरी तरफ भारत तुर्की और अजरबाइजान के विरोध में  आर्मेनिया के साथ खड़ा हुआ है। भारत पर तो यहां तक आरोप लगाया जा  रहा है कि भारत ही आर्मेनिया की रक्षा रणनीतियां बना रहा है और उसी के अनुसार हथियारों की सप्लाई कर रहा है जिसके कारण तुर्की और अजरबाइजान हताश हैं ।                इसके अलावा भारत में भी कई विपक्षी नेताओं ने भारत की कार्यवाही का समर्थन किया है । फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान का जैसा विरोध पहलगाम हमले के बाद किया है और ऑपरेशन सिंदूर का जैसा समर्थन किया है, वो उनकी अब तक की राजनीति से बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा है । महबूबा मुफ्ती के बयानों का विरोध करते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वो पाकिस्तान के लिए बात कर रही है लेकिन ये ऐसा वक्त है जब हमें देश के साथ खड़े होना है । असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान के खिलाफ जो मुहिम चलाई है उससे पाकिस्तान में सबसे ज्यादा चर्चा उन्हीं की हो रही है । पाकिस्तान में मोदी के बाद सबसे ज्यादा आलोचना ओवैसी की ही हो रही है । कांग्रेस नेता शशि थरूर ने मोदी सरकार के लिए वो काम किया है जो भाजपा के दूसरा नेता भी नहीं कर पाए हैं । थरूर का कहना है कि देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें देश के साथ खड़े होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है । वो अपने आपको खुशकिस्मत मानते हैं कि उन्हें इस समय देश की सेवा करने का अवसर मिला है और इससे वो खुद को सम्मानित महसूस करते हैं । कांग्रेस ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी को देश का पक्ष रखने के लिए विदेशी धरती पर भेजा था लेकिन मोदी जी ने तो एक नहीं बल्कि कई विपक्षी नेताओं को यह मौका दिया है । बड़ी बात यह है कि इन नेताओं ने न तो मोदी जी को निराश किया और न ही देश को निराश किया बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश चला गया कि संकट के समय पूरा भारत एक है । दुनिया ने यह भी देखा कि भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत है, जहां सत्ताधारी दल विपक्षी नेताओं को देश का पक्ष रखने के लिए भेज देता है और विपक्षी नेता घरेलू राजनीति को दरकिनार करके सरकार की बात बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रखते हैं ।  जो काम भारत के लिए असदुद्दीन औवेसी, शशि थरूर, प्रियंका चतुर्वेदी, सलमान खुर्शीद, कनिमोझी, सुप्रिया फूले जैसे कई विपक्षी नेताओं ने किया है उसके कारण पूरी दुनिया को पता चल गया है कि दुश्मन के खिलाफ भारत एक है । 

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लेख आक्रामकता के शिकार बच्चों की पीड़ा और दर्द को समझें

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आक्रामकता के शिकार मासूम बच्चों का अन्तर्राष्ट्रीय दिवस- 4 जून, 2025– ललित गर्ग – बच्चों को देश एवं दुनिया के भविष्य की तरह देखा जाता…

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खान-पान दुग्धशाला की शक्ति का परिचायक है आत्मनिर्भरता

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डॉ. शंकर सुवन सिंह दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12, प्रोटीन आदि मौजूद होते…

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विश्व माता-पिता दिवसः 1 जून 2025– ललित गर्ग – विश्व के अधिकतर देशों की संस्कृति में माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा एवं प्रगाढ़ माना गया है। भारत…

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लेख हिंदी पत्रकारिता उद्भव से लेकर डिजिटल युग तक

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लेख परिवारों से मिटता दादी मां का अस्तित्व चिंता का विषय

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आज अनाथालयों में वृद्ध महिलाओं के झुंड आंसू बहा रहे हैं। हमारे देश की परंपरा तो “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव,…

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मनोरंजन युवाओं की जिंदगी को गर्त में धकेल रही आनलाइन गेमिंग

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हाल ही में भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स सुसाइड और गेमिंग ऐप से बर्बादी पर चिंता जताई है और इस पर सख्त लहजा…

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लेख विश्वसनीयता के संकट से जूझती हिंदी पत्रकारिता

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डॉ घनश्याम बादल 30 मई 1826 को कोलकाता से प्रकाशित हिंदी के पहले समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन की ऐतिहासिक शुरुआत को याद करते…

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