सेवा में लगे लोगों की सुरक्षा अहम

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लिमटी खरे

देश में कोराना संक्रमित मरीजों की तादाद का आंकड़ा तीस हजार पहुंच गया है। बीस हजार से तीस हजार का आंकड़ा पहुंचने में बहुत ही कम समय लगा है। कोरोना वायरस को लेकर देश में चल रही जंग अब एक निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ती दिख रही है। इसलिए अब यह संदेश कतई बाहर नहीं जाना चाहिए कि इस जंग के योद्धाओं पर किसी तरह का संकट है या वे बेमन से आहत मन से जुटा हुआ है।

देखा जाए तो इस लड़ाई में चिकित्सक सबसे आगे वाली पंक्ति के योद्धा माने जा सकते हैं। चिकित्सकों पर हमलों और उनके साथ बदसलूकी की घटनाएं कुछ विचलित करती हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के द्वारा इस तरह की घटनाओं पर तख्ल प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं थी, पर इसी बीच राहत भरी बात यह मानी जा सकती है कि गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन के बाद आईएमए के द्वारा अपने सांकेतिक विरोध एवं प्रदर्शन को वासप ले लिया है।

इससे भी राहत की बात यह है कि सरकार के द्वारा बिना देर किए हुए ही चिकित्सकों की सुरक्षा से जुड़े एक अहम अध्यादेश को लागू कर दिया गया है। इस अध्यादेश में बहुत ही कड़े प्रावधान किए गए हैं, इस तरह के अध्यादेश की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। इससे चिकित्सकों के मन में सुरक्षा की भावना बलवती होगी।

देखा जाए तो पिछले दिनों चिकित्सकों और कर्मचारियों अर्थात पूरी मेडिकल टीम पर जिस तरह के हिंसक हमले हो रहे थे उसे देखते हुए चिकित्सकों के अंदर भय और आक्रोश पनपना लाजिमी था। इसी को लेकर आईएमए के द्वारा सांकेतिक विरोध का मन बनाया था। अगर यह सांकेतिक विरोध होता तो निश्चित तौर पर इसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते थे।

आज के हालात देखकर आम आदमी यह बेहतर समझ गया है कि देश का चिकित्सक किन दबावों के बीच काम कर रहा है। आधे अधूरे संसाधनों के बीच मरीजों की भारी तादाद को वह कैसे नियंत्रित करता है यह समझा जा सकता है। अपनी जान जोखिम में डालकर भी वर्तमान हालातों में चिकित्सक जिस तन्मयता के साथ काम कर रहे हैं, वह तारीफे काबिल ही माना जा सकता है।

यह सही है कि जागरूकता के अभाव में अफवाहों को फैलाने वाले, गुमराह करने वाले, अधंविश्वास को बढ़ावा देने वाले लोग हर जगह होते हैं, और इनका इकबाल भी समाज में काफी हद तक बुलंद ही दिखता है। अब समय आ गया है कि इस तरह के लोगों के साथ सख्ती दिखाई जाए।

आज दुनिया भर के अनेक देश कोरोना कोविड 19 के संक्रमण की जद में हैं। भारत में इसके मरीजों के मिलने की तादाद कम ही है। इन परिस्थितियों में यह सरकारों का दायित्व है कि वे इस तरह का माहौल सुनिश्चित करें कि चिकित्सकों को पर्याप्त संसाधन मुहैया हो सकें। चिकित्सक अपने आप को संक्रमित होने की परवाह न करते हुए जितने साधन संसाधन उन्हें दिए जा रहे हैं, उसी के जरिए इस युद्ध को लड़ रहे हैं। आगे भी यह लड़ाई जारी रहेगी, इसलिए आम जनता का भी यह कर्तव्य है कि इस जंग के हर योद्धा का वह सम्मान करे। यह समय धेर्य और संयम के साथ रहने का है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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