समाज हिंसा से जख्मी होती राष्ट्रीय अस्मिता November 28, 2018 / November 28, 2018 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग- दिल्ली के द्वारका में नरभक्षी होने की अफवाह के चलते लोगों ने अफ्रीकी नागरिकों पर हमला कर दिया था। एक अन्य घटना में बेकाबू भीड़ ने पीट-पीटकर आटो ड्राइवर अविनाश कुमार की हत्या कर दी और दो अन्य को भी इतना पीटा कि वे अस्पताल में जिन्दगी के लिए जंग लड़ रहे हैं। […] Read more » अफ्रीकी नागरिकों पुलिस भारतीय समाज भीड़तंत्र भेड़तंत्र हिंसा से जख्मी होती राष्ट्रीय अस्मिता
समाज परिवार का महत्त्व और उसका बदलता स्वरूप July 23, 2018 / July 23, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment गीता आर्य परिवार व्यक्तियों का वह समूह होता है, जो विवाह और रक्त सम्बन्धों से जुड़ा होता है जिसमें बच्चों का पालन पोषण होता है । परिवार एक स्थायी और सार्वभौमिक संस्था है। किन्तु इसका स्वरूप अलग अलग स्थानों पर भिन्न हो सकता है । पश्चिमी देशों में अधिकांश नाभिकीय परिवार पाये जाते हैं । […] Read more » Featured अहंकार आधुनिकता घमंड नगरीकरण नारी सशक्तिकरण बढ़ता सुखवाद बिना कर्तव्य के अधिकार भारतीय समाज महत्वकांक्षा रोजगार हेतु पलायन स्वार्थवाद
वर्त-त्यौहार अक्षय तृतीया : जीवन की सीख देेते पर्व April 18, 2018 by मनोज कुमार | Leave a Comment अक्षय तृतीया : जीवन की सीख देेते पर्व अनामिका मनोज कुमार भारतीय समाज की संस्कृति एवं सभ्यता हजारों सालों से अक्षय रही है. पर्व एवं उत्सव भारतीय समाज की आवश्यकताओं और उनमें ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बनाये गए हैं. लोगों में अप संस्कृतिनी संस्कृति एवं साहित्य के प्रति अनुराग बना रहे, […] Read more » 'घटिया' बंधन Featured अक्षय तृतीया बाल विवाह भारतीय समाज संस्कृति
समाज बलात्कार : भारतीय समाज का कलंक December 7, 2017 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी हम भारतवासी कभी-कभी तो स्वयं को अत्यंत सांस्कृतिकवादी,राष्ट्रवादी,अति स य,सुशील,ज्ञान-वान,कोमल तथा योग्य बताने की हदें पार करने लग जाते हैं और स्वयं को गौरवान्वित होता हुआ भी महसूस करने लगते हैं। परंतु आडंबर और दिखावा तो लगता है हमारी नस-नस में समा चुका है। अन्यथा क्या वजह है कि जिन स्त्रीरूपी देवियों के […] Read more » Featured rape कलंक बलात्कार भारतीय समाज
समाज भारत की जाति व्यवस्था और मनु May 28, 2017 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on भारत की जाति व्यवस्था और मनु डा. भीमराव अंबेडकर भारत में जातिवाद के घोर विरोधी थे और वह इसे भारतीय समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा मानते थे। डा. अंबेडकर उन लोगों की मानसिकता के भी विरोधी थे, जिन्होंने अपनी दुकानदारी को चमकाने और निहित स्वार्थों की पूत्र्ति के लिए भारतीय समाज में जातिवाद को प्रोत्साहित किया और समाज में ऊंच-नीच व छुआछूत की बीमारी को भी फैलाया। डा. अंबेडकर मनु को जातिवाद का प्रणेता नहीं मानते थे और वह महर्षि दयानंद जी महाराज की जाति विषयक अवधारणा से तथा मनु के सिद्घांतों की आर्य समाजी व्याख्या से भी सहमत व संतुष्ट थे। वह चाहते थे कियह परम्परा आगे बढ़े और भारतीय समाज में समरसता का परिवेश सृजित हो। Read more » Featured जाति व्यवस्था डा. भीमराव अंबेडकर भारत भारत की जाति व्यवस्था भारतीय समाज मनु मनु की राजव्यवस्था
विविधा संपूर्ण स्वतन्त्रता : सांस्कृतिक स्वतंत्रता की ओर भारतीय समाज March 27, 2017 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क्यों नहीं हम फिर से उस स्थान पर अवस्थित हो सकते जो स्थान हमारा था । हमें पूरा अधिकार है उसे प्राप्त करने का एवं इसी में विश्व का भला है। हमने फिर से उस सांस्कृतिक विरासत को प्राप्त करना है जहाँ स्वय के धर्म, संस्कृति, भाषा साहित्य का सम्मान हो उन पर गर्व हो। जगत यह जान सके कि धर्म प्रतिष्ठा धर्म पर चल कर होती है न कि जिहाद का भय दिखा कर या सेवा के आड़ में धर्म परिवर्तन करा कर भारतीय संस्कृति की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए प्रत्येक भारतीय कटिबद्ध है । Read more » cultural independence Featured India towards cultural independence गंगा गीता गौ भारतीय समाज संपूर्ण स्वतन्त्रता सांस्कृतिक स्वतंत्रता सांस्कृतिक स्वतंत्रता की ओर भारतीय समाज
कला-संस्कृति विराट भारत – समाज अपना May 8, 2014 by कन्हैया झा | Leave a Comment -कन्हैया झा- संस्कृत के शब्द विराट का अर्थ है “एक ऐसा विशाल जिसमें सब चमकते हैं”. इसी शब्द से जुड़े अन्य शब्द सम्राट, एकराट (मनुष्य), राष्ट्र आदि हैं. अर्थात विराट भारत की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जिसका तंत्र सभी को सुख देने में समर्थ है. “सर्वे भवन्तु सुखिनः” श्रृंखला के पिछले ९ लेखों […] Read more » इंडिया भारत भारतीय समाज भारतीय संस्कृति विराट भारत