Tag: मोदी

राजनीति

आओ! मोदी के नये भारत की अगवानी करें

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‘मन की बात’ करने वाले मोदीजी देश के लिये ही सोचते हैं, देश के लिये ही करते हैं, देश के लिये ही जीते हैं। जबकि अब तक की राजनीति में सब कोई अपने लिये और अपने स्वार्थों के लिये जी रहे थे। सबसे बड़ी पार्टी की कुछ ऐसी ही गलत नीतियां रही है कि आज उसका सफाया हो चुका है। भारत को कांग्रेस मुक्त करने के संकल्प को पूरा करने में मोदी को ज्यादा वक्त नहीं लगा। भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जगह ले ली है। बात कांग्रेस की ही नहीं, बात राष्ट्रीय चरित्र को धुंधलाने की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने बिहार में चुनावी हार को जीत में बदलने में कितना समय लिया? देश की कुल आबादी के करीब सत्तर फीसदी पर भाजपा का शासन हो चुका है।

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राजनीति

कश्मीर का दर्द, देश का मर्ज और मोदी

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इधर भारत के नेतृत्व ने कश्मीर में 'नागों' को दूध पिलाना आरंभ कर दिया। गांधी की अहिंसा और भाईचारे की बातों के संदेश के साथ कश्मीर को आज तक अरबों रूपये के कितने ही पैकेज दिये गये पर वे सारे के सारे पैकेज इस बात को सत्य सिद्घ नहीं कर पाये कि 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।' वहां मजहब ही आपस में बैर रखना सिखाता रहा और हमारे ही लोगों को अपनी ही भूमि से अपने ही घरबार छोडक़र भागने के लिए विवश करता रहा। इधर कांग्रेस आतंकवादियों के साथ ऐसा व्यवहार करती रही जैसे कि वे बहुत बड़े देशभक्त हैं और उनकी सुरक्षा पर या उनकी सुख-सुविधा पर धन व्यय करना हमारा राष्ट्रीय कत्र्तव्य है।

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विविधा

व्यग्र न हों – मोदी पर विश्वास रखें

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जैसा कि इस आलेख के प्रथम पक्ष में ही मैंने चाणक्य का उद्धरण देकर बताया कि हमें स्वयं को साधकर सटीक समय पर अपना सर्वोत्तम करना होगा. आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता यही है. और आज के समय की सबसे दुखद परिस्थिति यही है कि हमारी पीढ़ी कुछ अधिक व्यग्र है, वह कुछ अधिक ही हावी होनें के प्रयास में भी रहती है किंतु इस क्रम में आगे बढ़ते हुए वह स्वनियंत्रण को ही खो बैठती है जो इस समय की मूल ही नहीं अपितु परम आवश्यक आवश्यता रहती है. हम देख रहें हैं कि पाकिस्तान द्वारा हमारें सैनिकों के साथ पाशविक आचरण के बाद मीडिया पर और विशेषतः सोशल मीडिया द्वारा नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर जिस तरह का बदला लेनें का मानसिक दबाव बना दिया गया है. लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित किसी भी सरकार के लिए ऐसा जनदबाव खतरनाक साबित हो सकता है, वो तो अच्छा है कि मोदी सरकार और उसके विभिन्न भाग व अंग इस जनदबाव के समक्ष भी अपनें विवेक व दायित्वबोध को यथा स्थान, यथा समय व यथा संतुलन समायोजित किये हुए है.

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राजनीति

अवमानना के लिए विशेषाधिकार का प्रयोग क्यूँ नहीं ?

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का कितना बड़ामखौल है इस देश में कि वर्तमान प्रधानमंत्री के लिये अभद्रशब्दों और गालियों का प्रयोग अधिकतर विपक्ष के नेता और छुटभइये कर सकते हैं परंतु वर्तमान प्रधानमंत्री किसी पूर्व प्रधानमंत्री को रेनकोट पहनकर स्नान करने की बात नहीं कह सकता। वर्तमान सरकार के नोटबंदी के निर्णय को पूर्व प्रधानमंत्री संगठित लूट और कानूनी लूट की संज्ञा तो दे सकता है परंतु पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुए अरबों के बहुचर्चित घोटालों जिनके लिये सर्वोच्च न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था, की ओर इशारा तक वर्तमान प्रधानमंत्री नहीं कर सकता।

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