विविधा अंग्रेजी की रोटी में जहर May 22, 2010 / December 23, 2011 by विश्वमोहन तिवारी | 18 Comments on अंग्रेजी की रोटी में जहर –एयर वाइस मार्शल विश्वमोहन तिवारी जब भी भारत में अंग्रेजी भाषा की भूमिका पर चर्चा होती है विद्वान लोग अक्सर प्रश्न करते हैं कि यह कैसे कहा जा सकता है कि ‘अंग्रेजी भाषा ने पारिवारिक प्रेम के स्थान पर प्रत्येक सदस्य को मात्र अपने स्वार्थों के लिये ही उत्तरदायी बना दिया है? नारी स्वातंत्र्य के […] Read more » National Language राष्ट्रभाषा हिंदी
साहित्य झगड़ा क्या है उर्दू और हिंदी का May 7, 2010 / December 23, 2011 by संजय द्विवेदी | 7 Comments on झगड़ा क्या है उर्दू और हिंदी का दोनों इसी जमीन की खुशबू से बनी भाषाएं हैं – संजय द्विवेदी ज्ञान की नगरी बनारस से एक अच्छी खबर आयी है। भाषाओं की जंग में फंसे देश में ऐसी खबरें राहत भी देती हैं और समाधान भी सुझाती हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एमए हिंदी के छात्र-छात्राएं अब गालिब की शायरी, मीर तकी मीर […] Read more » urdu उर्दू हिंदी
मीडिया मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया April 28, 2010 / December 24, 2011 by संजय द्विवेदी | 2 Comments on मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया की दुनिया में इन दिनों भाषा का सवाल काफी गहरा हो गया है। मीडिया में जैसी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है उसे लेकर शुद्धता के आग्रही लोगों में काफी हाहाकार व्याप्त है। चिंता हिंदी की है और उस हिंदी की जिसका हमारा समाज उपयोग करता है। बार-बार ये बात कही जा रही है कि […] Read more » media मीडिया हिंदी
साहित्य भारतीयता बचाने के लिये भारतीय भाषाओं में जीना अनिवार्य April 17, 2010 / December 24, 2011 by विश्वमोहन तिवारी | 6 Comments on भारतीयता बचाने के लिये भारतीय भाषाओं में जीना अनिवार्य किसी भी राष्ट्र की संस्कृति उसकी भाषा, संगीत, नृत्य, खानपान, पहनावा तथा धर्म में निहित होती है, भाषा के द्वारा वह पनपती है, अन्यथा वानर भी हमारे ही तरह सुसंस्कृत होते.संस्कार जन्म से ही पडना प्रारम्भ हो जाते हैं.बालक व्यवहार की नकल करता है तथा भाषा द्वारा, अभिव्यक्ति करने से भी अधिक महत्वपूर्ण, जीवन का […] Read more » hindi भारतीय भाषा भारतीयता हिंदी
आलोचना नपुंसक आलोचक और नदारत आलोचना March 29, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on नपुंसक आलोचक और नदारत आलोचना स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य को लेकर काफी लिखा गया है। खासकर कविता, कहानी, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कृतियां हैं जो किसी न किसी रूप में साहित्यिक परिदृश्य पर रोशनी डालती हैं। हम खुश हैं कि हमारे पास रामविलास शर्मा हैं, नामवरसिंह हैं, शिवकुमार मिश्र हैं, रमेशकुंतल मेघ हैं, अशोक वाजपेयी हैं। जाहिरा […] Read more » hindi आलोचक आलोचना हिंदी
विविधा हिन्दी समीक्षकों का बेसुरा हिन्दीराग March 26, 2010 / March 26, 2010 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on हिन्दी समीक्षकों का बेसुरा हिन्दीराग हिन्दी शोध जगत गंभीर गतिरोध के दौर से गुजर रहा है। नए और चुनौतीपूर्ण विषयों के प्रति रूझान घटा है। वर्तमान के प्रति हमने आंखें बंद कर ली हैं। शोध को दोयमदर्जे का लेखन मान लिया है। अनुसंधान और गंभीर चिन्तनरहित विवेक का ही चारों ओर जयगान हो रहा है। शोध के प्रति गंभीर उपेक्षा […] Read more » शोध समीक्षक हिंदी
विविधा अंधों की बस्ती में चश्मे की बिक्री March 23, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment हिन्दी शिक्षकों को निरंतर लिखने वाले से खास तरह की एलर्जी है। वे यह कहते मिल जाते हैं कि फलां का लिखा अभी तक इसलिए नहीं पढ़ा गया या विवेचित नहीं हुआ क्योंकि जब तक उनकी एक किताब पढकर खत्म भी नहीं हो पाती है तब तक दूसरी आ जाती है। इस तरह के अनपढों […] Read more » hindi हिंदी
साहित्य रहम कीजिए हिंदी पर September 24, 2009 / December 26, 2011 by राजेश त्रिपाठी | 7 Comments on रहम कीजिए हिंदी पर भाषा न सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन अपितु किसी देश, किसी वर्ग का गौरव होती है। यही वह माध्यम है जिससे किसी से संपर्क साधा जा सकता है या किसी तक अपने विचारों को पहुंचाया जा सकता है। भारतवर्ष की प्रमुख भाषा हिंदी तो जैसे इस देश की पहचान ही बन गयी है। हिंदुस्तान से हिंदी […] Read more » hindi हिंदी
कविता हिंदी हूँ मैं… September 14, 2009 / December 26, 2011 by हिमांशु डबराल | 1 Comment on हिंदी हूँ मैं… कल रात जब मैं सोया तो मैंने एक सपना देखा, जिसका जिक्र मै आपसे करने पर विवश हो गया हूं… सपने में मै हिंदी दिवस मनाने जा रहा था तभी कही से आवाज आई… रुको! मैने मुड़ के देखा तों वहा कोई नहीं था… मै फिर चल पड़ा… फिर आवाज आयी… रुको! मेरी बात सुनो… […] Read more » hindi हिंदी
प्रवक्ता न्यूज़ हिंदी अब बलिदान मांगती.. September 8, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on हिंदी अब बलिदान मांगती.. हिंदी अब बलिदान मांगती … अपनी खोई शान मांगती . बहुत हो गया, हिंदी-जननी अपनी इक पहचान मांगती. हिंदी अब बलिदान मांगती . अंगरेजी की जय-जय कब तक? अपना गौरव- गान मांगती. जहां खिले सारी भाषाए, हिंदी वो उद्यान मांगती. हिंदी अब बलिदान मांगती. मै हूँ जन-गन-मन की भाषा अपना यह सम्मान मांगती. हिंदी अब […] Read more » hindi हिंदी
विविधा मॉम शट अप May 10, 2009 / December 27, 2011 by अनिका अरोड़ा | 2 Comments on मॉम शट अप काफी दिनों के बाद हम सभी सहेलियों को एक दिन मिला साथ में समय बिताने का। अपने-अपने हाल-ए-दिल सभी ने बयान करने कुछ यूं शुरू किये कि समय का तो पता ही नहीं चला। Read more » Mother संस्कृति हिंदी