राजनीति विश्ववार्ता विकास मात्र एक व्यापारिक गतिविधि नहीं है May 14, 2015 by शैलेन्द्र चौहान | 1 Comment on विकास मात्र एक व्यापारिक गतिविधि नहीं है –शैलेन्द्र चौहान- भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन दिवसीय चीन दौरा 14 मई को शिआन से शुरू होगा, जो दुनिया के 4 प्रमुख प्राचीन शहरों (तीन अन्य एथेंस, काहिरा और रोम) में से एक है. यह चीन के शांक्सी प्रांत की राजधानी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का गृहनगर भी है. मोदी ने अपनी चीन यात्रा […] Read more » Featured अक्साई चीन नरेंद्र मोदी पीएम का चीन दौरा मोदी का चीन दौरा विकास मात्र एक व्यापारिक गतिविधि नहीं है
धर्म-अध्यात्म वेदाध्ययन से जीवन का कल्याण May 14, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -‘वेद परिवार के सब सदस्यों के हृदयों व मनों की एकता का सन्देश देते हैं’- –मनमोहन कुमार आर्य– वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद ईश्वर प्रदत्त होने के कारण ही सब सत्य विद्याओं से युक्त सर्वांगपूर्ण ज्ञान है। अतः वेदों को पढ़ना व दूसरों को पढ़ाना व प्रचार करना सब विचारशील मनुष्यों का […] Read more » Featured दयानंद सरस्वती वेद वेदाध्ययन से जीवन का कल्याण वैदिक
विविधा व्यंग्य ‘गब्बर इज़ बैक’ एन्ड ही इज मोर डैंजर May 14, 2015 / May 14, 2015 by जावेद अनीस | Leave a Comment -जावेद अनीस- शोले फिल्म के ओरिजिनल क्लाइमैक्स में ठाकुर द्वारा गब्बर को मारते हुए दिखाया गया था जिसे बाद में सेंसर बोर्ड की दखल के बाद बदलना पड़ा, सेंसर बोर्ड नहीं चाहता था कि फिल्म में ठाकुर का किरदार कानून को अपने हाथ में ले। लगभग चालीस साल बाद आयी “गब्बर इज बेक” केक्लाइमैक्स में […] Read more » 'गब्बर इज़ बैक' एन्ड ही इज मोर डैंजर Featured अक्षय कुमार गब्बर इज़ बैक
जन-जागरण जरूर पढ़ें भारत में उच्चतर माध्यमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र- -भारत में शिक्षा के अधिकार का संक्षिप्त इतिहास :- मानव समाज के सम्यक विकास के लिये आवश्यक आधारभूत तत्वों में से एक तत्व है शिक्षा । जीने के अधिकार की तरह ही शिक्षा का अधिकार भी हमारी मौलिक आवश्यकता है । ईसवी उन्नीसवीं शताब्दी एवं उसके पश्चात् का काल भारतीय शिक्षा का […] Read more » Featured उच्चतर माध्यमिक शिक्षा भारत में उच्चतर माध्यमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार मौलिक अधिकार शिक्षा
धर्म-अध्यात्म आद्य सृष्टा, पितामह ब्रह्मा अर्थात प्रजापति May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment िाोूहीा्-अशोक “प्रवृद्ध”- वैदिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा प्रजापति को कहते हैंl शतपथ ब्राह्मण के षष्ठ काण्ड के प्रथम अध्याय में प्रजापति की उत्पति के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए कहा गया है – पहले सब असत् अर्थात अव्यक्त ही थाl वह असत् क्या था? असत् ऋषि ही थेl अव्यक्त रूप परमाणु थेl उनको ही ऋषि […] Read more » Featured आद्य सृष्टा पितामह ब्रह्मा पितामह ब्रह्मा अर्थात प्रजापति प्रजापति
विविधा जंगल में लगने वाली आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु को क्षति May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on जंगल में लगने वाली आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु को क्षति -अशोक “प्रवृद्ध”- इस वर्ष वर्षा रानी वसन्त ऋतु में ही मेहरबान हो गई, और देश के प्रायः सभी इलाकों में वर्षा रानी की मेहरबानी के कारण बैशाख की तपिश और जंगलों में आग लगने की घटना में कमी दिखलाई दे रही है, परन्तु यह अनुभव सत्य है कि गर्मी का मौसम प्रारम्भ होते ही देश […] Read more » Featured जंगल जंगल में लगने वाली आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु को क्षति पशु-पक्षी पेड़ पौधे
धर्म-अध्यात्म अवतार का अर्थ है अवतरण अर्थात अवतरित होना May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on अवतार का अर्थ है अवतरण अर्थात अवतरित होना -अशोक “प्रवृद्ध”- अवतार यानि अवतरित होना न कि जन्म लेना, प्रकट होना जिस प्रकार क्रोध प्रकट होता है वह अवतरित नहीं होता उसे तो अहंकार जन्म देता है परन्तु अवतार का जन्म नहीं होता जन्म दो के संयोग से प्राप्त होता है, जैसे अहंकार और इर्ष्या का संयोग क्रोध जन्मता है | लोक मान्यता है […] Read more » Featured अवतार अवतार का अर्थ है अवतरण अर्थात अवतरित होना धर्म महर्षि महापुराण
राजनीति जयलालिता को सजा के मायने May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment संदर्भः जे. जयललिता हुई सजा मुक्त:- -प्रमोद भार्गव- आखिरकार आय से अधिक संपत्ति के मामले में तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जे.जयललिता को चार साल की सजा से हाईकोर्ट ने मुक्ति दे दी। अब बतौर जुर्माना उनकी अकूत संपत्ति भी राजसात नहीं होगी। हालांकि इस फैसले के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि न्यायमूर्ति सीआर […] Read more » Featured जयललिता जयलालिता को सजा के मायने जया तमिलनाडु
महत्वपूर्ण लेख न्यूटन से हजारों नहीं वरन सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व वेद और वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध”- भारतवर्ष के प्रसिद्ध और जाने-माने वैज्ञानिक एवं भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के भूतपूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने गत दिनों यह कहकर पाश्चात्य पद्धति से शिक्षित भारतीयजनों में हड़कम्प मचा दिया है कि वेद के कई श्लोकों में चन्द्रमा पर जल की उपलब्धता अर्थात मौजूदगी का विवरण अंकित है और आर्यभट्ट जैसे […] Read more » Featured गुरूत्वाकर्षण के नियम न्यूटन न्यूटन से हजारों नहीं वरन सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व वेद और वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम वेद वैदिक ग्रंथ
विविधा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय परिसंवाद May 14, 2015 / May 14, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय परिसंवाद –भोपाल में 17 मई को नया मीडिया मंच और प्रवक्ता डॉट कॉम का आयोजन- भोपाल, 13 मई। नया मीडिया मंच और प्रवक्ता डॉट कॉम के संयुक्त तत्वावधान में प्रदेश की राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सोशल मीडिया’ एवं ‘युवा, राजनीति और सोशल मीडिया’ विषय पर विचार-विमर्श किया जाएगा। परिसंवाद का आयोजन 17 मई को स्वराज भवन […] Read more » Featured नया मीडिया प्रवक्ता डॉट कॉम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय परिसंवाद सोशल मीडिया
जरूर पढ़ें लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता May 14, 2015 / May 14, 2015 by सत्यव्रत त्रिपाठी | Leave a Comment -सत्यव्रत त्रिपाठी- गतिशील लोकतंत्र के लिए मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। लोकतांत्रिक मशीनरी को ठीक से चलाने के लिए मतदाताओं की सहभागिता तेल की तरह काम करती है। इसके अलावा मतदातओं की बढ़ी हुई सहभागिता विविध जगहों के लोगों को मुख्यधारा में लाकर सामाजिकरूप से एकीकृत करती है। यह एकीकरण उम्र उदाहरण के तौर पर युवाओं का समाज से एकीकरण लिंग, श्रेणी, क्षेत्र और कई अन्य उप समूहों के बंधनों को तोड़ देता है। इसलिए चुनाव सहभागिता सामाजिक समावेश सुनिश्चित करती है। साथ ही ऐसी नीतियों की ओर उन्मुख करतीहै जो समाज के विभिन्न खंडों और विविध हितों का ध्यान रखती हैं। भारत के संदर्भ में यह अभिकथन इस मायने में ज्यादा महत्व रखता है जहां राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों की तरफ से मतदाताओं को जानबूझकर हिस्सों में बांटना एक आम रणनीति है। कई बारपार्टी और उसके प्रत्याशी अपने वोट बैंक का उल्लेख करते हैं। ये वोट बैंक प्रत्याशियों की तरफ से जाति, धर्म और क्षेत्र की छोटी संकुचित सोच के आधार पर बनाए जाते हैं। वर्तमान की एफपीटीपी व्यवस्था में (झूठ और धोखे के कारण जो कि भारत में व्याप्त हैं) अगर कोईप्रत्याशी अपने क्षेत्र में किसी बेहद छोटे और अमहत्वपूर्ण समूह को अपने पक्ष में कर लेता है तो सीट हासिल करना आसान होता है। इसीलिए प्रत्याशी या राजनीतिक दल एक छोटा मतदाता वर्ग बनाने की रणनीति पर केंद्रित करते हैं या संकीर्ण सोच के आधार पर विशेष वोट बैंकपर निर्भर रहते हैं। यह कोशिश हमारे देश के लोकतंत्र को बर्बाद करने वाली है क्योंकि यह राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को गलत तरीके से बदल देती है। उनका ध्यान बिंदु सभी के विकास के लिए नीतियां बनाने और इसे लागू कराने की जरूरत से बदल जाता है। उपचार केतौर पर वह लोग जो किसी विशेष वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं और अगर उनकी भागीदारी बढ़ाई जाए तो अलग-अलग राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के लिए ये लोग महत्वपूर्ण होंगे और वे संकीर्ण सोच को व्यापक करने को मजबूर होंगे। यह स्पष्ट है कि कई जनतंत्रों में मतदाताओं की सहभागिता लगातार गिरावट की ओर है। कई देश इस गिरावट को रोकने के लिए नए रास्ते निकाल रही हैं। इन सभी प्रयासों का मुख्य उद्देश्य मतदान न करने की प्रवृत्ति कम करना है। यह कई तरीकों जैसे पंजीकरण करने कीप्रक्रिया को कम कष्टकर और कम महंगा बनाने, मतदाताओं का श्रम घटाने जिससे सहभागिता घटती है, चुनावों की बारंबारता और जटिलता घटाने, जागरूकता अभियान चलाकर मतदान को आदत और सामाजिक नियम बनाने से किया जा रहा है। भारत में चुनाव सुधारों के क्षेत्र मेंसक्रिय लोगों ने कई सुझाव दिए हैं। उदाहरण के तौर पर चुनाव सुधार के क्षेत्र के चमकते तारे प्रोफेसर सुभाष कश्यप ने मतदान को संवैधानिक तौर पर हर नागरिक को मौलिक कर्तव्य बनाने का सुझाव दिया है। इसे मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने केलिए प्रोत्साहनों और दंडात्मक कार्रवाई की एक श्रृंखला का भी सुझाव दिया है। उनके अनुसार, हर मतदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पास मतदान का प्रमाणपत्र हो। यह प्रमाणपत्र अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों जैसे गरीबी रेखा के नीचे का राशन कार्ड आदि के लिएमुख्य प्रपत्र के तौर पर काम करेगा। प्रोफेसर कश्यत खास तौर पर मतदान सहभागिता में शहरी आबादी के घटते रुझान से चिंतित हैं। इसके लिए वह सुझाव देते हैं कि पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ मतदान प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की दशा में ही जारी किए जाने चाहिए। हालांकि वक्त की जरूरत परंपरागत तरीकों के साथ ही तकनीक में हुई प्रगति का निर्वाचन प्रक्रिया में प्रयोग है। इससे मतदान प्रक्रिया में समय और लागत दोनों घटेंगे। ऐसा ही एक विकल्प ई-मतदान है जिसका कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है। यह विकल्प प्रयोग करने वालेकई देशों में मतदाताओं की सहभागिता और आम नागरिकों के उत्साह में काफी अच्छे नतीजे आए हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है, हम भी मतदान सहभागिता में गिरावट के चिंताजनक मुद्दे से लड़ रहे हैं। यद्यपि भारत के चुनाव आयोग ने कई सालों में इस संबंध में प्रशंसनीयऔर गंभीर कदम उठाए हैं लेकिन परिणाम संतुष्टिजनक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, शहरी उच्च मध्य वर्ग नागरिक लगातार राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति उदासनीता दिखा रहे हैं। उनकी सहभागिता भी चिंता का एक विषय है। इसलिए चुनाव क्षेत्र में नए आविष्कारों की तत्काल जरूरत हैजिससे आबादी के इस हिस्से में वोट न डालने की आदत को बड़े पैमाने पर घटाया जा सके। गुजरात के पालिका चुनावों में कुछ क्षेत्रों में ई-मतदान का सहारा लेकर इस संबंध में राह दिखाई गई है। यह मॉडल विशेष तौर पर उच्च मध्यम वर्ग को लक्षित करने में उपयुक्त हो सकता है ताकि इनकी वोट न डालने की आदत खत्म की जा सके और इनको चुनावों में बड़ेपैमाने पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ई-मतदान की उपयुक्तता को तलाशने और अन्य राज्यों में इसे लागू करने या न करने पर गंभीर शोध किए जाने चाहिए। इसे शुरू करने के लिए हम सभी राज्यों के स्थानीय निकाय के चुनावों में इसकी शुरुआत कर सकतेहैं। अगर परिणाम सकारात्मक आएं तो धीरे-धीरे हर तरह के चुनावों में हम इस व्यवस्था का प्रयोग करना चाहिए। काफी जनसंख्या होने के कारण भारत में चुनाव कराना एक बड़ी करसत है। कई बार चुनाव प्रक्रिया बेहद लंबी हो जाती है। कई अवसरों पर यह आम आदमी की कल्पना से भी ज्यादा जटिल हो जाती है। ई-मतदान की अवधारणा पूरी प्रक्रिया में जटिलताओं को खत्म करेगी औरज्यादा मतदाताओं की सहभागिता सुनिश्चित करेगी। Read more » Featured भारत की राजनीति लोकतंत्र लोकतंत्र के सशक्तिकरण में नए प्रयोगों की आवश्यकता
राजनीति सबका साथ सबका विनाश, भा.(२) May 14, 2015 by डॉ. मधुसूदन | 10 Comments on सबका साथ सबका विनाश, भा.(२) -डॉ. मधुसूदन– (एक)भा.(१)की प्रतिक्रियाएँ। आलेख की प्रतिक्रिया में, कुछ विद्वानों के विचार और संदेश आए। एक बड़ा दीर्घ (१० पृष्ठ) अंग्रेज़ी आलेख एक प्रोफेसर ने भी भेजा। शायद यह “विनाश” शब्द की प्रेरणा ही मानता हूँ। अनुभव किया है, कि, संकट के नाम से हमारी भारतभक्ति विशेष जाग जाती है। मुझे स्वयं को, उस शीर्षक […] Read more » Featured नरेंद्र मोदी भा.(२) भारत भारत की राजनीति मोदी सरकार सबका साथ सबका विनाश हिन्दुस्तान