कविता नींद तुम्हारी आंखों में January 24, 2014 / January 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -श्यामल सुमन- नींद तुम्हारी आंखों में पर मैंने सपना देखा है अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा हैकिसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है बड़े लोग की सर्दी – खांसी अखबारों की सुर्खी में फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना […] Read more » poem नींद तुम्हारी आंखों में
कविता आओ धरना-धरना खेलें January 22, 2014 / January 22, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment आओ धरना-धरना खेलें सत्ता पाये भ्रष्टों के बल, मुंह तो अब छुपाना है, मूर्ख बनाओ जी भर-भर के, धरना एक बहाना है। जी भर नूरा कुश्ती खेलें, आओ धरना-धरना खेलें। (१) झुंझलाकर के सड़क पर बैठें, मुझे छोड़कर सभी चोर हैं, एक उठे पराये पर जब, तीन ऊंगलियां अपनी ओर हैं। भ्रष्टातंकी पाले चेले आओ […] Read more » poem आओ धरना-धरना खेलें
कविता अस्पताल के कमरे से… January 18, 2014 / January 18, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on अस्पताल के कमरे से… रोगियों का मन है क्लांत, अस्पताल का वातावरण, श्वेत, शुद्ध, धवल,शान्त। श्वेत चादर श्वेत वस्त्र, डॉक्टर और नर्स सभी, विश्वास के हैं दीप्तमान! स्वास्थ लाभ होने का, दे रहे हैं वरदान! कभी कराह चीख़ पुकार. ओ.पी.डी. में भीड़- भाड़, रोगियों के परिवारों पर, दुख और चिन्ता का प्रहार। एक दुर्घटना हुई कल, स्कूल बस ट्रक […] Read more » poem अस्पताल के कमरे से...
कविता उसे नारी हैं कहे January 16, 2014 / January 16, 2014 by अश्वनी कुमार | Leave a Comment जहां है त्याग, समर्पण, जहां है धैर्य बेहिसाब यही है रूप-ओ-नारी, जिसे आता है यहां प्यार कभी मां-बाप, कभी भाई, कभी पति-बेटा सहे विरोध है सबका, न करती कोई आवाज़ न जाने कब से सह रही थी जुल्मों सितम को जो लड़े हक की लड़ाई उसे मलाला कहें कभी सती, कभी पर्दा कभी रिवाजे-ए-दहेज़ ये […] Read more » poem उसे नारी हैं कहे
बच्चों का पन्ना अच्छा नाम January 16, 2014 / January 18, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on अच्छा नाम तीन पांच तू मत कर छोटू, मैं दो चार लगाऊंगा| तेरे सिर पर बहुत चढ़े हैं, मैं सब भूत भगाऊंगा| यही ठीक होगा अब बेटे, मेरे सम्मुख ना आना, जब भी पड़े सामना मुझसे, नौ दो ग्यारह हो जाना| कभी न पड़ा तीन तेरह में, सीधा सच्चा काम रहा| नहीं चार सौ बीसी सीखी| इससे […] Read more » poem अच्छा नाम
बच्चों का पन्ना दादाजी का डंडा January 16, 2014 / January 18, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दादाजी से झगड़ रहा था, उस दिन टंटू पंडा| मुरगी पहले आई दादा, या फिर पहले अंडा| दादा बोले व्यर्थ बात पर, क्यों बकबक का फंडा| काम धाम कुछ ना करता तू, आवारा मुस्तंडा| इतना कहकर दादा दौड़े, लेकर मोटा डंडा| इससे पूछो मुरगी आया, या फिर पहले अंडा| Read more » poem दादाजी का डंडा
कविता अधरों की हंसी हो या January 14, 2014 / January 14, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मौन! अधरों की हंसी हो या आंखों से आंसू हों, आंखों से आंखों की बात होती है, क्योंकि, मौन की भी एक निराली भाषा होती है! जब कोई तस्वीर सामने होती है, बिना मिले ही उनसे बात होती है, कभी मु्स्कान या नमी आंखों में होती है, बिन कहे ही मन से मन की बात […] Read more » poem अंधरों की हंसी हो या अधरों की हंसी हो या
कविता कैद मिली तो क्या हुआ? January 13, 2014 / January 13, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जिसको जितना ज्ञान कम, अधिक बोलते लोग। ज्ञानीजन बोले नहीं, सुमन दुखद संयोग।। कैद मिली तो क्या हुआ, होता खूब प्रचार। मंत्री होते कैद में, सुमन चले सरकार।। नाकाबिल साबित सुमन, पर देखो अभिमान। कम से कम मंत्री बने, नालायक सन्तान।। सूरत पे मुस्कान है, भीतर भरा तनाव। युग परिवर्तन का सुमन, देखो नित्य प्रभाव।। […] Read more » poem कैद मिली तो क्या हुआ?
कविता प्रेम नहीं मजबूर January 12, 2014 / January 12, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- सुमन प्रेम की राह में, कांटे बिछे अनेक। दर्द हजारों का मिले, चुभ जाता जब एक।। त्याग प्रेम का मूल है, मगर सहित सम्मान। करता हंसकर के सुमन, अपना जीवन-दान।। प्रेम गली में क्यों सुमन, खड़ी मिले दीवार। सदियों से क्यों चल रहा, दुनिया का व्यवहार।। भीतर चाहत प्रेम की, बाहर करे […] Read more » poem प्रेम नहीं मजबूर
कविता प्रकृति की मौलिकता January 11, 2014 / January 11, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दो-दो फुट दिन में जुड़वा दें, दो फुट की बढ़वा दें रात| किसी तरह से क्यों न बापू, बड़े-बड़े कर दें दिन रात| छोटे-छोटे दिन होते हैं, छोटी-छोटी होती रात| ना हम चंदा से मिल पाते, ना सूरज से होती बात| नहीं जान पाते हैं अम्मा, क्या होती तारों की जात| ना ही हमें पता […] Read more » poem प्रकृति की मौलिकता
कविता महात्मा वेदपाल प्रभु शरणाश्रित को नमन January 9, 2014 / January 9, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’- 1. ईश्वर दास के लाला लाल, था नाम महात्मा वेद पाल। जनवरी दस को जन्म लिया था, ईश्वर का गुणगान किया था। प्रभु शरणाश्रित बन किया कमाल॥ शत्-शत् नमन हे ईश्वर लाल 2. हंसमुख थे बहु भोले-भाले, गोरे रंग के थे, दिलवाले। नम्र-शील जिनका स्वभाव, तेजस्वी मुख पर प्रभाव। मस्त-व्यस्त हृदय विशाल॥ […] Read more » poem महात्मा वेदपाल प्रभु शरणाश्रित को नमन
कविता कुबड़ी आधुनिकता January 9, 2014 / January 9, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -दीप्ति शर्मा- मेरा शहर खांस रहा है सुगबुगाता हुआ कांप रहा है सडांध मारती नालियां चिमनियों से उड़ता धुआं और झुकी हुयी पेड़ों की टहनियां सलामी दे रहीं हैं शहर के कूबड़ पर सरकती गाड़ियों को, और वहीं इमारत की ऊपरी मंजिल से कांच की खिड़की से झांकती एक लड़की किताबों में छपी बैलगाड़ियां देख […] Read more » poem कुबड़ी आधुनिकता