कविता कैसी पलटी है समय की धार June 25, 2014 / June 25, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- कैसी पलटी है समय की धार। हमसे रूठी हमारी ही सरकार। उतर चुका सब चुनावी बुखार। नहीं अब कोई जन सरोकार। अनसुनी है अब सबकी पुकार। बहरा हो गया हमारा करतार। दमक रहा है बस शाही दरबार। झोपड़ों में पसरा और अंधकार। सुन लो अब भी एक अर्ज़ हमार। आपकी पालकी के हमीं […] Read more » कविता कैसी पलटी है समय की धार समय की धार हिन्दी कविता
कविता युग देखा है June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on युग देखा है -बीनू भटनागर- एक ही जीवन में हमने, एक युग पूरा देखा है। बड़े बड़े आंगन चौबारों को, फ्लैटों मे सिमटते देखा है। घर के बग़ीचे सिमट गये हैं, बाल्कनी में अब तो, हमने तो पौधों को अब, छत पर उगते भी देखा है। खुले आंगन और छत पर, मूंज की खाटों पे बिस्तर, पलंग निवाड़ […] Read more » कविता जीवन कविता युग देखा है हिन्दी कविता
कविता तितली सी चंचलता June 19, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- तितली सी चंचलता तितली सा चंचल बन मन मेरा उड़ना चाहता है। नन्हीं सी तितली रानी देख तुम्हें मन मेरा हर्षाता है। उड़कर तेरी तरह मन मेरा फूलों पर मंडराना चाहता है। डाल-डाल पर बैठकर यौवन मेरा इठलाना चाहता है। रंग-बिरंगे पंख हों मेरे दिल यही मांगना चाहता है। कोमल सी काया चंचल […] Read more » कविता जीवन कविता तितली सी चंचलता हिन्दी कविता
कविता रोटी मिली पसीने की June 14, 2014 / June 16, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- इक हिसाब है मेरी जिन्दगी सालों साल महीने की लेकिन वे दिन याद सभी जब रोटी मिली पसीने की लोग हजारों आसपास में कुछ अच्छे और बुरे अधिक इन लोगों में ही तलाश है नित नित नए नगीने की नेकी करने वाले अक्सर बैठे गुमशुम कोने में समाचार में तस्वीरों संग चर्चा आज […] Read more » कविता जीवन पर कविता हिन्दी कविता
कविता ईंधन का बवाल June 14, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- मुझको मिले मुसद्दीलाल, लगे सुनाने अपने हाल| बोले कल लखनऊ में था, अभी-अभी आया भोपाल| करते-करते बात तभी, आया उनमें तेज उबाल| इस उबाल की गरमी में , हमने तुरत गला ली दाल| हाय क्रोध की गरमी की, करते नहीं लोग पड़ताल| अगर पके इसमें भोजन, ईंधन का ना रहे बवाल| ————————————————————————– सबसे […] Read more » ईंधन का बवाल कविता सबसे अच्छा हिन्दी कविता
कविता उदासी June 12, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- मन उदास हो तो, चारों दिशायें भी, उदास नज़र आती है। बाहर चिलचिलाती धूप है, पर काले बादल, बारिश के नहीं, उदासी के, छा जाते है, चकाचौंध रौशनी भी, अंधेरों को पार, नहीं कर पाती है। ऐसे में, मन की ऊर्जा को, जगाने का कोई उपाय करूं, या वक्त पर छोड़ दूं कि […] Read more » उदासी उदासी कविता कविता हिन्दी कविता
कविता सीने में जलती आग June 4, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- हर मौसम में, देखता हूँ उन्हें, मौसम बारिश का हो, या चुनाव का, रेल पटरियों से सटे, उनके टाट -फूस के, घर भी हैं सटे-सटे, चुनाव से पूर्व उन्हें, एक सपना दिखाई देता है, बारिश से पहले, अपने एक पक्के घर का, लेकिन चुनाव के बाद, बारिश शुरू होते ही, एक दुःस्वप्न दिखाई […] Read more » कविता सीने में जलती आग हिन्दी कविता
कविता अजनबी से मुलाकात May 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जयसवाल- अजनबी से मुलाकात, जाने क्या हुआ उस दिन कि, राहों में देखकर कर उनको, दिल ठहर सा गया। जाने वो अजनबी मुझ पर, क्या जादू कर गया। जुबां तो ख़ामोश थी पर, आंखें हाल-ए-दिल उसका, मुझसे बयां कर गया। जाने क्या था उन आंखों में, कि उनकी गहराई में, दिल मेरा उतर गया। […] Read more » अजनबी से मुलाकात कविता हिन्दी कविता
कविता ना जाने क्यों May 24, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं, खुद से खफा रहता हूं, बिना हवा के चलने से पेड़ों को हिलते हुए देखता हूं, बिन बारिश के बादलों में इंद्रधनुष को देखता हूं, तो कभी, लहरों की बूंदों को गिनने की कोशिश करता हूं, ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं, […] Read more » कविता ना जाने क्यों हिन्दी कविता
कविता हम नदी के दो किनारे May 22, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदी के दो किनारों की तरह, मै और तुम साथ साथ हैं। हमारे बीच ये नदी तो, प्रवाह है, जीवन और विश्वास है। हमारे बीच इसका होना, हमें साथ रखता है, जोड़ता है, न कि दूर रखता है। मानो कि ये नदी हो ही नहीं, तो क्या किनारे होंगे! नदी पहाड़ पर हो […] Read more » कविता जीवन कविता
कविता गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! May 12, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment -प्रवीण गुगनानी- गुलमोहर मुझे अच्छा लगने लगा है! उस दिन जो संगीत था, बड़ा ही मुखर-मुखर सा। उसमें लिखा था वो सन्देश, जिसे मैं पढ़ नहीं पाया था। तब जब वह समुद्री रेत पर लिखा हुआ था, कुछ ऊंगलिया थी थरथराती-कपकपातीं। जो चली थी उस रेत पर, चली थी, कई मीलों। लिखते हुए ऐसा कुछ, […] Read more » कविता कविता जीवन पर जीवन पर कविता
कविता ऊसर कटोरी, बंज़र थाली May 12, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- ऊसर कटोरी, बंज़र थाली, बदतर बोली, जैसे गाली। सोचो मत बस बोले जाओ, जैसे भी हो, सत्ता कुंजी पाओ! दिवास्वप्न देखो और दिखलाओ, सच्चाई को सौ सौ पर्दो में छुपाओ। पहले उनसे सुनो स्वप्न साकार के, मखमल लिपटे सुन्दर भाषण। फिर देखो समझौतों के हज़ारों, नए पुराने आधे अधूरे आसन! सुनो फिर मज़बूरी […] Read more » कविता गरीबी पर कविता जीवन पर कविता