सोच बड़ी या शौच

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-निर्भय कर्ण-

toilet‘‘सोच बड़ी या शौच’’ यह सवाल आज हम इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि ग्रामीण परिवेश में खासकर देखें तो वहां की मानसिकता को देखकर यह साबित होता है कि शौचालय ही बहुत बड़ी चीज है और सोच बिल्कुल ही छोटी। अधिकतर ग्रामीण यह सोचते हैं कि शौचालय बनाकर केवल पैसे की बर्बादी ही नहीं बल्कि अपनी इज्जत को गंवाना भी है। इसके अलावा भी भिन्न-भिन्न मत हैं जैसे कि घर में शौचालय बनाने से घर गंदा होगा; घर आराम करने के लिए होता है न कि पाखाना बनाने का; शौचालय के लिए बसबिट्टी, खुले मैदान, खेत आदि है न; सरकार शौचालय बनाने के लिए पैसा/सामान देगी तभी तो शौचालय बनायेंगे; सरकार केवल अमीरों/गांव के नेताओं को पैसा/सामान देती है, तो हम गरीब क्यों बनायें, आदि-आदि। इन कथनों से शौच के सामने सोच बौनी होती नजर आती है।

सोच को बड़ा साबित करने के लिए ऐसी संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों को जागरूक करना होगा कि शौचालय घर में बनाने से कितने फायदे हैं, घर में शौचालय होने से घर गंदा नहीं होता अपितु हम सब स्वस्थ रहते हैं। घर में शौचालय बनाने से इज्जत घटती नहीं बल्कि बढ़ती ही है। दूसरी ओर ऐसे लोग जो केवल सरकार के भरोसे बैठे हैं कि सरकार हमें शौचालय के लिए पैसा/सामान देगी तभी शौचालय बनायेंगे तो ऐसे लोगों को पहले इस सवाल का उत्तर देना होगा कि जब सरकार आपको भोजन, घर बनाने, गहना-जेवर, मोबाइल, गाड़ी आदि के लिए पैसा या अनुदान नहीं देती है तो आखिर आपके शौच के लिए पैसा या सामान क्यों दे। शौचालय अपने घर में बनाना न केवल आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है बल्कि आपको अपने परिवार के प्रति परम कर्तव्य भी। इन्हीं सकारात्मक बातों को समझाने हेतु नेपाल के सप्तरी जिले के बसबिट्टी गांव में सरसफाई वातावरण तथा उर्जा (सी) संस्था संघर्षरत् है। यहां के लोगों को समझाने हेतु ‘सी’ के लोग एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इनके समझाने का गांवों पर असर नहीं हो रहा है। कई लोगों ने तो अपने घर में शौचालय बनाना भी शुरू कर दिया है तो कईयो ने जल्द ही शौचालय बनाने का वादा किया है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके सवाल-जवाब सुनकर आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे। ये अपना सारा गुस्सा समझाने के लिए आये हुए लोगों पर ही उतार देते हैं और कहते हैं सरकार ने शौचालय बनाने के लिए सामान केवल बलशाली और नेताओं को दे दिया। जिसे इसकी जरूरत है, उसे तो कुछ मिला ही नहीं ऐसे में हमें शौचालय नहीं बनाना है। एक युवक ने यहां तक चेतावनी दे दिया कि जब जेब में पैसे हो तभी इस गांव में घुसना वरना मत घुसना। ऐसे सवालातों के बीच किसी भी गांव में शौचालय बनाने की मुहिम कभी-कभी कमजोर नजर आने लगती है। फिर भी लोग अपने निश्चय को दृढ़ करते हुए इस मुहिम को पूरा करने के लिए कड़ी धूप में भी जुट जाते हैं।

नेपाल सरकार अपनी ओर से इसे अमलीजामा पहनाने में पूरे जोर-शोर से जुटी हुयी है। ज्ञात हो कि नेपाल को 2016 तक खुल्ला दिशा मुक्त क्षेत्र घोषित करना है। इसी के तहत खानेपानी तथा सरसफाई डिभीजन कार्यालय, राजबिराज, सप्तरी सहित सभी विभाग कई तरह के हथकंडे अपनाने लगी है जैसे कि जिसके घर में शौचालय नहीं होगा, उसके घर के किसी भी सदस्य का जन्म, विवाह व मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बन सकेगा। पासपोर्ट सहित वो तमाम सरकारी सुविधा रोक दी जाएगी जिससे उनका सरोकार हो। सरकार ने अभी लोगों को शौचालय बनाने के लिए कुछ वक्त दिया है। उसके बाद ऐसे कार्यों को समय दर समय और भी सख्त किया जाएगा। सरकारी कार्यालय के अलावा अब निजी संस्थान भी किसी काम के लिए शौचालय का सवाल लोगों के समक्ष रखने लगे हैं। अब देखा जाना बाकि है कि ये तमाम प्रयास शौचालय की मुहिम को पूरा करने में कितना कारगर साबित हो पाता है।

लोगों की छोटी सोच की वजह से शौचालय बनाने का काम अपने आप में काफी बड़ा हो जाता है। लेकिन हकीकत यही है कि यदि आप यह ठान लें कि उसे किसी हालत में घर में शौचालय बनाना है तो दो दिन के अंदर उसके घर में शौचालय बनकर तैयार हो जाएगा। इसलिए जरूरत है अपनी सोच को बड़ा करने का न कि शौचालय को।

4 COMMENTS

  1. हमारे यहाँ ”माले मुफ्त दिले बेरहम ” अंदाज पर समाज को चलने की आदत पड़ गयी है. सस्ता आनाज। छत्रवृत्ति ,सब्सिडी , सस्ते आवास, सम्मान्य वर्ग को १०५ बिंदु परआई आई टी /जे इ इ पर कट मार्क्स ,और अन्य को ४४ मार्क पर चयन और न जाने क्या क्या?होना यह चाहिए की जिस घर में ”शौचालय ” नहीं हो और दो से ज्यादा बच्चे हों उनकी सब सुविधाएँ समाप्त. जो लोग बिजली और जल का बिल नहीं भरें उन्हें ४-५ माह तक दुगना बिल देने होगा. ऐसे कुछ नियम बने जिसमे समाज एक जिम्मेदार संघटन की भूमिका निभाए तो देश की प्रगति हो.

    • apka vichar behad hi achcha hai. yadi sarkar ise lagu kare to wastav me hi samaj se pure desh ki pragti hogi.

  2. निर्भय जी,
    सबसे पहले अपनी बहुत अच्छा आर्टिकल लिखा, और सही कहा अपने सब कुछ अपनी सोच पे हैं.

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