संस्कृत *युज्* से निकला अंग्रेज़ी Use

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useडॉ. मधुसूदन
(एक) प्रवेश:

ॐ (१) विषय कुछ विशेष कठिन नहीं है।
ॐ (२) पर ध्यान देकर धीरे धीरे समय निकाल कर पढने का अनुरोध।
ॐ (३) गत कुछ महीनों के ४-५ भाषणों में, विद्वानों द्वारा उठाए गए प्रश्नों पर यह आलेख आश्रित है।
(दो) हिन्दी में अंग्रेज़ी का शब्द

अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी में जब स्वीकारा जाता है; तो अकेला ही स्वीकार होता है।
जैसे Use अकेला ही लिया जाता है। और प्रयोग में भी अकेला ही सुनने में आता है। साथ Usability, Utility, Useful, Utilitarian, Useless, इत्यादि अनेक शब्द जो use से विकसित हुए हैं, उन्हें हिन्दी में लाना संभव नहीं है; न उचित है।

और ऐसे सारे के सारे शब्द हिन्दी में धडल्ले से लाते गए, तो हमारी प्रिय हिन्दी शीघ्रता से, दूषित होती चली जाएगी। और फिर वो दिन दूर नहीं, जब, हमारी हिन्दी ऐसी खिचडी बन जाएगी, जिसे पहचानना कठिन हो जाएगा।
केल्टिक भाषा ऐसे ही अनियंत्रित उधार शब्दों की खिचडी बन कर नष्ट हो गयी थी। हमे चेत के रहना होगा।
(तीन) कविता में शब्द की उपयुक्तता की कसौटी
हिन्दी कविता में भी अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी के प्राकृतिक बहाव से मेल नहीं खाता। सामान्यतः
अपनी कुरूपता प्रकट कर ही देता है। वैसे अंग्रेज़ी कविता में भी मुझे गेयता का भाव अल्प ही प्रतीत हुआ। वाद्य संगीत के साथ ही अंग्रेज़ी कविता को गेयता प्रदान होती है।

हिन्दी कविता में, अंग्रेज़ी शब्द-प्रयोग गेयता को अकस्मात अवरुद्ध करता है।और व्यंग्य के सिवा अन्य रसों की निष्पत्ति में क्वचित ही काम आ सकता है।
ऐसी कविता में शब्द की उपयुक्तता की कसौटी भी एक निर्णायक कसौटी मानता हूँ।

(चार) Use भी हमारे *युज्* से निकला है।

और, पहले तो Use शब्द भी हमारे *युज्* इस संस्कृत धातु से निकला हुआ प्रमाणित किया जा सकता है। पर, यदि Use को उसके विस्तृत परिवार के साथ स्वीकारा गया तो हमारी भाषा भी
बदल जाएगी। और ऐसे स्वैराचारी, अनियंत्रित उधारी से हम अपनी भाषा को बिगाडने के उत्तरदायी होंगे।
ऊपर कहा जा चुका है; केल्टिक भाषा कैसी उधारी के कारण ही नष्ट हुयी थी। पर साथ साथ हमारी भाषा प्रदूषित भी होगी।
इस आलेख में, एक उदाहरण द्वारा इस बिन्दू का विकास किया है।

संस्कृत शब्द का परिवार अंग्रेज़ी के परिवार की अपेक्षा बहुत विस्तृत होता है।
और हिन्दी में घुल-मिल जाता है।
Use के स्थान पर उपयोग और उपयोग के साथ उपयोगिता, उपयुक्तता, उपयोगी, उपयोगितावाद, इत्यादि ७४ शब्द अंत में सूची बनाकर दिए हैं।

उपयुज का पूरा शब्द परिवार हिन्दी में प्रवेश कर सकता है।
अंग्रेज़ी शब्द अकेला ही आता है। वैसे अंग्रेज़ी शब्द का परिवार भी बहुत छोटा ही होता है।
(पाँच) *युज्* से Use निकला है।

संस्कृत की एक धातु है युज्, जिस का उच्चारण और अर्थ अंग्रेज़ी Use के निकट है।
युज् और Use का अर्थ प्रायः समान है; और इन दो शब्दों का उच्चारण भी लगभग समान है। ऐसे, उच्चारण और अर्थ, दोनों का मूल शब्द के उच्चारण और अर्थ के निकट होना, महत्वपूर्ण है। ये दो प्रमुख कसौटियाँ हैं, शब्द-मूल के शोध के लिए। निरुक्तकार यास्क ऋषि यही कहते हैं। ऐसी मूल शब्द की शोध-प्रक्रिया को, व्युत्पत्ति का शोध कहा जाता है।
हमारी सारी प्राकृत और प्रादेशिक भाषाओं के शब्द प्रमुखतः इन्हीं दो (उच्चारण और अर्थ की) कसौटियों के आधार पर अपनी व्युत्पत्ति ढूँढते हैं। और भारतीय भाषाओं के बहुसंख्य शब्द (७० से ८० प्रतिशत ) संस्कृत के शब्दों के मूल तक पहुंचते हैं। एक अपवाद तमिल भाषा का है, पर उसके भी ४० से ५० प्रतिशत शब्द संस्कृत से व्युत्पन्न होते हैं।
इस आलेख में, लेखक ने इन्हीं दो कसौटियों के आधार पर Use इस अंग्रेज़ी शब्द का मूल ढूँढने का प्रयास किया है।

(छः) उच्चारण और अर्थ की कसौटियाँ

(१) युज् और Use के समान उच्चारण।
(२) और उनके अर्थों की समानता नीचे दर्शायी है।
संस्कृत में:
निम्न अर्थों से, वा. शि. आप्टे का संस्कृत-हिन्दी कोश इस *युज्*शब्द के अर्थ देता है।
युज् के अर्थ होते हैं ===> (१) प्रयुक्त करना, (२) काम में लगाना, (३) इस्तेमाल करना, (४) नियुक्त करना, (५) स्थापित करना, (६) जुडना, (७) जोतना, (८) जोडना, (९) सुसज्जित करना इत्यादि। पूरा सवा पृष्ठ अर्थों से भरा है।
*युज्* धातु प्रथम गण (प.),चतुर्थ गण (आ.),सप्तम गण(उ.),दशम गण (उ.) ऐसे चार गणों में पाया जाता है।
अंग्रेज़ी में
प्रायः इन्हीं अर्थों में अंग्रेज़ी का Use शब्द भी अंग्रेज़ी में प्रयोजा जाता है।
बाहरी (अंग्रेज़ी-हिन्दी कोश से)
Use= उपयोग करना, प्रयोग में लाना, व्यवहार में लाना, भोगना, काम में लाना, इस्तेमाल करना, अभ्यस्त होना, इत्यादि।
वैसे अर्थ भी दो स्तरों के होते हैं। मूल से जुडा अर्थ, और विस्तरित (व्युत्पादित) अर्थ।
इन दोनों कसुअटियों से प्रमाणित होता है, कि, हमारा युज् ही अंग्रेज़ी Use का मूल है। अर्थ समान और उच्चारण भी निकट का है। उच्चारण का सूक्ष्म बदलाव हुआ है। पर ऐसे बदलाव हमारी प्राकृत भाषाओं में भी हुए हैं। अनेक (१०-१२) आलेखों में इसकी चर्चा हो गयी है-पाठक जानते ही होंगे।

(सात ) एक विद्वान का प्रश्न:

एक विद्वान श्रोता ने यह प्रश्न उठाया था।
ये विद्वान स्वयं हिन्दीभाषी नहीं थे; पर हिन्दी के विरोधक भी नहीं थे।
पर धडल्ले से प्रचुर अंग्रेज़ी शब्दप्रयोग करते थे। कुछ अभ्यास के कारण।
वैसे अभ्यास के कारण ही, भारत में भी ऐसी दूषित परम्परा रूढ हो चुकी है। पहले हम परतंत्र थे; पर आज भी मति-भ्रमित हैं; मानसिकता हमारी दास्यवृत्ति से ग्रस्त हैं।
भारत में, भी विद्वान इतने अंग्रेज़ी के अभ्यस्त हो गए हैं, कि शीघ्रता से ऐसा बदलाव लाना कठिन लगता है। फिर विद्वानों का अनुकरण कर ही सामान्य जन चला करते हैं। समस्या इसीलिए और भी कठिन है। पर हमें अपनी ही भाषाका गौरव जगाना होगा। विद्वानों को भी मैं निवेदन करता हूँ, कि इस उद्देश्य से स्वयं ही अध्ययन करे।

(आठ)युज धातु से व्युत्पादित शब्द:
संस्कृत की शब्द की समृद्धि:

यदि आप संस्कृत की शब्द समृद्धि देखें तो आप अवश्य स्तंभित हो जाएंगे।
कोई अंग्रेज़ी के use से ऐसी सूची बनाने का प्रयास कर के देखे। प्रमाणित हो जाएगा।
निम्न सूची में उपसर्ग, प्रत्यय, और सामसिक शब्दों की सूची बनाई है। अंग्रेज़ी में ऐसे प्रचुर सामासिक शब्द भी नहीं बनाए जा सकते।

(१)प्रयुज = उपयोग के लिए देना, (घन, वस्तु ) या ब्याज पर देन। फिर प्रयोजन
(२)उद्युज = तैयार करना।
(३) उद्योजक = उद्योग लगानेवाला
(४) वियुज = घटाना।
(५) उपयुज = उपभोग करना, खाना।
(६) नियुज = उकसाना, प्रेरित करना।
(७) विनियुज = वियुक्त या अलग करना।
(८) सायुज्य = सादृश्य, या समानता।
(९) अभियुज= कहना, या बोलना। (अभियोग भी इसी वर्गका लगता है।)
और फिर (१०) प्रयोजन, (११) नियोजन,(१२) अभियोजन, ऐसे और भी शब्द मिलेंगे।
उसी प्रकार युज धातुसे योग भी बनता है।
आगे (१३) उपयोग, (१४) उपयोगी, (१५) उपयोगिता, (१६) उपयुक्त, ((१७) उपयुक्तता, (१८)उपयोज्य, (१९) उपयोगितावाद,
फिर (२०) प्रयोग, (२१) विनियोग,(२२)संयोग, (२३) वियोग, (२४) आयोग,(२५) प्रतियोग से प्रतियोगिता।
(२६) ज्ञानयोगः= आत्मज्ञान प्राप्त करने या परमात्मानुभूति प्राप्त करने का मुख्यसाधन
(२७) राजयोग = धार्मिक चिन्तन का एक सरल योग (राजाओं द्वारा अभ्यास करने योग्य)
(२८) भक्तियोग = सानुराग निष्ठा, श्रद्धापूर्वक उपासना
(२९) दैवयोग = संयोग, भाग्य, अवसर
(३०) विसंयोगः= अलग-अलग होना, बिछोह, वियोग”
(३१) योगेश्वर = कृष्ण और याज्ञवल्क्य का विशेषण
(३२) उपयोगिन = योग्य, उचित
(३३) योगयुक्त = योगमार्ग में संलग्न
(३४) अभियोगिन = न्यायालय में वादी,
(३५)यथायोग्य = योग्य, उचित, सही
(३६) कथायोग = बातचीत के मध्य
(३७) प्रयोग = साधन, उपाय,
(३८) उद्योग = कार्य, कर्तव्य, पद, परिश्रम
(३९) अनुयोग = धार्मिक चिन्तन, टीका-टिप्पण
(४०) योग्य = उचित, सही,
(४१) प्रव्रज्यायोग = ज्योतिष का एक योग जो सन्यास का निर्देशक
(४२) योगापत्ति = प्रचलन में परिवर्तन
(४३) विधियोग = भाग्य का बल या प्रभाव
(४४) क्रमयोग = नियमित ढंग से
(४५) योगेश = याज्ञवल्क्य का विशेषण
(४६) योगशास्त्र = योगदर्शन
(४७) नियोगः = सही, यथार्थ
(४८) योगपीठम्= योग का अभ्यास करते समय बैठने की विशेष मुद्रा
(४९) ब्रह्मयोगः = ब्रह्मज्ञान का अनुशीलन या अभिग्रहण
(५०) प्रतियोगिन् = प्रतिरूप, जोड़ का, प्रतियोगी
(५१)संयोगिन् = मिलने वाला
(५२)योगिनी = शिव या दुर्गा की सेविकाओं की टोली
(५३)योगदण्डः = योग की शक्ति से युक्त छड़ी,जादू की छड़ी”
(५४)अयोग्य = जो योग्य न हो,अनुपयुक्त,निरर्थक”
(५५) अभियोगः= आरोप,दोषारोपण,पूर्वपक्ष
(५६) प्रयोगविद् = जो किसी वस्तु के व्यवहार को जानता हैं
(५७) योगाभ्यासी= जो योग का अभ्यास करता है
(५८)योगेन्द्र = याज्ञवल्क्य का विशेषण
(५९)योगबलम् = जादू की शक्ति
(६०) क्रियायोगः= तरकीब और साधनों का प्रयोग
(६१) योगसमाधि = आत्मा का गूढ़ भावचिन्तन में लीन होना
(६२) आयोग = किसी उद्देश्य से रची गयी समिति
(६३) समाधियोगः = ध्यान-मन का अभ्यास
(६४)योगाचार्यः =योग दर्शन का अध्यापक
(६५) योगः= जूआ
(६६) हठयोगः= योग की एक विशेष रीति या भावचिन्तन व मनन का अभ्यास
(६७) मनोयोग = दत्त चित्तता, खूब ध्यान देना”
(६८) समुद्योग = सक्रिय चेष्टा, ऊर्जा”
(६९) स्वरसंयोग = ध्वनि या स्वरों का मेल
(७०) योगमाया = दुर्गा का नाम
(७१) योगक्षेमः = धार्मिक कार्यो के निमित्त कल्पित संपत्ति
(७२) निरुद्योग = निश्चेष्ट, निकम्मा, आलसी, सुस्त
(७३) योगासन = सूक्ष्मभावचिन्तन के अनुरूप अंग-स्थिति
(७४) कर्मयोगः= सक्रिय चेष्टा, उद्योग

संदर्भ: (क) एम. आर. काले (संस्कृत व्याकरण),(ख) बाहरी का अंग्रेज़ी-हिन्दी कोश, (ग) यास्क लिखित निरुक्त, (घ) लेखक के व्याख्यान (च) भाषाविज्ञान की भूमिका -देवेन्द्रनाथ शर्मा।
(छ) भारतीय विचार मंच -लेखक कॅ लिफॉर्निया के विद्वानों समक्ष दो व्याख्यान,(ज) अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति सम्मेलन का प्रमुख व्याख्यान।

11 COMMENTS

  1. सर क्या योग शब्द योनि से प्राप्त हुआ है
    कहने का अभिप्राय है कि योनि- वह जो जीव को जगत से एक कर दे। अर्थार्त योनि जे माध्यम संभोग क्रिया में दो आत्माओ का योग भी होता है रतगार्ट एक भी हो जाती है।
    इस कारण अंग्रेज़ी से प्राप्त uni शब्द योनि से निकल हुआ मालूम पड़ता है जैसे union ,united unisex।
    रतगार्ट योनि वह जो जीव को जगत से एक कर दे।
    क्या योनि का अंग्रेज़ी के UNI से संबंध बनता है।

    • हमारे शब्द धातु के मूल से निकलते हैं. यह शब्द युज से निकला हो, ऐसा लगता नहीं है. व्यस्तता के कारण पूरा खंगाल नहीं पाया. पुस्तक पर काम कर रहा हूँ. फिर प्रवास भी बीच में करना पडता है. आगे भी देखूँगा—-मिल जाए तो अवश्य बताऊंगा. धन्यवाद. विलम्ब के लिए क्षमा कीजिए.

  2. घञ्‌ (अ) ये कृत प्रत्यय है. घञ्‌=यह व्याकरणीय नाम है. वास्तव में ये (अ) माना जाता है.
    (पृष्ठ २७१ -संस्कृत ज्ञाननिधि–डॉ. रामविलास चौधरी से) निम्न समान उदाहरण देता हूँ.
    विशिष्ट नियमानुसार *ज* का *ग* हो जाता है.
    (१) भुज्‌+घञ्‌===>भोग,
    (२) युज्‌+घञ्‌===> योग,
    (३) बुध्‌=+घञ्‌===>बोध,

    ऐसे १८०+/- तक प्रत्यय हैं हमारे.
    लघु सिद्धान्त कौमुदी (६ भाग)–लेखक भीमसेन शास्त्री जी ने ६ भागों में पुस्तकें लिखी हैं. २५०० पृष्ठों का काम किया है. आपने ५० वर्ष लगाएँ हैं. इसके ६७% पृष्ठ शब्द रचना से ही व्याप्त है. { आप उन पुस्तकों को अवश्य देखिए}
    मैंने मात्र शब्द रचना को ही (व्याकरण नहीं) लक्ष्य कर अध्ययन का प्रयास किया है.
    सच में, उनकी उपलब्धि के सामने मेरा काम कुछ भी नहीं. मैं वास्तव में अभियांत्रिकी की दृष्टि से अध्ययन करने प्रस्तुत हुआ था.

    • नमस्कार श्री वशिष्ठ जी— आप के प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर दे रहा हूँ. आप को भीमसेन शास्त्री जी की पुस्तकों में भी देखना चाहिए. कम से कम *संस्कृत ज्ञाननिधि* तो देख ही सकते हैं.
      ————————————————————————————

      घञ्‌ (अ) ये कृत प्रत्यय है. घञ्‌=यह व्याकरणीय नाम है. वास्तव में ये (अ) की तरह ही काम करता है. पर धातु में कुछ नियमानुसार बदलाव भी होते हैं. कोई भी शब्द बिना नियम से नहीं निपजाया जाता.
      ————————————————————
      (पृष्ठ २७१ -संस्कृत ज्ञाननिधि–डॉ. रामविलास चौधरी से) निम्न समान उदाहरण देता हूँ.
      विशिष्ट नियमानुसार *ज* का *ग* हो जाता है.
      (१) भुज्‌+घञ्‌===>भोग,
      (२) युज्‌+घञ्‌===> योग,
      (३) बुध्‌=+घञ्‌===>बोध,

      ऐसे अलग अलग १८०+/- तक प्रत्यय हैं हमारे.
      लघु सिद्धान्त कौमुदी (के ६ भाग)–लेखक भीमसेन शास्त्री जी ने ६ भागों में पुस्तकें लिखी हैं. २५०० पृष्ठों का काम किया है. आपने ५० वर्ष लगाएँ हैं. इसके ६७% पृष्ठ शब्द रचना से ही व्याप्त है. { आप उन पुस्तकों को अवश्य देखिए}
      मैंने मात्र शब्द रचना को ही (व्याकरण नहीं) लक्ष्य कर अध्ययन का प्रयास किया है.
      सच में, उनकी उपलब्धि के सामने मेरा काम कुछ भी नहीं. मेरी दृष्टि में, मैं वास्तव में अभियांत्रिकी की शब्दावली दृष्टि से अध्ययन करने प्रस्तुत हुआ था. पर विषय ने मुझे ऐसा अंदर खींचा, कि, मैं इस काम में, धन्यता अनुभव करने लगा.

  3. आदरणीय मधुसूदन भाई ,
    आपका ये ज्ञानयज्ञ समयसाध्य एवं परिश्रमसाध्य है , जिसको आप निरन्तर अपने शोध की ज्ञानसमिधाओं द्वारा प्रज्ज्वलित ही नहीं रखते है,
    उसकी ज्वाला को नित्य विवर्धित भी करते रहते हैं । एक युज् धातु से ही व्युत्पन्न हुए शब्दों का जो निर्झर आपने प्रवाहित किया , वह तो सागर जैसा विशाल होगया है । आपके वैदुष्य और शोध की प्रवृत्ति के साथ ही, प्राप्त ज्ञान के प्रसारण द्वारा सामान्यजन के अज्ञान को दूर करके सत्यता के उद्घाटन का प्रयास वस्तुत: स्तुत्य और प्रशंसनीय है ।
    आपका आलेख अत्यन्त सशक्त एवं प्रभावी है , जो अंग्रेज़ी के प्रति समर्पित और उसके प्रशंसकों की आँखें खोलने वाला है । हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपकी यह सेवा अतुल्य है ।
    हाँ, इस सूची में आप “योगस्थ” और “योगनिद्रा” शब्द भी जोड़ सकते हैं ।
    सादर,
    शकुन्तला बहन

  4. (१) कही गयी बातें संस्कृत की समृद्ध शब्दसंपदा के संदर्भ में हैं या हिन्दी के? संस्कृत के समस्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त नहीं होते हैं। यह बात सही है कि हिन्दी (तथा अन्य भारतीय भाषाओंं) में संस्कृत के तमाम शब्द विद्यमान हैं किंतु सभी नहीं। ऐसा मैं सम्भव नहीं समझता हूं।

    (२) भारतीयों का अंगरेजी प्रेम अद्वितिय है। ऐसा इसलिए कि देशवासी जैसा होने का दावा करते हैं ऐसे अपने आचरण में नहीं होते। उन्हें स्वार्थलाभ हेतु अंगरेजी की अहमियत बनाये रखने से कोई परहेज नहीं क्योंकि समाज में ऐसा वर्ग उभर चुका है जो अंगरेजी के वर्चस्व से लाभान्वित हो रहा है। शासन-प्रशासन-शिक्षा-चिकित्सा-व्यवसाय सर्वत्र उन्हीं का नियंत्रण है जो अंगरेजी जानते हैं। उन्हें यह मालूम है कि अंगरेजी यहां की जनभाषा अभी तक न बन पायी है और न आगे बन पायेगी। अतः वे भविष्य में भी लाभ की स्थिति में रहेंगे। जहां लोगों को शिक्षा न मिल पा रही हो वहां वे अंगरेजी भला कहां सीख पायेंगे? अंगरेजी तो अंगरेजी स्कूलों से ही सीखी जाती है न? सरकारी स्कूलों में बच्चा दस्तखत करना सीख जाये यही बहुत है। सरकारी स्कूलों के हाल क्या हैं जो जानते हैं वही जानते हैं।

    (३) सत्तासीन लोग और उनके अधीन प्रशासन कभी नहीं चाहता कि India एवं भारत का सुविख्यात भेद मिटे। ऊंची-ऊंची आदर्शमय बातें करना उनका शगल है न कि ठोस इरादे।

    (४) किन्ही दो भाषाओं के एक-एक शब्द उच्चारण तथा अर्थ में थोड़ा साम्य रखते हों तो उनमें से एक दूसरी भाषा से लिया गया है यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा। यह मात्र संयोग भी हो सकता है। Chamber’s Dictionary तथा अंतरजाल से मुझे निम्नलिखित जानकारी मिलती है:
    Middle English: the noun from Old French us, from Latin usus, from uti ‘to use’; the verb from Old French user, based on Latin uti .
    यानी अंगरेजी का use का मूल लैटिन है। लैटिन में संस्कृत से पहुंचा हो तो मैं कुछ नहीं कह सकता।

    (५) उच्चारण के बारे में भी यह बताना जरूरी है कि संस्कृत के युज् और use (क्रियाधातुएं) में “य” की ध्वनि तो समान है किंतु एक में स्वर ध्वनि ह्रस्व है तो दूसरे में दीर्घ। इसके अलावा दूसरी व्यंजन ध्वनि एक में तालव्य सघोष ’ज’ (वर्णमाला का चवर्ग) है तो दूसरे में वह सघोष दंत्य ‘ज़’ जो उर्दू में है किंतु हिन्दी/संस्कृत में नहीं। सज्ञा use में यह दंत्य अघोष ’स’ है। दोनों शब्दों में अंतर है।

    • उन सभी बहुसंख्यक भारतीयों जो आधारभूत शिक्षा से वंचित हैं कभी अंग्रेजी नहीं सीख व समझ पाएंगे के सुख समृद्धि व सौभाग्य को ध्यान में रखते मुझे अंग्रेजी के वर्चस्व से लाभान्वित होते समाज के उस अल्पसंख्यक वर्ग से कम, उन के बल पर शिक्षित निष्क्रिय व संशयात्मक भारतीयों से अधिक आशंका रही है| उन्हें मैं अजमेर-स्थित मेयो कालेज से पढ़े कल के युवराजों की भांति देखता आया हूँ जो अन्य परिस्थितियों के बीच अंग्रेजी साम्राज्य और तथाकथित स्वतंत्रता के पश्चात उनके कार्यवाहक प्रतिनिधि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को चिरस्थाई सत्ता में बनाए रखने में सहायक रहे हैं| डॉ. मधुसूदन जी के आलेख पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे निराशा हुई है|

    • योगेन्द्र जी —आप को एक ही अनुरोध. आप सारे आलेख पढें. फिर आप को प्रश्न ही शायद नहीं रहेंगे. यास्क कॊ पढे होंगे? उच्चारण के विषय में बिल्कुल समीचीन उत्तर दिया है, यास्कने.
      ज्ञानी जब तक ज्ञान की मानसिकता नहीं छोडता, तब तक वह अपनी मनसिकता को दूसरों पर आरोपित करता रहता है. ज्ञान के मार्ग में सबसे बडा अवरोध यही होता है.
      क्षमा करें. मैं उसी राहपर था…जिसपर आप आज हैं.
      २००९ के बाद स्वयं गहराइ में जाकर चिन्तन से बदला हूँ.
      धन्यवाद
      मधुसूदन

    • योगेंद्र जी –विषय को आगे बढाने के लिए काफी आलेख डाले हैं। आप कुछ आलेख पढकर, और निरुक्त के आधारपर विषय को आगे बढाने में सहायता कीजिए। मैं ने कम से कम २ आलेख आप के लिए डाले हैं।
      प्रवास पर जाना है। वापस १६ अप्रैल को लौटूँगा। संवाद अपेक्षित है।

      https://www.pravakta.com/comparison-of-changes-in-latin-and-sanskrit-language-2/

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