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नमस्‍ते वायो। त्‍वमेव प्रत्‍यक्षं ब्रह्म।।

हृदयनारायण दीक्षित

भारतीय अनुभूति में सृष्टि पांच महाभूतों (तत्वों) से बनी है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पांच महाभूत हैं। इनमें ‘वायु’ को प्रत्यक्ष देव कहा गया है। वायु प्रत्यक्ष देव हैं और प्रत्यक्ष ब्रह्म भी। विश्व के प्राचीनतम ज्ञानकोष ‘ऋग्वेद’ (1.90.9) में स्तुति है ‘नमस्ते वायो, त्वमेव प्रत्यक्ष ब्रहमासि, त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि।’ ‘तन्मामवतु’-वायु को नमस्कार है, आप प्रत्यक्ष ब्रह्म है, मैं तुमको ही प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूंगा। आप हमारी रक्षा करें। ‘ऋग्वेद’ का यही मन्त्र ‘यजुर्वेद’ (36.9) ‘अथर्ववेद’ (19.9.6) व ‘तैत्तिरीय उपनिषद्’ (1) में भी जस का तस आया है। भारतीय अनुभूति का ब्रह्म अंध आस्था नहीं है। वह अनुभूत है, प्रयोग सिध्द है और प्रत्यक्ष है। कहते हैं, वायु ही सभी भुवनों में प्रवेश करता हुआ हरेक रूप में प्रतिरूप होता है – ‘वायुर्थेको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो वभूवः।’ सभी जीवों में प्राण की सत्ता है, प्राण नहीं तो जीवन नहीं। प्राण वस्तुतः वायु है। ऋषि सूर्य आदित्य को देखते हैं। वे भी प्रत्यक्ष देव हैं। ‘प्रश्नोपनिषद्’ में कहते हैं ‘आदित्य ह वै प्राणौ- जो आदित्य है सूर्य है, वही प्राण है। मनुष्य पांच तत्वों से बनता है। मृत्यु के समय सभी तत्व अपने-अपने मूल में लौट जाते हैं। ‘ऋग्वेद’ (10.16.3) में स्तुति है तेरी आंखे सूर्य में मिल जायें और आत्मा वायु में। ‘तैत्तिरीय उपनिषद्’ में कहा गया अग्नि तत्व अग्नि में जाए और प्राण तत्व वायु में – ‘भुव इति वायौ।’

वैदिक पूर्वज वायु को देवता जानते हैं, उसे बहुवचन ‘मरूद्गण’ कहते हैं। वे जल को भी एक वचन नहीं कहते, जल उनकी दृष्टि में आपः मातरम् है – ‘जल माताएं है।’ वे सम्पूर्ण विश्व के प्रति मधु दृष्टि रखते है। ‘ऋग्वेद’ के एक मंत्र में वे वायु को भी मधुरस से भरा पूरा पाना चाहते हैं – ‘मधुवाता ऋतायते।’ ‘वृहदारण्यक उपनिषद’् के सुन्दर मंत्र में पृथ्वी और अग्नि के प्रति मधुदृष्टि बताने के बाद वायु के लिए कहते हैं – ‘अयं वायुः सर्वेर्षां भूतानां मध्वस्य’। यह वायु सभी भूतों का मधु (सभी भूतों के पुष्पों से प्राप्त रस) है और सभी भूत इस वायु के मधु है – ‘वायोः सर्वाणि भूतानि मधु।’ सृष्टि निर्माण के सभी घटक एक दूसरे से अन्तर्सम्बंधित है। वे एक दूसरे के मधु हैं। उनके ढेर सारे नाम हैं, वे वायु हैं, प्राण हैं, वही मरूत् भी हैं। मरूत् का सीधा अर्थ है वायु। मरूद्गण शक्तिशाली देवसमूह हैं, वे रूद्र देव के पुत्र हैं। लेकिन इनके उद्भव का पता लगाना आसान नहीं। ‘ऋग्वेद’ के ऋषि वशिष्ठ की जिज्ञासा है, एक जैसे तेजस्वी ये रूद्र पुत्र कौन है? अपने जन्म के बारे में ये स्वयं जानते हैं, दूसरा कोई नहीं जानता (7.56.1-2) जन्म के बिना परिचय अधूरा है लेकिन वशिष्ठ के रचे मंत्र में उनकी बाकी बातें जगजाहिर हैं इन की माता ने इन्हें अंतरिक्ष-उदक में धारण किया था। (वही, 4) वे ऋत-सत्य का आचरण करते हैं। (वही 12) स्वयं तेज चलते है, शायद इसीलिए वे तेजी से काम करने वाले लोगों पर जल्दी प्रसन्न होते है। (वही, 19)

मरूद्गण समतावादी है धनी, दरिद्र सबको एक समान संरक्षण देते हैं। (वही 20) वशिष्ठ के रचे सूक्तों में इन्हें अति प्राचीन भी बताया गया है हे मरूतो आपने हमारे पूर्वजों पर भी बड़ी कृपा थी (वही, 23) वशिष्ठ की ही तरह ऋग्वेद के एक और ऋषि अगस्त्य मैत्रवरूणि भी मरूद्गणों के प्रति अतिरिक्त जिज्ञासु है। पूछतें हैं ‘मरूद्गण’ किसी शुभ तत्व से सिंचन करते हैं? कहां से आते हैं? किस बुध्दि से प्रेरित हैं? किसकी स्तुतियां स्वीकार करते हैं? (1.165.1-2) फिर मरूतों का स्वभाव बताते हैं वे वर्षणशील मेघों के भीतर गर्जनशील हैं। (1.166.1) वे पर्वतों को भी अपनी शब्द ध्वनि से गुंजित करते हैं, राजभवन कांप जाते हैं और जब अंतरिक्ष के पृष्ठ भाग से गुजरते हैं उस समय वृक्ष डर जाते हैं और वनस्पतियां औषधियां तेज रतार रथ पर बैठी महिलाओं की तरह भयग्रस्त हो जाती है। (वही 4, 5) वे गतिशील मरूद्गण भूमि पर दूर-दूर तक जल बरसाते हैं। वे सबके मित्र हैं। (1.167.4) यहां ‘मरूद्गण’ वर्षा के देवता है तब विद्युत से इनकी मैत्री स्वाभाविक ही है मनुष्यों के चित्त को प्रभावित करने वाली विद्युत ने इनका वरूण किया विद्युत भी इनके रथ पर साथ साथ चलती है। (वही, 5) वे मनुष्यों को अन्न पोषण देते है। (1.169.3)

वायु प्राण है, अन्न भी प्राण है। अन्न का प्राण वर्षा है। वायुदेव/मरूतगण वर्षा लाते हैं। ‘ऋग्वेद’ में मरूतों की ढेर सारी स्तुतियां हैं। कहते हैं आपके आगमन पर हम हर्षित होते हैं, स्तुतियां करते हैं। (5.53.5) लेकिन कभी-कभी वायु नहीं चलती, उमस हो जाती है। प्रार्थना है हे मरूतो! आप दूरस्थ क्षेत्रो में न रूकें, द्युलोक अंतरिक्ष लोक से यहां आयें। (5.53.8) ऋषि कहते हैं ‘रसा, अनितमा कुभा सिंध’ आदि नदियां वायु वेग को न रोकें। (वही 10) वे नदी के साथ पर्वतों से भी यही अपेक्षा करते हैं। (5.55.7) वायु प्रवाह का थमना ऋषियों को अच्छा नहीं लगता। कहते हैं हे मरूतो आप रात दिन लगातार चलें, सभी क्षेत्रों में भ्रमण करें। (5.54.4) ऋषियों का भावबोध गहरा है। वायु प्राण है, वायु जगत् का स्पंदन है। ऋषियों की दृष्टि मेें वे देवता हैं इसीलिए वायु का प्रदूषण नहीं करना चाहिए। वे जीवन है, जीवन दाता भी हैं। वाुय से वर्षा है, वायु से वाणी है। कण्ठ और तालु में वायु संचार की विशेष आवृत्ति ही मन्त्र है। गीत-संगीत के प्रवाह का माध्यम वायु हैं। गंध-सुगंध और मानुष गंध के संचरण का उपकरण भी वायु देव हैं। वायु नमस्कारों के योग्य हैं।

शरीर और प्राण-वायु का संयोग जीवन है, दोनो का वियोग मृत्यु है। वाग्भट्ट ने ठीक कहा है वह विश्वकर्मा, विश्वात्मा, विश्वरूप प्रजापति है। वह सृष्टा, धाता, विभु, विष्णु और संहारक मृत्यु है। ‘चरक संहिता’ (सूत्र स्थान, वात कलाकलीयाध्याय 12, श्लोक 8) में कहते हैं वह भगवान (परम ऐश्वर्यशाली) स्वयं अव्यय हैं, प्राणियों की उत्पत्ति व विनाश के कारण है, सुख और दुख के भी कारण हैं, सभी छोटे बड़े पदार्थो को लांघने वाले हैं, सर्वत्र उपस्थित हैं। यहां आगे शरीर के भिन्न अंगों में प्रवाहित 5 वायु का वर्णन है। फिर इनसे जुड़े रोगों का विस्तार से विवेचन है। भारतीय मनीषा से वायु को समग्रता में देखा और प्रतीकों में गाया। परम बलशाली हनुमान पवनपुत्र हैं। लंकादहन में यों ही 49 पवन नहीं चले थे। बेशक भारतीय ग्रन्थों में काव्य का प्रवाह है लेकिन कौन इंकार करेगा कि वायु का प्रदूषण हजारों रोगों की जड़ है। प्राणवायु के लिए ही लोग सुबह-सुबह टहलने निकलते हैं, जहां वायु सघन है, वहां के जीवन में नृत्य है। जंगलों में वायु सघन है। भारत का अधिकांश प्राचीन ज्ञान वनों/अरण्यों में ही पैदा हुआ था।

वायु देव के अध्ययन और उपासना पर भी हमारे पूर्वजों ने बड़ा परिश्रम किया था। अध्ययन चिन्तन की भारतीय दृष्टि में वायु प्रकृति की शक्ति है। उन्होंने वायु का अध्ययन एक पदार्थ की तरह किया है। भारतीय दृष्टि में वे सृष्टि निर्माण के पांच महाभूतों से एक महाभूत हैं, उनका अध्ययन जरूरी है लेकिन दिव्य शक्ति की तरह उनको प्रणाम भी किया जाना चाहिए। ‘ऋग्वेद’ के ऋषि मरूद्गणों का जन्म, स्वभाव वर्षा लाने का उनका काम ठीक से जाना चाहते हैं लेकिन नमस्कारों के साथ। यूरोपीय विद्वान सूर्य का भी अध्ययन कर रहे हैं, भारतीय ऋषि सूर्य का अध्ययन उनसे ज्यादा कर चुके हें। सूर्य यहां देवता हैं, तेजोमय सविता हैं, सो तत्सवितुर्वरेण्य है। ‘चरक संहिता’, ‘आयुर्विज्ञान’ का आदरणीय महाग्रन्थ है। इसके 28वें अध्याय (श्लोक 3) में आत्रेय ने बताया है – ‘वायुरायुर्बलं वायुर्वायु र्धाता शरीरिणाम’। वायु ही आयु है। वायु ही बल है, शरीर को धारण करने वाले भी वायु ही हैं। कहते हैं यह संसार वायु है, उसे सबका नियन्ता गाते है – ‘वायुर्विश्वमिदं सर्वं प्रभुवायुश्च कीर्तितः।’ यहां ‘कीर्ततः’ शब्द ध्याान देने योग्य है। अर्थात् वायु को सर्वशक्तिमान बताने की परम्परा पुरानी है, पहले से ही गायी जा रही है।

पाकिस्तान की अमन पसंद जनता को सिर्फ़ भारत ही बचा सकता है.

श्रीराम तिवारी

स्वाधीन भारत की जनता ने अपने अतीत के झंझावतों,विदेशी आक्रमणों,जन-आकांक्षाओं,स्वाधीनता-संग्राम की अनुपम अद्वतीय नसीहतों से भले ही बहुत कम सीखा है.भले ही आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक असमानता और ज्यादा विद्रूप और भयावह हो चुकी हो किन्तु एक मायने में भारत की वैचारिक परिपक्वता वेमिसाल है;भारत ने अपने तथाकथित स्वर्णिम अतीत से यह निश्चय ही सीखा है की हम भागते हुए कायरों पर वार नहीं करते.हम किसी संकटग्रस्त व्यक्ति {जैसे की ओसामा या दाउद}या संकटग्रस्त राष्ट्र {जैसे की पाकिस्तान}पर छिपकर वार {जैसे की अमेरिका ने किया} नहीं करते.हमें अपनी तमाम खामियों,तमाम दुश्वारियो,तमाम चूकों के वावजूद अपनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर नाज है.हमें अपनी तमाम राजनैतिक पार्टियों में बैठे कतिपय निहित स्वार्थियों के वावजूद शीर्षस्थ नेतृत्व की सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता पर नाज़ है.

जब संसद पर हमला हुआ,जब कारगिल-द्रास-बटालिक और पूंछ पर हमला हुआ तो कुछ भावुक भारतीयों ने दवाव बनाया की पाकिस्तान पर हमले करने का वक्त आ गया है किन्तु देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई ने देश की नीति का अनुशरण करते हुए सब्र से काम लिया.जब कंधार अपहरण काण्ड हुआ तब भी हमले की बात उठी किन्तु आदरणीय जसवंतसिंह जी ने अपने देश के नागरिकों को जीवित भारत लाकर एक शानदार काम किया था भले तब अटलजी को मजबूरन ही सही सेकड़ों आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था. किन्तु बडबोले ढपोर शंखियों ने उनकी और एन डी ये की जमकर लानत-मलानत की थी.तब कांग्रेस विपक्ष में थी और जोर-शोर से पाकिस्तान पर भारत के हमले का आह्वान कर रही थी.जब मुंबई में दौउद,करीम लाला,हाजी मस्तान और कसाब ने हमला किया तो सत्ता में कांग्रेस थी और विपक्ष में भाजपा के वयानवीर लगातार चिल्ला रहे हैं की-नक़्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का”

यह एक राजनैतिक स्थाई भाव है अतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सहज संभाव्य है किन्तु देश में शिक्षित मूर्खों का भी एक खास किस्म का स्थाई भाव है की अमन और शांति ,विकाश और खुशहाली,का एजेंडा दूर हटाओ -चलो अब एक काम करें -धधकती आग में कूंद पड़ें याने पाकिस्तान पर हमला कर उसे नेस्त नाबूद कर दें! इन आधे अधूरे अर्ध विक्षिप्त मानसिकता के अंध-राष्ट्रवादियों को चाहिए की वे चाहें तो शौक से अपनी हसरत पूरी करें और जिस तरह जातक कथा के बन्दर ने नाइ की देखा -देखीं उस के उस्तरे से अपनी गर्दन काट ली थी ;उसी तरह इन स्वनाम धन्य देशभक्तों को कानूनन छूट मिलनी चाहिए कीअमेरिका की देखा-देखी पाकिस्तान या जहां कहीं भी भारत के दुश्मन व्यक्ति ,समूह या राष्ट्र मिलें वो उन्हें नष्ट करने के लिए या स्वयम को रणाहूत करने के लिए प्रस्थान कर सकें.लेकिन यह भारतीय सिद्धांत नहीं हो सकता क्योकि भारत अमेरिका नहीं है.क्योंकि रिसर्च अनालेसिस विंग याने रा सी आई ये नहीं हैं.आई एस आई ने अमेरिका की जो मदद की वो भारत की मदद क्यों करेगी?अमेरिका ने ओसामा को पाला,अमेरिका ने आई एस आई को पाला,अमेरिका ने पाकिस्तानी फौज को पाला और अमेरिका ने पाकिस्तान को पाला.भारत ने इनमें से किसी को नहीं पाला.भारत ने सिर्फ आस्तीनों में सांप पाले हैं .भारत का दर्द पाकिस्तान नहीं है भारत का दर्द चीन नहीं है.भारत का दर्द भारत के अन्दर है.

कस्तूरी कुंडल बसे ,मृग ढूंढे वन माहि ….

ऐंसे घट-घट राम हैं ,दुनिया जाने नाहिं…….

 

अभी २२ मई की आधी रात को पाकिस्तान के कराची स्थित नौसेना वेस पर तहरीके तालिवान के २२ आतंकवादियों ने हमला किया और दर्जनों पाकिस्तानी फौजी मारे गए.यह बताने कीजरुरत नहीं की उन जेहादियों ने १८ घंटे तक पाकिस्तानी फौज से लोहा लिया.और अंत में जन्नत को प्रस्थान करते हुए पाकिस्तान में मर्मान्तक चीत्कार छोड़ गए हैं.अमेरिका के हाथों ओसामा-बिन-लादेन की मौत के बाद अब तक पाकिस्तान में लगभग बीस हमले हो चुके हैं.ये हमले या तो अमेरिका के ड्रोन हेलीकाप्टरों ने किये या पाकिस्तान स्थित आतंकियों ने.यह सिलसिला तब और तेज हो गया जब आई एस आई के चीफ शुजा पाशा ने और विदेश सचिव ने यह फ़रमाया की अब यदि किसी ने ऐंसी गुस्ताखी {जैसी अमेरिका ने ओसामा को मरने में की} की तो हम भी जबाब देंगे.

भारत के नेत्रत्व ने इस नाज़ुक वक्त में काफी सूझ बूझ का परिचय दिया है.यदि भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविर नष्ट करने की कोशिश की होती या कहीं भी रंच मात्र छेड़-छाड़ की होती तो पूरा पाकिस्तान जो आज आपस में बुरी तरह विभाजित है -एक हो जाता.आतंकी भी पाकिस्तान को नहीं भारत को ही निशाना बनाते.अमेरिका-चीन और भारत के सभी पड़ोसी भारत को आँख दिखाते.पाकिस्तान की लिजलिजी दरकती-सरकती हुई बदरंग सी तस्वीर को चमकाने का मौका भारत ने नहीं दिया यह भारत की बेहतरीन रणनीति है और पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारत जैसे संयमी सहिष्णु राष्ट्र को भ्रतात्व भाव से न देखकर अमेरिका और चीन की चालों का मोहरा बनकर अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारी है.ये पाकिस्तान की बदकिस्मती है.

यदि हम भारत के लोग पाकिस्तान की अमन पसंद जनता तक दोस्ती और भाईचारे का पैगाम पहुंचाएंगे तो भारत में छिपे आश्तीन के साँपों को दूध पिलाने वाली आई एस आई और भारत से सनातन बैर रखने वाली पाकिस्तानी फौज को जैचंद और मीरजाफरों का टोटा पड़ जाएगा..

होशियारी वह नहीं की आव देखा न ताव और मख्खी को मारने के लिए किसी का हाथ ही काट दें.शुजा पाशा ने ,कियानी ने या मालिक साहब ने सोचा होगा की एव्टावाद में खोई राष्ट्रीय अस्मिता की जलालत से छुटकारा पाने का काश भारत कोई मौका दे दे और फिर पाकिस्तान में फौजी हुकूमत कायम की जाये.भले ही भारत की फौजें पाकिस्तान के चार टुकड़े कर दें.कम से कम इस जिल्लत और बदनामी से छुटकारा तो मिले की उधर “ओसामाजी” को छुपाने के अपराध में दुनिया पाकिस्तान के हुक्मरानों को झूंठा मान चुकी है ,इधर ओसामाजी को जान बूझकर मरवाने के आरोप में विश्व इस्लामिक आतंकवाद ने पाकिस्तान को बर्बाद करने का संकल्प ले लिया है.

आतंकवादी यदि पाकिस्तान पर कब्ज़ा कर लें तो भारत को खुश होने की जरुरत नहीं.उस सूरत में भारत और पाकिस्तान की आवाम पर आतंकियों के हमले और तेज होते चले जायेंगे.इस लिए वर्तमान दौर की लोकतान्त्रिक हुकूमत{पाकिस्तान की}और भारत की लोकतंत्रात्मकधर्मनिरपेक्ष

ताकतों को चाहिए की अभी अपनी-अपनी उर्जा अनावश्यक व्यय न करें.ताकि उस दौर में जब आतंकवाद चरम पर हो तो डटकर मुकाबला किया जा सके.भारत इअसी रास्ते पर निरंतर प्रयत्नशील है.पाकिस्तान में भी काफी लोग हैं जो अमनपसंद हैं किन्तु आई एस आई और फौज की विस्वशनीयता तार तार हो चुकी है.सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया?

ई-प्रशासन के युग में साइबर अपराध के बढ़ते दुष्प्रभाव

डाँ. रमेश प्रसाद द्विवेदी

आप लोगों को आजकल एक नई आवाज सुनाई दे रही होगी और वह है ‘ई-प्रशासन’ E-Governance, ‘इलेक्ट्रानिक प्रशासन’ अथवा ‘आय. टी. एडमिनिस्टे्रशन’ (Electronic Governance or IT Administration)। ई-प्रशासन वैकल्पिक प्रशासन है (E- Governance is the alternative government.)। ई-प्रशासन ऐसा शासन है जो कहीं भी, कभी भी, उपलब्ध है (E- Governance is Government any time any where.)। ई-प्रशासन सक्षम सरकार, सर्वश्रेष्ठ सरकार, एवं प्रभावी सरकार (E-Governance is really, E-nabled Government, E-xellent- Government and E-ffective Government) है। ई-प्रशासन का मतलब स्मार्ट गवर्नमेन्ट से है। स्मार्ट (SMART- S- Simple, M- Model, A-Accountability, R-Responsibility & T- Transparency) अर्थात इसका मतलब यह है कि सूचना तकनीकी के उपयोग से सरकार स्मार्ट हो जाएगी।

वर्तमान में प्रशासन के लिए Governance शब्द का प्रचलन है। आज तक प्रशासन संचालन का अधिकार सरकार का एकाधिकार माना जाता रहा है, क्योंकि उसके पास संप्रभु शक्ति के प्रयोग की क्षमता नहीं है। आगे चलकर वाणिज्य और औद्योगिक निगमों के क्रियाकलापों के लिए ‘कार्पोरेट गवर्नेस’, शब्द का प्रचलन एक फैशन बन गया है।

ई-प्रशासन से लाभ :

ई-प्रशासन सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित करने का अच्छा माध्यम है। इन्टरनेट, ईमेल, के माध्यम से सरकार अपने नागरिको से सीधा संवाद स्थापित करने में सक्षम हो हुई है। परम्परागत प्रक्रियाओं से सरकार को छुटकारा प्राप्त हुआ है। कार्य करने के तरीकों में निरन्तर सुधार देखा जा रहा है। दूरदराज के गांवों को जिला या राज्य या केन्द्र के मुख्यालयों से जोड़कर देरी कम की जा सकी है। आम व्यक्तियों का वित्त एवं समय की बचत होने लगी है। इस प्रशासन से सूचना का अधिकार को अमली जामा पहनाना आसान हुआ है। नौकरशाही के बोझ एवं प्रशासन में निर्णय चुस्त हुए है। उदाहरण- जैसे ही नागपुर शहर में कोई बाहरी ट्रक घुसता है उसका बजन, उसका नंबर सहित पूरे ढ़ाचे की वीडियोग्राफी हो जाती है। इसकी सूचना महाराष्ट्र राज्य के केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष में पहुंच जाती है, जिससे स्थानीय अधिकारियों की मनमानी व सौदेवाजी के अवसर कम हुए है।

साइबर अपराध :

ई-प्रशासन के माध्यम से आज कार्य करना आसान हुआ है और दूरसंचार के साधनों के तेजी से विकास के साथ साथ देश में इन्टरनेट, के तेजी से बढ़ने की संभावना है लेकिन इसके साथ ही ई-प्रशासन के युग में सूचना प्रौद्योगिकी का दुरूपयोग के कारण सायबर अपराधों के बढने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता हैं। सायबर अपराधों की गति और भौगोलिक सीमाओं में निरन्तर वृध्दि हो रही है।

जल, थल और आकाश तीनों क्षेत्रों में अपराधों का विस्तार हुआ है। अपराधियों की पहुंच सभी स्थानों पर है। शासन कोई भी कानून बनाती है उसके पहले उसका तोड़ निकाल लिया जाता है। एक पुरानी कहावत है-” सौ राजा की बुध्दि एक चोर में होती है। आपने अक्सर सुना होगा कि बुजुर्ग लोग हमेशा कहा करते है कि ”चोर ही चांदनी रात न भावा” अर्थात अपराधियों की बुध्दि अंधकार में चलती है। लेकिन संगणक के विकास होने से सूचना व प्रौद्याोगिकी के क्षेत्र भी अपराधों और अपराधियों की पहुंच से बाहर नहीं है। यह चोरी प्रकाश में होने लगी है की कमरे बैठा व्यक्ति हाथ में एक माउस लेकर उतना नुकसान पहुचा सकता है जितना बंम और तोप भी नहीं पहुंचा सकते है।

आज के मानव का जीवन संगणक से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र के अपराध क्या-क्या हो सकते है, इसे जानना प्रत्येक व्यक्ति के लिए जानना आवश्यक है। कोई भी आपराधिक कार्य जो संगणक अथवा संचार माध्यमों से जुड़ी है, वह साइबर क्राइम है। उदाहरण के तौर पर संगणक के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, हैकिंग, अश्लील संदेश, संप्रेषण टेलीफोन तकनीकी का दुरूपयोग, राष्ट्र विरोधी गतिविधियां, वायरस का फैलाव, निजी हित में संगणक का उपयोग, कंपनी नीति के विपरीत गतिविधि, संगणक नेटवर्क पर आक्रमण, प्रोनोग्राफी को प्रोत्साहन, अंतरिक एवं गुप्त सूचनाओं की चोरी, बौध्दिक संपदा की चोरी आदि गतिविधियां व कार्यकलाप साइबर अपराध कहा जाता है।

सर्व विदित है कि ई-प्रशासन के क्षेत्र में डाटा और सूचना दो चीजे हैं। डाटा संगणक में भंडारित रहते हैं और सूचना डाटा के आधार पर संप्रेषित की जाती है। इस प्रकार की अपराधिक गतिविधियां डाटा से जुड़ी होती है और वे अपने पीछे इलेट्रानिक प्रमाण छोड़ जाती है। साइबर अपराधों की जांच के लिए संगणक फरसेनिक एक सक्षम विधा है, जो विश्व स्तर पर विकसित हो रही है, इसमें सूचना प्रौद्योगिकी एवं और संगणक क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति रहते है।

ई-प्रशासन का महत्व व चुनौतियों के अध्ययन से कहा जा सकता है कि साइबर आपरध इस प्रकार है:-

वित्तीय घोखाधड़ी- इस प्रकार के अपराध में डिजिटल डाटा से खिलवाड़, वित्तीय संस्थाओं जैसे कैप, कार्यालय आदि के डाटा को गलत ढंग से प्राप्त करना आदि।

संगणक, मोबाईल और टेलीफोन नेटवर्क से संबंधित अपराध- इस प्रकार के अपराध में मुख्य रूप से हैकिंग, सेकिंग, ई-मेल के माध्यम से धमकी देना, अज्ञात ईमेल, मोबाईल फोन पर अश्लील संदेश देना, वायरस आदि शामिल है।

बौध्दिक धोखधड़ी – इस प्रकार के अपराध में पेटेंन्ट प्रोडक्ट की चोरी, साप्टवेयर पायरेसी, म्यूजिक पायरेसी आदि शामिल है।

गैर-साइबर अपराधों को विस्तारित करने में संगणक का उपयोग- इस प्रकार के अपराध में मुख्य रूप से सेनोग्रसफी से संबंधित है। इसमें संगणक में माध्यम से राष्ट्र विरोधी व समाज विरोधी कार्यकलाप भी शामिल हैं।

साइबर विधि :

सभी देशों ने साइबर अपराधियों को नियंत्रित करने के संबंध में विविध कानून बनाये है जिससे साइबर अपराधियों को पकड़ने व दंडित करने की प्रक्रिया भी तेजी से विकसित हो रही है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की विविध धाराओं के तहत सयबर अपराधियों के खिलाफ कार्यवाई की जा रही है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की कुछ धाराओं में संशोधन भी किया गया है ताकि अपराधियों के विरूध्द और सहजता पूर्वक कार्यवाही की जा सके। धारा 69 ए के तहत पुलिस को अधिकार है कि किसी भी बेबसाइट को ब्लाक कर सकती है। इंडियन कापी राइट एक्ट के तहत भी साइबर अपराधियों के विरूध्द कार्यवाही की जा रही है। साइबर फारसेनिक विशषज्ञों को और भी सशक्त करने की दिशा में चिंतन भी किया जाना चाहिए क्योकि इस क्षेत्र के अपराधी आपराध के नये नये तरीके अपना लिए है। देश के कई बड़े शहर हैदराबाद, बगलौर, लखनउ, दिल्ली, चेन्नै, आदि में साइबर थाने खेले गये है। पुलिस को उचित प्रशिक्षण देने के उपरांत इस थानों में पदस्थ किया जाता है। भारत में जुलाई 2009 में दिल्ली में देश के प्रथम साइबर रेग्यूलेटरी कोर्ट का सुभारंभ किया गया। यहा साइबर अपराधियों की सुनवाई होगी साइबर अपराधों की रोकथाम की दिशा में यह उल्लेखनीय कदम है। सइबर अपराध भारत, चीन, ब्राजील, कनाडा आदि देशों में बढ़ोत्तरी देखी गई है। भारत में काल सेन्टर के कारण साइबर अपराध की संख्या में बृध्दि हो रही है। 2000 में साइबर क्राइम में भारत का स्थान विश्व में 14 वां था। इन अनंत अपराधों पर नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए आवयश्क है साइबर ला का पालन कठोरता से किया जाय और दंड के प्रावधानों का प्रचार-प्रसार किया जाय।

साइबर अपराध को कम करने हेतु सुझाव :

सइबर अपराध में संगणक का प्रयोग या तो हथियार के रूप में किया जाता है या वह टारगेट रहता है। इसे टू द कम्प्यूटर और बाय द कम्प्यूटर भी कहा जा सकता है। इन अपराधों के पीछे मुख्य मूल उददे्श्य यह है- ब्लैकमेल, धमकी, लालच, बदले की भावना, गुप्त सूचनाओं को प्राप्त करना होता है। कई बार लाटरी के माध्यम से भी निजी जानकारियां मांगी जाती है तथा नौकरी व वितीय लाभ देने के प्रलोभन अपराधियों द्वारा दिया जाता है।

ई-वाणिज्य और ई-प्रशासन को बढ़ाने देने के लिए पुलिस एवं जाए अभिकरणों को प्रशिक्षित करके इस योग्य बनाया जाय कि वे साइबर अपराध की जांच कर सके।

पुलिस में संगणक के क्षेत्र अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रशिक्षित करके इन अपराधियों से निपटने के योग्य बनाना चाहिए।

साइबर अपराधों से निपठने के लिए ई-अदलत का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें संगणक अपराध के जानकारों का सहयोग लिया जाना चाहिए।

किसी के बैंक खाते में कहीं से पैसे आता है तो तुरंत संबंधित वित्तीय संस्था से संपर्क करना चाहिए।

कानून के साथ ही साथ संगणक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वकीलों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि वे इन अपराधों से निपटने की अच्छी तरह से पैरवी कर सकें।

ई- मेल, दूरभाष संख्या हर किसी को नहीं देना चाहिए। यदि परेशानी हो तो पुलिस को जानकारी देना चाहिए।

असंदिग्ध ईमेल या अपराध का स्वरूप दर्शाते हुए आन लाईल अथवा आवेदन पर अपना विविरण देते हुए पुलिस को शिकायती आवेदन पत्र देना आवश्यक है जिसमे प्राप्त संदेश का पूर्ण विवरण हो और साथ ही इस प्रकार के ईमेल के जबाव देन से बचना चाहिए।

यदि प्रशासन एवं आम जनता इन सुझावों पर विचार कर कार्य करती है तो निश्चित ही इन अपराधों व भावी समस्याओं से बचा जा सकेगा।

संदर्भ

https:/www/mpinfo.org/news

लोक प्रशासन एवं शोध प्रविधि- बी. एल. फाड़िया, साहित्य भवन पब्लिकेशन- 2007.

लोकमत मराठी 1 नवम्बर 2010

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

11 करोड़ी है कसाब!

26/11 के हमले का इकलौता जीवित आतंकवादी अजमल कसाब की सुरक्षा पर कितना खर्च हुआ है एक साल में क्या आप इस बात से वाकिफ हैं? अगर नहीं तो हम बताते हैं आपको कि मुंबई की आर्थर रोड़ जेल में बंद देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले की सजा काट रहे कसाब की सुरक्षा में लगी इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस (आईटीबीपी) ने दस करोड़ 87 लाख रूपए का बिल महाराष्ट्र सरकार को भेजकर उसकी नींद उड़ा दी है। राज्य के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल के अनुसार सरकार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को ताकीद किया है कि कसाब की सुरक्षा मंे लगी आईटीबीपी को हटाकर महाराष्ट्र की पुलिस को सुरक्षा की जवाबदेही सौंपी जाए। सूत्रों की मानें तो आईटीबीपी के महानिदेशक आर.के.भाटिया के हस्ते सरकार को 28 मार्च 2009 से 30 सितंबर 2010 तक की समयावधि के लिए यह देकय भेजा गया है, जिसमें आर्थर रोड़ जेल में चोबीसों घंटे 200 कमांडो की तैनाती दर्शाई गई है। एक सजा पा चुके और साबित हो चुके दुर्दांत आतंकवादी के लिए भारत सरकार द्वारा करोड़ों रूपए पानी मं बहाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश की टेक्स चुकाने वाली जनता मंहगाई के बोझ तले दबी मर रही है, लोग कहने पर मजबूर हैं कि यह तो नेहरू गांधी के सपनों का भारत कतई नहीं है।

कुटिल राजनैतिक परिपक्वता आ रही है युवराज में!

कल तक अपने रणनीतिकारों और सलाहकारों की बैसाखी पर चलने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी में अब आधुनिक और कुटिल राजनैतिक परिपक्वता आती जा रही है। पिछले दिनों भट्टा परसौला गांव जाकर उन्होंने अन्य सियासी दलों को हलाकान कर दिया। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायधीश वी.आर.कृष्णा के पत्र के जवाब में उन्होंने वर्तमान में चल रही सियासी समझ बूझ का बेहतरीन नमूना पेश किया। राहुल लिखते हैं कि भ्रष्टाचार से वे भी आहत हैं और बिना किसी शोर शराबे के इससे निपटने का उपक्रम कर रहे हैं, क्योंकि हीरो बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। जस्टिस कृष्णा ने राहुल का साफ कहा था कि अगर वे वाकई संवेदनशील हैं तो सत्ता में बैठे भ्रष्ट लोगों के खिलाफ उन्हें हल्ला बोलना चाहिए। अब राहुल बाबा क्या जवाब देते! दरअसल आजादी के बाद छः दशकों से अधिक समय बीत चुका है और गैर कांग्रेसी सरकार एक दशक भी नहीं रही, इसका मतलब क्या यह निकाला जाए कि नेहरू गांधी परिवार की नाव के वर्तमान खिवैया ही भ्रष्टाचार के पोषक हैं?

ठाकरे बंधुओं की नजर कलमाड़ी पर!

सियासी करवटों को बेहतर आंकने वाले शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे की नजरें इन दिनों कामन वेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के पूर्व प्रमुख सुरेश कलमाड़ी की हरकतों पर टिकी हुई हैं। महाराष्ट्र की सियासत में सुरेश कलमाड़ी और शरद पवार के बीच की अनबन किसी से छिपी नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस आरंभ से ही पवार की काट के तौर पर कलमाड़ी का कार्ड खेलती आई है। अब कांग्रेस ने कलमाड़ी को निष्कासित कर दिया है, सो ठाकरे एण्ड संस उन पर डोरे डालना चाह रहे हैं। नजर तो राज ठाकरे की भी है इन पर किन्तु राज कलमाड़ी की मटमैली छवि से अपना दामन गंदा करने उतारू नहीं दिख रहे हैं। बाला साहेब चाहते हैं कि कलमाड़ी की पतवार के जरिए वे पुणे संसदीय सीट की वेतरणी पार कर लें, किन्तु कामन वेल्थ गेम्स में उनकी थू थू से अब कलमाड़ी की साख पुणे में भी धूल धुसारित हुई है। अगर ठाकरे एण्ड संस ने कदम आगे बढ़ाए तो हो सकता है कांग्रेस द्वारा कलमाड़ी के अन्य चिट्ठों को भी आम कर दिया जाए।

उमर दराज मांटेक की बढ़ी परेशानी

देश के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया पिछले कुछ दिनों से मन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निदेशक बनने के ख्वाब मन में संजोए बैठे होंगे। अब मोंटेक की तंद्रा टूटने ही वाली समझिए। दरअसल विश्व की चुनिंदा प्रमुख संस्थाओं में उमर दराज लोगों को जिम्मेदारी से बचा जाता है, यह तो भारत गणराज्य के नीति निर्धारक हैं जो कब्र में पांव लटकने के बाद भी उनके उमर दराज कांधों पर देश का बोझ डाला करते हैं। आईएफएम में चल रही बयार के अनुसार आईएमएफ के नियमों के अनुसार 65 पार के शख्स को मुद्रा कोष का अध्यक्ष बनने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। मोंटेक का दुर्भाग्य है कि वे 67 साल के हैं, और आईएमएफ भारत गणराज्य की संस्था नहीं है जिसके नियम कायदे अपनी मन मर्जी के हिसाब से बनाया जा सके। नियम कहते हैं कि इसके मुखिया का कार्यकाल पांच सालों का होता है और कोई भी व्यक्ति सत्तर साल की आयु तक ही इस पद पर रह सकता है, इस लिहाज से मोंटेक दौड़ से आऊट हो गए हैं।

संवेदनहीन है केंद्र सरकार!

कांग्रेस नीत केंद्र सरकार पर देश के सवा करोड़ में से नब्बे फीसदी लोग तो संवेदनहीन होने का आरोप लगाते होंगे, पर पहली मर्तबा एक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार पर संवेदनहीन होने का तमगा जड़ा है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाईड के रसायनिक कचरे के विनिष्टीकरण के मामले में केंद्र के लटकाउ रवैए पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि लोगों की पीड़ा पर केंद्र सरकार संवेदनहीन है। 26 साल से केंद्र सरकार द्वारा इस मामले में बैठक और वैज्ञानिक प्रतिवेदन बुलाने के अलावा कुछ नहीं किया जाना निश्चित तौर पर निंदनीय कहा जाएगा। देश के हृदय प्रदेश की अदालत की फटकार के बाद भी मोटी चमड़ी वाले जनसेवक और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अन्य संबंधित मंत्रालयों की कान में जूं भी नहीं रेंगी है। अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश से जनादेश प्राप्त लोक सभा सदस्य और एमपी कोटे वाले मंत्री कमल नाथ, कांति लाल भूरिया, अरूण यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी रियाया के दुखदर्द को लोकसभा में किस संजीदगी से उठाते हैं?

करूणा के रिसते जख्मों पर कांग्रेस का मरहम बेअसर

तमिलनाडू की सियासत में आए भूचाल फिर सत्ता परिवर्तन के बाद एम.करूणानिधि की पुत्री कनिमोरी को जेल की हवा खानी पड़ रही है। करूणानिधि समझ गए हैं कि अब वे पावरलेस हैं अतः उनकी सुनवाई सोनिया दरबार में होने वाली नहीं। पिछले दिनों कांग्रेस के प्रबंधकों ने करूणानिधि के रिसते घावों पर यह कहकर मरहम लगाने का प्रयास किया कि आपकी बेटी कनीमोरी अंदर है तो हमारे सुकुमार सुरेश कलमाड़ी भी तो उसी का दंश झेल रहे हैं। लगता है करूणानिधि को कांग्रेस की इस सफाई से कोई सरोकार नहीं रहा। हाल ही में करूणा की दिल्ली यात्रा पर उन्होंने साफ कह दिया कि उनके पास समय भी था और मौका भी पर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलना मुनासिब नहीं समझा। इसका कारण साफ है कि उनकी बेटी कनिमोरी जेल में बंद है तो वे सोनिया से कैसे मिलते? इसके दो अर्थ लगाए जा रहे हैं अव्वल तो यह कि यह सब कुछ जयललिता के इशारे पर हुआ, दूसरे सीबीआई स्वतंत्र जांच एजेंसी न होकर अब सोनिया गांधी के घर की लौंडी बन गई है।

करोड़पति मंत्री पर दो लाख का जुर्माना

एक समय था जब देश आजाद हुआ और सांसद विधायकों ने देश की हालत देखकर वेतन तक लेने से इंकार कर दिया था, आज जमाना बदल गया है, जनसेवक विधायक, मंत्री सांसद अपना वेतन बढ़वाने संसद और विधानसभा में असभ्यों के मानिंद चीखते चिल्लाते नजर आते हैं। आज जनसेवकों की संपत्ति दिन दूनी रात चैगनी बढ़ चुकी है। बेहिसाब विदेशी और भारतीय मुद्रा रखने के आरोप में गोवा के शिक्षा मंत्री अतानसियो मोनसेरेट पर सीमा शुल्क कानून और फेमा नियमों के उल्लंघन के आरोप में दो लाख रूपए का जुर्माना लगाया गया है। गौरतलब है कि मंत्री महोदय दो अप्रेल को जब दुबई जा रहे थे, तब उनके पास से 25 हजार अमेरिकी डालर मूल्य के ट्रेवलर चेक, 70 हजार दिरहम और सवा लाख रूपए नकद मिले थे। मंत्री महोदय के पास यह रकम कहां से आई इस बात से भारत सरकार को लेना देना नहीं बस, मंत्री महोदय दो लाख रूपए का जुर्माना और सीमा शुल्क कानून की धारा 125 के तहत पांच लाख रूपए का जुर्माना अदा कर अपनी राशि वापस पा सकते हैं। होना यह चाहिए कि मंत्री से इस राशि के स्त्रोत पूछे जाने चाहिए।

देश काल परिस्थिति के अनुसार जीना सीखो

जनसेवक और लोकसेवकों को देश काल और परिस्थििति के अनुसार जीना सीखना चाहिए। प्रधानमंत्री कार्यालय मंे राज्य मंत्री रहे वर्तमान में महाराष्ट्र के निजाम पृथ्वीराज चव्हाण जब अपने सूबे महाराष्ट्र में होते हैं तो मराठी को पूरी तवज्जो देते हैं। इसका कारण शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा भाषा और क्षेत्रवाद का बीज बोना है। जब महाराष्ट्र मंे शिवसेना और मनसे द्वारा उत्तर भारतीयों की पिटाई की जा रही थी, तब ये कांग्रेस सरकार खामोशी अख्तियार किए हुए थी। जब महाराष्ट्र के नेता दिल्ली आते हैं तो मराठी को तजकर हिन्दी और अंग्रेजी को पूरी तवज्जो देने लगते हैं। हाल ही में पृथ्वीराज चव्हाण दिल्ली आए और पत्रकारों से मुखातिब हुए। एक पत्रकार मित्र ने जब मराठी में सवाल दागा तो पृथ्वीराज चव्हाण की भवें तन गईं, दो टूक शब्दों में तल्खी के साथ बोल पड़े -‘‘अभी मराठी नहीं, हिन्दी या अंगे्रजी में सवाल पूछा जाए।‘‘ समझ से परे है मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी का क्षेत्र से नाता, वस्तुतः यह सब तो गोरे ब्रितानियों के राज में होता था।

खेलगांव के अतिरिक्त फ्लेट टूटेंगे!

कामन वेल्थ गेम्स हुए आठ माह से अधिक का समय बीत चुका है, पर उसके सर से विवादों की छाया हटने का नाम ही नहीं ले रही है। कामन वेल्थ गेम्स में हुए आकंठ भ्रष्टाचार के कारण आयोजन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी जेल की हवा खा रहे हैं। अब खिलाडि़यों के लिए बनाए गए मकानों में निर्धारित संख्या से कहीं अधिक संख्या मंे बनाए जाने का मामला प्रकाश में आया है। खेलगांव में निर्धारित संख्या से ज्यादा बन गए 17 फ्लेट को तोड़ने का मन बना लिया है दिल्ली विकास प्राधिकरण ने। उस वक्त यह माना जा रहा था कि इन 17 में से 6 फ्लेट डीडीए को तो 11 निर्माण करने वाली एम्मार एमजीएफ को दिए जाएंगे। इन मकानांे को अगर बेचा जाता तो उससे 50 करोड़ रूपयों से अधिक की आमदनी होती। दरअसल ये फ्लेट भूतल में हैं और डीडीए इसे पुश्ता बांध की जमीन मानता है। डीडीए ने फैसला ले लिया है इन 17 फ्लेट को नेस्तनाबूत करने का।

परिचालक की बिटिया को सलाम

राजस्थान चमत्कारों की धरा है। छोटे से गांव सोडा की महिला सरपंच बनने वली छवि राजावत ने लोगों की जुबान पर अपनी चर्चा दर्ज करवाई तो जोधपुर के ही एक अन्य गांव की नीतू सिंह ने प्रतिकूल परिस्थियों को हराकर सिविल सेवा की परीक्षा पास कर राजस्थान राज्य सेवा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। राजस्थान के एक परिचालक की पुत्री नीतू सिंह ने सारी व्याधियों को पार कर राजस्थान में राजस्व सेवा में स्थान पाया है। नीतू देश भर के लिए आदर्श मानी जा सकती है, क्योंकि वैसे भी पुत्र और पुत्री में देश में भेद किया जाता है, इस वर्जना को तोड़कर नीतू ने एक नई इबारत लिखी हैै। नीतू का कहना है कि उसके पिता जब उसकी हर इच्छा को पूरा करने के लिए कंडक्टरी कर दिन रात एक कर रहे थे तो उसका भी फर्ज बनता था कि वह अपने पिता के सपनों को साकार करने के लिए हर चंद कोशिश करे। आखिर नीतू ने अपने पिता की आंखों में खुशी के आंसू लाकर उनका चेहरा गर्व से उंचा कर ही दिया।

गर्भवती महिलाओं की तीमारदारी में अभिनव पहल

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद द्वारा गर्भवती महिलाओं और शिश मृत्युदर रोकने की दिशा में ठोस पहल करने की तैयारी की जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को निशुल्क दवाएं और पोषक आहार मुहैया करवाने की कार्ययोजना बनाई जा रही है। केंद्र सरकार की कोशिश है कि इस योजना को जून माह से ही अमली जामा पहनाया जा सके। केंद्र सरकार द्वारा सूबाई सरकरों से कहा गया है कि वे भी अपने अस्पतालों में प्रसव के लिए भर्ती होने वाली महिलाओं और बीमार नवजात के लिए निशुल्क और कैशलैस अर्थात नकद विहीन सेवाएं मुहैया कराना सुनिश्चित करे। कहा जा रहा है कि इसके तहत निशुल्क दवाएं, निशुल्क आहार और घर तक पहुंचाने की निशुल्क सुविधा शमिल होगी। केंद्र सरकार की योजना तो अभिनव कही जा सकती है, किन्तु इस तरह की योजना परवान चढ़ते चढ़ते गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की बल्ले बल्ले होने लगती है, और वास्तविक जरूतरमंद अंत में जरूरतमंद ही बनकर रह जाता है।

पुच्छल तारा

ओसामा बिन लादेन क्या मारा गया उस पर लतीफों की बारिश सी होने लगी है। पाकिस्तान में हाई सिक्यूरिटी जोन में रह रहे लादेन को दुनिया के चैधरी अमरीका की फौज ने मार गिराया। लादेन की मृत तस्वीरंे आदि अब तक जारी नहीं हुई हैं, इससे संशय ही है कि लादेन को अमरीका कहीं जिंदा तो पकड़कर नहीं ले गया! बहरहाल रूड़की से दिशा कुमारी ने एक ईमेल भेजा है। दिशा लिखती हैं कि पाकिस्तान में इन दिनों ओसामा और ओबामा दोनों ही बर्निंग टापिक हैं। पाकिस्तान के हाई सिक्यूरिटी जोन में एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था -‘‘कृपया हार्न न बजाएं, यहां पाकिस्तानी सेना आराम फरमा रही है।‘‘

अपनों के सितम से बिफ़रे आचार्य धर्मेन्द्र

सरिता अरगरे

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और आरएसएस को इन दिनों हिन्दुत्व के अलंबरदार और तेज़तर्रार विहिप नेता आचार्य धर्मेन्द्र का कोपभाजन बनना पड़ रहा है। गौ सेवा संघ की जमीन सरस्वती शिशु मंदिर के कब्ज़े से छुड़ाने के लिए सागर में करीब एक हफ़्ते का अनशन नाकाम होने से आचार्य बेहद बिफ़रे हुए हैं । दरअसल आचार्य धर्मेन्द्र पिछले रविवार को सागर में अनशन पर बैठे थे। पर सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी और किसी नतीजे के पहले ही उन्हें छह दिन बाद गाय का दूध पीकर अपना आमरण अनशन खत्म करना पड़ा। अपनों के सितम से बेज़ार आचार्य संघ और भाजपा पर मतलबपरस्ती की तोहमत लगा रहे हैं।

बगैर कुछ हासिल किए मजबूरी में अनशन तोड़ने के बाद अब आचार्य धर्मेन्द्र भाजपा सरकार और आरएसएस को कोस रहे हैं। गुस्साये हिन्दूवादी नेता ने सरस्वती शिशु मंदिर पर तीखे प्रहार करते हुए संगठन को शिक्षा माफ़िया तक बता डाला। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर विश्वासघात का आरोप लगाने वाले आचार्य धर्मेन्द्र की निगाह में संघ अब ‘परिवार’ नहीं रहा बल्कि ‘तंत्र’ बन गया है । संघ में भावना, समर्पण, त्याग व प्रेम की जगह धनलोलुपता का जोर बढ़ रहा है। उन्होंने आमरण अनशन के बेनतीजा समाप्त होने को अपनी पराजय न मानते हुए संघ पर लगा कभी न मिटने वाला कलंक बताया।

कहते हैं लोहा, लोहे को काटता है। लिहाज़ा प्रदेश सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी । इस घटनाक्रम से गौ और गंगा के नाम पर हिन्दुओं को भरमाने वाली भाजपा की इन मुद्दों पर गंभीरता का सहज ही अँदाज़ा लगाया जा सकता है। आचार्य धर्मेंद्र मानते हैं, इससे हिंदुत्व और गाय के लिए नारा लगाने वालों की असलियत सामने आ गई है। उनका अनशन जमीन के लिए नहीं, बल्कि गौ-माता के लिए था। उन्होंने कहा कि स्कूल द्वारा दबाई गई जमीन गौ सेवा संघ की है। भाजपा और आरएसएस की भूमिका से खफ़ा हिन्दू नेता इसे अपने जीवन का सबसे कड़वा अनुभव बता रहे हैं। अनशन की नाकामी से निराश आचार्य इसे संघ और भाजपा की हार करार देने से भी नहीं चूकते।

आचार्य धर्मेन्द्र के मुताबिक वे वर्ष 1980 से सागर के गौ सेवा संघ के संरक्षक हैं और आरएसएस से भी जुडे़ रहे हैं, लेकिन गौ सेवा संघ की जमीन सरस्वती शिशु मंदिर संगठन के कब्जे से मुक्त कराने के मामले में संघ ने उनके साथ धोखा किया है। उन्होंने कहा कि संघ का अनुषांगिक संगठन सरस्वती शिशु मंदिर छल, षड़यंत्रों व कुचक्रों का जाल बुनने वाला शिक्षा माफिया है। संघ के अनुषांगिक संगठनों के समूह को संघ परिवार कहा जाता रहा है, लेकिन सागर के जहरीले अनुभव के बाद अब वह संघ परिवार को ‘संघ तंत्र’ कहने को विवश हैं। संघ पर “यूज एंड थ्रो” की पश्चिमी संस्कृति अपनाने का आरोप जड़ते हुए उन्होंने कहा कि अपनों ने मुझे खो दिया। उन्हें अब मेरी जरूरत नहीं है।

गौ सेवा संघ और सरस्वती शिशु मंदिर के बीच जमीन को लेकर विवाद चल रहा है। जानकारों का कहना है कि गौ सेवा संघ को 1927 में पचास हजार वर्ग फीट से अधिक जमीन दान में मिली थी। इसे गौ शाला बनाने और गौ संरक्षण के उद्देश्य से दिया गया था। 1972 में गौ सेवा संघ ने सरस्वती शिशु मंदिर को दो कमरे किराए पर दिए थे। इसके बाद वर्ष 1980 में सरस्वती शिशु मंदिर के पदाधिकारियों ने उनसे ही शिशु मंदिर के नए भवन का शिलान्यास करा लिया और लगातार विकास करते रहे। जब आचार्य धर्मेन्द्र को जमीन हथियाने की सूचना मिली तो उन्होंने आरएसएस के लोगों से बात की पर नतीजा नहीं निकला। पंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र गौ सेवा संघ और सरस्वती शिशु मंदिर के बीच चल रहे भूमि विवाद को सुलझाने के मकसद से सागर आए थे। जमीन मुक्त कराने के लिये सरस्वती शिशु मंदिर के प्रवेश द्वार पर 21 मई से सत्याग्रह शुरू किया था, जो 24 मई को आमरण अनशन में तब्दील हो गया। सरकार की बेरुखी के कारण आमरण अनशन 27 मई को बेनतीजा खत्म करना पड़ा।

आचार्य धर्मेन्द्र सरीखे कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के कटु अनुभव संघ और भाजपा पर सत्ता क सुरुर चढ़ने की पुष्टि करते हैं। वैसे भी जिसे पीने का शऊर और आदत भी नहीं हो, उस पर नशा कुछ जल्दी ही तारी हो जाता है। जनता को संस्कारों की घुट्टी पिलाने वाले संघी सत्ता के मद में इस कदर चूर हो चुके हैं कि अपनी ही नीतियों और सिद्धांतों को रौंदते हुए बढ़े चले जा रहे हैं, गोया कि प्रदेश में सत्ता की चाबी महज़ पाँच सालों के लिये नहीं आने वाली कई पुश्तों को सौंप दी गई है। लोकतंत्र में नये किस्म का सामंतवाद लाने वालों को आगाह ही किया जा सकता है। बहरहाल आचार्य धर्मेन्द्र के आक्रोश को नसीहत समझकर सबक सीखने की गुंजाइश तो रखना ही चाहिए। और फ़िर –

कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय , जा खावत बौरात है, वा पावत बौराय।

एक सेक्यूलर की मौत

विजय कुमार

परमपिता परमेश्वर ने इस सृष्टि के निर्माण में बड़ा शारीरिक और मानसिक श्रम किया। उन्होंने धरती-आकाश, सूरज-चांद-सितारे, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पर्वत-नदियां, जलचर-थलचर.. न जाने क्या-क्या बनाया। फिर भी वे एक प्रजाति बनानी भूल गये। वह है सेक्यूलर।

सेक्यूलर की कोई परिभाषा आज तक निश्चित नहीं हुई। इसके लिए भारतीय भाषाओं में कोई अच्छा शब्द भी मुझे नहीं मिला। कुछ लोग उन्हें पंथनिरपेक्ष कहते हैं, तो कुछ धर्म और शर्मनिरपेक्ष; पर हम उन्हें सेक्यूलर ही कहेंगे।

तो साहब, हमारे मोहल्ले में भी एक सेक्यूलर जी रहते थे। नाम तो उनका माता-पिता ने कुछ इन्सानों जैसा ही रखा था। विद्यालय और फिर दफ्तर में वह नाम ही प्रयोग होता था; पर उनमें सेक्यूलरवाद के कीटाणु इतने प्रबल थे कि लोग उन्हें सेक्यूलर सर ही कहते थे। उन्हें भी इसमें कुछ गर्व का अनुभव होता था। यद्यपि उनका मत था कि वे सुपर ही नहीं सुपर डीलक्स सेक्यूलर हैं।

पर बहुत से लोगों की जुबान पर यह नाम नहीं चढ़ सका। इसलिए कोई उन्हें सुकलर कहता, तो कोई सिकलर। कुछ लोग उनके पूर्वजों को किसी विशेष काम से संबंधित समझ कर उन्हें कलीगर या फिर सीधे कारीगर ही कहने लगे। इसी तरह उनका जीवन बीत रहा था।

सेक्यूलर जी अपनी सबसे बड़ी विशेषता यह बताते थे कि वे किसी धर्म को नहीं मानते हैं; पर इसका वास्तविक अर्थ यह था कि वे हिन्दुओं की हर चीज से घृणा करते थे। मुसलमान और ईसाइयों के कार्यक्रम और पर्वों में वे उत्साह से जाते थे; पर होली, दीवाली, दुर्गा पूजा, गुरुपर्व या रक्षाबंधन आदि उन्हें पोंगापंथियों के पर्व लगते थे। हिन्दू विरोध से संबंधित कोई समाचार यदि अखबार में छपा हो, तो वे उसे मोटे पेन से घेर देते थे, जिससे सब उसे जरूर पढ़ें। इन आदतों से उनके बच्चे भी दुखी थे। इसलिए कई लड़के होने पर भी कोई उनके साथ रहना पसंद नहीं करता था।

ऐसे ही समय बीतता गया और एक दिन वे चल बसे। उनकी पत्नी पहले ही अतीत हो चुकी थीं और बच्चे बहुत दूर रहते थे। बच्चों को खबर की गयी, तो व्यस्तता का बहाना बनाकर उन्होंने मोहल्ला कमेटी से ही उनका क्रियाकर्म करने को कह दिया।

मोहल्ला कमेटी के लोग बहुत अच्छे थे; पर उनकी अंतिम क्रिया कैसे हो, इस पर मतभेद उत्पन्न हो गये। प्रश्न यह था कि चूंकि वे सेक्यूलर थे, इसलिए उन्हें जलाएं या दफनाएं ? जलाने पर वे हिन्दू सिद्ध हो जाएंगे और दफनाने पर मुसलमान या ईसाई। यदि उन्हें भगवा चादर से ढकें, तो वे हिन्दू मान लिये जाएंगे, हरी से ढकने पर मुसलमान और सफेद से ईसाई। यदि गंगाजल छिड़केंगे, तो हिन्दू कहलाएंगे, आब ए जमजम से मुसलमान और होली व१टर से ईसाई। मोहल्ले वाले उनके सेक्यूलरपने से परेशान तो थे; पर वे चाहते थे कि मरने के बाद जो भी हो, उनके मन के अनुकूल ही हो।

इस चक्कर में कई घंटे बीत गये; पर कोई निर्णय नहीं हो सका। अंतरजाल बाबा को सब समस्याओं का समाधान मानने वाले एक नवयुवक ने अपने लेपट१प पर इसका समाधान खोजना चाहा। वहां जो सुझाव मिले, उन्हें पढ़कर सबने सिर पीट लिया।

उसके अनुसार सेक्यूलर जी चूंकि किसी एक धर्म, पंथ, सम्प्रदाय या मजहब को नहीं मानते थे, इसलिए उन्हें किसी विशेष रंग की चादर में लपेटना, किसी विशेष जल से नहलाना और शमशान में जलाना या कब्र में दफनाना उचित नहीं है; लेकिन फिर क्या हो ? इस बारे में पूछा गया, तो उसने बड़ी अजीब बातें बतायीं।

उसने कहा कि सेक्यूलर जी को फटे, पुराने चिथड़ों में लपेटकर गंदे नाले के पानी से नहलाएं। फिर एक गधागाड़ी में डालकर उन्हें शहर से बहुत दूर जंगल में पेड़ पर उल्टा लटका दें, जिससे गीदड़, कुत्ते, बिल्ली, चूहे, कौए, सियार, मक्खी, मच्छर आदि उनके मृत्युभोज का आनंद उठा सकें।

मोहल्ले वालों ने फिर उनके लड़कों से पूछा। लड़कों ने कहा कि जो आपकी समझ में आये, कर लें। पिताजी ने जीवित रहते हमें कम दुखी नहीं किया, अब मरने के बाद तो चैन से रहने दें।

झक मार कर मोहल्ले वालों ने यही किया। पता नहीं सेक्यूलर जी के शरीर को सद्गति मिली या नहीं। आत्मा तो उनमें थी ही नहीं, इसलिए उसकी बात सोचना व्यर्थ है।

प्रशासनिक मशीनरी, सेवानिवृत्ति पश्चात नियुक्ति एवं सेकुलरिज़्म… (दो मामले)……

सुरेश चिपलूनकर

पहला मामला :- 23 अप्रैल 2011 को केरल के सर्वाधिक देखे जाने वाले मलयालम चैनल पर लगातार दिन भर एक “ब्रेकिंग न्यूज़” चल रही थी… वह “ब्रेकिंग” और महत्वपूर्ण न्यूज़ क्या थी? एक आईपीएस अफ़सर शिबी मैथ्यूज़ ने समय पूर्व सेवानिवृत्ति लेकर केरल राज्य के मानवाधिकार आयोग (Kerala Human Rights Commission) का अध्यक्ष पदभार संभाला। क्या वाकई यह ब्रेकिंग न्यूज़ है? बिलकुल नहीं, परन्तु अगले दिन के अखबारों में जो चित्र प्रकाशित हुए उससे इस कथित महत्वपूर्ण खबर के पीछे का राज़ सामने आ गया। राज्य के एक “सरकारी समारोह” में श्री शिबी मैथ्यूज़ द्वारा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद के शपथ ग्रहण समारोह में प्रमुख चर्चों के कम से कम 25 बिशप और आर्चबिशप परम्परागत परिधान में मौजूद थे। ऐसा लग रहा था मानो कार्यक्रम किसी चर्च में हो रहा हो एवं मानवाधिकार आयोग जैसा महत्वपूर्ण पद न होते हुए किसी ईसाई पादरी के नामांकन एवं पदग्रहण का समारोह हो। क्या यह उचित है? ऐसा प्रश्न पूछना भी बेवकूफ़ी है, क्योंकि “सेकुलरिज़्म” के लिये हर बात जायज़ होती है।

सवाल है कि सरकार द्वारा अपनी मनमर्जी से, बिना किसी अखबार में विज्ञापन दिये, “चमचागिरी” की एकमात्र क्वालिफ़िकेशन लिये हुए किसी ईसाई अधिकारी की मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को “ब्रेकिंग न्यूज़” कहा जा सकता है? परन्तु विगत 8-10 वर्षों में इलेक्ट्रानिक एवं प्रिण्ट मीडिया में जितनी गिरावट आई है उसे देखते हुए इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वामपंथियों द्वारा केरल में ईसाई और मुस्लिम वोटों के लिये “कसी हुई तार पर कसरत” की जा रही है, सन्तुलन साधा जा रहा है। यह “तथाकथित ब्रेकिंग न्यूज़” भी एक तरह से “चर्च का शक्ति प्रदर्शन” ही था। राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर पहुँचने के लिये किसी “योग्यता” की दरकार नहीं होती, यह इससे भी सिद्ध होता है कि जिस पुलिस विभाग में मानवाधिकार का सबसे ज्यादा उल्लंघन होता है उसी विभाग के मुखिया को उससे वरिष्ठ अन्य अधिकारियों को नज़र-अंदाज़ करते हुए इस महत्वपूर्ण पद पर बैठाना ही अपने-आप में “कदाचरण” है। केरल सरकार के इस कदम से दो मकसद सधते हैं, पहला तो यह कि वह अफ़सर सदा “पार्टी कैडर” का ॠणी हो जाता है तथा उससे चाहे जैसा काम लिया जा सकता है, और दूसरा यह कि प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जाने के बाद (Hand Chopping of Professor by Muslims) जो चर्च, विभिन्न कट्टर मुस्लिम संगठनों के सामने “दुम पिछवाड़े में दबाए” बैठा था, उसके ज़ख्मों पर मरहम भी लगता है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी स्वीकार कर चुके हैं कि अधिकतर देशों में आतंकवाद एवं अस्थिरता के पीछे प्रमुख कारण “धर्मान्तरण” (Conversion in Tribal Areas of India) ही है। कंधमाल, डांग एवं कर्नाटक-तमिलनाडु के भीतरी इलाकों में मिशनरी द्वारा किये जा रहे आक्रामक धर्मान्तरण की वजह से फ़ैली अशांति इस बात का सबूत भी हैं, ऐसी स्थिति में एक पुलिस अफ़सर को रिटायरमेण्ट लेते ही मानवाधिकार आयोग जैसे पद पर नियुक्त करना, सरकारी कार्यक्रम में आर्चबिशपों की भीड़ एकत्रित करना वामपंथियों की बदनीयती सिद्ध करता है। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद का शपथ ग्रहण हमेशा से एक सादे समारोह में किया जाता है, जहाँ चुनिंदा लोग ही मौजूद होते हैं, यह एक बहुत ही साधारण सी प्रक्रिया है, कोई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण नहीं। इसलिये इस बार शपथ ग्रहण समारोह को इतना भव्य बनाने और हजारों रुपये फ़ूंकने की कोई तुक नहीं बनती थी, परन्तु यदि ऐसा नहीं किया जाता तो “चर्च” अपना “दबदबा” कैसे प्रदर्शित करता? वहीं दूसरी तरफ़ सरेआम बेनकाब होने के बावजूद, वामपंथ भी “धर्म एक अफ़ीम है” जैसा फ़ालतू एवं खोखला नारा पता नहीं कब तक छाती से चिपकाए रखेगा?

इस सम्बन्ध में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी गई है कि राज्यपाल के दफ़्तर से इस सरकारी कार्यक्रम में आमंत्रित किये जाने वाले अतिथियों की सूची सार्वजनिक की जाए, एवं आर्चबिशपों के अलावा किन-किन धर्मावलंबियों के प्रमुख धर्मगुरुओं को इस “वामपंथी सेकुलर पाखण्ड” में शामिल होने के लिए बुलाया गया था।

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दूसरा मामला :- यह मामला भी “तथाकथित सेकुलरिज़्म” से ही जुड़ा है, वामपंथियों एवं सेकुलरों के “प्रिय टारगेट”, नरेन्द्र मोदी से सम्बन्धित। गुजरात दंगों के नौ साल बाद अचानक एक आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को “आत्मज्ञान” की प्राप्ति होती है एवं वह सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा (Sanjeev Bhatt Affidavit) दायर करके यह उचरते हैं कि दंगों के वक्त हुई बैठक में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि “मुसलमानों को सबक सिखाना बहुत जरूरी है…”। यानी रिटायरमेण्ट करीब आते ही उन्हें अचानक नौ साल पुरानी एक बैठक के “मिनट्स” याद आ गये और तड़ से सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये। मीडिया भी इसी के इन्तज़ार में बैठा था, संजीव भट्ट से सम्बन्धित इस खबर को उसने 3 दिनों तक “चबाया”, मानो हलफ़नामा दायर करना यानी दोषी साबित हो जाना… यदि कोई फ़र्जी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर करके कहे कि हसन अली ने उसके सामने सोनिया गाँधी को 10 अरब रुपये देने का वादा किया था, तो क्या उसे मान लिया जाएगा? लेकिन हमारा बिका हुआ “सेकुलर भाण्ड मीडिया” एकदम निकम्मे किस्म का है, यहाँ “बुरका दत्त” जैसे सैकड़ों दल्ले भरे पड़े हैं जो चन्द पैसों के लिये किसी के भी खिलाफ़, या पक्ष में खबर चला सकते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि एक हलफ़नामा दायर करने के एवज़ में केन्द्र की कांग्रेस सरकार संजीव भट्ट पर अब आजीवन मेहरबान रहेगी…। संजीव भट्ट के इस झूठे एफ़िडेविट की कीमत, उनके किसी लगुए-भगुए के NGO को “आर्थिक मदद”, किसी बड़े केन्द्रीय प्रोजेक्ट में C EO की कुर्सी… या किसी राज्य के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष पद से लेकर राज्यपाल की कुर्सी तक भी हो सकती है… यानी जैसा सौदा पट जाए।

अब समय आ गया है कि भ्रष्टाचार विरोधी अपनी मुहिम में बाबा रामदेव इस बिन्दु को भी अपने आंदोलन में जोड़ें, कि संविधान में प्रावधान बनाया जाए कि कोई भी वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, सेवानिवृत्ति के बाद कम से कम दस वर्ष तक किसी भी निजी क्षेत्र की कम्पनी में कोई कार्यकारी अथवा सलाहकार का पद स्वीकार नहीं कर सके, साथ ही किसी भी सरकारी पद, NGO अथवा सार्वजनिक उपक्रम से लेकर किसी भी पद पर नहीं लाया जाए। 30 साल की नौकरी में जनता को चूना लगाने के बावजूद “भूखे” बैठे, IAS-IPS अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद सीधे घर बैठाया जाए, क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले मोटे-मोटे पदों (सतर्कता आयोग, चुनाव आयोग, सूचना अधिकार आयोग, प्रशासनिक आयोग, बैंकों के डायरेक्टर, संघ लोकसेवा आयोग इत्यादि) के लालच में ही ये अधिकारी नीतियों को तोड़ने-मरोड़ने, नेताओं की चमचागिरी और मक्खनबाजी करने, भ्रष्टाचार-कदाचार को बढ़ाने में लगे रहते हैं… इस “भ्रष्ट दुष्प्रवृत्ति” का सबसे अधिक फ़ायदा कांग्रेस ने उठाया है और अपने मनपसन्द “सेकुलर”(?) अधिकारी यहाँ-वहाँ भरकर रखे हैं।

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संजीव भट्ट वाले मामले में एक पेंच और भी है… भारत के “हिन्दू विरोधी मीडिया” के किसी भी “तेज” और “सेकुलर” चैनल के मूर्ख संवाददाताओं ने यह नहीं बताया कि संजीव भट्ट के “पुराने कारनामे” क्या-क्या हैं, तथा संजीव भट्ट ने अपना हलफ़नामा उसी नोटरी से क्यों बनवाया, जिस नोटरी से तीस्ता सीतलवाड ढेरों फ़र्जी हलफ़नामे बनवाती रही है? (False Affidavits by Teesta Setalwad) जी हाँ… “विशेष योग-संयोग” देखिये कि सादिक हुसैन शेख नामक जिस नोटरी से तीस्ता ने गुजरात दंगों के फ़र्जी हलफ़नामे बनवाए, उसी नोटरी से संजीव भट्ट साहब ने भी अपना हलफ़नामा बनवाया, है ना कमाल की बात? एक कमाल और भी है, कि नोटरियों की नियुक्ति सरकार की तरफ़ से होती है जिसमें वे एक निश्चित शुल्क लेकर किसी भी दस्तावेज का “नोटिफ़िकेशन” करते हैं, लेकिन सादिक हुसैन शेख साहब को सन 2006 से लगातार तीस्ता सीतलवाड के NGO की तरफ़ से 7500/- रुपये की “मासिक तनख्वाह” भी दी जाती थी…। सादिक शेख को हर महीने “सिटीजन फ़ॉर पीस एण्ड जस्टिस” (CJP) की तरफ़ से IDBI Bank खार (मुंबई) शाखा के अकाउण्ट नम्बर 01410000105705 से पैसा मिलता था, जो कि शायद फ़र्जी नोटरी करने का शुल्क होगा, क्योंकि तीस्ता ने तो गवाहों से कोरे कागजों पर दस्तखत करवा लिये थे। ऐसे “चतुर-सुजान, अनुभवी, लेकिन दागी” नोटरी से एफ़िडेविट बनवाने की सलाह संजीव भट्ट को ज़ाहिर है तीस्ता ने ही दी होगी और “वरदहस्त आशीर्वाद” का संकेत दिल्ली से मिला होगा…

लेकिन जैसा कि पहले ही कहा गया है, यदि वामपंथी सरकारें चर्च को खुश करें, पापुलर फ़्रण्ट को तेल लगाएं, ईसाई प्रोफ़ेसर के हाथ काटने वालों पर मेहरबान रहें… तो वह भी “सेकुलरिज़्म” है। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में झूठे हलफ़नामे पेश करके सतत न्यायिक लताड़ खाने वाले भी “सेकुलरिज़्म” का ही उदाहरण पेश कर रहे हैं…। परन्तु जब रिटायर होते ही “मलाईदार” पद सामने हाजिर हो, तो “सेकुलरिज़्म” को और मजबूत करने के लिये “कुछ भी” किया जा सकता है…। “साम्प्रदायिक” तो सिर्फ़ वही व्यक्ति या संस्था होती है, जो हिन्दू या हिन्दुत्व की बात करे… समझ गए ना!!!

धर्मशाला की आनन्ददायक यात्रा

लालकृष्‍ण आडवाणी

मैं हाल ही में धर्मशाला की आनन्ददायक यात्रा करके लौटा हूं। कुछ समय पूर्व प.पू. दलाई लामा नई दिल्ली के पृथ्वीराज रोड स्थित मेरे निवास पर आए थे। तब उन्होंने सुझाया था कि कभी मैं उनके स्थान धर्मशाला आऊं।

मैं वहां जाने की काफी दिनों से इच्छा रखता था जिसे उन्होंने तिब्बत से निर्वासित होने के बाद अपने सैकड़ों तिब्बतियों के साथ इसे अपना घर बनाया है। जैसाकि मैंने अपने पूर्ववर्ती ब्लॉग में लिखा था कि दलाई लामा से मेरी अंतिम भेंट सन् 2010 के कुंभ मेले के दौरान ऋषिकेश में हुई थी और मैं उनकी सहज अच्छाईयों और उससे भी ज्यादा उनकी बालसुलभ सादगी पर गहराई से प्रभावित रहा हूं। अत: जब लोकसभा में मेरे सहयोगी और हमारी पार्टी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने 17 मई को बंगलौर और पंजाब के बीच खेले जाने वाला आईपीएल क्रिकेट मैच धर्मशाला में देखने को आमंत्रित किया तो मैंने उन्हें यह पता लगाने को कहा कि क्या उन दिनों में दलाई लामा वहां पर उपलब्ध होंगे। उन्होंने जानकारी लेकर बताया कि तिब्बती नेता विदेश गए हुए हैं परन्तु 16 मई को वापस लौट रहे हैं।

कुछ दिनों के पश्चात् उन्होंने मुझे बताया कि यदि मैं 17 मई का आईपीएल मैच देखने के लिए आता हूं तो 18 मई को दलाई लामा मेरे लिए दोपहर भोज आयोजित करना चाहेंगे। और इस तरह धर्मशाला जाने का मेरा कार्यक्रम बना।

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17 मई को अपनी सुपुत्री प्रतिभा के साथ मैंने कांगड़ा जिले के धर्मशाला जाने के लिए किंगफिशर एटीआर विमान से जाने की टिकट बुक कराई। हमने देखा कि विमान अमेरिकी लड़कों और लड़कियों से भरा है। हमें बाद में पता चला कि वे सब अमेरिकी यहूदी हैं जो दलाई लामा से मिलने जा रहे हैं।

धर्मशाला के लिए किंगफिशर की प्रतिदिन दो उड़ाने हैं, और हमें पता चला कि उस दिन दोनों उड़ानों में अमेरिकी यहूदी यात्रा कर रहे थे। जहां तक मुझे जानकारी मिली कि सभी के सभी लगभग 61, पहली बार भारत आए थे और यहां से वापसी में उन्होंने इस्राइल जाने की योजना बनाई हुई है।

ये सभी 61 अमेरिकी यहूदी वापसी में दिल्ली और मुंबई भी जाने वाले थे। अत: मैंने उन्हें अपने घर चायपान पर निमंत्रित किया। उन्होंने इसे सहर्ष तुरंत स्वीकारा और 19 मई को हमारे निवास पर एक घंटे से ज्यादा रुके तथा जाना कि कैसे भाजपा ने, भारत को इस्राइल के साथ सामान्य कूटनीतिक सम्बंध कायम करने में अपना योगदान दिया।

जनवरी, 1992 की शुरुआत में मैं ‘ओवरसीज़ फ्रेण्ड्स ऑफ बीजेपी‘ की स्थापना सम्मेलन हुेतु अमेरिका गया था। इस यात्रा में मुझे अमेरिका के दस विभिन्न स्थानों पर जाने का अवसर मिला। स्थान-स्थान पर यहूदी समुदाय के लोग मुझसे मिले और पूछा: ”हम भारत के मित्र हैं। हम चाहते हैं कि भारत मजबूत शक्ति बने और वैश्विक मामलों में प्रमुख भूमिका निभाए। लेकिन आपके देश ने अभी तक इस्राइल के साथ पूर्ण कूटनीतिक संबंध क्यों नहीं स्थापित किया है?” उनको मेरा उत्तर था: ”मेरी पार्टी इस्राइल के साथ पूर्ण सामान्य संबंधों की पक्षधर है। लेकिन हम सत्ता में नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही सत्ता में है, इसकी विरोधी है, और इसी तरह कम्युनिस्ट पार्टियां भी।”

अमेरिकी से लौटने के बाद मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से मिलने गया। मुझे ज्ञात हुआ कि कुछ सप्ताहों के भीतर ही वे स्वयं अमेरिका जाने वाले हैं। अमेरिकी यहूदी समुदाय के समूहों से मेरी मुलाकात की जानकारी देने के बाद मैंने कहा ”नरसिम्हा राव जी, आप जाने से पहले इस्राइल के साथ पूर्ण कूटनीतिक संबंध कायम करने का साहसी निर्णय कीजिए।” उनका जवाब था, ‘मैं भी ऐसा ही चाहता हूं लेकिन मेरी पार्टी तैयार नहीं है।‘

मैंने उनसे कहा, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस्राइल के प्रति हमारी नीति अभी भी भारत में कुछ मुस्लिमों की प्रतिक्रिया की काल्पनिक आशंका से ग्रसित है। आखिरकार सभी अनेक मुस्लिम देश भी इस्राइल के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने की योजना तैयार कर रहे हैं। मिस्र और तुर्की तो यह कदम उठा ही चुके हैं। यहां तक कि फिलीस्तीनी भी इस्राइल के साथ सह-अस्तित्व से रहना चाहते हैं। इसलिए, यदि कुछ हमारे राष्ट्रीय हित में है तो हमें उसे उन लोगों को बताना चाहिए जो इसके विरोध में हो सकते हैं। किसी भी हालत में, हमारी विदेश नीति, घरेलू दबावों के मिथ्या विचारों से निर्लिप्त होनी चाहिए।” राव ने यह कहते हुए उत्तर दिया, ‘मैं सहमत हूं। मैं इसे मंत्रियों का समूह बनाकर सिफारिश करने को कहूंगा ताकि इस निर्णय पर सभी की भागीदारी हो सके।‘

उन्होंने अपने वचन को निभाया। उन्होंने केबिनेट की एक जीओएम (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) गठित की। जीओएम ने इस संबंध में अपनी सिफारिश की। आज इस्राइल के साथ भारत के सामान्य संबंध हैं, और यह वाजपेयीजी के एनडीए शासन के 6 वर्षों में और मजबूत हुए।

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ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में क्रिकेट पिच से जुड़ी मेरी स्मृतियां चालीस वर्ष से ज्यादा की हैं। मैं तब दिल्ली महानगर परिषद का चेयरमैन था। अपनी पत्नी कमला के साथ मैं शिमला गया था। शिमला को आधार बनाकर जिन अन्य स्थानों पर जाना हुआ उनमें मैं चैल गया था जहां पटियाला महारानी का चैल महल था, जिसे एक सुंदर होटल में बदल दिया गया था।

वस्तुत: चैल कभी पटियाला राजपरिवार की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था। माना जाता है कि पटियाला के एक पूर्व महाराजा अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से एक कमांडर-इन-चीफ की बेटी के साथ लुप्त हो जाने के कारण यह इस अस्तित्व में आया।

चैल का प्रसिध्द क्रिकेट मैदान सन् 1893 में पहाड़ी के शिखर को समतल कर बनाया गया। यह लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर है और दुनिया का सर्वाधिक ऊंचा क्रिकेट मैदान तथा पोलो ग्राउण्ड है।

चैल पिच भले ही सर्वाधिक ऊंचाई वाली होगी, मगर हाल ही में बनकर तैयार हुआ धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम बहुत लुभावने दृश्यों वाला है जिसे देखकर कोई भी हर्षित हो सकता है। पंजाब टीम (प्रीति जिंटा के स्वामित्व वाली) और बंगलौर टीम (विजय माल्या के स्वामित्व वाली) के बीच खेले जाने वाला आई पी एल मैच काफी रोमांचक था। किंगफिशर एयरलाइन्स के माल्या उस विमान में साथ ही थे जिसमें हम आए थे। और प्रीति वहां पूरे मैच के दौरान अपनी टीम का उत्साह बढा रही थीं। मैंने कहा कि बंगलौर पहले ही अंतिम चार में पहुंच चुका है। पंजाब जो कुछ समय पूर्व तक आई पी एल की अंकतालिका में नीचे था, अब नंबर पांच पर पहुंच चुका है। इसलिए इस मैच जिसके लिए मुझे आमंत्रित किया गया है, में मेरी स्वाभाविक सहानुभूति पंजाब के साथ है। और जब रोमांचक मुकाबले के बाद वास्तव में पंजाब जीत गया, तो प्रीति ने मुझसे कहा: ‘आपका इस मैच को देखने आना मेरे लिए सौभाग्यशाली सिध्द हुआ है!‘

लेकिन जैसाकि मैंने पूर्व में लिखा कि धर्मशाला की इस यात्रा में हमारे लिए मैच से ज्यादा महत्वपूर्ण बर्फ से ढकी धौलाधार पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में बनाये गए सर्वोत्तम क्रिकेट स्टेडियम की झलक पाना था। इसके लिए राज्य सरकार और हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसाोसिएशन के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर का अभिनंदन। आकार और सुविधाओं के मामले में यह नया एच पी सी ए स्टेडियम सर्वोत्तम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्टेडियमों के समतुल्य है।

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दलाई लामा ने 18 मई की दोपहर को मुझे दोपहर भोज के लिए आमंत्रित किया। प्रतिभा और मेरे साथ-साथ उन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को भी आमंत्रित किया था। तिब्बती गुरु द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द से अपनापद और सादगी फूट रही थी। मैंने गौर किया कि वह धूमल को सदैव ‘मेरे मुख्यमंत्री‘ (माई चीफ मिनिस्टर) कह कर सम्बोधित कर रहे थे। इस मीटिंग में हमने विस्तार से तिब्बत के मुद्दे पर चर्चा की। दोपहर के भोज के उपरांत, प्रतिभा ने दलाईलामा से जाने की अनुमति मांगी और कहा ‘मै खरीददारी के लिए जा रही हूं, ‘वह दलाईलामा की यह टिप्पणी सुन कर भावविभोर हो गई ” खरीददारी ? क्या तुम्हें कुछ पैसे चाहिएं?”

दलाईलामा मैक्लोडगंज में एक सुदर और सुचारु ढंग से बनाए गये बंगले में रहते हैं, जो धर्मशाला से भी उंचे स्थान पर स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र तथा मुख्य शहर से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब हमने उनसे विदा ली तो उन्होंने हमें भगवान बुध्द का एक सुंदर तिब्बती तंखा दिया और जिस पर अंकित था कि‘ ‘सर्वाधिक सम्माननीय मित्र आडवाणीजी और प्रतिभाजी: आपकी सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूर्ण हों। मेरी प्रार्थना है: आप लोगों की सेवा करने में सफल हों।”

(टेलपीस) पश्च्य लेख

समाचारपत्र और पत्रिकाएं अभी भी ओसामा-बिन -लादेन प्रकरण पर समाचार और लेख प्रकाशित कर रहे हैं, इण्डिया टूडे में एम. जे. अकबर ने ”ऐसे मित्रों के साथ” (With friends like these) शीर्षक से एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को इसके लिए झिड़का है कि उसने अपने समूचे कर्जे को समाप्त कर सकने वाले अवसर को गंवा दिया।

अकबर लिखते हैं: ”जैसाकि अब कुछ स्वर दावा कर रहे हैं कि यदि पाकिस्तान पहले से जानता था तो क्यों उसने ओसमा को गिरफ्तार करने और मुकदमा चलाने का अपना संप्रभु अधिकार त्याग दिया बजाय अमेरिकियों की प्रतीक्षा करने जो उसका पता-पता ठिकाना ढूंढ निकालें तथा अपरिहार्य नतीजे सहें? यह विचार संभावनाओं से भरा है। यदि सलमान तसीर के हत्यारे का लाहौर में लाल गुलाबों से स्वागत किया गया और उसे हीरोनुमा माहौल मिला तो ओसमा को उनके मुकदमे के समय कितनी प्रशंसा मिलती? पाकिस्तान दाखिला फीस वसूल कर अपना कर्जा चुका सकता था।”

एम.जे. ने इसका निष्कर्ष यूं निकाला है: ”ओबामा को अपने मित्र चुनने में उतनी चिंता करने की जरुरत है जितनी उसने अपने शत्रुओं को चुनने में बरती है।”

1989 : राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़

लालकृष्‍ण आडवाणी

फ्रांसिस फुकुयामा एक देदीय्यमान राजनीतिक विचारक हैं लेकिन अनेक लोग उनसे तब सहमत नहीं हुए थे जब सन् 1992 में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दि ऍन्ड् ऑफ हिस्ट्री ऐण्ड दि लास्ट मैन‘ लिखी थी, जिसमें उन्होंने लिखा:

”आज हम जो भी देख रहे हैं वह शीत युध्द की समाप्ति मात्र नहीं है या युध्दोत्तर इतिहास के एक विशेष काल का गुजर जाना नहीं है, अपितु इतिहास का अंत कुछ ऐसा है: यह मनुष्य के वैचारिक क्रमिक विकास और पश्चिम के उदारवादी लोकतंत्र का अंतिम बिंदु है जो कि मानव सरकार के अंतिम स्वरुप में हमारे सामने है।”

हमारे देश में विधानसभाई चुनावों के संदर्भ में, जिसके परिणाम गत् सप्ताह घोषित किए गए का सर्वाधिक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है पश्चिम बंगाल से सीपीआई(एम) शासन की समाप्ति।

सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने पश्चिम बंगाल में 1977 से सरकार का कामकाज संभाला था। किसी अन्य दल को यह सौभाग्य नहीं मिला कि वह किसी राज्य में लगातार 34 वर्षों तक शासन करता रहे जैसाकि सीपीएम को मिला। और इसके बावजूद राज्य की विकासात्मक वृध्दि और शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में लोक कल्याण के अर्थों में इसकी उपलब्धियां स्पष्ट रूप से निराशाजनक रहीं।

ममता ने पश्चिम बंगाल में वह हासिल कर इतिहास में अपना स्थान बनाया है, जो और कोई हासिल नहीं कर पाया यानी राज्य से माक्र्सवादी प्रभुत्व को समाप्त कर देना।

आज भाजपा केंद्र में शासन में नहीं है लेकिन हम सात प्रदेशों में सरकारों में हैं; इसके अलावा एनडीए दो राज्यों में सत्तारूढ़ है।

नई दिल्ली में श्री वाजपेयीजी (1998 से 2004) के नेतृत्व में 6 वर्ष और उन नौ राज्यों में जहां हम सत्तारूढ़ हैं, के आधार पर मैं कह सकता हूं कि यदि केन्द्र या फिर किसी भी राज्य में हमें यह असाधारण अवसर मिला होता जैसाकि वामपंथियों को मिला, या यहां तक कि डेढ़ अथवा दो दशक भी लगातार सरकार चलाने का अवसर मिला होता तो यह विश्वासपूर्वक दावा किया जा सकता है कि उस राज्य की जनता की पूर्ण क्षमताओं का उपयोग किया गया होता और देश को दुनिया के अन्य विकसित देशों के स्तर पर पहुंचाया गया होता।

गरीबी, निरक्षरता, स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी अभाव, उर्जा की अपर्याप्ता, सड़कों, आधारभूत ढांचे के अन्य पहलुओं तथा सिंचाई इत्यादि की समस्याएं – यह सभी निश्चित रूप से इतिहास बन जातीं।

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इस संदर्भ में मुझे स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरूआती वर्षों का स्मरण हो आता है और हमसे मिलने वाले उन वामपंथी नेताओं का घमण्डी व्यवहार भी नहीं भूला जा सकता जब। जनसंघ उस समय अपनी शैशवास्था में था। मुझे केरल के एक माक्र्सवादी नेता का ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की तर्ज पर घमण्डी व्यवहार स्मरण हो आता है। उन्होंने कहा: ”ब्रिटिश कहा करते थे: ”ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता। यह कुछ समय की बात है जब हम भी ऐसा ही दावा करने लगेंगे। पहले से ही आधे से ज्यादा यूरोप हमारे नियंत्रण में है। केवल भारत में ही नहीं एशिया के सभी विकासशील देशों में कम्युनिस्ट विचारधारा को भविष्य की आशा के रूप में देखा जाता है।”

स्वतंत्रता प्राप्ति से ही भारतीय राजनीति को निकट से देखने वाले प्रेक्षक के रूप में मैं मानता हूं कि सन् 1989 जिसे फुकुयामा ने बर्लिन दीवार के गिरने और सोवियत संघ को ध्वस्त होने के चलते इतिहास के अंत के रूप में वर्णित किया, अंत नहीं है लेकिन वैश्विक इतिहास और भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ अवश्य है।

सन् 1989 कम्युनिस्ट विचारधारा के अंत की शुरूआत के रूप में निश्चित ही पहचाना जाएगा। भारत में यह अंत भले ही दो दशक बाद आया हो लेकिन यह आया है।

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भाजपा की स्थापना 5 एवं 6 अप्रैल, 1980 में नई दिल्ली में सम्पन्न हुए एक राष्ट्रीय सम्मेलन में हुई। सम्मेलन से पूर्व 4 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी की सेंट्रल पार्लियामेंटरी बोर्ड की मीटिंग हुई थी।

बोर्ड की इसी मीटिंग में पूर्ववर्ती जनसंघ के सभी सदस्यों को जनता पार्टी से बाहर निकालने का फैसला इस आधार पर लिया गया कि ये सभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं और इससे दोहरी सदस्यता का मामला बनता है तथा इसलिए जनसंघ के सदस्यों को जनता पार्टी में बने रहने नहीं दिया जा सकता।

संयोगवश 1980 में 4 अप्रैल गुडफ्राइडे था और 6 अप्रैल जिस दिन भाजपा की औपचारिक स्थापना हुई ईस्टर सण्डे था।

ईसाई मान्यताओं के संदर्भ की इन दोनों तिथियों का उल्लेख अक्सर मैं एक संदेश देने के उद्देश्य से करता हूं।

गुडफ्राइडे के दिन माना जाता है कि ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया और ईस्टर सण्डे उनके पुर्नजीवित होने का दिन माना जाता है।

भाजपा बनने के तुरंत पश्चात् पार्टी को पहला लोकसभाई चुनाव 1984 में श्रीमती गांधी की उनके सुरक्षाकर्मियों द्वारा की गई नृशंस हत्या के कुछ सप्ताह के बाद ही लड़ना पड़ा।

दिसम्बर, 1984 में हुए इन चुनावों में भाजपा ने 229 प्रत्याशी खड़े किए थे। लेकिन हम केवल 2 सीटें जीत पाए! यहां तक कि 32 वर्ष पूर्व 1952 में हुए पहले आम चुनाव में भारतीय जनसंघ ने 3 सीटें जीती थीं। अत:, यह वर्ष हमारे ग्राफ का सर्वाधिक निम्नतम बिंदु था। वास्तव में, अनेक स्थानों पर मैं अक्सर टिप्पणी करता था: हमारे लिए यह लोकसभा का चुनाव नहीं अपितु शोकसभा का चुनाव था!

लेकिन 1989 का चुनाव हमारे लिए कम महत्वपूर्ण नहीं था, जो हमारे तब के ग्राफ के उच्चतम बिंदु पर पहुंचा। 1984 में 2 सीटों से हम 1989 में 86 सीटों पर पहुंचे! और उसके पश्चात् से 1988 तक हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा जब हमें लोकसभा में 182 सीटें मिलीं तथा हमने सफलतापूर्वक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया जिसने देश में सन् 2004 तक के 6 वर्षों तक शासन किया।

वस्तुत: यह भाजपा की ही उपलब्धि है कि पिछले दो दशकों में उसने भारतीय राजनीति को कांग्रेस और भाजपा के बीच के दो मुख्य राष्ट्रीय ध्रुवों में परिवर्तित कर दिया है।

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पिछले 6 महीनों से ज्यादा समय से देश के प्रत्येक कोने में केवल एकमात्र भ्रष्टाचार का मुद्दा ही सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है। अधिक से अधिक लोग टिप्पणियां कर रहे हैं: घोटालों का सामने आया आकार इतना बड़ा है कि आम आदमी कहने लगा है: यह साधारण सरकारी भ्रष्टाचार नहीं है जिसे हम जानते हैं; अपितु यह तो लूट और डकैती से किसी भी रुप में कम नहीं है!

जब मैंने जयललिताजी को उनकी विजय पर बधाई दी तो मैंने कहा कि उनकी सफलता निस्संदेह उनके राज्य के लिए काफी अच्छी रहेगी लेकिन इस समय स्पेक्ट्रम घोटाले के चलते तमिलनाडू के नतीजों का राष्ट्रीय महत्व है। यदि इस सबके बावजूद उनके विरोधी जीत गए होते तो यह संदेश देश के लिए चौंकाने वाला होता कि: मतदाता भ्रष्टाचार के बारे में पूर्णतया चिंतित नहीं हैं! शुक्र है उनकी उपलब्धि के चलते यह नहीं हुआ!

टेलपीस (पश्च्य लेख)

स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में हम, जिनका वैचारिक आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में था, स्वाभाविक रुप से हम साम्यवाद को अपना मुख्य वैचारिक प्रतिद्वन्द्वी मानते थे। पुस्तक प्रेमियों को मैं तीन पुस्तकें पढ़ने के लिए कहता था जो मैंने उन दिनों पढ़ी थीं और जिन्हें आज भी पढ़कर आनन्द आता है। इनमें से दो पुस्तकें उपन्यास हैं और जार्ज ऑरविल ने लिखें हैं, ये हैं (1) एनीमल फार्म: ए फेयरी टेल (2) नाइनटीन एटी-फोर: ए पॉलिटिकल नॉवल। इसमें से पहली पुस्तक 1945 में और दूसरी 1949 में प्रकाशित हुई।

तीसरी पुस्तक जिसकी मैं प्रशंसा करना चाहता हूं जो केवल उपन्यास नहीं है। यह एक आत्म चरित्र है ‘विटनेस‘, लेखक हैं व्हिट्टकर चेम्बर्स जिन्होंने 1930 के दशक में वाशिंगटन में कम्युनिस्ट भूमिगत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 1938 में कम्युनिज्म तथा कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हो गए थे। वह एक प्रतिष्ठित लेखक और टाइम पत्रिका के सम्पादक के रुप में सामने आए। पुस्तक पहली बार 1952 में प्रकाशित हुई।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इस पुस्तक के बारे कहा था: ”जब तक मानवता नैतिकता और आजादी के सपनों के लिए बोलेगी तब तक व्हिट्टकर चेम्बर्स का जीवन और लेखन उद्दान्त और प्रेरक बना रहेगा।”

क्या कभी चीन भारत पर आक्रमण करेगा ?

चीन इस दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला एक जिम्मेवार देश है । उस पर अपने नागरिकों के भरण पोषण और उनके हितों की रक्षा की जिम्मेवारी है । जिस प्रकार हर देश को अपने नागरिकों के सुखद ओर स्वर्णिम भविष्य की कामना होती है उसी प्रकार चीन को भी अपने देश के नागरिकों के लिए सम्पन्नता और दुनिया में सम्मानजनक स्थान चाहिए । उसे अपने 140 करोड़ लोगों के लिए यूरोपीय देशों और अमरीका के नागरिकों के समान सुविधाएँ और संसाधन चाहियें।वह वैश्विक महाशक्ति बनना चाहता है । जिसके लिए वह प्रयासरत भी है । पिछले कुछ वर्षों में चीन एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है किन्तु उसे पता है कि केवल आर्थिक महाशक्ति बन कर वह यह सब हासिल नहीं कर सकता उसे आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक महाशक्ति भी बनना होगा ।

उसे वर्तमान महाशक्ति अमरीका से यह ताज हासिल करने के लिए सबसे पहले दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि जिस देश का अपने पड़ोसियों में ही दबदबा न हो उसे दुनिया का सिरमौर कौन मानेगा । दक्षिण एशिया में भारत सबसे बड़ा देश है । सबसे पहले उसे दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते क़दमों को रोकना होगा । उसे विश्व में एक महाशक्ति बनना है तो उसे हर अड़ोसी-पडोसी देश ख़ास तौर पर भारत से बीस रहना ही पड़ेगा । भारत अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ जितना घुलमिल कर रहेगा भारत का प्रभाव उतना ही बढेगा जो कि चीन के लिए एक राजनीतिक चुनौती पेश करेगा और चीन के महाशक्ति बनने के सपने में एक बड़ी अड़चन साबित होगा ।

इसलिए अन्य दक्षिण एशियाई देशों से भारत को दूर करने के लिए एवं भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए चीन ने नेपाल में माओवादिओं को बढ़ावा दिया और नेपाल को आर्थिक सहायता बढ़ाकर वहां कि राजनीति में अपना हस्तक्षेप बढाकर भारत के प्रभाव को कम कर दिया । इसी कड़ी में चीन ने परोक्ष रूप से पकिस्तान को दोस्ती के बहाने आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक मदद देना आरम्भ किया जिसका दुरूपयोग भारत के खिलाफ हो रहा है और अब एक कदम आगे बढ़कर एक तीर से दो निशाने साधते हुए चीन ने बिखरते हुए पाकिस्तान का खुलकर साथ देना प्रारंभ कर दिया है और पाकिस्तान में अमरीकी प्रभाव को भी कमज़ोर करना प्रारंभ कर दिया है । भारत के खिलाफ अपने इस अभियान में चीन ने श्रीलंका में भी अपने पैर जमाकर भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश की है ।

इन बातों को सुन और पढ़ कर लगता है की चीन सचमुच भारत के खिलाफ कार्य कर रहा है और भारत के खिलाफ एक युद्ध की तैयारी कर रहा है ।

किन्तु चीन दुविधा में भी है । वर्तमान महाशक्ति अमरीका के साथ G-8, नाटो देश एवं अन्य कई देश है । जो समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विश्व मंचों पर अमरीका के निर्णयों को सही ठहराने में और उन्हें लागू करवाने में अमरीका कि सहायता करते है । विपत्ति के समय हर प्रकार से अमरीका का साथ देते है एवं उसके लिए काम करते है । चीन के साथ ऐसा कोई गुट नहीं है । महाशक्ति बनने के लिए उसे भी कुछ देशों का साथ चाहिए ताकि जब वह महाशक्ति बने तो उसके भी कुछ सहयोगी हों और वह भी अमरीका कि तरह अपने सभी फैसले दुनिया पर लागू करवा कर राज कर सके । इस लिए उसे G-5 और ब्रिक्स जैसे संगठनों में भारत कि भागीदारी भी चाहिए क्योंकि भारत को नज़रंदाज़ करके विश्व के विषय में कोई नीति बनाना किसी बेवकूफी से कम नहीं है ।भारत चीनी सामान का एक बहुत बड़ा खरीदार है चीन इतने बड़े बाज़ार को भी खोना नहीं चाहेगा इन बातों को पढ़ और सुन कर लगता है कि चीन को भारत कि आवश्यकता है तो वह भारत पर आक्रमण क्यों करेगा ?

किन्तु चीन जितना ताकतवर है उतना ही समझदार भी है । उसे भारत की सेन्य क्षमता का ज्ञान है उसे पता है कि यदि वह भारत के खिलाफ युद्ध करता है तो उसका नुक्सान निश्चित है । क्योंकि अब 1962 वाला समय नहीं है । भारत भी एक सशक्त देश है । महाशक्ति पद का दावेदार है इसलिए वह भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष युद्ध नहीं करना चाहेगा । जिस प्रकार पाकिस्तान चाहकर भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सका और हर बार युद्ध में उसे मुह कि खानी पड़ी तो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ छद्मयुद्ध (आतंकवाद) का सहारा लिया और काफी हद तक भारत की तरक्की को रोका और भारत को परेशान एवं कमज़ोर करने में कामयाब भी रहा । इसी बात से सबक लेते हुए चीन भी भारत के खिलाफ एक राजनीतिक युद्ध में सलग्न रहकर भारत से सीधा न उलझ कर, किसी न किसी बहाने भारत को उलझाकर रखना चाहता है । नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में उसके हस्तक्षेप इसी योजना का एक अंग है ताकि भारत इन्ही मुद्दों में उलझकर रह जाए और चीन निश्चिन्त होकर दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाते हुए अपने लक्ष्य कि और बढ़ सके है इसलिए चीन द्वारा भारत पर आक्रमण कि संभावना बहुत ही कम है ।

किन्तु अब सोचने का विषय यह है कि यदि चीन भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार का दुस्साहस करता है तो भारत की क्या तैयारी है ?

हर देश को तरक्की करने और ऊँचे सपने देखने का अधिकार है । ऊँचा सोच कर चीन ने कुछ गलत नहीं किया है और यदि चीन भारत को अपने प्रगति के मार्ग में चुनौती के रूप में देखता है तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि दक्षिण एशिया में सिर्फ भारत ही उसे आर्थिक और सामरिक टक्कर दे सकता है । हर देश को यह चाहिए कि वह अपने प्रगति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को समय से पहले पहचान कर, समय रहते उस समस्या के समाधान के लिए सही कदम उठाये । यदि चीन हमे अपने प्रगति के मार्ग में आने वाली बाधा मानकर इसके लिए तैयारी कर रहा है तो क्या गलत है । गलत तो भारत कर रहा है इस चुनौती को अनदेखा करके । यदि भारत सशक्त एवं सजग होगा तो चीन भारत के विषय में अपनी भ्रांतियों पर पुनर्विचार करेगा एवं उसके साथ दोस्ती का व्यवहार करेगा और चीन चाह कर भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भारत के खिलाफ कुछ गलत करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा जैसा कि वह अक्सर भारत की सीमाओं का अतिक्रमण करके और भारत के कुछ भूभागों पर अपना अधिकार दिखा कर एवं अन्य अनेकों प्रकार से करता रहा है । चीन द्वारा किसी भी प्रकार के दुस्साहस करने की स्थिति में भारत द्वारा पलटवार करने की क्षमता की कमी काफी लम्बे समय से अनुभव की जा रही है इसलिए भारत को हमले के लिए न सही आत्मरक्षा के लिए तो अपनी तैयारी रखनी ही पड़ेगी क्योंकि एक शक्ति ही दूसरी शक्ति का सम्मान करती है

ये पब्लिक है सब जानती है।

आज हर व्यक्ति केवल भाई भतीजा वाद मे फस गया है, हर जगह केवल पैसा और सिफारिश का जमाना आगया हैं।दफ्तर हो या समाज व्यक्ति केवल आपना हित साधना चाहता है दूसरे के हित कि तो कोई सोचता हि नहीं है। इस तरह से हमारी राजनैतिक पार्टियाँ होगयी है। उन में भी जो लोग पार्टियों के लिये काम करते हैं उनको टिकट न दे कर किसी गाँड फादर के कहने पर उसके अमेरीका से पढ कर आये किसी नये लड्के को टिकट दे दिया जाता है। जो जनता को बरगाल कर चुनाव जीत जाता है।पर वह जानता के मध्य न रह कर अपने मे मस्त रहता है,उसे जानता की समस्या कि कोई जानकारी नही होती है।वह दूबारा अपना चेहरा पाँच साल बाद ही दिखाता है।आज राजनीति चन्द लोगो कि रखैल हो गयी है।राजनीति आज समाज सेवा नहीं वरन के व्यवसाय हो गयी लोगो ने इसे पैसा कामाने का जरिया हो गयी है।कोई भी व्यक्ति जिसके पास अपना एक भी मकान और वाहन नही. रहता है वह विधायक बनते ही दस दस घरो और चार्टर विमाने से उडने लगता है।सत्ता पक्ष हो या विपक्ष वह जनता को केवल वोट बैंक समक्षती है। उसी के लिये कभी किसी दलित के घर राहूल खायेगे तो मायावती कहेगी नाटक कर रहे है। इसी कारण भारत में तंत्र तो मजबूत हो रहा है पर लोक कमजोर हो रहा है. प्रतिव्यक्ति आय तो बड़ रही है पर उसके साथ हि गरीबी भी बड़ रही है।जनसंख्या तो बड़ रही है पर लिंगानुपात घट रहा है।देश मे किसी के पास चलने के लिये साइकिल भी नहीं है और किसी के पास दस दस कारे है। हर तरफ गरीबी बड़ रही है लोग भूख से मर रहे है किसान आत्म हत्या कर रहे है और हमारे सेवक कह रहे है आल इज वेल।

सरकारे भ्रष्टाचार का पोषण कर रही है और हर ओर भ्रष्टाचार का बोल- बाला है।हमारी सरकार केवल घोषणा कर के जनता को बरगला रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारा उत्तर प्रदेश हि है। मायावती सरकार रोज नई घोषणा करती है पर केवल प्रेस के सामने और केवल कागजो पर ।शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद से सी टी.इ.टी,राजस्थान टी.इ.टी तथा कभी पिछ्डे राज्य मे गिना जाने वाला बिहार भी टी.इ.टी निकाल चुका है।पर हमारी सरकार केवल नये पद सृजित कर के जनता को बरगला रही उन्हे भरने का प्रयास नहीं केवल वही कार्य हो रहा है जिससे हमारे मन्त्रियों और अधिकारियो का पेट भर सक॥ सरकार को केवल वोट से मतलब है वह जनता के मध्य तभी आये गी।पर अन्त मे इतना ही कहना है जनता को बेकूफ न समझे जब वह तमाचा मारेगी तो आप लोगो कि सारी राजनीति हवा हो जायेगी और ३००से ३० पर भी ला सकती है।अन्त में इतना ही कहना हैं- सिहांसन खाली कर दो जनता आती है या कुछ कर के दिखवो ।झुठा वादा मत करो ये पब्लिक है सब जानती है।

क्या कहती है सलमान की बॉडी लैंग्वेज

आजकल सलमान अपनी फिल्म रेडीʼ के प्रमोशन में लगे हुए हैं। इसी क्रम में 26 मई को सलमान स्टार न्यूज के स्टुडियो में आए और स्टार न्यूज के स्टार एंकर-पत्रकार दीपक चौरसिया ने उनका ʻस्टुडियो-साक्षात्कारʼ लिया। इसका 27,28 और 29 मई को रिपीट प्रसारण भी हुआ। इस साक्षात्कार को लेकर ही मेरी ये टिप्पणी है। पहले मैं साक्षात्कार की अंतर्वस्तु पर बात करूं ताकि जिन्होंने न देखा हो वो भी समझ सकें। अमूमन सलमान खान की मीडिया छवि एक गुस्सैल, सस्ती हरकतें करनेवाला, लड़कियों का दिल तोड़ने और उन पर अत्याचार करनेवाला आदि की बनाई जाती है। पर सलमान सीधी बातचीत में लड़कियों से बात करते हुए काफी सावधान, असहज और शर्मीले नज़र आए। यहां तक कि स्टार की कर्मचारी शगुन ने सलमान के 8 पैक ऐब्स देखने चाहे और सलमान ने बड़ी सादगी से कहा कि अभी नहीं फिल्म में देख लें। कैटरीना को लेकर सवाल का जिस तरह से सस्पेंस दीपक चौरसिया बनाना चाहते थे सलमान ने एक मिनट में धो दिया। उन्होंने कहा कि पूछिए आपको जो भी पूछना है। जब आप बात आगे बढ़ा ही चुके हैं तो पूछ ही डालिए ताकि हम ऑर्डर में आगे बढ़ सकें। राखी सावंत सलमान से शादी करना चाहती हैं, सलमान का क्या क्या जवाब है? इस पर सवालकर्ता विनोद कांबली से ʻकहा तू कर लेʼ । बीना मल्लिक सलमान के साथ डेट पर जाना चाहती हैं विषय पर कांबली की टिप्पणी पर कि तुम कितने लकी हो ! सलमान ने जवाब दिया कि तू मेरा सारा लक ले ले और उसे डेट पर ले जा। सलमान एक प्रोफेशनल की तरह जवाब दे रहे थे और अपने काम के प्रति गंभीर दिख रहे थे। और सबसे बड़ी बात कि सरलता से बिना किसी हैंगओवर के जवाब दे रहे थे। वे इस साक्षात्कार में दबंग के गाने पर नाचे भी।

अपनी मां को कई बार आदर से याद करते दिखे। कहा, मेरी दो माएं हैं-एक सुशीला जी और एक हेलेनजी।

सलमान अपनी शर्ट क्यों उतारते हैं। सलमान का जवाब था-टाकि लोग मुझे देख कर सीखें ,फिट रहें, जिमों में जाएं, जब अपने आपको आईने में नहीं देख सकते तो लोग क्या देखेंगे। इस देश में युवाओं में ड्रग्स की समस्या है, विशेषकर 6.30 से 8 बजे तक के इस तरह नशे के जरिए सामाजीकरण में बिताने के बजाए यदि लोग जिम में जाएं तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और सोशलाइजेशन भी होगा। शरीर देखकर लोग प्रभावित होते हैं। फिल्मों और मॉडलिंग के कैरियर के लिए जरूरी है। यह लव एट फर्स्ट साइट। अपने को अपने शरीर को प्यार करना अच्छी बात है। अपनी फिल्मों के दृश्य को सलमान निर्विकार भाव से देख रहे थे। कभी थोड़ी मुस्कान और कभी ʻकैरेक्टर ढ़ीलाʼ पर लिप मूवमेंट करते हुए। सलमान के प्यार के बारे में जानने की बड़ी कोशिश दीपक चौरसिया ने की, पर सलमान ने अपने निजी जीवन को अलग रखा। सलमान के अंदर अपनी उम्र को लेकर कोई दुविधा या असहजता नहीं दिखी। अपनी हीरोइनों और अपने बीच उम्र के अंतर को सहजता से बताया। कहा कि सबसे एंबैरेसिंग कमेंट मेरे लिए यह होता है कि जब मेरी हीरोइन कहती है कि जब वह 3 साल की थी तो आपकी फिल्म देखी।

सलमान आम आदमी के कपडे पहने कर ही स्टुडियो में आए और यह भी कहा कि हीरो आजकल महंगे कपड़ों में आते हैं। युवा उनका अनुकरण करते हैं। मां-बाप की कमाई इतनी नहीं होती कि बच्चे के इस तरह के शौक़ पूरे करें। मैं निजी जीवन में भी सामान्य कपड़े पहनता हूं। महंगे कपड़ों पर खर्च करना पैसे बर्बाद करना है। वास्तव में सलमान ऐसा करते हैं या नहीं पर मीडिया में ऐसा कहना निश्चित ही उपभोक्तावाद के पक्ष में नहीं है।

सलमान ने कहाकि मीडिया ने ही मेरी ईमेज गंभीर और गुस्सैल की बनाई है। इस साक्षात्कार के दौरान सलमान की बॉडी लैंग्वेज एक एक्टर की नहीं, व्यक्ति सलमान की थी। जिसकी अपनी पसंद-नापसंद है और जो हर तरह की स्थितियों में केवल आनंददायी मुद्राएं नहीं बना सकता। स्टार न्यूज के एंकर दीपक चौरसिया के प्रश्नों पर सलमान न तो इंवॉल्व हो पा रहे थे न ही इंज्वॉय कर पा रहे थे। दीपक को भी ये स्थति समझ में आ गई उन्होंने कहा कि मैं इतनी देर से आपको हंसाने की कोशिश कर रहा हूं आप हंस ही नहीं रहे। मैं दोस्तों के साथ हंसी-मजाक कर लेता हूं।

सलमान ने व्यंग्य पर भी व्यंग्य किया। इरफान के कार्टून पर व्यंग्य किया जिसमें सलमान के पीछे हाथ में गुलाब का फूल लेकर भागती लड़कियों के लिए सलमान का सेक्रेटरी कहता है कि ʻइन्हें पता है कि सलमान रेडी हैं।ʼ इस कार्टून को देखकर सलमान की टिप्पणी थी कि अभी तक तो मैंने नोटिस नहीं किया कि लड़कियां मुझे गुलाब देती हैं। सलमान ने कहा कि मैं जिंदगी को कार्टून नहीं समझता।

दीपक की मुश्किल ये थी कि वे सलमान की बॉडी लैंग्वेज और जवाबों से भी कुछ समझ नहीं पाए। अपने सवालों की वही घिसी-पिटी लिस्ट दोहराते रहे। सलमान स्टार न्यूज के ऑफिस में हीरो सलमान के भाव में नहीं दिख रहे थे पर एंकर की पूरी कोशिश थी कि पोस्टर फटे और हीरो निकले ताकि उसका स्टुडियो नायक की चरणधूलि से पवित्र हो। चैनल एक घंटे अपने दर्शकों का मनोरंजन कर सके। यहीं पर साक्षात्कार लेनेवाले और देनेवाले का ʻवेब लेंथʼ नहीं मिल पा रहा था और दीपक चौरसिया के सारे बाउंसर पर क्रिकेट के अनाड़ी सलमान छक्के लगा रहे थे।

चैनल बताना चाहता था अपने दर्शकों को कि वो अभी इस क्षण जो कुछ कर रहा है वो ऐतिहासिक है और अनूठा है, एक्सक्लुसिव है। वह अपने स्टुडियो में आए सलमान के हीरोइज़्म को बनाए रखना चाहता था। दीपक चौरसिया से लेकर स्टार न्यूज की अन्य महिला कर्मचारी कोशिश कर रहे थे कि सलमान वो सब करें और वो प्रभाव छोड़ें जो वो पर्दे पर करते और छोड़ते हैं। वो सलमान को भविष्यवक्ता, मीडिया इमेज में निर्मित हीरो की ऐसी छवि कि वो चाहे तो सब कुछ हो सकता है, बनाना चाहते थे पर शादी के सवाल पर सलमान ने इस भाव को समझा और थोड़ी विरक्ति से जवाब दिया कि आप मुझसे ऐसे सवाल पूछ रहे हैं जैसेकि मैं भगवान हूं। ऊपरवाले की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता। शादी जब तक नहीं होती तब तक आप नहीं जानते कब होगी, शादी हो गई तो कब तक चलेगी ये भी पता नहीं होता।

सर-सर कह कर बातें करते हुए सलमान ने बताया कि पेंटिंग का शौक मां से मिला। मां अच्छी पेंटर हैं। उन्होंने स्टुडियो में एक पूरे बुजुर्ग चेहरे की पेंटिंग बनाई । पूछने पर तस्वीर के मायने भी बताए। एक पूरा चेहरा, यदि उसमें से सर निकाल दें तो ,हर धर्म में माथे के बिना किसी भी बुजुर्ग का चेहरा एक ही है। धर्म केवल दिमाग़ में होता है।

दोस्ती के बारे में सलमान की राय है कि दोस्ती लाईफ है। सलमान के दो पसंदीदा संवाद हैं- ʻदोस्ती की है निभानी तो पड़ेगी।ʼ और ʻइतना करोकि कभी कम न पड़े पर साला कम पड़ ही जाता है !ʼ इस पूंजीवादी समाज में दोस्ती पर जोर देना महत्वपूर्ण है। यह पूंजीवादी ʻएलियनेशनʼ की काट है पर दोस्ती के मायने दोस्ती का नाटक नहीं। समझना चाहिए कि दोस्ती का भाव कोई सामाजिक मुखौटा नहीं जिसे लगाकर प्रदर्शित किया जाए। यह एक आंतरिक भाव है। दोस्ती का प्रदर्शन और दोस्ती में फर्क़ होता है। शाहरूख से संबंध के सवाल पर साफ कहा कि मेरा झगड़ा नहीं, बनती नहीं मेरी उससे , सोच अलग-अलग है। आवन-जावन में घर को 4-5 बार पास करते हैं टी वी पर माफी मांगने से क्या।

सलमान को देखते हुए कई सवाल बार-बार मेरे मन में आए। सलमान की जगह दो और बड़े नामी खान होते तो इंटरव्यू कैसा होता। शाहरुख़ आंखों से और अपनी भंगिमाओं से बोलते हैं। माहौल को हल्का-फुल्का रखते हैं और पर्दे के शाहरुख़ यानि हीरो शाहरूख़ तथा व्यक्ति शाहरूख़ में फ़र्क नज़र नहीं आता। वही चार्म , वही आकर्षण बना रहता है। पोशाक और अदाएं भी शाहरूख़ की अपनी हैं जो पर्दे पर और बाहर भी बनी रहती हैं। आमीर की स्थिति यह है कि वो एक मीनिंगफुल हीरो और अर्थवान फिल्मों के एक्टर हैं। कम फिल्में करते हैं पर एक संदेश होगा उनकी फिल्म में , एक मायने होगा उनके द्वारा प्रमोटेड किसी भी फिल्म या वस्तु में , यह धारणा उन्होंने स्थिर कर दी है। आमीर -मतलब कुछ मायनेखेज। कह सकते हैं कि आमीर वस्तु के साथ मूल्यबोध जोड़ने में सक्षम हुए हैं। यहां तक कि अपना एक खास दर्शकवर्ग भी आमीर ने तैयार किया है। टी वी पर जब आमीर आते हैं या अपनी फिल्मों का प्रमोशन करते हैं तो उनका अंदाज अलग होता है, पर उनकी बॉडी लैंग्वेज से यह बात साफ जाहिर होती रहती है कि उन्हें पता है उनके काम का महत्व। उन्होंने कुछ कंट्रीब्यूट किया है समाज को।

सलमान की बातचीत, हरकतें और जवाब में एक विनम्रता थी। सर- सर कह कर बहुत विनम्र भाव से वो बातों का जवाब दे रहे थे पर एक आम आदमी की तरह अपनी धारणाओं पर दृढ़ता से क़ायम भी थे। जैसे भारत का आम आदमी है, सुनता वो सब नेताओं की है पर वोट किसको देगा ये राजनीति के तीसमार खांओं को भी नहीं पता होता। उन्माद के खेल का पर्याय बन चुके क्रिकेट को लेकर पूछे गए सवालों पर सीधे जवाब दिया कि क्रिकेट पसंद नहीं है , देखता नहीं हूं। इसी तरह से दीपक चौरसिया के कई आत्मकेंद्रित सवालों पर जैसे कि ʻमेरी शर्ट नहीं उतारिएगाʼ, कैटरिना और अन्य प्रेम संबंधों को लेकर पूछे गए सवालों पर सलमान ने कई बार उपेक्षा दिखाई।

इस ʻस्टुडियो-साक्षात्कारʼ (साक्षात्कार की एक उप-विधा कह सकते हैं) को देख कर यही लगता रहा कि टी वी मीडिया जो विकासशील देशों में सबसे ताक़तवर माध्यम है, अपने द्वारा निर्मित छद्म का ही शिकार होती जा रही है। भगवान या आइकॉन बनाने के उसके टोटके कई बार न केवल भ्रामक बल्कि झूठ दिखाई देते हैं। सलमान ने कुछ नहीं किया बस अपनी सहजता और सहज जबावों और सच्ची देहभाषा से टी वी मीडिया के अहंकार को आइना दिखा दिया। सलमान अपनी फिल्म ʻरेडीʼ के और भी प्रमोशनल शो करेंगे, अन्य चैनलों पर इस फिल्म के प्रमोशन से जुड़े अन्य कार्यक्रमों के विज्ञापन भी आ रहे हैं पर ये ʻस्टुडियो-साक्षात्कारʼ तो मीडिया पाठ्यक्रम में शामिल करने लायक है !