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ग्राम सुराज-विश्वसनीय छत्तीसगढ़ का आधार

सुखदेव कोरेटी एवं पी.के.पांडेय

छत्तीसगढ़ सरकार की संवेदनशील कदमों ने छत्तीसगढ़ को विश्वसनीय छत्तीसगढ़ का दर्जा दिलाया है। राज्य में पिछले 7 वर्षो में हर वर्ग के लिये विकास के साथ -साथ संवेदनशील एवं मानवीय पहलुओं से जुड़े मामलों को भी बड़ी गंभीरता से लेते हुये लोगों को सहायता पंहुचाने के लिये असरकारक कदम उठाये गये हैं। जिनका लाभ समाज के अंतिम पंक्ति में खडे लोगों को मिला है। अधोसंरचना विकास से हर व्यक्ति को लाभ तो मिलता ही है। सरकार के कुछ ऐसे काम हैं जिससे नितांत जरूरतमंद तथा लाचार लोगों को व्यक्तिगत लाभ भी मिला है इसमें किसी समूह विशेष को लाभ पंहुचाने का मापदंड ना रखते हुये कोई व्यक्ति विपदा से पीड़ित है तो उन्हे भी तत्समय लाभ दिलाने की पहल व सहायता पंहुचाने के कार्य हुये हैं।

ग्राम सुराज अभियान भी शासन का एक ऐसा ही कदम है। इसमें शासन, प्रशासन उन लोगों तक पंहुचने का प्रयास किया जाता है जो शारीरिक दुर्बलता, अज्ञानता, या आर्थिक रूप से कमजोर अथवा भ्रम के मकड़ जाल में उलझे रहने के कारण प्रशासन अथवा शासन तक पंहुच कर अपनी समस्या को रख नही पाते तथा समाधान नही करवा पाते । इस स्थिति को दृष्टिगत रखते हुये राज्य शासन ने पिछले 2005 से गांवों में पंहुचकर ग्रामीणों की समस्याओं, आवश्यकताओं को जानने, समझने, तथा समाधान निकालने का कदम उठाया है। इस अभियान में ना केवल गांव व गांव वालों के विकास के मामले ही सुलझाये जाते बल्कि उनके दु:ख-सुख, असुविधाओं या बीमारी से राहत दिलाने के प्रयास भी होते हैं। सुराज दल ने प्रदेश में कुछ ऐसे मामले पाये हैं जहाँ लोगों ने स्वयं श्रम दान कर अपने गांव में सुविधाओं का विस्तार या निर्माण कर उसका लाभ सभी गांवों वालों को दिलाया है, ऐसे परोपकारी लोगों को राज्य शासन ने प्रोत्साहित कर उन लोगों को ऐसे कार्य करने के लिये प्रेरित किया गया है। ऐसे में सरकार के प्रति जनता में विश्वास जागने के अलावा जरूरतमंद तथा संकटग्रस्त लोगों के लिये आस्था व प्रेरणा की नयी उम्मीदें भी जागी है। सरकार की संवेदनशीलता के ऐसे कई उदाहरण हैं, जैसे कि प्रदेश में गरीबी के कारण किसी भी बेटी की शादी नही रूकेगी । गरीब परिवारों को अपनी बेटी की शादी के लिये चिंतित होने की जरूरत नही है। क्योंकि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना लागू हैं और प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह जो गरीबों को ऐसी गारंटी व पिता सा प्यार देकर आश्वस्त करते हैं कि बेटी की शादी के लिये उन्हें चिंतित होने की जरूरत नही है। मैं हूँ ना। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना कुछ ऐसी ही गांरटी प्रदान करती है। एक आंकडे क़े अनुसार इस योजना के तहत राज्य में अब तक गरीब परिवारों की करीब 25 हजार बेटियों की शादी हो चुकी है।

ऐसे ही मानवीय पहलुओं से जुड़ी संजीवनी परियोजना है। इसकी जितनी भी तारीफ की जाये- कम है जो दुर्घटनाग्रस्त तथा संकट के समय जीवनदान देने का कार्य करती है यानी जैसा नाम वैसा काम। विशेषकर सड़क दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों तथा गर्भवती महिलाओं के लिये यह योजना वरदान साबित हुई है , क्योंकि इन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा दिये जाने की जरूरत होती है। यूं तों यह योजना वर्तमान में बस्तर व रायपुर जिले में शुरू की गयी है किन्तु शीघ्र ही प्रदेश भर में प्रारंभ की जायेगी। इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता है कि जरूरतमंद व्यक्ति द्वारा नम्बर 108 डायल करने पर महज आधे घंटे के भीतर सर्व सुविधायुक्त एम्बुलेन्स एवं पैरामेडिकल स्टॉफ समय पर उपलब्ध हो जाती है यह 24 घंटे की नि:शुल्क सेवा योजना है। 26 जनवरी 2011 से प्रारंभ हुई संजीवनी एक्सप्रेस ने तकरीबन 4000 से अधिक लोगों को सुरक्षित अस्पताल पंहुचाकर जान बचाकर पुण्य का काम किया है।

नक्सल पीड़ित परिवार व उनके बच्चों के भविष्य के प्रति भी सरकार संवेदशील है । यहॉ के नक्सल पीड़ित बच्चों की शिक्षा, उनके समुचित पुर्नवास तथा प्रशिक्षण आदि आवश्यकता की पूर्ति के लिये मुख्यमंत्री ने बाल भविष्य योजना शुरू की है। वर्तमान में करीब 600 बच्चों को इस योजना का लाभ मिल रहा हैं। ऐसे बच्चों को सुरक्षित रखने तथा शिक्षा प्रदान करने हेतु रायपुर, दंतेवाड़ा तथा राजनांदगांव में आश्रम संचालित है। ऐसे जन आकांक्षाओं, समस्याओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता व विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के कारण छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में सफल रहा है। कई क्षेत्रों में तो राज्य ने अल्प समय में ही अपनी श्रेष्ठता स्थापित की है। एक समय, जब छत्तीसगढ़ को अन्य क्षेत्र या राज्य के लोग धान उपजाऊ क्षेत्र के साथ-साथ अशिक्षित एवं अंधविश्वासी तथा पुरानी धारणाओं से जकड़े जीवन जीने वाले राज्य के रूप में देखते थे, लेकिन अब वह दिन गुजरे जमाने की बात है।

छत्तीसगढ़ की पी.डी.एस. सार्वजनिक खाद्यान्न वितरण प्रणाली ने देश में एक मिसाल पेश की है, वही प्रति व्यक्ति वार्षिक आय तथा औद्योगिक विकास के क्षेत्र में भी अपने साथ अस्तित्व में आये अन्य राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। गांव , गरीब, किसान छत्तीसगढ़ के विकास की धूरी हैं इसलिये यहाँ की सरकार ने ” सबके साथ सबका विकास” की परिकल्पना को मूर्त देने कारगर कदम उठाये हैं। यह सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में नही बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी कार्य कर रही है। शासन पानी बचाने के लिये भी संवेदनशील है। नदियों के जल का बेहतर उपयोग की बात हो या हरियाली बचाये रखने की, प्रदेश में खेलों के विकास की बात हो या खिलाड़ियों को प्रशिक्षण व सुविधाये देने की बात, मेहनत करने वाले मजदूरों की बात हो या पसीना बहाकर काम करने वालों किसानों की, शहरी क्षेत्रों की बात हो या ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की बात। नया रायपुर परियोजना के तहत शामिल 41 गांवों को बिना विस्थापित किये उन्हें राजधानी की बराबरी में लाने का प्रयास उल्लेखनीय है। इस विश्व स्तरीय विशेषता वाली परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार, प्रशंसा व सम्मान प्राप्त हुआ है। राज्य की नयी राजधानी परियोजना को केन्द्र शासन द्वारा श्रेष्ठ परियोजना का पुरस्कार दिया गया है। वास्तव में छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है जिसने अपने यहॉ की लाखों असंगठित मजदूरों के लिये कल्याणकारी योजनायें बनायी है जिसके तहत निमार्ण कार्यो से जुडे पंजीकृत राज मित्रियों को कर्मकार कल्याण मंडल द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था की है, वहीं शिक्षित बेरोजगारों के लिये प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर प्रतिष्ठित उद्योगों में रोजगार दिलाने का निर्णय लेकर क्रियान्वित किया जा रहा है। जिला मुख्यालयों में रोजगार मेला आयोजित किये जाते हैं जिसका सीधा लाभ हजारों जरूरतमंद बेरोजगारों को मिला है और उनके जीवन में सुखद भविष्य की किरणें जागी है।

प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह स्वास्थ्य की बात हो या चिकित्सा सुविधाओं की, कृषि की बात हो या व्यापार व वाणिज्य की, स्कूली शिक्षा की बात हो या उच्च शिक्षा की, सारक्षता दर वृध्दि की बात हो या ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय योजनाओं के प्रति जागरूकता की- कोई माने या न माने तरक्की व बेहतरी तो हुई है और अपने प्रादुर्भाव के प्रारंभिक दस वर्षो में ही छत्तीसगढ़ तेजी से समग्र विकास करने वाला राज्य बन गया है। फिर हमें यह समझना चाहिये कि लोगों की भी आवश्यकता बढ़ती जा रही है आवश्यकता ही समस्याओं की जननी होती है किन्तु ध्यान देने की बात यह है कि उन समस्याओं के प्रति सरकार क्या बेफिक्र है? नही, ऐसा नही है। अब आप ग्राम सुराज अभियान को ही लीजिये – यदि ग्राम सुराज अभियान में प्राप्त होने वाले आवेदनों की संख्या बढ़ती है तो इसका अर्थ यह हुआ कि ग्रामीण जन सरकारी योजनाओं से लाभ लेने के प्रति , अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हुये हैं।

शासन की योजनाओं को बनाने व लागू करने के पीछे कही भी राजनीतिक स्वार्थ नहीं रहा है, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो सरकार केवल उन्ही लोगों के लिये योजनायें बनाती जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है किन्तु ऐसा नही है । अनेक योजनायें बच्चों के लिये हैं, जैसे बाल हृदय योजना, बाल-श्रवण योजना व मुस्कान योजना।

उल्लेखनीय है जैसा कि राज्य के मुख्यमंत्री जी ने स्वयं इंगित किया है-” राज्य सरकार की अनेक जन-कल्याणकारी योजनाये ग्राम सुराज अभियान की देन है। तेंदुपत्ता संग्रहकों के लिये चरण-पादुका योजना, प्रदेश के लाखों गरीब परिवारों के लिये नि:शुल्क नमक और मात्र एक रूपये और दो रूपये किलों में हर महीने 35 किलो चावल वितरण की योजना , कुपोषण मुक्ति अभियान , गरीब परिवारों के हृदय रोग से पीड़ित बच्चों के लिये बाल हृदय सुरक्षा योजना , कटे-फटे होंठ वाले लोगों और विशेष रूप से बच्चों की नि:शुल्क सर्जरी के लिये मुस्कान योजना, मूक बधिर बच्चों के नि:शुल्क ऑपरेशन के लिये बाल -श्रवण योजना, किसानों के 5 हॉर्स पावर तक सिंचाई पम्पों को सलाना छ: हजार यूनिट नि:शुल्क बिजली देने की योजना सहित कई योजनायें ग्राम सुराज अभियान में जनता की जरूरतों को गंभीरता से समझकर तैयार की गयी है” और इसे यदि ग्राम सुराज अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाये तो अतिशयोक्ति नही होगी।

 

छत्तीसगढ़ : ये कैसा सुराज, ये कैसा दिखावा !

गोपाल सामंतो


सुनने और पढ़ने में शायद ये काफी अजीब लगे पर ये सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार 5 सालो में 50 दिन जनता के बीच बिताती है और उसे सुराज के नाम से प्रख्यात करने में कोई चूक नहीं करती है. आखिर ये कैसा सुराज है जहा नौकरशाह खानापूर्ति करने के नाम से मात्र 10 दिन अपना पसीना बहाकर वाह-वाही लूटने को आमादा दिखती है. छत्तीसगढ़ ऐसे भी नौकर शाहों का ही प्रदेश बनकर रह गया है , कहने को तो यहाँ भाजपा कि सरकार है पर हकीक़त में इस प्रदेश को नौकर शाह ही चला रहे है और सरकार के सारे मंत्री इनके सामने अपनी चलाने में नाकाम साबित हो रहे है. डॉ रमन सिंह ने अपनी पहली पारी में जितनी लोकप्रियता हासिल कि थी शायद दूसरी पारी में वो नहीं कर पा रहे है और इसका प्रमुख कारण उनका कार्यकर्ताओ और जनता से सीधा संवाद न होना . उनके आस-पास कार्यकर्ताओ का तो टोटा सा लग गया है या जो है उन्हें भी नौकर शाहों ने मुह बंद रखने कि हिदायत दे रखी है.

भारतीय शिक्षा प्रणाली को गौर से अगर देखा जाए तो ये नौकरशाह कागज़ के शेर ही नज़र आते है जो अपनी आधी जिंदगी किताबी ज्ञान बटोरने में लगाते है और जिनका समाज से लगाव बहुत कम ही रहता है. जब ये तथाकथित कागज़ के शेर अपने कुर्सी को सम्हाल लेते है तो ये अपने आधीन काम करने वालो पर 100 फीसदी निर्भर हो जाते है और सिर्फ हस्ताक्षर करने तक अपने आप को सीमित कर लेते है. यही कारण है कि ये नौकरशाह 10 दिन में सुराज लाने कि कल्पना करते है और अपने मुखिया के आँख में धूल झोंककर आरामदायक कुर्सिओ पर जमे रहने कि कोशिश करते है. आज पूरे प्रदेश में ग्राम सुराज कि जमकर खिचाई हो रही है ,कही अधिकारिओ को बंद कर दिया जा रहा है, तो कही सुराज का बहिष्कार किया जा रहा है इससे तो ये ही प्रतीत हो रहा है कि अब प्रदेश वासिओ को 10 दिन के सुराज के नाम पर अधिकारी वर्ग मूर्ख नहीं बना सकते है.

डॉ रमन सिंह को भी अब समझना चाहिए कि इस प्रदेश कि जनता ने भाजपा पर भरोसा किया है ना कि इन नौकरशाहों पर और उन्हें बागडौर अपने हाथ में ले लेना चाहिए. ये वो ही देश है जहा मायावती जैसी महिला मुख्यमंत्री ने एक दिन में ही 144 आईएएस व आईपीएस जैसे अफसरों पर गाज गिराके समझा दिया था कि इस देश में लोकतंत्र है और नौकरशाह लोकतंत्र के अधीन होते है न कि उससे ऊपर. ऐसे भी ये नौकरशाह सुख के पंछी होते है जब जिसकी सरकार तब उनके होते है, शायद डॉ साहब को ये बाद में समझ आएगा जब वे सरकार में नहीं रहेंगे. कोई भी राजनैतिक पार्टी को नीति निर्धारण करते समय अपने कार्यकर्ताओ को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए क्योंकि ये वो ही कार्यकर्ता होते है जो अगले चुनाव में जनता के बीच जाने वाली होती है या जिनका सीधा संवाद जनता से रहती है. पर इस प्रदेश में सारे निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ अधिकारिओ के पास है, चाहे वो जैसे भी उनको तोड़े-मरोड़े कार्यकर्ता सिर्फ आहे ही भर सकता है.

रमन सिंह ने जब दोबारा मुख्यमंत्री कि कुर्सी सम्हाली थी तो परिदृश्यो को देखकर ऐसा लगता था कि शायद ये पश्चिम बंगाल में वामदलों द्वारा बनाये गए 35 साल के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे, पर अब ढाई साल बाद ऐसे सोचना भी मूर्खता सी ही लग रही है. रोज सुबह मैं जब अखबार लेकर बैठता हूँ,तो मेरे चेहरे पर सहसा ही हंसी फूट जाती है सुराज के जनसंपर्क अभियान को देखकर, हर अखबार के मुख्य पृष्ट पर डॉ. साहब के तस्वीर वाला ग्राम सुराज से सम्बंधित बड़ा सा विज्ञापन लगे रहता है और ठीक उसके ऊपर समाचार रहती है कि फला जगह ग्राम सुराज दल को बंधक बनाया गया . तो ये सरकारी पैसो को स्वाह कर विज्ञापन क्यों छपवाया जा रहा है ये समझ से परे है जब अभियान ही नहीं चल पा रहा है तो इतना खर्च क्यों ? मजे कि बात तो ये भी है इस ग्राम सुराज अभियान में कुछ दिनों पूर्व एक विधायक को भी ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था, ये साफ़ साफ़ सन्देश है रमन सरकार के लिए कि नीतिओ में बदलाव जरूरी है अधिकारिओ पर कसाव जरूरी है, सरकार कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर चलाया जाता है नाकि निरंकुश अधिकारिओ के भरोसे. चुनावो को भले ही ढाई साल बचे है पर कार्यकर्ताओ कि पूछ परख रहेगी तभी भाजपा को विजयश्री प्राप्त हो पायेगी और ये अधिकारी वर्ग तो आंचार सहिंता के बाद से ही पराये हो जायेंगे.

10 दिन के सुराज से कोई बदलाव नहीं आना ग्राम स्तर पर ठोस कार्यक्रमो कि जरूरत है जो 24 घंटे और 365 दिन के लिए हो, ये छोटे मोटे गानों से कुछ नहीं होने वाला है साहब यहाँ तो पूरी पिक्चर कि जरूरत है, भाजपा को भी जरुरत है कि सरकार पे अपना लगाम लगा कर रखे नहीं तो 2014 का सपना एक बार फिर हाँथ से निकलता ही दिखेगा और लकीर के फकीर बनकर 2019 तक विरोध ही करते रहना पड़ेगा. प्रदेश कि ऐसी कई परियोजनाए है जो वाकई में सुराज ला रही है इनके क्रियान्वयन पे जोर देना होगा न कि अखबारों के विज्ञापन से किसी का भला हो पायेगा. ये अखबारों को भी शाबाशी देनी चाहिए जो अपने दोयम चरित्र को अपने मुख्य पृष्ठों पर छापने से भी नहीं कतराते है. एक तरफ ग्राम सुराज का लाखो का विज्ञापन और दूसरे तरफ उसकी निंदा…………..।

प्रकृति और मानव की कीमत पर हरित क्रांति

सरिता अरगरे

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में कीटनाशक एंडोसल्फान की बिक्री और उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश देने संबंधी एक याचिका पर केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए हैं। याचिकाकर्ता डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने न्यायालय से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार को मौजूदा रूप में एंडोसल्फान की बिक्री और उत्पादन पर रोक लगाने के निर्देश दे। याचिकाकर्ता की दलील है कि अनेक ऎसे अध्ययन सामने आए हैं जिनसे यह पता चलता है कि एंडोसल्फान मानव विकास को भी प्रभावित कर सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब तलब किया। कपास, कॉफी, मक्का सहित कई फसलों की खेती में कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल होने वाला एंडोसल्फान जीव-जंतुओं और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। एंडोसल्फ़ान को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है।

इस बीच भारत सहित कई विकासशील देशों को जहरीले कीटनाशक एंडोसल्फान के उत्पादन और इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए 11 साल का समय मिल गया है। साथ ही उन्हें कई अन्य रियायतें हासिल करने में कामयाबी मिली है। हाल ही में जिनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत और अन्य देशों ने जिन छूटों की माँग की थी, उन पर सहमति बन गई है। इधर कृषि मंत्री शरद पवार पहले ही कह चुके हैं कि एंडोसल्फ़ान पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाना व्यावहारिक नहीं है। सवाल है कि एंडोसल्फ़ान कीटनाशक पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता ?

 

जिस तरह सरकारों की चकाचौंध वाली विकास नीति के दायरे में यह बात कोई खास मायने नहीं रखती कि देश का राजस्व कौन किस तरह हड़प रहा है। उसी तरह उनकी कृषि नीति में भी आमतौर पर इस बात का कोई महत्व नहीं होता कि खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल खेती की जमीन की उर्वरता किस तरह बर्बाद करता है और इंसान की सेहत के लिए भी कितना घातक होता है। यही वजह है कि एंडोसल्फान नामक अत्यंत घातक कीटनाशक के खिलाफ उठ रही चौतरफा आवाजों का हमारी सरकारों पर कोई असर नहीं हो रहा है। भोपाल ने वर्ष 1984 में दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी झेली, जिसमें हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे और लाखों लोग जीवनभर के लिए बीमार हो गए। इस मानव निर्मित त्रासदी के दुष्प्रभावों से भी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। कीड़ों से बचाव के लिए खेतों में कीटनाशकों का उपयोग कोई नई बात नहीं है लेकिन एंडोसल्फान को दूसरे कीटनाशकों के बराबर नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इसके इस्तेमाल के दौरान और बाद में भी लोगों ने त्वचा और आँखों में जलन तथा शरीर के अंगों के निष्क्रिय होने तक की शिकायतें की हैं।

 

इस कीटनाशक के इस्तेमाल से होने वाली घातक बीमारियाँ सैकड़ों लोगों को मौत के मुँह में धकेल चुकी हैं और कई पक्षियों और कीट-पंतगों की प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं। इस कीटनाशक के घातक प्रभाव की सबसे ज्यादा शिकायतें केरल से आई हैं और केरल सरकार को पीड़ितों को मुआवजा तक देना पड़ा है। इसके बावजूद कृषि मंत्रालय ने निष्ठुरतापूर्वक कह दिया है कि इस कीटनाशक पर प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों संभव नहीं है? हाल ही में केरल के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मिलकर इस पर पाबंदी लगाने की माँग की थी।

 

इसी माँग को लेकर केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने एक दिन का उपवास भी रखा था लेकिन प्रधानमंत्री का रवैया टालमटोल वाला ही रहा। सरकार की दलील है कि इस कीटनाशक पर प्रतिबंध से पैदावार में कमी आएगी। सवाल उठता है कि ऐसी बम्पर पैदावार किस काम की, जो लोगों को बीमार बनाती हो और मौत के मुँह में धकेलती हो। यह मुद्दा मानवीय सरोकारों से जुड़ा है। केन्द्र सरकार और कांग्रेस वामदलों पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। यह अकारण नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्ण अय्यर को भी कहना पड़ रहा है कि इस मामले में प्रधानमंत्री उदासीनता बरत कर संविधान प्रदत्त जनता के जीवन के अधिकार का हनन कर रहे हैं।

 

इस कीटनाशक को 1950 में पेश किया गया था। इसका सब्जियों, फ़लों, धान, कपास, काजू, चाय, कॉफ़ी और तंबाकू जैसी 70 फ़सलों में इस्तेमाल होता है। केरल में इस कीटनाशक पर 2003 से प्रतिबंध है। कर्नाटक सरकार ने भी दो माह पहले इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है,जबकि आंध्र प्रदेश भी सभी कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की प्रक्रिया में हैं। मुमकिन है कि अगले कुछ साल में वहां भी इस रसायन के इस्तेमाल पर पाबंदी लग ही जाएगी। कीटनाशक दवा एंडोसल्फान के खिलाफ केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन द्वारा शुरू की गई मुहिम में मध्य प्रदेश भी खुल कर साथ आ गया है। प्रदेश के कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया भी समूची प्रकृति और इंसानों के लिये घातक साबित हो रहे इस कीटनाशक पर पाबंदी लगाने की पैरवी कर चुके हैं। कुसमरिया ने अच्युतानंदन को पत्र लिखकर उनके अभियान को देश व मानवीय हित में बताते हुए अपना समर्थन जताया है। उनका कहना है कि कृषि क्षेत्र में अत्याधिक जहरीले रसायनों का इस्तेमाल समूची मानव जाति और आसपास के परिवेश पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। इसी हफ़्ते हरदा ज़िले के वन क्षेत्र में खेतों में घुसकर फ़सल खाने से दुर्लभ प्रजाति के चार काले हिरनों की मौत हो गई। कीटों से फ़सलों की हिफ़ाज़त के लिये छिड़के गये कीटनाशक ने इन बेज़ुबानों की जान ले ली।

 

केरल के कृषि मंत्री मुल्लाकरा रत्नाकरन ने केंद्र सरकार से भी एंडोसल्फान के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई है, जिससे केरल में इसकी तस्करी नहीं हो सके। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एंडोसल्फान पर प्रतिबंध की मांग कर रहे राज्यों को भरोसा दिलाया कि अगर अध्ययन में इसके हानिकारक होने के सबूत मिलते हैं तो इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। इस पर रत्नाकरन का तर्क है कि क्या जहर को जहर साबित करने के लिए सबूतों की जरूरत होती है? अध्ययन से सिर्फ यह पता चल सकता है कि फलां रसायन से क्या नुकसान हो सकता है। रत्नाकरन कहते हैं कि केरल में इस रसायन के असर के आधार पर इन देशों ने अपने यहां एंडोसल्फान की बिक्री पर रोक लगा दी है लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि भारत में हम इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए अभी तक सबूतों का इंतजार कर रहे हैं। यह फलां रसायन हानिकारक है यह साबित करने के लिए क्या आधे देश का मरना जरूरी है ? कृषि मंत्री शरद पवार ने इस नुकसान के लिए केरल के किसानों को ही जिम्मेदार ठहराया है। पवार के अनुसार सरकारी दिशानिर्देशों के उलट केरल के किसानों ने एंडोसल्फान का हवाई छिड़काव करना जारी रखा।

 

पिछले दो दशक के दौरान कई देशों ने एंडोसल्फ़ान के स्वास्थ्य पर पडने वाले नुकसान को स्वीकार किया है। एंडोसल्फान दवा के इस्तेमाल पर दुनिया के अनेक देशों में प्रतिबंध है। ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और इंडोनेशिया उन 80 देशों की सूची में शामिल हैं, जिन्होंने एंडोसल्फान के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई हुई है। 12 अन्य देशों में इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। यहा तक कि बाग्लादेश, इंडोनेशिया, कोलम्बिया, श्रीलंका सहित अन्य देशों ने भी इसे सर्वाधिक प्रतिबंधित दवाओं की सूची में शामिल किया है। इसके बावजूद एंडोसल्फान भारत के अधिकतर राज्यों में धड़ल्ले से बिक रही है। इसके बेजा उपयोग से इंसानों और पर्यावरण पर बहुत बुरा असर हो रहा है। कीटनाशक पर पाबंदी की माँग करने वालों का आरोप है कि सरकार लोगों के बजाय कंपनियों को बचाने की कोशिश कर रही है। एंडोसल्फान का निर्माण बेयर और हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड्स लिमिटेड जैसी नामी कंपनियां करती हैं। देश में एंडोसल्फ़ान का सालाना उत्पादन 9,000 टन है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के स्टॉकहोम सम्मेलन के तहत 12 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया गया है। ये सभी कीटनाशक सतत जैविक प्रदूषक का काम करते हैं। अब इन प्रतिबंधित 12 कीटनाशकों की सूची में एंडोसल्फान को भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।

 

केरल में एंडोसल्फान के इस्तेमाल से कासरगोड़ में कई सौ लोगों के दिमाग में खराबी आने के सबूत मिले हैं और इसी आधार पर राज्य ने इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है। एंडोसल्फ़ान के खिलाफ़ संघर्ष करने वाले कासरगोड जिले में लोगों के स्वास्थ्य पर पड़े इसके खतरनाक प्रभावों का उदाहरण देते हैं। कासरगोड जिले के गाँवों में बच्चों पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया है कि एंडोसल्फ़ान के संपर्क में आने से लडकों की यौन परिपक्वता में देरी आ रही है। जिन गाँवों में एंडोसल्फान का छिड़काव किया जाता है, इसके इस्तेमाल से वहां रहने वाले लोगों के मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। बच्चों का शारीरिक विकास रुक गया है और दिमागी विकास दर भी बेहद कम हो गई है। इनका दावा है कि पहाड़ी क्षेत्रों में काजू की खेती में एंडोसल्फ़ान एकमात्र रसायन है जिसका इस्तेमाल 20 वर्षों से होता रहा और इसकी वजह से गांव का पर्यावरण दूषित हो गया है। यह रंगहीन ठोस पदार्थ अपनी विषाक्तता, जैव संग्रहण क्षमता और, अंतस्रावी ग्रंथियों की कार्य प्रणाली में बाधा पहुंचाने में भूमिका के लिए काफ़ी विवादास्पद कृषि रसायन के तौर पर उभरा है। गौरतलब है कि केरल के कासरगोड जिले में श्री पद्रे ने काजू के पेड़ों पर एंडोसल्फ़ान नामक रसायन नहीं छिड़कने सम्बन्धी अभियान को सफ़लतापूर्वक चलाया और किसानों को इसके खतरों तथा उसकी वजह से फ़ैल रहे जल प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के सम्बन्ध में समझाया तथा इसका छिड़काव रुकवाने में सफ़लता हासिल की। इसी वजह से एण्डोसल्फ़ान के दुष्प्रभावों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना गया।

 

पंजाब में एंडोसल्फान के इस्तेमाल का औसत राष्ट्रीय औसत से भी कई गुना अधिक है। पंजाब में हुए एक शोध के मुताबिक खेती में कीटनाशकों के इस्तेमाल से लोगों के डीएनए को नुकसान पहुँच सकता है। पटियाला विश्वविद्यालय के शोध के मुताबिक खेत में काम कर रहे मजदूरों में कैंसर का कारण भी यही कीटनाशक हो सकते हैं। इस नए अध्ययन में पंजाब के किसानों के डीएनए में परिवर्तन पाया गया जिससे उन्हें कैंसर होने की संभावना ब़ढ़ जाती है। इस शोध का निष्कर्ष चिंता का सबब है। किसान खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है। किसानों को विकल्प मुहैया कराना सरकार के लिए चुनौती है। आधी दुनिया के मर जाने का इंतजार करने के बजाय सतर्कता बरतते हुए इस पर प्रतिबंध लगाना ज्यादा बेहतर है। जहर का इस्तेमाल करने के बजाय हज़ारों विकल्प हो सकते हैं। किसानों को ये स्वस्थ विकल्प मुहैया कराना सरकार और वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी है और किसान इस बात से सहमत ही होंगे।

 

पूरे विश्व में अनाज, सब्जियां, फल, फूल और वनस्पतियों की सुरक्षा करने का नारा देकर कई प्रकार के कीटनाशक और रसायनों का उत्पादन किया जा रहा है; किन्तु इन कीटों, फफूंद और रोगों के जीवाणुओं की कम से कम पांच फीसदी तादाद ऐसी होती है जो खतरनाक रसायनों के प्रभावों से जूझ कर इनका सामना करने की प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती है। ऐसे प्रतिरोधी कीट धीरे-धीरेअपनी इसी क्षमता वाली नई पीढ़ी को जन्म देने लगते हैं जिससे उन पर कीटनाशकों का प्रभाव नहीं पड़ता है और फिर इन्हें खत्म करने के लिये ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा जहरीले रसायनों का निर्माण करना पड़ता है। कीटनाशक रसायन बनाने वाली कम्पनियों के लिये यह एक बाजार है। लेकिन भरपूर पैदावार पाने की चाह देश के अन्नदाताओं के लिये जानलेवा साबित हो रही है।

 

इस स्थिति का दूसरा पहलू भी है। जब किसान अपने खेत में उगने वाले टमाटर, आलू, सेब, संतरे, चीकू, गेहूँ, धान और अंगूर जैसे खाद्य पदार्थों पर इन जहरीले रसायनों का छिड़काव करता है तो इसके घातक तत्व फल ,सब्जियों एवं उनके बीजों में प्रवेश कर जाते हैं। फिर इन रसायनों की यात्रा भूमि की मिट्टी, नदी के पानी, वातावरण की हवा में भी जारी रहती है। यह भी कहा जा सकता है कि मानव विनाशी खतरनाक रसायन सर्वव्यापी हो जाते हैं। हमारे भोजन से लेकर के हर तत्व में ज़हर के अंश पैर जमा चुके हैं, फ़िर चाहे वो अनाज हो या फ़्ल-सब्ज़ियाँ। वास्तव में पानी और श्वांस के जरिये हम अनजाने में ही जहर का सेवन भी करते हैं। यह जहर पसीने, श्वांस , मल या मूत्र के जरिये हमारे शरीर से बाहर नहीं निकलता है बल्कि कोशिकाओं में जड़ें जमाकर कई गंभीर रोगों और लाइलाज कैंसर को जन्म देता है।

 

साल दर साल किसानों की आर्थिक दशा बद से बदतर होती जा रही है। साथ ही कृषि भूमि किसानों के लिए अलाभकारी होकर उनकी मुसीबतें बढ़ा रही है। रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी जहरीली हो रही है। अनुदानित हाइब्रिड फसलें मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर रही हैं और भूजल स्तर को गटक रही हैं। इसके अलावा इन फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का बेतहाशा इस्तेमाल न केवल भोजन को विषाक्त बना रहा है, बल्कि और अधिक कीटों को पनपने का मौका भी दे रहा है। परिणामस्वरूप किसानों की आमदनी घटने से वे संकट में आर्थिक संकट के दलदल में फ़ँस रहे हैं। खाद, कीटनाशक और बीज उद्योग किसानों की जेब से पैसा निकाल रहा है, जिसके कारण किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हैं। कर्ज के इस भयावह चक्र से बाहर निकलने का एक ही रास्ता है कि किसान हरित क्रांति के कृषि मॉडल का त्याग कर दें। हरित क्रांति कृषि व्यवस्था में मूलभूत खामियां हैं। इसमें कभी भी किसान के हाथ में पैसा नहीं टिक सकता।

आर. सिंह की कविता/दान वीर

मर रहा था वह भूख से,

आ गया तुम्हारे सामने.

तुमको दया आ गयी.(सचमुच?)

तुमने फेंका एक टुकड़ा रोटी का.

रोटी का एक टुकड़ा?

फेंकते ही तुम अपने को महान समझने लगे.

तुमको लगा तुम तो विधाता हो गये.

मरणासन्न को जिन्दगी जो दे दी.

मैं कहूं यह भूल है तुम्हारी,

तुम्हारे पास इतना समय कहां?

आगे ध्यान देते भी कैसे?

तुम तो खुश हो गये अपने इस कारनामे से.

पर काश! तुम देखते.

पता तुम़्हें लग जाता.

तुमने मजबूर किया उसे तडपने के लिये.

अब भी वह जूझ रहा है जीवन और मरण के बीच.

मरेगा वह फिर भी

पर कुछ देर तड़पने के बाद.

तुम दे सकते हो रोटी का एक टुकड़ा

काफी नहीं है वह किसी की जिन्दगी के लिए.

कितना अच्छा होता,

अगर तुम दे सकते किसी को जिन्दगी.

दर्शन को तैयार चारों धाम के द्वार

शादाब जफर ”शादाब”

देव भूमि उत्तराखण्ड सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है। यही कारण है कि लाखों करोड़ों श्रद्धालु हर वर्ष पुण्य कमाने के लिये देश विदेश से उत्तराखण्ड के विभिन्न तीर्थ स्थानों के साथ ही चार धाम यात्रा पर आते हैं। यूं तो आज भागमभाग की जिन्दगी में सब कुछ बदल गया है अब वो पहली जैसी भक्ति नजर नहीं आती। इन्सान आज पैसे से भक्ति के साथ-साथ भगवान को भी खरीदना चाहता है। आज देश में विश्व भर में प्रसिध्द बडे-बड़े मंदिरों में पैसे लेकर वीआईपी द्वार से धनवान लोगों को भगवान के दर्शन कराये जाते है। तीर्थ का मतलब इन दोनों भगवान के दर्शन मात्र ही रह गया है जबकि प्राचीन काल में तीर्थ यात्रा पर जाने वाला व्यक्ति पूर्ण रूप से धन दौलत संसार का मोह त्यागकर तीर्थ पर जाता था पर आज हम ज्यादा से ज्यादा दौलत अपने साथ लेकर तीर्थ पर जाते हैं, अच्छे से अच्छे होटल में कमरा बुक कराते है। पहले जमाने में पैदल चलते-चलते पांव में छाले पड़ जाते थे पर माथे पर कष्ट की एक लकीर तक नजर नहीं आती थी। तीर्थ यात्रा पर निकले लोगों पर तीर्थ का दिव्य वातावरण, वहा विद्यमान ऋषि-मुनियों की सुन्दर वाणी से निकलने वाली ज्ञान की गंगा और साधक हदय में उपस्थित भक्ति, भक्ति के जीवन को नई दिशा देने के साथ-साथ उस की आत्मा को परमात्मा से मिला देती थी। पिछले तीन या चार दशक पहले तक तीर्थयात्रा केवल आध्यात्मिक अर्थों में ही महत्वपूर्ण नहीं होती थी बल्कि हमारी ऐसी तमाम तीर्थयात्राओं का समाज के साथ साथ राष्ट्र पर गहरा प्रभाव पड़ता था। गरीब लोगों की मदद होती थी। मन स्वच्छ हो जाता था। मंदिरों और मठों में बने दिव्य स्थानों में प्राण-चेतना उभारने वाले प्रशिक्षण प्रवचन धार्मिक पाठयक्रमों का पाठ से लाभ प्राप्त का मनुष्य धन्य हो जाता था।

5 मई 2011 से श्री बदरीनाथ सहित उत्तराखण्ड के चारों धामों की यात्रा का ऋषिकेश में श्री बदरी-केदार की जय-जयकारों के साथ केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री हरीश रावत ने रोटेशन के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में पूजा अर्चना कार्यक्रम के बाद चारधाम यात्रा के लिये निकली चार बसों को हरी झंडी दिखाकर यात्रा का शुभारंभ किया। यूं तो चार धाम राष्ट्र के चारों कोनों में स्थापित जगन्नाथ, रामेश्वरम, द्वारिका और बद्ररीनाथ को कहा जाता है। ज्ञान की उपासक रही हिन्दू परम्परा में देव संस्कृति में प्रारम्भ से ही चार धामों के प्रति अपार श्रद्धा रही है जिस प्रकार चारों वेदों के मंत्रों में ईश्वर का वास माना जाता है ठीक उसी प्रकार मन से भगवान की भक्ति में लीन होने के बाद चार धामों में भी भक्तजनों को ईश्वरत्व की सहज ही अनुभूति प्राप्त होती है।

बद्रीधाम:- महाभारत व पुराणों में बद्ररीनाथ का वर्णन बद्ररीवन, बद्रिकाश्रम, तथा विशाला नाम से भी मिलता है। लगभग 15 मीटर ऊंचे भव्य द्वार से सजे बद्रीनाथ मंदिर का वर्तमान स्वरूप आदि शंकराचार्य जी की देन है। देव भूमि उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ का यह मंदिर भगवान विष्णु व उनके अवतार नारायण को समर्पित है। बदरी शब्द ‘ब’ एव ‘दरी’ शब्दों के संयोग से बना है। ‘ब’ का अर्थ है-परमात्मा और दरी का अर्थ है ‘गुहा’। अर्थात् बद्रीनाथ वो स्थान माना जाता है जहां परमतत्व की चेतना घनीभूत हो उठती है महार्षि व्यास ने यही पर पुराण लेखन भी किया था।

केदारनाथ:- ब्रहावैवर्त पुराण के अनुसार राजा केदार ने यहा कड़ी तपस्या की जिन के नाम पर इस स्थल का नाम केदारधाम पडा। आदिदेव शिव कला के भी देवता है। वही बारह ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ भी है। शंकराचार्य जी ने यहां 32 वर्ष की आयु में यही तपस्या कर अपना शरीर त्याग दिया था। ऋषि उपमन्यु ने भी यहा कठोर तप किया था। महाभारत के बाद पाण्डव भी यहां तप करने आये थे। भगवान महादेव को समर्पित प्राचीन केदारनाथ मंदिर आस्था के साथ-साथ कला के रूप में भी विश्व में प्रसिद्व है।

गंगोत्री धाम:- हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार पूर्वजों को श्रापमुक्त करने के लिये राजा भगीरथ ने यहा भगीरथी शिला पर तपस्या करके गंगा को यही पर धरती पर उतारा था। गंगा इन्हीं के तप-पुरूषार्थ से अवतरित हुई थी इसलिए भगीरथी कहलाई जाती है। प्रमुख देव स्थल गोमुख गंगोत्री से 14 किमी दूर है। प्रचीन काल में ये स्थल गंगोत्री में ही हुआ करता था। गंगोत्री धाम संस्कृति और जीवन का प्रमुख धाम है। गंगोत्री से कुछ ही दूरी पर चीड़ के वृक्षों का वन ”भेजवासा” तथा फलों का वन ”फूलवासा स्थित है।

यमुनोत्री:- यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है। मान्यता है कि शनि देव और यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया था कि जो कोई यमुनोत्री आकर पूजा अर्चना करेगा वह यम यातना व शनि के दंड से मुक्त रहेगा। उत्तराकाशी जिले से 171 किमी में 3291 मीटर की ऊचाई पर वर्ष भर बर्फ से इस के शिखर ढके रहते है। बन्दर पूंछ इसी पर्वत के पश्चिमी किनारे पर है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण 1850 ई0 में राजा सुर्दशन शाह ने कराया था। यमुनोत्री के निकट तीर्थ स्थलो में सूर्यकुण्ड, दिव्यशिला, हर की दून, हनुमान मंदिर आदि प्रमुख है। तो चले चार धाम की यात्रा पर।

इन्जीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में अफरातफरी

डॉ0 मनोज मिश्र

छात्रों की संख्या की दृष्टि से देश की सबसे बड़ी इन्जीनियरिंग (ए.आई.ई.ई.ई.) की प्रवेश परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो जाने से देश भर के प्रवेशार्थी छात्रों, अभिभावकों एवं इस व्यवस्था से जुडे अन्य लोगों के बीच अफरातफरी का माहौल है। आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा के बाद देश की सबसे प्रतिष्ठित इस परीक्षा में लगभग 11 लाख छात्र प्रतिवर्ष बैठते हैं, इस वर्ष भी लगभग 11.5 लाख छात्रों ने इस परीक्षा हेतु आवेदन किया था परन्तु ऐन परीक्षा के वक्त प्रश्न पत्र लीक हो जाने के कारण छात्रों से बीच में ही प्रश्न पत्र छीन कर परीक्षा स्थगित होने की सूचना के साथ परीक्षा कक्षों से बाहर कर दिया गया। कुल मिलाकर यह परीक्षा देश के 80 शहरों के 1600 केन्द्रों पर सम्पन्न हो रही थी जिसमें लगभग 11.5 लाख छात्र परीक्षा में बैठे थे। इस परीक्षा कार्यक्रम में आन लाइन परीक्षा के तहत 4500 छात्रों ने परीक्षा दी। सी.बी.एस.ई. बोर्ड प्रतिवर्ष ए.आई.ई.ई.ई. की परीक्षा लगभग 10 वर्षो से करा रहा है।

बड़े ताज्जुब की बात है कि देश की प्रतिष्ठित परीक्षाओं में शातिरों द्वारा सेंध लगाकर प्रश्न पत्र लीक होने की घटनायें अब जल्दी-जल्दी घटने लगी है। पिछले वर्ष ही उत्तर प्रदेश की बी.एड. की प्रवेश परीक्षा में भी इसी तरह की घटना हुई थी। जिसमें थोडे दिनांे की पुलिस-प्रशासनिक सरगर्मी के बाद कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकी। देश और प्रदेशों की कई अन्य प्रवेश परीक्षाओं के साथ भी इस तरह की घटनायें घट चुकी है। परन्तु कार्यवाही के परिणाम जाहिर नहीं हो सके है। ए.आई.ई.ई.ई. की प्रवेश परीक्षा की अफरातफरी के कारण करोड़ों रूपयो की हानि के साथ-साथ छात्रों को असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

जिससे इस प्रतियोगी परीक्षा मंे सम्मिलित होने वाले छात्र बेचैन है। इस प्रतिस्पर्धा के युग में जब आई.टी. का बोलबाला है तब इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति हमारी कार्य कुशलता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा संचालित ए.आई.ई.ई.ई. की प्रवेश परीक्षा 01 मई को प्रस्तावित थी। उत्तर प्रदेश की एस.टी.एफ के पकड़ने के बाद परीक्षाओं के एकाएक बिना भविष्य के स्पष्ट घोषित कार्यक्रम के स्थगित करने से परीक्षा केन्द्रो पर भगदड़ का माहौल बन गया था। बोर्ड द्वारा कोई स्पष्ट सूचना न तो परीक्षा केन्द्रांे पर भेजी जा सकी और न ही उनकी अपनी अधिकारिक बेबसाइट पर उपलब्ध थी। हैरानी की बात यह है कि बोर्ड द्वारा कुल मिलाकर परीक्षा कार्यक्रम पॉच बार संशोधित किय जाने की सूचना अलग-अलग स्रोतों से छात्रों को मिल रही थी। पहली बार 24 अप्रैल, उसके बाद क्रमशः 01 मई, 08 मई, 10 मई और अन्तोगत्वा 11 मई को छूटे हुए छात्रों की परीक्षा सम्पन्न होने की सूचना सी.बी.एस.ई की आधिकारिक वेबसाइट पर 2 मई को उपलब्ध हुई। ज्यादातर छात्रों की परीक्षा उसी दिन 09ः30 बजे के स्थान पर 12 बजे सम्पन्न हो गई परन्तु छूटे हुए लगभग 32500 छात्रों की परीक्षा अब 11 मई को सम्पन्न होने की सूचना है।

इस प्रवेश परीक्षा कार्यक्रम स्थगित होने के बाद इस पूरी प्रवेश परीक्षा व्यवस्था पर कई तरह के सवाल खड़े हो गये है मसलन, एक ही दिन में अलग-अलग कोड़ के प्रश्न पत्रों के प्रश्न नहीं बदलते है लेकिन क्रम बदल जाते है। परन्तु दूसरे दिन परीक्षा कराने से प्रश्न पत्र बदल जाने के साथ-साथ प्रश्न भी बदल जायेगें। जिससे इस परीक्षा की रैंकिग (।प्त्) में अन्तर आ जायेगा। वर्ष 2008 तथा 2009 की प्रवेश परीक्षा की कट ऑफ देखने से पता चलता है कि मात्र 10 अंकों के कम या ज्यादा होने से 5 हजार से लेकर 7 हजार छात्रों तक असर पड़ता है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में इस तरह की यह परीक्षा व्यवस्था किसी भी तरह से उचित नहीं कही जा सकती है। इसी तरह सी.बी.एस.ई. की आधिकारिक सूचनायें केवल आन लाइन ही मिल रही है जबकि देश का बड़ा भाग अभी भी इन्टरनेट की पहूॅच से काफी दूर है। इस हालात से जब देश में पूरी तरह से विद्युतीकरण भी नहीं हो पाया है उस समय इतनी महत्वपूर्ण सूचनायें मात्र आन लाइन देने से छात्रांे को जानकारी शायद ही हो पाये । जानकर ताज्जुब होगा कि इसी परीक्षा के आन लाइन कार्यक्रम में मात्र 4500 छात्रों ने परीक्षा दी है तथा जिन आन लाइन परीक्षा देने वाले छात्रों की परीक्षा छूट गई उन्हे भी कागज और पेन से परीक्षायें देनी पड़ रहीं है। अतः बोर्ड स्वयं आई.टी. सेवाआंे के मामले में विफल सिद्ध हुआ है। अतः इस तरह की सूचनाये देश के हिन्दी, अंग्रेजी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के बड़े-बड़े अखबारोे, टी.वी. तथा अन्य माध्यमेां से उपलब्ध कराई जानी चाहिए। सी.बी.एस.ई. बोर्ड को यह व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए कि एक भी छात्र की परीक्षा उनकी गलती से छूटे नहीं। बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट की सभी सूचनायें अपर्याप्त तरीके से मात्र अंग्रेजी में ही दी जा रही है जबकि देश के बहुत बड़े भू-भाग पर हिन्दी सहित अन्य भाषाओं को ज्यादा पढ़ा लिखा जाता है। इस तरह से परीक्षा संचालित कराने वाला बोर्ड विपरीत परिस्थितियों पूरी तरह से नकारा साबित हुआ है।

इस हड़बड़ाहट में परीक्षा कार्यक्रम घोषित कर संशोधित करने से देश भर के छात्रों में भ्रम का वातावरण पैदा हो गया है तथा परीक्षा की शुचिता पर प्रश्न चिन्ह उठ लग गया है। बेहतर यह होता कि बोर्ड परीक्षा टुकड़ों में सम्पन्न कराने के बजाये स्थगित कर एक साथ पूर्व सूचना देकर कराने के विकल्प का इस्तेमाल करती। सी.बी.एस.ई बोर्ड द्वारा संचालित ए.आई.ई.ई.ई. की प्रवेश परीक्षा की 4 अलग-अलग श्रेणियॉ घोषित करने से भी भ्रम का वातावरण निर्मित हो गया है। 4 में से 3 श्रेणियों में पुनः दो दिन बाद ही 05 मई तक रजिस्टेªश्न कराकर 09 मई से एडमिट कार्ड लोन की हड़बड़ाहट से पूरे देश में छात्रों के बीच अफरातफरी का महौल जारी है। इतने व्यस्त प्रवेश परीक्षा कार्यक्रमों में से इस तरह के वातावण से छात्र अपना सम्पूर्ण प्रदर्शन शायद ही कर पायें।

इस तरह की अव्यवस्था से कुछ प्रश्न उभर कर देश की नीति विशेषज्ञों, शिक्षाशात्रियों, प्रशासनिक और सरकारी अधिकारियों के समक्ष उभर कर आते है जिनका उत्तर ही समाधान होगा। इस समय देश में इन्जीनियरिंग और मेडिकल की कई तरह की प्रवेश परीक्षाये अलग-2 स्तरों पर एक ही कोर्स के लिए आयोजित की जा रही है जिससे छात्रों के घन, समय, क्षमता तथा धैर्य का बेमतलब मेें नुकसान होता है, उदाहरण के लिए इन्जीरियरिंग में प्रवेश हेतु आई.आई.टी.जेईई के अलावा, ए.आई.ई.ई.ई., विट्स पिलानी, बी आईटी वेल्लूर तथा कई विश्वविद्यालयों की अपनी-अपनी प्रवेश परीक्षायें आदि के साथ-साथ सम्बन्धित राज्य की इन्जीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा जिसमें ज्यादातर वही छात्र बैठते है जो अन्य लगभग सभी परीक्षाओं में बैठ चुके होतें हैं।

अतः छात्रों का अप्रैल, मई और जून का महीन प्रवेश परीक्षा के नाम पर व्यर्थ में बर्बाद होता है। इसी तरह मेडिकल और एम.बी.ए. सहित तमाम अन्य कोर्सों के लिए छात्रों को बेमतलब संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया जाता है। अब तो इस बात की भी जानकारी मिल रही है कि बहुत से संस्थान, विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा को मात्र इस लिये कराते हैं ताकि वे बड़े पैमाने पर धनोपार्जन कर सके। इस उबाऊ परीक्षा कार्यक्रम से छात्रों की क्रियाशीलता, कर्मठता तथा उनकी रचनात्मकता पर गहरा असर पड़ता है। छात्र केवल परीक्षा देने वाले हाड़ मॉस के पुतले रह जाते है जिनसे भविष्य की कोई आशा व्यर्थ में की जाती है। अब समय आ गया है कि इन्जीनियरिंग, मेडिकल, एम.बी.ए. तथा अन्य सभी तरह की परीक्षाये अखिल भारतीय स्तर पर एक कोर्स के लिए केवल एक ही परीक्षा कराई जाये। बड़े पैमान पर होने वाली परीक्षाओं पर प्रतिबन्ध लगाया जाये। कालेजों, संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों की रैंकिग की जाये तथा छात्रों को मेरिट के आधार पर संस्थान, विश्वविद्यालय या कालेेज चुनने का अवसर दिया जाये। इत तरह पूरी परीक्षा व्यवस्था उबाऊ न होकर एकरूपता लिये हुए होगी जिससे छात्र तनावमुक्त रह कर परीक्षा दे सकेंगे।

जयप्रकाश से अन्ना तक

गंगानन्द झा

अन्ना हजारे के अनशन को केन्द्र में ऱखते हुए हो रही हलचल सन 1974 ई में बिहार के जयप्रकाश आन्दोलन की याद ताजा करती है। फर्क है इन आन्दोलनों के पीछे की शक्ति की पहचान में, अन्ना की सेना सिविल सोसायटी कहलाते हैं, जयप्रकाश की सेना छात्र कहलाते थे। उस समय सिविल सोसायटी का फैशन नहीं उभड़ा था।

वे दिन अलग किस्म के थे, समानता थी कि भ्रष्टाचार तब भी था। लोग तब भी सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार की भर्त्सना करते थे, यद्यपि भ्रष्टाचारियों को सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती रही थी। फिर अस्सी के दशक में भ्रष्टाचार को सार्वजनिक संभाषण में केन्द्रस्थ स्थान में श्री विश्वनाथ प्रसाद सिंह बोफोर्स के मुद्दे से ले आए थे। भ्रष्टाचार विरोध को समाजिक संभाषण में लाने का लाभ इन सबों को मिलता रहा है,तो यह इनका प्राप्य रहा है।साठ का दशक भारतीय राजनीति में दूरगामी परिवर्तन की संभावना का संकेत तो देता रहा, पर सत्ता-परिवर्तन मरीचिका ही बना रहा। राजनीतिक परिवर्तन की सम्भावनाएँ सन 1971 ई में आयोजित आम चुनाव में सभी गैर-कॉंग्रेसी राजनीति दलों के महागठजोट(Grand alliance) की निर्णायक पराजय से ध्वस्त-सा हो गया। सन 1967ई में पहली बार राज्यों में तो गैर-कॉंग्रेसी सरकारें बनी, पर केन्द्र में सत्ता बचाए रखने में कॉंग्रेस सफल रही । फिर सन 1969 ई. में भी वैसा ही हुआ. केन्द्र में कॉंग्रेस का पहुमत कम होने पर भी सरकार चलती रही। जब सन 1972 ई के आम चुनाव में तमाम विरोधी दल महागठजोड़ (grand alliance) बनाने के बावजूद निर्णायक रूप से हार गए तो इनकी हताशा चरम अवस्था पर पहुँच गई। ऐसी अफवाह को भी वे स्वीकार करते दिखे कि बैलॉट पेपर पर छाप देने वाली स्याही विशेष रूप से रूस से मँगाई गई थी। इसकी खासियत थी कि चाहे किसी भी दल के चुनाव चिह्न पर लगाया जाए, यह स्याही कॉंग्रेस के चिह्न पर ही उगती थी। नतीजा हुआ कि राजनीतिक प्रक्रिया द्वारा सत्ता में आने का भरोसा क्षीणतर हो गया। सन 1972 ई में बांग्ला देश के आविर्भाव होने पर तो प्रधानमंत्री के रूप में इन्दिरा गांधी राष्ट्र को गौरव की प्रतीक हो गईं। गैर कॉंग्रेसियों में हताशा, अविश्वास का निराशावाद स्वीकृति पाता दिखने लगा। इधर बांग्ला देश के जन्म में धात्री की भूमिका का निर्वहन करने के कारण देश की आर्थिक स्थिति काफी संकटग्रस्त हो गई थी। टैक्सेस बढ़ाए गए, आवश्यक सामग्रियों के उत्पादन में कमी आ गई थी। तस्करी-कालाबाजारी, मिलावट में बढ़ोत्तरी आई थी। सन 1972 ई. में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रशासनिक आदेश द्वारा विश्वविद्यालयों में सरकारी अधिकारियों को कुलपति और कुल सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया। नई व्यवस्था से परीक्षाओं में एकाएक प्रभावी रूप में कदाचार पर रोक लग गई। फलस्वरूप शिक्षण-संस्थाओं में बेरोक-टोक पनप रहे निहित स्वार्थ के तंत्र के लिए अस्तित्व का संकट प्रत्यक्ष होने लगा। सन 1973 ई. में आयोजित विशवविद्यालयीय परीक्षाओं में इनेगिने परीक्षार्थियों को ही सफल घोषित होने का अवसर मिला। इस पृष्ठभूमि में बिहार सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध छात्र-संगठनों के बैनर तले आन्दोलन की घोषणा की गई और इसे सम्माननीयता प्रदान करने के लिए जयप्रकाश नारायण को प्रेरित किया गया। जयप्रकाश ने मोर्चा सँभाला और छात्रों को पढ़ाई एवम् परीक्षा का वहिष्कार करने का आह्वान किया। शिक्षा पद्धति के दोषपूर्ण होने की बातें कही गईं, बिना किसी खाके के रूप रेखा के सम्पूर्ण- क्रान्ति के नारे उठाए गए। बिहार सरकार ने जवाब में परीक्षार्थियों को परीक्षाओं में नकल, कदाचार करने की पूरी छूट की व्यवस्था कर दी ।

कॉंग्रेस की रण-नीति काम आई । भ्रष्टाचार जीतता गया, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन जीतता गया। शिक्षा- पद्धति का दोषगुण अक्षत रहा और सम्पूर्ण क्रान्ति की उपयोगिकता एवम् प्रसंगिकता आई-गई बात हो गई । फिर बिहार में चुनाव के बाद गैर कॉंग्रेसी सरकार बनी। शिक्षण संस्थाओं में परीक्षाएँ आयोजित हुईँ । कदाचार में पकड़े जाने पर छात्र आन्दोलन को सफल बनाने वालों ने नारे लगाए —“चोरी से सरकार बनी है.चोरी से हम पास करेंगे।”

अस्सी के दशक में श्री विश्वनाथ प्रसाद सिंह की अगुवाई में बोफोर्स तोपों की खरीद में 996 करोड़ रूपयों के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और अन्ततोगत्वा राजीव गांधी की सरकार अप्रतिष्ठित किया। फिर जयप्रकाश के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से उभड़े लालू प्रसाद के हजार करोड़ से अधिक के चारे घोटाले की चर्चाएँ जनता के लिए मुखरोचक बनी रहीं । आज, जब अन्ना मोर्चे पर हैं तो लाखों करोड़ो से कम के घोटाले चर्चा का सम्मान नहीं पाते।

भ्रष्टाचार विरोध सदा से कामधेनु रहा है। सत्तर के दशक के बाद तेजी से पसरे गैर-सरकारी संस्थाओं(N.G.Os) की बेल ने इस मुहिम को सफलता से आगे बढ़ाया है। और भ्रष्टाचार भी साथ साथ दृढ़ता से पाँव पसारता जा रहा है।

अंतवस्त्रों और चप्पलों पर हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीर

अवनीश सिंह

कुछ दिन पहले भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाकर अपनी लोकप्रियता में चार चाँद लगाया था। उसके कुछ ही दिन बाद एक विदेशी वेश्या काली का रूप धरकर मर्दों से आलिंगन करती हुई अपने आपको सबसे अलग दिखाने की कोशिश में मशहूर हो गयी।

पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुए एक फैशन शो में लिसा ब्लू नामक फैशन डिज़ाईनर द्वारा खुल कर हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान का मामला सामने आया है। इस फैशन शो में डिजाइनर लीजा ब्लू ने जो कलेक्शन पेश किया उसमें हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों को अश्लील तरीके से इस्तेमाल किया गया। फैशन शो में एक मॉडल के अंत वस्त्रों पर और जूते चप्पलों पर हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरों का प्रदर्शन किया गया, और हमेशा की तरह धर्मनिरपेक्षता के चलते दुनिया के एक मात्र हिन्दू बहुसंख्यक देश भारत की नपुंसक सरकार ने इस मामले में रूचि लेना तो दूर की बात अंतरराष्ट्रीय समाज में इस कुकृत्य के लिए कोई विरोध दर्ज कराना भी उचित नहीं समझा।

ऐसी हास्यास्पद घटनाओं की जितनी निंदा की जाए, कम है। बार बार हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान हो रहा है। यह इस देश की विडंबना है अगर ऐसी घटना किसी अन्य समुदाय के साथ हो तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है। यह घृणात्मक कृत्य इस बात का द्योतक है कि पश्चिमी समाज कितना असभ्य, आशालीन और शैतानियत का नेतृत्व करने वाला समाज है। हिन्दुओ में जागरूकता, विवेक, हौंसले तथा संगठन की कमी है जिस कारण यदा-कदा कोई न कोई घटना देश या फिर विदेश में घटती ही रहती है। मुसलमानो का गुस्सा इस असभ्य समाज के प्रति कितना सही है वास्तव मे अब कुछ लोगों को समझ मे आ रहा होगा। डेनमार्क में एक कार्टून बनता है और पूरे विश्व का मुसलमान सड़कों पर उतर जाता है।

हालांकि, विदेशों में इस तरह की हरकत का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी सस्ती लोकप्रियता और विवादों में बने रहने के लिए और भी कई हस्तियों ने देवी-देवताओं के चित्रों को मोहरा बनाया। कभी जूते-चप्पल पर, तो कभी टॉयलेट शीट पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई जा चुकी हैं। पिछले साल ही एक नामी मल्टिनैशनल कंपनी ने भगवानों की तस्वीरों वाले जूते बाजार में उतारे थे। एक नामी फैशन डिजाइनर ने तो सारी हदें ही पार कर स्विमवेयर पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई थीं, उसका भी जमकर विरोध हुआ था और उसे अपनी ड्रेस वापस लेनी पड़ी थीं। ये मानसिक रुप से कितने दिवालिए हो सकते हैं, यह इन तस्वीरों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

धार्मिक मान बिंदु आस्था के प्रतीक होते हैं और हर समुदाय के अपने धार्मिक मान बिंदुओं के सम्मान की रक्षा का पूर्ण अधिकार है। बात-बात पर हिन्दुओं के विरुद्ध बोलने-लिखने वाले “सैकुलर” अब इन प्रश्नों का क्या जवाब देंगे। आज देश की राजनीति को अपने घर की बपौती समझने वाले, धर्मनिरपेक्ष शब्द का भी कहाँ पालन कर रहें हैं। यहाँ तो तुष्टिकरण का खेल चल रहा है, भारत के हित में सोंचने वालों को सांप्रदायिक करार दिया जाता है तथा संस्कृति का गला घोंटने वाले धर्मनिरपेक्ष कहलाते हैं। सेक्युलारिस्म की आड़ में आम इंसान को रौंदा जा रहा हैं। यह तुष्टीकरण की नीति एक बडी बीमारी है! इससे तथाकथित “अल्पसंख्यकों” के वोट खीचे जा सकते हैं लेकिन भारत का भला नहीं हो सकता। रही बात हिंदुत्व वाद की तो आज हिन्दुओ में दम ही नहीं है… उनके लिए एक जॉब, एक सुन्दर पत्नी और थोडा सा बैंक में मनी ही बहुत कुछ हैं। इसके विपरीत में गैर हिन्दूओं का स्लोगन हैं चाहे पंचर जोड़ेगे पर भारत को तोडे़गे। यह स्लोगन मैंने एक पत्रिका में पढ़े थे वाकई आज सही साबित हो रहा है।

आज तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों के द्वारा जिस तरह से हमारी शाश्वत संस्कृत को धूमिल और मिटने के कुत्सित षड्यंत्र रचे जा रहे हैं वह निंदनीय और भत्सर्नीय नहीं अपितु दण्डनीय है। इस तरह के दुष्प्रचारकों को कड़ा से कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि इन कुकृत्यों का मुंह तोड जवाब दिया जाना चाहिए …और भारत सरकार को भी अब अपनी किन्नरी आदत को छोडकर बाहर आना चाहिए।

हिन्दू एकता देश के लिए जरूरी क्यों ?

आनन्द शंकर पण्डया

01. भारत को यदि पड़ोसी शत्रुओं के हाथ में जाने से बचाना है, इस्लामी जेहादी आतंकवादियों से देश की रक्षा करनी है, इस गृहयुद्ध से देश बचाना है, यदि भारत को अखण्ड और एकात्म रखना है तो इसके लिए अत्यावश्यक है – हिन्दू एकता।

02. जब हिन्दू राजाओं में एकता नहीं थी तब भारत ने अपनी आजादी खो दी थी; पर जब महात्मा गाँधी के नेतृत्व में हिन्दू एकता हुई तो भारत ने ब्रिटेन से अपनी आजादी वापस ले ली। सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, रामराज्य व गोरक्षा पर आधारित गाँधी जी का आजादी आन्दोलन हिन्दू आन्दोलन ही था। तभी उन्हें सफलता मिली, वे सारे विश्व में पूज्य बने।

03. हिन्दू एकता भारत की आत्मा को जाग्रत करेगी। भारत का स्वाभिमान, आध्यात्मिकता और ऋषियों का ज्ञान वापस आयेगा। परिणामस्वरूप देश से भ्रष्टाचार और अनैतिकता दूर होने के रास्ते खुलेंगे। भारत पुन: जगद्गुरु के रूप में विश्व का मार्गदर्शक बनेगा। हमारे शत्रु भी हमसे मित्रता करने के लिए हाथ बढ़ायेंगे।

04. हिन्दू एकता के अभाव में ही देश में जेहादी आतंकवाद, तीन करोड़ विदेशी बांग्लादेशियों की घुसपैठ, हिन्दुओं का धर्मान्तरण, गौहत्या, मठ-मंदिरों की सरकारी अधिग्रहण के माध्यम से लूट, हिन्दू संतों और देवताओं का अपमान, नारियों पर अत्याचार-बलात्कार, हिन्दुओं के साथ अंधाधुंध भेदभाव, अन्याय, अत्यन्त सहनशील हिन्दू समाज और महान् हिन्दू धर्म को नष्ट करने के षडयन्त्र बहुत तेजी से बढ़े। हिन्दू एकता से ये बुराईयाँ स्वयं नष्ट होने लगेंगी।

05. हिन्दू एकता का सबसे अधिक लाभ समाज की दौड़ में पिछड़े रह गए बन्धुओं को, गरीबों को और देश के बेरोजगार नवयुवकों को मिलेगा। हिन्दू विरोधी अपने को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने वाले राजनेताओं द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से गरीब जनता के परिश्रम का लाखों करोड़ रुपया जो विदेशी बैंकों में जमा है वह भारत वापस लाकर बेरोजगारी दूर करने में और समाज में पिछड़े रह गए बन्धुओं की भलाई में खर्च किया जा सकेगा। विदेशों में जमा कुल धन गाँव में बाँटने पर एक गाँव के हिस्से में कई सौ करोड़ रुपया आयेगा।

06. हिन्दू एकता से ही विश्वशान्ति, विश्वसमृध्दि, विश्वसमन्वय और विश्वएकता संभव। हिन्दू एकता का किसी से विरोध नहीं है। यह सर्वेषां अविरोधेन् है। हिन्दू के लिए सारा विश्व एक कुटुम्ब है। इसमें हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी सभी सम्मिलित हैं। हिन्दू वसुधैव कुटुम्बकम् को मानता है।

07. यद्यपि भारत आज आजाद है; पर हिन्दू आजाद नहीं। हिन्दू की गुलामी को दूर करने के लिए हिन्दू एकता आवश्यक; अत: सभी हिन्दुओं को अपनी जाति, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय व राजनीतिक दलों के भेदभाव को भूलकर हिन्दू के रूप में एक छत के नीचे आना आवश्यक है तभी हम अपने देश को एक रख पायेंगे और देश की आजादी की रक्षा कर पायेंगे।

आप अपने-अपने क्षेत्र में स्वयं अपनी ही रक्षा के लिए इस आन्दोलन से जुड़ें। नित्य पदयात्राओं के माध्यम से हिन्दू को इकट्ठा करें, हिन्दू एकता का भाव निर्माण करें यही लोकतन्त्र व अहिंसा का मार्ग है।

(लेखक विश्व हिन्दू परिषद के सलाहकार मण्डल के सदस्य हैं।)

आर. सिंह की कविता/स्वप्न भंग

मत कहो मुझे बोलने को.

मेरे मुख से फूल तो कभी झड़े नहीं,

पर एक समय था जब निकलते थे अंगारे.

एक आग थी,

जो धधकती थी सीने के अंदर.

एक स्वप्न था,

जो करता था उद्वेलित मष्तिष्क को.

एक लगन थी, कुछ कर गुजरने की.

लगता था, क्यों पनपे वह सब

जो नहीं है उज्जवल,

जो नहीं ले जाता आदर्श की ओर.

जीता था मैं सपनों में.

बनना चाहता था संबल,

साकार करने का उन सपनों को.

दृष्टि उठती थी कुछ लोगों की ओर.

समझता था मैं महान उनको,

मानता था आदर्श अपना.

पर देखते-देखते उतर गया,

मुखौटा उनका.

असली चेहरे पर जब पड़ी निगाह ,

पता चला,

वे तो अपनी दूकान सजाने में लगे हैं.

मेरे मुख से भी अंगारे निकलने बंद हो गये,

धीरे-धीरे आहिस्ता-आहिस्ता.

बांग्ला चैनलों में प्रतिगामी राजनीति का अंत

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

बांग्ला चैनलों के आने बाद से पश्चिम बंगाल का राजनीतिक वातावरण बुनियादी तौर पर बदला है। बांग्ला चैनलों ने नए सिरे से राजनीतिक ध्रुवीकरण किया है। नव्य उदार आर्थिक नीतियों और पूंजीवाद विरोधी वातावरण को तोड़ा है। यह प्रक्रिया 2006 में आरंभ हुई थी। इस समय तारा न्यूज,महुआ खबर,स्टार आनंद,24 घंटा,न्यूज टाइम,कोलकाता टीवी, आर न्यूज , आकाश आदि आधे दर्जन से ज्यादा समाचार चैनल हैं जिनसे अहर्निश खबरों का प्रसारण होता है। इनमें ’24 घंटा’ और ‘आकाश’ चैनल की ‘वामचैनल’ हैं।माकपा के प्रति इनकी सहानुभूति है। अन्य चैनलों का किसी दलविशेष से संबंध नहीं है। इन्हें ‘अ-वाम चैनल’ कहना समीचीन होगा। इन चैनलों की राजनीतिक खबरों का फ्लो वामविरोध पर आधारित है। वामविरोधी समाचार फ्लो बनाए रखने के नाम पर वाम उत्पीड़न पर इन चैनलों ने व्यापक कवरेज दिया है। अन्य विषयों को मुश्किल से 5 फीसदी समय दिया है।

‘अ-वाम चैनलों’ की प्रस्तुतियों ने स्टीरियोटाइप वक्ता और रूढ़िबद्ध तर्कों के आधार पर वाम राजनीति के बारे में नए आख्यान को जन्म दिया है। इससे वामविरोधी राजनीतिक दलों की इमेज चमकी है। इससे वामविरोधी समूहों को एकताबद्ध करने में मदद मिली और नव्यउदार राजनीति के प्रति आकर्षण हुआ है। साथ ही माकपा की वैचारिक घेराबंदी टूटी है। मसलन् एक जमाने में वामदलों ने नव्य आर्थिक उदारवाद के खिलाफ जमकर प्रचार अभियान चलाया था लेकिन विगत पांच सालों में चैनल संस्कृति का असर है कि वामदलों ने नव्य उदारतावाद के खिलाफ अपना राजनीतिक प्रतिवाद धीमा किया है। साथ ही नव्य उदार संस्कृति के विभिन्न रूपों को धीमी गति से राज्य में पैर फैलाने में मदद की है। आज टीवी संस्कृति के दबाव के कारण वाम और गैर-वाम दोनों ही धड़े नव्य उदार संस्कृति के प्रभावमंडल में चमक रहे हैं।

टेलीविजन में अंतर्वस्तु महत्वपूर्ण नहीं होती ‘फ्लो’ महत्वपूर्ण होता। वामचैनलों ‘चौबीस घंटा” और “आकाश” ने अधिनायकवादी मॉडल को आधार बनाकर इसबार विधानसभा का चुनाव कवरेज दिया है। इन चैनलों की समस्त कार्यप्रणाली और अंतर्वस्तु को माकपा के मीडिया बॉस ऊपर से नियंत्रित करते हैं। संवाददाताओं की रिपोर्ट में किसी भी किस्म का पेशेवर भाव नहीं होता। वे बड़े उग्र भाव से पार्टी सदस्य की तरह डिस्पैच भेजते हैं। संवाददाता जब पार्टी का भोंपू बन जाता है तो सत्य की हत्या कर बैठता है। यह बीमारी किसी भी दल में पैदा हो सकती है। ‘वाम चैनल’ मानकर चल रहे हैं जनता अनुगामी है और उसे जो बताया जाएगा वह उस पर विश्वास करेगी। यह मॉडल आम दर्शकों में साख नहीं बना पाता क्योंकि दर्शक अन्य चैनलों का कवरेज भी देखते हैं। वाम चैनलों की आक्रामक प्रस्तुतियों में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर कम है और वामदलों की नीतियों पर जोर ज्यादा रहा है। इस तरह का प्रसारण दर्शक को लोकतंत्र से बांधने की बजाय विचारधारा से बांधता है। फलतः वामचैनल तटस्थ दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाते। इसबार वामचैनलों ने ममता बनर्जी की रेल मंत्रालय की गतिविधियों को निशाना बनाया था। मजेदार बात यह है रेल मंत्रालय का राज्य विधानसभा चुनाव से कोई संबंध नहीं है। इस प्रौपेगैण्डा मॉडल की स्थिति यह है कि इसमें सत्य अनुपस्थित नहीं रहता अपितु भिन्न किस्म का सत्य रहता है। इसमें अर्द्ध सत्य,सीमित सत्य और संदर्भ के बाहर का सत्य भी शामिल है। रेल मंत्रालय का सत्य पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाहर का सत्य है।यह राज्य का सत्य नहीं है। माकपा नियंत्रित चैनलों ने माकपा समर्थक बुद्धिजीवियों और शिक्षितों को सबसे ज्यादा असुरक्षित किया है। ये लोग इकतरफा प्रचार अभियान से सबसे ज्यादा परेशान हैं और अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। वाम चैनलों ने वाम की पूर्वनिर्मित इमेज,धारणाओं और एटीट्यूट को प्रचारित किया। वाम की पहले से जो राय रही है उसका ही प्रचार करता है। सिर्फ गौतमदेव के भाषणों में वाम की पूर्व निर्धारित नीतियों का विकल्प तेजी से सामने आया। माकपा नियंत्रित प्रचार अभियान लोकतंत्र को आधार नहीं बनाता बल्कि पार्टी और उसकी नीतियों को आधार बनाता है। इस तरह के प्रचार का लक्ष्य है पार्टी के पीछे आम लोगों को गोलबंद करना। इस प्रचार का सामान्य लोकतांत्रिक प्रचार मॉहल के साथ तीखा अंतर्विरोध है।इसके विपरीत ‘अ-वाम चैनलों’ के समूचे समाचार फ्लो और टॉकशो फ्लो ने तटस्थ सूचनाओं और गैर वाम विकल्पों को व्यापक कवरेज दिया है। इस क्रम में विभिन्न रूपों में लोकतंत्र को बुनियादी आधार के रूप में प्रचारित किया। ‘अ-वाम चैनलों’ ने सत्ता और जनता के बीच में व्याप्त असमानता और वैषम्यपूर्ण संबंधों को उजागर किया । सत्ता में जनता के प्रति उपेक्षा, अलगाव और संवेदनहीनता से जुड़ी खबरों को तत्परता के साथ उजागर किया है। सत्ता के अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने की भावना पैदा करके आंदोलनों में जनता की शिरकत को बढ़ाया है। जनता की आंदोलनों में शिरकत बढ़ाना मीडिया की लोकतांत्रिक भूमिका है। इन चैनलों से जो खबरें आयी हैं उनमें कम से कम झूठी खबरें अभी तक दिखाई नहीं दी हैं। ऐसी खबर नहीं दिखाई गयी जो घटना घटी ही न हो। ‘अ-वाम चैनलों’ ने उन समस्याओं,घटनाओं ,राजनीतिक विकल्पों को सामने रखा जिनकी राज्य प्रशासन और वामचैनलों ने उपेक्षा की या दबाया। ‘अ-वाम चैनल’ उस वातावरण को नष्ट करने में सफल हुए हैं जिसे वामदलों ने भय और असुरक्षा के आधार पर निर्मित किया था। निर्भीक होकर बोलने की आजादी का विस्तार किया है। बंद दिमागों को खोला है। यह संदेश भी दिया है कि मुक्त दिमाग के खिलाफ पार्टीतंत्र का बौना है। इस तरह की प्रस्तुतियां स्वैच्छिक और विकेन्द्रित हैं। इसके विपरीत ‘वाम चैनलों’ में आत्म-नियमन और आत्म-सेंसरशिप हावी रही है। इन चैनलों ने एक ओर समाचारों को नियंत्रित करने की कोशिश की वहीं दूसरी ओर खबरों को नियंत्रित किया। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने वाम चैनलों के अलावा अन्य चैनलों को एकदम समय नहीं दिया।यह स्वयं में अलोकतांत्रिक है। दूसरी ओर ममता बनर्जी का वामचैनलों ने इंटरव्यू नहीं लिया। राज्य के दो बड़े नेताओं का यह भावबोध भविष्य में टीवी और इन दो नेताओं के बीच में टकराव के बने रहने का संकेत है।

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

 

कांग्रेस के ओसामा जी!

डेढ़ सौ साल पुरानी और भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चेहरा इक्कीसवीं सदी में बदरंग हो चुका है। आला नेता अब कांग्रेस की गाड़ी अपने अपने तरीके से ही हांक रहे हैं। कांग्रेस की बैलगाड़ी के सारथियों की फेहरिस्त में राजा दिग्विजय सिंह का अंदाज सबसे निराला ही माना जा सकता है। इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के चाणक्य की भूमिका में रहने वाले महासचिव सिंह ने दुनिया भर में आतंक का पर्याय माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर अनेक प्रश्न दाग दिए हैं। यहां तक कि दिग्विजय सिंह ने लादेन को ‘ओसामा जी’ तक कहकर संबोधित कर दिया। एक तरफ कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा आतंक के लिए ओसामा और पाकिस्तान को दोषी ठहराया जाता है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के ही एक निष्ठावान सिपाही द्वारा ओसामा को समुद्र में दफनाए जाने पर आपत्ति जताई जाती है। कांग्रेस के न जाने कितने चेहरे हैं जो परत दर परत जनता के सामने आते जा रहे हैं।

अश्विनी बने मोंटेक की नाक का बाल

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और विवादों का गहरा नाता रहा है। कभी वे कमल नाथ से उलझे तो कभी जयराम रमेश से दो दो हाथ कर लिए। मोंटेक इन दिनों खासे परेशान नजर आ रहे हैं। एक तरफ तो प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के वीटो के बाद भी वे वित्त मंत्री नहीं बन पाए वहीं दूसरी ओर योजना आयोग के नए नवेले मंत्री अश्विनी कुमार उन्हें चैन से रहने नहीं दे रहे हैं। योजना आयोग की हर फाईल को अब बरास्ता अश्विनी कुमार होकर गुजरना पड़ रहा है। इतना ही नहीं जब प्रसार प्रसार की बात आती है तो अश्विनी कुमार मुस्तैदी से फ्रंट पर खड़े दिखाई दे जाते हैं। उधर अहलूवालिया के करीबियों का कहना है कि मोंटेक ने ही कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह से कहकर अश्विनी को मंत्री बनवाया वही अश्विनी आज मोंटेक को आंखें दिखाने से नहीं चूक रहे हैं।

मछली पी गई सागर का पानी

क्या कभी मछली खुद समुंदर का पानी पी सकती है! जी हां, सच है, मछली सागर का पानी पी सकती है। एसा सिर्फ और सिर्फ भारत गणराज्य के जनसेवक और लोकसेवकों के राज में हो सकता है। कांग्रेस की सरकार की नाक के नीचे कामन वेल्थ गेम्स की आयोजन समिति ने यह चमत्कार कर दिखाया है। सीबीआई के सूत्रों के अनुसार आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी द्वारा स्विस ओमेगा कंपनी को सारे नियम कायदों को किनारे रखकर 108 करोड़ रूपयों में टाईम, स्कोर और नतीजे के उपकरणों की आपूर्ति का ठेका दिया था। मजे की बात यह है कि इन्हीं उपकरणों को स्पेन की एक कंपनी महज 47 करोड़ रूपयों में ही देने को तैयार थी। सूत्रों के अनुसार इस स्विस कंपनी को भारत सरकार को कर के रूप में दिए जाने वाले 34 करोड़ रूपए भी माफ कर दिए गए। कुल मिलाकर कलमाड़ी की मिली भगत से उक्त कंपनी ने 135 करोड़ रूपयों का गाला कर जनता के गाढ़े पसीने की कमाई में आग लगा दी गई।

अन्ना की पाती का इंतजार!

करप्शन के खिलाफ समूचे भारत को कम समय में ही एक छत के नीचे लाने वाले अन्ना हजारे की खिलाफत के स्वर बुलंद होने लगे हैं। उन पर आरोप लगने लगा है कि वे किसी दल विशेष के इशारे पर काम कर रहे हैं। सच्चाई क्या है यह तो वे ही जाने किन्तु अपने साथियों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए हजारे द्वारा वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह को पत्र न लिखना भी अजीबोगरीब ही माना जा रहा है। हजारे ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश को भी इस तरह के आरोपों की जांच के लिए पाती नहीं लिखी गई है। निचले तबके में चल रही बयार के अनुसार करप्शन के खिलाफ हल्ला बोलने वाले अन्ना हजारे अपने ही कथित भ्रष्ट साथियों का बचाव करने पर आमदा दिखाई पड़ रहे हैं, जो कि अनुचित है। जब अन्ना ही एसा करेंगे तो उनके एंटी करप्शन मूवमेंट का तो भगवान ही मालिक है।

सिम्पलिसिटी ऑफ संघ इज ओवर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सादगी का चोली दामन का साथ है। चाहे केंद्रीय मुख्यालय नागपुर हो या दिल्ली का झंडेवालान स्थित केशव कुंज हर जगह संघ के आला नेता बेहद ही सादगी के साथ जीवन निर्वाह करते नजर आते हैं। अपना काम खुद करने और सादा जीवन उच्च विचार रखने के लिए पहचाने जाते हैं संघ के नेता। संघ से भाजपा में आए एक राष्ट्रीय महामंत्री की कार्यप्रणाली से लगता है कि संघ की सादगी अब समाप्त हो चुकी है। दिल्ली के अशोक रोड़ स्थित मुख्यालय में उक्त महामंत्री ने भाजपा के आला नेता की डिजायनर चप्पल देखने के बाद अपने हरकारे को उसी डिजाईन की चप्पल लेने करोल बाग रवाना किया। चप्पल आई पर महामंत्री को रास न आई, बाद में उक्त महामंत्री ने अपने चेले को पंद्रह हजार रूपए देकर दस जोड़ी चप्पलें मंगवाई, उनमें से एक चप्पल उन्हें पसंद आ गई। यह है संघ की सादगी का चोला उतारकर भाजपा में आने के बाद उन महामंत्री का असली चेहरा।

बधिया कर दिया जाए बलात्कारियों को

बकरे को बधिया करने की बात तो सुनी है किन्तु दिल्ली की एक सत्र अदालत ने बलात्कारी पुरूषों को बधिया करने की पैरवी कर महिलाओं के हित में एक नायाब कदम उठाया है। 15 साल की एक बच्ची के साथ उसके सौतेले पिता द्वारा किए गए बलात्कार की सजा सुनाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायधीश कामिनी लॉ ने कहा कि सर्जिकल या रसायनिक प्रक्रिया के तहत बधियाकरण जैसी सजा सुनाई जानी चाहिए। वैसे भी अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे विकसित देशों में बलात्कार के आरोपी विशेषकर बच्चों के साथ करने वालों को रसायनिक बधियाकरण का प्रयोग किया जाता है। कैलिफोर्निया पहला अमरिकी राज्य था जहां योनाचार करने वालों को रसायनिक बधियाकरण को प्रयोग किया गया था। वैसे इस मामले में देशव्यापी बहस के उपरांत कड़े कानून की आवश्यक्ता महसूस की जा रही है।

मन ही मन राहुल के हुए मन

प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के साथ दौरे पर क्या गए कांग्रेस के युवाओं में उत्साह का संचार हो गया। वर्तमान और भविष्य के वजीरेआजम को साथ देखकर राजनैतिक गलियारों में चर्चाओं का न थमने वाला सिलसिला आरंभ हो गया है। लोग कह रहे हैं कि मनमोहन सिंह ने इशारों ही इशारों में यह जताने का प्रयास किया है कि वे जल्द ही देश की कमान युवा कांधों यानी राहुल गांधी के हाथों सौंपने वाले हैं। कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने भी राहुल गांधी को बड़ी जिम्मेदारी लेने को तैयार रहने को कहा है। अब सियासत गर्मा रही है और लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि आखिर वह दिन कब आएगा जब कांग्रेस के युवराज की ताजपोशी होगी।

खुद ही बोले हेप्पी बर्थ डे ब्रादर

कामन वेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के अध्यक्ष रहे सुरेश कलमाड़ी ने जितने एश किए अब उन्हें उतनी ही यातना भुगतनी पड़ रही है। कल तक लोगों से घिरे रहने वाले कलमाड़ी अब एकदम अकेले हैं। अपने जीवन के 67 बसंत देखने वाले कलमाड़ी ने पहले अपने जन्म दिन पर बड़े बड़े मैदानों में न जाने कितनी ही पार्टियों का आयोजन किया होगा, किन्तु अब एसा नहीं है। इस मर्तबा कलमाड़ी ने अपना जन्मदिन महज 12 बाई 12 फुट के कमरे में अकेले ही अपने पुत्र समीर और चुनिंदा पारिवारिक सदस्यों के बीच मनाया। सीबीआई ने कलमाड़ी की केक काटने की इजाजत को ठुकरा दिया। कल तक पुलिस को जेब में रखकर घूमने वाले कलमाड़ी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस उनसे इस कदर मुंह फेरेगी कि कल तक सलाम करने वाले अब जूते की नौक पर उन्हें रखने में गुरेज नहीं कर रहे हैं।

यह देश है अमीर जवानों का . . .

भारत देश गरीबों का देश है, यह सच नहीं है। भारत देश में अमीरों की तादाद इतनी अधिक हो गई है कि अब मत ही पूछिए। मुंबई में रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी के 27 मंजिला घर को दुनिया भर के सबसे मंहगे घरों की फेहरिस्त में शामिल किया गया है। मुकेश का यह सपना है, कि वे उसमें शिफ्ट करें, किन्तु आड़े आ रहा है घर का वास्तुदोष। मुकेश का घर एंटीला निर्माण के दौरान से ही खर्च और विवादाें के चलते चर्चा में रहा है। लगभग 4500 करोड़ की लागत का यह घर उस जमीन पर बनाने का आरोप है जिसे वक्फ के जरिए अनाथालय के निर्माण हेतु सुरक्षित की गई थी। 173 मीटर उंचे इस घर में देखरेख के लिए छ: सौ फुल टाईम वर्कर्स की फौज तैनात है और बिजली का बिल महज सत्तर लाख रूपए महीना आता है। अब आप ही बताईए जिस देश में मुकेश अंबानी जैसे लोग हों, वह देश गरीबों का हुआ या अमीरों का।

एयर इंडिया को कुतर गए जनसेवक

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने एयर इंडिया के यात्री विमानों के अधिग्रहण पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिए हैं। संसद के अगले सत्र में सदन में रखी जाने वाला यह प्रतिवेदन दर्शाता है कि पुराने विमानों को बदलकर बेड़े में नए विमानों को शामिल करना तो उचित है किन्तु विमानों की खरीद के लिए उंची ब्याज दरों पर ऋण लेना समझ से परे है। एयर इंडिया ने 2002 से 2010 के मध्य 40 हजार करोड़ रूपयों की लागत से एयर बस और बोईंग विमान खरीदे। एयर बस की ओर से बैक स्टाप फायनेंस के तहत विमानों को न खरीदकर इन्हें आईडीबीआई बैंक से उंची दरों पर विमानों को खरीदा गया है, जो कि अनुचित ही है। मार्च 2010 तक एयर इंडिया को 314.66 करोड़ रूपयों की हानी हो चुकी थी एवं 2560 करोड़ का नुकसान अभी अनुमानित ही है। कैग ने कहा है कि इंडियन एयर लाईंस ने 199.37 करोड़ रूपयों का अतिरिक्त ब्याज चुकाया।

अलग सेल बने तिहाड़ में

देश की पुरानी और चर्चित तिहाड़ जेल में इन दिनों अतिथि कैदियों की भरमार हो गई है। जेल प्रशासन भी व्हीव्हीआईपी कैदियों को लेकर बेहद चोकन्ना है। संचार मंत्री रहे अदिमत्थू राजा, उनके सचिव आर.के.चंदोलिया, संचार सचिव रहे सिध्दार्थ बेहुरा, चूनिटेक के प्रमुख संजय चंद्रा, डीबी रियल्टी के शाहिद बलवा, विनोद गोयनका, अंबानी समूह के दोषी और सुरेंद्र, ललित भनोट, वी.के.वर्मा के साथ ही सुरेश कलमाड़ी भी। अब लगने लगा है कि तिहाड़ जेल में अतिविशिष्ट घपलेबाज जनसेवकों के लिए अलग सेल ही बना दी जाए। वैसे भी इन अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा को लेकर तिहाड़ जेल प्रशासन की पेशानी पर पसीने की बूंदे साफ दिखाई पड़ने लगी हैं। जेल में कई तरह के खेल होते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है और फिर इन घाघ खिलाड़ियों पर तो सूरमाओं की खासी नजर भी है।

अलग अंदाज में निरूपमा

जुलाई माह में सरकारी नौकरी को अलविदा कहने वाली भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी निरूपमा राव को कौन नहीं जानता। कूटनीतिक मामलात में अपनी प्रतिभा से दुनिया को लोहा मनवा चुकी निरूपमा राव के अंदर एक और खूबी छिपी हुई है। वे एक बेहद अच्छी गीत लेखक और गायिका भी हैं। बीते दिनों अपने निवास पर आयोजिए एक पार्टी में उन्होंने आंग्ल भाषा के स्वरचित दो गीत सुनाए। इसकी खासियत यह थी कि उनके स्वरों का उतार चढ़ाव इस कदर गजब का था कि लोग स्मृतियों में जाने पर मजबूर हो गए। भारतीय विदेश सेवा में उत्कृष्ठ अधिकारी की पहचान बना चुकी निरूपमा राव की इस खासियत को लोगों ने मुक्त कंठ से सराहा। सेवानिवृति के उपरांत अगर वे गायिका के तौर पर लोगों के सामने आ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

यह है बैडमिंटन संघ का हाल सखे

राजधानी में हुई सुपर सीरीज के अवसर पर बैडमिंटन संघ द्वारा एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया। इस स्मारिका में इस कदर गल्तियां थीं कि पढ़ने वाले ही शर्मा जाएं। हद तो तब हो गई जब इस सेवोनियर में सह अध्यक्ष के संदेश में पूर्व केंद्रीय मंत्री अम्बूमणि रामदास का फोटो प्रकाशित कर दिया गया, जबकि सह अध्यक्ष बिस्व सरमा हैं। इसी तरह देश की उत्क़ृष्ठ बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल वर्ल्ड रेंकिंग में नंबर चार पर हैं पर संघ उन्हें आठवीं पायदान पर बता रहा है, वह भी सोनिया नेहवाल के नाम पर। देश के प्रमुख खिलाड़ियों के साथ दिए ब्योरे में भी व्यापक स्तर पर गड़बड़ियां हैं। इसमें कामन वेल्थ गेम्स में डबल्स चैंपियन रहीं ज्वाला गट्टा को तो स्थान ही नहीं दिया गया है। डबल्स पुरूष में भी सनावे थॉमस के स्थान पर अरविंद भट्ट का ही फोटो लगाया गया है। बाद में दुबारा कुछ संशोधन कर पत्रिका फिर छापी गई। सवाल यह है कि गलत प्रकाशित सेवोनियर का भोगमान यानी प्रिंटिंग आदि का बिल कोई तो भोगेगा ही।

पुच्छल तारा

देश में गरीब गुरबों के लिए खाने को दो वक्त रोटी नहीं है पर अपराधियों की सेवा टहल में करोड़ों अरबों रूपए फूंके जा रहे हैं। इसी बात पर गुवहाटी से जाकिया तस्मिन रहमान ने एक शानदार ईमेल भेजा है। जाकिया लिखती हैं कि वजीरे आजम कहते हैं कि आतंकी खतरों से हर कीमत पर निपटेंगे। वहीं दूसरी ओर खबर आती है कि कसाब और अफजल गुरू पर करोड़ों खर्च। सच ही है कीमत चाहे जो लग जाए पर देश की सरकार इन आताताईयों पर खर्च करके ही मानेगी।