गोपाल बघेल 'मधु'

गोपाल बघेल 'मधु'

लेखक के कुल पोस्ट: 151

गोपाल बघेल ‘मधु’
अध्यक्ष

अखिल विश्व हिन्दी समिति
आध्यात्मिक प्रबंध पीठ
मधु प्रकाशन

टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
www.GopalBaghelMadhu.com

लेखक - गोपाल बघेल 'मधु' - के पोस्ट :

गजल साहित्‍य

नेत्र जब नवजात का झाँका किया!

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नेत्र जब नवजात का झाँका किया, शिशु जब था समय को समझा किया; पात्र की जब विविधता भाँपा किया, देश की जब भिन्नता आँका किया ! हर घड़ी जब प्रकृति कृति देखा किया, हर कड़ी की तरन्नुम ताका किया; आँख जब हर जीव की परखा किया, भाव की भव लहरियाँ तरजा किया ! रहा द्रष्टा पूर्व हर जग दरमियाँ, बाद में वह स्वयं को निरखा किया; देह मन अपना कभी वह तक लिया, विलग हो आभास मैं पन का किया ! महत से आकर अहं को छू लिया, चित्त को करवट बदलते लख लिया; पुरुष जो भीतर छिपा प्रकटा किया, परम- पित की पात्रता खोजा किया ! प्रश्न जब प्रति घड़ी जिज्ञासु किया, निगम आगम का समाँ बाँधा किया; ‘मधु’ उसमें प्रभु अपना पा लिया, प्राण के अपरूप का दर्शन किया !  ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’ 

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कविता

राज हर कोई करना है जग चह रहा !

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राज हर कोई करना है जग चह रहा, राज उनके समझना कहाँ वश रहा; राज उनके कहाँ वो है रहना चहा, साज उनके बजा वह कहाँ पा रहा ! ढ़पली अपनी पै कोई राग हर गा रहा, भाव जैसा है उर सुर वो दे पा रहा; ताब आके सुनाए कोई जा रहा, सुनके सृष्टा सुमन मात्र मुसका रहा ! पद के पंकिल अहं कोई फँसा जा रहा, उनके पद का मर्म कब वो लख पा रहा; बाल बन खेल लखते मुरारी रहे, दुष्टता की वे सारी बयारें सहे ! सृष्टि सारी इशारे से जिनके चले,  सहज होके वे जगती पै क्रीड़ा करे; जीव गति जान कर तारे उनको चले, कर विनष्टि वे आत्मा में अमृत ढ़ले !  हर निमिष कर्म करके वे प्रतिपालते, धर्म अपना धरे वे प्रकृति साधते; ‘मधु’ है उनका समझ कोई कब पा रहा, अपनी जिह्वा से चख स्वाद बतला रहा !  ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’

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