कविता साहित्य कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे October 29, 2015 | Leave a Comment कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे दिल की बात बयाँ करूँ भी तो कैसे मांगते दुआएं अब तो दिल ये थका न पाया कभी जो भी तुझ से कहा मकसदे ज़िन्दगी की नेमत नहीं दी हौसले आजमाने की जहमत नहीं की कहते हैं पल पल पे हैं तेरी हुकुमरानी जैसी तू चाहे जिसे […] Read more » कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे
कविता घायल पाँखे November 13, 2014 | Leave a Comment धुंधली आँखे घायल पाँखे अब और बसेरा कितनी दूर बचकर चुगती थी दानो को संयम से निर्दोष श्रम से जाने कैसे हो गयी फिर भी घायल पाँखे और उस पर बसेरा कितनी दूर बाट तकें नन्ही आँखे कुछ आशा से कुछ अभिलाषा से और यहाँ हो गयी माँ की घायल पाँखे अब और बसेरा कितनी […] Read more » घायल पाँखे
गजल ग़ज़ल-जावेद उस्मानी September 13, 2014 | 1 Comment on ग़ज़ल-जावेद उस्मानी संस्कृति धरोहर की सारी पूंजी लूटाएंगे बनारस को अपने अब हम क्योटो बनाएंगे गंगा को बचाने भी को विदेशी को लाएंगे अपने देशवासियों को ये करिश्मा दिखाएंगे नीलामी में है गोशा गोशा वतन का जर्रा जर्रा बिकने को रखा है तैयार चमन का हुकूमत में आते ही मिजाज़ ऐसे बदल गए स्वदेशी के नारे वाले […] Read more »
गजल हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी August 25, 2014 | Leave a Comment हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी फिरना है दर बदर और ,आवारा मुझे अभी . जिस्म में बाकी है जां रूह अभी जिंदा है लज्जते गम से होने दे आश्कारा मुझे अभी राख होने न पाए , आतिशाकुदह सारे सुलगाना है हर बुझता शरारा मुझे अभी चाहे लाख हो कोशिश ,मिटने दूंगा न उम्मीदे […] Read more » हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी
कविता कैसा वह नया ज़माना होगा August 21, 2014 | 2 Comments on कैसा वह नया ज़माना होगा -जावेद उस्मानी- आओ देखें आने वाला अपना कल कितना सुहाना होगा। कैसा अपना जीवन होगा कैसा वह नया ज़माना होगा ! हर तरफ अजब धुंध होगी, अपना चेहरा अनजाना होगा सच और झठ को तोलने का , बस एक ही पैमाना होगा ! कहने को मेरी सूरत होगी मगर, अफसाना उनका होगा गीत कोई भी […] Read more » कविता कैसा वह नया ज़माना होगा हिन्दी कविता
गजल या खुदा कैसा ये वक्त है July 22, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- हर सिम्त चलते खंज़र, कैसा है खूनी मंज़र हर दिल पे ज़ख्मेकारी, हर आंख में समंदर दहशती कहकहे पर रक्स करती वसूलों की लाशें इस दश्तेखौफ़ में, अमन को कहां जा के तलाशें दम घुटता है इंसानियत का, वहशीपन जारी है या खुदा कैसा ये वक्त है लहू का नशा तारी है Read more » ग़ज़ल या खुदा कैसा ये वक्त है
कविता वही ज़िस्तेंसोराब है वही तिश्ना कारवाँ July 7, 2014 | Leave a Comment वही ज़िस्तेंसोराब है वही तिश्ना कारवाँ प्यास बुझी कभी न बदल कभी समां सफर था सब्रतलब हमराही थे नातवाँ ठेस लगी ज़रा और सभी घबरा गए यहाँ गुमनाम रास्ते थे , मंज़िल थी बेनिशाँ जोशी जुनूँ में भटकते रहे जाने कहाँ कहाँ ख्वाहिशें बेहिसाब थी , कविशें थी कम शायद इसलिए ही नामुकम्मल रहा जहाँ […] Read more »
कविता कैसी पलटी है समय की धार June 25, 2014 / June 25, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- कैसी पलटी है समय की धार। हमसे रूठी हमारी ही सरकार। उतर चुका सब चुनावी बुखार। नहीं अब कोई जन सरोकार। अनसुनी है अब सबकी पुकार। बहरा हो गया हमारा करतार। दमक रहा है बस शाही दरबार। झोपड़ों में पसरा और अंधकार। सुन लो अब भी एक अर्ज़ हमार। आपकी पालकी के हमीं […] Read more » कविता कैसी पलटी है समय की धार समय की धार हिन्दी कविता
कविता पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र June 23, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र लोकहित के नारों […] Read more » लोकतंत्र लोकतंत्र कविता हिन्दी कविता
प्रवक्ता न्यूज़ दुआ है कि ये जीवन सहल हो जाए सबके लिए June 16, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- ख्वाबों के तिजारती आज पीरे शाह तख्त है देखेंगे तमाशा अभी तो हम सदाए बेवक्त है अंदाजे बागवां वही, रिवाजे गुलसितां वही गर्दिशे ज़मी भी वही हैं रंगे आसमां भी वही गहरी धुंध को भी, सियासत में चांदनी कहें जिंदगी सिसके तो उसे भी खुश रागिनी कहें सड़क पानी हवा सब जबसे उनकी […] Read more » जीवन जीवन पर कविता हिन्दी कविता
साहित्य जो एक रस्मे दरबार थी ,गुज़रे वक्त में May 30, 2014 / May 30, 2014 | 1 Comment on जो एक रस्मे दरबार थी ,गुज़रे वक्त में जावेद उसमानी जो एक रस्मे दरबार थी ,गुज़रे वक्त में आज भी वही कलिब तख्तेरवां दरबार है जम्हूरियत की आड़ में ताकत का खेल है अब न उसूल हैं न कोई साहिबे किरदार है लिहाज़ का हर आँचल करके भी तार -तार न अफ़सोस हैं किसी को न कोई शर्मसार है साध्य के लिए साधन […] Read more »
गजल कब से भटकता है सफीना May 24, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- साहिलों की जुस्तजू में, कब से भटकता है सफीना जाता है क़रीबे भंवर, कि कहीं नाख़ुदा तो मिल जाए स्याही से खींचते हैं कुछ लोग, सेहर की उम्मीद को उनको भी काश कभी कोई मशाले हुदा तो मिल जाए ढूढ़ते रहते हैं खुद को हर जा, कहीं हम हैं भी कि नहीं हैं […] Read more » गज़ल गज़ल संग्रह हिन्दी गजल