धर्म-अध्यात्म ईश्वरीय ज्ञान वेद के पुनरूद्धारक, रक्षक व प्रचारक महर्षि दयानन्द April 3, 2015 / April 4, 2015 | Leave a Comment भारत का इतिहास संसार में सबसे प्राचीन है। भारत के पास महाभारत नामक इतिहास ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वर्णित महाभारत युद्ध की काल गणना करने पर यह पांच सहस्र वर्षों से कुछ अधिक पूर्व हुआ सिद्ध होता है। महाभारत से पुराना ग्रन्थ वाल्मिीकि रामायण व इसमें वर्णित इतिहास है जिसकी गणना लाखों व […] Read more » Featured ईश्वरीय ज्ञान महर्षि दयानन्द वेद
साहित्य संस्कृत व इतर भाषाओं का अध्ययन और महर्षि दयानन्द April 1, 2015 / April 4, 2015 | Leave a Comment महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन काल (1825-1883) वा मुख्यतः 10 अप्रैल, 1875 को आर्यसमाज की स्थापना के बाद देश के अनेक लोगों से पत्रव्यवहार किया था। उनके पत्रों का संग्रह व प्रकाशन का मुख्य श्रेय स्वामी श्रद्धानन्द, पं. भगवद्दत्त रिसर्च स्कालर, महामहोपाध्याय पं. युधिष्ठिर मीमांसक एवं महाशय मामराज जी को है। सम्प्रति उनका उपलब्ध समस्त […] Read more » Featured महर्षि दयानन्द संस्कृत
चिंतन धर्म-अध्यात्म क्या वेद अपौरूषेय हो सकते हैं March 31, 2015 / April 4, 2015 | 4 Comments on क्या वेद अपौरूषेय हो सकते हैं क्या वेद अपौरूषेय है? यदि हैं तो वेदों में ईश्वर ने स्वयं ही दिये ज्ञान में आदि ऋषियों व भावी मानव पीढि़यों से अपनी प्रशंसा क्यों कराई है? अपनी प्रशंसा करना व कराना मानवीय दोष माना जाता है। ईश्वर तो सबसे बड़ा व महान होने के कारण यदि ऐसा करता है तो यह उचित प्रतीत […] Read more » Featured अपनी प्रशंसा करना व कराना मानवीय दोष माना जाता है ईश्वर तो सबसे बड़ा व महान होने के कारण यदि ऐसा करता है तो यह उचित प्रतीत नहीं होता ईश्वर ने स्वयं ही दिये ज्ञान में आदि ऋषियों व भावी मानव पीढि़यों से अपनी प्रशंसा क्यों कराई क्या वेद अपौरूषेय है क्या वेद अपौरूषेय हो सकते हैं मनमोहन कुमार आर्य
जन-जागरण धर्म-अध्यात्म प्रवक्ता न्यूज़ वेदों का ज्ञान अपौरूषेय अर्थात् ईश्वर प्रदत्त हैः आचार्य धनंजय March 30, 2015 / April 4, 2015 | 5 Comments on वेदों का ज्ञान अपौरूषेय अर्थात् ईश्वर प्रदत्त हैः आचार्य धनंजय आर्यसमाज सुभाषनगर के वार्षिकोत्सव का आज सोत्साह समापन हुआ। आयोजन में पं. धर्मसिंह ने अपनी भजन मण्डली सहित प्रभावशाली भजन प्रस्तुत किये जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया। प्रातःकाल डा. आचार्य धनंजय आर्य के ब्रह्मत्व में बृहद यज्ञ सम्पन्न हुआ जिसमें वेदपाठ और मंत्रोच्चार आर्यसमाज के पुरोहित श्री अमरनाथ एवं श्रीमद्दयानन्द आर्ष गुरूकुल, पौंधा, देहरादून के […] Read more » Featured मनमोहन कुमार आर्य वेदों का ज्ञान अपौरूषेय अर्थात् ईश्वर प्रदत्त है
खान-पान जन-जागरण धर्म-अध्यात्म समाज माता के दूध का ऋण, सत्य धर्म की खोज व उसका पालन March 26, 2015 / March 26, 2015 | Leave a Comment अपार ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा ग्रह यह पृथिवी लोक सर्वत्र मुनष्यों एवं अन्य प्राणियों से भरा हुआ है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसे परमात्मा ने बुद्धि तत्व दिया है जो ज्ञान का वाहक है। ईश्वर निष्पक्ष एवं सबका हितैषी है। इसी कारण उसने हिन्दू, मुसलमान व ईसाई आदि मतों के लोगों में किंचित […] Read more »
धर्म-अध्यात्म ईश्वर का नाम ‘सच्चिदानन्द’ क्यों व कैसे March 25, 2015 | Leave a Comment ईश्वर के अनेक नामों में से एक नाम ‘सच्चिदानन्द’ भी है। प्रायः हम सुनते हैं कि जयघोष करते हुए धार्मिक आयोजनों में कहा जाता कि ‘श्री सच्चिदानन्द भगवान की जय हो’। यह सच्चिदानन्द नाम ईश्वर का क्यों व किसने रखा है? इसका तात्पर्य व अर्थ क्या है? इसी पर विचार करने के लिए कुछ पंक्तियां […] Read more » ईश्वर ईश्वर का नाम ‘सच्चिदानन्द’ क्यों व कैसे मनमोहन कुमार आर्य सच्चिदानन्द
धर्म-अध्यात्म आर्यसमाज की स्थापना से संसार में नए युग का शुभारम्भ March 25, 2015 | Leave a Comment यह संसार विगत लगभग 2 अरब वर्षों से अस्तित्व में है। इस अवधि में नाना महत्वपूर्ण ऐतिहासक घटनायें घटी हैं परन्तु उनमें से कुछ थोड़ी सी घटनाओं के दिन व तिथियां ही ज्ञात हैं। आज से 140 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ल पंचमी तदनुसार 10 अप्रैल, 1875 को महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मुम्बई के गिरगांव मोहल्ले […] Read more » आर्यसमाज आर्यसमाज की स्थापना आर्यसमाज की स्थापना से संसार में नए युग का शुभारम्भ
जन-जागरण धर्म-अध्यात्म साहित्य आर्य समाज के उर्दू साहित्य का संरक्षण व उसका हिन्दी अनुवाद March 24, 2015 | Leave a Comment महाभारत काल के बाद लगभग 5000 वर्ष का समय भारत के धार्मिक एवं सामाजिक जगत के लिए ह्रास व पतन का था। ऐसे समय में महर्षि दयानन्द ने 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की। महर्षि दयानन्द वेदों के पारदर्शी विद्वान थे और महाभारत काल के बाद वा विगत 5,000 वर्षों […] Read more » आर्य समाज आर्य समाज के उर्दू साहित्य का संरक्षण व उसका हिन्दी अनुवाद उर्दू साहित्य
चिंतन संस्कृत भाषा का महत्व व इसके प्रचार पर विचार March 23, 2015 / March 23, 2015 | Leave a Comment संस्कृत भाषा संसार की प्राचीनतम एवं प्रथम भाषा है। इस भाषा में ही सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने वेदों का ज्ञान दिया था। हमने एक लेख में यह विचार किया था कि क्या ईश्वर के अपने निज प्रयोग की भी क्या कोई भाषा है? इसके समाधान में हमारा निष्कर्ष यह था कि ईश्वर भी […] Read more » "भारतीय संस्कृति -एक परिचय " प्रथम भाषा प्राचीनतम प्राचीनतम एवं प्रथम भाषा संस्कृत संस्कृत भाषा संस्कृत भाषा का महत्व संस्कृत भाषा का महत्व व इसके प्रचार पर विचार
धर्म-अध्यात्म छोटी आयु में बड़े धार्मिक काम करने वाले गुरूदत्त विद्यार्थी March 23, 2015 / March 23, 2015 | Leave a Comment महर्षि दयानन्द के जीवनकाल 1825-1883 में देश भर के अनेक लोग उनके सम्पर्क में आये जिनमें से कई व्यक्तियों को उनका शिष्य कहा जा सकता है परन्तु सभी शिष्यों में पं. गुरूदत्त विद्यार्थी उनके अनुपम व अन्यतम शिष्य थे। आपके पिता लाला रामकृष्ण जी फारसी भाषा के असाधारण विद्वान थे तथा राजकीय सेवा में अध्यापक […] Read more » गुरूदत्त विद्यार्थी छोटी आयु में बड़े धार्मिक काम करने वाले गुरूदत्त विद्यार्थी महर्षि दयानन्द
जन-जागरण धर्म-अध्यात्म समाज हमारे माता-पिता और परमात्मा March 21, 2015 / March 21, 2015 | 3 Comments on हमारे माता-पिता और परमात्मा मेरे शरीर के माता-पिता अब इस संसार में नहीं हैं। उनसे मैने देहरादून में आज से लगभग 63 वर्ष पूर्व जन्म पाया था। जन्म ही नहीं अपितु मेरा पालन व पोषण भी उन्होंने किया। माता-पिता निर्धन थे। पिता जी श्रमिक थे। माता धार्मिक गृहिणी परन्तु उन्होंने मेरा इतना अच्छा पालन किया कि आज मैं उन्हें […] Read more » हमारे माता-पिता और परमात्मा
प्रवक्ता न्यूज़ वैदिक धर्म बनाम् मत-पन्थ-सम्प्रदाय March 19, 2015 | Leave a Comment वेद और वेदों के अनुकुल वैदिक साहित्य सत्य ज्ञान एवं सभी विद्याओं से पूर्ण हैं। वेद मनुष्य कृत ग्रन्थ नहीं अपितु ईश्वर प्रदत्त सभी सत्य विद्याओं के ज्ञान से पूर्ण पुस्तकें हैं जिसका उदघोष महर्षि दयानन्द ने किया था और जिसका प्रमाण उन्होंने अपने सत्यार्थ प्रकाश और ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका आदि ग्रन्थों में किया है। वेदों […] Read more » मत-पन्थ-सम्प्रदाय वैदिक धर्म