राजनीति अपने-अपने महामानव October 9, 2017 | Leave a Comment यों तो महामानव किसी धर्म, जाति या क्षेत्र के नहीं होते, भले ही उन्होंने काम इनमें से किसी एक के लिए ही किया हो। प्रायः शासक अपने या अपने परिजनों के नाम पर सार्वजनिक योजनाओं के नाम रखते हैं। देवी-देवताओं के नाम पर भी नगर या गांवों के नामकरण की लम्बी परम्परा है। राम और […] Read more » Featured अपने-अपने महामानव
व्यंग्य साहित्य तो क्या हाथी निकलेगा ? October 6, 2017 | Leave a Comment दुनिया में शाकाहारी अधिक हैं या मांसाहारी; शाकाहार अच्छा है या मांसाहार; फार्म हाउस के अंडे और घरेलू तालाब की छोटी मछली शाकाहार है या मांसाहार; मांस में भी झटका ठीक है या हलाल; ताजा पका हुआ मांस अच्छा है या डिब्बाबंद; ये कुछ चिरंतन प्रश्न हैं, जिनके उत्तर मनुष्य सदियों से तलाश रहा है। […] Read more » adulterated food Featured rat in the food तो क्या हाथी निकलेगा
व्यंग्य साहित्य डिजीटल शौचालय, सुविधा से मुसीबत तक September 22, 2017 | Leave a Comment भारत की हमारी महान सरकार ने तय कर लिया है कि वो हर चीज को डिजीटल करके रहेगी। वैसे तो ये जमाना ही कम्प्यूटर का है। राशन हो या दूध, रुपये पैसे हों या कोई प्रमाण पत्र। हर चीज कम्प्यूटर के बटन दबाने से ही मिलती है। जब से मोबाइल फोन स्मार्ट हुआ है, तब […] Read more » डिजीटल शौचालय
व्यंग्य साहित्य राजनीति का कोढ़ : वंशवाद September 21, 2017 | Leave a Comment कल शर्मा जी मेरे घर आये, तो हाथ में मिठाई का डिब्बा था। उसका लेबल बता रहा था कि ये ‘नेहरू चौक’ वाले खानदानी ‘जवाहर हलवाई’ की दुकान से ली गयी है। डिब्बे में बस एक ही बरफी बची थी। उन्होंने वह मुझे देकर डिब्बा मेज पर रख दिया। – लो वर्मा, मुंह मीठा करो। […] Read more » Featured वंशवाद
व्यंग्य साहित्य परबुद्ध सम्मेलन September 18, 2017 | 1 Comment on परबुद्ध सम्मेलन मैं दोपहर बाद की चाय जरा फुरसत से पीता हूं। कल जब मैंने यह नेक काम शुरू किया ही था कि शर्मा जी का फोन आ गया। – वर्मा, पांच बजे जरा ठीक-ठाक कपड़े पहन कर तैयार रहना। दाढ़ी भी बना लेना। एक खास जगह चलना है। वहां से रात को खाना खाकर ही लौटेंगे। […] Read more » Featured परबुद्ध सम्मेलन
विविधा कूड़ाघर बनता भारत September 9, 2017 | Leave a Comment दिल्ली से उ.प्र. में प्रवेश करते समय गाजीपुर में बना कूड़े का पहाड़ सबको दिखता है। उड़ती हुई चीलें, कौए और कूड़े में से अपने काम की चीजें तलाशते बच्चे वहां हर दिन ही दिखायी देते हैं। ये बच्चे ऐसी चीजें बटोरते हैं, जो कबाड़ी के पास बिक सकें। कचरे के सड़ने से गैस बनती […] Read more » Featured कूड़े का पहाड़ गाजीपुर में बना कूड़े का पहाड़ गाजीपुर
समाज पैसे और परिवार में संतुलन जरूरी September 5, 2017 / September 5, 2017 | Leave a Comment इन दिनों मीडिया में इंटरनेट के माध्यम से स्मार्ट फोन या कम्प्यूटर पर खेले जाने वाले खेल ‘ब्लू व्हेल’ की बहुत चर्चा हो रही है। इसने अब तक भारत में कई बच्चों की जान ले ली है। इस हिंसक खेल में बच्चों को 50 दिन में 50 कठिन काम करने होते हैं। इन्हें करते हुए […] Read more » Blue whale blue whale game sucide Featured kids suicide due to Blue whale game suicide game blue game ब्लू व्हेल
विविधा कैसी और कितनी उच्च शिक्षा September 1, 2017 | 2 Comments on कैसी और कितनी उच्च शिक्षा शिक्षा पर बात करने का हक यों तो शिक्षाविदों को ही है; पर कभी-कभी कुछ प्रसंग बाकी लोगों को भी सोचने को बाध्य कर देते हैं। गत 19 अगस्त, 2017 को ‘उत्कल एक्सप्रेस’ के 14 डिब्बे उ.प्र. के खतौली नगर में पटरी से उतर गये। इस दुर्घटना में 23 लोगों की मृत्यु हुई और सैकड़ों […] Read more » Featured higher education उच्च शिक्षा
व्यंग्य साहित्य सस्ता घुटना बदल August 18, 2017 | Leave a Comment भारत सरकार ने दिल के बाद अब घुटनों की सर्जरी भी सस्ती कर दी है। इससे उन लाखों बुजुर्गों को लाभ होगा, जो कई साल से घुटना बदलवाना चाहते थे; पर शर्मा जी को लग रहा है कि इसके पीछे सरकार का कोई छिपा एजेंडा जरूर है। कल जब मैं उनके साथ चाय पी रहा […] Read more » easy knee surgery Featured सस्ता घुटना बदल
व्यंग्य पेशेवर कांग्रेस August 5, 2017 / August 5, 2017 | Leave a Comment पिछले रविवार को शर्मा जी मिले, तो बहुत खुश थे। खुशी ऐसे छलक रही थी, जैसे उबलने के बाद दूध बरतन से बाहर छलकने लगता है। उनके मुखारविन्द से बार-बार एक फिल्मी गीत प्रस्फुटित हो रहा था, ‘‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे..।’’ – शर्मा जी, क्या परिवार में कोई […] Read more » Congress Featured पेशेवर कांग्रेस
व्यंग्य साहित्य पारदर्शी चंदा, मुसीबत का धंधा July 24, 2017 | Leave a Comment जब से वित्त मंत्री अरुण जेतली ने राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की बात कही है, तब से कई दलों की नींद हराम है। यद्यपि जेतली ने अभी बस कहा ही है; पर सब जानते हैं कि जेतली ने कहा है, तो सरकार अंदरखाने जरूर कुछ तैयारी कर रही होगी। विपक्ष (और अधिकांश सत्तापक्ष) वालों […] Read more » पारदर्शी चंदा मुसीबत का धंधा
व्यंग्य साहित्य हां, भगवान है July 19, 2017 | Leave a Comment अब पटना में देखो। वहां विपक्ष से अधिक बखेड़ा सत्ता पक्ष में ही चल रहा है। पहलवान हर दिन लंगोट लहराते हैं; पर बांधते और लड़ते नहीं। लालू जी का निश्चय है कि उनके घर का हर सदस्य उनकी भ्रष्ट परम्परा को निभाएगा। उन्होंने चारा खाया था, तो बच्चे प्लॉट, मॉल और फार्म हाउस खा रहे हैं। आखिर स्मार्ट फोन और लैपटॉप वाली पीढ़ी अब भी घास और चारा ही खाएगी क्या ? उधर नीतीश कुमार अपने सुशासन मार्का कम्बल से दुखी हैं। पता नहीं उन्होंने कम्बल को पकड़ रखा है या कम्बल ने उन्हें। इस चक्कर में शासन भी ठप्प है और प्रशासन भी। फिर भी हर साल की तरह वहां बाढ़ आ रही है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान का अस्तित्व जरूर हैं। Read more » Featured भगवान