कला-संस्कृति विवाह संस्था का सन्देश January 12, 2014 / January 12, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment -विपिन किशोर सिन्हा- पिछले नवम्बर में अपने एक घनिष्ठ मित्र के पुत्र के विवाह समारोह में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह सुयोजित कार्यक्रम लखनऊ में संपन्न हुआ जिसमें गोविन्दाचार्य और कलराज मिश्र जैसी विभूतियां भी उपस्थित थीं। मेरे मित्र के पूर्वज मूलत: हरियाणा के निवासी थे, अत: सारी रस्में हरियाणवी परंपरा और […] Read more » Indian marriage विवाह संस्था का सन्देश
कला-संस्कृति फिर हमारी इस ज्ञान – संपदा का क्या होगा ! December 30, 2013 / December 30, 2013 by देवेन्द्र कुमार | Leave a Comment देवेन्द्र कुमार- आज पूरी दुनिया एक विश्व ग्राम की ओर बढ़ती जा रही है । समय और स्थान की दूरी लगातार सिमटती जा रही है । दूरसंचार के नये – नये तरीके व तकनीक प्रत्येक दिन सामने आ रहे हैं जिनकी कल्पना आज से महज कुछ वर्ष पूर्व तक नहीं की गर्इ थी । सड़क, […] Read more » what about our knowledgeble things ! फिर हमारी इस ज्ञान - संपदा का क्या होगा !
कला-संस्कृति वाइब्रेन्ट दरभंगा से लौटकर … November 29, 2013 / November 29, 2013 by सोनू मिश्र | Leave a Comment सोनू मिश्र आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं। अपने स्वर्णिम अतीत को देख कर मन बस एक ही बात कह रहा था- काश! अगर संरक्षण होता तो आज हमारी पहचान कुछ और होती। जिस समय देश में सिर्फ एक सरकारी एयरलाईन्स हुआ करती थी उस समय हमारे दरभंगा की अपनी एयरलाइन्स कंपनी थी जहाँ से दर्जनों […] Read more »
कला-संस्कृति फोटोग्राफर शिवानी पांडेय की छायाचित्रों की चार दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन संपन्न November 17, 2013 / November 17, 2013 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment लाइफ…. सा रे गा मा पा… छायाचित्र प्रदर्शनी और कलाकारों और शिल्पकारों को बढ़ावा देने और उनकी कला को संरक्षित करने वाली वेबसाइट www.kalalok.com का उदघाटन संपन्न. ट्रैवेल राइटर और फोटोग्राफर शिवानी पांडेय की छायाचित्रों की चार दिवसीय प्रदर्शनी लाइफ ….. सा रे गा मा पा का उद्घाटन भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त प्रसाद कारियावासम […] Read more » शिवानी पांडेय
कला-संस्कृति हिंद स्वराज प्राचीन भारत में गणित September 14, 2013 / September 14, 2013 by विश्वमोहन तिवारी | 6 Comments on प्राचीन भारत में गणित विश्व मोहन तिवारी पायथागोरस सिद्धान्त सभी शिक्षित लोग जानते हैं, किंतु वे यह नहीं जानते कि वास्तव में इसके रचयिता पायथागोरस नहीं, वरन हमारे वैदिक ऋषि बौधायन ( ८०० ई.पू.) हैं, जिऩ्होंने यह रचना पायथागोरस ( ५७० ई.पू.- ४९५ ई.पू.) से लगभग ३०० वर्ष पहले की थी। ऐसा भी नहीं है कि पायथागोरस ने इसकी […] Read more » प्राचीन भारत में गणित
कला-संस्कृति जहां दूरियां मिलती हैं…नज़दीकियों के साथ September 14, 2013 / September 14, 2013 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on जहां दूरियां मिलती हैं…नज़दीकियों के साथ लम्हें जो गुजरे नेपाल में… पंडित सुरेश नीरव अभी 5 सितंबर को तीन दिनी आवास पर काठमांडू जाना हुआ। एलाइंस क्लब्स इटरनेशनल का आयोजन था। वेसे नेपाल की ये मेरी पांचवी-छठी यात्रा थी। मगर हर बार नेपाल मुझे एक अलग ही ढ़ंग से आकर्षित करता है। उसका एक बड़ा कारण तो यह है कि जो […] Read more »
कला-संस्कृति मानवीय गुणों के अवतार श्रीकृष्ण August 26, 2013 by प्रमोद भार्गव | 3 Comments on मानवीय गुणों के अवतार श्रीकृष्ण सदर्भ :–28 अगस्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष प्रमोद भार्गव हाल ही में एक भारतवंशी बि्रतानी शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं और पुरातातिवक व भाषार्इ साक्ष्यों के आधार पर दावा किया है कि भगवान कृष्ण हिन्दु मिथक और पौराणिक कथाओं के काल्पनिक पात्र न होते हुए एक वास्तविक पात्र थे। सच्चार्इ भी यही […] Read more »
कला-संस्कृति गोरक्षा की उज्जवल परम्परा August 24, 2013 by विजय कुमार | 1 Comment on गोरक्षा की उज्जवल परम्परा भारत एक धर्मप्राण देश है। भारत की आत्मा के दर्शन करने हों, तो तीर्थों और धामों में जाना होगा। गोमाता इसी धर्म का सजीव रूप है। इसलिए किसी भी काम को करते समय गोमाता के दर्शन शुभ माने जाते हैं। यदि उस समय गोमाता अपने बछड़े या बछिया के साथ अर्थात सवत्स हो, फिर तो […] Read more » गोरक्षा की उज्जवल परम्परा
कला-संस्कृति महत्वपूर्ण लेख जब स्वतंत्रता के लिए बिना राजा के ही लड़ती रहीं जातियां August 14, 2013 / August 14, 2013 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment भारतीय इतिहास अदभुत रोमांचों से भरा पड़ा है। यह सच है कि विदेशी इतिहासकारों ने उन रोमांचपूर्ण किस्से कहानियों के सच को इतिहास में स्थान नही दिया। इसके विपरीत हमें समझाया और पढ़ाया गया कि तुम्हारा अतीत कायरता का रहा। दूसरे, तुम सदा युद्घ में पराजित हुए हो, तीसरे, तुममें कभी भी राष्ट्रवाद की भावना नही रही, चौथे-हिंदुओं की […] Read more » जब स्वतंत्रता के लिए बिना राजा के ही लड़ती रहीं जातियां
कला-संस्कृति भारतीय संस्कृति की अवधारणाएं-एक विवेचन July 15, 2013 / July 15, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment डा.राज सक्सेना समाज में सामान्य रूप से ‘संस्कृति’ शब्द को,सुरुचि और शिष्ट व्यवहार के रुप में लिया जाता है | विस्तृत अर्थों में संस्कृति की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“संस्कृति किसी एक समाज में पाई जाने वाली उच्चतम मूल्यों की वह चेतना है,जो सामाजिक प्रथाओं,व्यक्तियों की चित्तवृतियों, भावनाओं,मनोवृतियो,आचरण के साथ-साथ उसके द्वारा भौतिक पदार्थों को विशिष्ट […] Read more » भारतीय संस्कृति की अवधारणाएं
कला-संस्कृति आदिवासी भाषाओं पर उपेक्षा का दंश……………. May 3, 2013 / May 3, 2013 by प्रतिमा गुप्ता | 1 Comment on आदिवासी भाषाओं पर उपेक्षा का दंश……………. विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति के नाम पर लगभग एक सौ वर्ष के संघर्ष के बाद झारखंड राज्य तो अस्तित्व में आया, लेकिन इन विशिष्टताओं को पहचान देने वाली जनजातीय भाषाएं विकास की आंधी में कहीं गुम हो गई… झारखण्ड का गठन हुए एक दशक हो जाने के बावजूद आदिवासियों के द्वारा मांगी गई विकास की स्थितियां […] Read more » आदिवासी भाषा
कला-संस्कृति लोक रंगों का महामेला – बेणेश्वर February 25, 2013 / February 25, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment विशेष सामग्री संदर्भ: बेणेश्वर मुख्य मेला माघ पूर्णिमा-25 फरवरी 2013 लोक लहरियां उमड़ाती हैं आनंद का समंदर डॉ. दीपक आचार्य बेणेश्वर धाम…… दूर-दूर तक फैला टापू, अथाह पानी और संगम, खुला आसमान… जहाँ अहर्निश बहा करती हैं संस्कृति की जाने कितनी धाराएँ, उपधाराएँ और अन्तः सरणियाँ। वह नाम जिसमें समाए हुए हैं लोक संस्कृति, […] Read more » लोक रंगों का महामेला - बेणेश्वर