चिंतन धर्म-अध्यात्म साफ कह चुका है केदार बंद करो यह बलात्कार वरना …. June 24, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment देव भूमि उत्तराखण्ड में अचानक जो कुछ हो गया, वह रौंगटे खड़े कर देने वाला है। इसके बाद जो कुछ हो रहा है वह भी कोई कम दुःखी करने वाला नहीं है। अकस्मात शिव का तीसरा नेत्र खुल उठा और ताण्डव मचा गया। महामृत्युंजय के आँगन में मौत का ऐसा ताण्डव… लोग बह गए… लाशें […] Read more » साफ कह चुका है केदार बंद करो यह बलात्कार वरना ...
चिंतन धर्म-अध्यात्म दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक June 21, 2013 / June 21, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक जो लोग अपने जीवन में मितव्ययता नहीं बरतते हैं वे जीवन भर दुःखी और दरिद्री रहते हैं और इन लोगों का कोई इलाज नहीं है। ऐसे लोगों के दो प्रकार की किस्मे होती हैं। एक वे हैं जो खुद का पैसा बचाने के लिए ही मितव्ययी हैं, दूसरों का पैसा पानी की तरह बहा देने […] Read more » दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक
चिंतन अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले June 20, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 2 Comments on अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले आदमियों की कई सारी किस्मों में से एक किस्म उन लोगों की है जो बात-बात में कसम खाया करते हैं और उन लोगों को अपनी किसी भी बात को पुष्ट करने या आधार प्रदान करने के लिए किसी न किसी की सौगंध खाने की जरूरत पड़ती है और जब तक वे किसी की शपथ न […] Read more » अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले
चिंतन धर्म-अध्यात्म असली आनंद मिलता है, कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही June 19, 2013 / June 19, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on असली आनंद मिलता है, कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही कर्म और जीवन के आनंद के बीच गहरा रिश्ता है। आनंद ही अपना चरम लक्ष्य हो और कर्त्तव्य कर्म गौण या उपेक्षित हो तो वह आनंद मात्रा आभासी एवं क्षणिक ही होता है जबकि कर्त्तव्य कर्म का निर्वाह हमारी प्राथमिकता में हो तब इसके बाद जिस आनंद की प्राप्ति होती है वह चिरस्थायी, शाश्वत और बार-बार […] Read more » असली आनंद मिलता है कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही
चिंतन धर्म-अध्यात्म जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा June 17, 2013 / June 17, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा दुनिया में जहां मानवीय मूल्यों को प्रधानता प्राप्त है वहाँ लोक सेवा, परोपकार और सदाशयता के साथ ही तमाम नैतिक मूल्यों और आदर्शो को महत्त्व प्राप्त है। लेकिन जहाँ-जहाँ किसी भी अंश में व्यवसायिक मनोवृत्ति या स्वार्थ पूर्ण मानसिकता आ जाती है वहाँ-वहाँ न धर्म-कर्म है, न सामाजिक विकास की स्वस्थ परंपराएं और न ही […] Read more » जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा
चिंतन धर्म-अध्यात्म भोग-विलास से तृप्ति असंभव वासनाओं को मोड़े अध्यात्म की ओर June 6, 2013 / June 20, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment तृप्ति और संतोष का सीधा संबंध मन से है और जब तक मन तृप्त नहीं होता है तब तक जीवन में न संतोष आ सकता है, न आनंद का अनुभव ही संभव हो पाता है। दुनिया के सारे भोग-विलास और वैभव हमारे कब्जे में आ जाएं, विलासिता का भरपूर इस्तेमाल हम करने लगें, अकूत धन […] Read more » भोग-विलास से तृप्ति असंभव वासनाओं को मोड़े अध्यात्म की ओर
चिंतन पर्यावरण पर्यावरण रक्षा सर्वोपरि फर्ज प्रकृति नहीं तो सब है बेकार June 5, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment हमारे पास सब कुछ है लेकिन पर्यावरणीय सौन्दर्य नहीं है तो सारे संसाधन, भौतिक संपदा और जीवन व्यवहार सब निरर्थक है। प्रकृति के खुले आँगन में रहते हुए जिन तत्वों और नैसर्गिक ऊर्जाओं के निरन्तर पुनर्भरण की प्रक्रिया अहर्निश चलती रहती है वही वस्तुतः जीवन है। इसके अलावा जो कुछ है सब जड़ है। प्रकृति […] Read more » पर्यावरण रक्षा सर्वोपरि फर्ज प्रकृति नहीं तो सब है बेकार
चिंतन धर्म-अध्यात्म सनातम धर्म और हमारी शोध June 1, 2013 / June 1, 2013 by विपुल समाजदार | 7 Comments on सनातम धर्म और हमारी शोध सनातन धर्म की रक्षा व प्रसार-प्रचार का दायित्व संतों, धर्मगुरुओं, ब्राह्मणों का था और है भी। इन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह क्यों नहीं किया? आज हिन्दू धर्म (डाकू, चोर आदि) धर्म भारतीय कागजों में घुस गया। सनातन धर्म को खदेड़ कर जन-जन में प्रवेश कर रहा है। क्यों ? क्यों?? आखिर क्यों??? जबकि सनातन धर्म […] Read more »
चिंतन कुछ तथ्य…… April 14, 2013 / April 14, 2013 by मनीष मंजुल | Leave a Comment मनीष मंजुल कुछ फिल्मों में औरतों को वेश्यावृति करते हुए दिखाया जाता है, औरतों ने तो कभी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। किसी फिल्म में वैश्य वर्ग के लोगों को सूदखोर, लालची और बेईमान दिखाया जाता है, वैश्य और बनियाओं ने तो कभी इसका विरोध नहीं किया। पंडितों को पाखंडी और धूर्त दिखाया जाता है, […] Read more »
चिंतन गाँधी जीवन दर्शन और आज का देश February 5, 2013 / February 6, 2013 by प्रभात कुमार रॉय | 1 Comment on गाँधी जीवन दर्शन और आज का देश प्रभात कुमार रॉय गाँधी के आदर्शो से वस्तुतः बहुत ही दूर चला गया हमारा देश, किंतु गाँधी के महान् आदर्शो की आवश्यकता देश आज भी अत्यंत गहनता से महसूस करता है। इसी प्रबल गहन भाव में बहुत बड़ी उम्मीद के सूत्रबीज विद्यमान हैं। हम यदि चाहे तो गाँधी के सहारे भारतीय सभ्यता-संस्कृति के समग्र बोध […] Read more » गाँधी जीवन दर्शन और आज का देश
चिंतन ऊँचाइयां पाने की तमन्ना हो तो, अपने संस्कारों से नीचे न गिरें January 15, 2013 by डॉ. दीपक आचार्य | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य जीवन के निर्माण में संस्कारों और आदर्शों का जितना महत्त्व है उतना और किसी का नहीं। अपनी आनुवंशिक परंपरा और पूर्वजों से प्राप्त संस्कारों के साथ ही हमारे शैशव में प्राप्त एवं स्थापित होने वाले संस्कारों के माध्यम से ही हमारे व्यक्तित्व की नींव का निर्माण होता है। इस नींव में जितने […] Read more »
चिंतन जन-जागरण विडंबनाओं के देश में स्त्री-सुरक्षा.. January 2, 2013 by अरुण कान्त शुक्ला | 1 Comment on विडंबनाओं के देश में स्त्री-सुरक्षा.. अरुण कान्त शुक्ला दुनिया के किसी भी देश में रहने वाले इतनी विडंबनाओं के साथ नहीं जीते, जितनी विडंबनाओं के साथ हमें भारत में जीना पड़ता है। धर्म, सम्प्रदाय और राजनीति से परे हम भारतीयों में यदि कोई एकरूपता है, तो वह है, भारतीयों की सोच और कथनी, कथनी और करनी में मौजूद पाखंड। भारतीय […] Read more » women safety