कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राजनीति सनातन हिंदू संस्कृति का पूरे विश्व में फैलना आज विश्व शांति के लिए आवश्यक है June 24, 2024 / June 24, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment यूरोप में हाल ही में सम्पन्न हुए चुनावों में दक्षिणपंथी कहे जाने वाले दलों की राजनैतिक ताकत बढ़ी है। हालांकि सत्ता अभी भी वामपंथी एवं मध्यमार्गीय नीतियों का पालन करने वाले दलों की ही बने रहने की सम्भावना है परंतु विशेष रूप से फ्रान्स एवं जर्मनी में इन दलों को भारी नुक्सान हुआ है। इटली की देशप्रेम से ओतप्रोत दल की मुखिया जोरजीया मेलोनी को अच्छी सफलता हासिल हुई है। कुल मिलाकर यूरोपीय देशों के नागरिकों में देशप्रेम का भाव धीमे धीमे लौट रहा है एवं वे अब अपने अपने देश में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों का विरोध करने लगे हैं। विशेष रूप से यूरोप के आस पास के मुस्लिम बहुल देशों से भारी संख्या में मुस्लिम नागरिक अवैध रूप से इन देशों में शरण लिए हुए हैं एवं अब वे इन देशों की कानून व्यवस्थ के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गए हैं। जर्मनी एवं फ्रान्स ने मुस्लिम नागरिकों को मानवीय आधार पर अपने देश में बसाने में शिथिल नीतियों का पालन किया था और अब ये दोनों देश इस संदर्भ में विभिन्न समस्याओं का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं। आज जब कई मुस्लिम देश शिया एवं सुन्नी सम्प्रदाय के नाम पर आपस में ही लड़ रहे हैं तो उनका ईसाई पंथ को मानने वाले नागरिकों के साथ सामंजस्य किस प्रकार रह सकता है, अतः यूरोपीयन देशों के नागरिकों को अब अपने किए पर पश्तावा होने लगा है। ब्रिटेन में भी आज मुस्लिम समाज की आबादी बहुत बढ़ गई है एवं यहां का ईसाई समाज अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगा है क्योंकि मुस्लिम समाज द्वारा ईसाई समाज पर कई प्रकार के आक्रमण किया जाना आम बात हो गई है। ब्रिटेन के कई शहरों में तो मेयर आदि जैसे उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के पदों पर भी मुस्लिम समाज के नागरिक ही चुने गए है अतः इन नगरों में सत्ता की चाबी ही अब मुस्लिम समाज के नागरिकों के हाथों में है, जिसे ईसाई समाज के नागरिक बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसी प्रकार, इजराईल (यहूदी समुदाय) एवं हम्मास (मुस्लिम समुदाय) के बीच युद्ध लम्बे समय से चल रहा है। ईरान (शिया समुदाय) – सऊदी अरब (सुन्नी समुदाय) के आपस में रिश्ते अच्छे नहीं है। पाकिस्तान में तो अहमदिया समुदाय एवं बोहरा समुदाय को मुस्लिम ही नहीं माना जाता है एवं इनको गैर मुस्लिम मानकर इन पर सुन्नी समुदाय द्वारा खुलकर अत्याचार किए जाते हैं। कुल मिलाकर, मुस्लिम समाज न केवल अन्य समाज के नागरिकों (यहूदी, ईसाई, हिंदू आदि) के साथ लड़ता आया है बल्कि इस्लाम के विभिन्न फिर्कों के बीच भी इनकी आपसी लड़ाई होती रही है। इसके ठीक विपरीत, सनातन हिंदू संस्कृति का अनुपालन करते हुए कई भारतीय मूल के नागरिक भी अन्य देशों में रह रहे हैं एवं लम्बे समय से स्थानीय स्तर पर ईसाई समाज एवं अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ मिल जुलकर रहते आए हैं। इन देशों में भारतीय मूल के नागरिकों एवं स्थानीय स्तर पर अन्य धर्मों के अनुयायियों के बीच कभी भी बड़े स्तर पर आक्रोश उत्पन्न होता दिखाई नहीं दिया है, क्योंकि सनातन हिंदू संस्कृति में “वसुधैव कुटुम्बकम” एवं “सर्वे भवंतु सुखिन:” का भाव हिंदू नागरिकों में बचपन से ही भरा जाता है। इसी प्रकार के भाव का संचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी पिछले 99 वर्षों से अपने स्वयंसेवकों में जगाता आया है। संघ चाहता है कि संसार में सद्गुणों का बोलबाला हो। 27 सितम्बर 1933 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, शस्त्र पूजा समारोह में अपने उदबोधन में कहते हैं कि “संघ एक हिंदू संगठन है। संसार के सभी धर्मों में हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसका मुख्य गुण सद्गुण है और जो ‘आत्मवत् भूतेषु’ (सभी प्राणियों में अपने को देखना) की भावना से सभी जीवों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना सिखाता है। यह धर्म संसार में व्याप्त हिंसा और अन्याय को स्वीकार नहीं करता। इसलिए स्वाभाविक है कि प्रत्येक हिंदू ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना चाहता है। लेकिन केवल उपदेश देने से संसार का स्वभाव नहीं बदलेगा। जब संसार को लगेगा कि हिंदू समाज सुसंगठित और सशक्त हो गया है, तो हमारे प्रति जो अनादर का भाव सर्वत्र दिखाई देता है, वह समाप्त हो जाएगा और संसार हमारी बात सुनेगा। हिंदू धर्म अनादि काल से यही करता आ रहा है और ऐसे पवित्र धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए ही संघ की शुरुआत हुई है।” “आजकल हिंदू समाज बहुत अव्यवस्थित हो गया है। संघ का एकमात्र उद्देश्य हिंदू समाज को इस तरह संगठित करना है कि हिंदू, हिंदुस्तान में गर्वित हिंदू के रूप में खड़े हो सकें और दुनिया को यह विश्वास दिला सकें कि हिंदू कोई ऐसी जाति नहीं है जो मरणासन्न अवस्था में हो। संघ चाहता है कि संसार में सद्गुणों का बोलबाला हो। संघ का लक्ष्य मानव जाति में व्याप्त राक्षसी प्रवृत्ति को दूर करना और उसे मानवता सिखाना है। संघ का गठन किसी से घृणा करने या उसे नष्ट करने के लिए नहीं हुआ है।” हाल ही में जारी की गई प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण’ नामक विषय के माध्यम से बताया गया है कि बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी 1950 और 2015 के बीच 7.82% घट गई है। जबकि मुस्लिमों की आबादी में 43.15% की वृद्धि हुई है। मुस्लिमों की 1950 में 9.84% रही आबादी 14.09% पर पहुंच गई है। ईसाई धर्म के लोगों की आबादी की हिस्सेदारी 2.24% से बढ़कर 2.36% हुई है। ठीक ऐसे ही सिख समुदाय की आबादी 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गई है। भारत में सद्गुणों से ओतप्रोत हिंदू नागरिकों की जनसंख्या यदि इस प्रकार घटती रही तो यह भारत के साथ पूरे विश्व के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम आबादी (जो कि अपने धर्म के प्रति एक कट्टर कौम मानी जाती है तथा अन्य धर्मों के लोगों के प्रति बिलकुल सहशुण नहीं है और वक्त आने पर अन्य समाज के नागरिकों का कत्लेआम करने में भी हिचकिचाते नहीं है) में बेतहाशा वृद्धि होना, पूरे विश्व के लिए एक अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है। यह बात ध्यान रखने वाली है कि ईरान कभी आर्यों का अर्थात पारसियों का देश था। इराक, सऊदी अरब ,पश्चिम एशिया के समस्त मुस्लिम देश 1400 वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता को मानने वाले देश थे। तलवार के बल पर 57 देश इस्लाम को स्वीकार कर चुके हैं इनमें से कोई भी ऐसा देश नहीं है जो 1400 वर्ष पहले से अर्थात सनातन की भांति सृष्टि के प्रारंभ से मुस्लिम देश था। 1398 ईसवी में ईरान भारत से अलग हुआ, 1739 में नादिरशाह ने अफगानिस्तान को अपने लिए एक अलग रियासत के रूप में प्राप्त कर लिया, बाद में 1876 में यह एक स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आ गया,1937 में म्यांमार बर्मा अलग हुआ, 1911 में श्रीलंका अलग हुआ और 1904 में नेपाल अलग हुआ। सांप्रदायिक आधार पर देश विभाजन का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके पश्चात 1947 में पश्चिमी एवं पूर्वी पाकिस्तान देश बना। पूर्वी पाकिस्तान आज बांग्लादेश के रूप में मानचित्र पर उपलब्ध है। आज एक बार पुनः भारत के भीतर जहां-जहां इस्लाम को मानने वाले लोगों की संख्या बहुलता को प्राप्त हो गई है, वहां वहां पर अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियां, दमन और शोषण के नए-नए स्वरूप देखे जा रहे हैं। केरल, कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत, बंगाल जहां जहां उनकी संख्या बहुलता में है, वहां -वहां दूसरे धर्म और जाति के लोग परेशान हैं। उपस्थित तथ्यों से सत्य को समझना चाहिए। इन आंकड़ों के आलोक में हमें समझना चाहिए कि हमारी बहू, बेटियां, महिलाओं की इज्जत कब तक सुरक्षित रह सकती है? निश्चित रूप से तब तक जब तक कि भारतवर्ष सनातनी हिंदुओं के हाथ में है। हमें इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए कि अब हम सांप्रदायिक आधार पर देश का पुनः विभाजन नहीं होने दें। नोवाखाली जैसे नरसंहारों की पुनरावृत्ति अब हमारे देश में नहीं होनी चाहिए। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय जिस प्रकार लाखों करोड़ों लोगों को घर से बेघर होना पड़ा था, उस इतिहास को अब दोहराया नहीं जाना चाहिए। भारत में आंतरिक स्थिति ठीक नजर नहीं आती है परंतु विश्व के कई अन्य देशों में सनातन संस्कृति को तेजी से अपनाया जा रहा है, तभी तो कहा जा रहा है कि विश्व में आज कई समस्याओं का हल केवल हिंदू सनातन संस्कृति को अपना कर ही निकाला जा सकता है। प्रहलाद सबनानी Read more » सनातन हिंदू संस्कृति का पूरे विश्व में फैलना आज विश्व शांति के लिए आवश्यक है
धर्म-अध्यात्म लेख तमसो मां ज्योतिर्गमय: गायत्री नमामि नमामि नमामि June 10, 2024 / June 10, 2024 by सुरेश सिंह बैस शाश्वत | Leave a Comment – सुरेश सिंह बैस “शाश्वत” गायत्री जयंती ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तो कहीं एकादशी के दिन मनायी जाती है। वहीं कहीं पर यह श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भी मनाई जाती है। गायत्री जयंती पर्व मां गायत्री देवी का जन्मोत्सव है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन मां […] Read more » तमसो मां ज्योतिर्गमय
धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार सती के तेज से विधाता को विधि का विधान भी बदलना पड़ा June 5, 2024 / June 10, 2024 by सुरेश सिंह बैस शाश्वत | Leave a Comment 06 जून वट सावित्री व्रत पर विशेष- ___________________________ – सुरेश सिंह बैस “शाश्वत” इस व्रत की असीम महिमा है। इस वृतांत में सतीत्व के प्रताप से कालपुरुष को भी बेबस होते देख सकते हैं ,तो वहीं इसके साथ – साथ पर्यावरण की सुरक्षा और दैवीय शक्ति का प्रमाण भी मिलता है। […] Read more » 06 जून वट सावित्री व्रत
चिंतन धर्म-अध्यात्म लेख जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता है वह सर्वदा आनन्द में रहता है : स्वामीयज्ञमुनि May 17, 2024 / May 17, 2024 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य स्वामी यज्ञमुनि जी ने श्रोताओं को स्मरण कराते हुए कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा है कि हम सर्वदा आनन्द में रहें। उन्होंने पूछा कि कौन सर्वदा आनन्द में रहता है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि जो मनुष्य नम्रतापूर्वक वैदिक विधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता […] Read more » prays and worships God in the Vedic manner always remains happy: Swamiyagyamuni The person who humbly praises
धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार समाज तप, शक्ति एवं मंगल का पर्व है अक्षय तृतीया May 8, 2024 / May 8, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment अक्षय तृतीया 10 मई, 2024 पर विशेष– ललित गर्ग-अक्षय तृतीया महापर्व का न केवल सनातन परम्परा में बल्कि जैन परम्परा में विशेष महत्व है। इसका लौकिक और लोकोत्तर-दोनों ही दृष्टियों में महत्व है। यह त्यौहार अध्यात्म, आरोग्य, मंगल एवं उपवास का विलक्षण संगम है। इस त्यौहार के साथ-साथ एक अबूझा मांगलिक एवं शुभ दिन भी […] Read more » अक्षय तृतीया 10 मई
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार उन्नत जीवन का आधार है हनुमान भक्ति April 22, 2024 / April 20, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment हनुमान जयन्ती- 23 अप्रैल 2024 पर विशेष– ललित गर्ग – भगवान हनुमानजी को हिन्दू देवताआंे में सबसे शक्तिशाली माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवंे रूद्र अवतार थे जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। उनको बजरंग बलि, […] Read more » Hanuman devotion is the basis of advanced life हनुमान भक्ति
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धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार श्रीराम के प्रकृति-प्रेम की सकारात्मक ऊर्जा April 15, 2024 / April 15, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के रामनवमी बहुत ही शुभ दिन होता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ था। धार्मिक मत है कि सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन बिना मुहूर्त […] Read more » ramnavami श्रीराम के प्रकृति-प्रेम की सकारात्मक ऊर्जा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म राजनीति सृष्टि चक्र का शाश्वत सनातन संवाहक भारतीय नवसम्वत्सर April 9, 2024 / April 9, 2024 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि भारतीय संस्कृति में अपना विशिष्ट महत्व रखती है। यह तिथि नवसम्वत्सर – हिन्दू नववर्ष के उत्साह पर्व की तिथि है। यह तिथि भारतीय मेधा के शाश्वत वैज्ञानिकीय चिंतन – मंथन के साथ – साथ लोकपर्व के रङ्ग में जीवन के सर्वोच्च आदर्शों से एकात्मकता स्थापित […] Read more » Indian Nava Samvatsara the eternal conductor of the cycle of creation
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख नवरात्र मात्र उपवास और कन्याभोज नहीं है April 8, 2024 / April 8, 2024 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment चैत्र मास की शुक्लप्रतिपदा यानी नव संवत्सर का आरम्भ। ऐसा नववर्ष जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि में एक नईऊर्जा का संचार हो रहा होता है। एक तरफ पेड़ पौधों में नई पत्तियां और फूल खिल रहेहोते हैं तो मौसम भी करवट बदल रहा होता है। शीत ऋतु जा रही होती है, ग्रीष्म ऋतु आ रही होती है […] Read more » Navratri is not just fasting and Kanyabhoj नवरात्र
धर्म-अध्यात्म लेख भारत में वर्ष प्रतिपदा हिंदू कालगणना के वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मनाई जाती है April 8, 2024 / April 8, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई। समस्त पापों को नष्ट करने वाली महाशांति उसी दिन सूर्योदय के साथ आती है। वर्षप्रतिपदा का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए इसका वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है। सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पूजा ‘ॐ’ का सामूहिक उच्चारण, नए पुष्पों, फलों, मिष्ठानों से युग पूजा और सृष्टि की पूजा करनी चाहिए। सूर्य दर्शन, सुर्यध्र्य प्रणाम, जयजयकार, देव आराधना आदि करना चाहिए। परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, नृत्य से सामूहिक आनंदोत्सव मनाना चाहिए तथा परस्पर साथ मिल बैठकर समस्त आपसी भेदों को समाप्त करना चाहिए। चूंकि यह ब्रह्मा द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ तिथि है अत इसको प्रथम पद मिला है, इसलिए इसे प्रतिपदा कहते हैं। हमारा यह शास्त्रीय विधान पूर्णत: विज्ञान सम्मत है। जागरण के इस काल में हमें काल पुरुष जगा रहा है, ऐसी सनातन संस्कृति में मान्यता है। आइये, हम भी हिंदुत्व के उगते सूरज के सम्मान और अभ्यर्थना में उठ खड़े हों। वैदिक शुभकामना स्वस्ति न इन्द्रो वृद्श्र्वा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्श्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिरदधातु।। अर्थात, महान यशस्वी इंद्र एश्वर्य प्रदान करें, पूषा नामक सूर्य तेजस्विता प्रदान करें। ताक्षर्य नामक सूर्य रसायन तथा बुद्धि द्वारा रोग-शोक का निवारण करें तथा बृहस्पति नामक गृह सभी प्रकार के मंगल तथा कल्याण प्रदान करते हुए उत्तम सुख समृधि से ओतप्रोत करें। उक्त मन्त्र में खगोल स्थित क्रान्तिव्रत के समान चार भाग के परिधि पर समान दूरी वाले चार बिन्दुओं पर पड़ने वाले नक्षत्रों क्रमशः इंद्र, पूषा ताक्षर्य एवं बृहस्पति अर्थात चित्रा, रेवती, श्रवण व् पुष्य नक्षत्रों द्वारा क्रान्ति व्रत पर 180 अंश का कोण बनता है। यह वैदिक पुरुष द्वारा की गई जन कल्याण की कामना है। वर्ष प्रतिपदा हिंदू काल गणना पर आधारित है और इसके साथ अन्य कई वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हैं। इसी दिन वासंतिक नवरात्रि का भी प्रारम्भ होता है और वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिवसीय शक्ति पर्व प्रारम्भ होता है तथा सनातनी हिंदू इसी दिन से शक्ति की भक्ति में लीन हो जाते हैं। सतयुग के खंडकाल में भारतीय (हिन्दू) नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन प्रारंभ हुआ था क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना का प्रारंभ किया गया था। आगे चलकर त्रेतायुग में वर्षप्रतिपदा के दिन ही प्रभु श्रीराम का लंका विजय के बाद राज्याभिषेक हुआ था। भगवान श्रीराम ने वानरों का विशाल सशक्त संगठन बनाकर असुरी शक्तियों (आतंक) का विनाश किया था। इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय हुई और रामराज्य की स्थापना हुई थी। अगले खंडकाल अर्थात द्वापर युग में युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ भी वर्षप्रतिपदा के दिन हुआ था। महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर संवत प्रारम्भ हुआ। आगे कलयुग के खंडकाल में विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ। सम्राट विक्रमादित्य की नवरत्न सभा की चर्चा आज भी चहुंओर होती है। यह भारत के परम वैभवशाली इतिहास का एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस नवरत्न सभा में निम्नलिखित रत्न शामिल थे – (1) धन्वन्तरि-आर्युवेदाचार्य; (2) वररुचि-व्याकरणचार्य; (3) कालीदास-महाकवि; (4) वराहमिहिर-अंतरिक्षविज्ञानी; (5) शंकु-शिक्षा शाश्त्री; (6) अमरसिंह-साहित्यकार; (7) क्षणपक-न्यायविद दर्शनशास्त्री; (8) घटकर्पर-कवि; (9) वेतालभट्ट-नीतिकार। भारतीय सनातन संस्कृति पर आधारित कालगणना को विश्व की सबसे प्राचीन पद्धति माना जाता है। दरअसल भारत में कालचक्र प्रवर्तक भगवान शिव को काल की सबसे बड़ी इकाई के अधिष्ठाता होने के चलते ही उन्हें महाकाल कहा गया। वहीं कलयुग में विक्रमादित्य द्वारा नए संवत का प्रारम्भ परकीय विदेशी आक्रमणकारियों से भारत को मुक्त कराने के महाअभियान की सफलता का प्रतीक माना गया है। इधर स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा राष्ट्रीय पंचांग निश्चित करने के उद्देश्य से प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में एक ‘कलैंडर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया गया था। वर्ष 1952 में ‘साइंस एंड कल्चर’ पत्रिका में प्रकाशित एक प्रतिवेदन के अनुसार, लगभग पूरे विश्व में लागू ईसवी सन का मौलिक सम्बंध ईसाई पंथ से नहीं है और यह यूरोप के अर्धसभ्य कबीलों में ईसामसीह के बहुत पहले से ही चल रहा था। इसके अनुसार एक वर्ष में 10 महीने और 304 दिन ही होते थे। वर्ष के कैलेंडर में जनवरी एवं फरवरी माह तो बाद में जोड़े गए हैं। पुरानी रोमन सभ्यता को भी तब तक ज्ञात नहीं था कि सौर वर्ष और चंद्रमास की अवधि क्या थी। यही दस महीने का साल वे तब तक चलाते रहे जब तक उनके नेता सेनापति जूलियस सीजर ने इसमें संशोधन नहीं कर लिया। ईसा के 530 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद, ईसाई बिशप ने पर्याप्त कल्पनाएं कर 25 दिसम्बर को ईसा का जन्म दिवस घोषित किया। वर्ष 1572 में तेरहवें पोप ग्रेगोरी ने कैलेंडर को दस दिन आगे बढ़ाकर 5 अक्टोबर (शुक्रवार) को 15 अक्टोबर माना, जिसे ब्रिटेन द्वारा 200 वर्ष उपरांत अर्थात वर्ष 1775 में स्वीकार किया गया। साथ ही, यूरोप के कैलेंडर में 28, 29, 30, 31 दिनों के महीने होते हैं, जो विचित्र है क्योंकि यह न तो किसी खगोलीय गणना पर आधारित हैं और न ही किसी प्रकृति चक्र पर। उक्त वर्णित कारणों के चलते कैलेंडर रिफोर्म कमेटी ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफ़ारिश की थी। विक्रम संवत, ईसा संवत से 57 साल पुराना था। परंतु, दुर्भाग्य से भारत में अंग्रेज़ी मानसिकता से ग्रसित लोगों के यह सुझाव पसंद नहीं आया और देश में यूरोप के कैलेंडर को लागू कर दिया गया। हालांकि, विदेशी सिद्धांतो पर आधारित गणनाओं में कई विसंगतियाँ पाई गई हैं। चिल्ड्रन्स ब्रिटानिका के प्रथम खंड (1964) में कैलेंडर का इतिहास बताया गया है। इसमें यह बताया गया है कि अंग्रेजी कैलेंडरों में अनेक बार गड़बड़ हुई हैं एवं इसमें समय समय पर कई संशोधन करने पड़े हैं। इनमें माह की गणना चंद्र की गति से और वर्ष की गणना सूर्य की गति पर आधारित है। आज भी इसमें कोई आपसी तालमेल नहीं है। ईसाई मत में ईसा मसीह का जन्म इतिहास की निर्णायक घटना मानी गई है। अतः कालक्रम को BC (Before Christ) और AD (Anno Domini) अर्थात In the year of our Lord में बांटा गया। किंतु, यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद भी कुछ सदियों तक प्रचलन में नहीं आई थी। इसके साथ ही, आज के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है। यह ईसा के जन्म के 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना से प्रारम्भ हुआ। तब इसमें 10 माह थे (प्रथम माह मार्च से अंतिम माह दिसम्बर तक) वर्ष होता था 304 दिन का। बाद में राजा नूमा पिंपोलियस ने दो माह (जनवरी एवं फरवरी) जोड़ दिए। तब से वर्ष 12 माह अर्थात 355 दिन का हो गया। यह ग्रहों की गति से मेल नहीं खाता था, तब जूलियस सीजर ने इसे 365 और 1/4 दिन का करने का आदेश दे दिया। इसमें कुछ माह 30 दिन व कुछ माह 31 दिन के बनाए गए और फरवरी के लिए 28 दिन अथवा 29 दिन बनाए गए। इस प्रकार पश्चिमी कैलेंडर में गणनाएं प्रारम्भ से ही अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित विवादित एवं काल्पनिक रहीं। इसके विपरीत सनातन हिंदू संस्कृति पर आधारित काल गणना पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध पाई गईं हैं। इस दृष्टि से वर्षप्रतिपदा का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है और भारत में आज हिंदू सनातनियों द्वारा वर्षप्रतिपदा के दिन ही नए वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है एवं वर्ष भर की काल गणना भी हिंदू सनातन संस्कृति के आधार पर की जाती है, जिसे अति शुभ माना गया है। प्रहलाद सबनानी Read more » In India Varsha Pratipada is celebrated on the basis of scientific facts of Hindu calendar. प्रतिपदा हिंदू कालगणना
धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण March 11, 2024 / March 11, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव शिव ही सर्वज्ञ, परिपूर्ण और अनंत शक्तियों को धारण किए हैं। जो मन, वचन, शरीर और धन से शिव भावना करके उनकी पूजा करते हैं, उन पर शिवजी की कृपा अवश्य होती है। शिवलिंग में शिव की प्रतिमा ने शिव भक्तजनों में शिव की भावना करके उनकी प्रसन्नता के लिए पूजा का विधान है जो […] Read more » One gets welfare by wearing Shiva Bhasma