धर्म-अध्यात्म लेख वर्त-त्यौहार शिव भस्म धारण से मिलता है कल्याण March 7, 2024 / March 7, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव शिव ही सर्वज्ञ, परिपूर्ण और अनंत शक्तियों को धारण किए हैं। जो मन, वचन, शरीर और धन से शिव भावना करके उनकी पूजा करते हैं, उन पर शिवजी की कृपा अवश्य होती है। शिवलिंग में शिव की प्रतिमा ने शिव भक्तजनों में शिव की भावना करके उनकी प्रसन्नता के लिए पूजा का विधान है जो […] Read more » शिव भस्म
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व March 5, 2024 / March 5, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार […] Read more » Cultural and scientific importance of Mahashivratri महाशिवरात्रि
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख विश्व का एक अनूठा त्यौहार है मर्यादा महोत्सव February 16, 2024 / February 16, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment मर्यादा महोत्सव 14, 15 एवं 16 फरवरी 2024 पर विशेष-ः ललित गर्ग:-जीवन का पड़ाव चाहे संसार हो या संन्यास, सीमा, संयम एवं मर्यादा जरूरी है। मर्यादा जीवन का पर्याय है। धरती, अंबर, समन्दर, सूरज, चांद-सितारें, व्यक्ति, धर्म एवं समाज सब अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं। जब भी उनकी मर्यादा एवं सीमा टूटती है, प्रकृति प्रलय […] Read more » मर्यादा महोत्सव विश्व का एक अनूठा त्यौहार है मर्यादा महोत्सव
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार स्वागत करें ज्ञान एवं सौभाग्यरूपी उजालों का February 13, 2024 / February 13, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment बसंत पंचमी- 14 फरवरी, 2024-ललित गर्ग – मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा त्योहार है बसंत पंचमी, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। बसंत पंचमी […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार संतों की ऋतु है बसंत February 12, 2024 / February 12, 2024 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह बसंत ऋतु नवीनता का प्रतीक है। नवीनता उल्लास को जन्म देती है। उल्लास सुख समृद्धि का द्योतक है। सुख शांति का वास ज्ञान में है। इस ऋतु में प्रकृति अपना नया रूप दिखती है। बसंत पंचमी ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती का अवतरण […] Read more » Spring is the season of saints
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख विधि-कानून विश्व की एकमात्र पाप-नाशिनी है नर्मदा जिसका कंकड़ भी नर्मदेश्वर शिवलिंग बन जाता है। January 29, 2024 / January 29, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव समूचे विश्व में जो दिव्य व रहस्यमयी है तो वह नर्मदा। नर्मदा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड में किया है। रामायण और महाभारत में भी नर्मदा का उल्लेख मिलता है। कालिदास ने नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है और रघुवंश में […] Read more » पाप-नाशिनी नर्मदा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख विद्यादायिनी मोक्षप्रदायनी मॉ शारदा का शरीर है मातृकाओं से निर्मित January 29, 2024 / January 29, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव मॉ शारदा का शरीर ’’अवर्ग’’ आदि सात वर्गो में विभक्त 51 मातृकाओं से निर्मित है। स्वच्छन्दोद्योत .पटल 10 पटल के अनुसार-’’अवर्गे तू महालक्ष्मीः कवर्गे कमलोद्भवा।।34।। चवर्गे तू महेशानी, टवर्गे तु कुमारिका।। नारायणी तवर्गे तु, वाराही तु पवर्गिका।।35।। ऐन्दी चैव यवर्गस्था, चामुण्डा तु शवर्गिका।। एता सप्तमहामातृ, सप्तलोकव्यवस्थिः।।36।। अर्थात 16 […] Read more » Vidyadayini Mokshapradayani Maa Sharda's body is made up of matrikas.
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख पुरुषोत्तम श्रीराम : जैन साहित्य में January 20, 2024 / January 24, 2024 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment -श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र। कुलों को धारण करने वाले कुलधर कहलाते है, जिन्हें ‘मनु’ भी कह कहते हैं। अंतिम कुलकर नाभिराय थे, जिन्हें “तिलोयपणत्ती” में भी “मनु” कह गया है। इसके अनंतर श्लाका पुरुषों का उल्लेख आता है। उसमें 24 तीर्थकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 नारायण और 9 प्रति नारायण इस तरह कुल 63 (तिरसठ […] Read more » Purushottam Shriram: In Jain literature
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म लेख भगवान पार्श्वनाथ हैं पुरुषार्थ एवं जीवंत धर्म की प्रेरणा January 5, 2024 / January 5, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment भगवान पार्श्वनाथ जन्म जयंती 7 जनवरी 2023 पर विशेषः-ः ललित गर्गः- भगवान पार्श्वनाथ ने सत्य की तलाश में राज-वैभव को त्याग संसार में संन्यस्त हुए। उन्होंने कठिन तप तपा, वीतरागता तक पहुंचकर अपने जीये गये सच को भाषा दी। जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर के रूप में उन्होंने वास्तविक धर्म को स्थापित कर उपदेश दिया […] Read more » Lord Parshvanath is the inspiration for efforts and vibrant religion. भगवान पार्श्वनाथ
धर्म-अध्यात्म लेख धरती की सुरक्षा निहित है श्रीराम के प्रकृति-प्रेम में January 4, 2024 / January 4, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग –अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीराम मन्दिर का उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को करेंगे, निश्चित ही श्रीराम के इस पांच सौ वर्ष के टेंटवास के वनवास से स्व-मन्दिर में स्थापित होने की घटना वास्तविक दीपावली एवं खुशी का अवसर है, जिससे भारत एक नये युग में प्रवेश करेगा। जितनी आस्था एवं भक्ति […] Read more » Earth's safety lies in Shri Ram's love for nature.
चिंतन धर्म-अध्यात्म लेख विश्व में वेदों के प्रचार का श्रेय ऋषिदयानन्द और आर्यसमाज को है January 3, 2024 / January 3, 2024 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के बाद वेदों का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। वेदों के सत्य अर्थों के विलुप्त होने के कारण ही संसार में मिथ्या अन्धविश्वास तथा पक्षपात व दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्थायें फैली हैं। इससे विद्या व ज्ञान में न्यूनता तथा अविद्या व अज्ञानयुक्त मान्यताओं में […] Read more » वेदों के प्रचार का श्रेय ऋषिदयानन्द
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे December 20, 2023 / December 20, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment यह एक एतिहासिक तथ्य है कि प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने के उद्देश्य से अपनी सेना वनवासियों एवं वानरों की सहायता से ही बनाई थी। केवट, छबरी, आदि के उद्धार सम्बंधी कहानियां तो हम सब जानते हैं। परंतु, जब वे 14 वर्षों के वनवास पर थे तो इतने लम्बे अर्से तक वनवास करते करते वे स्वयं भी एक तरह से वनवासी बन गए थे। इन 14 वर्षों के दौरान, वनवासियों ने ही प्रभु श्री राम की सेवा सुषुर्शा की थी एवं प्रभु श्री राम भी इनके स्नेह, प्रेम एवं श्रद्धा से बहुत अभिभूत थे। इसी तरह की कई कहानियां इतिहास के गर्भ में छिपी हैं। यह भी एक कटु सत्य है एवं इतिहास इसका गवाह है कि हमारे ऋषि मुनि भी वनवासियों के बीच रहकर ही तपस्या करते रहे हैं। अतः भारत में ऋषि, मुनि, अवतार पुरुष, आदि वनवासियों, जनजातीय समाज के अधिक निकट रहते आए हैं। इस प्रकार, हमारी परम्पराएं, मान्यताएं एवं सोच एक ही है। जनजातीय समाज भी भारत का अभिन्न एवं अति महत्वपूर्ण अंग है। आज भी भारत में वनवासी मूल रूप में प्रभु श्री राम की प्रतिमूर्ति ही नजर आते हैं। दिल से एकदम सच्चे, धीर गम्भीर, भोले भाले होते हैं। यह प्रभु श्री राम की उन पर कृपा ही है कि वे आज भी सतयुग में कही गई बातों का पालन करते हैं। परंतु, कई बार ईसाई मशीनरियों एवं कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों द्वारा वनवासियों को उनके मूल स्वभाव से भटकाकर लोभी, लालची एवं रावण का वंशज बताया जाता है। रावण स्वयं तो वनवासी कभी रहे ही नहीं थे एवं वे श्री लंका के एक बुद्धिमान राजा थे। इस बात का वर्णन जैन रामायण में भी मिलता है। अब प्रशन्न यह उठता है कि जब रावण स्वयं एक ब्राह्मण था तो वह वंचित वर्ग का मसीहा या पूर्वज कैसे हो सकता है? जैन रामायण की तरह गोंडी रामायण भी रावण को पुलत्स वंशी ब्राह्मण मानती है, न कि आदिवासियों का पूर्वज, कुछ गोंड पुजारी रावण को अपना गुरु भाई भी मानते हैं, चूंकि पुलत्स ऋषि ने उनके पूर्वजों को भी दीक्षा दी थी। इस तरह के तथ्य भी इतिहास में मिलते हैं कि रावण अपने समय का एक बहुत बड़ा शिव भक्त एवं प्रकांड विद्वान था। रावण जब मृत्यु शैया पर लेटा था तब प्रभु श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था कि रावण अब मृत्यु के निकट है एवं प्रकांड विद्वान है अतः उनसे उनके इस अंतिम समय में कुछ शिक्षा ले लो। तब लक्ष्मण रावण के सिर की तरफ खड़े होकर शिक्षा लेने पहुंचे थे तो लक्ष्मण को कहा गया था कि शिक्षा लेना है तो रावण के पैरों की तरफ आना होगा। तब लक्ष्मण, रावण के पैरों के पास आकर खड़े हुए तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को अपने अंतिम समय में शिक्षा प्रदान की थी। अतः रावण अपने समय का एक प्रकांड पंडित था। भारतीय संस्कृति पर पूर्व में भी इस प्रकार के हमले किए जाते रहे हैं। भारत में समाज को आपस में बांटने के कुत्सित प्रयास कोई नया नहीं हैं। एक बार तो रामायण एवं महाभारत आदि एतिहासिक ग्रंथों को भी अप्रामाणिक बनाने के कुत्सित प्रयास हो चुके हैं। वर्ष 2007 में तो केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मातहत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामा (शपथ पत्र) दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरितमानस प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनके पात्रों को एतिहासिक रूप से रिकार्ड नहीं माना जा सकता है, जो कि निर्विवाद रूप से इनके पात्रों का अस्तित्व सिद्ध करता हो या फिर घटनाओं का होना सिद्ध करता हो। ये बातें कितनी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह कहना कि प्रभु श्री राम और रामायण के पात्र (राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण, सुग्रीव और रावण, आदि) एतिहासिक रूप से प्रामाणिक सिद्ध नहीं होते, एक प्रकार से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात ही था। हालांकि भारतीय जनमानस के आंदोलित होने पर उस समय की भारत सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने अपने शपथ पत्र (हलफनामे) को न्यायालय से वापस मांग लिया था। विभिन्न देशों में वहां की स्थानीय भाषाओं में पाए जाने वाले ग्रंथों एवं विदेशों तक में किए गए कई शोध पत्रों के माध्यम से भी यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्री राम 14 वर्ष तक वनवासी बनकर ही वनों में निवास किए थे। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रभु श्रीराम भी अपने वनवास के दौरान वनवासियों के बीच रहते हुए एक तरह से वनवासी ही बन गए थे। साथ ही, वनों में निवासरत समुदायों ने सहज ही उन्हें अपने से जुड़ा माना और प्रभु श्री राम उनके लिए देव तुल्य होकर उनमें एक तरह से रच बस गए थे। कई वनवासी एवं जनजाति समाजों ने तो अपनी रामायण ही रच डाली है। जिस प्रकार, गोंडी रामायण, जो रामायण को अपने दृष्टिकोण से देखती है, हजारों सालों से गोंडी व पंडवानी वनों में रहने वाले जनजाति समाजों की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है। गुजरात के आदिवासियों में “डांगी रामायण” तथा वहां के भीलों में “भलोडी रामायण” का प्रचलन है। साथ ही, हृदय स्पर्शी लोक गीतों पर आधारित लोक रामायण भी गुजरात में राम कथा की पावन परम्परा को दर्शाती है। इसके साथ ही, विदेशों में भी वहां की भाषाओं में लिखी गई रामायण बहुत प्रसिद्ध है। आज प्रभु श्री राम की कथा भारतीय सीमाओं को लांघकर विश्व पटल पर पहुंच गई है और निरंतर वहां अपनी उपयोगिता, महत्ता और गरिमा की दस्तक देती आ रही है। आज यह कथा विश्व की विभिन्न भाषाओं में स्थान, विचार, काल, परिस्थिति आदि में अंतर होने के बावजूद भी अनेक रूपों में, विधाओं में और प्रकारों में लिखी हुई मिलती है। यथा, थाईलेंड में प्रचलित रामायण का नाम “रामकिचेन” है। जिसका अर्थ है राम की कीर्ति। कम्बोडिया की रामायण “रामकेर” नाम से प्रसिद्ध है। लाओस में “फालक फालाम” और “फोमचक्र” नाम से दो रामायण प्रचलित हैं। मलेशिया यद्यपि मुस्लिम राष्ट्र है, परंतु वहां भी “हिकायत सिरीरामा” नामक रामायण प्रचलित है, जिसका तात्पर्य है श्री राम की कथा। इंडोनेशिया की रामायण का नाम “ककविन रामायण” है, जिसके रचनाकार महाकवि ककविन हैं। नेपाल में “भानुभक्त रामायण” और फिलीपीन में “महरादिया लावना” नामक रामायण प्रचलित है। इतना ही नहीं, प्रभु श्री राम को मिस्र (संयुक्त अरब गणराज्य) जैसे मुस्लिम राष्ट्र और रूस जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्र में भी लोकनायक के रूप में स्वीकार किया गया है। इन सभी रामायण में भी प्रभु श्री राम के वनवास में बिताए गए 14 वर्षों के वनवास का विस्तार से वर्णन किया गया है। भारतीय साहित्य की विशिष्टताओं और गहनता से प्रभावित होकर तथा भारतीय धर्म की व्यापकता एवं व्यावहारिकता से प्रेरित होकर समय समय पर चीन, जापान आदि एशिया के विभिन्न देशों से ही नहीं, यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन, इटली, फ्रान्स, ब्रिटेन आदि देशों से भी अनेक यात्री, धर्म प्रचारक, व्यापारी, साहित्यकार आदि यहां आते रहे हैं। इन लोगों ने भारत की विभिन्न विशिष्टताओं और विशेषताओं के उल्लेख के साथ साथ भारत की बहुप्रचलित श्रीराम कथा के सम्बंध में भी बहुत कुछ लिखा है। यही नहीं, विदेशों से आए कई विद्वानों जहां इस संदर्भ में स्वतंत्र रूप से मौलिक ग्रंथ लिखे हैं, वहीं कई ने इस कथा से सम्बंधित “रामचरितमानस” आदि विभिन्न ग्रंथों के अनुवाद भी अपनी भाषाओं में किए हैं और कई ने तो इस विषय में शोध ग्रंथ भी तैयार किए हैं। भारत के वनवासियों के तो रोम रोम में प्रभु श्री राम बसे हैं। उन्हें प्रभु श्रीराम से अलग ही नहीं किया जा सकता है। यह सोचना भी हास्यास्पद लगता है। प्रभु श्री राम की जड़ें आदिवासियों में बहुत गहरे तक जुड़ी हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि विदेशी मशीनरियों के कुत्सित प्रयासों को विफल करते हुए भारतीय संस्कृति पर हमें गर्व करना होगा। धर्मप्राण भारत सारे विश्व में एक अद्भुत दिव्य देश है। इसकी बराबरी का कोई देश नहीं है क्योंकि भारत में ही प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हमारे भारतवर्ष में भगवान स्वयं आए हैं एवं एक बार नहीं अनेक बार आए हैं। हमारे यहां गंगा जैसी पावन नदी है एवं हिमालय जैसा दिव्य पर्वत है। ऐसे भाग्यशाली कहां हैं अन्य देशों के लोग। प्रहलाद सबनानी Read more » प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे