धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भगवान धन्वंतरि की महिमा और आयुर्वेद का अमृत पर्व धनतेरस October 17, 2025 / October 17, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment धनतेरस (18 अक्तूबर) पर विशेषधनतेरस: अमृत कलश से आरंभ होता दीपोत्सव Read more » भगवान धन्वंतरि
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार धनतेरस: समृद्धि का नहीं, संवेदना का उत्सव October 17, 2025 / October 17, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment (आभूषणों से ज़्यादा मन का सौंदर्य जरूरी, मन की गरीबी है सबसे बड़ी दरिद्रता।) धनतेरस का अर्थ केवल ‘धन’ नहीं बल्कि ‘ध्यान’ भी है — ध्यान उस पर जो हमारे जीवन को सार्थक बनाता है। यह त्योहार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समृद्धि का असली अर्थ क्या है। अगर घर में प्रेम […] Read more » Dhanteras: A celebration of compassion धनतेरस
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भारत में पहली दीपावली कब और कैसे मनाई गई ? October 17, 2025 / October 17, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार दीपोत्सव पर्व प्रथम बार कब,कैसे और कंहा प्रारम्भ हुआ ? इसका उल्लेख किसी पुराण या शास्त्र में अधिकारिता के साथ अभिव्यक्त नहीं किया गया है, किन्तु प्रथम दीपावली दैत्यराज हिरण्याक्ष के अत्याचार, रक्तपात, लूटमार आदि से पीड़ित प्रजा को शूकररूपधारी विष्णु के वराह अवतार द्वारा दिलाई […] Read more » When and how was the first Diwali celebrated in India भारत में पहली दीपावली कब
धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धनतेरस धन के भौतिक एवं आध्यात्मिक समन्वय का पर्व October 17, 2025 / October 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment धनतेरस- 18 अक्टूबर, 2025-ललित गर्ग-धनतेरस का पर्व पंच दिवसीय दीपोत्सव की पवित्र श्रृंखला का आरंभिक द्वार है। यह केवल सोना-चांदी, वस्त्र या बर्तन खरीदने का शुभ दिन नहीं, बल्कि धन के प्रति हमारी सोच को पुनर्संतुलित करने का अवसर है। भारतीय संस्कृति में धन को सदैव देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, परंतु यह […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म रंगोली बिना सुनी है हर घर की दीपावली October 17, 2025 / October 17, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव दीपावली पर रंगोली के बिना घर आँगन सुना समझा जाता है। जब रंगोली सज जाती है तब उस रंगोली के बीच तेल- घी का दीपक अंधकार को मिटाता एक संदेश देता है वही आज रंगोली के बीच पटाखे छोडने को लोग शुभ मानते है । पौराणिक या प्राचीन इतिहास मे मनुष्य ने लोक […] Read more »
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार रूप चतुर्दशी : आंतरिक सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का महापर्व October 17, 2025 / October 17, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment दीपोत्सव विशेष : रूप चतुर्दशी 2025 ( दीपावली से एक दिन पहले ) उमेश कुमार साहू दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाला रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का उत्सव भी है। इस दिन को छोटी दिवाली और काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ दीपावली धन और समृद्धि का […] Read more » दीपावली से एक दिन पहले दीपोत्सव विशेष : रूप चतुर्दशी 2025
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती ? October 17, 2025 / October 17, 2025 by चंद्र मोहन | Leave a Comment चंद्र मोहन दिल्ली से 30-35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश, ग्रेटर नॉएडा का एक गांव है बिसरख जलालपुर जहाँ के लोग दिवाली नहीं मनाते क्योंकि वे खुद को रावण के वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि उनका गांव रावण के पिता ‘विश्रवा’ से आया है और रावण का जन्म यहीं हुआ था, इसलिए वे उसकी हार का जश्न नहीं मना सकते. इसके बजाय वे दशहरा जैसे त्योहारों में रावण की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उसकी आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं. वंशावली का दावा – गांव के लोगों का मानना है कि यह स्थान रावण के पिता विश्रवा से जुड़ा है, और रावण का जन्म भी यहीं हुआ था. रावण के प्रति सम्मान: क्योंकि वे रावण को अपना पूर्वज मानते हैं, वे उसके पुतले जलाने का विरोध करते हैं और इसके बजाय उसके पतन का जश्न मनाने के बजाय उसके लिए प्रार्थना करते हैं. परंपरागत उत्सवों से दूरी – इस वजह से वे दीवाली और दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान परंपरागत उत्सवों में भाग नहीं लेते हैं. अनहोनी का डर – कुछ ग्रामीणों का यह भी मानना है कि अगर कोई त्योहार मनाने की कोशिश करता है तो अनहोनी हो सकती है जैसे कि लोग बीमार पड़ जाते हैं. गांव के बुजुर्ग बताते है कि बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है. कहा जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था. इसी गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी. उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था. अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं. एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है. ये सभी अष्टभुजा के हैं. गांव के लोगों का कहना है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित और क्षत्रिय गुणों से युक्त थे. जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है. दशहरे के त्योहार को लेकर यहां के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है. इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है. गांव बिसरख में न रामलीला होती है और न ही रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है. इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है. रावण के मंदिर को देखने के लिए लोगो यहां आते रहते है. बिसरख गांव के मध्य स्थित इस शिव मंदिर को गांव वाले रावण का मंदिर के नाम से जाना जाता है. नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं. गजट के अनुसार बिसरख रावण का पैतृक गांव है और लंका का सम्राट बनने से पहले रावण का जीवन यहीं गुजरा था. इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्वेशरा के नाम पर पड़ा है. कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा. बिसरख गांव में दशहरे की अलग परंपरा है, जो अन्य गांवों और शहरों से भिन्न है. यहां रावण की पूजा और सम्मान किया जाता है, न कि उनकी निंदा। गांव के लोग इस अनोखी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रावण की महानता और उनके विद्वता को याद करते हैं, साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करते हैं. भारत में कई स्थानों पर दीपावली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. इन स्थानों पर दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा भी नहीं होती है और लोग पटाखे भी नहीं जलाते हैं. आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी लेकिन यह बिल्कुल सच है. आइए जानते हैं कि आखिर भारत के इन जगहों पर रोशनी का त्योहार दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है, इसकी क्या मान्यता रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब 14 वर्ष बाद भगवान श्री राम वनवास से लौटकर अयोध्या वापस आए थे, तो लोगों ने घी के दीपक जलाए थे.तभी से ही दिवाली मनाई जाती है. हिंदू धर्म में दीपावली के त्योहार का बेहद खास महत्व है. इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा होती है.इसके साथ ही लोग अपने घर और मंदिरों में दीपक जलाते हैं.भारत के अलावा दुनिया के अलग-अलग देशों में भी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. भारत के केरल राज्य में दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. राज्य के सिर्फ कोच्चि शहर में धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. आपके मन में सवाल खड़ा हो रहा होगा कि आखिर इस राज्य में दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है? यहां पर दिवाली नहीं मनाए जाने के पीछे की कुछ वजह हैं. मान्यता है कि केरल के राजा महाबली की दिवाली के दिन मौत हुई थी.इसके कारण तब से यहां पर दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. केरल में दिवाली न मनाने की पीछे दूसरी वजह यह भी है कि हिंदू धर्म के लोग बहुत कम हैं. यह भी बताया जाता है कि राज्य में इस समय बारिश होती है जिसकी वजह से पटाखे और दीये नहीं जलते. तमिलनाडु राज्य में भी कुछ जगहों पर दिवाली नहीं मनाई जाती है. वहां पर लोग नरक चतुदर्शी का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर राक्षस का वध किया था. भारत के कुछ स्थानों पर राम और रावण दोनों की पूजा एक साथ की जाती है जैसे कि इंदौर (मध्य प्रदेश) का एक मंदिर जहाँ राम के साथ रावण की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है, और मंदसौर (मध्य प्रदेश) जहाँ रावण को दामाद के रूप में पूजा जाता है. कुछ जगहों पर रावण को पूजा जाता है क्योंकि उन्हें विद्वान और भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जैसे कि कानपुर (उत्तर प्रदेश) में दशहरा के दिन पूजा जाने वाला मंदिर, या आंध्र प्रदेश के काकिनाडा में जहाँ मछुआरे शिव और रावण दोनों की पूजा करते हैं. मुख्य स्थान जहाँ राम और रावण दोनों की पूजा होती है. मंदसौर, मध्य प्रदेश – यहाँ रावण को उनकी पत्नी मंदोदरी के मायके के कारण पूजा जाता है. इंदौर, मध्य प्रदेश – एक विशेष मंदिर में राम के साथ रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण और अन्य पात्रों की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है. कानपुर, उत्तर प्रदेश: यहाँ एक ऐसा मंदिर है जो केवल दशहरा पर खुलता है, जहाँ रावण की पूजा की जाती है. काकीनाडा, आंध्र प्रदेश: यहाँ के मछुआरे समाज के लोग शिव के साथ रावण की भी पूजा करते हैं. अन्य स्थानों पर जहाँ पर रावण की पूजा होती है. बिसरख, उत्तर प्रदेश – इसे रावण का जन्मस्थान माना जाता है और यहाँ रावण के सम्मान में मंदिर है. गढ़चिरौली, महाराष्ट्र: यहाँ गोंड जनजाति के लोग रावण और मेघनाद को श्रद्धांजलि देते हैं. जोधपुर, राजस्थान – यहाँ रावण के वंशज पूजा-अर्चना करते हैं. चंद्र मोहन Read more » यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती
धर्म-अध्यात्म नारी श्रद्धा और प्रेम का अमर पर्व करवा चौथ October 9, 2025 / October 9, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment कहा जाता है कि इस व्रत के समान सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है और सुहागिनें यह व्रत 12-16 वर्ष तक हर साल निरन्तर करती हैं, उसके बाद वे चाहें तो इसका उद्यापन कर सकती हैं अन्यथा आजीवन भी यह व्रत कर सकती हैं। आजकल तो कुछ पुरूष भी पूरे दिन का उपवास रखकर पत्नी के इस कठिन तप में उनके सहभागी बनते हैं। Read more » Karva Chauth the immortal festival of women's faith and love करवा चौथ
धर्म-अध्यात्म शरद पूर्णिमा : चंद्र विज्ञान और आस्था का अद्भुत संगम October 6, 2025 / October 6, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ पर्व मनाया जाता है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में आसमान में चमकता है। इस वर्ष यह पावन तिथि 6 अक्तूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से आरंभ होकर 7 अक्तूबर की सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगी, इसलिए शरद पूर्णिमा 6 अक्तूबर की रात को मनाया जाएगा। Read more » चंद्र विज्ञान और आस्था शरद पूर्णिमा
धर्म-अध्यात्म शक्ति के उपासक बनें October 3, 2025 / October 3, 2025 by विनोद कुमार सर्वोदय | Leave a Comment भारत भूमि के महान सपूत महर्षि अरविन्द ने वर्षों पूर्व जब हम अंग्रेजों के अधीन थे, अपनी एक छोटी रचना 'भवानी मंदिर' की भूमिका में लिखा था कि "हमने शक्ति को छोड़ दिया है, इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया"। Read more » Become a worshiper of power शक्ति के उपासक बनें
धर्म-अध्यात्म जलते पुतले, बढ़ते रावण: दशहरे का बदलता अर्थ September 30, 2025 / September 30, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment रामायण की कथा में रावण केवल एक पात्र नहीं था, बल्कि वह उन बुराइयों का प्रतीक था जो इंसान को पतन की ओर ले जाती हैं—अहंकार, वासना, छल, क्रोध और अधर्म। रावण जैसा महाज्ञानी, शिवभक्त और शूरवीर भी अपनी एक गलती—वासना और अहंकार—के कारण विनाश को प्राप्त हुआ। दशहरा हमें यही याद दिलाने आता है कि यदि बुराई चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः उसका नाश निश्चित है। Read more » दशहरे का बदलता अर्थ
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म नवरात्रि का माहात्म्य September 24, 2025 / September 24, 2025 by विवेक रंजन श्रीवास्तव | Leave a Comment विवेक रंजन श्रीवास्तव नवरात्र भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जो केवल धार्मिक आचरण तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू को स्पर्श करता है। यह पर्व वर्ष में दो बार आता है चैत्र और आश्विन मास में और दोनों ही बार यह ऋतु परिवर्तन के संधि-काल में अपना विशेष महत्व लेकर आता है। नवरात्रि, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, नौ रात्रियों का उत्सव है। ये नौ रातें और नौ दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के लिए समर्पित होते हैं, जो शक्ति, ज्ञान, समृद्धि और शांति के प्रतीक हैं। नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना के साथ होती है, जहाँ एक मिट्टी के घड़े में जौ बोए जाते हैं। यह जीवन के अंकुरण, नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक है। अगले नौ दिनों तक, देवी के नौ रूपों की पूजा का एक विशेष क्रम होता है। प्रत्येक दिन देवी के एक अलग रूप की आराधना की जाती है, जो मानव जीवन के विभिन्न आयामों को दर्शाता है। शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक का यह सफर केवल पूजा अर्चना का ही नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और आंतरिक शुद्धि का भी मार्ग प्रशस्त करता है। इस पर्व का सबसे गहरा महत्व इसकी आध्यात्मिकता में निहित है। मान्यता है कि इन्हीं नौ दिनों में देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गया है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अंदर की काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार जैसे दसों प्रकार के राक्षसों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है, जो विजय का प्रतीक है। नवरात्रि केवल पूजा पाठ का ही पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक उल्लास का भी अवसर है। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गरबा और डांडिया का आयोजन इसका उदाहरण है। रातभर चलने वाले इन नृत्यों में समुदाय के सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर नृत्य करते हैं। यह सामाजिक सद्भाव और सामूहिक उल्लास का अनूठा दृश्य होता है। घरों में रंगोली बनाने, दीये जलाने और पारंपरिक वस्त्र पहनने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखती है। इस पर्व का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है। ऋतु परिवर्तन के इस समय में उपवास रखना और सात्विक आहार लेना शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। यह शरीर को शुद्ध करने, पाचन तंत्र को आराम देने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। इस प्रकार, नवरात्रि शरीर, मन और आत्मा तीनों के लिए शुद्धि का कार्य करती है। नवरात्रि का संदेश अत्यंत सारगर्भित है। यह हमें बाहरी आडंबरों से ऊपर उठकर आंतरिक शुद्धि की ओर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में सफलता और शांति के लिए आवश्यक है कि हम अपने अंदर की नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त करें और सकारात्मक ऊर्जा को अपनाएं। नवरात्रि आस्था, संस्कृति और विजय का अनूठा संगम है, जो हमें न केवल बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है, बल्कि समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी फैलाती है। यही कारण है कि सदियों से यह पर्व हमारी सांस्कृतिक चेतना का एक अभिन्न अंग बना हुआ है। विवेक रंजन श्रीवास्तव Read more » importance of navratri Navratri नवरात्रि का माहात्म्य