गजल ग़ज़ल-जावेद उस्मानी September 13, 2014 by जावेद उस्मानी | 1 Comment on ग़ज़ल-जावेद उस्मानी संस्कृति धरोहर की सारी पूंजी लूटाएंगे बनारस को अपने अब हम क्योटो बनाएंगे गंगा को बचाने भी को विदेशी को लाएंगे अपने देशवासियों को ये करिश्मा दिखाएंगे नीलामी में है गोशा गोशा वतन का जर्रा जर्रा बिकने को रखा है तैयार चमन का हुकूमत में आते ही मिजाज़ ऐसे बदल गए स्वदेशी के नारे वाले […] Read more »
गजल हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी August 25, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी फिरना है दर बदर और ,आवारा मुझे अभी . जिस्म में बाकी है जां रूह अभी जिंदा है लज्जते गम से होने दे आश्कारा मुझे अभी राख होने न पाए , आतिशाकुदह सारे सुलगाना है हर बुझता शरारा मुझे अभी चाहे लाख हो कोशिश ,मिटने दूंगा न उम्मीदे […] Read more » हयाते गुमशुदा ने फिर पुकारा मुझे अभी
गजल इंसा खुद से ही हारा निकला July 28, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नवीन विश्वकर्मा- किसके गम का ये मारा निकला ये सागर ज्यादा खारा निकला दिन रात भटकता फिरता है क्यों सूरज भी तो बन्जारा निकला सारे जग से कहा फकीरों ने सुख दुःख में भाईचारा निकला हथियारों ने भी कहा गरजकर इंसा खुद से ही हारा निकला चांद नगर बैठी बुढ़िया का तो साथी कोई न […] Read more » इंसा खुद से ही हारा निकला गजल जीवन गजल
गजल या खुदा कैसा ये वक्त है July 22, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- हर सिम्त चलते खंज़र, कैसा है खूनी मंज़र हर दिल पे ज़ख्मेकारी, हर आंख में समंदर दहशती कहकहे पर रक्स करती वसूलों की लाशें इस दश्तेखौफ़ में, अमन को कहां जा के तलाशें दम घुटता है इंसानियत का, वहशीपन जारी है या खुदा कैसा ये वक्त है लहू का नशा तारी है Read more » ग़ज़ल या खुदा कैसा ये वक्त है
गजल जब उनसे मोहब्बत थी June 27, 2014 by रंजीत रंजन सिंह | 2 Comments on जब उनसे मोहब्बत थी -रंजीत रंजन सिंह- चिट्ठियों का जमाना था जब उनसे मोहब्बद थी, मेरा दिल भी आशिकाना था जब उनसे मोहब्बद थी। रातें गुजर जाती थीं, उनकी चिट्ठियों को पढ़ने में, मैं भी लहू से खत लिखता था जब उनसे मोहब्बत थी। आंख के आंसू सूख गए उनके खतों को जलाने में, कभी समंदर जैसा गहरा था […] Read more » जब उनसे मोहब्बत थी मोहब्बत गजल हिन्दी गजल
गजल क्या करूं की तू मेरा हो जाये June 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नेहा राजोरा- क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, रोऊं तो मैं तब भी पर आंसू तुझे पाने की खुशी के हो, क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, झूठ तो मुझसे तब भी बोलेगा, फितरत मुझे पता है तेरी, पर वो झूठ […] Read more » क्या करूं की तू मेरा हो जाये गजल जीवन ग़ज़ल हिन्दी
गजल उनके इंतज़ार में… June 4, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- बेजुबां ये अश्क़ अपना हाल खुद ही बताते हैं। आज भी तुम पर ये अपना अधिकार जताते हैं।। याद में तेरी अश्क़ बहाना भी गुनाह अब हो गया। कैसे कहें कि दिल का चैन पता नहीं कहां खो गया।। चैन-सुकून की तलाश में सब कुछ छूट गया है। क्यों मुझसे अब मेरा वजूद […] Read more » उनके इंतज़ार में शायरी हिन्दी शायरी
गजल व्यंग्य अब तो आंखें खोल May 31, 2014 / May 31, 2014 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on अब तो आंखें खोल -पंडित सुरेश नीरव- अमल से सिद्ध हुए हैवान जमूरे अब तो आंखें खोल। न जाने किसकी है संतान जमूरे अब तो आंखें खोल।। मिला है ठलुओं को सम्मान जमूरे अब तो आंखें खोल। हुआ है प्रतिभा का अपमान जमूरे अब तो आंखें खोल।। पराई थाली में पकवान जमूरे अब तो आंखें खोल। हमारे हिस्से में […] Read more » अब तो आंखें खोल गजल व्यंग्य
गजल उल्फत-ए-ज़िन्दगी May 27, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- क्यों मेरी ज़िन्दगी पर मेरा इख़्तियार नहीं है क्या इस पर अब मेरा कोई भी अधिकार नहीं है। ज़िन्दगी के खेल में कैसे मैं इतनी पिछड़ गई कि अपने ही सपनों से अब मैं फिर बिछड़ गई। संवरने लगी थी ज़िन्दगी मेरे नादां अरमानों से क्यों मैं इन्हें संभाल नहीं पायी वक़्त के […] Read more » गज़ल जीवन पर गज़ल
गजल कब से भटकता है सफीना May 24, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- साहिलों की जुस्तजू में, कब से भटकता है सफीना जाता है क़रीबे भंवर, कि कहीं नाख़ुदा तो मिल जाए स्याही से खींचते हैं कुछ लोग, सेहर की उम्मीद को उनको भी काश कभी कोई मशाले हुदा तो मिल जाए ढूढ़ते रहते हैं खुद को हर जा, कहीं हम हैं भी कि नहीं हैं […] Read more » गज़ल गज़ल संग्रह हिन्दी गजल
गजल मुझे समझ नहीं आता May 21, 2014 / May 22, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -आजाद दीपक- तुझसे क्या बातें करूं मुझे समझ नहीं आता, इश्क करूं या सवाल! मुझे समझ नहीं आता; मेरी कहानी जब लिखेगा वो ऊपर वाला, मिलन लिखेगा या जुदाई, मुझे समझ नहीं आता; सभी आशिकों के दिल पर इक नाम लिखा होता है, मेरे दिल पर क्या लिखा है, मुझे समझ नहीं आता; परिंदा होता […] Read more » गजल जीवन पर गजल
गजल चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! March 30, 2014 / September 3, 2018 by भारत भूषण | 3 Comments on चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! तुही बता ये जिन्दगी, जाना तुझे किस ओर है !! हर तरफ़ से आवाजें, कोलाहल और शोर है ! कुछ समझ आता नहीं, मंजिल मेरी किस ओर है !! सब के सब बेकल यहाँ , सबके सपनों का जोड़ है ! किसके सपने […] Read more » gazal ग़जल भारत भूषण