गजल हिंदी ग़ज़ल July 5, 2019 / July 5, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अविनाश ब्यौहार उपदा का कमाना है। वाइज़ का जमाना है।। बुतों का यह शहर है, बाजों को चुगाना है। जंगल में बबूलों के, खिजाँ को ही आना है। सपनों का खंडहर है, भूतों को बसाना है। बस नाम के कपड़े हैं, फ़क़त अंग दिखाना है। बहार की जुस्तजू क्या, जब कहर ही ढाना है। सुबकती […] Read more » hindi hindi gazal
गजल देवी देवता सखा सहोदर July 2, 2019 / July 2, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment देवी देवता सखा सहोदर सबके सब बेकार हो गये ज्योंही मां उतरी आंखों में सपने सब साकार हो गये|| जैसे गये रसोई में तो मां की सूरत याद आई लोटा थाली डोंगे मग्गे सब मां के आकार हो गये|| जब जब भी तड़्फा हूं मां की किसी तरह सूरत देखूं सारी रात दिखाऊं मां को […] Read more » friend God godess siblings
गजल क्यों माई मुझे अब बुलाती नही है…. June 28, 2019 / June 28, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क्यों माई मुझे अब बुलाती नही है क्या तुझको मेरी याद आती नही है बड़ी बेरहम है शहर की ये दुनिया जो भटके तो रस्ता दिखाती नही है हैं ऊँची दीवारें और छोटे से कमरे चिड़िया भी आकर जगाती नही है कई रोज से पीला सूरज ना देखा चाँदनी भी अब मुझको भाती नही है […] Read more » gazal
गजल हिंदी गजल June 27, 2019 / June 27, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment बिगड़ी हुई आदतें पलती गईं, अहबाब को सुधारने का शुक्रिया। कोना कोना करकट बिखरा हुआ, अँगनाई को झाड़ने का शुक्रिया। नियाइश की आज तो उम्मीद थी, फिर बेवजह धुंगारने का शुक्रिया। बड़े ही अरमान से पाला उन्हें, अब बैल सा हुंकारने का शुक्रिया। अविनाश ब्यौहार, रायल एस्टेट, कटंगी रोड जबलपुर। Read more » hindi hindi gazal
गजल दुपट्टा अब तो आउट ऑफ़ फैशन हो गया | June 25, 2019 / June 25, 2019 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on दुपट्टा अब तो आउट ऑफ़ फैशन हो गया | दुपट्टा अब तो आउट ऑफ़ फैशंन हो गया |अब तो बेचारा ये फटकर बेकार हो गया || समझते थे कभी इसे शर्म-हया की निशानी |अब तो बेशर्मी का ये रूप साकार हो गया || लहराते थे कभी दुपट्टे को इश्क को दर्शाने में |कैसे दिखाई दे ये अब तो अन्धकार हो गया || आ जाती […] Read more »
गजल मुक्तिका/हिंदी गजल May 25, 2019 / May 25, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment हर बशर बदगुमान नजर आता है।भटका हुआ जवान नजर आता है।।प्यून है घूस से अर्श पर पहुंचा,देखिए साहिबान नजर आता है।जीभ फेरिए जरा सूखे होंठ पर,रचा रचाया पान नजर आता है।लग रही है मेनका सुंदरता में,कलेवर तो कमान नजर आता है।लतीफे की किताबें पढ़कर लगा कि,इस तरह संविधान नजर आता है। अविनाश ब्यौहार रायल एस्टेट […] Read more » genere of hindi hindi hindi gajal literature
गजल हिंदी गजल/मुक्तिका May 24, 2019 / May 24, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment गले मिल के गला काट रहें हैं। रहनुमा देश को बाँट रहे हैं।। अवसादी घेरे हैं आस पास, चौंसठ घड़ी पहर आठ रहे हैं। आधुनिक युग का देखा हर बशर, बनते सदैव वे काठ रहे हैं। हैं दलों के बीच खाइयाँ बहुत, खाइयों को हमीं पाट रहे हैं। उनका इरादा कभी न नेक था, इज़्तिराब […] Read more » gajal
गजल आँसुओं में जब कोई मुझको लखा ! March 5, 2019 / March 5, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आँसुओं में जब कोई मुझको लखा,दास्तानों का उदधि वरवश चखा;दीनता की मम हदों को वह तका,क्षुद्रता की शुष्कता को वह चखा ! अभीप्सा मन मेरे में जो भी रही,शिक्षा दीक्षा जो हृदय मेरे रही;जगत ने जो उपेक्षा मेरी करी,भक्ति की जो भाव धारा मन भरी ! लख सका था क्या पथिक जीवन तरी,स्वानुभूति के परे […] Read more »
गजल शीर्षक: आँखों में सँभालता हूँ पानी December 19, 2018 / December 19, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ आँखों में सँभालता हूँ पानी आया है प्यार शायद ख़ुशबू कैसी, झोंका हवा का घर में बार बार शायद रात सी ये ज़िंदगी और ख़्वाब हम यूँ बिसार गए बार बार नींद से जागे टूट गया है ए’तिबार शायद सिमटके सोते हैं अपने लिखे ख़तों की सेज बनाकर माज़ी की यादों से करते हैं ख़ुद को ख़बरदार शायद कुछ रोज़ की महफ़िल फिर ख़ुद से ही दूर हो गए लम्बी गईं तन्हाई की शामें दिल में है ग़ुबार शायद हमारा दिल है कि आईना देख के ख़ुश हुआ जाता है सोचता है वो आये तो ज़िंदगी में आये बहार शायद उठाए फिरते हैं दुआओं का बोझ और कुछ भी नहीं वक़्त में अब अटक गए हैं हौसले के आसार शायद सारी उम्र इन्तिज़ार करें तो कैसे बस इक आहट की अरमाँ तोड़ने का ‘राहत’ करता है कोई व्यापार शायद Read more »
गजल मचलती तमन्नाओं ने December 14, 2018 / December 14, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ मचलती तमन्नाओं ने आज़माया भी होगा बदलती रुत में ये अक्स शरमाया भी होगा पलट के मिलेंगे अब भी रूठ जाने के बाद लड़ते रहे पर प्यार कहीं छुपाया भी होगा अंजाम-ए-वफ़ा हसीं हो यही दुआ माँगी थी इन जज़्बातों ने एहसास जगाया भी होगा सोचना बेकार जाता रहा बेवजह के शोर में तुम […] Read more » मचलती तमन्नाओं ने
गजल यकीं का यूँ बारबां टूटना September 25, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ यकीं का यूँ बारबां टूटना आबो-हवा ख़राब है मरसिम निभाता रहूँगा यही मिरा जवाब है मुनाफ़िक़ों की भीड़ में कुछ नया न मिलेगा ग़ैरतमन्दों में नाम गिना जाए यही ख़्वाब है दफ़्तरों की खाक छानी बाज़ारों में लुटा पिटा रिवायतों में फँसा ज़िंदगी का यही हिसाब है हार कर जुदा, जीत कर भी कोई तड़पता रहा नुमाइशी हाथों से फूट गया झूँठ का हबाब है धड़कता है दिल सोच के हँस लेता हूँ कई बार तब्दील हो गया शहर मुर्दों में जीना अज़ाब है ये लहू, ये जख़्म, ये आह, फिर चीखो-मातम तू हुआ न मिरा पल भर इंसानियत सराब है फ़िकरों की सहूलियत में आदमियत तबाह हुई पता हुआ ‘राहत’ जहाँ का यही लुब्बे-लुबाब है Read more » यकीं का यूँ बारबां टूटना ये आह ये जख़्म ये लहू
गजल न रख इतना नाजुक दिल September 19, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ इश्क़ किया तो फिर न रख इतना नाज़ुक दिल माशूक़ से मिलना नहीं आसां ये राहे मुस्तक़िल तैयार मुसीबत को न कर सकूंगा दिल मुंतकिल क़ुर्बान इस ग़म को तिरि ख़्वाहिश मिरि मंज़िल मुक़द्दर यूँ सही महबूब तिरि उल्फ़त में बिस्मिल तसव्वुर में तिरा छूना हक़ीक़त में हुआ दाख़िल कोई हद नहीं बेसब्र दिल जो कभी था मुतहम्मिल गले जो लगे अब हिजाब कैसा हो रहा मैं ग़ाफ़िल तिरे आने से हैं अरमान जवाँ हसरतें हुई कामिल हो रहा बेहाल सँभालो मुझे मिरे हमदम फ़ाज़िल नाशाद न देखूं तुझे कभी तिरे होने से है महफ़िल कैसे जा सकोगे दूर रखता हूँ यादों को मुत्तसिल Read more » इश्क तसव्वुर न रख इतना नाज़ुक दिल