मुक्तिका/हिंदी गजल

हर बशर बदगुमान नजर आता है।भटका हुआ जवान नजर आता है।।
प्यून है घूस से अर्श पर पहुंचा,देखिए साहिबान नजर आता है।
जीभ फेरिए जरा सूखे होंठ पर,रचा रचाया पान नजर आता है।
लग रही है मेनका सुंदरता में,कलेवर तो कमान नजर आता है।
लतीफे की किताबें पढ़कर लगा कि,इस तरह संविधान नजर आता है।


अविनाश ब्यौहार

रायल एस्टेट कटंगी रोडजबलपुर

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