गजल मुझे समझ नहीं आता May 21, 2014 / May 22, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -आजाद दीपक- तुझसे क्या बातें करूं मुझे समझ नहीं आता, इश्क करूं या सवाल! मुझे समझ नहीं आता; मेरी कहानी जब लिखेगा वो ऊपर वाला, मिलन लिखेगा या जुदाई, मुझे समझ नहीं आता; सभी आशिकों के दिल पर इक नाम लिखा होता है, मेरे दिल पर क्या लिखा है, मुझे समझ नहीं आता; परिंदा होता […] Read more » गजल जीवन पर गजल
गजल चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! March 30, 2014 / September 3, 2018 by भारत भूषण | 3 Comments on चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! तुही बता ये जिन्दगी, जाना तुझे किस ओर है !! हर तरफ़ से आवाजें, कोलाहल और शोर है ! कुछ समझ आता नहीं, मंजिल मेरी किस ओर है !! सब के सब बेकल यहाँ , सबके सपनों का जोड़ है ! किसके सपने […] Read more » gazal ग़जल भारत भूषण
गजल जीवन मर्म February 11, 2014 / February 11, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment पाषाण हृदय बनकर कुछ भी नहीं पाओगे । वक्त के पीछे तुम बस रोओगे पछताओगे ।। ये आस तभी तक है जब तक सांसें हैं। सांस के जाने पर क्या कर पाओगे ।। इन मन की लहरों को मन में न दबाना तुम । ग़र मन में उठा तूफां कैसे बच पाओगे ।। भार नहीं […] Read more » ghazal जीवन मर्म
गजल मेरे क़ातिल कोई और नहीं मेरे साथी निकले February 6, 2014 / February 6, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on मेरे क़ातिल कोई और नहीं मेरे साथी निकले -बदरे आलम खां- मेरे क़ातिल कोई और नहीं मेरे साथी निकले मेरे जनाजे के साथ बनकर वो बाराती निकले रिश्तेदारों ने भी रिस्ता तोड़ दिया उस वक़्त जब दौलत कि तिजोरी से मेरे हाथ खली निकले मेरे किस्मत ने ऐसे मुकाम पर लाकर छोड़ दिया ग़ैर तो गैर मेरे अपने साये भी सवाली निकले […] Read more » ghazal मेरे क़ातिल कोई और नहीं मेरे साथी निकले
गजल अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता December 22, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता हर वक़्त एक सा तो मिज़ाज नहीं होता। हैरान होता है दरिया यह देख कर बहुत क्यूँ आसमां ज़मीं से नाराज़ नहीं होता। खिड़की खोल दी,उन की तरफ़ की मैंने अब परदे वालों का लिहाज़ नहीं होता। गुज़रा हुआ हादसा फिर से याद आ गया अब काँटा […] Read more » अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता
गजल तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती October 30, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती सत्येंद्र गुप्ता तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती वक़त के हाथ की शमशीर नहीं बदलती। मैं ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी तलाशता रहा ज़िन्दगी , अपनी ज़ागीर नहीं बदलती। कितने ही पागल हो गये ज़ुनूने इश्क़ में मुहब्बत अपनी तासीर नहीं बदलती। प्यार ,वफ़ा,चाहत ,दोस्ती व आशिक़ी इन किताबों की तक़रीर नहीं बदलती। अपनी खूबियाँ, मैं किस के साथ बाटूं अपनों के ज़िगर की […] Read more » तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती
गजल हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता September 5, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | 2 Comments on हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता उधार के सपनों से हिसाब नहीं होता। यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता। शुहरत मेरे लिए अब बेमानी हो गई ख़ुश पाकर अब मैं ख़िताब नहीं होता। रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं सुबह […] Read more » हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता
गजल सत्येंद्र गुप्ता की गजले August 26, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on सत्येंद्र गुप्ता की गजले संग बीमार नहीं हुआ जाता टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता ! हज़ार कयामतें लिपटती हैं क़दमों से मगर फिर भी लाचार नहीं हुआ जाता ! बेशुमार धब्बे हैं धूप के तो दामन पर हम से ही गुनाहगार नहीं हुआ जाता ! रहमतें तो बरसती हैं आसमां से बहुत रोज़ के रोज़ साहूकार नहीं […] Read more »
गजल तेरी आहट August 8, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन तेरी वक्रोक्ति को लबों की सजावट समझकर हम खिल खिलाते रहे मुस्कुराहट समझकर जब जब घण्टी बजी किसी भी द्वार की हम दौड कर आये तेरी आहट समझकर ना आना था , ना आये तुम कभी संतोष कर लिया तेरी छलावट समझकर […] Read more » तेरी आहट
गजल अपनी भाषा और अपनी आन को लड़ते रहे उनके हिस्से लाठियों की मार है इस देश में ? July 23, 2013 / July 23, 2013 by गिरीश पंकज | 1 Comment on अपनी भाषा और अपनी आन को लड़ते रहे उनके हिस्से लाठियों की मार है इस देश में ? राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्मान के लिये आन्दोलन करने वाले श्याम रूद्र पाठक के साथ पुलिस ने लगातार अभद्रता की पुलिसिया हरकत बताती हैकि इस देश में लोक तंत्र की असलियत क्या है. लोकतंत्र के पतन पर एक ग़ज़ल पेश है . कौन कहता है मेरी सरकार है इस देश में आम है जो आदमी […] Read more »
गजल उलझे हुए सवालात July 19, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन अजीब से हालात हैं , हम क्या करें ? उलझे हुए सवालात हैं , हम क्या करें ? एफ डी आर्इ विदेशी फंदा लग रहा , ये लोगों के ख्यालात हैं ,हम क्या करे ? धर्मों को उलझाकर कुछ न पा सके तो , तंत्र खुफिया को उलझात हैं,हम क्या करें? कुत्ता […] Read more » उलझे हुए सवालात
गजल साहित्य बतियाँ July 5, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment तुम्हारे मुंह पर तुम्हारी बतियाँ हमारे मुंह पर हमारी बतियाँ बहुत मीठी मीठी सी लगती हैं उन की ऐसी खुशामदी बतियाँ ! तुम्हारे मुंह पर हमारी बतियाँ हमारे मुंह पर तुम्हारी बतियाँ सीना तक छलनी कर जाती हैं उन की ऐसी हैं कटारी बतियाँ ! कभी हैं शोला कभी हैं शबनम मरहम नहीं हैं उन […] Read more » बतियाँ