कहानी साहित्य पागल June 10, 2017 by तेजू जांगिड़ | Leave a Comment गाँव में उन दिनों खूब आंधी चल रही थी जिससे वहां की बालू रेत भी खूब उड़ रही थी। सारा माहौल कुछ मटमैले रंग का प्रतीत हो रहा था। एक तो आंधी ऊपर से ये तेज धूप, कोई अपने घरों से दोपहर को बाहर तक नहीं निकलता था। कौन खामखां आंधी में परेशानी उठाए भला। […] Read more » पागल
कहानी कलयुग के देवता May 24, 2017 / May 24, 2017 by मालचन्द कन्नौजिया 'बेपनाह' | Leave a Comment कहने को आजाद हो गये हम पर मिली आजादी किस बात की जब बिना रिश्वतखोरी के आती नहीं है साँसभी। घर से निकलते होती है मुलाकात रिश्वतखोर दलालों से येहैं कलयुग के देवता पाला न पड़े गद्दारों से।। कैसे छुपायें, पचती नहीं गैस बनती है बात भी बिना रिशवतखोरी के आती नहीं है साँसभी।। करप्सन,करप्शन, […] Read more »
कहानी चश्मा May 13, 2017 by देवेश शास्त्री | Leave a Comment देवेश शास्त्री ………. उन्हें नीति-नेम, धर्म-कर्म से कोई मतलब नहीं था। उसकी स्वाभाविक वृत्ति राजनैतिक रूप से ऐन-केन प्रकारेण अपना उल्लू सीधा करने यानी कमाऊ जुगाड़ भिड़ाने की रही है। कई बार चुनाव भी लड़ा और हारते रहे, उनका नजरिया चुनाव जीतने की बजाय आलाकमान से मिलने वाले चुनावी खर्चे को हड़पने और क्षेत्रीय रसूख […] Read more » ‘‘चश्मा’’
कहानी वरदान March 22, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment दूसरे ही दिन आशा के पिताजी का फोन आया और फिर वे अपनी पत्नी के साथ हमारे घर आ गये। प्रारम्भिक बात के बाद उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति और विवाह का बजट साफ-साफ हमें बता दिया। उन्होंने कहा कि यदि इसके बाद भी आप हमारी बेटी लेंगे, तो यह उनके लिए बहुत खुशी की बात होगी। आपके घर की बहू बनना आशा के लिए सौभाग्य की बात है। हम तो सोचते थे कि वह नर्स है, तो अस्पताल के किसी कर्मचारी से ही उसका विवाह कर देंगे; पर वह इतने अच्छे और सम्पन्न परिवार में जाएगी, यह तो हमने कभी सोचा ही नहीं था। Read more » वरदान
कहानी साहित्य इतिहास से सीख (लघुकथा) March 16, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी महाभारत के कौरव तथा पाण्डवों के बीच हुए युद्ध तथा विवाद के बारे में एक पिता पुत्र के मध्य वार्तालाप हो रही थी। पिता बार बार श्रीकृष्ण की दूरदर्शिता की सराहना कर रहे थे और पुत्र बार बार तर्क देकर श्रीकृष्ण के नाटकीय चरित्र पर उंगली उठाकर आशंका व्यक्त कर रहा था। […] Read more » इतिहास से सीख
कहानी साहित्य आधुनिकता का गरुर March 8, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी पापा मुझे चोट लग गया खून आ रहा है। स्कूल के लिए निकलते एक बच्चे के मुख से ये शब्द निकला था। 5 साल के अपने बच्चे के मुँह से इतना सुनते ही लगभग 40 साल पूर्व साधारण सा दिखने वाले एक पापा सब कुछ छोड़ छाड़ कर बच्चे को गोदी में […] Read more » आधुनिकता
कहानी साहित्य खुंखार कुत्ता भीगी बिल्ली बना March 5, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी एक बादशाह अपने खुंखार कुत्ते के साथ नाव में बैठकर यात्रा कर रहा था। उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था। उस कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था। वह उछल-कूद कर रहा था और […] Read more » खुंखार कुत्ता भीगी बिल्ली
कहानी साहित्य अजनबीपन और मासूमियत March 5, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | 4 Comments on अजनबीपन और मासूमियत डा. राधे श्याम द्विवेदी एक पाँच साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर एक मंदिर में एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था । उसके कपड़े में मैले से लग रहे थे मगर वह साफ जैसा दिख रहा था। उसके नन्हें- नन्हें से गाल […] Read more » अजनबीपन मासूमियत
कहानी साहित्य टिया और मैं February 13, 2017 by गंगानन्द झा | Leave a Comment एक मशहूर पौराणिक कथा से बात शुरु होती है। नारद मुनि को हाथ में तेल से लबालब भरा कटोरा लिए राजर्षि जनक के बाग का पूरा चक्कर लगाने को कहा गया था। शर्त थी कि तेल की एक भी बूँद छलकने नहीं पाए। मुनिवर ने सफलतापूर्वक चक्कर लगाया। अब उनसे बाग का वर्णन देने को […] Read more » टिया और मैं
कहानी साहित्य प्यार की गरमी January 16, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment मोहन उनकी इरादे समझ गया। वह बोलना तो नहीं चाहता था, पर आज उससे रहा नहीं गया, ‘‘हां, ठीक कहते हो। तुम्हारे स्वेटर और कोट इतने गरम हो भी नहीं सकते। चूंकि उनमें पैसों की गरमी है और मेरे स्वेटर में दीदी के प्यार की गरमी। सब लड़कों का मुंह बंद हो गया। Read more » warmth of love प्यार की गरमी
कहानी साहित्य लघुकथा : बचपन की पूंजी January 12, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment घर में सब लोग साथ बैठकर खाना खा रहे थे। चार साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग सब वहां थे। मां सेब काट कर सबको दे रही थीं। जब उन्होंने चार साल के चुन्नू को भी एक फांक दी, तो वह मचलता हुआ बोला, ‘‘मैं दो सेब लूंगा।’’ मां ने चाकू […] Read more » बचपन की पूंजी
कहानी साहित्य डायल कुमार फॉर किलिंग December 26, 2016 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment “कुमार तुम्हारे कारण मेरी ज़िन्दगी खराब हुई और मैंने तुम्हें इस बात की सजा दी. एक महीने पहले उन तीनों ने मुझे जहर देकर मार डाला था और किरण ने ये इसलिए किया था ताकि वो मेरी दौलत के साथ तुमसे मिलकर जीवन जी सके. लेकिन जैसे कि कहते है कि बुरा करो तो वो वापस जरूर आता है. मेरी आत्मा भटकती रही और तुम्हारी राह देखती रही. किरण ने तुम्हें बुलाया और मैंने तुम्हारे बनाए हुए प्लान के अनुसार ही उन्हें डरा कर आत्महत्या करने पर मजबूर किया. वो हत्या भी थी और आत्महत्या भी और तुम्हें आज यहाँ तक पहुंचा दिया ! चलो जल्दी जाओ ! मैं तुम सबसे नफरत करता हूँ. तुम सब अब नरक में मिलना !” Read more » Featured डायल कुमार फॉर किलिंग