कविता भारतीय-संस्कृति December 12, 2019 / December 12, 2019 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment सतयुग , त्रेता , द्वापर में , विकसी इस युग में आई , गौरवान्वित हो पूर्वजों से, जग में सुकीर्ति भी पाई । पश्चिम से जो आँधी आई , पूरब में वो आकर छायी , बदला सब कुछ इस युग में, पश्चिम की संस्कृति भायी । निज भाषा, सुवेष और व्यंजन, संस्कृति आज भुला डाले […] Read more » भारतीय संस्कृति
कविता अच्छा नही।। December 9, 2019 / December 10, 2019 by अजय एहसास | Leave a Comment दीप बनकर जलो तो जलो ठीक है आग बनकर भड़कना तो अच्छा नहीं। ज्योति बनकर जलो ज्ञान की ठीक है अहं करके चहकना तो अच्छा नही। रास्ते में उजाला सभी के बनों कर अँधेरे थिरकना तो अच्छा नही। दूसरों का सहारा हमेशा बनों बेसहारा बनाना तो अच्छा नही। प्रेम से तुम बुराई को भी मात […] Read more »
कविता साहित्य सरकारी हुक्म November 29, 2019 / November 29, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment कान खोलकर सुन ले बिल्ली, तुरत छोड़ दे चूहे खाना। दिल्ली से गूगल पर आया, आज सबेरे ही परवाना। बड़े खाएंगे छोटों को तो, होगा बहन जुर्म यह भारी। ऐसा वैसा हुक्म नहीं यह, यह तो हुक्म हुआ सरकारी। पूँछतांछ में लगीं बिल्लियाँ, क्या ऐसा आदेश हुआ है। अगर हुआ है सच में ऐसा, ऐसा […] Read more »
कविता ताले में बैठा” की “होल November 28, 2019 / November 28, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बहुत आजकल गुस्सा रहता, ताले में बैठा “की” होल। चाबी डाली और घुमाया। ताला खोला और लगाया। खुलना लगना रोज मशक्कत, सबने हाथ जोर आजमाया। धकम पेल में कोई न समझा, कितने दुःख में है” की” होल. जब जब ताला खुला न भाई। सबने जहमत खूब उठाई। घर के भीतर जाएँ कैसे, सबको आई खूब […] Read more » ताले में बैठा" की "होल
कविता मानवता का आज अनूठा उदहारण देखा | November 23, 2019 / November 23, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मानवता का आज अनूठा उदहारण देखा | बीमार बे सहारा लोगो का अच्छा जीवन देखा || मानवता जिनको देख कर बिलख रही थी | आज गुरुकुल आश्रम में उनको हँसते देखा || कर्मयोगी रवि ने जो कभी था सपना देखा | उस सपने को हमने आज पूरा होता देखा || वह मानव ही नहीं,वरन है […] Read more » मानवता
कविता रोम रोम में हमारे ओम भर जाये November 19, 2019 / November 19, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment हे प्रभु ज्ञान दाता,ज्ञान हमको दीजिये | शीघ्र हमारे दुर्गणों,को दूर हमसे कीजये || लीजिये हमको शरण में,हम सदाचारी बने | ब्रह्मचारी धर्म रक्षक और वीर व्रतधारी बने || रोम रोम में ओम भर जाये हमारे | प्रभु, ऐसी शक्ति हमको दीजिये || छल कपट से कोसो दूर रहे हम प्रभु | बस अपनी भक्ति […] Read more » रोम रोम में हमारे ओम
कविता बेटी जब पैदा नहीं होगी,तब बहू कहाँ से लाओगे ? November 15, 2019 / November 15, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment बेटी जब पैदा नहीं होगी,तब बहू कहाँ से लाओगे ? बहु जब घर नहीं आयेगी,तब परिवार कैसे बढाओगे ? आज की बेटी कल बहू बनेगी, सारी सृष्टि इसी तरह चलेगी | बेटा और बेटी है दोनों जरुरी, वर्ना सृष्टि हो जायेगी अधूरी || भाई को बहन कहाँ से मिलेगी,जब बेटी की भ्रूण हत्या होगी | […] Read more » तब बहू कहाँ से लाओगे ? बेटी जब पैदा नहीं होगी
कविता किस्सा कुर्सी का November 8, 2019 / November 8, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment जब चुनाव सयुक्त रूप से लड़ा था,फिर सत्ता में सयुक्त क्यों नही रहते हो ?दोनों ही सी एम की कुर्सी के भूखे हो ,फिर जनता को क्यों बेवकूफ़ बनाते हो ? केवल किस्सा एक सी एम कुर्सी का है ,दोनों ने महाराष्ट में महासंग्राम मचाया है |अपनी आपनो ढपली लेकर तुमने,दोनों ने बेसुरा अलाप ही […] Read more » kissa kursi ka किस्सा कुर्सी का
कविता तुमने अभी हठधर्मिता देखी ही कहाँ है November 8, 2019 / November 8, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment तुमने अभी हठधर्मिता देखी ही कहाँ है अंतर्मन को शून्य करने का व्याकरण मुझे भी आता है अल्पविराम,अर्धविराम,पूर्णविराम की राजनीति मैं भी जानती हूँ यूँ भावनाशून्य आँकलन के सिक्के अब और नहीं चलेंगे स्त्रियों का बाजारवाद अब समझदार हो चुका है खुदरे बाजार से लेकर शेयर मार्किट तक में इनको अपनी कीमत पता है तुम्हारी […] Read more » हठधर्मिता
कविता रात रोता है मेरा,सवेरा रोता है मेरा November 5, 2019 / November 5, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment रात रोता है मेरा,सवेरा रोता है मेरा तेरे बगैर यूँ ही गुज़ारा होता है मेरा तुम थे तो ज़िंदगी कितनी आसाँ थी अब हर काम दो-बारा होता है मेरा किस- किस पल को हिदायत दूँ मैं हरेक पल ही आवारा होता है मेरा तुझे नहीं तेरा साया ही तो माँगा था फ़कीरी किन्हें गवारा होता […] Read more » रात रोता है मेरा सवेरा सवेरा रोता है मेरा
कविता हम राजा हैं November 5, 2019 / November 5, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment हम राजा हैं Read more » तुम घोड़ा बन जाओ भैया मैं बैठूंगी पीठ पर
कविता यह खेल खतरनाक है,खेल को समझिए जरा November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment यह खेल खतरनाक है,खेल को समझिए जरा कत्लों -गाह का ग़र तजुर्बा है तो उतरिए ज़रा बाकायदा खून की बू आपको पसंद आती हो तब ही इन सियासती गलियों से गुजरिए ज़रा कभी अपनों के लाश देखो और गौर से देखो फिर अपने किए झूठे वायदों से मुकरिए ज़रा ये चीख, ये चिल्लाहट ,ये झुंझलाहट, […] Read more » यह खेल खतरनाक है