कविता मेरे प्यार की कश्ती को तुम यूही पार लगा देना October 31, 2018 / October 31, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मेरे प्यार की कश्ती को ,तुम यूही पार लगा देना जब आये कोई तूफान,मेरे प्यार को यूही बचा लेना जिंदगी मे आते रहेगे, तूफान हर मोड पर मुझे कही छोड़ न देना किसी टेढ़े मोड पर मैने पकड़ा है हाथ तुम्हारा जिंदगी भर के लिए कही छुडा न देना मेरा हाथ किसी और के लिए […] Read more » मेरे प्यार की किस्ती को तुम यूही पार लगा देना
कविता इस रस्म की शुरुआत बस मेरे बाद कीजिए October 31, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment इस रस्म की शुरुआत बस मेरे बाद कीजिए जिनसे रौशन है हुश्न, उन्हीं को बर्बाद कीजिए गर पूरी होती हो यूँ ही आपके ख़्वाबों की ताबीरें तो खुद को बुलबुल और मुझे सैय्याद कीजिए ये कि क्या हुज़्ज़त है आपके नूर-ए-नज़र होने की दिल की बस्तियाँ लुट जाएँ,और फिर हमें याद कीजिए जो थे सितमगर,सबको […] Read more » इस रस्म की शुरुआत बस मेरे बाद कीजिए
कविता जन्म जन्म हु साथ निभाये,तुम ऐसे बंधन में बंध जाये October 30, 2018 / October 30, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment जन्म जन्म हम साथ निभाये,तुम ऐसे बंधन में बंध जाओ बन जाता हूँ दिल तुम्हारा,तुम दिल की धड़कन बन जाओ कभी लड़े भिड़े न जीवन में,ऐसा तुम दर्पण बन जाओ हंसी-ख़ुशी जीवन बिताये,तुम जीवन की आशा बन जाओ मै बन जाऊ साँस तुम्हारी,तुम जीवन की आस बन जाओ मै बन जाऊ चाहत तेरी,तुम मेरे दिल […] Read more » जन्म जन्म हु साथ निभाये तुम ऐसे बंधन में बंध जाये बिजली तुम्हारी
कविता अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है October 29, 2018 / October 29, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है जब दीवारों को चूने से पुतवाते थे चूने को बड़े ड्रमों में घुलवाते थे उसमे थोडा सा नील डलवाते थे सीडी पड़ोसी से मांग कर लाते थे अगर पुताई वाला नहीं आता तो खुद ही सीडी पर चढ़ जाते थे अब दिवाली के पुराने दिन या आते […] Read more » अब दिवाली के पुराने दिन याद आते है चूने पुतवाते फुलझड़ियाँ
कविता करवाचौथ पर पंजाबी टप्पे October 27, 2018 / October 27, 2018 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on करवाचौथ पर पंजाबी टप्पे दिन करवाचौथ दा आया है मांग भर ले तू सजनी तेरा साजन सिन्दूर लाया है दिन मेहंदी दा आया है हत्था नू तू रचा सजनी तेरा साजन मेहंदी लाया है दिन सुहागन दा आया है करले सोलह श्रंगार सजनी तेरा श्रंगार दा सामान आया है ये साल में एक बार आंदा है खुशियाँ मना तू […] Read more » करवांचौथ पर पंजाब टप्पे खुशियों चाँद
कविता करवाचौथ पर मेरे पति October 26, 2018 / October 26, 2018 by आर के रस्तोगी | 2 Comments on करवाचौथ पर मेरे पति भला है,बुरा है,मेरा पति मेरा सुहाग मेरा ख़िताब तो है भले ही पन्ने पुराने हो, वो मेरे दिल की किताब तो है क्यों निहारु दूर के चाँद को,जब मेरा चाँद मेरे पास है करता है मेरी पूरी तमन्ना,यही मेरे जीवन की आस है ये चंदा तो रोज घटता बढ़ता,कभी छुप जाता है आकाश में मेरा […] Read more » करवांचौथ पर मेरे पति
कविता आज का कवियों की विशेषता October 25, 2018 / October 25, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment कवि कविता कम,चुटकले ज्यादा सुनाते है वे हंसाते कम है,तालियाँ ज्यादा पिटवाते है कवि मुहँ लटका कर,मंच पर आकर बैठ जाते है चूकि आने से पहले घरवाली से पिट कर आते है कवि कल्पना के पास है पर कल्पना में खोये रहते है वे रात को जगते रहते है,पर दिन में सोये से रहते है […] Read more » आज का कवियों की विशेषता चुटकले मुहं लटकाये
कविता हम कोई कृति बनाते है October 22, 2018 by बीनू भटनागर | Leave a Comment हमने जीवन के धागों को, धड़ी की सुँईं से टाँका है। रोज़ वही दिनचर्या है रोज़ वही निवाले हैं। कभी शब्द बो देते है तो कविता उगने लगती है। कभी कभी शब्दों की खरपतवारों को, उखाज़ उखाड़ के फेंका है। शब्द खिलौने से लगते हैं, मन बहलाते है, कभी हँसी ठिठोली करते हैं, कभी आँख […] Read more » कृति
कविता रावण की गर्जना व सन्देश October 19, 2018 / October 19, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment अबकी बार रावण दशहरे पर आया राम पर गरजा और ऐसे चिल्लाया पहले अपने देश को ठीक कर आओ फिर मुझ पर आकर बाण चलाओ कुम्भकर्ण को यूही बदनाम करते हो छ:महीने सोने का आरोप लगाते हो तुम्हारे नेता तो पांच साल सोते है जब चुनाव होते तो जाग कर आते है अपने इन नेताओ […] Read more » कौशल्या रावण की गर्जना व सन्देश रावण दशहरे
कविता रावण के मन की बात October 18, 2018 / October 18, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment तुम मुझे यू ना जला पाओगे तुम मुझे यू ना भुला पाओगे तुम मुझे हर साल जलाओगे मार कर भी तुम न मार पाओगे जली लंका मेरी,जला मैं भी तुम भी एक दिन जला दिए जाओगे मैंने सीता हरी,हरि के लिये राक्षस कुल की बेहतरी के लिये मैंने प्रभु को रुलाया बन बन में तुम […] Read more » राक्षसों राम रावण के मन की बात सीता हरी हरि
कविता कर के वे प्रगति अग्रगति आत्म कब लिये ! October 18, 2018 / October 18, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on कर के वे प्रगति अग्रगति आत्म कब लिये ! कर के वे प्रगति अग्रगति, आत्म कब लिये; उर लोक की कला के दर्श, कहाँ हैं किये ! वे अग्रबुद्ध्या मन की झलक, पलक कब रचे; नेत्रों से मन्त्र छिड़के कहाँ, विश्वमय हुए ! है द्रष्ट कहाँ इष्ट भाव, भास्वरी भुवन; कण-कण की माधुरी का रास, भाया कब नयन ! कर के सकाश चिदाकाश, चूर्ण […] Read more » ‘मधु’ घृत पियें जिए भाया कब नयन रास
कविता खिलखिलाता रहे खड़गपुर… October 13, 2018 / October 13, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा ढाक भी वही सौगात भी वही पर वो बात कहां जो बचपन में थी ठेले भी वही , मेले भी वही मगर वो बात कहां जो बचपन में थी ऊंचे से और ऊंचे तो भव्य से और भव्य होते गए मां दुर्गा के पूजा पंडाल लेकिन परिक्रमा में वो बात कहां जो […] Read more » कपड़े खिलखिलाता रहे खड़गपुर.... माता भवानी