कविता कविता-जातिवाद का नरपिशाच September 11, 2014 / September 12, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment डॉ नन्द लाल भारती मै कोई पत्थर नहीं रखना चाहता इस धरती पर दोबारा लौटने की आस जगाने के लिए तुम्ही बताओ यार योग्यता और कर्म-पूजा के समर्पण पर खंजर चले बेदर्द आदमी दोयम दर्ज का हो गया जहां क्यों लौटना चाहूंगा वहाँ रिसते जख्म के दर्द का ,जहर पीने के लिए ज़िन्दगी के हर […] Read more » जातिवाद का नरपिशाच
कविता जलियांवाला बाग September 10, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार “राघव” सोलह सौ पचास गोलियां चली हमारे सीने पर , पैरों में बेड़ी डाल बंदिशें लगीं हमारे जीने पर | रक्त पात करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था , पत्नी के कंधे लाश पति की जड़ चेतन में मातम था | इंक़लाब का ऊँचा स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं , भारत […] Read more » जलियांवाला बाग
कविता अंधेरे रास्तों पर September 9, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment जीवन में क्यों कोई राह नजर नहीं आती है ? हर राह पर क्यों नई परेशानी चली आती है ? जब जब चाहा भूल जाऊं अपनी उलझनों को तब तब एक और नई उलझन मिल जाती है। खुलकर जीना और हंसना मैं भी चाहती हूं पर ज़िन्दगी हर बार ही बेवजह रुला जाती है। पूछना […] Read more » अंधेरे रास्तों पर
कविता मैं ‘लड़की’ हूं September 6, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment जकड़ी हूं बंधन में सदियों से अब मुझे मुक्ति चाहिए। बंधन खोल सके जो आज़ादी दे मुझे वो शक्ति अब चाहिए। उड़ना चाहती हूं स्वच्छंद गगन में ‘पर’ मुझे मेरे चाहिए। मैं लड़की हूं हां मैं लड़की हूं तो क्या हुआ जीना का हक़ मुझे भी चाहिए। अब न सहूंगी बंधन अब न उठाऊंगी रिवाजों की […] Read more » मैं 'लड़की' हूं
कविता सुबह या शाम ? September 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनु कंचन- अभी आँख खुली है मेरी, कुछ रंग दिखा आसमान पे, लाली है तो चारों ओर, पर पता नहीं दिन है किस मुकाम पे, दिशाओं से मैं वाक़िफ़ नहीं, ऐतबार करूँ तो कैसे मौसमों की पहचान पे, चहक तो रहे हैं पंछी, पर उनके लफ़्ज़ों का मतलब नहीं सिखाया, किसी ने पढ़ाई के नाम […] Read more » कविता सुबह या शाम ? हिन्दी कविता
कविता कक्षा अध्यापक September 5, 2014 / September 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on कक्षा अध्यापक भारतेंदु मिश्र- -शिक्षक दिवस की पूर्व सन्ध्या पर शिक्षक बन्धुओं के लिए एक गीत- मेरी कक्षा में पढ़ते हैं बच्चे पूरे साठ मेरे लिए सभी बच्चे हैं नई तरह के पाठ। कुछ पाठों में भावसाम्य है कुछ पाठों में कठिनाई है एक पाठ बिल्कुल सीधा है एक पाठ बिल्कुल उलझा है इनमें कुछ सीधे […] Read more » कक्षा अध्यापक शिक्षक दिवस
कविता मेरा मौन September 4, 2014 / September 4, 2014 by के.डी. चारण | 4 Comments on मेरा मौन के.डी. चारण मुझमें एक मौन मचलता है, भावों में आवारा घुलकर मस्त डोलता है, मुझमें एक मौन मचलता है। शिशुओं की करतल चालों में, आवारा यौवन सालों में, मदिरा के उन्मत प्यालों में, बुढ्ढे काका के गालों में, रोज बिलखता है। मुझमें एक मौन मचलता है। लैला मज़नू की गल्पें सुनकर, औरों की आँँखों […] Read more » मेरा मौन
कविता हर रात August 31, 2014 / August 31, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- वो हर रात मेरे साथ सोती है कभी तकिया बन कर तो कभी चादर बनकर वो मेरे बदन से ऐसी लिपटती मानो चंदन के पेड़ पर सांप वो कभी प्रेमिका बनती कभी माशूका कभी चकले की वो लड़की जिसके जिस्म को कईयों ने अपनी नज़र में तराशा उसकी शरारत सोने नहीं देती […] Read more » नींद नींद कविता हर रात
कविता मोबाइल से पानी August 30, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभूदयाल श्रीवास्तव- मोबाइल से पानी मोबाइल का बटन दबा तो, लगा बरसने पानी। धरती पर आकर पानी ने, मस्ती की मनमानी| चाल बढ़ी जब मोबाइल पर, लगा झराझर झरने। नदी ताल पोखर झरने सब, लगे लबालब भरने। और तेज फिर और तेज से, चाल बढ़ाई जैसे। आसमान से लगे बरसने, जैसे तड़-तड़ पैसे। किंतु […] Read more » मोबाइल मोबाइल कविता मोबाइल से पानी
कविता जीवन का मोड़ August 28, 2014 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment –राघवेन्द्र कुमार “राघव”- ये जीवन का कौन सा मोड़ है, जहाँ मार्ग में ही ठहराव है। दिखते कुछ हैं करते कुछ हैं लोग, यहाँ तो हर दिल में ही दुराव है । किस पर ऐतबार करें किसे अपना कहें, हर अपने पराए हृदय में जहरीला भाव है । अपना ही अपने से ईर्ष्या रखता है, […] Read more » जीवन का मोड़ हिन्दी कविता
कविता इतना तो आसान नहीं August 27, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on इतना तो आसान नहीं -दीपक शर्मा ‘आज़ाद’- पंछियों के जैसे पर फैलाना, इतना तो आसान नहीं; खुले आसमान में मंजिल पा जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 1 ) मुझे सबने अपनी उम्मीद का एक जरिया माना है , सबकी निगाहों से छिप जाना, इतना तो आसान नहीं ; ( 2 ) सच पाने की जिद में आशियाँ […] Read more » इतना तो आसान नहीं हिन्दी कविता
कविता मैं जलता हिंदुस्तान हूं… August 21, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 9 Comments on मैं जलता हिंदुस्तान हूं… –कुलदीप प्रजापति- मैं जलता हिंदुस्तान हूं, लड़ता, झगता, उबलता, अंगारों सा सुलगता हुआ , फिर भी देश महान हूं, मैं जलता हिंदुस्तान हूं| आतंकवाद बना दामाद मेरा, भ्र्ष्टाचार ने चुराया चीर मेरा, हो रहा जो हर धमाका, चीर देता दिल मेरा, कहते हैं जब सोने की चिड़ियां, आंख मेरी रोती हैं, क्योंकि मेरी कुछ संतानें इस युग मैं भूखी सोती हैं, कई समस्याओं से झुन्झता मैं निर्बल-बलवान हूँ , मैं जलता हिंदुस्तान हूं| नारी की जहां होती हैं पूजा , अब वहां वह दर रही , लूट ना ले कोई भेड़िया , इस डर वो ना निकल रही , प्यार के स्थान पैर बाँट रहे अब गोलियां, कहाँ गई मेरे दो बेटों की, प्यार भरी बोलियां, जाति आरक्षण से टूटता और खोता अपना सम्मान हूं, मैं जलता हिंदुस्तान हूं| हैं बदलती रंग टोपियां , भाषा नहीं बदल रही , राजनीति एक की चड़थी, अब दलदल में वो बदल रही, मर्द अब मुर्दा बना बस खड़ा सब देखता , जिसके हाथों में है लाठी, दस की सौ में बेचता , हर समय, हर जगह झेलता अपमान हूं, मैं जलता हिंदुस्तान हूं| Read more » भारत मैं जलता हिंदुस्तान हूं हिन्दुस्तान