कविता सामाजिक न्याय का अमृतफल March 8, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकएक सामाजिक न्याय वह भी थाजब स्वर्ण खड़ाऊ/रेशमी वस्त्र त्यागकरनिकल पड़ा था एक राजकुमारविवस्त्र गात्र, नग्न पांव बोधिवृक्ष की छांव मेंराजमहल से झोपड़ी के बीचतीन लोक की दूरी कोएक कर गया था वामन सा ढाई डग मेंबांट गया था सामाजिक न्याय का अमृतफलसबके बीच बिना किसी जाति भेद के! एक सामाजिक न्याय वह […] Read more » सामाजिक न्याय का अमृतफल
कविता चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ… March 8, 2021 / March 8, 2021 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment चलो एक नई उम्मीद बन जाऊँ!बसंत सा बन मैं भी खिल जाऊँ!! प्रकृति का नव रूप मैं हो जाऊँ!गुनगुनी धूप सा मैं खिल जाऊँ!! अमलताश सा मैं यूँ बिछ जाऊँ!अमराइयों में मैं खुद खो जाऊँ!! धानी परिधानों की चुनर बन जाऊँ!खेतों में पीली सरसों बन इठलाऊं!! मकरंद सा कलियों से लिपट जाऊँ!बसंत के स्वागत का […] Read more » एक नई उम्मीद
कविता शब्द खतरे में March 5, 2021 / March 5, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment सकार शब्दों का अस्तित्वआज खतरे में हैकिन्तु शब्द खतरे में है जैसी गुहारक्यों नहीं लगाते शब्द रचनाकार?‘सच्चरित्र’,’सत्यवादी’, ‘सत्यनिष्ठ’,‘सदाचारी’,’सद्व्यवहारी’, ‘संस्कारी’जैसे लुप्तप्राय होते शब्दों के लिएसरकार क्यों नहीं बनातीएक योजना प्रोजेक्ट टाइगर जैसी?मिथकीय-ऐतिहासिकचरित्र नायकों के बूते कबतकचलते रहेंगे ये शब्द;मनुष्यता के लबादेओढ़ने-पहनने-बिछाने केअभाव में कबतक ढो पाएगीइन शब्दों को डिक्सनरी?क्या शीघ्र नहीं हो जाएंगेये सकार सद शब्दसंग्रहालय […] Read more » शब्द खतरे में
कविता स्त्री और अस्तित्व March 5, 2021 / March 5, 2021 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल मुँह अँधेरे उठती है वहबुहारती है आँगन माजती है वर्तनबाबू को देती है दवाई औरमाँ की गाँछती है चोटीबच्चों का तैयार करती है स्कूल बैगऔर बांधती है टिफीनसुबह पति को बेड-टी से उठाती हैदरवाजे तक आ छोड़ती है आफिसफिर,रसोई के बचे भोजन से मिटाती है भूखपरिवार में सबकी पीड़ा का मरहम है वहखुद […] Read more » Woman and existence स्त्री और अस्तित्व
कविता कबीर की भाषा का अनुवाद नहीं March 5, 2021 / March 5, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायककबीर की नहीं है कोई प्रतिलिपिकबीर की भाषा का अनुवाद नहींकबीर को पढ़ना है तो सीखनी होगीकबीर की अक्खड़ भाषा की प्रकृतिजाननी होगी उसकी नागरी लिपि वर्तनी! कबीर की भाषा साधुकड़ी डिक्टेटर जैसीस्त्रैण नहीं, दैन्य नहीं, पलायन नहीं‘अर्जुनस्य प्रतिज्ञैद्वै न दैनयं न पलायनम्’कबीर की भाषा सीधे-सीधे प्रहार करतीकबीर की भाषा तीर सा दिल […] Read more » कबीर की भाषा का अनुवाद नहीं
कविता नारी को अबला न समझना March 3, 2021 / March 3, 2021 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment नारी को अबला न समझना तुमवह गगन मे वायुयान उड़ाती है।कल्पना बन कर यही नारी,अब अंतरिक्ष में पहुंच जाती हैं।। विद्वता मे वह अब कम नहीं,उच्च शिक्षा लेकर उच्च अंक पाती हैं।बड़े बड़े स्कूल व कॉलिजो में भीवह अब पुरुषों को भी पढ़ाती हैं।। युद्ध क्षेत्र में भी वह बढ़ चढ़ कर,वह रण कौशल अपने […] Read more » नारी को अबला न समझना
कविता रवीन्द्रनाथ टैगोर: क्षेत्रीय से वैश्विक कवि March 3, 2021 / March 3, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकगुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर बंगाल के,बंगाली अस्मिता, भाषा के रवि थे!गुलाम भारत के एक मात्र कवि थे,राष्ट्रीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय छवि के! वे सात मई अठारह सौ इकसठ को,शारदा व देवेन्द्रनाथ के, घर जन्मे!वे कुलीन जमींदार से कलाकार बने,बैरिस्टर बनने की तमन्ना छोड़ के! वे रविन्द्र संगीत के जनक,गीतकार,लेखक,नाटककार, कवि, कथाकार थे!उनकी कविता का स्वर […] Read more » Rabindranath Tagore: regional to global poet
कविता कुणाल तुम्हारी सुन्दर आंखें हो गई काल March 2, 2021 / March 2, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायककुणाल! तुम महारानी पद्मावतीव मगध सम्राट अशोक के लाल!तुम्हारी दो आंखें थी खंजन जैसीसुन्दर, हो गई थी तुम्हारा काल! कुणाल नयनाभिराम थे इतने किविमाता; तिष्य हो गई थी बेहाल!जैसे एक पूर्वजा उर्वशी अर्जुन कोदेखकर मोहित हुई थी पूर्व काल! कुणाल धर्मविवर्द्धन! तुम्हारी थीविमाता के प्रति मर्यादा बेमिसाल!विमाता तिष्यरक्षिता ने खेली थी,तुम्हें दंड देने […] Read more » कुणाल तुम्हारी सुन्दर आंखें हो गई काल चन्द्रगुप्त प्रपौत्र बिन्दुसार पौत्र अशोक सुपुत्र मैं युवराज कुणाल!
कविता कुछ अच्छा सा काम करो हे मन March 2, 2021 / March 2, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायककुछ अच्छा सा काम करो हे मन!जाने क्यों असमय छूट जाता तन! हमारे नहीं, हमारे परिजन के प्राण,जिनके बिना दुखद होता ये जीवन!जिनके निधन से लोग होते निर्धन!जिनके दम पे सफल था ये जन्म! जिन नाते-रिश्ते पर इतराते थे हम,जिनके होने से मिलता था दम-खम,जिनके ना होने से जगत मिथ्या-भ्रम,जिनके बाद ना न्यारा […] Read more » Do some good work कुछ अच्छा सा काम करो हे मन
कविता भारत की आंखें March 1, 2021 / March 1, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकभारत की आंखेंबड़ी ही खूबसूरत होती हैभारत की आंखों मेंईश्वर की मोहिनी मूरत होती हैभारत की आंखों नेदेखी दिखाई दुनिया कोराम कृष्ण बुद्ध महावीर बनकरभारत की आंखेंगुरु नानक,गोविंद,प्रताप,शिवाजी जैसीभारत की आंखें त्रिनेत्र होतीभारत की आंखेंभूत, भविष्य, वर्तमान एक साथ देखती हैभारत की आंखें राम जैसीराजीव नयन नयनाभिराम होती हैभारत की आंखें घनश्याम जैसीखेल-खेल […] Read more » Eyes of india
कविता मैं पागल हूं, रहने दो।। March 1, 2021 / March 1, 2021 by अजय एहसास | Leave a Comment कुछ कहता हूँ कहने दो , मैं पागल हूं, रहने दोआँसू देख तेरे आंखों में मेरे अश्क भी बहने दोवो कहती है मैं पागल , मैं पागल हूँ रहने दो। उसकी कद्र मैं करता हूं, पीर मैं उसके समझता हूँउसको अपना मानता हूँ, मन की बातें जानता हूँराज खुले तो मैं पागल, मैं पागल हूँ […] Read more » I'm crazy
कविता कोयल तुम बोलती हो अपनी बोली February 25, 2021 / February 25, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायककोयल तुम बोलती हो अपनी बोली,इसलिए तू आजाद हो नीलगगन में! कोयल तुम्हारी कूक अपने दिल की,इसलिए तुम बसी हो सबके मन में! कोयल तुम नहीं कूकती पराई वाणी,इसलिए तू कैद नहीं किसी बंधन में! कोयल तुम्हारी भाषा नहीं नकल की,इसलिए तू रहती हो अपने चमन में! कोयल तू तोते सा नहीं हो […] Read more » Cuckoo you speak your dialect कोयल तुम बोलती हो अपनी बोली