कविता वेद व्यास से कहना है February 15, 2021 / February 15, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकहे वेद व्यासदेव कृष्णद्वैपायन!आप वेदवेत्ता!अठारह पुराणों के ज्ञाता,महाभारत महाकाव्य के रचयिता! आपके परपितामह ब्रह्मर्षि वशिष्ठवैदिक श्रुति-सुक्त के मंत्रवेत्ता!पितामह शक्ति/पिता पराशरऔर स्वयं आप जन्मत: क्या थे? ‘गणिका-गर्भ संभूतो, वशिष्ठश्च महामुनि:।तपसा ब्राह्मण: जातो संस्कारस्तत्र कारणम्।।जातो व्यासस्तु कैवर्त्या: श्वपाक्यास्तु पराशर:।वहवोअन्येअपि विप्रत्यं प्राप्ताये पूर्वमद्विजा।।‘ आपने हीं तो महाभारत में कहा था-गणिका के गर्भ से उत्पन्न महामुनिवशिष्ठ तप […] Read more » Veda says to Vyas वेद व्यास से कहना है
कविता प्रिय की पाती February 11, 2021 / February 11, 2021 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment पाती जब आती है सुखद संदेशा लाती है !सांसो की बंद पड़ी धड़कन खिल जाती है ! ! छुई- मुई वनिता नचिकेता सी बन जाती है !जब सांसो के सरगम में घुलमिल जाती है ! ! संदेशा साजन का जब कोई भी लाता है !बेदर्दी दिल को कोई यूँ खुश कर जाता है ! ! […] Read more » प्रिय की पाती
कविता हम हिन्दी हैं देश हमारा हिन्दुस्तान February 11, 2021 / February 11, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकहम हिन्दी हैं,देश हमारा है हिन्दुस्तान! हम हिन्दी हैं,मिटी नहीं अपनी पहचान! देख फिजा में,गूंज रहा है एक ही नाम! प्यारा हिन्दुस्तान,हम कभी रहे नहीं गुमनाम! वायदा में पक्के,धोखाधड़ी नहीं हमारा काम! मानवता धर्म हमारा,हम देते हैं सबको सम्मान! नमस्कार, नमस्ते से,हम करते विश्व को प्रणाम! हमने दिया विश्व को,सत्य,अहिंसा धर्म का पैगाम! […] Read more » our country is our India We are Hindi हम हिन्दी हैं देश हमारा हिन्दुस्तान
कविता कोयल की तेरी बोली February 10, 2021 / February 10, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकआज देखा ठूंठ पर बैठावृद्ध कोयल को बेतहाशा रोतेअपने बच्चों की नादानी परबच्चे जो कौवे के कोटर में पलकर बड़े होतेजो होश संभालते ही घर छोड़ देते!कोयल जिसे घर नहीं होताजो हर शाख, जर्रा-जर्रा को घर समझता!जाने कैसे कोयल के बच्चेलड़ पड़े घर के लिए!समझाया भी था उसने‘कोयल की संतानों/ खुद को पहचानो’कुछ […] Read more » कोयल की तेरी बोली
कविता चाहे जितना जलाओ विचार जलता नहीं February 9, 2021 / February 9, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकचाहे जितना जलाओ विचार जलता नहीं,विचार मरता नहीं एकबार उग आने पर!युगों-युगों तक जीवित रहता रहेगा विचार! विचार एक सीधी रेखा है कागज पर,जो मिटता नहीं विचारक के मिट जाने पर! विचार एक अनाशवान हथियार है,जिसका होता नहीं कोई मारक प्रतिहथियार! एक विचार प्रतिस्थापित होता नेक विचार से,एक रेखा के समानांतर दूसरी बड़ी […] Read more » चाहे जितना जलाओ विचार जलता नहीं
कविता ऋतुराज बसन्त February 9, 2021 / February 9, 2021 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment Read more » ऋतुराज बसन्त
कविता भाषा नहीं किसी धर्म-मजहब की, ये पुकार है रब की February 8, 2021 / February 8, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकपाट दो मन की खंदक-खाई,भाषा की दीवार नहीं होतीहवा सी उड़कर जाती-आती, भाषा मन पर सवार होती! इसपार-उसपार उछल जाती, खुद ही विस्तार हो जाती,भाषा ध्वनि का झोंका है, पूरे संसार में फैलती जाती! बड़े-बड़े साम्राज्य ढह गये,उजड़ गये भाषा की मार से,बड़ी धारदार होती भाषा,किन्तु बिना तलवार की होती! भाषा सदा से […] Read more »
कविता अहिंसा की हिंसा February 7, 2021 / February 7, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकअहिंसक का हिंसा का शिकार हो जाना है,अहिंसा का हिंसा के प्रति अहिंसक हो जाना! हिंसा एक कुप्रथा है, अहिंसा धर्म से पोषित,ईसा अहिंसक थे इतना कि हिंसकों के लिएउनके दिल से आखिरी उद्गार निकला क्षमा! ईसापूर्व अशोक शोकग्रस्त तब हुए,जब हिंसा केविरुद्ध युद्ध विरत हो अहिंसक बौद्ध हो गए,हिंसकों का सबसे बड़ा […] Read more » अहिंसा की हिंसा
कविता एक धर्म निरपेक्ष कविता February 6, 2021 / February 6, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —–विनय कुमार विनायकमैं चाहता हूंएक ऐसी कविता लिखनाजिसमें परम्परा गान न होकिसी संस्कृति पुरुष का नाम न होजो पूरी तरह से हो सेकुलरऔर समकालीन भी! मैं चाहता हूंएक वैसी कविता लिखनाजिसमें चिंता हो आज केवृद्ध-उपेक्षित-सेवानिवृत्त माता-पिता कीजिसे पढ़ूंगा उस सेमिनार मेंकि कितना जरूरी/कितना त्याज्य हैआज के वरिष्ठ नागरिक! मैं लिखूंगा नहींमातृ देवो भव:/पितृ देवो भव: […] Read more » एक धर्म निरपेक्ष कविता
कविता अमृत और विष अपने हिय में होता है February 6, 2021 / February 6, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकअमृत और विष अपने हिय में होता है,अमृत के नाम से चहक उठता मानव,विष के नाम पर वह व्यर्थ ही रोता है!अमृत और विष अपने हिय में होता है! विकसित करो आत्म बल को, दूर करोसारे हतबल को,छल को,मन के मल को,डर कर मानव यूं ही क्यों कर सोता है!अमृत और विष अपने […] Read more » अमृत और विष अमृत और विष अपने हिय में होता है
कविता धर्माधिकारी February 5, 2021 / February 5, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —–विनय कुमार विनायकचाहे तुम बदल लो नाम जाति उपाधियहां तक कि धर्म भीपर तुम्हारी जाति उपाधि वंशावलीखोज ही लेंगे धर्माधिकारीतुम्हें अकुलीन/वर्णसंकर के बजायअपनी बराबरी का दर्जा देकरगले लगाएंगे नहीं धर्माधिकारी! कृष्ण बुद्ध महावीर शिवाजी तक कीजन्म कुंडली में वृषलत्व को ढूंढ लिया गया थाऔर वंचित किया गया था कृष्ण को अग्रपूजन सेऔर शिवाजी को तिलक […] Read more » धर्माधिकारी
कविता मजबूर February 4, 2021 / February 4, 2021 by आलोक कौशिक | 1 Comment on मजबूर कोई भी इंसानजब मजबूर होता हैखुद से वहबहुत दूर होता है जानकर भी राज़ सारेदिखता है अनजानबनकर रह जाता हैहालातों का ग़ुलाम ऐसा भी होता हैचाहता है जब सारा ज़मानाअपनों के लिएतब इंसान होता है बेगाना कोई भी इंसानजब हो जाता है लाचारसमझ से परेहोता है उसका व्यवहार Read more » मजबूर