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भारत में तेजगति से बढ़ती बिलिनायर (अतिधनाडयों) की संख्या

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भारत में आर्थिक प्रगति की दर लगातार तेज होती दिखाई दे रही है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर भी अन्य देशों की तुलना में द्रुत गति से आगे बढ़ रही है। भारत आज विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था आज विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था है तथा शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। भारत का वैश्विक व्यापार भी द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है। कुल मिलाकर, भारत आज अर्थ के क्षेत्र में पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप उभर रहा है।लगातार तेज तो रही आर्थिक प्रगति का प्रभाव अब भारत में नागरिकों की औसत आय में हो रही वृद्धि के रूप में भी दिखाई देने लगा है। हाल ही में अमेरिका में जारी की गई यूबीएस बिल्यनेर ऐम्बिशन रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिलिनायर (अतिधनाडयों) की संख्या 185 तक पहुंच गई है और भारत विश्व में बिलिनायर की संख्या की दृष्टि से तृतीय स्थान पर आ गया है। प्रथम स्थान पर अमेरिका है, जहां बिलिनायर की संख्या 835 हैं एवं द्वितीय स्थान पर चीन है जहां बिलिनायर की संख्या 427 है। इस वर्ष भारत और अमेरिका में जहां बिलिनायर की संख्या में वृद्धि हुई है वहीं चीन में बिलिनायर की संख्या में कमी आई है। अमेरिका में इस वर्ष बिलिनायर की सूची में 84 नए बिलिनायर जुड़े हैं एवं भारत में 32 नए बिलिनायर (21 प्रतिशत की वृद्धि के साथ) जुड़े हैं तो वहीं चीन में 93 बिलिनायर कम हुए हैं। पूरे विश्व में आज बिलिनायर की कुल संख्या 2682 तक पहुंच गई है जबकि वर्ष 2015 में पूरे विश्व में 1757 बिलिनायर थे। भारत में वर्ष 2015 की तुलना में बिलिनायर की संख्या में 123 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। बिलिनायर अर्थात वह नागरिक जिसकी सम्पत्ति 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है अर्थात भारतीय रुपए में लगभग 8,400 करोड़ रुपए की राशि से अधिक की सम्पत्ति।  पिछले एक वर्ष के दौरान भारत में उक्त वर्णित बिलिनायर की सम्पत्ति 42 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 9,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई हैं। जबकि अमेरिका में बिलिनायर की सम्पत्ति वर्ष 2023 में 4 लाख 60 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 5 लाख 80 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है। चीन में तो बिलिनायर की सम्पत्ति वर्ष 2023 में एक लाख 80 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2024 में एक लाख 40 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर की हो गई है। पूरे विश्व में बिलिनायर की सम्पत्ति बढ़कर 14 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गई है। उक्त प्रतिवेदन में यह सम्भावना भी व्यक्त की गई है कि आगे आने वाले 10 वर्षों में भारत में बिलिनायर की संख्या में और तेज गति से वृद्धि होगी। भारत में 108 से अधिक पारिवारिक व्यवसाय में संलग्न परिवार भी हैं जो अपने व्यवसाय को भारतीय पारिवारिक परम्परा के अनुसार आगे बढ़ा रहे हैं और भारत में बिलिनायर की संख्या में वृद्धि एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं।        भारतीय बिलिनायर की संख्या केवल भारत में ही नहीं बढ़ रही है बल्कि अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीय भी बिलिनायर की श्रेणी में शामिल हो रहे हैं एवं वे अपनी आय के कुछ हिस्से को भारत में भेजकर यहां निवेश कर रहे हैं और इस प्रकार अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिक भी भारत के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। विशेष रूप से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को द्रुत गति से बढ़ाने में भारतीय मूल के इन नागरिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहता आया है। इस समय भारतीय मूल के एक करोड़ 80 लाख से अधिक नागरिक विभिन्न देशों में कार्य कर रहे हैं एवं प्रतिवर्ष वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भारत में जमा के रूप से भेजते हैं। हाल ही में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि वर्ष 2024 में 12,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारी भरकम राशि अन्य देशों में रह रहे भारतीयों द्वारा भारत में भेजी गई है। भारत पिछले कई वर्षों से इस दृष्टि पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर कायम है। वर्ष 2021 में 10,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2022 में 11,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2023 में 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी गई थी। प्रतिवर्ष भारत में भेजी जाने वाली राशि की तुलना यदि अन्य देशों में भेजी जा रही राशि से करें तो ध्यान में आता है कि वर्ष 2024 में मेक्सिको में 6,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी, जिसे पूरे विश्व में इस दृष्टि से द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। मेक्सिको में भेजी गई राशि भारत में भेजी गई राशि की तुलना में लगभग आधी है। चीन को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है एवं चीन में 4,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई है, फ़िलिपीन में 4,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं पाकिस्तान में 3,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि अन्य देशों में रह रहे इन देशों के नागरिकों द्वारा भेजी गई है। भारत में भारतीय नागरिकों द्वारा अन्य देशों से भेजी जा रही राशि में उत्तरी अमेरिका, यूरोप, खाड़ी के देशों एवं एशिया के कुछ देशों यथा मलेशिया एवं सिंगापुर का प्रमुख योगदान है। जैसा कि विदित ही है कि प्रतिवर्ष भारत से लाखों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने की दृष्टि से विकसित देशों की ओर जाते हैं। उच्च एवं तकनीकी  शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भारतीय युवा इन देशों में ही रोजगार प्राप्त कर लेते हैं एवं अपनी बचत की राशि का बड़ा भाग भारत में भेज देते हैं। आज तक भारतीय मूल के इन नागरिकों द्वारा एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी गई है। भारत के लिए विदेशी मुद्रा भंडार के संग्रहण में यह राशि बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है। वर्ष 2024 में पूरे विश्व में 68,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि विभिन्न देशों के नागरिकों द्वारा अपने अपने देशों को भेजी गई है। यह राशि वर्ष 2023 में भेजी गई राशि से 5.8 प्रतिशत अधिक है। पूरे विश्व में विभिन्न देशों में निवास कर रहे नागरिकों द्वारा भेजी गई उक्त राशि में से 20 प्रतिशत से अधिक की राशि अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीयों द्वारा ही अकेले भारत में भेजी गई है। इस प्रकार, भारतीय मूल के नागरिकों की सम्पत्ति न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है।  प्रहलाद सबनानी

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लेख

नो डिटेंशन पॉलिसी के खात्मे से शिक्षा में होगा सुधार !

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सुनील कुमार महला हाल ही में केंद्र सरकार (शिक्षा मंत्रालय) ने ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है जिसके तहत अब कक्षा 5 और 8 की वार्षिक परीक्षा में असफल छात्रों को फेल किया जाएगा, यह वाकई एक स्वागत योग्य कदम है। वास्तव में, केंद्र सरकार के इस फैसले से बच्चों के अंदर सीखने की इच्छा और ललक बढ़ेगी। नियम में बदलाव का फायदा यह होगा कि अब उन बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा जो किसी कारणवश पढ़ाई में अच्छी परफोर्मेंस नहीं दे पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, इस दौरान छात्र की शिक्षा स्थिति को सुधारने के लिए शिक्षकों की ओर से विशेष कोशिश की जाएगी और मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा। शिक्षक न केवल छात्र विशेष के शैक्षणिक प्रदर्शन पर ध्यान देंगे, बल्कि उनके माता-पिता, अभिभावकों को भी समय समय पर उसके बारे मार्गदर्शन व सुझाव आदि देंगे।  इस पॉलिसी के खत्म होने के बाद पांचवीं और आठवीं कक्षा में जो छात्र फेल या असफल हो जाते हैं, उन्हें फेल/असफल ही घोषित किया जाएगा और उन्हें दो महीनों के भीतर एक बार पुनः परीक्षा में शामिल होने का अवसर प्रदान किया जाएगा और यदि वे इसमें भी फेल या असफल होते हैं तो उन्हें अगली कक्षा में प्रोन्नति नहीं दी जाएगी। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अभी तक आठवीं कक्षा तक फेल करने का प्रावधान नहीं था। यहां यह उल्लेखनीय है कि इससे पहले, प्रारंभिक शिक्षा के दौरान किसी भी छात्र को कक्षा विशेष में रोकने की परमिशन नहीं थी। हालांकि, अब 5वीं और 8वीं कक्षा में शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर रोकने की परमिशन दी गई है। बहरहाल, एक और अच्छी बात यह है कि इस पॉलिसी के तहत किसी भी छात्र को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। वर्ष 2010-11 से पहले पांचवीं और आठवीं कक्षा में बोर्ड की परीक्षाओं का प्रावधान किया गया था,जिसे वर्ष 2010-11 से बंद कर दिया गया था। विद्यार्थियों को अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता था। इससे स्कूली शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट आ गई थी। इतना ही नहीं, इसका प्रभाव 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं पर भी कमोबेश पड़ा और नतीजे खराब आ रहे थे। यहां तक कि राज्य सरकारें भी पहले से जारी व्यवस्था को लेकर असमंजस की स्थिति में थीं। नई व्यवस्था लागू होने के बाद राज्य चाहें तो परीक्षा करा सकते हैं।  पाठकों को बताता चलूं कि केंद्र सरकार ने कक्षा 5 व 8 के छात्रों को अनुत्तीर्ण न करने की नीति को खत्म करने के संबंध में शिक्षा के अधिकार कानून में बदलाव करके इसे वर्ष 2019 में ही अधिसूचित कर दिया था, लेकिन देश के बहुत से राज्य व केंद्र शासित प्रदेश इसे अपनाये हुए हैं। गौरतलब है कि जुलाई 2018 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर लोकसभा में शिक्षा का अधिनियम, 2009 के संशोधन पर अपनी बात रखते हुए यह कहा था कि ‘कई सरकारी स्कूल अब मिड डे मील स्कूल बन गए थे क्योंकि इनमें शिक्षा और सीखना ग़ायब है।’गौरतलब है कि उस समय केंद्र में नो डिटेंशन पॉलिसी थी, जिसे अब केंद्र सरकार ने पांचवीं और आठवीं कक्षा के लिए हटा दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि शिक्षा संविधान में आज समवर्ती सूची का विषय है।1976 से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था, लेकिन 1976 में किये गए 42 वें संविधान संशोधन द्वारा जिन पाँच विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाला गया, उनमें शिक्षा भी शामिल थी। गौरतलब है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य मिलकर काम करते हैं। अब केंद्र सरकार ने शिक्षा (पांचवीं/आठवीं कक्षा के बच्चों) के संदर्भ में यह निर्णय लिया है कि कमजोर छात्रों की मॉनीटरिंग हो और इनकी कमजोरी को चिह्नित कर अभिभावकों की मदद से इन छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाए ताकि शिक्षा के स्तर में सुधार किए जा सकें। यह पॉलिसी केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय व सैनिक स्कूलों सहित सरकार द्वारा संचालित तीन हजार से ज्यादा स्कूलों में लागू होगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि  शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर लंबे समय से सवाल उठाये जा रहे थे। अब नई पालिसी से शिक्षा में पहले से कहीं अधिक सुधार होगा। यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए, क्यों कि शिक्षा का किसी राष्ट्र का प्रमुख आधार स्तंभ होती है, विकास की असली रीढ़ होती है। आज भी हमारे देश की शिक्षा प्रणाली कमोबेश मैकोले शिक्षा प्रणाली पर आधारित है। अतः आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर हमेशा ठोस कार्य हों। शिक्षा पद्धति को जटिल नहीं अपितु सरल होना चाहिए अथवा उसमें ऐसा समावेश किया जाना चाहिए, जिससे छात्र सरलता से जटिलता की ओर आगे बढ़ें। नीरस और स्तरहीन शिक्षा का कोई औचित्य नहीं होता। आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा में परंपरागत पद्धतियों के स्थान पर आधुनिक पद्धतियों का समावेश किया जाए। आज के परिवेश में छात्र अधिक महत्वपूर्ण है। विद्यालयों में विभिन्न संसाधनों इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही शिक्षकों की कमी आदि पर भी आज ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा में पर्यावरण, प्रकृति व खेल को विशेष स्थान दिया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा से जुड़ें।  हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि आज शिक्षा का अधिकार जितना अहम है, उतना ही उसकी गुणवत्ता में कंट्रोल भी जरूरी और अति आवश्यक है। बिना गुणवत्ता वाली शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है। समाज को भी यह समझना होगा कि अनुत्तीर्ण छात्र को अनुत्तीर्ण करना ही उचित व सही है। अनुत्तीर्ण छात्र को उत्तीर्ण करने से शिक्षा में गुणवत्ता कहां से आएगी ? अनुत्तीर्ण छात्र की शिक्षा पर ध्यान दिया जा सकता है, उसे अभ्यास और मेहनत से नये आयामों की ओर ले जाया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज शिक्षा प्रणाली में निश्चित ही आमूलचूल परिवर्तन आए हैं, बहुत से सुधार किए गए हैं, लेकिन आज भी शिक्षा में और भी बहुत से सुधार किए जाने की आवश्यकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि शिक्षा को छात्रों को व्यावहारिक कौशल और ज्ञान से लैस करना चाहिए, ताकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें और दूसरों पर कम निर्भर हों। सच तो यह है एक व्यापक व अच्छी शिक्षा प्रणाली ही हमारे शरीर,मन और आत्मा को समृद्ध करती है और हमें देश के अच्छे नागरिक बनाती है और इससे व्यक्ति,देश, समाज और राष्ट्र उन्नयन और प्रगति की ओर अग्रसर होते हैं। सुनील कुमार महला

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