धर्म-अध्यात्म लेख भारत में वर्ष प्रतिपदा हिंदू कालगणना के वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मनाई जाती है April 8, 2024 / April 8, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई। समस्त पापों को नष्ट करने वाली महाशांति उसी दिन सूर्योदय के साथ आती है। वर्षप्रतिपदा का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए इसका वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है। सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पूजा ‘ॐ’ का सामूहिक उच्चारण, नए पुष्पों, फलों, मिष्ठानों से युग पूजा और सृष्टि की पूजा करनी चाहिए। सूर्य दर्शन, सुर्यध्र्य प्रणाम, जयजयकार, देव आराधना आदि करना चाहिए। परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, नृत्य से सामूहिक आनंदोत्सव मनाना चाहिए तथा परस्पर साथ मिल बैठकर समस्त आपसी भेदों को समाप्त करना चाहिए। चूंकि यह ब्रह्मा द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ तिथि है अत इसको प्रथम पद मिला है, इसलिए इसे प्रतिपदा कहते हैं। हमारा यह शास्त्रीय विधान पूर्णत: विज्ञान सम्मत है। जागरण के इस काल में हमें काल पुरुष जगा रहा है, ऐसी सनातन संस्कृति में मान्यता है। आइये, हम भी हिंदुत्व के उगते सूरज के सम्मान और अभ्यर्थना में उठ खड़े हों। वैदिक शुभकामना स्वस्ति न इन्द्रो वृद्श्र्वा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्श्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिरदधातु।। अर्थात, महान यशस्वी इंद्र एश्वर्य प्रदान करें, पूषा नामक सूर्य तेजस्विता प्रदान करें। ताक्षर्य नामक सूर्य रसायन तथा बुद्धि द्वारा रोग-शोक का निवारण करें तथा बृहस्पति नामक गृह सभी प्रकार के मंगल तथा कल्याण प्रदान करते हुए उत्तम सुख समृधि से ओतप्रोत करें। उक्त मन्त्र में खगोल स्थित क्रान्तिव्रत के समान चार भाग के परिधि पर समान दूरी वाले चार बिन्दुओं पर पड़ने वाले नक्षत्रों क्रमशः इंद्र, पूषा ताक्षर्य एवं बृहस्पति अर्थात चित्रा, रेवती, श्रवण व् पुष्य नक्षत्रों द्वारा क्रान्ति व्रत पर 180 अंश का कोण बनता है। यह वैदिक पुरुष द्वारा की गई जन कल्याण की कामना है। वर्ष प्रतिपदा हिंदू काल गणना पर आधारित है और इसके साथ अन्य कई वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हैं। इसी दिन वासंतिक नवरात्रि का भी प्रारम्भ होता है और वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिवसीय शक्ति पर्व प्रारम्भ होता है तथा सनातनी हिंदू इसी दिन से शक्ति की भक्ति में लीन हो जाते हैं। सतयुग के खंडकाल में भारतीय (हिन्दू) नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन प्रारंभ हुआ था क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना का प्रारंभ किया गया था। आगे चलकर त्रेतायुग में वर्षप्रतिपदा के दिन ही प्रभु श्रीराम का लंका विजय के बाद राज्याभिषेक हुआ था। भगवान श्रीराम ने वानरों का विशाल सशक्त संगठन बनाकर असुरी शक्तियों (आतंक) का विनाश किया था। इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय हुई और रामराज्य की स्थापना हुई थी। अगले खंडकाल अर्थात द्वापर युग में युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ भी वर्षप्रतिपदा के दिन हुआ था। महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर संवत प्रारम्भ हुआ। आगे कलयुग के खंडकाल में विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ। सम्राट विक्रमादित्य की नवरत्न सभा की चर्चा आज भी चहुंओर होती है। यह भारत के परम वैभवशाली इतिहास का एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस नवरत्न सभा में निम्नलिखित रत्न शामिल थे – (1) धन्वन्तरि-आर्युवेदाचार्य; (2) वररुचि-व्याकरणचार्य; (3) कालीदास-महाकवि; (4) वराहमिहिर-अंतरिक्षविज्ञानी; (5) शंकु-शिक्षा शाश्त्री; (6) अमरसिंह-साहित्यकार; (7) क्षणपक-न्यायविद दर्शनशास्त्री; (8) घटकर्पर-कवि; (9) वेतालभट्ट-नीतिकार। भारतीय सनातन संस्कृति पर आधारित कालगणना को विश्व की सबसे प्राचीन पद्धति माना जाता है। दरअसल भारत में कालचक्र प्रवर्तक भगवान शिव को काल की सबसे बड़ी इकाई के अधिष्ठाता होने के चलते ही उन्हें महाकाल कहा गया। वहीं कलयुग में विक्रमादित्य द्वारा नए संवत का प्रारम्भ परकीय विदेशी आक्रमणकारियों से भारत को मुक्त कराने के महाअभियान की सफलता का प्रतीक माना गया है। इधर स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा राष्ट्रीय पंचांग निश्चित करने के उद्देश्य से प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में एक ‘कलैंडर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया गया था। वर्ष 1952 में ‘साइंस एंड कल्चर’ पत्रिका में प्रकाशित एक प्रतिवेदन के अनुसार, लगभग पूरे विश्व में लागू ईसवी सन का मौलिक सम्बंध ईसाई पंथ से नहीं है और यह यूरोप के अर्धसभ्य कबीलों में ईसामसीह के बहुत पहले से ही चल रहा था। इसके अनुसार एक वर्ष में 10 महीने और 304 दिन ही होते थे। वर्ष के कैलेंडर में जनवरी एवं फरवरी माह तो बाद में जोड़े गए हैं। पुरानी रोमन सभ्यता को भी तब तक ज्ञात नहीं था कि सौर वर्ष और चंद्रमास की अवधि क्या थी। यही दस महीने का साल वे तब तक चलाते रहे जब तक उनके नेता सेनापति जूलियस सीजर ने इसमें संशोधन नहीं कर लिया। ईसा के 530 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद, ईसाई बिशप ने पर्याप्त कल्पनाएं कर 25 दिसम्बर को ईसा का जन्म दिवस घोषित किया। वर्ष 1572 में तेरहवें पोप ग्रेगोरी ने कैलेंडर को दस दिन आगे बढ़ाकर 5 अक्टोबर (शुक्रवार) को 15 अक्टोबर माना, जिसे ब्रिटेन द्वारा 200 वर्ष उपरांत अर्थात वर्ष 1775 में स्वीकार किया गया। साथ ही, यूरोप के कैलेंडर में 28, 29, 30, 31 दिनों के महीने होते हैं, जो विचित्र है क्योंकि यह न तो किसी खगोलीय गणना पर आधारित हैं और न ही किसी प्रकृति चक्र पर। उक्त वर्णित कारणों के चलते कैलेंडर रिफोर्म कमेटी ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफ़ारिश की थी। विक्रम संवत, ईसा संवत से 57 साल पुराना था। परंतु, दुर्भाग्य से भारत में अंग्रेज़ी मानसिकता से ग्रसित लोगों के यह सुझाव पसंद नहीं आया और देश में यूरोप के कैलेंडर को लागू कर दिया गया। हालांकि, विदेशी सिद्धांतो पर आधारित गणनाओं में कई विसंगतियाँ पाई गई हैं। चिल्ड्रन्स ब्रिटानिका के प्रथम खंड (1964) में कैलेंडर का इतिहास बताया गया है। इसमें यह बताया गया है कि अंग्रेजी कैलेंडरों में अनेक बार गड़बड़ हुई हैं एवं इसमें समय समय पर कई संशोधन करने पड़े हैं। इनमें माह की गणना चंद्र की गति से और वर्ष की गणना सूर्य की गति पर आधारित है। आज भी इसमें कोई आपसी तालमेल नहीं है। ईसाई मत में ईसा मसीह का जन्म इतिहास की निर्णायक घटना मानी गई है। अतः कालक्रम को BC (Before Christ) और AD (Anno Domini) अर्थात In the year of our Lord में बांटा गया। किंतु, यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद भी कुछ सदियों तक प्रचलन में नहीं आई थी। इसके साथ ही, आज के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है। यह ईसा के जन्म के 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना से प्रारम्भ हुआ। तब इसमें 10 माह थे (प्रथम माह मार्च से अंतिम माह दिसम्बर तक) वर्ष होता था 304 दिन का। बाद में राजा नूमा पिंपोलियस ने दो माह (जनवरी एवं फरवरी) जोड़ दिए। तब से वर्ष 12 माह अर्थात 355 दिन का हो गया। यह ग्रहों की गति से मेल नहीं खाता था, तब जूलियस सीजर ने इसे 365 और 1/4 दिन का करने का आदेश दे दिया। इसमें कुछ माह 30 दिन व कुछ माह 31 दिन के बनाए गए और फरवरी के लिए 28 दिन अथवा 29 दिन बनाए गए। इस प्रकार पश्चिमी कैलेंडर में गणनाएं प्रारम्भ से ही अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित विवादित एवं काल्पनिक रहीं। इसके विपरीत सनातन हिंदू संस्कृति पर आधारित काल गणना पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध पाई गईं हैं। इस दृष्टि से वर्षप्रतिपदा का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है और भारत में आज हिंदू सनातनियों द्वारा वर्षप्रतिपदा के दिन ही नए वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है एवं वर्ष भर की काल गणना भी हिंदू सनातन संस्कृति के आधार पर की जाती है, जिसे अति शुभ माना गया है। प्रहलाद सबनानी Read more » In India Varsha Pratipada is celebrated on the basis of scientific facts of Hindu calendar. प्रतिपदा हिंदू कालगणना
लेख भारतीय नववर्ष उत्सव का उमंग April 8, 2024 / April 8, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय भारतीय नववर्ष के साथ अनेक त्यौहार आते हैं। इनमें चैत्र शुक्लादि, नवरेह, गुड़ी पड़वा, उगादि, साजिबु नोंगमा पांबा अथवा साजिबु चेराओबा एवं चेटीचंड आदि सम्मिलित हैं। चैत्र शुक्लादि विक्रम संवत के नववर्ष के प्रारम्भ का प्रतीक है। इसे वैदिक अथवा हिन्दू कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से नवरात्रि का प्रारम्भ होता […] Read more » The excitement of Indian New Year celebration भारतीय नववर्ष उत्सव का उमंग
लेख न्यूनतम मजदूरी से भी वंचित प्रवासी आदिवासी मजदूर April 8, 2024 / April 8, 2024 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment अमूल पवारअहमदाबाद, गुजरात “मैं और मेरा परिवार पिछले 15 सालों से गन्ना कटाई का काम कर रहे हैं. लेकिन हमारी इतनी कम आमदनी है कि मेरे द्वारा लिया गया कर्ज भी हम मुकद्दम (ठेकेदार) को चुका नहीं पाते हैं. इसलिए फिर सालों साल इसी काम में फंसे रहते हैं, क्योंकि हमें उसे पेशगी का डेढ़ गुना अधिक ब्याज […] Read more » Migrant tribal laborers deprived of even minimum wages न्यूनतम मजदूरी से भी वंचित प्रवासी आदिवासी मजदूर
लेख सनातनी हिंदुओं कोआक्रांताओं से बचाने हेतु भगवान झूलेलाल अवतरित हुए April 8, 2024 / April 8, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment 9 अप्रेल वर्ष प्रतिपदा – जन्मदिन पर विशेष भारत के प्राचीन काल में सिंध प्रांत को भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता था क्योंकि सिंध प्रांत को पार करते हुए ही भारत में दिल्ली तथा अन्य राज्यों तक पहुंचा जा सकता था। सिंध का कराची बंदरगाह भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक था क्योंकि कराची बंदरगाह के माध्यम से भारत से कृषि पदार्थों आदि का निर्यात किया जाता था। सिंध के निवासी कई कई महीनों तक लगातार जलयान एवं नौकाओं के माध्यम से भ्रमण करते हुए अन्य देशों के साथ विदेशी व्यापार करते थे। सिंध प्रांत की बहिने अपने भाईयों, पिता एवं पति को बिदा करने समुद्र (दरयाह शाह) के किनारे आती थी और अपने सम्बंधियों के कुशलता पूर्वक विदेश से वापिस आने की जल देवता को प्रार्थना करती थीं। कुल मिलाकर सिंध प्रांत उस खंडकाल में अति विकसित अवस्था में गिना जाने वाला राज्य था। परंतु, 700 ईसवी आते आते शायद सिंध प्रांत को जैसे किसी की नजर लग गई और सिंध में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध प्रांत के राजा श्री दाहिर सेन को 712 ईसवी में विश्वासघात करके युद्ध में मार दिया। इस प्रकार, श्री दहिर सेन जी सिंध प्रांत के अंतिम हिंदू शासक सिद्ध हुए। 712 ईसवी के बाद अल हिलाज के खलीफा ने सिंध प्रांत को अपने राज्य में शामिल कर लिया और सिंध प्रांत पर खलीफा के प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाने लगा। इसके बाद तो सिंध के सनातनी हिंदूओं पर जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा क्योंकि इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा पूरे क्षेत्र में तलवार की नोंक पर हिंदुओं का धर्मांतरण कराया जाने लगा और इस्लाम को इस क्षेत्र में फैलाया जाने गया। उस खंडकाल में सिंध राज्य की राजधानी थट्टा नामक नगर थी। इस नगर की अपनी एक अलग पहचान और अपना एक अलग प्रभाव था। इस क्षेत्र का शासक मिरखशाह न केवल अत्याचारी और दुराचारी था बल्कि एक कट्टर इस्लामिक आक्रमणकारी राजा था। मिरखशाह ने इस क्षेत्र में इस्लाम को फैलाने के लिए अनेक आक्रमण किए एवं नरसंहार किया। मिरखशाह के सलाहकारों और मित्रों ने उसे सलाह दी कि इस क्षेत्र में जितना अधिक इस्लाम को फैलाओगे उतने अधिक समय के लिए आपको मौत के बाद जन्नत अथवा सर्वोच्च आनंद की प्राप्ति होगी। सलाहकारों की इस सलाह के बाद मिरखशाह ने हिंदुओं के “पंच प्रतिनिधियों” को अपने पास बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि आप सभी हिंदू लोग इस्लाम ग्रहण कर लो अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ। हिंदुओं के पंच प्रतिनिधियों ने मिरखशाह की इस सलाह पर विचार करने के लिए कुछ समय मांगा और मिरखशाह ने उन्हें 40 दिन का समय दे दिया। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जब मनुष्य के लिए सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो वह प्रभु परमात्मा की शरण में जाने लगता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ और अपने सामने मौत और धर्म पर संकट को देखते हुए सिंधी हिंदुओं ने जल के देवता वरुण देव की ओर रूख किया। चालीस दिनों तक हिंदुओं ने तपस्या की। इस बीच न तो उन्होंने अपने बाल कटवाए और ना ही कपड़े बदले और ना ही भोजन किया। इन 40 दिनों तक कठिन उपवास करते हुए केवल ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना कर प्रभु परमात्मा से रक्षा की उम्मीद लिए नदी के किनारे बैठे रहे। 40वें दिन स्वर्ग से एक आवाज आई, जिसमें कहा गया कि “आप लोग डरो मत, मैं तुम्हें आक्रांताओं की बुरी नजर से बचाऊंगा। मैं एक नश्वर के रूप में इस पृथ्वी पर आऊंगा और माता देवकी के गर्भ से इस धरा पर जन्म लूंगा। यह सुनकर सिंधी समाज के सनातनी हिंदुओं ने मिरख शाह से जाकर अपने ईश्वर के आने तक रुकने की प्रार्थना की। जिसके बाद मिरख शाह ने इसे अपने अहंकार के रूप में देखा और “भगवान” से भी लड़ने की चाह में उसने हिंदुओं को कुछ दिन का और समय दे दिया। तीन माह बाद आसू माह (आषाढ़) के दूसरे तिथि में माता देवकी ने गर्भ में शिशु होने की पुष्टि की। इसके बाद पूरे हिन्दू समाज ने जल देवता की प्रार्थना कर अभिवादन किया। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन आकाश से बेमौसम मूसलाधार बारिश हुई और माता देवकी ने एक चमत्कारी शिशु को जन्म दिया। भगवान झूलेलाल के जन्म लेते ही उनके मुख को जब खोला गया तो उसमें सिंदु नदी के बहने का दृश्य दिखाई दिया। पूरे हिंदू समुदाय द्वारा बच्चे के जन्म लेते ही गीतों और नृत्यों के साथ उसका स्वागत किया गया। झूलेलाल जी का नाम बचपन में उदयचंद रखा गया। उदयचंद को उडेरोलाल भी कहा जाने लगा। नसरपुर के लोगो प्यार से झूलेलाल को अमरलाल भी कहते थे। जिस पालने में झूलेलाल रहते थे वह अपने आप ही झूलने लगता था, जिसके बाद ही उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा और इसी नाम से वे लोकप्रिय हो गए। इधर काफी समय बीत जाने के बाद मिरखशाह के ऊपर मौलवियों द्वारा एक बार पुनः हिंदुओं को इस्लाम में लाने हेतु दबाव डाला जाने लगा तो मिरख शाह ने काफिरों (सनातनी हिंदुओं) को इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया। साथ ही, मौलवियों की बात और अपने इस्लामिक अहंकार में मिरखशाह ने उडेरोलाल से खुद मिलने का फैसला किया। मिरखशाह ने अहिरियो नामक व्यक्ति को उडेरोलाल से मिलने की व्यवस्था करने को कहा। अहिरियो, जो स्वयं इस बीच जलदेवता का भक्त बन चुका था, सिंधु नदी के तट पर गया और जल देवता से अपने बचाव में विनती करने लगा। पहिले, अहीरियो ने एक बूढ़े आदमी को सफेद दाढ़ी में देखा, जो एक मछली पर तैर रहा था। अहिरियो का सिर आराधना में झुका और उन्होंने समझा कि जल देवता उडेरोलाल ही है। फिर, कुछ पल में ही अहिरियो ने एक घोड़े पर उडेरोलाल को छलांग लगाते हुए देखा और और उडेरोलाल एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक झंडा लिए हुए निकल गए। अहिरियो, मिरखशाह को जब उडेरोलाल के सामने लाया तो भगवान झूलेलाल (उडेरोलाल) ने उन्हें ईश्वर का मतलब समझाया। लेकिन कट्टरपंथी मौलवियों की बातें और इस्लामिक कट्टरपंथ लिए बैठे मिरखशाह ने उन सभी बातों को अनदेखा कर अपने सैनिकों से भगवान झूलेलाल को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। जैसे ही, सैनिक आगे बढ़े वैसे ही पानी की बड़ी बड़ी लहरें आंगन को चीरती हुई आगे आ गई। आग ने पूरे महल को घेर लिया और सब कुछ जलना शुरू हो गया। वहां से भागने के सभी मार्ग बंद हो गए। उडेरोलाल (भगवान झूलेलाल) ने फिर कहा कि जब तुम्हारे और मेरे भगवान एक हैं तो फिर सनातनी हिंदुओं को तुम क्यों परेशान कर रहे हो? मिरखशाह यह सब देखकर घबरा गया और उसने भगवान झूलेलाल से विनती की कि मेरे भगवान, मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हो गया है अतः आप कृपया मुझे और मेरे दरबारियों को बचा लीजिए। इसके बाद वहां पानी की बौछार आई और आग बुझ गई। मिरखशाह ने सम्मानपूर्वक भगवान झूलेलाल को नमन किया और हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए सहमत हुआ। इसके बाद उडेरोलाल ने वहां उपस्थित सनातनी हिंदुओं से कहा कि वे उन्हें प्रकाश और पानी का अवतार समझें। उन्होंने एक मंदिर बनाने का आदेश देते हुए कहा कि इस मंदिर में हमेशा प्रकाश की लौ जलती रहनी चाहिए एवं पवित्र घूंट के लिए पानी उपलब्ध रहना चाहिए। यहीं उडेरोलाल ने अपने चचेरे भाई पगड़ को मंदिर का पहला ठाकुर (पुजारी) नियुक्त किया। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को सात सिंबॉलिक वस्तुएं भी प्रदान कीं। इस प्रकार भगवान झूलेलाल ने पगड़ को मंदिरों के निर्माण और पवित्र कार्य को जारी रखने का भी संदेश दिया। साथ ही, यह भी कहा कि विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ। यह सारी सृष्टि एक है और हम सब एक परिवार हैं और सब जगह खुशहाली हो। भगवान झूलेलाल ने अपने चमत्कारिक जन्म और जीवन से ना सिर्फ सिंधी हिंदुओं के जान की रक्षा की बल्कि हिन्दू धर्म को भी बचाये रखा। मिरखशाह जैसे ना जाने कितने इस्लामिक कट्टरपंथी आये और धर्मांतरण का खूनी खेल खेला लेकिन भगवान झूलेलाल की वजह से सिंध में एक दौर में यह नहीं हो पाया। भगवान झूलेलाल आज भी सिंधी समाज के एकजुटता, ताकत और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र हैं। सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसी प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। आज भी सिंधी समाज पूरे विश्व में भगवान झूलेलाल जयंती बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाता है। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र मास की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि झूलेलाल जी भगवान वरुणदेव के अवतार है। भगवान झूलेलाल की जयंती को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है, जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटी-चंड हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि जल से ही सभी सुखों और मंगलकामना की प्राप्ति होती है इसलिए इसका विशेष महत्व है। प्रहलाद सबनानी Read more » Lord Jhulelal appeared to save Sanatani Hindus from invaders.
लेख स्वास्थ्य-योग बढ़ती बीमारियों के बीच स्वास्थ्य-क्रांति की अपेक्षा April 7, 2024 / April 7, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व स्वास्थ्य दिवस- 7 अप्र्रैल, 2024-ललित गर्ग- हर वर्ष दुनिया के लोगों की उन्नत स्वास्थ्य की अपेक्षा के साथ 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाता है। दुनिया भर में लोगों को प्रभावित करने वाले एक विशिष्ट स्वास्थ्य मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाना इसका ध्येय है। यह सामूहिक कार्रवाई, शिक्षा […] Read more » विश्व स्वास्थ्य दिवस- 7 अप्र्रैल
लेख मध्यभारत की पत्रकारिता में मानक है इंदौर प्रेस क्लब April 7, 2024 / April 7, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment 9 अप्रैल स्थापना दिवस विशेष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ हिन्दी पत्रकारिता की राजधानी कहा जाने वाला इन्दौर अपनी हर क्षेत्र की यात्रा का साक्षी है। इस शहर में पत्रकारिता अपने पेशेवरपन से ज़्यादा अपनेपन से संचालित रही है। शहर की समस्याओं को सत्ता के केन्द्र से लेकर निकाय की मेज़ तक पहुँचाने का माद्दा रखने वाले पत्रकारों की तपस्थली के […] Read more » इंदौर प्रेस क्लब
पर्यावरण लेख वाराणसी: 2023 में वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने वाला इकलौता भारतीय शहर April 4, 2024 / April 4, 2024 by निशान्त | Leave a Comment एक उल्लेखनीय उपलब्धि में, भारत के अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषित सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद, मंदिरों की नगरी वाराणसी साल 2022-23 और 2023-24 दोनों के सर्दियों के महीनों के दौरान पीएम 2.5 स्तरों के लिए राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप रही। इस उपलब्धि के साथ वाराणसी प्रमुख भारतीय शहरों के बीच पर्यावरणीय प्रगति का एक चमकदार उदाहरण बनकर खड़ा हो गया है। […] Read more » 2023 में वायु गुणवत्ता वाराणसी
लेख स्वास्थ्य-योग नकली दवाओं से जीवन-रक्षा पर बढ़ते खतरे April 4, 2024 / April 4, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- दवाओं में मिलावट एवं नकली दवाओं का व्यापार ऐसा कुत्सित एवं अमानवीय कृत है जिससे मानव जीवन खतरे में हैं। विडम्बना है कि दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण का कोई नियम नहीं है और स्वयं कंपनियां ही अपनी दवाओं की गुणवत्ता का सत्यापन करती हैं। यह ठीक नहीं और ऐसे […] Read more » Increasing threats to life from fake medicines
लेख विधि-कानून आखिर वकीलों ने वकीलों के खिलाफ चिट्ठी क्यों लिखी? April 4, 2024 / April 4, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- न्यायिक बिरादरी में गलत को सही ठहराने के लिये एक-दूसरे के पैरों के नीचे से फट्टा खींचने की कोशिशें अक्सर होती रही है। भले ही इससे देश कमजोर हो, राष्ट्रीय मूल्यों पर आघात लगता हो। लोकतंत्र के चार स्तंभों में महत्वपूर्ण इस न्यायिक बिरादरी ने राजनीतिक अपराधियों, घोटालों और भ्रष्टाचार के दोषियों को […] Read more » why did the lawyers write letters against the lawyers?
लेख RE RTC: भारत के ऊर्जा संकट का स्थायी समाधान? March 28, 2024 / March 28, 2024 by निशान्त | Leave a Comment निशान्त विकसित दुनिया भले ही भारत पर जलवायु कार्यवाही को और प्रभावी बनाने की जुगत लगता रहे, लेकिन भारत सरकार की जलवायु परिवर्तन को लेकर संवेदनशीलता किसी से छिपी नहीं है. आज भारत जलवायु कार्यवाही के मामले में शीर्ष वैश्विक नेतृत्व भी बन के उभर रहा है. ऐसे में सरकार के रिन्यूबल एनेर्जी को तरजीह देने के […] Read more » RE RTC RE RTC: Permanent solution to India's energy crisis?
मनोरंजन लेख सिनेमा ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा March 28, 2024 / March 28, 2024 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Leave a Comment – लोकेंद्र सिंह (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।) स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन फिल्म बनाई है। सच कहूं तो यह फिल्म से कहीं अधिक है। सिनेमा का पर्दा जब रोशन होता है तो आपको इतिहास के उस हिस्से में ले जाता है, जिसको साजिश के तहत अंधकार में […] Read more » रणदीप हुड्डा स्वातंत्र्यवीर सावरकर
महत्वपूर्ण लेख लेख स्वदेशी के महत्व को बताता है छत्रपति का जीवन March 27, 2024 / March 27, 2024 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Leave a Comment छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर विशेष – लोकेन्द्र सिंह छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन मास (अमावस्यांत) कृष्ण पक्ष तृतीया / चैत्र (पूर्णिमांत) कृष्ण पक्ष तृतीया को संवत्सर 1551 में हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह दिनांक 19 फरवरी, 1630 होती है। चूँकि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन ‘स्व’ की स्थापना को समर्पित रहा, इसलिए सही अर्थों में उनकी जयंती भारतीय पंचाग के अनुसार […] Read more » छत्रपति का जीवन