कविता
सावन
/ by डॉ राजपाल शर्मा 'राज'
नील गगन घनश्यामाच्छादित,तेज तड़ित की दमक उठे।जो संग पवन के द्रुत गति वो,अगले बादल चमक उठे। मेघ उच्च जो श्यामवर्ण हैं,मंद चाल विचरण करते।जीत समर को निकले हों ज्यों,गहरे गर्जन स्वर भरते। ऐसी श्यामल पृष्ठभूमि में,हर एक दृश्य अति सुंदर।हरे-भरे तरु, ताल, सरोवरमानव-रचित ये श्वेत घर। अहा! जल की नन्हीं सी बूँदें,धरती पर इठलाई हैं।अल्हड़-सी […]
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