कविता सोफे का दर्द January 14, 2020 / January 20, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव मैं अपने सोफे पर बैठा मोबाईल में डूबा हुआ था और ढूंढ रहा था पसंद की रिंगटोन चिड़ियों की चहकने-फुदकने कोयल-बुलबुल की बोलियाॅ गिलहरियों सहित अनेक कर्णप्रिय आवाजें मुझे जंगल के खग-मृग का मधुर कलरव सा आनंद दे रही थी। अचानक मेरी तंद्रा टूटी जैसे लगा कि मेरा सोफा मुझसे कुछ बातें […] Read more » सोफे का दर्द
कविता मानव ही मानवता को शर्मसार करता है January 14, 2020 / January 14, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment मानव ही मानवता को शर्मसार करता है सांप डसने से क्या कभी इंकार करता है उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है जो ज़ुबां और आंखों से बलात्कार करता है तू ग़ैर है मत देख मेरी बर्बादी के सपने ऐसा काम सिर्फ़ मेरा रिश्तेदार करता है देखकर जो नज़रें चुराता था कल तलक […] Read more » Only man shames mankind मानवता को शर्मसार
कहानी हमशक्ल January 14, 2020 / January 14, 2020 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment हे ईश्वर किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। कटक के बाद जिस चेहरे को बामुश्किल से भूल पाया था, आज फिर से हूबहू मेरे सामने था। लेकिन मुझसे अंजान, क्यों कि सिर्फ चेहरा मिलता था? जिसने घाव को कुरेद दिया। मुझे उसकी बिसरी यादों की झलक दिखने लगी।वर्षों पहले लगे जख़्म भर गए थे। […] Read more » हमशक्ल
व्यंग्य मेरा वो मतलब नहीं था January 14, 2020 / January 15, 2020 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय” देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही देते हैं तो क्यों ना वास्तव में वो देश […] Read more » मेरा वो मतलब नहीं था
कविता कहाँ गये भवानीप्रसाद मिश्र के ऊँघते अनमने जंगल January 14, 2020 / January 14, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment भवानीप्रसाद मिश्र ने देखे थे सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुये मिले थे वे उॅघते अनमने जंगल। झाड़ ऊॅचे और नीचे जो खड़े थे अपनी आंखे मींचे जंगल का निराला जीवन मिश्रजी ने शब्दो में उलींचें। मिश्र की अमर कविता बनी सतपुड़ा के घने जंगल आज ढूंढे नहीं मिलते सतपुड़ा की गोद में […] Read more » ऊँघते अनमने जंगल
लेख साहित्य जब महावीर हनुमान ने सीता,लक्ष्मण,भरत के प्राणों की रक्षा की January 14, 2020 / January 14, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित्र मानस रामायण में महावीर हनुमान के अनेक स्वरूप के दर्शन होते हैं। जहॉ मारूति, आंजनेय,बजरंगवली, महावीर,हनुमान जैसे अनेक नामों से वे विख्यात हुये वही शिवजी के 11 वे रूद्र का अवतार होने से वे सबसे बलवान और बुद्धिमान भी है और उनके पराक्रम एवं चार्तुय से ही सुग्रीव, माता सीता, […] Read more » महावीर हनुमान
व्यंग्य हे भाय! तेरे से अच्छा मेरा वाद ? January 13, 2020 / January 13, 2020 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल ? आजकल अपन के मुलुक में वादियों का जमाना है। साहब! वादी तो वादी ही हैं। वह चाहे विचारवादी हों या अलगाववादी। काफी हाउस से लेकर शहर के टी-स्टालों और अखबार की सुर्खियों में बस एक ही चर्चा है। वह है वादियों […] Read more » अंबेडकरवादी कबंलवादी गांधीवादी गुंडावादि गोलीवादी डंडावादी नकाबवादी नेहरुवादी पटेलवादी बमवादी लाठीवादी सावरकरवादी सुभाषवादी हाकीवादी
लेख विविधा सार्थक पहल धुंध भी हटेगी और धूप भी खिलेगी January 13, 2020 / January 13, 2020 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग- इस दुनिया में हर व्यक्ति दुःखी है और दुखों से परेशान है, असफल होने के डर में जी रहा है। इस परेशानी से मुक्ति भी चाहता है लेकिन प्रयास अधिक दुःखी एवं असफल होने के ही करता है। हर व्यक्ति का ध्यान अपनी सफलताओं पर कम एवं असफलताओं पर अधिक टिका है। […] Read more » धूप भी खिलेगी
कविता सरस्वती वंदना January 13, 2020 / January 13, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment हम मानुष जड़मति तू मां हमारी भारती आशीष से अपने प्रज्ञा संतति का संवारती तिमिर अज्ञान का दूर करो मां वागीश्वरी आत्मा संगीत की निहित तुझमें रागेश्वरी वाणी तू ही तू ही चक्षु मां वीणा-पुस्तक-धारिणी तू ही चित्त बुद्धि तू ही कृपा करो जगतारिणी विराजो जिह्वा पे धात्री हे देवी श्वेतपद्मासना क्षमा करो अपराधों को […] Read more » सरस्वती वंदना
कविता साहित्य काश हर घर आँगन हो January 10, 2020 / January 10, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment कितना अच्छा था जब हम बच्चे थे तब घर के आँगन में इकट्ठा हो जाता था पूरा परिवार। कैलाश,शंकर, विनिया चन्दा आँगन में खूब मस्ती करते थे तब आँगन किसी खेल के मैदान से कमतर नहीं था जिसमें समा जाता था सारा मोहल्ला घर-द्वार। मकान से जुड़ा हुआ आँगन आँगन से बाहर तक घर का […] Read more »
कविता जीवन का अधूरापन January 10, 2020 / January 10, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment मुझे याद है प्रिय शादी के बाद तुम दूर-बहुत दूर थी मैं तुम्हारे वियोग में दो साल तक अकेला रहा हॅू। बड़ी शिद्दत के बाद तुम आयी थी तुम्हारे साथ रहते तब दिशायें मुझे काॅटती थी और तुम अपनी धुन में मुझसे विलग थी। तुम्हारा पास होना अक्सर मुझे बताता जैसे जमीन-आसमान गले मिलने को […] Read more »
टॉप स्टोरी लेख निर्भया के दोषियों को फांसी अपराधियों के लिए सुधर जाने का सबक January 9, 2020 / January 9, 2020 by दीपक कुमार त्यागी | Leave a Comment दीपक कुमार त्यागी देश में महिलाओं को उपभोग की वस्तु मानकर उनकी अस्मिता से खिलवाड़ करने वालों सुधर जाओं, अब ऐसे अपराधियों को देश में फांसी लगने की शुरुआत बहुत जल्द होने वाली है। 16 दिसंबर 2012 की स्याह रात को जब लोग चैन से अपने घरों में सो रहे थे, तब देश का दिल […] Read more » nirbhaya gang rape sentence to death to nirbhaya gang rapist निर्भया कांड निर्भया के दोषियों को फांसी