व्यंग्य येन केन प्रकारेण, नरेन्दर पराजितो भवेत॥ January 5, 2019 / January 5, 2019 by डॉ. मधुसूदन | Leave a Comment डॉ. मधुसूदन (१) सबेरे तनिक बाहर झाँक्यो, तो, क्या सुन रियो हूँ?जंगल से एक ध्वनि आ रही थीं। समझ नहीं पायो, कि काहेकी ध्वनि है? कुतूहलवश समीप जाकर देख्यो, तो क्या देखता हूँ? एक तालाब के किनारे बहुत सारा मेंढक इकठ्ठा होकर, डराँओ डराँओ के बदले हराओ, “हराओ-हराओ-हराओ” का घोष कर रहे हैं? (२) एक […] Read more » Narendra Modi opposition united to defeat Narendra Modi
व्यंग्य हम दिखा देंगे January 2, 2019 / January 2, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment दिलीप कुमार सिंह चुनाव नजदीक है तो हर कोई देखने-दिखाने की बात कर रहा है ।जनता नेताओं से कह रही है हम तुम्हें दिन में तारे दिखा देंगे और नेता जनता के चरण रज तलाश रहे हैं।मीडिया परेशान है कि सिद्धू ना बोल रहे हैं ना दिख रहे हैं गला खराब हुआ तो क्या तारीफ […] Read more »
कविता नववर्ष January 2, 2019 / January 2, 2019 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment बेशक आज हमारा कैलेंडर बदल गया लेकिन ऋतु नहीं बदली, न मौसम बदला,ना ही पृथ्वी का चक्र बदला,ना पेड़ों ने पत्ते बदले ,ना शाखों ने नए फूल ओढ़े,ना हवाओं का रुख़ बदला ,ना ही प्रकृति ने खुद को बदला,फिर हम क्यों खुद को बदलते जा रहे हैं?जो कहती है धरा,नही सुन पा रहे हैं?या फिर सुनना ही नहीं चाह रहे […] Read more »
कविता एक और कैलेंडर का बदल जाना …!! January 1, 2019 / January 1, 2019 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा————बचपन में सुना था हैप्पी है बर्थअरसे बाद जाना इसका अर्थफिर सुना हैप्पी न्यू ईयर हिंदी में बोले तो शुभ नववर्षउलझन ने मन को बहुत भरमायाएक खास दिन का उत्सव में बदल जाना देर तक अपनी समझ में न आयामथा खुद को सोचा खूबजीवन में कितनी छांव कितनी धूप क्या रोज की तरह […] Read more »
कविता रथ सुदर्शन बढ रहा है January 1, 2019 / January 1, 2019 by डॉ. मधुसूदन | 7 Comments on रथ सुदर्शन बढ रहा है डॉ. मधुसूदन देख पूरब में सबेरा। अब अंधेरा छँट रहा है। कल्याण*स्वर आलाप में, घण्ट घन घन बज रहा हैं || अर्थ: कल्याण = प्रभात का राग, (यहाँ सर्व जन कल्याण अर्थ में भी) *सब का साथ सबका विकास* का संदर्भ माने.आलाप = राग का सौम्य प्रारंभ (२) भ्रष्ट जर्जर जाल* ले कर| उड चलो […] Read more »
कविता अटल जी December 30, 2018 / December 30, 2018 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment सदा मनस्वी रहे अटल जी, सरल निष्कपट वर्चस्वी । दृढ़-संकल्प औ’ कर्मठता से,बने सदा वे परम यशस्वी।। * आजीवन ब्रह्मचर्य था साधा, देश के हित संलग्न था जीवन। मन में सेवा-भाव भरे थे, किया समर्पित तन, मन, धन ।। * हँसकर संघर्षों को झेला, कभी लेखनी रुकी नहीं । साहसपूर्वक प्रेरणा भी दी, कविताएँ ऐसी […] Read more » अटल जी
महत्वपूर्ण लेख लेख साहित्य वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है December 30, 2018 / December 30, 2018 by राकेश कुमार आर्य | 1 Comment on वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है राकेश कुमार आर्य ममता दी का प.बंगाल बहुत ही भयानक परिस्थितियों को प्रकट कर रहा है । अनेक ‘ प्रतिबंधों ‘ के बीच जीते हिंदू को लगता है हमने अपनी किसी ‘ करनी ‘ का फल भोगने के लिए अकेला छोड़ दिया है । सचमुच देश के हर देशभक्त के लिए सोचने और विचारने का […] Read more »
कविता जाग रहा था ख्यालो में सो रहा था तन December 30, 2018 / December 30, 2018 by जयसिंह नारेङा | Leave a Comment जाग रहा था ख्यालो में सो रहा था तन,गला रुन्द रहा था रो रहा था मन…… जब निकलेगी किरणे तो देखेंगे अपने सपनो को,पेट के लिए हमने मिट्टी में मिला दिया है तन मन को, जवान होती बेटी को देख पसीजता है मन,दहेज के लिए दिन भर काम में झुकता है बूढा तन…..!! माँ बैठी […] Read more »
कविता हिमपात – कैलिफ़ोर्निया में लेक टाहो पर December 27, 2018 / December 27, 2018 by शकुन्तला बहादुर | 2 Comments on हिमपात – कैलिफ़ोर्निया में लेक टाहो पर एक बालगीत Read more »
व्यंग्य सज्जन है गोट December 26, 2018 / December 26, 2018 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment इधर अमिताभ बच्चन अम्बानी की बेटी की शादी में बारातियों को खाना परोसते नजर आए तो केटरिंग सर्विस वालों की बांछे खिल उठीं।लाजपत नगर का एक बंदा कह रहा था कि हम अमिताभ को अपनी बुकिंग में सलाद के टेबल पर बैठाएंगे।कोई उनसे इत्र छिड़कने का तो कोई शादी में आइसक्रीम सर्व करने हेतु अनुबंधित करने […] Read more »
कविता सबसे लम्बी रात का सुपना December 26, 2018 / December 26, 2018 by अरुण तिवारी | Leave a Comment सबसे लम्बी रात का सुपना नया देह अनुपम बन उजाला कर गया। रम गया, रचता गया रमते-रमते रच गया वह कंडीलों को दूर ठिठकी दृष्टि थी जोे पता उसका लिख गया। सबसे लम्बी रात का सुपना नया.. रमता जोगी, बहता पानी रच गया कुछ पूर्णिमा सी कुछ हिमालय सा रचा औ हैं रची कुछ रजत […] Read more » सबसे लम्बी रात का सुपना
लेख साहित्य राष्ट्रवाद के महानायक मालवीय जी December 26, 2018 / December 26, 2018 by अरविंद जयतिलक | Leave a Comment पंडित मदनमोहन मालवीय जी का संपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक जीवन स्वदेश के खोए गौरव को स्थापित करने के लिए प्रयासरत रहा। जीवन-युद्ध में उतरने से पहले ही उन्होंने तय कर लिया था कि देश को आजाद कराना और सनातन संस्कृति की पुर्नस्थापना उनकी प्राथमिकता होगी। 1893 में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे इलाहाबाद उच्च […] Read more »