लेख विविधा समाज साहित्य बंद समाज की जटिलता September 9, 2015 / September 9, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले सप्ताह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व था। कई लोग इस दिन निर्जल उपवास रखते हैं और रात को बारह बजे श्रीकृष्ण जन्म के बाद ही प्रसाद ग्रहण करते हैं। विद्यालयों में छुट्टी रहती है। छोटे बच्चों को इस दिन बालकृष्ण और राधा के रूप में सजाया जाता है। कई जगह बच्चे झांकी भी बनाते […] Read more » Featured
राजनीति व्यंग्य मोर्चे पर मोर्चा …!! September 8, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन में मैने ऐसी कई फिल्में देखी है जिसकी शुरूआत से ही यह पता लगने लगता था कि अब आगे क्या होने वाला है। मसलन दो भाईयों का बिछुड़ना और मिलना, किसी पर पहले अत्याचार तो बाद में बदला , दो जोड़ों का प्रेम और विलेनों की फौज… लेकिन अंत […] Read more » Featured मोर्चा मोर्चे पर मोर्चा ...!!
कविता जिसकी है नमकीन जिन्दगी September 7, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जिसकी है नमकीन जिन्दगी **************************** जो दिखती रंगीन जिन्दगी वो सच में है दीन जिन्दगी बचपन, यौवन और बुढ़ापा होती सबकी तीन जिन्दगी यौवन मीठा बोल सके तो नहीं बुढ़ापा हीन जिन्दगी जीते जो उलझन से लड़ के उसकी है तल्लीन जिन्दगी वही छिड़कते नमक जले पर जिसकी है नमकीन जिन्दगी […] Read more » जिसकी है नमकीन जिन्दगी
कविता गन्दी बस्ती September 7, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी थी । खुशबुएं वहां की मदहोश कर रहीं थीं । पर एहसास होता था घोर बेचारगी का टूटती सांसे जैसे फ़साने बना रही थीं […] Read more » गन्दी बस्ती
कहानी कहानी- इंतजार September 5, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment हर पल हर दिन उसका ख्याल मेरे दिमाग में रहता है। एक दिन बात न हो तो ऐसा लगता है कि सालों बीत गए हैं। उसे देखे बिना तो लगता है कि जिंदगी का सारा टेंशन आज ही है। एक परेशान आत्मा की तरह कब से भटक रहा हूं। लेकिन वो है कि बाहर […] Read more » Featured कहानी- इंतजार
कविता जो रिश्तों पर भारी है September 4, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जो रिश्तों पर भारी है ************************** अपना मतलब अपनी खुशियाँ पाने की तैयारी है वजन बढ़ा मतलब का इतना जो रिश्तों पर भारी है मातु पिता संग इक आंगन में भाई बहन का प्यार मिला इक दूजे का सुख दुख अपना प्यारा सा संसार मिला मतलब के कारण ही यारों बना स्वजन व्यापारी है वजन […] Read more » Featured जो रिश्तों पर भारी है
शख्सियत साहित्य “उदास नस्लें” के दास्तानगो अब्दुल्ला हुसैन September 3, 2015 by जावेद अनीस | 1 Comment on “उदास नस्लें” के दास्तानगो अब्दुल्ला हुसैन जावेद अनीस उर्दू के शीर्ष उपन्यासकार अब्दुल्ला हुसैन का 7 जून 2015 का 84 वर्ष के उम्र में देहांत हो गया, वे लम्बे समय से कैंसर से पीड़ित थे और उनका लाहौर के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। करीब 53 साल पहले जब उनकी पहली उपन्यास “उदास नस्लें” प्रकाशित हुई तो […] Read more » “उदास नस्लें” Featured अब्दुल्ला हुसैन दास्तानगो अब्दुल्ला हुसैन
कविता अट्टहास सुन रहे हो काल का???? September 3, 2015 by राम सिंह यादव | Leave a Comment इस धरती को जीने योग्य कैसे बनाएँ? अट्टहास सुन रहे हो काल का???? अबूझ गति खंड की जो क्षण का वेग है।।।।।। अनसुलझे किस्सों में हिन्दू – मुसलमान हैं……….. असंख्य धर्म हैं अनंत मर्यादाएं हैं………. सब जीवंत हैं और सब मृत भी……… शिव के शाश्वत ब्रह्मांड में युगों से लिखी लहरियाँ […] Read more » Featured अट्टहास सुन रहे हो काल का????
कविता मौन का संगीत September 3, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment जो लिखे थे आँसुओं से, गा सके ना गीत। अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।। दग्ध जब होता हृदय तो लेखनी रोती। ऐसा लगता है कहीं तुम चैन से सोती। फिर भी कहता हूँ यही कि तू मेरा मनमीत। अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।। खोजता हूँ दर-ब-दर कि […] Read more » Featured poem by shyamal suman मौन का संगीत
कविता घर मेरा है नाम किसी का September 1, 2015 by श्यामल सुमन | Leave a Comment घर मेरा है नाम किसी का और निकलता काम किसी का मेरी मिहनत और पसीना होता है आराम किसी का कोई आकर जहर उगलता शहर हुआ बदनाम किसी का गद्दी पर दिखता है कोई कसता रोज लगाम किसी का लाखों मरते रोटी खातिर सड़ता है बादाम किसी का जीसस, अल्ला […] Read more » Featured घर मेरा है नाम किसी का
कहानी कहानी : दीदी मां August 31, 2015 / August 31, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on कहानी : दीदी मां जीवन में कई बार ऐसी जटिल समस्याएं सामने आकर खड़ी हो जाती हैं कि पूरे परिवार और खानदान की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है। बुजुर्गों ने ‘जर, जोरू और जमीन’ को झगड़े की जड़ कहा है। जोरू अर्थात पत्नी या महिला के कारण तो राज्यों और साम्राज्यों में बड़े भीषण युद्ध हुए हैं, जबकि […] Read more » Featured
विविधा व्यंग्य खास को यूं आम मत बन बनाओ …प्लीज…!! August 30, 2015 / August 30, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on खास को यूं आम मत बन बनाओ …प्लीज…!! बचपन में अपने हमउम्र बिगड़ैल रईसजादों को देख कर मुझे उनसे भारी ईष्या होती थी। क्योंकि मेरा ताल्लुक किसी प्रभावशाली नहीं बल्कि प्रभावहीन परिवार से था। मैं गहरी सांस लेते हुए सोचता रहता … काश मैं भी किसी बड़े बाप का बेटा होता , या एट लिस्ट किसी नामचीन मामा का भांजा अथवा किसी बड़े […] Read more » Featured