कविता तितली सी चंचलता June 19, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- तितली सी चंचलता तितली सा चंचल बन मन मेरा उड़ना चाहता है। नन्हीं सी तितली रानी देख तुम्हें मन मेरा हर्षाता है। उड़कर तेरी तरह मन मेरा फूलों पर मंडराना चाहता है। डाल-डाल पर बैठकर यौवन मेरा इठलाना चाहता है। रंग-बिरंगे पंख हों मेरे दिल यही मांगना चाहता है। कोमल सी काया चंचल […] Read more » कविता जीवन कविता तितली सी चंचलता हिन्दी कविता
कविता आज जब बादल छाएं June 18, 2014 / October 8, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment -प्रवीण गुगनानी- (१) कैसे होगा बादल कभी और नीचे और बरस जायेगा, फुहारों और छोटी बड़ी बूंदों के बीच, मैं याद करूंगा तुम्हें और तुम भी बरस जाना (२) कुछ बूंदों पर लिखी थी तुम्हारी यादें, जो अब बरस रही है, सहेज कर रखी इन बूंदों पर से नहीं धुली तुम्हारी स्मृतियां न ही नमी […] Read more » बादल बादल पर कविता हिन्दी कविता
कविता अब प्यारी लगती बेटी है June 18, 2014 / October 8, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- अपनी प्यारी बहनों को अब, भैया कभी सताना मत| तिरस्कार करके उनका हर, पल उपहास उड़ाना मत| एक जमाना था लड़की को, बोझ बताया जाता था| दुनियां में उसके आते ही, शोक जताया जाता था| हुई यदि लड़की घर में तो, मातम जैसा छा जाता| हर पास पड़ोसी घर आकर, अपना दर्द जता […] Read more » बेटी बेटी कविता बेटी पर कविता
कविता गांव से शहर June 17, 2014 / October 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदिया के तीरे पर्वत की छांव, घाटी के आँचल मे मेरा वो गांव। बस्ती वहां एक भोली भाली, उसमे घर एक ख़ाली ख़ाली। बचपन बीता नदी किनारे, पेड़ों की छांव में खेले खिलौने। कुछ पेड़ कटे कुछ नदियां सूखीं, विकास की गति वहां न पहुंची। छूट चला इस गांव से नाता, कोलाहल से […] Read more » गांव गांव कविता गांव से शहर शहर शहर कविता हिन्दी कविता
कविता रोटी मिली पसीने की June 14, 2014 / June 16, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- इक हिसाब है मेरी जिन्दगी सालों साल महीने की लेकिन वे दिन याद सभी जब रोटी मिली पसीने की लोग हजारों आसपास में कुछ अच्छे और बुरे अधिक इन लोगों में ही तलाश है नित नित नए नगीने की नेकी करने वाले अक्सर बैठे गुमशुम कोने में समाचार में तस्वीरों संग चर्चा आज […] Read more » कविता जीवन पर कविता हिन्दी कविता
कविता ईंधन का बवाल June 14, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- मुझको मिले मुसद्दीलाल, लगे सुनाने अपने हाल| बोले कल लखनऊ में था, अभी-अभी आया भोपाल| करते-करते बात तभी, आया उनमें तेज उबाल| इस उबाल की गरमी में , हमने तुरत गला ली दाल| हाय क्रोध की गरमी की, करते नहीं लोग पड़ताल| अगर पके इसमें भोजन, ईंधन का ना रहे बवाल| ————————————————————————– सबसे […] Read more » ईंधन का बवाल कविता सबसे अच्छा हिन्दी कविता
व्यंग्य पप्पू को अब भी समझ में नहीं आ रहा है… June 14, 2014 by वीरेंदर परिहार | 2 Comments on पप्पू को अब भी समझ में नहीं आ रहा है… -वीरेन्द्र सिंह परिहार- गत 12 जून को राहुल गांधी लोक सभा में तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों से यह पूछते देखे गये कि सोलहवीं लोकसभा में बीजेपी को इतनी भारी जीत क्यों मिली। उन्होंने यह भी जानना चाहा कि भाजपा के उभार की वजह क्या है? साम्प्रदायिक माहौल के बावजूद उत्तर प्रदेश से एक भी […] Read more » पप्पू भारतीय राजनीति राहुल गांधी
व्यंग्य दान वही जो दाता बनाए …! June 13, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- भारतीय संस्कृति में दान का चाहे जितना ही महत्व हो, लेकिन यह विडंबना ही है कि दान समर्थ की ही शोभा पाती है। मैं जिस जिले में रहता हूं, वहां एक शिक्षक महोदय एेसे थे, जिन्होंने अपने सेवा काल में एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली, औऱ रिटायर होने पर जीवनभर […] Read more » दान वही जो दाता बनाए बाबा रामदेव भारतीय संस्कृति व्यंग्य शिल्पा शेट्टी
कविता उदासी June 12, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- मन उदास हो तो, चारों दिशायें भी, उदास नज़र आती है। बाहर चिलचिलाती धूप है, पर काले बादल, बारिश के नहीं, उदासी के, छा जाते है, चकाचौंध रौशनी भी, अंधेरों को पार, नहीं कर पाती है। ऐसे में, मन की ऊर्जा को, जगाने का कोई उपाय करूं, या वक्त पर छोड़ दूं कि […] Read more » उदासी उदासी कविता कविता हिन्दी कविता
व्यंग्य टीवी का लड्डू June 10, 2014 / June 11, 2014 by बीनू भटनागर | 4 Comments on टीवी का लड्डू -बीनू भटनागर- एक पुरानी कहावत है कि ‘शादी का लड्डू जो खाये वो भी पछताये और जो न खाये वो भी पछताये।‘ ये कहावत टी.वी. के साथ भी सही साबित होती है, ‘टी. वी. जो देखे वो भी पछताये जो न देखे वो भी पछताये।‘ बहुत से बुद्धिजीवी किस्म के लोग कहते हैं,वो टी.वी. बिलकुल […] Read more » टीवी का लड्डू टीवी व्यंग्य व्यंग्य
व्यंग्य पार्क की महफिल में June 9, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- बचपन में रामलीला देखने का चाव किसे नहीं होता ? हमारे गांव में भी जब रामलीला होती थी, तो हम शाम को ही मंच के आगे अपनी बोरी बिछा आते थे। एक बड़े से कागज पर अपने बाबाजी का नाम लिखकर उसे बोरी पर रखकर एक ईंट से दबा देते थे। फिर क्या […] Read more » पार्क की महफिल में रामलीला
कविता जगत मिलन June 7, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- 1.जगत मिलन सख्त चेहरा था उसका पत्थर जैसा झांक कर देखा अंदर बच्चों सा दिल मोम सा पिघलने लगा संकल्प था उसके मन में सपना सबका पूरा करूँगा मिलन का वातावरण होगा हर होंठ पर स्मिति ला दूंगा शालीन बनकर साथ रहूँगा। 2.सार्थक कोशिश सागर तट पर अकेले बैठे दूर तक लहरों को […] Read more » अंतः मन जगत मिलन सार्थक कोशिश हिन्दी कविता