मनोरंजन व्यंग्य विश्वकप की हार से भी क्या शरमाना March 27, 2015 / March 27, 2015 by अमित शर्मा | Leave a Comment क्रिकेट के विश्व कप में मिली हार से सबको चिंता हुई. उन्हें भी जिन्हें कभी किसी बात की चिंता न हुई. कुछ लोगों को तो शरम भी आई. हमारे एक लेखक मित्र तो कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए. बोले, ‘जो लोग कल कोई न कोई बहाना मारकर ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर मैच […] Read more » cricket world cup dhoni india defeated in australia अमित शर्मा एक हार से भी क्या शरमाना क्रिकेट के विश्व कप में मिली हार क्रिकेट विश्व् कप में भारत की हार महेंद्र सिंह धोनी विश्वकप की हार से भी क्या शरमाना
व्यंग्य मौत पर भारी मैच …!! March 23, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment क्रिकेट का एक मैच यानी हजारों सहूलियत का कैच। बाजार के लिए यह खेल बिल्कुल गाय की तरह है। जो हमेशा देती ही देती है। नाम – दाम और पैसा बस इसी खेल में है। दूसरे खेलों के महारथी जीवन – भर सुख – सुविधाओं का रोना रोते हैं, जबकि यही सुख – सुविधाएं […] Read more » satire on cricket
आलोचना जरूर पढ़ें महत्वपूर्ण लेख मीडिया विधि-कानून विविधा व्यंग्य वाकई, मॉल के पास तक ही रहता है संविधान का राज March 17, 2015 / March 17, 2015 by बी.पी. गौतम | Leave a Comment फिल्में सिर्फ मनोरंजन भर का साधन नहीं हैं। आंदोलन का भी माध्यम हैं फिल्में। देश और समाज की दशा प्रदर्शित कर सामाजिक परिवर्तन में बड़ी सहायक रही हैं फिल्में। दलितों और महिलाओं के साथ पिछड़े वर्ग की सोच बदलने में फिल्मों की भूमिका अहम रही है। हाल-फिलहाल एनएच- 10 नाम की फिल्म चर्चा में है। […] Read more » comments against woman dangerous delhi eve teasing law Mall मॉल मॉल के पास तक ही रहता है संविधान का राज वाकई संविधान का राज
जरूर पढ़ें लेख व्यंग्य क्रिकेट में स्विंग तो राजनीति में स्टिंग March 16, 2015 / March 16, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा जीवन में पहली बार स्टिंग की चर्चा सुनी तो मुझे लगा कि यह देश में धर्म का रूप ले चुके क्रिकेट की कोई नई विद्या होगी। क्योंकि क्रिकेट की कमेंटरी के दौरान मैं अक्सर सुनता था कि फलां गेंदबाज गेंद को अच्छी तरह से स्विंग करा रहा है या पिच पर गेंद […] Read more » स्टिंग cricekt politics sting क्रिकेट में स्विंग क्रिकेट में स्विंग तो राजनीति में स्टिंग राजनीति में स्टिंग
व्यंग्य आर्ट आफ र्टार्चिंग March 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बाजारवाद के मौजूदा दौर में आए तो मानसिक अत्याचार अथवा उत्पीड़न यानी र्टार्चिंग या फिर थोड़े ठेठ अंदाज में कहें तो किसी का खून पीना… भी एक कला का रूप ले चुकी है। आम – अादमी के जीवन में इस कला में पारंगत कलाकार कदम – कदम पर खड़े नजर आते हैं। […] Read more » आर्ट आफ र्टार्चिंग
व्यंग्य मैया मोरी , मैं नहीं संसद जायौ! February 26, 2015 by अशोक गौतम | 2 Comments on मैया मोरी , मैं नहीं संसद जायौ! हांतो रसिको! आज आपको ससंद पुराण कीआगे की कथा सुनाता हूं। संसद पुराण अनंत है। इसकी कथाएं अनंत हैं। मेरी इतनी हिम्मत कहां जो इन सात दिनों में आपके सामने पूरे संसद पुराण की कथा बांच सकूं। उसे सुनने के लिए तो ……. पिछले चार दिनों से आपने ससंद पुराण की कथा जिस लगन से […] Read more » मैं नहीं संसद जायौ
व्यंग्य समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए February 25, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हे रेलवे के नीति – नियंताओं ! हमें मंजिल पर समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए …!! तारकेश कुमार ओझा चाचा , यह एलपी कितने बजे तक आएगी। पता नहीं बेटा, आने का राइट टेम तो 10 बजे का है, लेकिन आए तब ना…। शादी – ब्याह के मौसम में बसों की कमी के […] Read more » समय से पहुंचने वाली ट्रेनें ही दे दीजिए
व्यंग्य छुट्टी का हक तो बनता ही है.. February 25, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी बहुत दिन से घूमने नहीं आ रहे थे। न सुबह, न शाम। बाकी मित्र तो ज्यादा चिन्ता नहीं करते; पर मेरा मन उनके बिना नहीं लगता। बहुत दिन हो जाएं, तो बेचैनी होने लगती है। सो मैं उनके घर चला जाता हूं। मिलना का मिलना, और साथ में भाभी जी के हाथ के […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी February 21, 2015 / February 23, 2015 by विजय कुमार | 2 Comments on व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी मुझे फिल्म देखने का कभी शौक नहीं रहा। हां, अच्छे गीत सुनने से मन-मस्तिष्क को आराम जरूर मिलता है। बालगीत भी बहुत अच्छे लगते हैं। ऐसे कुछ गीत और कविताएं मैंने भी लिखी हैं। कई बड़े अभिनेताओं ने बालगीत गाये हैं, यद्यपि वे स्थापित गायक नहीं है। इनमें अशोक कुमार द्वारा फिल्म ‘आशीर्वाद’ में गाया […] Read more » वी.वी.आई.पी. खांसी
व्यंग्य न्याय बिकता है February 19, 2015 by अनुज अग्रवाल | 4 Comments on न्याय बिकता है चरित्र जज साहब, कपिल सिब्बल, गरीब किसान दीना और उसका वकील सुरेश … (किसान दीना के खेत पर प्रधान ने कब्जा कर लिया है | सुनवाई हो ही रही थी कि सिब्बल साहब का फ़ोन आ जाता है) कपिल सिब्बल :- “हेल्लो हजूर, .. माईबाप हैं का ? जज साहब :- कहिये क्या हुआ […] Read more » न्याय बिकता है
व्यंग्य प्रेम दिवस : श्याम सिंह की अधूरी कहानी February 14, 2015 / February 14, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment तब तक बाबा वैलेंटाइन का आविर्भाव भारत की धरा पर नहीं हुआ था। ये कहना मुश्किल है कि उस दौर में देश, प्रेम के प्रभाव से मुक्त्त रहा होगा। प्रेम पर ग्रन्थ और महाकाव्य आदि काल से यहाँ लिखे जा चुके थे। वैलेंटाइन बाबा के दादा-परदादा की औकात नहीं थी कि हिंदुस्तानी प्रेम की ए-बी-सी भी समझ पाते। सोलह कला सम्पन्न भगवान यहाँ […] Read more » प्रेम दिवस
व्यंग्य ” बीबी ” वाले भी “वैलेंटाइन ” ढूँढ रहे हैं February 14, 2015 / February 14, 2015 by आलोक कुमार | Leave a Comment आज सभ्यता,संस्कृति की दुहाई देनेवाले हमारे देश में संस्कृति मखौल का विषय बन गई है , सभ्यता धुंधली पड़ रही है और संस्कारों का “अंतिम-संस्कार” किया जा चुका है l पहनावे में,बोलचाल में,रहन-सहन में , पर्व-त्यौहार , राजनीतिक-सामाजिक जीवन में हर गलत चीज को मान्यता मिल रही है l आज की मौजूदा पीढ़ी के पास “कॉकटेल” है पूरब और पश्चिम का और अनुभवी लोगों […] Read more » वैलेंटाइन