Category: राजनीति

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सपा संघर्ष, न थमने वाला एक सिलसिला

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अब देखना यह है कि अखिलेश ‘शहीद’ होकर निकलेंगे या फिर स्वयं सपा से किनारा कर लेंगे। आज की तारीख में जनता अखिलेश की बातों पर मुलायम से अधिक विश्वास कर रही है। मुलायम द्वारा बुलाई गई बैठक का सबसे दुखद पहलू यह रहा की कहीं न कहीं मुलायम और उनकी पार्टी मुसलमानोें के नाम पर एक्सपोज होते भी दिखी। 2003 में बीजेपी के एक बड़े नेता के यहां अमर सिंह की मदद से मुलायम सरकार बनाने के लिये रणनीति बनाई गई थी, इस बात की गंूज सत्ता के गलियारों मेे दूर तक सुनने को मिलेगी। बीएसपी जो मुस्लिम वोट बैंक अपने पाले में करने को लेकर हाथ-पैर मार रही हैं। वह इस बात का पूरा फायदा उठाना चाहेगी।

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सपाः ‘बेटाजी’ जी सामने बौने पड़े नेताजी

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पार्टी के भीतर की इस रस्साकसी से सबसे अधिक भ्रम में पार्टी के छोटे नेता ओर कार्यकर्ता हैं। उनके लिए तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह किस पाले में बैठें। कल तक भले ही सपा में मुलायम की ही चलती रहती हो,लेकिन अब ऐसा नही है। इस समय सपा की सियासत कई कोणों में बंटी हुई नजर आ रही है। जानकारों का कहना है कि कुनबे की रार का मुकम्मल रास्ता न निकलते देख अखिलेश ने आगे बढ़ने का फैसला किया है,जो समय के हिसाब से लाजिमी भी है। अब इसमें वह कितना आगे जायेंगे यह देखने वाली बात होगी।

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आदिवासी समाज की अस्मिता से जुड़े यक्ष प्रश्न

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गुजरात से जुड़ा होने के कारण मेरे सम्मुख वहां के आदिवासी समाज की समस्याएं सर्वाधिक चिन्ता का कारण है। इनदिनों गुजरात में आदिवासी समुदाय में असन्तोष का बढ़ना बड़ी मुसीबत का सबब बन सकता है। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए पाटीदारों और दलितों के बाद अब आदिवासी समुदाय मुसीबत खड़ी कर सकता है। राज्य के आदिवासी इलाकों में भिलीस्तान आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है। अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले आदिवासी नेता विद्रोह करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके पीछे कुछ और लोग भी हैं जो अपने राजनीतिक हितों के लिए उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं।

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