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चीन से आगे निकलता भारत

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अर्थ के कई क्षेत्रों में आज भी पूरे विश्व में चीन का दबदबा कायम है जैसे चीन विनिर्माण के क्षेत्र में विश्व का केंद्र बना हुआ है। विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) के शेयर बाजार के आकार के मामले में भी चीन का दबदबा लम्बे समय से कायम रहा है। परंतु, अब भारत उक्त दोनों ही क्षेत्रों, (विनिर्माण एवं शेयर बाजार), में चीन को कड़ी टक्कर देता दिखाई दे रहा है तथा हाल ही में तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार सम्बंधी इंडेक्स में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।  दरअसल पूरे विश्व में संस्थागत निवेशक विभिन्न देशों, विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं, के शेयर बाजार में पूंजी निवेश करने के पूर्व वैश्विक स्तर पर इस संदर्भ में जारी किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण इंडेक्स पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। अथवा, यह कहा जाय कि इन इंडेक्स के आधार पर अथवा इन इंडेक्स की बाजार में चाल पर ही वे इन देशों के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन संस्थागत निवेशकों में विभिन्न देशों के पेन्शन फंड, सोवरेन फंड, निवेश फंड आदि शामिल रहते हैं जिनके पास बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी की उपलब्धता रहती है एवं वे अपनी आय बढ़ाने के उद्देश्य से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं। इस संदर्भ में MSCI Emerging Market IMI (Investible Market Index) Index का नाम पूरे विश्व में बहुत विश्वास के साथ लिया जाता है। विश्व प्रसिद्ध निवेश कम्पनी मोर्गन स्टेनली ने अपने प्रतिवेदन में बताया है कि इस इंडेक्स में 24 तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) की 3,355 कम्पनियों के शेयरों को शामिल किया गया है।  पिछले 15 वर्षों से यह प्रचलन चल रहा है कि इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स (IMI) में चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है परंतु धीरे धीरे अब चीन की भागीदारी इस इंडेक्स में कम हो रही है एवं इस वर्ष अब भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस इंडेक्स में प्रतिशत में चीन की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है और भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इस इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से बढ़ते हुए चीन से आगे निकल आई है और भारत की हिस्सेदारी अब 22.27 प्रतिशत से अधिक हो गई है एवं चीन की हिस्सेदारी कम होकर 21.58 रह गई है। यह इतिहास में पहली बार हुआ है और इसका आशय यह है कि जो निवेशकर्ता इस इंडेक्स के आधार पर अपना निवेश तेजी  से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में करते हैं वे अब भारत की ओर अपना रूख करेंगे। दूसरे, पिछले कुछ वर्षों से विदेशी निवेशक भारत से निवेश बाहर निकालते रहे हैं क्योंकि उनको भारतीय शेयर मंहगे लगाने लगे थे। परंतु, अब यह विदेशी निवेशक भी भारत की ओर रूख करेंगे। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत का वेट बढ़ने से इस प्रकार के निवेशक भी भारत में आएंगे ही और भारत में 400 से 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नया निवेश करेंगे।  एक अन्य MSCI वैश्विक सूचकांक में भी भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 2 प्रतिशत हो गई है। परंतु, MSCI इमर्जिंग मार्केट इननवेस्टिबल फड इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाले बड़े फंड्ज का निवेश सम्बंधी आबंटन भी इसी हिस्सेदारी के आधार पर होने की सम्भावना है। इन्हीं कारणों के चलते अब आने वाले समय में भारत के शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अपना निवेश बढ़ाए जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।   वैसे भी चीन की अर्थव्यवस्था में अब विकास दर कम हो रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से चीन लगातार  कुछ आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है। चीन की विदेश नीति में भी बहुत समस्याएं उभर रही हैं विशेष रूप से चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ राजनैतिक सम्बंध ठीक नहीं हैं। चीन के शेयर बाजार में देशी निवेशक ही अधिक मात्रा में भाग ले रहे थे और वे भी अब अपना पैसा शेयर बाजार से  निकाल रहे हैं। इन समस्याओं के पूर्व MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में चीन ओवर वेट था और भारत अंडर वेट था। परंतु, पिछले दो वर्षों के दौरान स्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ है। चीन की अर्थव्यवस्था में आई समस्याओं के चलते चीन का इस इंडेक्स में खराब प्रदर्शन रहा है, उससे चीन की हिस्सेदार इस इंडेक्स में कम हुई है। दूसरा, भारत अपने आप में विभिन्न आयामों वाला शेयर बाजार है क्योंकि यहां निवेशकों को सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा एवं गैस, अधोसंरचना, स्वास्थ्य, होटेल, बैंकिंग एवं वित्त आदि जैसे लगभग समस्त क्षेत्र मिलते हैं। इसके विपरीत ताईवान के शेयर बाजार में सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कम्पनियों की 60 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है, इसी प्रकार, सऊदी अरब में तेल कम्पनियों की 90 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है। इस प्रकार ये देश पूर्णत: केवल एक अथवा दो क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं जबकि भारत में विदेशी निवेशकों को कई क्षेत्रों में निवेश का मौका मिलता है। भारत एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था शीघ्र ही पांचवे स्थान से आगे बढ़कर तीसरे स्थान पर आने की तैयारी में है। भारत में सशक्त वित्तीय प्रणाली के साथ ही सशक्त प्राइमरी मार्केट भी है। भारत में स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है, इन स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों को भी तो वित्त की आवश्यकता है, जिनमें विदेशी निवेशक अपनी पूंजी का निवेश कर सकते हैं। इस प्रकार यह स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियां भी निवेशकों को निवेश के लिए अतिरिक्त बेहतर विकल्प प्रदान कर रही हैं।  साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का कम्पन भी स्पष्टत: दिखाई दे रहा हैं और भारत में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही है। भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं इससे भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग में और अधिक वृद्धि होगी तथा इससे विभिन्न कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अधिक वृद्धि होगी और अंततः इन कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों को भी भारत में निवेश करने में और अधिक लाभ दिखाई देगा। दूसरे, भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 60 प्रतिशत जनसंख्या का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत तक ही है,  इसे बढ़ाए जाने के लगातार प्रयास केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के चलते ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में भी वृद्धि दर्ज होगी। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को उद्योग एवं सेवा के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण इलाकों एवं कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या का दबाव कम हो। भारत की जनसंख्या की औसत आयु 27 वर्ष हैं, चीन की जनसंख्या की औसत आयु 40 वर्ष है और जापान की जनसंख्या की औसत आयु 53 वर्ष है। इस प्रकार भारत आज एक युवा देश है क्योंकि भारत में युवा जनसंख्या, चीन एवं जापान की तुलना में, अधिक है जो भारत के लिए, आर्थिक दृष्टि से, लाभ की स्थिति उत्पन्न करता है।।  भारतीय युवाओं को यदि रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने लगते हैं तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में और अधिक तेज गति से वृद्धि सम्भव होगी। चीन में आज बेरोजगारी की दर जुलाई 2024 में बढ़कर 5.20 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो जून 2024 में 5 प्रतिशत थी। वर्ष 2002 से वर्ष 2024 तक चीन में बेरोजगारी की औसत दर 4.75 प्रतिशत रही है। हालांकि फरवरी 2020 में यह 6.20 प्रतिशत के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी। अब पुनः धीरे धीरे चीन में बेरोजगारी की दर आगे बढ़ रही है। जबकि भारत में वर्ष 2023 में बेरोज़गारी की दर (15 वर्ष से अधिक आयु के नगरिको की) कम होकर 3.1 हो गई है जो हाल ही के समय में सबसे कम बेरोज़गारी की दर है। वर्ष 2022 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.6 प्रतिशत थी एवं वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत थी। इस प्रकार धीरे धीरे भारत में बेरोजगारी की दर में कमी आने लगी है।         कुल मिलाकर अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में चीन की तुलना में भारत की स्थिति में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है जिससे MSCI इंडेक्स में भारत की स्थिति में भी लगातार सुधार दिखाई दे रहा है जो आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की सम्भावना है। इस प्रकार, अब भारत, चीन को अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे धीरे पीछे छोड़ता जा रहा है। 

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आर्थिकी प्रवक्ता न्यूज़ राजनीति

भारत में तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने चौंकाया है

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वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने भारत सहित विश्व के समस्त आर्थिक विश्लेशकों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत में सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है जबकि प्रथम तिमाही के दौरान वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत एवं द्वितीय तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की रही थी। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही थी। साथ ही, क्रेडिट रेटिंग संस्थान इकरा ने इस वर्ष तृतीय तिमाही में 6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान एवं भारतीय स्टेट बैंक ने भी 6.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान जताया था। कुल मिलाकर, लगभग समस्त वित्तीय संस्थानों के अनुमानों को झुठलाते हुए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत की रही है।  हम सभी के लिए हर्ष का विषय तो यह है कि विनिर्माण इकाईयों की वृद्धि दर 4.8 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही में 11.6 प्रतिशत हो गई है तथा निर्माण के क्षेत्र में वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत की रही है। साथ ही, खनन के क्षेत्र में वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.5 प्रतिशत की रही है। यह तीनों ही क्षेत्र रोजगार सृजन के क्षेत्र माने जाते हैं। अतः देश में अब रोजगार के नए अवसर भी निर्मित हो रहे हैं। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों में वृद्धि दर आकर्षक रही है। कृषि का क्षेत्र जरूर, विपरीत मानसून एवं अल नीनो के प्रभाव के चलते, विपरीत रूप से प्रभावित हुआ है एवं कृषि के क्षेत्र में वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत  ऋणात्मक रही है। हालांकि वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 2022-23 तक कृषि के क्षेत्र में औसत वृद्धि दर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष से अधिक की रही है। परंतु, प्रकृति के आगे तो किसी की चलती नहीं है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के विशेष रूप से उद्योग क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर के आंकड़ों को देखकर तो अब यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले वर्षों में 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर हासिल करने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं अगले लगभग 4 साल के अंदर ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, वर्तमान में भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। साथ ही, भारतीय शेयर बाजार भी बाजार पूंजीकरण के मामले में वर्तमान में विश्व में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। क्योंकि, भारत में आर्थिक विकास की तीव्र गति को देखते हुए विदेशी निवेशक एवं विदेशी निवेश संस्थान, दोनों ही भारतीय पूंजी बाजार में अपने निवेश को निश्चित ही बढ़ाएंगे।  भारत में वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही में अनुमानों से कहीं अधिक वृद्धि दर हासिल करने के पीछे दरअसल हाल ही के समय में आर्थिक क्षेत्र के साथ साथ सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन भी मुख्य भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं, इस ओर सामान्यतः विदेशी अर्थशास्त्रियों एवं वित्तीय संस्थानों का ध्यान शायद नहीं जा रहा है। हाल ही के समय में भारत में अब विभिन्न त्यौहार अत्यधिक उत्साह के साथ मनाए जा रहे हैं। इन त्यौहारों के मौसम एवं शादियों के मौसम में भारतीय परिवारों, विशेष रूप से मध्यम वर्गीय एवं उच्च वर्गीय परिवारों  के खर्च में अपार वृद्धि हो रही है। इस खर्च का पूरा पैसा भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रहा है, जिससे आर्थिक वृद्धि दर में तेजी दिखाई देने लगी है। वर्ष 2023 में दीपावली त्यौहार के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपए की राशि भारतीय परिवारों द्वारा खर्च की गई थी। शादियों के दौरान भारतीय परिवारों द्वारा अतिरिक्त खर्च किया जाना भी केवल भारत की ही विशेषता है, अन्य देशों में शादियों के दौरान इस प्रकार के खर्च नहीं होते हैं। दूसरे, भारत में हाल ही के समय में धार्मिक पर्यटन में अपार वृद्धि देखने में आई है, क्योंकि इन क्षेत्रों की आधारभूत संरचना में आमूल चूल सुधार हुआ है। पर्यटन के बढ़ने से न केवल रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी अपार बल मिल रहा है। अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार, वृंदावन आदि धार्मिक स्थलों पर पर्यटकों की अपार वृद्धि दिखाई दे रही है। अयोध्या में तो प्रभु श्रीराम के मंदिर के शिलान्यास के बाद से लगातार औसतन प्रतिदिन 2 लाख से अधिक पर्यटक अयोध्या पहुंच रहे हैं। इससे न केवल स्थानीय बल्कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी बल मिल रहा है।  हालांकि केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लगातार किए जा रहे सुधारों के चलते एवं पूंजीगत खर्च में लगातार की जा रही बढ़ौतरी से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में केंद्र सरकार द्वारा 10 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की गई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में इस मद पर 7.5 लाख करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी। वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में पूंजीगत खर्च की राशि को बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। दूसरे, भारत में कर (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) के संग्रहण में भी अपार सुधार दिखाई दे रहा है। कर ढांचे को आसान बनाकर सम्बंधित नियमों के अनुपालन में सुधार कर, कर संग्रहण में 20 प्रतिशत के आसपास की वृद्धि हासिल की गई है। देश में अनौपचारिक क्षेत्र भी तेजी से औपचारिक क्षेत्र में बदल रहा है, इससे कर संग्रहण के साथ साथ रोजगार के अवसर भी औपचारिक क्षेत्र में अधिक निर्मित हो रहे हैं तथा विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ मिलते दिखाई दे रहे है।  विशेष रूप से कोरोना महामारी के खंडकाल के बाद से (वित्तीय वर्ष 2022 से वित्तीय वर्ष 2024 के बीच) भारत में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 38,257 रुपए की वृद्धि दर्ज हुई है एवं अब यह प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपए को पार कर गई है। इस दौरान प्रति व्यक्ति बचत एवं पूंजी निर्माण में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है। भारत में सकल बचत की दर वित्तीय वर्ष 2023 में 30.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 32.3 प्रतिशत से अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है, जो वित्तीय वर्ष 2014 के बाद से सबसे अधिक दर रहने वाली है। अब देश में पूंजी का उपयोग अधिक दक्षता के साथ किया जा रहा है। जिससे क्रमिक पूंजी-उत्पाद अनुपात में पर्याप्त सुधार हुआ है। यह अनुपात दर्शाता है कि अतिरिक्त उत्पाद के निर्माण में कितनी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होने वाली है। वित्तीय वर्ष 2012 में क्रमिक पूंजी-उत्पाद अनुपात 7.5 प्रतिशत था जो वित्तीय वर्ष 2023 में घटकर 4.4 प्रतिशत हो गया है। अतः देश में वर्तमान बचत दर को देखते हुए भारत आसानी से 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की विकास दर हासिल कर सकता है।  कुल मिलाकर, अब भारतीयों को आर्थिक क्षेत्र में लगातार अच्छे समाचार मिलने लगे हैं क्योंकि भारत रोजाना किसी न किसी क्षेत्र में नित नए रिकार्ड बनाता दिखाई दे रहा है। इस प्रकार, अब भारतीयों को नित नए रिकार्ड सुनने की आदत बना लेनी चाहिए।     प्रहलाद सबनानी

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