समाज अनुसूचित जनजातियों को मुख्यधारा में लाने का सवाल April 29, 2010 / December 24, 2011 by गिरीश पंकज | 5 Comments on अनुसूचित जनजातियों को मुख्यधारा में लाने का सवाल -गिरीश पंकज जिन लोगों को हमारा संविधान ”अनुसूचित जनजाति” कहता है, उन्हें बहुत से लोग ‘आदिवासी’ भी कह देते है. ऐसा कह कर अनजाने में ही हमलोग गैर संवैधानिक काम भी करते हैं, और अपने ही भाइयों से दूरियां बढ़ा लेते है. शहरी लोगों की बातों से अक्सर दंभ भी झलकता है, जब वे मसीहाई […] Read more » Sedule caste अनुसूचित जनजाति
समाज जातिवादी संघर्ष की ‘जड़ों’ पर होना चाहिए प्रहार April 29, 2010 / December 24, 2011 by निर्मल रानी | 4 Comments on जातिवादी संघर्ष की ‘जड़ों’ पर होना चाहिए प्रहार ‘म्हारा नंबर वन हरियाणा-जहां दूध-दही का खाना’ – जैसा गौरवपूर्ण गुणगान करने वाला हरियाणा राय भी कभी-कभी जातिवाद तथा वर्गवाद जैसे दुर्भाग्यपूर्ण संघर्ष की खबरों के कारण सुख़ियों में आ जाता है। पिछले दिनों राय के हांसी उपमंडल के मिर्चपुर गांव में एक बार फिर दलित समुदाय के लोगों को तथाकथित उच्चजाति के लोगों के […] Read more » Racism जातिवाद
समाज सिर्फ मनोरंजन नहीं है पोर्नोग्राफी April 22, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 3 Comments on सिर्फ मनोरंजन नहीं है पोर्नोग्राफी परसों एक पाठक ने पोर्न की हिमायत में कहा कि पोर्न तो महज मनोरंजन है। मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूँ। पोर्न सिर्फ मनोरंजन नहीं है। पोर्न औरतों के खिलाफ नियोजित विचारधारात्मक कारपोरेट हमला है। पोर्न की विश्वव्यापी आंधी ऐसे समय में आयी है जब महिला आंदोलन नई ऊँचाईयों का स्पर्श कर रहा था। […] Read more » Sex पोर्नोग्राफी सेक्स
समाज दो जून की रोटी को मोहताज सांस्कृतिक दूत ये सपेरे April 20, 2010 / December 24, 2011 by फ़िरदौस ख़ान | Leave a Comment भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। प्राचीन संस्कृति के इन्हीं रंगों को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में बिखेरने में सपेरा जाति की अहम भूमिका रही है, लेकिन सांस्कृतिक दूत ये सपेरे सरकार, प्रशासन और समाज के उपेक्षित रवैये की वजह से दो जून की रोटी तक को मोहताज हैं। देश […] Read more » Sapera सपेरा
समाज पीटना क्रूरता नहीं, तो फिर क्या है क्रूरता? April 16, 2010 / December 24, 2011 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 1 Comment on पीटना क्रूरता नहीं, तो फिर क्या है क्रूरता? 1-सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बहु को पीटना क्रूरता नहीं है, ऐसे में यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि इन हालातों में आरोपी को पुलिस द्वारा पीटना क्रूरता कैसे हो सकती है? और यदि क्रूरता की यही परिभाषा है तो फिर मानव अधिकार आयोग का क्या औचित्य रह जाता है? 2-जिस पुरुष को पीडिता के […] Read more » Cruelty क्रूरता
समाज कब तक ढोए जाते रहेंगे गुलामी के लबादे April 6, 2010 / December 24, 2011 by लिमटी खरे | 1 Comment on कब तक ढोए जाते रहेंगे गुलामी के लबादे देश के हृदय प्रदेश में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने एक एसी बहस को जन्म दे दिया है, जिसके बारे में उन्होंने शायद ही सोचा हो कि इस बहस की आज कितनी अधिक आवश्यक्ता है। जयराम रमेश ने उन्हें भोपाल पहनाए गए लबादे को उपनिवेशवाद का बर्बर प्रतीक चिन्ह कहकर उतार दिया। […] Read more » Jairam Ramesh जयराम रमेश दीक्षांत समारोह
समाज एक सामाजिक प्रश्नः बिन फेरे हम तेरे March 26, 2010 / December 24, 2011 by संजय द्विवेदी | 6 Comments on एक सामाजिक प्रश्नः बिन फेरे हम तेरे परिवार नाम की संस्था को बचाने आगे आएं नौजवान भारत और उसकी परिवार व्यवस्था की ओर पश्चिम भौंचक होकर देख रहा है। भारतीय जीवन की यह एक विशेषता उसकी तमाम कमियों पर भारी है। इसने समाज जीवन में संतुलन के साथ-साथ मर्यादा और अनुशासन का जो पाठ हमें पढ़ाया है उससे लंबे समय तक हमारा […] Read more » family परिवार संस्था
समाज समाजसेवा का गोरखधंधा – अखिलेश आर्येन्दु March 10, 2010 / December 24, 2011 by अखिलेश आर्येन्दु | 1 Comment on समाजसेवा का गोरखधंधा – अखिलेश आर्येन्दु ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्वायत्त इकाई कपार्ट (काउंसिल फॉर एडवांसमेंट ऑफ पीपल्स एक्शन एंड रूरल टेक्नोलॉजी) ने धन का दुरुपयोग करने के मामले में देश के 833 गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और स्वैच्छिक संगठनों को काली सूची में डाल दिया है। इससे यह बात साफ हो गई कि एनजीओ के बारे में जो आम धारणा […] Read more » NGO एनजीओ
विश्ववार्ता समाज सेक्स उद्योग और सैन्य मिशन March 6, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on सेक्स उद्योग और सैन्य मिशन सारी दुनिया में सेक्स उद्योग में आई लंबी छलांग के दो सबसे प्रमुख कारण हैं पहला है युद्ध और दूसरा है उन्नत सूचना एवं संचार तकनीकी। आज वेश्यावृत्ति और पोर्न दोनों का ही औद्योगिकीकरण हो चुका है। विश्व स्तर पर वेश्यालयों के कानूनी संरक्षण,वेश्यावृत्ति को कानूनी स्वीकृति दिलाने का आन्दोलन तेजी से चल रहा है […] Read more » Sex सेक्स
समाज मध्य प्रदेश में जारी है सामंती प्रथा March 5, 2010 / December 24, 2011 by लिमटी खरे | Leave a Comment भारत देश को आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, भारत में गणतंत्र की स्थापना भी साठ पूरे कर चुकी है, बावजूद इसके आज भी देश के हृदय प्रदेश में मध्ययुगीन सामंती प्रथा की जंजरों की खनक सुनाई पड रही है। कहने को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देश भर में सर पर […] Read more » madhaya pradesh उत्तर प्रदेश दलित मध्यप्रदेश मैला प्रथा
समाज सेक्स का औद्योगिकीकरण March 5, 2010 / December 24, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on सेक्स का औद्योगिकीकरण मौजूदा दौर की विशेषता है सेक्स का औद्योगिकीकरण। आज सेक्स उद्योग है। पोर्न उसका एक महत्वपूर्ण तत्व है। पोर्न एवं उन्नत सूचना तकनीकी के अन्तस्संबंध ने उसे सेक्स उद्योग बना दिया है। भूमंडलीकरण के कारण नव्य-उदारतावादी आर्थिक नीतियों के आधार पर नयी विश्व व्यवस्था का निर्माण किया गया है। इस व्यवस्था में निरंतर स्ट्रक्चरल एडजेस्टमेंट […] Read more » Porn Sex पोर्न सेक्स
समाज अंधविश्वास और जनमाध्यम February 9, 2010 / December 25, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 2 Comments on अंधविश्वास और जनमाध्यम अंधविश्वास सामाजिक कैंसर है। अंधविश्वास ने सत्ता और संपत्ति के हितों को सामाजिक स्वीकृति दिलाने में अग्रणी भूमिका अदा की है। आधुनिक विमर्श का माहौल बनाने के लिए अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता बेहद जरूरी है। आमतौर पर साधारण जनता के जीवन में अंधविश्वास घुले-मिले होते हैं। अंधविश्वासों को संस्कार और एटीटयूट्स का रूप देने में […] Read more » media अंधविश्वास जनमाध्यम