समाज साक्षात्कार सार्थक पहल ‘संस्कृत’ का रक्षक बना कर्नाटक का एक गाँव July 18, 2025 / July 18, 2025 by रमेश ठाकुर | Leave a Comment डॉ. रमेश ठाकुर एकाध दशकों से पश्चिमी भाषा इस कदर हावी हुई है जिससे हम अपनी पारंपरिक भाषाएं और सभ्यताओं को पीछे छोड़ दिया है जिसमें ‘संस्कृत भाषा’ अव्वल स्थान पर है। कड़वी सच्चाई ये है कि समूचे भारत में मात्र एक प्रतिशत भी संस्कृत का प्रचार-प्रसार, बोलचाल और पठन-पाठन नहीं नहीं बचा? ऐसे में […] Read more » ‘संस्कृत’ का रक्षक बना कर्नाटक का एक गाँव A village in Karnataka became the protector of 'Sanskrit' मत्तूरु गांव
लेख विधि-कानून समाज यौन हिंसा पर सख्त कानून के बावजूद आखिर अपराधों में कमी क्यों नहीं आ रही ? July 18, 2025 / July 18, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment हाल ही में ओडिशा के बालेश्वर जिले के एक कॉलेज में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यौन उत्पीड़न से परेशान होकर बी.एड की एक छात्रा ने खुद को आग लगा ली थी और बाद में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस घटना से पूरे राज्य […] Read more »
लेख समाज कोख में कत्ल होती बेटियाँ: हरियाणा की घुटती संवेदना July 15, 2025 / July 15, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment हरियाणा में केवल तीन महीनों में एक हज़ार एक सौ चौवन गर्भपात। कारण – कन्या भ्रूण हत्या की आशंका। छप्पन आशा कार्यकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस। निगरानी प्रणाली में चूक। पश्च परीक्षण प्रणाली और पुलिस के सहयोग से कठोर कार्यवाही की तैयारी। किन्तु क्या यह सख़्ती पर्याप्त है? जब तक समाज की सोच, पारिवारिक मानसिकता […] Read more » Daughters murdered in the womb: Haryana's stifling sentiments कन्या भ्रूण हत्या
राजनीति शख्सियत समाज सादगी की सियासत: मनोहर लाल की राजनीति और परछाइयाँ July 11, 2025 / July 11, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment मनोहर लाल खट्टर हरियाणा की राजनीति में सादगी, ईमानदारी और पारदर्शिता के प्रतीक बनकर उभरे हैं। जहाँ अधिकतर नेता सत्ता से वैभव कमाते हैं, वहीं खट्टर जी ने जनता का भरोसा कमाया। उनके शासन में लाखों नौकरियाँ बिना सिफारिश और रिश्वत के दी गईं। निजी संपत्ति की बजाय उन्होंने मेहनती युवाओं की दुआएँ कमाईं। स्वयंसेवक […] Read more » मनोहर लाल
लेख समाज जब छात्र हत्यारे बन जाएं: चेतावनी का वक्त July 11, 2025 / July 11, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “संवाद का अभाव, संस्कारों की हार, स्कूलों में हिंसा समाज की चुप्पी का फल” हिसार में शिक्षक जसवीर पातू की हत्या केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि हमारे समाज की संवादहीनता, विफल शिक्षा व्यवस्था और गिरते नैतिक मूल्यों का कठोर प्रमाण है। आज का किशोर मोबाइल की आभासी दुनिया में जी रहा है, जबकि घर […] Read more » Teacher Jasvir Patu murdered in Hisar teacher jasvir patu murdered in hisar by student
लेख समाज सार्थक पहल शिक्षा, वैज्ञानिक सोच, और जागरूकता से ही होगा अंधविश्वासों का खात्मा ! July 10, 2025 / July 10, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment आज हम इक्कीसवीं सदी में सांस ले रहे हैं।यह युग विज्ञान और तकनीक का युग है जहां आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का प्रयोग किया जा रहा है। विज्ञान और तकनीक के इस दौर के बीच भारत आज भी एक बहुत ही धार्मिक देश है, जहां अलग-अलग धर्म, संप्रदायों, वर्गों के लोग आपसी सहयोग, सद्भावना से […] Read more » अंधविश्वासों का खात्मा
लेख समाज लुप्त होता समाज भारतीय समाज July 3, 2025 / July 3, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानन्द मिश्रा सावधान हो जाइए ! भारत सहित पश्चिमी देशों में कुछ ही दशक बाद फैमिली सिस्टम का अंत निकट है। परिवार लगातार टूट रहे हैं , बिखर रहे हैं , समाप्त हो रहे हैं। इस समय फैमिली सिस्टम को बचाना पश्चिमी जगत का सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत के सनातनी समाज में भी फैमिली सिस्टम बड़ी तेजी से सिमट रहा है । फैमिली सिस्टम यूँ ही बिखरता रहा तो भविष्य खराब है । आज पश्चिमी समाज को तबाही का दृश्य दिखाई पड़ने लगा है । कल भारत भी इसी दौर से गुजरनेवाला है। मशहूर पश्चिमी लेखक डेविड सेलबोर्न की किताब ” loosing battle with islam ” में आँखें खोलने वाले खुलासे किए गए हैं । बताया गया है कि ईसाई जगत के समान सनातनी जगत के सामने भी ऐसा ही खतरा है। यहूदियों ने इस खतरे पर पार पा लिया है। डेविड के अनुसार इस्लाम के सशक्त फेमिली सिस्टम से पश्चिमी दुनिया हार रही है। पश्चिम में लोग शादी करना पसंद नहीं करते। समलैंगिकता , अवैध सम्बन्ध , लिव इन रिलेशनशिप आदि से फैमिली सिस्टम टूट गया है । पश्चिम में ऐसे बच्चों की तादाद बढ़ती जा रही है , जिन्हें अपने पिता का पता नहीं । मां बाप के साथ रहने का चलन पश्चिम पूरी तरह भूल चुका है । लोगों का बुढ़ापा ओल्ड एज होम्स में गुजर रहा है । नतीजा यह कि पश्चिमी बच्चे दादा दादी , नाना नानी , चाचा ताऊ जैसे रिश्तों के नाम भी भूल चुके हैं ।अब तो नो चाइल्ड लाइफ स्टाइल बहुत शीघ्र पश्चिम को बर्बाद कर देगा । आबादी घटने से उत्पन्न अकेलेपन के सबसे बड़े शिकार जापान और दक्षिण कोरिया हैं । कारण , खाओ पियो ऐश करो , नो चाइल्ड ऑनली प्लेजर, ऑनली मस्ती। गौर से देखने पर पता चल जाता है कि भारत का हिन्दू समाज भी उधर बढ़ चुका है जहां से पश्चिमी जगत के सामने अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है । सॉलिड फेमिली सिस्टम के कारण अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी और फ्रांस में इस्लाम की संख्या बढ़ती जा रही है। इस्लाम धर्म में परिवार वास्तव में मजबूत इकाई है । परिवार को जोड़े रखने की कला यहूदियों ने इस्लाम से सीखी है और अपनी आबादी बढ़ाई है। पश्चिम में अकेला होता जा रहा आदमी भयावह ऊब और घुटन का शिकार है। भारत के शहरों में ही नहीं , कस्बाई जीवन में भी अकेलापन प्रवेश कर चुका है । भारत में भी पाएंगे कि समाज में भी चाचा , भतीजा , बुआ , ताऊ , मामा , मौसी और यहां तक कि सगे भाई सगी बहन के रिश्ते भी धीरे धीरे समाज में खत्म हो रहे है । यह घोर चिन्ता का विषय है , दुर्भाग्य से इस पर चिंतन अभी शुरू भी नहीं हुआ है । इसका एक प्रमुख कारण विवाहित बेटियों का अपने मैके में दखल देना तथा बेटियों के मां को उनके ससुराल में दखलंदाजी है। विवाहित बहन भी अपनी उल्लू सीधा कर भाइयों को आपस में खूब लड़वाते हैं। याद कीजिए चीन ने वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर अपनी आबादी घटाई जो अब भारत से कम हो गई । वहां भी चीनी जनता ने जब वन चाइल्ड के बजाय नो चाइल्ड अपनाना शुरू किया तब चीन ने दो बच्चों की इजाजत दी । आज दुनिया के अनेक देशों में आबादी बढ़ाने के अभियान चल पड़े हैं । भारत में भी कुछ धार्मिक गुरु ज्यादा बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं । बहरहाल एक समस्या तो है जिसका समाधान खोजना पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है । समाज तभी बनता है जब परिवार हो। समाज की सबसे बड़ी ताकत संयुक्त परिवार थी जो अब लगभग मर चुका है । मैं , मेरी बीबी और मेरे बच्चे सिद्धांत ने परिवारों के बीच दीवारें खड़ी कर दी है। नारी को इस बाबत सबसे ज्यादा विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि वो जननी है उसको अपना स्वहित त्याग समाज हित को देखना होगा । अपना फिगर अपना कैरियर अपनी फ्री लाइफ अपने आनन्द से ऊपर उठ परिवार समाज व सनातन धर्म के लिये संकल्प लेना होगा। आप देखिए , पश्चिम में फैले अवसाद , अकेलापन और डिप्रेशन भारत में भी बहुत गहरे प्रवेश कर चुके है। इन्हें अब रोकना होगा रोकना होगा और यह कार्य भारतीय नारी ही कर सकती है। शिवानन्द मिश्रा Read more » Vanishing Society Indian Society लुप्त होता समाज भारतीय समाज
लेख समाज देश में नशे के सौदागरों का बढ़ता जाल July 3, 2025 / July 3, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment भारत में नशे का संकट अब व्यक्तिगत बुराई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपदा बन चुका है। ड्रग माफिया, तस्करी, राजनीतिक संरक्षण और सामाजिक चुप्पी—सब मिलकर युवाओं को अंधकार में ढकेल रहे हैं। स्कूलों से लेकर गांवों तक नशे की जड़ें फैल चुकी हैं। यह सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, सोच और सभ्यता का संकट है। समाधान केवल कानून […] Read more » The growing network of drug dealers in the country देश में नशे के सौदागर नशे के सौदागरों का बढ़ता जाल
शख्सियत समाज साक्षात्कार राष्ट्रानुरागी ‘तूफानी हिंदू’ थे विवेकानंद July 2, 2025 / July 2, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment 4 जुलाई विवेकानन्द पुण्यतिथि पर : डॉ० घनश्याम बादल भगवा वेश, सिर पर पगड़ी और तेजस्वी ओजपूर्ण मुखमंडल के साथ अद्भुत वक्ता की जब बात की जाती है तो एक ही नाम स्मृति में आता है वह स्वामी विवेकानंद का। बरबस अपनी और आकृष्ट करने वाले व्यक्तित्व, ऊर्जस्वी विचार और राष्ट्रवादी चिंतन ने स्वामी विवेकानन्द […] Read more »
आर्थिकी लेख समाज सार्थक पहल मध्यमवर्गीय परिवार नहीं फंसे ऋण के जाल में July 1, 2025 / July 1, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी की है। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र के बैंकों, सरकारी क्षेत्र के बैंकों एवं क्रेडिट कार्ड कम्पनियों सहित अन्य वित्तीय संस्थानों ने भी अपने ग्राहकों को प्रदान की जा रही ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी की घोषणा करना प्रारम्भ कर दिया है ताकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कमी का लाभ शीघ्र ही भारत में ऋणदाताओं तक पहुंच सके एवं इससे अंततः देश की अर्थव्यवस्था को बल मिल सके। भारत में चूंकि अब मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में आ गई है, अतः आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में और अधिक कमी की जा सकती है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी के बाद कई नागरिक जिन्होंने पूर्व में कभी बैंकों से ऋण नहीं लिया है, वे भी ऋण लेने का प्रयास करें। बैंक से ऋण लेने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि इस ऋण को चुकता करने की क्षमता भी ऋणदाता में होनी चाहिए अर्थात ऋणदाता की पर्याप्त मासिक आय होनी चाहिए ताकि बैकों द्वारा प्रदत्त ऋण की किश्त एवं ब्याज का भुगतान पूर्व निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके। इस संदर्भ में विशेष रूप से युवा ऋणदाताओं द्वारा क्रेडिट कार्ड के उपयोग पश्चात संबंधित राशि का भुगतान समय सीमा के अंदर अवश्य करना चाहिए क्योंकि अन्यथा क्रेडिट कार्ड एजेंसी द्वारा चूक की गई राशि पर भारी मात्रा में ब्याज वसूला जाता है, जिससे युवा ऋणदाता ऋण के जाल में फंस जाते हैं। बैकों से लिए गए ऋण की मासिक किश्त एवं इस ऋणराशि पर ब्याज का भुगतान यदि निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं किया जाता है तो चूककर्ता ऋणदाता से बैकों द्वारा दंडात्मक ब्याज की वसूली की जाती है। इसी प्रकार, कई नागरिक जो क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं एवं इस क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की गई राशि का भुगतान यदि वे निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं कर पाते हैं तो इस राशि पर चूक किए गए क्रेडिट कार्ड धारकों से भारी भरकम ब्याज की दर से दंड वसूला जाता है। कभी कभी तो दंड की यह दर 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत के बीच रहती है। क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले नागरिक कई बार इस उच्च ब्याज दर पर वसूली जाने वाली दंड की राशि से अनभिज्ञ रहते हैं। अतः बैंकों से ली जाने वाली ऋणराशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का समय पर भुगतान करने के प्रति ऋणदाताओं को सजग रहने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर यह ऋणदाताओं के हित में है कि वे बैंक से लिए जाने वाले ऋण की राशि तथा ब्याज की राशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का पूर्व निर्धारित एवं उचित समय सीमा के अंदर भुगतान करें क्योंकि अन्यथा की स्थिति में उस चूककर्ता नागरिक की क्रेडिट रेटिंग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है एवं आगे आने वाले समय में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है एवं बहुत सम्भव है कि भविष्य में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त ही न हो सके। ऋणदाता यदि किसी प्रामाणिक कारणवश अपनी किश्त एवं ब्याज का बैंकों अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को समय पर भुगतान नहीं कर पाता है और उसका ऋण खाता यदि गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित हो जाता है तो इस संदर्भ में चूककर्ता ऋणदाता द्वारा बैकों को समझौता प्रस्ताव दिए जाने का प्रावधान भी है। इस समझौता प्रस्ताव के माध्यम से चूककर्ता ऋणदाता द्वारा सम्बंधित बैंक अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को मासिक किश्त एवं ब्याज की राशि को पुनर्निर्धारित किए जाने के सम्बंध में निवेदन किया जा सकता है। परंतु, यदि ऋणदाता ऋण की पूरी राशि, ब्याज सहित, अदा करने में सक्षम नहीं है तो चूक की गई राशि में से कुछ राशि की छूट प्राप्त करने एवं शेष राशि को एकमुश्त अथवा किश्तों में अदा करने के सम्बंध में भी समझौता प्रस्ताव दे सकता है। ऋण की राशि अथवा ब्याज की राशि के सम्बंध के प्राप्त की गई छूट की राशि का रिकार्ड बनता है एवं समझौता प्रस्ताव के अंतर्गत प्राप्त छूट के चलते भविष्य में उस ऋणदाता को बैकों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, इस बात का ध्यान चूककर्ता ऋणदाता को रखना चाहिए। अतः जहां तक सम्भव को ऋणदाता द्वारा समझौता प्रस्ताव से भी बचा जाना चाहिए एवं अपनी ऋण की निर्धारित किश्तों एवं ब्याज का निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत भुगतान करना ही सबसे अच्छा रास्ता अथवा विकल्प है। भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते मध्यमवर्गीय नागरिकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, जिनके द्वारा चार पहिया वाहनों, स्कूटर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन एवं मकान आदि आस्तियों को खरीदने हेतु बैकों अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लिया जा रहा है। कई बार मध्यमवर्गीय परिवार एक दूसरे की देखा देखी आपस में होड़ करते हुए भी कई उत्पादों को खरीदने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं, चाहे उस उत्पाद विशेष की आवश्यकता हो अथवा नहीं। उदाहरण के लिए एक पड़ौसी ने यदि अपने चार पहिया वाहन का एकदम नया मॉडल खरीदा है तो जिस पड़ौसी के पास पूर्व में ही चार पहिया वाहन उपलब्ध है वह पुराने मॉडल के वाहन को बेचकर पड़ौसी द्वारा खरीदे गए नए मॉडल के चार पहिया वाहन को खरीदने का प्रयास करता है और बैंक के ऋण के जाल में फंस जाता है। यह नव धनाडय वर्ग यदि बैक से लिए गए ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का निर्धारित समय सीमा के अंदर भुगतान नहीं कर पाता है तो उस नागरिक विशेष के वित्तीय रिकार्ड पर धब्बा लग सकता है जिससे उसके लिए उसके शेष जीवन में बैकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों से पुनः ऋण लेने में कठिनाई आ सकती है। अतः बैकों से ऋण प्राप्त करने वाले नागरिकों को ऋण की किश्त का समय पर भुगतना करना स्वयं उनके हित में हैं, ताकि भारत में तेज हो रही आर्थिक प्रगति का लाभ आगे आने वाले समय में भी समस्त नागरिक ले सकें। भारत में तो यह कहा भी जाता है कि जिसके पास जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारने चाहिए। अर्थात, नागरिकों को बैंकों से ऋण लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का भुगतान करने लायक उनकी अतिरिक्त आय होनी चाहिए, ताकि ऋण की किश्तों एवं ब्याज की राशि का भुगतान निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके एवं उनका ऋण खाता गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित नहीं हो। प्रहलाद सबनानी Read more » Middle class families are not trapped in the debt trap नहीं फंसे ऋण के जाल में
मनोरंजन महत्वपूर्ण लेख समाज साक्षात्कार सुनता नहीं कोई हमारी, क्या जमाना बहरा हो गया July 1, 2025 / July 1, 2025 by डा. विनोद बब्बर | Leave a Comment डा. विनोद बब्बर गत दिवस देश की राजधानी से सटे नोएडा के एक ओल्डऐज होम में लोगों की दुर्दशा के समाचार ने मानवता के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। वृद्धाश्रम पहुंची पुलिस और समाचार कल्याण विभाग की टीम हैरान थी। एक बुजुर्ग महिला को बांध के रखा गया था तो बेसमेंट के कमरों में जो वृद्ध पुरुष कैद थे, उनके वस्त्र मल मूत्र से सने हुए और दुर्गंध दे रहे थे। पूरा दृश्य किसी नर्क से बढ़कर था। विशेष यह कि इस ओल्ड होम में दयनीय हालत रहने वाले वृद्धों के परिजनों की ओर से मासिक शुल्क भी दिया जा रहा था। प्रश्न यह है कि जब परिजन हजारों रुपया प्रतिमा शुल्क देने की स्थिति में है तो वे अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ क्यों नहीं रखते? जिन माता-पिता ने उन्हें पाला संभाला, शिशुपन में उनके मल मूत्र साफ किया और स्वयं कष्ट सहकर भी उनके सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखा, उन्हें अपने से अलग करते हुए क्या उन कलयुगी संतानों ने जरा भी नहीं सोचा? पाषाण हृदय संतानों को स्वतंत्रता पसंद है या वे अपने वृद्ध अभिभावकों को बोझ मानते हैं? दुखद आश्चर्य यह है कि जिस भारत में बुजुर्गो की सेवा-सम्मान की परम्परा रही है। जहां लगातार गाया, दोहराया जाता है- अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।। जो अपने बुजुर्गों की सेवा और सम्मान करते हैं उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल में वृद्धि होती है। वहाँ तेजी से वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। इस नैतिक पतन के लिए कुछ लोग ऋषि संस्कृति की भूमि भारत में पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को जिम्मेवार ठहराते हैं तो अधिकांश लोगों के मतानुसार विखण्डित होते संयुक्त परिवार, शहरीकरण, बेलगाम सोशल मीडिया और उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण स्थित बदली है। आश्चर्य है कि आज शहर से गांव तक प्रत्येक व्यक्ति दिन में कई कई घंटेअपने स्मार्टफोन को देता है लेकिन उनके पास अपने ही वृद्ध माता-पिता के पास बिताने के लिए कुछ मिनट भी नहीं है। शायद मान्यताओं में बदलाव के कारण बुजुर्गों को बोझ बना दिया है। उन्हें न अच्छा खाना दिया जाता है न ही साफ-सुथरे कपड़े। यहां तक कि उनके उपचार को भी जरूरी नहीं समझा जाता। उचित देखभाल के अभाव में वृद्धों को शारीरिक व मानसिक कष्ट बढ़ जाता है। वे छोटे-छोटे कामों और जरूरतों के लिए दूसरों के मोहताज हो जाते हैं। हर कली अपने यौवन में फूल बनकर अपनी सुगंध बिखेरती है तो एक सीमा के बाद उसमें मुरझाहट दिखाई देने लगती है। मनुष्य जीवन भी प्रकृति के इस चक्र के अनुसार ही चलता है। बचपन, जवानी के बाद वृद्धावस्था प्रकृति का सत्य है। वृद्धावस्था को जीवन का अभिशाप मानते हैं क्योंकि इस अवस्था के आते-आते शरीर के सारे अंग शिथिल पड़ जाते हैं और इंसान की जिंदगी दूसरों की दया-कृपा पर निर्भर करती है। दूसरों पर आश्रित जिंदा रहना उस बोझ महसूस लगने लगता है और वह चाहता है कि उसे जितनी जल्दी हो सके, ज़िंदगी से छुट्टी मिल जाए। प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर कड़ी मेहनत कर जो कुछ भी बनाता है ताकि जीवन की सांझ सम्मान सहित कम से कम कठिनाई से बीते। लेकिन, जब हम अपने परिवेश में नजर दौड़ाते हैं तो इसके विपरीत दृश्य देखने को मिलते हैं। अनेक बुजुर्गों को बुढ़ापे में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। उन्हें न तो सिर छिपाने के लिए छत, खाने को दो जून की रोटी और तन ढकने के लिए कपड़ा भी उपलब्ध नहीं हो पाता। बुढ़ापा आते ही वह अकेला पड़ने लगता है जहां उसकी सुनने वाला कोई नहीं होता। यहाँ तक कि जिन बच्चों की खातिर वह अपना सब कुछ लुटाता है, वही उसे सिरदर्द समझने लगते हैं। उसकी उपेक्षा करते हं। यह दृश्य किसी एक घर, गाँव, या नगर की विेशेष समस्या नहीं है बल्कि हर तरफ ऐसा या लगभग ऐसा देखने, सुनने को मिलता है। वर्तमान की संस्कारविहीन शिक्षा के कारण अपनी संतान ही अपनी नन्हीं अंगुलियां थामने वाले बूढ़े माँ-बाप से छुटकारा पाने के बहाने तलाशने लगी है। उन्हें यह स्मरण नहीं रहता कि वह उन्हीं माँ-बाप की कड़ी मेहनत, त्याग, समर्पण के कारण ही किसी मुकाम तक पहुंचे हैं। जिन्होंने अपनी संतान को सुखी, समृद्ध, सम्मानपूर्वक जीवन जीने के योग्य बनाने का सपना साकार करने के लिए अपना जीवन होम किया हो, यदि वे जीवन की संध्या में असहाय, अभावग्रस्त है तो लानत है उस संतान पर। वास्तव में वे संताने अधम हो धरती पर बोझ हैं। वृक्ष जब तक छायादार और फलदार रहता है, अपनी सेवाएं देता है। सूखने और जर्जर होने पर भी वह जाते जाते लकड़ी देकर जाता है। वृद्धावस्था जीवन का अखिरी चरण है, जब परिवार को उन्हें ऐसा वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए जिससे उन्हें अपनी संतति पर गर्व हो। उनके पास अनुभवों, संस्मरणों, स्मृतियों की अमूल्य धरोहर हैं जिसे प्रापत कर सुरक्षित, संरक्षित करना उनके बाद की पीढ़ी का कर्तव्य है। ऐसा भी नहीं है कि समाज से वृद्धों के सम्मान की भावना लृप्त हो चुकी है। आज भी अनेकानेक ऐसे परिवार है जहां अपने बुजुर्गों का बहुत सम्मान होता है। लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। आज विवाह के पश्चात ‘पति-पत्नी ही संसार है, शेष सब बेकार है’ की अवधारणा बलवती हो रही है। वृद्धों के सम्मान की श्रेष्ठ मानवीय गुणों को प्रसारित करने वाली भारतीय संस्कृति से विचलित होने के दुष्परिणाम समाज को उस रहे हैं। श्रवण कुमार के देश में आत्मकेन्द्रित होती पीढ़ी संयुक्त परिवार के तमाम गुणों और लाभों को समझने को तैयार ही नहीं है। एकाकी परिवार भी लगता है पीछे छूट रहा है। हर व्यक्ति एकाकी हो रहा है। क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता नहीं, ‘स्वच्छन्दता’ चाहिए। सुविधाएं तो सारी चाहिए लेकिन जिम्मेवारी एक भी नहीं। ऐसे में वृद्धावस्था उपेक्षित हो रही है। यह स्थिति केवल वृद्धों के लिए ही कष्टकारी नहीं है बल्कि भावी पीढ़ी के साथ भी बहुत बढ़ा अन्याय और अत्याचार है। आज जब माता-पिता दोनो कामकाजी हैं ऐसे में बच्चे क्रैच में या नौकरों के हवाले। उन्हें लाड़ और संस्कार कौन दें? यदि हम दादा-दादी को पाते-पोतियों से जोड़ दें तो ‘विवशता’ और ‘आवश्यकता’ मिलकर समाज की ‘कर्कशता’ को काफी हद तक दूर कर सकते हैं। शहरों की इस नई आधुनिक शैली में लोग अपने-आपको इतना व्यस्त पाते है कि उनके पास परिवार में एक-दूसरे से बात करने का समय तक नहीं है या वे एक- दूसरे के साथ बैठकर बातचीत करने की जरूरत ही नहीं समझते। बूढ़ों से बातचीत करना तो आज के युवक समय की बर्बादी ही समझते हैं तो क्या वृद्धों की समाज में उपयोगिता नहीं? पूरे जीवन में अनगिनत कष्ट उठाकर अर्जित किया गया अनुभव क्या समाज के किसी काम का नहीं? यह सही है कि आज के जीवन में मनुष्य की व्यस्तताएं बहुत बढ़ गई हैं। लेकिन सोशल मीडिया और टीवी में डूबे रहने वाले समय की कमी का बहाना नहीं बना सकते। आज बुजुर्गों की स्थिति उस कैलेण्डर जैसी हो गई है जिसे नये वर्ष का केलेण्डर आते ही रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है या फिर कापी किताबों पर जिल्द चढ़ाने के काम में लिया जाता है। इसे ‘पीढ़ियों का अंतर’ कहकर अनदेखा करना मानव होने पर प्रश्नचिन्ह है। तेजी से स्मार्ट (?) हो रहे दौर में परिवार के मुखिया रहे व्यक्ति की दुर्दशा स्मार्टनेस का नहीं, शेमलेस होने का प्रमाण है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यह किसी एक परिवार, एक नगर, प्रदेश अथवा देश की कहानी नहीं है।पूरे विश्व में बुजुर्गों के समक्ष न केवल अपने आपको बचाने बल्कि शारीरिक सक्रियता, आर्थिक विपन्नता की बढ़ी चुनौती है। यूरोप के विकसित देशों में वृद्धों को सरकार की ओर से अनेक प्रकार की सुविधा दी जाती है लेकिन हमारे अपने देश में रेल यातायात में मिलने वाली छूट को हटाने की ताक में बैठे नौकरशाहों को कोरोना ने अवसर उपलब्ध करा दिया। आज देश भर में बुजुर्गों को यातायात के नाम पर कोई छूट नहीं है। गुजरात सहित कुछ राज्यों में तो राज्य परिवहन की बसों में महिलाओं के लिए तो कुछ सीटे आरक्षित है परंतु वृद्धों के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं है। भारत जैसे देश में जहां वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही है परंतु उनकी समस्याओं की ओर समाज और सरकार का ध्यान बहुत कम है। पश्चिम के समृद्ध देशों की छोड़िये, भारतीय मूल के छोटे देश मॉरीशस में भी वृद्धों के कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रम है। वहां प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक को आकर्षक पेंशन, आजीवन निःशुल्क यातायात और स्वास्थ्य सेवाएं सहित अनेक सुविधाएं प्रदान की जाती है जबकि दूसरी ओर हमारे यहां बुजुर्ग महिलाओं तथा ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले बुजुर्गो आर्थिक संकटों से जूझने को विवश है। यदि कही पेंशन योजना है भी तो नाममात्र की राशि के साथ बहुत सीमित लोगों को ही उपलब्ध है। ऐसे में वे किसी तरह जीवन को घसीट रहे हैं। अकेले रहने को विवश बुजुर्गों को नित्य प्रति बढ़ रहे अपराधों से हर समय खतरा बना रहता है। इधर सर्वत्र ऑनलाइन लेन-देन के कारण उनके विरूद्ध साइबर क्राइम भी बढ़ रहे है। यह संतोष की बात है मोदी सरकार ने 70 से अधिक आयु वाले सभी नागरिकों के उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए आयुष्मान योजना लागू की है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार की ओर से पांच लाख रुपए तक के वार्षिक उपचार निजी अस्पताल में करने का प्रावधान है। दिल्ली सहित कुछ राज्यों ने इस योजना में अपना अंशदान देते हुए उपचार की राशि को 5 से बढ़कर 10 लख रुपए कर दिया है लेकिन सरकार स्वयं 60 वर्ष के व्यक्ति को सेवानिवृत्ति कर देती है तो असंगठित क्षेत्र की स्थिति को समझा जा सकता है। अच्छा हो यदि इस योजना का लाभ सभी वरिष्ठ नागरिकों को दिया जाए। इस योजना के अंतर्गत अस्पताल में दाखिल होने पर ही उपचार के प्रावधान को बदल जाना चाहिए ताकि जीवन भर परिवार समाज को अपना श्रेष्ठ देने वाले वरिष्ठ नागरिकों की नियमित जांच सुनिश्चित हो सके। कुछ राज्य सरकारें कुछ वरिष्ठ नागरिकों को बुढ़ापा पेंशन देती है जबकि आवश्यकता है कि प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति को बुढ़ापा पेंशन के साथ-साथ, अकेले वृद्धों का पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए। वृद्धाश्रम (ओल्डहोम) में रहने वालों के लिए देहदान का नियम हो ताकि माता-पिता की उपेक्षा करने वालों को उनकी मृत्यु के बाद नाटक करने और नकली टस्सुए बहाने का मौका ही न मिलें। जीते जी माँ-बाप को न पूछने वालों द्वारा आयोजित दिखावे के श्राद्ध का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। वरिष्ठ नागरिकों को भी अपनी सक्रियता और वाणी में मधुरता बरकरार रखनी चाहिए। यदि वे समाज ‘उपयोगी’ बने रहेंगे तो उनकी स्थिति निश्चित रूप से बेहतर होगी। अपने पास यदि कुछ धन, सम्पत्ति है तो उसकी वसीयत जरूर करें लेकिन सब सौंपने से पूर्व भावना के बहाव में बहने से बचते हुए गंभीर होकर निर्णय करें। डा. विनोद बब्बर Read more » नोएडा के एक ओल्डऐज होम में लोगों की दुर्दशा
लेख समाज बेटियों के लिये मोह बढ़ना संतुलित समाज का आधार June 27, 2025 / June 27, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – दुनियाभर में माता-पिता आमतौर पर अब तक बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा पसंद करते आ रहे हैं, लेकिन प्राथमिकताओं को लेकर वैश्विक दृष्टिकोण में एक सूक्ष्म, महत्वपूर्ण और बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि अब लड़के की तुलना में लड़कियों […] Read more » बेटियों के लिये मोह