–मनीष सिंह-
खोया हूँ मैं हक़ीक़त में और फ़साने में ,
ना है तुम बिन कोई मेरा इस ज़माने में।
तुम साथ थे तो रौशन था ये जहाँ मेरा ,
अब जल जाते हाथ अँधेरे में शमा जलाने में।
यूँ तो मशरूफ कर रखा है बहुत खुद को ,
फिर भी आ जाती हो याद जाने अनजाने में।
हर धड़कन में है बसी ऐसे याद तेरी ,
कहीं खुद को न भूल जाऊँ तुम्हें भुलाने में।
ऐसी लगी लत दिल को तेरी यादों की ,
कोई नशा भी नहीं चढ़ता अब तो मयख़ाने में।
तुम्हे खोने के बाद अब तो खुदा की कसम ,
ख़ुशी भी न होगी कोई तख्तो ताज पाने में।
एक बार ज़रा देख ले जो आज भी तू ,
उसी प्यार की शिद्दत है तेरे दीवाने में।
न क़ुबूल हो रही दुआ या मन्नत मेरी ,
शायद खुदा भी लगा है हमें आज़माने में।