हीटवेव: भारत के लिए बढ़ता हुआ सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट
Updated: April 7, 2025
भारत में हीटवेव अब केवल मौसमी असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। वर्ष 2024 में हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता…
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रिश्तों की चिता..
Updated: April 7, 2025
कभी एक आँगन था…जहाँ माँ की साड़ी की ओट मेंदुनिया छुप जाया करती थी।अब उसी आँगन में,“सीमा रेखा” खींची गई है…जमीनी नक्शे से रिश्तों का…
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प्राकृतिक उपचार की विधि है यज्ञोपवीत संस्कार
Updated: April 7, 2025
प्रमोद भार्गव यह प्रबंध सनातन संस्कृति में ही निहित है, जिसमें प्रत्येक संस्कार को शारीरिक उपचार के प्राकृतिक शोध से जोड़कर समाज के प्रचलन में लाया…
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जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम
Updated: April 7, 2025
-ललित गर्ग- न्यायपालिका पर जनता का भरोसा लोकतंत्र का अहम आधार है। न्यायिक प्रणाली में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रहे, इसके लिये न्यायपालिका में…
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टैरिफ युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं होगा अधिक प्रभाव
Updated: April 7, 2025
दिनांक 2 अप्रेल 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा, विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयातित उत्पादों पर की गई टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही अंततः अमेरिका द्वारा पूरे विश्व में टैरिफ के माध्यम से व्यापार युद्ध छेड़ दिया गया है। अभी, अमेरिका ने विभिन्न देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर विभिन्न दरों पर टैरिफ लगाया है। अब इनमें से कई देश अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर रहे हैं, जैसे चीन ने अमेरिका से चीन में आयात होने वाले उत्पादों पर दिनांक 10 अप्रैल 2025 से 34 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है। टैरिफ के माध्यम से छेड़े गए व्यापार युद्ध का भारत पर कोई बहुत अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना कम ही है। दरअसल, अमेरिका ने विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर अलग अलग दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की है और साथ ही कुछ उत्पादों के आयात पर फिलहाल टैरिफ की नई दरें लागू नहीं की गई हैं। टैरिफ की यह दरें 9 अप्रैल 2025 से लागू होंगी। विभिन्न देशों से अमेरिका में आयात होने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत की दर से न्यूनतम टैरिफ लगाया गया है। साथ ही, कुछ अन्य देशों यथा चीन से आयातित उत्पादों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। इसी प्रकार, वियतनाम से आयातित उत्पादों पर 46 प्रतिशत, ताईवान पर 32 प्रतिशत, थाईलैंड पर 36 प्रतिशत, भारत पर 26 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत, इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड पर 31 प्रतिशत, मलेशिया पर 24 प्रतिशत, कम्बोडिया पर 49 प्रतिशत, दक्षिणी अफ्रीका पर 30 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत, श्रीलंका पर 44 प्रतिशत और इसी प्रकार अन्य देशों से आयातित वस्तुओं पर भी अलग अलग दरों से टैरिफ लगाने की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। कुछ उत्पादों जैसे, स्टील, एल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, एनर्जी, बुलीयन एवं अन्य महत्वपूर्ण मिनरल्स को अमेरिका में आयात पर टैरिफ के दायरे से बाहर रखा गया है। अमेरिका का मानना है कि वैश्विक स्तर पर अन्य देश अमेरिका में उत्पादित वस्तुओं के आयात पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाते हैं, जबकि अमेरिका में इन देशों से आयात किए जाने वाले उत्पादों पर अमेरिका द्वारा बहुत कम दर पर टैरिफ लगाया जाता है अथवा बिलकुल नहीं लगाया जाता है। जिससे, अमेरिका से इन देशों को निर्यात कम हो रहे हैं एवं इन देशों से अमेरिका में आयात लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस प्रकार, अमेरिका का व्यापार घाटा असहनीय स्तर पर पहुंच गया है। इसके साथ साथ, अमेरिका में विनिर्माण इकाईयां बंद होकर अन्य देशों में स्थापित हो गई हैं और इससे अमेरिका में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। अब ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका को पुनः विनिर्माण इकाईयों का हब बनाने के उद्देश्य से अमेरिका को पुनः महान बनाने का आह्वान किया है और इसी संदर्भ में विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर भारी मात्रा में टैरिफ लगाने का निर्णय लिया गया है ताकि अमेरिका में आयातित उत्पाद महंगे हों और अमेरिकी नागरिक अमेरिका में ही निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने की ओर प्रेरित हों। वर्तमान में बढ़े हुए टैरिफ का बोझ अमेरिकी नागरिकों को उठाना पड़ेगा और उन्हें अमेरिका में महंगे उत्पाद खरीदने होंगे, क्योंकि नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना में तो वक्त लग सकता है, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन तुरंत तो बढ़ाया नहीं जा सकता अतः जब तक नई विनिर्माण इकाईयों की अमेरिका में स्थापना हो एवं इन विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन शुरू हो तब तक अमेरिकी नागरिकों को महंगे उत्पाद खरीदने हेतु बाध्य होना पड़ेगा। इससे अमेरिका में एक बार पुनः मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं ब्याज दरों के कम होने के चक्र में भी देरी होगी, बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति को कम करने की दृष्टि से एक बार पुनः कहीं ब्याज दरों के बढ़ने का चक्र प्रारम्भ न हो जाए। लम्बे समय में जब अमेरिका में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना हो जाएगी एवं इन इकाईयों में उत्पादन प्रारम्भ हो जाएगा तब जाकर कहीं मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाया जा सकेगा। विभिन्न देशों से आयातित उत्पादों पर टैरिफ सम्बंधी घोषणा के साथ ही, डॉलर पर दबाव पड़ना शुरू भी हो चुका है एवं अमेरिकी डॉलर इंडेक्स घटकर 102 के स्तर पर नीचे आ गया है जो कुछ समय पूर्व तक लगभग 106 के स्तर पर आ गया था। इसी प्रकार अमेरिका में सरकारी प्रतिभूतियों की 10 वर्ष की बांड यील्ड पर भी दबाव दिखाई दे रही है और यह घटकर 4.08 के स्तर पर नीचे आ गई है, यह कुछ समय पूर्व तक 4.70 के स्तर से भी ऊपर निकल गई थी। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़नी प्रारम्भ हो गई है एवं यह पिछले चार माह के उच्चतम स्तर, लगभग 85 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर, पर आ गई है। ट्रम्प प्रशासन के टैरिफ सम्बंधी लिए गए निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर लम्बी अवधि में तो हो सकता है परंतु छोटी अवधि में तो निश्चित ही यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करते हुए दिखाई दे रहा है। अमेरिकी पूंजी बाजार (शेयर बाजार) केवल दो दिनों में ही लगभग 10 प्रतिशत तक नीचे गिर गया है और अमेरिकी निवेशकों को लगभग 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। इतनी भारी गिरावट तो वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान ही देखने को मिली थी। यदि यही स्थिति बनी रही तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था कहीं मंदी की चपेट में न आ जाय। यदि ऐसा होता है तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। अतः ट्रम्प प्रशासन का टैरिफ सम्बंधी उक्त निर्णय अति जोखिम भरा ही कहा जाएगा। जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कुछ तो विपरीत असर होगा ही। इस संदर्भ में किए गए विश्लेषण से यह तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि बहुत सम्भव है कि ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए 26 प्रतिशत के टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव नहीं हो। क्योंकि, एक तो भारत से अमेरिका को निर्यात बहुत अधिक नहीं है। यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र लगभग 3-4 प्रतिशत ही है। वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर नहीं है एवं यह विभिन्न उत्पादों की आंतिरक मांग पर अधिक निर्भर है। भारत से सकल घरेलू उत्पाद का केवल लगभग 16 प्रतिशत (वस्तुएं एवं सेवा क्षेत्र मिलाकर) ही निर्यात किया जाता है। दूसरे, भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने कुछ उत्पादों को उक्त टैरिफ व्यवस्था से फिलहाल मुक्त रखा गया है, जैसे फार्मा उत्पाद, सेमीकंडक्टर, स्टील, अल्यूमिनियम, ऑटो, ताम्बा, बुलीयन, एनर्जी आदि। संभवत: इन उत्पादों के भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुछ भी असर नहीं होने जा रहा है। तीसरे, भारतीय कम्पनियों (26 प्रतिशत टैरिफ) को रेडीमेड गर्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात में पड़ौसी देशों, यथा, बांग्लादेश (37 प्रतिशत टैरिफ), पाकिस्तान (29 प्रतिशत टैरिफ), श्रीलंका (44 प्रतिशत टैरिफ), वियतनाम (46 प्रतिशत टैरिफ), चीन (34 प्रतिशत टैरिफ), इंडोनेशिया (32 प्रतिशत टैरिफ), आदि के साथ अत्यधिक स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। परंतु, उक्त समस्त देशों से अमेरिका को होने वाले रेडीमेड गार्मेंट्स के निर्यात पर भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगाए जाने की घोषणा की गई है। अत: इन देशों से रेडीमेड गार्मेंट्स के अमेरिका को निर्यात भारत की तुलना में महंगे हो जाएंगे, इससे रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में भारत के लिए लाभ की स्थिति निर्मित होती हुई दिखाई दे रही है। इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कृषि उत्पादों के निर्यात भी भारत से अमेरिका को बढ़ सकते हैं। यदि किन्ही क्षेत्रों में भारत को नुक्सान होता हुआ दिखाई भी देता है तो भारत के विश्व के अन्य देशों के साथ बहुत अच्छे राजनैतिक संबंधो के चलते भारत को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार तलाशने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। वैसे भी, अमेरिका सहित भारत के यूरोपीयन देशों, ब्रिटेन एवं खाड़ी के देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सम्पन्न करने हेतु वार्ताएं लगभग अंतिम दौर में पहुंच गईं हैं, इसका लाभ भी भारत को होने जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शीघ्र ही मोनेटरी पॉलिसी के माध्यम से रेपो दरों में परिवर्तन की घोषणा की जाने वाली है। भारत में चूंकि मुद्रा स्फीति की दर लगातार गिरती हुई दिखाई दे रही है अतः भारत में रेपो दर में 75 से 100 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा की जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो विभिन्न उत्पादों की उत्पादन लागत में कुछ कमी सम्भव होगी, जिसके चलते भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। हालांकि, केवल ब्याज दरों के कमी करके पूंजी की लागत को कम करने से काम चलने वाला नहीं है, भारत को भूमि एवं श्रम की लागतों को भी कम करने की आवश्यकता है तथा उत्पादकता में सुधार करने की भी आवश्यकता है ताकि भारत में निर्मित होने वाले उत्पादों की कुल लागत में कमी हो एवं यह उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अन्य देशों के मुक़ाबले में टिक सकें। वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक, सामरिक, रणनीतिक, राजनैतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों में आमूल चूल परिवर्तन होता हुआ दिखाई दे रहा है, परिवर्तन के इस दौर में भारतीय कम्पनियां कितना लाभ उठा सकती हैं यह भारतीय कम्पनियों के कौशल पर निर्भर करेगा। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा शीघ्रता से अपने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देकर भी वैश्विक स्तर पर निर्मित हुई उक्त परिस्थितियों का लाभ उठाया जा सकता है।
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भारत कुमार को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि: मनोज कुमार – एक युग, एक विचार, एक भावना
Updated: April 6, 2025
“है प्रीत जहाँ की रीत सदा मैं गीत वहाँ के गाता हूँ भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ” -प्रियंका सौरभ जब…
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कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या…
Updated: April 6, 2025
श्रद्धांजलि– मनोज कुमार सुशील कुमार ‘नवीन’ सही अर्थों में वो भारतवासी थे। जीवनपर्यंत भारत और भारतीय संस्कृति की ही बातें उन्होंने प्रत्येक देशवासी को बताई। मेरे देश की धरती सोना उगले से राष्ट्र की दूर तलक तक पहचान बनवाने में उनका स्वर्णिम योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। ये दुनिया एक नंबरी तो मैं दस नंबरी से मैदान ए जंग में अपना अलग ही रुतबा उन्होंने बरकरार रखा। यहां तक अबके बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे का वादा पूरी निष्ठा से निभाकर भारत मां के उपकार को चुकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जीवन चलने का नाम कहकर क्रांति की अलख जगाना कोई इनसे ही सीखे। मेरा रंग दे बसंती चोला कहकर शहीद होने वाले इस भारत कुमार को आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी। भले ही दीवानों से ये मत पूछो, दीवानों पे क्या गुजरी है कहकर अपने हुए पराये का दर्द देकर चले गए, फिर भी पत्थर के सनम तुम्हें हमने खुदा माना। माना बस यही अपराध है बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं। पर तुम्हें हरियाली और रास्ता इतना भाएगा कि इस बात का जरा भी अहसास नहीं होने दिया। हमें यह बोलकर कि घर बसाकर देखो, कभी अपना बनाकर देखो खुद का सन्यासी बन क्या हिमालय की गोद में जाना उचित है। रोटी कपड़ा और मकान की जीवन में सार्थकता का अहसास जिस तरह से तुमने कराया, वैसा और कोई आदमी चाहे हाथ में रेशमी रूमाल लेकर घूमता फिरे। पूनम की रात में कलयुग की रामायण दिखाकर वो कौन थी का यादगार सस्पेंस उत्तर दक्षिण, पूरब और पश्चिम में सदा बना रहेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि मास्टरजी का दिमाग आज बन्ना गया है कि बेसिरपैर की बातें करे जा रहे हैं। आपका सोचना बिल्कुल वाजिब भी है कि व्यंग्य के साथ गांभीर्य का सदा तड़का लगाने वाले मास्टरजी आज अलग ही मूड में है। विषय से न भटकते हुए सीधे मुद्दे पर आ जाते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज में अपना अलग मुकाम रखने वाले एकमात्र भारत कुमार की उपाधि को सही अर्थों में शिरोधार्य करने वाले अभिनेता, निर्देशक मनोज कुमार जी आज नहीं रहे। हिन्दुस्तान ही क्या विदेशों तक उनकी फैन फॉलोइंग अपने आप में रिकॉर्ड है। राष्ट्र सर्वोपरि की भावना को अपनी फिल्मों के माध्यम से उन्होंने सदैव अग्रणी रखा। इस बात का उदाहरण आप इसी बात से लगा सकते हां कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के एक कथन से उन्होंने किसान और जवान को केंद्र में रखकर उपकार फिल्म बनाई। क्रांति के माध्यम से अंग्रेजी गुलामी की दासता को चित्रण कर प्रत्येक देशवासी को झकझोर कर रख दिया। संगीत के तो क्या कहने। 15 अगस्त हो या 26 जनवरी, उपकार, क्रांति, शहीद आदि फिल्मों के गीत तन मन में रोमांच भर देते हैं। उनके बारे में जितना लिखा जाए, जितना सुना जाए, उतना ही कम रहेगा। एक बेहतर भारतीय अभिनेता तो थे ही, इसके साथ-साथ उच्च कोटि के फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, गीतकार और संपादक भी थे। जिस कार्य को शुरू किया उसमें क्या नफा होगा क्या नुकसान, इस बात की परवाह उन्होंने कभी नहीं की। जो एक बार ठान लिया, उसे करने के लिए वो हद से गुजरने से गुरेज नहीं करते थे।कई बार नुकसान भी हुआ पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। अपनी अलग पहचान बनाई। जब तक काम किया सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। हिंदी सिनेमा में उनके काम को सदा याद किया जायेगा। भारतीय सिनेमा और कला में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 1992 में पद्म श्री और 2015 में सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव उन्हें प्राप्त हुआ। फिल्म इंडस्ट्रीज में कभी न भुलाए जाने वाले मनोज कुमार जी को उन्हीं की एक फिल्म शोर के गीत से नमन। दो पल के जीवन से इक उम्र चुरानी है ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है। लेखक; सुशील कुमार ‘नवीन‘,
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भारतीय जनता पार्टी की स्थापना व उसका इतिहास
Updated: April 7, 2025
पार्टी की स्थापना दिवस 6 अप्रैल पर विशेष भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई, जिसके प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी सर्वसम्मति …
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अमेरिकी टैरिफ: भारत को नुकसान या फायदा ?
Updated: April 7, 2025
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ की घोषणा की है। गौरतलब है कि ट्रंप के 60 देशों पर पारस्पिरक टैरिफ लगाया है।…
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भारत में शक्ति उपासना की सर्वव्यापकता
Updated: April 7, 2025
आत्माराम यादव पीव सनातन धर्म की अनूठी परंपरा है जिसमे परमात्मा के दो रूप हैं-माता और पिता। सत्य, ज्ञान, प्रभुता, अनन्तता, न्याय, उत्कृष्टता, परात्परता और सर्वशक्तिमानता इत्यादि जैसे गुण…
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गंभीर खतरे की घंटी है प्लास्टिक एवं माइक्रोप्लास्टिक
Updated: April 4, 2025
-ललित गर्ग- प्रकृति को पस्त करने, वायु एवं जल प्रदूषण, कृषि फसलों पर घातक प्रभाव, मानव जीवन एवं जीव-जन्तुओं के लिये जानलेवा साबित होने के…
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जल जीवन मिशन
Updated: April 4, 2025
डॉ. नीरज भारद्वाज जल बचाने का हम सभी को अपने जीवन में मिशन बनाना होगा वरना आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा संकट हम…
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